शनिवार, 28 मई 2016

भारत की मासूमियत को लगा इस्लाम का ग्रहण

लज़्ज़त कभी थी , अब तो फितरत सी हो गयी है।
हमको गुनाह करने की , आदत सी हो गयी है।।
‪#‎भारत_में_मनुस्मृति_को_‬जलानेवाले_मूलनिवासियों_नवबौद्धों_वामपंथियों_धर्मनिरपेक्षों_और मुसलामानों_ को समर्पित इस पोस्ट को समझने के लिए आपको वर्तमान की कुछ घटनाओं और इतिहास की कुछ तारीखों को अपने ज़ेहन में रखना होगा ।
‪#‎घटनाएँ‬ ---- 1 ) पूरे देश और दुनिया में एक मुहिम चली हिन्दू असहिष्णु हो गया है। ( वर्ष 2014 से )
2) जे एन यू और कश्मीर में नारे लगना ,"भारत तेरे टुकड़े होंगे -इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह। और एक बड़े तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग का इसे आज़ादी की अभिव्यक्ति घोषित करना। ( वर्ष 2016 )
3) फरीदाबाद आग काण्ड , आरोपी ने खुद आग लगायी थी और मुद्दा बन दिया गया दलित / सवर्ण का। (वर्ष 2015)
4) बहुत से छात्रों ने पिछले वर्षों में आत्महत्या की है ,एक और छात्र ने भी आत्महत्या की , नाम था रोहित वेमुला, मुद्दा बना "दलित" की आत्महत्या का।
5 ) दो वामपंथी महिलाओं ,कविता  कृष्णन्  और उसकी माँ का यह कहना कि उन्होंने फ्री सेक्स किया है और Unfree सेक्स सम्भोग नहीं ब्लात्कार है। उन्होंने उस फाइल की भी निंदा की जिसमे JNU के अध्यापकों ने तथ्यों को संजोया है कि " JNU छात्रों की ज़िन्दगी शराब से भरी हुई है। (वर्ष 2016 )
6 ) फैज़ाबाद में बजरंग दल द्वारा शस्त्र चलाने की ट्रेनिंग देने पर प्राथमिकी दर्ज़। ( वर्ष 2016)
7 ) इशरत जहाँ ,बाटला हॉउसऔर साध्वी प्रज्ञा का सच सामने आना। ( वर्ष 2016 )
अब भारतीय इतिहास की कुछ उन ‪#‎तिथियों‬ को याद रखें जिन में लगभग 400 वर्षों का अन्तराल है -----
‪#‎विंस्टन_चर्चिल‬ ----1940 के दशक में इंग्लैंड का प्रधानमंत्री।
‪#‎औरंगज़ेब‬ ------ ( 4 नवंबर 1618 - 3 मार्च 1707 ) ने 1658 से 1707 तक राज किया।
‪#‎अल_बरुनी‬ ---- ( 5 सितम्बर 973 -13 दिसम्बर 1048) महमूद ग़ज़नवी के साथ भारत आया और #1030 तक "किताब तारीख अल हिन्द " पूरी कर ली।
‪#‎हुएन_त्सांग‬ ---- वर्ष 630 में भारत आया और 645 ई तक भारत भ्रमण किया।
(‪#‎यहाँ_पर_याद_रखें_कि_कुरान‬ /‪#‎इस्लाम_22_दिसम्बर_609‬ ई को पैदा होना शुरू हुआ था और ‪#‎कुरान_की_आखिरी_आयत_वर्ष_632‬ मोहम्मद के मृत्यु के वर्ष में लिखवाई गयी थी। )
‪#‎फा_हियान‬ -------399 ई से 412 ई तक भारत,नेपाल , बंग्लादेश तथा श्रीलंका में घूमा।
‪#‎मेगस्थेनिेज‬ ----- 305 ई पूर्व से 298 ई पूर्व तक चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में भारत में रहा।
‪#‎बाल्मीकि_रामायण‬ ----- 500 ई पूर्व किसी वर्ष में लिखी गयी थी ।
वर्तमान वर्षों में हिन्दू असहिष्णु हो गया है यही प्रचारित किया जा रहा है, कश्मीर केरल असम और कोलकाता में मिनी पकिस्तान के उदाहरण किसी उड़द पर सफेदी नहीं लाएंगे।
आइए देखें 80 वर्ष पहले स्वतन्त्रता पाने वाले दशक में विन्स्टन चर्चिल ने भारतियों के बारे में क्या कहा था। " Power will go to the hands of rascals, rogues, freebooters ; all Indian leaders will be of Low calibre and Men Of Straw.They will have sweet tongues and silly hearts.They will fight amongst themselves for power and India will be lost in political squabbles. A day would come when even Air and Water be Taxed in India " अर्थात " सत्ता दुष्ट कपटी और लुटेरों के हाथों में चली जाएगी ; सारे भारतीय नेता कम क्षमता और नीच चरित्र के होंगे। उनकी जुबां मीठी होगी और दिल से बेवकूफ होंगे। वे सत्ता के लिए आपस में लड़ेंगे और भारत रानीतिक झगड़ों में उलझ जायेगा। एक दिन ऐसा आएगा जब भारत में पानी और हवा पर भी टैक्स देना पड़ेगा।
