शनिवार, 30 जनवरी 2016

कैसे बदला गया भारत का इतिहास पढ़िए इसकी एक बानगी --------

सुराख़ तो कश्ती में ख़ुद उसने ही किया था। 
जिससे तुम्हें उम्मीद थी पतवार भी देगा। 

कैसे बदला गया भारत का इतिहास पढ़िए इसकी एक बानगी --------

पश्चिम बंगाल सेकेंडरी बोर्ड का पाठ्य पुस्तकों सम्बन्धी (बंग्ला भाषा में) शासनादेश संख्या Syl /89 /1 तिथि 28 अप्रैल 1989 , जिसे पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त सभी सेकण्डरी स्कूलों के प्रधानाचार्यों को सम्बोधित किया गया था ----- इसकी शुरुआत कुछ इस तरह थी ," बोर्ड द्वारा संस्तुति की गयी कक्षा 9 की इतिहास की पुस्तकों में मध्यकालीन इतिहास में विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा के उपरान्त निम्न संशोधन किये जाने का निर्णय किया गया है।कक्षा 9 की इतिहास की पुस्तकों के लेखकों एवं प्रकाशकों को यह सुझाव दिया जाता है यदि उनके द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में ये #अशुद्धियाँ हैं तो भविष्य में छपने वाले संस्करणों में उन्हें संशोधित कर लें तथा वर्तमान संस्करणों में इन अशुद्धियों का शुद्धिपत्र (corrigendum) छापें। शुद्धिपत्र (corrigendum) के साथ इन पुस्तकों की एक प्रति Syllabus Office 74 रफ़ी अहमद किदवई मार्ग , कलकत्ता -16 में प्रस्तुत की जाए। ------हस्ताक्षर ---चट्टोपाध्याय , सेक्रेटरी।  
इस शासनादेश के साथ कुछ पन्ने और थे जिनमे दो कॉलम बने हुए थे। एक कॉलम का शीर्षक था अशुद्धो ( अशुद्धि ) और उसके सामने/ बगल वाले कॉलम का शीर्षक था शुद्धो (शुद्धि)
1) पुस्तक -- "भारत कथा" , ---बर्दवान एजुकेशन सोसाइटी एवं टीचर्स एंटरप्राइज द्वारा लिखी तथा सुखोमोय दास द्वारा प्रकाशित। 
 पृष्ठ 140 --अशुद्धो ---- सिंधुदेश में अरब हिन्दुओं को काफिर नहीं कहते थे और उन्होंने गौवध पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। 
शुद्धो ---- "उन्होंने गौवध पर प्रतिबन्ध लगा दिया था" ---- को हटा दिया जाये। 
पृष्ठ 141 --अशुद्धो --"चौथे, हिन्दू मंदिरों को बलपूर्वक तोडना आक्रामकता की अभिव्यक्ति था। पांचवें, हिन्दू महिलाओं से जबरदस्ती विवाह करके उन्हें मुस्लिम बनाना उलेमाओं की रूढ़िवादिता का प्रचार करने का एक तरीका था। 
शुद्धो -----जबकि ,अशुद्धो कॉलम में "चौथे" शब्द  से वाक्य शुरू था, लेकिन शुद्धो कॉलम में दुसरे से लेकर पांचवें तक सभी बिंदु हटा देने का निर्देश था। 
पृष्ठ 141 --- अशुद्धो --- तार्किक, दार्शनिक और भौतिकवादी मुतज़िल्ला खत्म हो गए। दूसरी तरफ रूढ़िवादियों की सोच कुरान और हदीस पर आधारित थी। 
शुद्धो ------ दूसरी तरफ रूढ़िवादियों की सोच कुरान और हदीस पर आधारित थी। -----हटा दिया जाये। 

