मंगलवार, 10 नवंबर 2015

#हिन्दू_असहिष्णु_है।

देखते ही देखते मौज़ों में कश्ती बह गयी। 
हाथ फैला कर किनारे फड़फड़ा कर रह गए। 

जी, कुछ ऐसा ही हुआ है भारतीय इतिहास और वैदिक संस्कृति के साथ। हर बार की तरह मेरी लम्बी लम्बी पोस्ट को जैसे आप बर्दाश्त करते है , आज के इस विशेष दिवस पर इसे भी बर्दाश्त करिये। विशेष दिवस दीपावली का नहीं है , पर हाँ आज मैं एक नया दिया आपके सामने जला रहा हूँ। लड़ियों या कड़ियों को अंत में आप जोड़ लीजियेगा। 
एक थे E.R Sathe, पुरातत्व विभाग में अधिकारी।  1955 के आसपास, ताज महल की देखरेख करते समय, उन्हें वहां कुछ वैदिक धर्म के चिन्ह मिले।  उन्होंने यह बात तत्कालीन केंद्रीय शिक्षा मंत्री " मौलाना अबुल कलम आज़ाद"(15 अगस्त 1947 -2 फरवरी 1958 )को बताई। मौलाना कहिये या आज़ाद, आज़ाद ने उन्हें दो नसीहतें दीं , एक ,ताज महल के तहखाने के दरवाज़े बंद कर दो  दूसरी अपना मुंह बंद रखो। 
बर्दवान एजुकेशन सोसाइटी एवं टीचर्स एंटरप्राइज द्वारा लिखित तथा सुखोमोय दास द्वारा प्रकाशित "भारत कथा "  के पृष्ठ 113 पर लिखा था " गैर मुस्लिमों को इस्लाम या मौत में से एक चुनना होता था। सिर्फ हनफ़ी मुसलमानों ने जजिया के बदले ज़िन्दगी की इज़ाज़त दे रखी थी। 
कुछ दिन बाद यह पुस्तक सम्पादित कर दी गयी और सम्पादित अंश इस तरह है "अलाउद्दीन ख़िलजी को जजिया देने के पश्चात गैर मुस्लिम आम ज़िन्दगी जी सकते थे। "
पृष्ठ 89 --- " सुलतान महमूद ने लूट ,हत्या ,तोड़फोड़ और धर्मांतरण के लिए बल का प्रयोग किया। 
संपादन के पश्चात --- " सुलतान महमूद ने बहुत ज़्यादा तोड़फोड़ और लूटपाट की "-------- #हत्याओं_और_धर्मांतरण_ का_कोई_ज़िक्र_नहीं।  
मुस्लिम इतिहासकार " महमूद बिन इब्राहिम शार्की "(1440---1457) "तबकत ऐ अकबरी" में लिखता है, " कुछ समय पश्चात वो जिहाद के मकसद से ओडिसा गया, वहां उसने आसपास के क्षेत्रों पर हमला करके उन्हें उजाड़ दिया। मंदिरों को तोड़ने के बाद उन्हें मिट्टी में मिला दिया। 
मुस्लिम इतिहासकार "अब्दुल्लाह" अपनी  "तारीख ए दाऊदी" में सिकंदर लोधी के विषय में लिखता है कि " वो एक अतिउत्साही मुसलमान था और उसने काफिरों पूजास्थलों के नामो निशाँ तक मिटा दिए थे। उसने मथुरा के सारे पूजास्थलों को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। 
25 मई 1679 --- खान ए जहाँ , जोधपुर के मंदिरों को ध्वस्त करने बाद गाड़ियों में मूर्तियां भर कर लौटे और उन्होंने आदेश दिया कि इन मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों में चुना दिया जाये जिससे वे पैरों के तले रौंदी जाएँ। 
"सुलतान अहमद शाही वली बहमनी " ( 1422 -1435) --- "....... वो ( अहमद शाह ) जहाँ भी जाता था आदमियों औरतों और बच्चों के बेरहमी से मौत के घाट उतार देता था। …" 
"……जब वो 20000 क़त्ल कर लेता था , तो 3 दिनों इसका जश्न मनाने के लिए  रुक जाता था.……… "
1 जनवरी 1705, औरंगज़ेब ने महमूद खलील और खिदमत राय को बुलाया और " पंढरपुर " के मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया , और साथ में कसाई ले जाकर मन्दिर में गौवध करने का आदेश दिया। और ऐसा किया गया।( ये इतिहास खुद औरंगज़ेब के दस्तावेज़ बताते हैं , जबकि वामपंथी इतिहासकार हमें यह विश्वास करने के लिए मजबूर करते हैं कि यह सब औरंगज़ेब ने आर्थिक कारणों से किया था ,और उसमे #धार्मिक_असहिष्णुता तो थी ही नहीं और न ही उसने मज़हबी कारणों से ऐसा किया। ) और इतिहास के उपरोक्त दस्तावेज़ों की भाषाशैली बताती है कि यह सब गर्व से लिखी हुई ऐतिहासिक घटनाएँ हैं।

