शनिवार, 26 नवंबर 2016

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षतिः।

अशरफ (सैय्यद मीर),अजलफ (शेख, पठान ), अरजाल (जुलाहा , हज्जाम), अजलाम और पसमांदा (भंगी, मेहतर ,चमार)  ---- मुस्लिम समाज में ये वर्ण बने अपनी पैदाइश , धर्मान्तरण और अपनी दिनचर्या के आधार पर। अपने हक़ों के लिए पसमांदा, अरजाल अजलाफ और अजलाम सभी लड़ रहे हैं लेकिन अपने धर्म और धर्मशास्त्रों की धज्जियाँ उड़ा कर या उन्हें जला कर नहीं। अपने धर्म और धर्म शास्त्रों का अपमान कैसे करना है , यह कोई सीखे तो उन हिंदुओं से जो विदेशी चंदे पर पल रहे है। धर्म का अपमान करना एक मानसिकता हो सकती है लेकिन धर्म का अपमान सहने वाले हिंदुओं को क्या कहा जाये जो मूकदर्शक बने हुए हैं। महर्षि मनु ने उनके लिए भी मेरे संज्ञान में दो कथन कहे हैं ----- 
यत्र धर्मो ह्यधर्मेण सत्यं यत्रानृतेन च ।हन्यते  प्रक्षेमानानां  हतास्तत्र सभासदः ।। अध्याय 8 श्लोक 14
अर्थात जिस सभा में अधर्म से धर्म, असत्य से सत्य, सब सभासदों के देखते हुए मारा जाता है, उस सभा में सब मृतक के समान हैं।

आज महर्षि मनु और मनुस्मृति पर स्त्रीविरोधी और दलित विरोधी होने का आक्षेप लगाने वालों ने न तो कभी मनुस्मृति पढ़ी और न ही अम्बेडकर को पढ़ा जिन्होंने मनु का घोर विरोध किया था। 
गौर करें अम्बेडकर ने भी चतुर्वर्ण के विषय में "Annihilation Of Castes "  --- में लिखा है कि chaturvarn is based on worth. और दूसरे उन्होंने भी मनुस्मृति के श्लोकों का अपने हिसाब से व्याख्या  जैसे --- यह कैसे हो सकता है कि ब्राह्मण ही पढ़ेगा और पढ़ायेगा , क्षत्रिय ही शस्त्र धारण करेगा और वैश्य ही व्यापर करेगा।  यदि उन्होंने इसे मनुस्मृति के अंग्रेज़ी अनुवाद न पढ़ कर संस्कृत के श्लोकों की व्याख्या इस प्रआर की होती कि जो पढ़ेगा और पढ़ायेगा वो ब्राह्मण है , जो शस्त्र धारण करेगा और प्रजा की रक्षा करेगा वो क्षत्रिय है और जो व्यापार करेगा वो वैश्य है तो शायद उन्हें मनु से इतनी नफरत न होती और आज समाज में इतनी वैमनस्यता भी नहीं फैलती। अम्बेडकर ने प्रक्षेपित श्लोकों का तो संज्ञान लिया कि जो शूद्र वेद पढ़ेगा या सुनेगा उसकी जिह्वा काट दी जाएगी और कान में पिघला  हुआ सीसा डाला जायेगा लेकिन उन्होंने एक बार भी मनु द्वारा रचित निम्न श्लोकों का संज्ञा बिलकुल नहीं लिया कि एक ही व्यक्ति दो विरोधाभासी बातें कैसे लिख सकता है ????
( पोस्ट को छोटा रखने के उद्देश्य से सिर्फ श्लोकों की संख्या के साथ  श्लोकों  का भावार्थ ही लिख रहा हूँ )
अध्याय 4 श्लोक 35 -----कम अंगों वालों या अपंगों, या विद्याविहीन ,आयु में बड़े   और रूप और धन से रहित और अपने से निम्न वर्ण वर्ण वालों पर कभी आक्षेप /व्यंग्य न करें। 
अध्याय 4 श्लोक 51 --- पुत्र और शिष्य से भिन्न अन्य किसी व्यक्ति पर दण्ड न उठायें और क्रोधित हो कर भी न मारें , न वध करें। पुत्र और शिष्य को भी केवल शिक्षा देने के लिए ताड़ना करें। 
अध्याय 4 श्लोक 24 ----सिखाये हुए सुन्दर लक्षणों से युक्त सुन्दर रंगरूप से शीघ्रगामी पशुओं से चाबुक की मार से बहुत पीड़ा न देता हुआ सवारी करे। 
अध्याय 3 श्लोक 44 --- चूल्हा चक्की झाड़ू ओखली पानी का घड़ा , गृहस्थों के लिए ये पांच हिंसा के स्थान हैं, इनका प्रयोग करते समय गृहस्थ जाने अनजाने हिंसा जनित पापों में बंध जाता है। 
 --- और भी बहुत से श्लोक हैं जो किसी भी प्रकार की हिंसा और प्रताड़ना को पाप की श्रेणी में रखते हैं, तो मनुस्मृति का अंध विरोध करने वाले कभी दिमाग लगाकर यह क्यों नहीं सोच पाते कि जो व्यक्ति जानवर को कोड़ा तक मारने को हिंसा की श्रेणी में रखता है वो किसी की जुबान काटने या कान में सीसा डालने जैसी हिंसा की विरोधीभासी बातें कैसे लिख सकता है ????
मनु की वर्णव्यवस्था में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शुद्र कैसे बनते थे ?????