2)पुस्तक ---भरतवषर इतिहाश --- लेखक -- डा नरेन्द्रनाथ भट्टाचार्य , प्रकाशक चक्रवर्ती एंड संस। 
अ) पृष्ठ 89 ----अशुद्धो --- "सुलतान महमूद ने कत्लेआम,लूटपाट ,विध्वंस और धर्मांतरण के लिए ताकत का इस्तेमाल किया। 
शुद्धो --- महमूद ने लूटपाट की और विध्वंस किया। ( कत्लेआम और जबरन धर्मान्तरण का ज़िक्र गायब कर दिया गया )
पृष्ठ 89 ---- अशुद्धो --- उसने सोमनाथ मंदिर से दो करोड़ दिरहम के बराबर कीमत का सामन लूटा और शिवलिंग को गज़नी की मस्जिद की सीढ़ी में चिनवा दिया। 
शुद्धो ----" शिवलिंग को मस्जिद की सीढ़ी में चिनवा दिया" ---- को हटा दिया जाये। 
पृष्ठ 112 -----मध्यकाल में हिन्दू मुस्लिम सम्बन्ध बहुत संवेदनशील एवं गंभीर मुद्दा थे। इस्लाम में विश्वास न रखने वालों को या तो इस्लाम कबूल करना पड़ता था या मौत को। 
शुद्धो ---- पृष्ठ 112 एवं 113 को सम्पूर्ण हटा दिया जाये। 
पृष्ठ 113 -- मुस्लिम कानून के अनुसार काफिरों को मौत या इस्लाम में से एक को चुनना होता था। सिर्फ हनफ़ी काफिरों को जज़िया की एवज़ में ज़िन्दगी देते थे। 
शुद्धो ---- निम्न पंक्तियों को ऐसे लिखें " अलाउद्दीन ख़िलजी को जज़िया डी कर हिन्दू एक आम ज़िन्दगी जी सकते थे। " बाकि के सभी वाक्य हटा दिए जाएँ। 
3 )पुस्तक --- भारुतेर इतिहाश -- लेखक --शोभांकर चट्टोपाध्याय ,प्रकाशक --- नर्मदा पब्लिशर्स। 
पृष्ठ---181 --अशुद्धो -- हिन्दू महिलाओं को मुसलमान न देखें इसलिए उन्हें घर के अंदर रहने के लिए कहा जाता था। 
शुद्धो ---- इसे हटा दिया जाये। 
4) पुस्तक ---इतिहाषेर कहानी ,लेखक--- नलिनी भूषण दासगुप्ता ,प्रकाशक ---- बी बी कुमार 
पृष्ठ 132 ---- अशुद्धो --राजस्थानी इतिहास के मशहूर इतिहासकार "Todd " के अनुसार अल्लाउद्दीन का चित्तौड़  आक्रमण राणा रतन सिंह की बेहद खूबसूरत पत्नी पद्मिनी को हथियाना था। 
शुद्धो ---- इसे हटा दिया जाये। 
पृष्ठ 154 --- जैसा कि इस्लाम का आदेश था , काफिरों के पास तीन विकल्प थे , इस्लाम में धर्मांतरण कर लो , जज़िया दो या मौत कबूल कर लो। इस्लामिक स्टेट में काफिरों को इन तीन में से एक विकल्प चुनना होता था। 
शुद्धो ---- इसे हटा दिया जाये। 
पृष्ठ 161 --- पहले के सुलतान इस्लाम का शासन फैलाने के लिए जबरन हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करने के लिए बहुत उत्सुक रहते थे। 
शुद्धो ---- इसे हटा दिया जाये। 
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इन पुस्तकों, अशुद्धियों और शुद्धियोँ की फेहरिस्त बहुत लम्बी है , लेकिन फिर भी दो और बहुत अहम #अशुद्धियाँ जो किताबों से हटायीं गयीं उन्हें यहाँ पर लिखना अहम समझता हूँ। 
पुस्तक ----भारुतेर इतिहाश,लेखक ---पी मैती ,प्रकाशक श्रीधर प्रकाशिनी। 
पृष्ठ 139 ---अशुद्धो ---उस समय कुलीन वर्ग की श्रेष्ठता दर्शाने के लिए पर्दा प्रथा थी , इसलिए उच्च वर्ग की हिन्दू महिलाओं ने इसे उच्च वर्ग की मुस्लिम महिलाओं से इस प्रथा को अंगीकृत किया। एक अन्य मत के अनुसार पर्दा प्रथा हिन्दू महिलाओं को मुसलमानों से बचाने के किये शुरू की गयी। संभवतः इन दोनों कारणों से पर्दा प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ। 
शुद्धो ---- इसे हटा दिया जाये। 
पुस्तक ---स्वदेशो शोभ्यता , लेखक --- डा. पी के बसु ,तथा एस बी घटक , प्रकाशक ---अभिनव प्रकाशन 
पृष्ठ 145 ---इसके अतिरिक्त क्योंकि इस्लाम ने भारत में अपने को स्थापिति करने के लिए बहुत ही चरम अमानवीय तरीके अख्तियार किये थे इसलिए ये इस्लामिक और भारतीय संस्कृति के करीब आने में एक बहुत बड़ी बाधा बने। 
शुद्धो ---इसे हटा दिया जाये।    
  
