आज महान गणितज्ञ श्री श्रीनिवास रामानुजन की जन्म तिथि पर आपको गणित शुभकामनायें। भारत को सपेरों और मदारियों का देश बताने वाले अंग्रेज़ों और भारत छूट गए उनके वंशजों ने रामानुजन को तभी विद्वान माना जब रॉयल सोसाइटी ऑफ़ इंग्लैंड ने उन्हें इस लायक समझा वर्ना उनके द्वारा सुलझाए गए 3900 समीकरणों का श्रेय भी शायद उन्हें नहीं दिया जाता।
बात सिर्फ रामानुजन जी की नहीं है और बात सिर्फ अंग्रेज़ों द्वारा अपने को श्रेष्ठ साबित करने की नहीं है। भारतियों ने ही कौन सी कसर छोड़ी अपनी विद्वता और धरोहर की खिल्ली उड़ाने में। आज भी मैं विद्यालय स्तर की बात नहीं कर रहा बल्कि विश्वविद्यालयों में भी अध्यापक स्नातक और परास्नातक कर रहे छात्रों के दिमाग में ठूंस ठूंस कर बिठाते हैं कि भारत अज्ञानियों साधुओं और भिखारियों का देश था जितना और जो भी ज्ञान और विज्ञानं भारत में आया है सब अंग्रेज़ों की बदौलत आया है। यही सुन सुन कर पीढ़ियां जवान हो गयीं और अपने बच्चों को बताने लगीं कि भारत तो सपेरों और मदारियों का देश था।
नीचे बहुत ही संक्षेप में जो लिख रहा हूँ वो " Essential Writings Of Dharmpal " से है जबकि उन्होंने इस विषय पर " Indian Science and Technology In The Eighteenth Century" 1971 में ही बाकायदा ब्रिटिश विद्वानों और ब्रिटिश दस्तावेज़ों में उपलब्ध साक्ष्यों पर शोध के उपरान्त लिखी थी। मुझे नहीं मालूम कि भारत सरकार ने इस शोध का संज्ञान लिया या नहीं , लेकिन यदि ले लिया होता तो आज #न्यूटन की कुर्सी हिल चुकी होती।
1780 के आसपास यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबर्ग के प्रतिष्ठित गणितज्ञ प्रो जॉन प्लेफेयर ने बहुत शोध के उपरांत मन कि भारतीय खगोलशास्त्रियों की गणना और अवलोकन 3102 बी सी ( भारतीय परम्परा के अनुसार कलियुग का आरम्भ) तक एकदम सटीक हैं। लेकिन उन्हें इसे मानने में भी गुरेज़ था तो उन्होंने दो बातें कहीं। एक या तो ऐसा जटिल गणनाओं से सम्भव है या सीधे अवलोकन से संभव है। फिर प्रो. प्लेफेयर कहता है कि ये जटिल गणनाएं तो ब्राह्मणों के बस की बात हो नहीं सकतीं इसलिए उन्होंने सीधे अवलोकन किया होगा।
अगर वो यह मान जाता कि यह गणना ब्राह्मणों ने की है तो न्यूटन की कुर्सी छिन जाती और और ईसाईयत के श्रेष्ठता भी खतरे में पड़ जाती क्योंकी बाईबल के अनुसार वो बाढ़ जिसने नूह के समय पूरे विश्व को डुबो दिया था वो 2348 बी सी में आयी थी।
बनारस के मानमंदिर में बनायीं गयी वेधशाला भी 16वीं शताब्दी की है मानने में भी हेठी है जबकि अन्य यूरोपीय यात्रियों के अनुसार यह 16वीं शताब्दी से भी पहले की है। ब्राह्मणों द्वारा बताये गए बृहस्पति के चार और शनि के सात उपग्रहों पर उन्होंने सितम्बर 1789 तक यकीन नहीं किया जब तक अपने बनाये गए टेलिस्कोप से देख नहीं लिया। 1789 में ही प्रो. प्लेफेयर ने अपनी एक समीक्षा " Remarks on The Astronomy Of Brahmin" में एक खगोल सारणी, जो कि उन्होंने बतया कि उन्हें ईस्ट इंडीज के सियाम से मिली है, की यह 21 मार्च 628 की है। जबकि उस सारणी का मद्यान्ह (Median) बनारस का निकला सियाम का नहीं।