अध्याय 2 , श्लोक 12 -13 ---मनु के अनुसार जो पाने बच्चों को ब्राह्मण बनाना चाहे वो उनका उपनयन पांचवें वर्ष तक क्षत्रिय छठे वर्ष और वैश्य का आठवें वर्ष में करवा दें। यदि इन वर्षों में उपनयन न करवा पाएं उनमे ब्राह्मणों का उपनयन सोलहवें वर्ष ,क्षत्रिय वर्ण के इच्छुक बाईस वर्ष और वैश्य वर्ण के इच्छुक चौबीस वर्ष तक करवा लें। जिनका उपनयन इस आयु सीमा में नहीं हो पाता था वे शूद्रों की श्रेणी में आ जाते थे। यह उपनयन भी बच्चो के aptitude पर निर्भर करता था। 
ऐसा भी नहीं था कि यदि कोई एक वर्ण में चला गया तो उसका वही वर्ण रहता था---
अघ्याय 2 श्लोक 62 -- जो मनुष्य नित्य प्रातः और सांय सन्ध्योपासना नहीं करता उसको शुद्र के समान समझकर द्विजकुल से से अलग करके शूद्रकुल में रख देना चाहिए। 
जो शरीर से बलिष्ठ होता था परन्तु जिसकी पढ़ने लिखने में रूचि नहीं होती थी और जो पढ़लिख नहीं पाता था वो शुद्र बन कर दूसरों की सेवा करके अपना जीवनयापन करता था। जब सेवा करता था तो कोई संशय नहीं कि अन्यवरणो के संपर्क में भी आता ही होगा ,तो यह कहना अनुचित है कि शूद्रों को अछूत समझ जाता था। शूद्रों को क्या सम्मान दिया जाता था उसके लिए एक दो श्लोक लिख रहा हूँ। 
अध्याय 3 श्लोक 80 -- विद्वान् अतिथियों द्वारा भोजन क्र लेने पर और अपने सेवकों आदि के खा लेने पर शेष बचे हुए भोजन को पति पत्नी खायें। 
अध्याय --3 श्लोक, 66 67 एवं  81 -- दिव्यगुण सम्पन्न विद्वानों ,विद्या के प्रत्यक्षकर्ता ऋषियों को , माता पिता आदि पालक व्यक्तियों को , गृहस्थ द्वारा भरण पोषण की अपेक्षा रखने वाले असहाय, अनाथ कुष्ठ रोगी, सेवक आदि को भजन दान द्वारा सत्कृत करके उसके बाद इनसे शेष बचे भोजन को खाने वाला हो अर्थात उस शेष भोजन को खाया करे। 
बात जहाँ से शुरू हुई थी वहीँ पर ख़त्म करता हूँ फ़ेसबुकिया कागज़ी शेरोन के लिए मनु महाराज ने एक बात और कही थी  ----
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षतिः। 
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोवधीत। ---अध्याय 8 श्लोक 15 
भावार्थ ----- जो पुरुष धर्म का नाश करता है , उसी का नाश धर्म कर देता है। और जो धर्म की रक्षा करता है उसकी धर्म भी रक्षा करता है। मारा हुआ धर्म हमको कभी न मार डाले, इसलिए धर्म का हनन या त्याग कभी नहीं करना चाहिए।
पूर्वज पढ़े नहीं और खुद कुछ पढ़ना नहीं चाहते और दोष देते हैं #मनु को कि उन्होंने शूद्र बना दिया। जो प्रमाणपत्र लेकर खुद को शूद्र कहते हैं उन्हें सुझाव है कि पढ़ें लिखें अपनी मानसिकता सुधारें और अपना वर्ण बदलें ( जिसकी आज के समय में कोई अहमियत नहीं बची है। ) बाकि मूक दर्शकों से निवेदन है कि यदि ज़मीन पर कच नहीं कर सकते तो आभासी दुनिया में ही इस पोस्ट को शेयर करके भ्रांतियों को दूर करें एवं अपने जीवित होने का प्रमाण दें।
जिसके दिल में भी 6 दिसंबर 2016  को जयपुर में मनुस्मृति जलने के अरमान हैं, वो पूरा दम लगा कर कोशिश कर ले ,----------

सोमवार, 21 नवंबर 2016

मनुस्मृति का विरोध क्यों ?????