( Excerpts from --- Eminent Historians, Their Technology,Their Line , Their Fraud By Arun Shourie. Publisher Rupa & Co.)

23 अगस्त 2015 को एक मित्र @Gaurav Paradkar ने एक  सवाल पुछा था कि स्कूलों में वही सब कुछ हिन्दू ,मुस्लिम और ईसाई बच्चों को पढ़ाया जाता है, तो फिर मुस्लिम और ईसाई अपने धर्म के प्रति कट्टर और हिन्दू बच्चे सेक्युलर क्यों हो जाते हैं ????? या 
मैंने अपनी पिछली पोस्टों में बहुत संक्षेप में वर्तमान और मुगलकाल के इतिहासकारों के द्वारा लिखे गए इतिहास की तुलना करके यह बताने की कोशिश की है  कि कैसे वामपंथी इतिहासकार वैदिक धर्म और संस्कृति को विद्रूप कर रहे हैं और इस्लाम और ईसाईयत कैसे शांतिप्रिय और मानवता से लबरेज़ मज़हब हैं।  मोहम्मद और ईसा मसीह के उतरने से पहले तो सब लोग जाहिल और जंगली थे खासतौर पर उस भारतवर्ष के जो कि तथाकथित जाहिलता के चलते सोने की चिड़िया कहलाता था। 
वामपंथी इतिहासकारों ने तो भारतीय इतिहास की जो भी माँ और बहिन @#$%, वो अपनी जगह है लेकिन बहुत कम लोगों ने गौर किया होगा कि जो इतिहास 50 और 60 के दशक में पढ़ाया जाता था , बच्चों को वो इतिहास आज नहीं पढ़ाया जाता। CBSE बोर्ड के दंसवी के छात्रों को जज़िया और पद्मिनी का जौहर नहीं पढ़ाया जाता। ICSE की सातवीं कक्षा में Social Science का पहला अध्याय क्रिश्चियनिटी है। खुद पढ़ कर देख लीजिये , यही पढ़ाया जाता है कि यह बहुत ही शांतिप्रिय और भाईचारे का मज़हब। दूसरा अध्याय पढ़ाया जाता है--- शांति का मज़हब इस्लाम और पैगम्बर मोहम्मद तो बिलकुल शांति की प्रतिमूर्ति थे। तीसरा अध्याय है भारतीय संस्कृति,और पढ़ाया जाता है कि कुप्रथाओं से भरी हुई बहुत ही बुरी थी भारतीय संस्कृति, जाति प्रथा , बालविवाह, कन्या हत्या , सतीप्रथा ,पर्दाप्रथा कौन सी बुराई वैदिक संस्कृति में नहीं पढ़ाई जाती बच्चों को।
CBSE बोर्ड की कक्षा 10 की सोशल साइंस की वर्तमान पुस्तक में  अध्याय है Nationalism In India , भारत की आज़ादी की लड़ाई पढाई गयी है इसमें। भगत सिंह , चंद्रशेखर आज़ाद , खुदीराम बोस सरीखों का नाम आप लोग पता नहीं कैसे याद करते है, पृष्ठ संख्या 53 से 69  तक मुझे तो यह नाम कहीं नहीं दिखे।  और जिनके सिर पर आज़ादी की लड़ाई का सेहरा बांधा गया है इन 16 पन्नों में वो नाम हैं ---- महात्मा गांधी , मोहम्मद अली , शौकत अली ( खिलाफत मूवमेंट वाले ),बाबा रामचन्द्र, अल्लुरी सीता राम राजू , सी आर दास, मोतीलाल नेहरू ,जवाहरलाल नेहरू ,सुभाषचन्द्र बोस,अब्दुल गफ्फार खान ,पुरुषोत्तमदास , जी डी बिरला , जिन्ना, अम्बेडकर और एम आर जयकर। 
अगर इन 10वीं  बच्चों को फेल करना है तो इनसे बहुतै साधारण सा सवाल कर लीजिये ----लाल, बाल और पाल कौन थे ??????? बाकि राजगुरु,सुखदेव, ऊधम सिंह , मदन लाल ढींगरा ,बाघा जतीन, और सावरकर तो इतिहास के किन पन्नों में खो गए 10 साल बाद हमें और आपको भी याद नहीं रहेगा।  