एकतरफ उस समय के अंग्रेज़ों का एक तबका अलजेब्रा , अंकगणित , क्षेत्रमिति और बीजगणित के लिए ब्रह्मगुप्त ,भास्कराचार्य,और आर्यभट्ट को श्रेय देता है दूसरी तरफ एक तबका जिसमे भारतीय भेड़ें भी हैं आज तक इनका श्रेय भारतीय गणितज्ञों को देना नहीं चाहते।
1775 में बर्फ कैसे जमाई जाती है ,अँगरेज़ भारतियों से ही सीख कर गए थे। Wootz ( परिष्कृत लोहा या स्टील) कैसे बनाया जाता है यह 1795 में अंग्रेज़ों ने भारतियों से सीखा और फिर 1825 में इंग्लैंड में बनाना शुरू किया। जबकि 16वीं शताब्दी में ही भारत में 10000 हज़ार से ज्यादा लोहा और स्टील बनाने वाली भटियाँ थीं।
1792 में डॉ एच स्कॉट अलसर और बड़े फोड़ों की विस्मृत कर देने वाली भारतियों द्वारा शल्य चिकित्सा की
जानकारी रॉयल सोसाइटी ऑफ़ लंदन को पत्र द्वारा देते हैं और 1794 में कटी हुई नाक कैसे जोड़ी जाती है या जानवरों के अंगों को कैसे जोड़ा जाता है ये जानकारी और जोड़ने वाले पदार्थ भरी मात्रा में भारत से ले कर इंग्लैंड गए।
कृषि,बागवानी, पशु चिकित्सा एवं प्रजनन, कृत्रिम सिंचाई , क्रॉप रोटेशन वगैरह वगैरह कौन सा विषय है जो अंग्रेज़ों ने भारतियों से नहीं सीखा और यह सब कहा जा रहा है 1790 तक के ब्रिटिश दस्तावेज़ों के आधार पर।
इसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में मद्रास प्रेसीडेंसी ,कलकत्ता प्रेसीडेंसी बम्बई प्रेसीडेंसी और पंजाब प्रेसीडेंसी की 1825 से ब्रिटिश दस्तावेज़ों के आधार पर समीक्षा की गयी है। भारतीय शिक्षा, शिक्षा पद्धति के सामने अँगरेज़ कहीं नहीं ठहरते थे। बाकायदा स्कूलों कॉलेजों छात्रों छात्राओं की जिलावार तथा विषयवार सारणियाँ तैयार की गयीं हैं।(एक रोचक तथ्य इन सारणियों से निकल कर जो सामने आया वो यह है कि सबसे अधिक पड़ने में रूचि शूद्र वर्ण की थी (70% तक) फिर ब्राह्मणों की (27% तक) फिर वैश्यों की (23%) और शायद क्षत्रियों का (0-9%) पढ़ाई से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था।)
और फिर अंग्रेज़ों ने चलनी शुरू कीं अपनी नीतियां, भूमि अधिग्रहण, कर सम्बन्धी, चिकित्सा सम्बन्धी और आया 2 फरवरी 1835,जब मैकाले साहब को लगा कि भारत में जो कुछ है वो कूड़ा करकट से ज्यादा कुछ नहीं है। इंडियन एजुकेशन एक्ट के ज़रिये वो शिक्षा पद्धति लाद दी कि जहाँ वही भारत बेरोज़गारी और तुष्टिकरण के जाल में उलझता जा रहा है जिसका अट्ठारवीं सदी में सिर्फ इलाहाबाद और बनारस ही इतना अनाज पैदा कर लेते थे जितना पूरे इंग्लैंड में पैदा नहीं होता था।
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए सारांश , Essential Writings of Dharmpal" में उपलब्ध है और विस्तार में जान्ने के लिए पढ़ें "Indian Science and Technology in The eighteenth Century" By Dharmpal
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