तोला भर श्रद्धा मन भर तर्कों पर भारी होती है।
हिन्दू धर्म में बलि प्रथा की कहीं संस्तुति नहीं है इस पर पहले ही पोस्ट डाल चुका हूँ अतः अतिउत्साही कम्मेंट लिखने वाले मेरी टाइम लाइन देख लें। बकरीद मनाने वाले या धर्म, इस्लाम के नाम पर कुर्बानी क्यों नहीं देनी चाहिए , इनके धर्म के अनुसार ही समझाऊंगा ,लेकिन
कल बकरीद है और आज एक पोस्ट से ,एक दिन में , एक साल में या एक शताब्दी में यह निरीह और मूक जानवरों का कत्लेआम तो बंद होने से रहा। मैं यह भली प्रकार से जनता हूँ कि मांसाहार आज की तारिख में बहुत से लोगों के जीवन का और भोजन का इतना अभिन्न अंग बन गया है कि जैन समुदाय की भावनाओं को ताक पर रख कर लोग चार दिन के लिए मांसाहार नहीं छोड़ सकते। सरदेसाई सरीखे बड़े बड़े पत्रकार मीडिया और तमाम वर्ग ऐसे चिल्लाते हैं मानो चार दिन मांस नहीं खाया तो बस मौत ही आ जाएगी। मौत फिर भी आती है उन निरीह जानवरों की, मगर अफ़सोस है उस मौत को लाने वाली दर्दनाक "हलाल" प्रक्रिया पर।
क्या हलाल करना जरूरी है ???
क्या क़ुरबानी देनी जरूरी है ???
पहले हलाल क्यों किया जाता है यह समझ लें--
Bible --- (Leviticus 7:26,27) --- तुम अपने घरों में किसी भी पक्षी या पशु के रक्त का उपभोग नहीं कर सकते। जो रक्त का उपभोग करता है , उसे समुदाय से बहिष्कृत कर दिया जायेगा।
(Leviticus 11:1-47 )----- ऊँट ,सूअर, खरगोश ,चट्टानी बिज्जू मरे हुए जानवर खाना भी मना है।
Quran -- सूरा 2 आयात 173( सूरा 5: आयत 3) ---अल्लाह तआला ने तो तुमपर सिर्फ हराम किया है मुर्दा जानवर ,और खून को (जो बहता हो )और सूअर के गोश्त को ,(इसी तरह उसके सब अंगों और हिस्सों को भी ) ……… ....
तो जानवर को मेरे विचार से ये इसलिए हलाल करते हैं कि से खून की एक एक बूँद निकल जाये जिससे वो इनके लिए हराम न हो। क्या झटके से मारने के बाद पूरा खून नहीं निकला जा सकता ?????
बकरीद के बारे में सब जानते हैं कि तथाकथित "प्रभु" ने इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उसके पुत्र इसहाक की बलि मांगी थी। कुछ आधी अधूरी तस्वीर ही है मेरे मित्रों के सामने और इस रिवाज़ को जी जान से निभाने वालों के सामने। इस प्रथा को शुरू करने वाला "अब्राम" फिर प्रभु के आदेशानुसार "इब्राहिम" कौन था ??
तथाकथित प्रभु कहता है कि उसने आदम और हव्वा बनाये। यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों इस बात को मानते है। फिर उसने नूह और उसके परिवार को छोड़ कर पूरी दुनिया खत्म कर दी। यह बात भी तीनों धर्म मानते हैं। फिर नूह के आगे वंशज हुए जिनमे एक इब्राहिम हुए। उनकी, उनसे बात करने वाले प्रभु / प्रभु के दूत पर अगाध श्रद्धा थी। जैसा कि होता है, प्रभु ने उनकी परीक्षा लेने के लिए उन्हें आदेश दिया कि -------
Bible, (Genesis 22:1-2 ) -- "इब्राहिम ! इब्राहिम !" इब्राहिम ने उत्तर दिया "प्रस्तुत हूँ। "ईश्वर ने कहा, " अपने पुत्र को,अपने एकलौते को, परमप्रिय इसहाक को साथ ले जा कर मोरिया देश जाओ।वहाँ,जिस पहाड़ पर मैं तुम्हे बताऊंगा,उसे बलि चढ़ा देना।