1972 से शुरू हुआ बच्चों को मनगढंत भारतीय इतिहास पढने की परंपरा  , 1972 में इन
सेकुलरवादियों ने भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद का गठन कर इतिहास पुनर्लेखन की 
घोषणा की, ( इस विषय पर मैं अपनी पिछली पोस्ट में संक्षेप में लिख चूका हूँ ) सुविख्यात 
इतिहासकार यदुनाथ सरकार, रमेश चंद्र मजूमदार तथा श्री जीएस सरदेसाई जैसे सुप्रतिष्ठित इतिहासकारों के लिखे ग्रंथों को नकार कर नये सिरे से इतिहास लेखन का कार्य शुरू कराया गया।घोषणा की गई कि इतिहास और पाठ्यपुस्तकों से वे अंश हटा दिये जाएंगे जो राष्ट्रीय एकता में बाधा डालने वाले और मुसलमानों की भावना को ठेस पहुँचाने वाले लगते हैं।
डा. नूरूल हसन ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भाषण करते हुए कहा- महमूद गजनवी औरंगजेब आदि मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दुओं के नरसंहार एवं मंदिरों को तोड़ने के प्रसंग राष्ट्रीय एकता में बाधक है अत: उन्हें नही पढ़ाया जाना चाहिए।
वामपंथियों ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महान सेनानी स्वातंत्रवीर सावरकर पर अंग्रेजों से क्षमा मांगकर अण्डमान के काला पानी जेल से रिहा होने जैसे निराधार आरोप लगाये और उन्हें वीर की जगह कायर बताने की धृष्टता की।
इतिहास लेखकों के ऊपर कोई सेंसर बोर्ड नहीं है, ये जो चाहे लिख सकते हैं, और हम तथा हमारे बच्चे इनके लिखे हुए विकृत और असत्य लेखों को दिमाग की बत्ती बंद करके पढते रहते हैं, जब हम इनको पढते रहते हैं, तब हमारा सरोकार सिर्फ इतना रहता है कि बस इसका रट्टा मारो और परीक्षा के दौरान कॉपी पर छाप दो जिससे अच्छे नम्बर आ जाएँ, लेकिन हम ये भूल जाते हैं, हम जो पढते हैं, उसकी छवियाँ और दृश्य साथ साथ दिमाग में घर बनाते रहते हैं, जिसका नतीजा ये होता है कि अगर इन्होंने राम और महाभारत को काल्पनिक लिख दिया तो हम भी उसे काल्पनिक मानकर अपनी ही संस्कृति और परम्पराओं से घृणास्पद दूरी बना लेते हैं। 
कहाँ तक लिखें और क्या क्या लिखें बस पोस्ट के अंत में वामपंथी इतिहासकारों , वामपंथी सरकारों और वामपंथी मीडिया से यही कहूँगा ------------

बेहतर यही है इसपे न मरहम लगाईये। 
इस दास्ताने दर्द का कुछ तो निशां रहे।।