http://www.slideshare.net/IndiaInspires/arun-shourie-eminent-historians-15410533
कुरान के विषय में सब जानते हैं, और बाइबिल के विषय में जिसे संदेह हो उसे मै अध्याय और कथन दे सकता हूँ कि ये आसमानी किताबें काफिरों को लूट मार और बलात्कार के ही पाठ पढ़ाती हैं। लेकिन ISC Board की सातवीं कक्षा की Social Science की  पुस्तक उठा कर देख लीजिये , पहला अध्याय Christianity , दूसरा Islam पर और तीसरा Hindu Culture पर है।
दसवीं तक की किसी बोर्ड की Social Science किताब उठा कर देख लीजिये , जज़िया नाम के शब्द का ज़िक्र नहीं है। कोई भी  इस्लाम, मोहम्मद  और ईसाइयत तो वो धर्म बताये गए हैं जिनमे से प्रेम की धाराएं फुट रही हैं और जितनी भी कुरीतियाँ हिन्दू धर्म में इन मज़हबों के आने के बाद आयीं है सब की सब वैदिक काल से चली आ कर बता कर क्या छवि बताना चाहते हैं ये वामपंथी वैदिक धर्म के विषय में ????

आज की तारीख में इतिहास लिखने के दो ही स्तम्भ हैं। 1 ) हिन्दू सदैव असहिष्णु थे 2) मुस्लिम इतिहास की साम्प्रदायिकता को सहानुभूति की नज़र से देखा जाये।  
बुद्ध धर्म कैसे इस्लाम की तलवार की धार से काटा गया , यह तो मुस्लिम इतिहासकार खुद स्वीकारते है , लेकिन वामपंथी इतिहासकारों ने बहुत सलीके से पूरी की पूरी दुकान सनातन धर्मियों पर पलट दी।  
आज की तारीख में फेस बुक सनातन धर्मियों के लिए गलियों से लबरेज़ पोस्ट और चुनावी गठबंधनों को देखते हुए कोई भी कह सकता है कि वामपंथी इतिहासकार अपनी इस मुहीम में सफल हुए है। 
कब , क्यों और कैसे विद्रूप हो गयीं यह स्थितियां ???? बहुत लम्बी कहानी है। लेकिन संक्षेप में सुनिए। 
अंग्रेज़ों ने " Aryan Invasion Theory" को इज़ाद करने के साथ भारतीय इतिहास को इसलिए इतना तोडा मरोड़ा कि भारतियों कि नज़र में उनकी संस्कृति निकृष्ट नज़र आये और आने वाली पीढ़ियां यही समझें कि अँगरेज़ बहुत उत्कृष्ट नस्ल के एवं काबिल प्रशासक थे। अंगेज़ों के काम को वामपंथियों द्वारा आगे बढ़ाने में जिसने बल्ली लगायी वो  ----------
 सज्जन 11 नवम्बर 1888 को पैदा हुए मक्का में, वालिद का नाम था " मोहम्मद खैरुद्दीन" और अम्मी मदीना की थीं। नाना शेख मोहम्मद ज़ैर वत्री ,मदीना के बहुत बड़े विद्वान थे। ये सज्जन जब दो साल के थे तो इनके वालिद कलकत्ता आ गए। दीनी और दुनियावी पढाई के लिए, घर पर ही ट्यूटर का इंतज़ाम किया गया।  बहुत विलक्षण प्रतिभा के धनी थे,  सब कुछ घर में पढ़ा और कभी स्कूल कॉलेज नहीं गए। बहुत ज़हीन मुसलमान थे। इतने ज़हीन कि इन्हे मृत्युपर्यन्त "भारत रत्न " से भी नवाज़ा गया। इतने काबिल कि कभी स्कूल कॉलेज का मुंह नहीं देखा और बना दिए गए भारत के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री। इस शख्स का नाम था "मौलाना अबुल कलम आज़ाद "।
 वर्तमान में इस्लाम की क्रूरता का इतिहास जो मिटाया जा रहा है , वो इस लिए कि " वैदिक धर्मी" भाई चारा बना कर रखे। आप पुराना  इतिहास तो बदल सकते हो , पर अख़लाक़ को बछड़ा चुराने से नहीं रोक सकते और लिखोगे वही कि #हिन्दू_असहिष्णु_है। आप पुराण इतिहास तो बदल सकते है , पर #कुलबर्गी के विषय में यह नहीं लिखोगे  कि वो कुरान और बाइबिल पर मूतने का दम नहीं रखता था , हाँ हिन्दू देवी देवताओं कि मूर्तियों पर मूतना अस्का शौक था। फिर जब काट दिया जाता है तो #हिन्दू_असहिष्णु_है।