( बीच की कहानी छोड़ रहा हूँ ) (Genesis 22 :9-14) जब वे उस जगह पहुँच गए,जिसे ईश्वर ने बताया था , तो इब्राहिम ने वहां एक वेदी बना ली और उस पर लकड़ी सजाई। इसके बाद उसने अपने पुत्र को बांधा और उस वेदी के उप्र रख दिया। तब इब्राहिम ने अपने पुत्र को बलि चढ़ाने के लिए छुरा उठा लिया। किन्तु प्रभु का दूत स्वर्ग से उसे पुकार कर बोला ,"इब्राहिम ! इब्राहिम !" उसने उत्तर दिया "प्रस्तुत हूँ " दूत ने कहा "बालक पर हाथ नहीं उठाना ; उसे कोई हानि नहीं पहुँचाना। अब मैं जान गया कि तुम ईश्वर पर श्रद्धा रखते हो --- तुमने मुझे अपने पुत्र इकलौते पुत्र, को भी देने से इंकार नहीं किया। " इब्राहिम ने आँखे ऊपर उठाईं और सींगों से झड़ी में फंसे हुए एक मेढ़े को देखा। इब्राहिम ने जा कर मेढ़े को पकड़ लिया और उसे अपने पुत्र के बदले बलि चढ़ा दिया। लेकिन बेटे के नाम पर बलि इब्राहिम के साथ ही खत्म हो गयी थी।
इसके बाद 1200 BC के लगभग में एक "मूसा" आये और उन्होंने ईश्वरीय आदेशानुसार पूजा पाठ के नाम पर ईश्वर को वेदी के ऊपर हर वक़्त बैल ,बकरी भेड़ें और पक्षी बलि चढ़ाने की प्रथा शुरू की। और यह कार्यक्रम किसी भी दिन और 365 दिन हो सकता था। इसका एक उदाहरण है ----
Bible -(2 CHRONICLES7:5)---राजा सुलेमान ने 22000 बैलों और 120000 भेड़ों की बलि चढ़ाई। इस प्रकार राजा ने सारी प्रजा के साथ ईश्वर के मंदिर का प्रतिष्ठान किया।
लेकिन ईस्वी 740 ई. पू. से 539 ई. पू. के मध्य ईश्वर को कुछ सद्बुद्धि आई, और उसने कहा
Bible --(Isaiah 7:10-13)---- सोदोम के शासको ! प्रभु की वाणी सुनो। गोमोरा की प्रजा !ईश्वर की शिक्षा पर ध्यान दो। प्रभु कहता है "तुम्हारे असंख्य बलिदानों से मुझ को क्या?
#मैं_तुम्हारे_मेढ़ों_और_बछड़ों_ की_चर्बी_से_ऊब_गया_हूँ। #मैं_सांडों_मेमनों_और_बकरों_का _रक्त_नहीं_चाहता। जब तुम मेरे दर्शन करने आते हो तो कौन तुमसे यह सब यह सब मांगता है ? तुम मेरे प्रांगण क्यों रोंदते हो ?मेरे पास व्यर्थ का चढ़ावा लिए फिर नहीं आना।
अब पोस्ट पढने वाले कहेंगे कि बाइबल और इस्लाम / कुरान का क्या सम्बन्ध ??? है , सम्बन्ध है। विस्तार में तो बाद में लिखेंगे लेकिन सबने सुना होगा या कि कुरान की आयतें "गैब्रिएल-- प्रभु का दूत" मोहम्मद साहब को आ कर सुनाता था।
और बाइबिल में भी तो प्रभु या उसका दूत ही आदेश देता है ---
Bible -(Luke 1:19)---स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, "मैं गैब्रिएल हूँ --ईश्वर के सामने उपस्थित रहता हूँ। मैं आपसे बातें करने और आपको शुभ समाचार सुनाने भेजा गया हूँ।
Bible --( Daniel 9 :21,22)-- इसी बीच संध्या बलि के समय जिस गैब्रिएल नमक मनुष्य को मैं पहले देख चुका था,वह शीघ्र ही उड़ कर मेरे समीप आया। उसने मुझे समझते हुए कहा "डेनियल! मैं तुम को विद्या और बुद्धि प्रदान करने आया हूँ।
हजारों सालों से दुनिया को आदेशित करने वाला प्रभु 770 B.C से 620 A.D आते आते, दोनों को प्रभु की शिक्षा देने वाला गैब्रिएल, मोहम्मद साहब को क्या यह शिक्षा देना भूल गया कि ----------#मैं_तुम्हारे_मेढ़ों_ और_बछड़ों_की_चर्बी_से_ऊब_गया_हू ँ। #मैं_सांडों_मेमनों_और_बकरों_का _रक्त_नहीं_चाहता। या
कुरान सूरा 2 आयत 106 --- हम किसी आयत का हुक्म जो मौक़ूफ़ "यानि रोक देते और मुल्तवी कर देते हैं, या उस आयत(ही) को (जेहनों से भुला देते हैं,तो हम उस आयत से बेहतर या उस आयत ही की जैसी ले आते हैं। ( ऐ ऐतिराज़ करने वाले!) क्या तुझको यह मालूम नहीं कि हक़ तआला हर चीज़ पर कुदरत रखते हैं।
क़ुरान 16 :101 ---और जब हम किसी आयत को दूसरी आयत की जगह बदलते हैं, और हालाँकि अल्लाह तआला जो हुक्म भेजता है उसको वाही खूब जनता है, तो ये लोग ये कहते हैं की आप घड़ने हैं, बल्कि उन्ही में अक्सर लोग जाहिल हैं। ( means he added,deleted or cahnged ayats as per his will)
वरना प्रभु तो ऊब गया है चर्बी और खून की कुर्बानी से।