मनुस्मृति को स्त्रीविरोधी बतानेवाले कूढ़मगजों ने पता नहीं कौन सी मनुस्मृति पढ़ी है , पढ़ी भी है या नहीं। या अंग्रेजों द्वारा बिना समझे अनुवादित मनुस्मृति में चिन्ता को को चिता पढ़ कर आज तक छाती कूट रहे हैं। बाजार से मात्र अनुवादित मनुस्मृति खरीद कर पढ़ने वालों की जानकारी में ज़रा सा इज़ाफ़ा कर दूँ कि आज जो बाज़ार में मनुस्मृति उपलब्ध है उसमे 2685 श्लोक हैं, और शोध के उपरान्त पाया गया है कि मूल मनुस्मृति में 1214 ही श्लोक हैं बाकि के 1471 श्लोकों में से अधिकांश  इसमें वर्ष 1000 AD  के बाद स्वार्थवश मिलाये गए हैं।
अगर मनु स्त्रीविरोधी होते तो वे निम्न श्लोक प्रश्नकर्ताओं को न #कहते ------
1) पितृभिभ्रार्तृभिश्चैताः पतिभिर्देवरैस्तथा ।
पूज्या भूषयितव्याश्च बहुकल्याणमीप्सुभिः - अध्याय 3 श्लोक 55 
अर्थात --- पिता, भ्राता ,पति और देवर को योग्य है कि अपनी कन्या, बहन स्त्री और भौजाई आदि स्त्रियों की सदा पूजा करें अर्थात यथायोग्य मधुर भाषण ,भोजन, वस्त्र आभूषण आदि से प्रसन्न रखें। जिनको कल्याण की इच्छा हो वे स्त्रियों को कभी क्लेश न दें. 

2) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैस्तास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः -----अध्याय 3 श्लोक 56 
 अर्थात जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात सत्कार होता है उस कुल में देवता ( दिव्यगुण --दिव्यभोग और उत्तम संतान ) होते हैं। और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा/सत्कार नहीं होता वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है।   
3) शोचयन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।। अध्याय 3 श्लोक 57 
जिस कुल में स्त्रियाँ अपने अपने पुरुषों के वेश्यागमन, अत्याचार व व्यभिचार आदि दोषों से शोकातुर रहती हैं वह कुल शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है। और जिस कुल में स्त्रीजन पुरुषों के उत्तम आचरणों से प्रसन्न रहतीं हैं वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है। 
4) जामयो यानि गेहानि शपन्स्यप्रतिपूजिताः।
तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः ।। अध्याय 3 श्लोक 58 
जिन कुलों और घरों में सत्कार को प्राप्त करके स्त्रीलोग जिन गृहस्थों को श्राप देती हैं वे कुल तथा गृहस्थ जैसे विष देकर बहुतों को एक बार नाश कर देवें वैसे चारों और से नष्ट भ्रष्ट हो जाते हैं। 
5) तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशनैः।
भूतिकामैर्नरैनित्यं सत्कारेषूत्सवेषु च।। अध्याय 3 श्लोक 59 
इस कारण ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले पुरुषों को योग्य है कि इन स्त्रियों को सत्कार के अवसरों और उत्सवों में भूषण,वस्त्र ,खानपान आदि से सदा सत्कारयुक्त प्रसन्न रखें। 
6 ) सन्तुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ।। अध्याय 3 श्लोक 60 
हे गृहस्थों ! जिस कुल में भार्या से प्रसन्न पति तथा पति से भार्या सदा प्रसन्न रहती है उसी कुल में निश्चित कल्याण और दोनों परस्पर अप्रसन्न रहें तो उस कुल में नित्य कलह वास करती है। 

वैसे प्रेमियों के साथ मिलकर पतियों और बच्चों को मारने वाली या सेक्स के लिए कपड़ों की तरह पुरुषों को बदलने वाली स्त्रियों के लिए भी महर्षि मनु ने दो चार श्लोक #कहे हैं यदि उन श्लोकों की वजह से यदि मनुस्मृति स्त्रीविरोधी है तो इसे जलाने वाले अपने में और सड़क के जानवरों में कोई फर्क न समझें।
( आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित #विशुद्ध_मनुस्मृति के आधार पर )