आईये इससे 400 साल पीछे चलें औरंगज़ेब के ज़माने में। Munnaci एक इटली का घुम्मकड़ जो औरंगज़ेब के समय में भारत में रहा लिखता है ------"कोई भी कभी भी एक भी शब्द ऐसा नहीं बोलता जिस पर विशवास किया जा सके ................. यह लगातार आवश्यक हो जाता है कि बुरा से बुरा सोचा जाये और जो बताया जा रहा है उसके विपरीत सोचा जाये।"
3000 साल पुराना ,शूद्रों पर अत्याचारों का राग अलाप कर ‪#‎मनुस्मृति_जलाने‬ वालों के लिए तत्कालीन हिन्दू समाज के विषय में इस मुस्लिम इतिहासकार ने क्या देखा उसे पढ़ना नितांत आवश्यक है। वर्ष 1030 में महमूद ग़ज़नवी के समय में ‪#‎अल_बरूनी‬ क् लिखता है कि --- पारम्परिक हिन्दू समाज चार वर्णो और अंत्यज ( जो किसी जाति में नहीं आते थे) में विभाजित हुआ करता था , लेकिन उसने उच्च जातियों द्वारा नीच जातियों पर अत्याचारों का कोई ज़िक्र नहीं किया। बावजूद इसके कि चारों वर्ण एक दूसरे से भिन्न थे लेकिन वे शहरों और गांवों में एक साथ रहते थे और एक दूसरे के घरों में घुला मिला करते थे। ‪#‎अन्त्यज‬ --- आठ श्रम निकायों / शिल्पी संघ / मंडली में अपने व्यवसाय के अनुसार विभक्त थे, जो कि आपस में विवाह कर लिया करते थे --सिवाय धोबी , मोची और जुलाहों के। ये लोग चार वर्णो के शहरों और गाँवों के पास मगर बाहर रहते थे।
चारों वर्णो के खान पान के विषय में #अल_बरुनी ने देखा कि जब एक साथ खाना खाने का आयोजन होता था , तो चरों वर्ण अपना अपना अलग समूह बना लेते थे। एक समूह में दूसरे वर्ण का व्यक्ति शामिल नहीं होता था। हर व्यक्ति अपना भोजन करता था और किसी को बची हुई जूठन खाने की इज़ाज़त नहीं थी। वे एक दूसरे की थाली में बचे हुए भोजन /जूठन का भाग बांटते नहीं थे।
.http://www.columbia.edu/…/colle…/cul/texts/ldpd_5949073_001/
#हुएन_त्सांग ---- वर्ष 630 में भारत आया और 645 ई तक भारत भ्रमण किया।
(#यहाँ_पर_याद_रखें_कि_कुरान /#इस्लाम_22_दिसम्बर_609 ई को पैदा होना शुरू हुआ था और #कुरान_की_आखिरी_आयत_वर्ष_632 में मोहम्मद के मृत्यु के वर्ष में लिखवाई गयी थी। ) - समझ रहे हैं न इस्लाम नाम की गिद्ध तब तक पैदा नहीं हुई थी। उस समय हुए त्सांग ने हिन्दू समाज में क्या देखा , उसी की लेखनी के अनुसार ------" हिन्दू सरल एवं सम्मानीय हैं ....... .......पैसों के मामले में इनमे कपट नहीं है और न्याय करने के मामले में यह विचारवान हैं ........ ...... अपने आचरण में वे विश्वासघाती और धोखेबाज नहीं हैं वे अपनी शपथ और वायदों में वफादार हैं। शासकीय नियमों में इनमे अविश्वसनीय ईमानदारी है और इनके व्यवहार में शिष्टता और सौम्यता है। अपराध और विद्रोह के मामले न के बराबर हैं और कभी कभार ही परेशान करते हैं। लोगो से जबरदस्ती काम नहीं लिया जाता ....... ....... बहुत हलके किस्म के कर लगाए जातें हैं और व्यक्तिगत सेवाएं बहुत कम ली जाती है।
#फा_हियान ----- 399 ई से 412 ई तक भारत,नेपाल , बंग्लादेश तथा श्रीलंका में घूमा और हिन्दुओं के विषय में लिखा कि " वे धोखेबाजी नहीं करते और अपना दिया हुआ वचन निभाते हैं ........ ....... वे अन्याय नहीं सहते और न्याय के मामले में अपेक्षा से ज्यादा न्यायप्रिय है।
#मेगस्थेनिेज ----- 305 ई पूर्व से 298 ई पूर्व तक चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में भारत में रहा। "मैगस्थनीज़" के यात्रा वृतांत के अनुसार उस समय इसी चतुर्वर्ण में ही कई जातियाँ 1) दार्शनिक 2) कृषि 3)सैनिक 4) निरीक्षक /पर्यवेक्षक 5) पार्षद 6) कर निर्धारक 7) चरवाहे 8) सफाई कर्मचारी और 9 ) कारीगर हुआ करते थे। सत्य एवं नैतिकता को ही वे श्रेष्ठ मानते थे।
चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री "कौटिल्य" के अर्थशास्त्र एवं नीतिसार अनुसार, किसी के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार की कठोर सज़ा थी। यहाँ तक की वैसे तो उस समय दास प्रथा नहीं थी लेकिन चाणक्य के अनुसार यदि किसी को मजबूरी में खुद दास बनना पड़े तो भी उससे कोई नीच अथवा अधर्म का कार्य नहीं करवाया जा सकता था।ऐसा करने की स्थिति में दास दासता के बन्धन से स्वमुक्त हो जाता था।सब अपना व्यवसाय चयन करने के लिए स्वतंत्र थे तथा उनसे यह अपेक्षा की जाती थी वे धर्मानुसार उनका निष्पादन करेंगे
#बाल्मीकि_रामायण -500 ई पूर्व किसी वर्ष में लिखी गयी थी के अनुसार ----" तस्मिन् पुरवरे हृष्टा धर्मात्मानो बहुश्रुताः। नरास्तुष्टा धनैः स्वैः स्वैरलुब्धाः सत्यवादिनः।। कामी वा न कदर्यो वा नृशंसः पुरुषः क्वचित्। द्रष्टुं शक्यमयोध्यायां नाविद्वान् न च नास्तिकः।। नानाहिताग्निर्नायज्वा न क्षुद्रो वा न तस्करः। कश्चिदासीदयोध्यायां न चावृत्तो न संकरः।। "(वाल्मीकिरामायणम् 1.6.6, 8, 12) अर्थात् उस श्रेष्ठ अयोध्यानगरी का असाधारण समाज था, जिसमें सभी प्रजाजन प्रसन्न, धर्मात्मा, बहुश्रुत विद्वान् थे। निर्लोभी, अपने-अपने धन से सन्तुष्ट रहने वाले और सत्यवादी थे। वहाँ कहीं कोई कामी, कंजूस, क्रूर व्यक्ति न था। न कोई मूर्ख और नास्तिक था। न ही अग्निहोत्र और पंच यज्ञ न करने वाला, न निम्न सोच वाला और चोर था। न ऐसा था जो सदाचारी न हो या वर्णसंकर हो।
अब बात कर लेते हैं ‪#‎मनुस्मृति‬ की -----वर्तमान मनुस्मृति में 2685 श्लोक पाए जाते हैं , जबकि डॉ कमल मोटवानी जिन्होंने मनुस्मृति पर शोध कार्य ,स्वामी दयानन्द ,ब्रिटिश शोधकर्ता Wooler,J.Jolly,Keith and MacDonell, Encyclopedia Americana और तमाम विद्वानों ने माना है कि मनुस्मृति की मूलप्रति में समय समय पर 1471 विरोधाभासी श्लोकों की मिलावट की गयी है। इसप्रकार 1214 श्लोको वाली मनुस्मृति को उसी प्रकार 2685 श्लोकों वाली मनुस्मृति बन दिया गया जिस प्रकार मूल महाभारत में दस हज़ार श्लोक थे और आज उपलब्ध महाभारत में एक लाख से ऊपर श्लोक हैं।
फिर भी मनुस्मृति को जलाने वाले यह क्यों भूल जाते हैं कि निम्न श्लोक भी मनुस्मृति के ही हैं ---
1) जन्मना जायते शूद्रः कर्मणा जायते द्विजः,
वेदाध्यायी भवेद्विप्रो ब्रह्म जानाति ब्राह्मण
"जन्म से व्यक्ति शूद्र होता है, कर्म-संस्कार से वह द्विज , वेदाध्ययन करने पर वह विप्र कहलाता है और जो ब्रम्ह को जनता है वाही ब्राह्मण है।
2)शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्।
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्या द्वैश्यात्तथैव च।---- अर्थात श्रेष्ठ -अश्रेष्ठ कर्मो के अनुसार शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र हो जाता है। जो ब्राह्मण ,क्षत्रिय वैश्य और शूद्र के गुणों वाला हो वह उसी वर्ण का हो जाता है।
3)यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रेता तु न पूज्यन्ते सर्वाः तत्राफलाः क्रियाः । ------अर्थात जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात सत्कार होता है उस कुल में (देवता) दिव्यगुण होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है।
उपरोक्त इतिहास के आधार पर कोई भी कह सकता है कि जिन हिन्दू संस्कारों का बलात्कार मुसलामानों ने शुरू किया था उनका आज के ईसाई ,वामपंथी हिन्दू , नवबौद्ध और मूलनिवासी मिलकर सामूहिक बलात्कार कर रहे है।
खूब जलाओ प्रक्षेपित मनुस्मृति। कविता कृष्णन्  और उसकी माँ की तरह खूब करो फ्री सेक्स। और बरखा दत्त की तरह डंके की चोट पर कहो हाँ मेरे दो मुस्लिम पति हैं कर लो जो करना है। सही कहा है जिसने भी कहा है -------
लज़्ज़त कभी थी , अब तो फितरत सी हो गयी है।
हमको गुनाह करने की , आदत सी हो गयी है।।
http://shivashaurya.blogspot.com/2016/05/blog-post.html