मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

25 दिसंबर ही क्यों ????

खुशियाँ मानाने के कोई भी बहाने हो सकते हैं। अपने प्रिय का या अपने अराध्य का जन्म दिन तो फिर एक खास वजह बनता है सबके साथ खुशियां मनाने का। और अगर जन्मदिन की तारिख न मालूम हो तो फिर तो 365 दिनों में से कोई भी दिन तय करके जन्मदिन मना लिया जाये,कोई हर्ज़ थोड़े ही है। 
यही हो रहा है विश्व भर में ,जब 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म दिन मनाया जाता है। पोप बेनेडिक्ट ने नवम्बर 2012 में अपनी पुस्तक ---  "Jesus Of Nazreth: The Infancy Narratives" के तीसरे संस्करण में यह माना कि ईसा मसीह 25 दिसंबर को पैदा नहीं हुए थे।  ऐसा नहीं है कि यह बात पहली बार कही गयी या कोई नया खुलासा था  इससे पहले भी बहुत लोग ईसाई धर्म के प्रवर्तक की जन्मतारीख पर प्रश्न चिन्ह लगा चुके है। सबके अपने अपने मत है। जैसे कि जो बाइबिल को आधार मान कर 25 दिसम्बर को गलत ठहराते हैं , उनके हिसाब से बाइबिल के अध्याय लूकस 1:13 में जिब्राइल ने एक बहुत बूढे पुजारी ज़केरियस को पूजा के बाद आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी पत्नी एलिज़ाबेथ को एक पुत्र प्राप्त होगा। इतिहासकारों के अनुसार ज़केरियस  की पूजा करने की तिथियाँ जून 13-19 थीं। ( उस समय पूजा करने के लिए ,मन्दिर में पुजारियों की महीनों में पाली लगा करती थी) (The Companion Bible -1974, Appendix 179, p. 200)। इतिहासकारों के अनुसार एलिज़ाबेथ ने यदि जून के अन्त तक गर्भाधान किया तो उनके पुत्र का जन्म मार्च में हुआ। इसी के आगे बाइबिल कहती है कि जब एलिज़ाबेथ 6 महीने की गर्भवती थी तब जिब्राइल ने मरियम को भी आशीर्वाद दिया कि उस कुवाँरी को पुत्र पैदा होगा (लूकस 1:26) । इस हिसाब से ईसा का जन्म सितम्बर में होना चाहिए। 
बाइबिल में ही दो अन्य विरोधाभासी तथ्य कहे गए हैं ---
1) ईसा के जन्म के समय गड़रिये रात में खेतों में खुले में भेड़ों पर निगरानी कर रहे थे (लूकस 2:8
2)और उस समय राजा कैसर अगस्तस ने समस्त जगत की जनगणना की राजाज्ञा निकली थी (लूकस 2:1) --- 
ये दोनों घटनाएँ ,बेथलहम की भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से दिसंबर में सम्भव नहीं हैं क्योंकि वहां पर दिसम्बर माह में बहुत अधिक ठण्ड पड़ती है, इसलिए ऐसे में न तो गड़रिये रात में खुले आसमान के नीचे रह सकते थे और न ही ऐसे मौसम में जनगणना ही संभव थी।  
बाइबिल के अतिरिक्त पहली और दूसरी शताब्दी के ईसाई लेखकों इरेनॉएस (c. 130–200) या तेरतुल्लियन  (c. 160–225) ने भी जन्मतिथि का कोई उल्लेख नहीं किया। बल्कि अलेक्सेंडरिआ के ओरिजन  (c. 165–264) ने तो रोम के लोगों का जन्म दिन मनाने पर मूर्तिपूजक कह कर मज़ाक तक उड़ाया था। इतिहासकारों का मानना है कि यहाँ तक ईसा मसीह का जन्मदिन नहीं मनाया जाता था।  लगभग वर्ष 200 C.E में  Clement of Alexandria के अनुसार बहुत से ईसाई समूहों ने जन्म तिथियाँ  निर्धारित कीं लेकिन 25 दिसम्बर किसी ने भी निर्धारित नहीं की थी। 
Clement के अनुसार बहुत से लोगों जन्मवर्ष के साथ जन्मतिथि का निर्धारण किया। उसके अनुसार राजा ऑगस्टस के 28 वें वर्ष के 25 वें दिन मिस्र के Pachon महीने में ( वर्तमान में प्रचलित केलिन्डर के अनुसार 20 मई ) को ईसा का जन्म हुआ था। अन्य कुछ का मत है मिस्र के Phamenoth महीने के 25 वें दिन (यानि कि 21 मार्च), कुछ अन्य का मानना है कि Pharmuthi के 19 वें दिन (यानि कि 15 अप्रैल ) कुछ और कहते हैं कि उनका जन्म Pharmuthi महीने के  24वें  या 25 वें दिन हुआ था (यानि कि 20 या 21 अप्रैल )  … 
चौथी शताब्दी आते आते 25 दिसंबर और 6 जनवरी दो मान्य तिथियाँ रह गयीं। रोम के पश्चिम के देश 25 दिसम्बर को जन्म दिन मानते थे और रोम के पूर्व के देश 6 जनवरी को जन्मदिन मानते थे। आधुनिक आर्मेनियन चर्च अभी भी 6 जनवरी को जन्मदिन मनाता है। 
एक मत यह भी है कि शीतकालीन अयनांत (Winter Solstice -- 21 दिसम्बर -- जब सूर्य दक्षिण अयनांश के चरमोत्कर्ष पर होता है और यह वर्ष का सबसे छोटा दिन होता है ) के अगले दिन संसार में प्रकाश फ़ैलाने के लिए ईसा ने जन्म लिया।  लेकिन गणना करने वालों से यहाँ भी चूक हुई और उन्होंने 21 दिसंबर की जगह 25 दिसम्बर को शीतकालीन अयनांत (Winter Solstice) की गणना कर डाली। 
कहते हैं कि Constantine ने 336 AD में पहली बार, फिर Liberius ने 354 AD में 25 दिसम्बर को ईसा का जन्मदिन घोषित किया था। 
25 दिसंबर ही क्यों ????

दरअसल ईसाई धर्म के रोम में फैलने से पहले रोम के लोग दिसंबर के अंत में Saturnalia त्यौहार (सूर्य का जन्मदिवस ) मनाया करते थे , तथा रोम के आस पास के लोग इस समय छुट्टियां मनाते थे।  इन सबके ऊपर ईस्वी 274 में रोम के राजा ने 25 दिसम्बर को "अविजित सूर्य"(Sol Invictus)  के जन्मदिवस में एक भोज का कार्यक्रम शुरू किया। तर्क ऐसा जाता है कि मूर्तिपूजकों की इसी तारिख से ईसा का जन्म दिवस मनाया जाना लगा। इस मत के अनुसार ईसाईयों ने बुतपरस्तों के बीच ईसाइयत को फ़ैलाने के लिए जानबूझ कर इन तिथियों को चुना था। यदि क्रिसमस मूर्तिपूजकों की छुट्टियों  में घुलमिल जाती है तो ज्यादा मूर्तीपूजक इन्ही छुट्टियों में ईसा को भी पूजने लगेंगे।  
सही है तोला भर श्रद्धा ,मन भर तर्कों पर भारी होती है। 
दिन और तारिख कोई भी हो, आप भी खुशियाँ  मनाईये लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि मैं पश्चिमी देशों के उन शोधकर्त्ताओं का क्या करूँ जो यह कह रहे हैं कि ईसा मसीह नाम के पैगम्बर कभी हुए ही नहीं।  

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