मनुस्मृति को स्त्रीविरोधी बतानेवाले कूढ़मगजों ने पता नहीं कौन सी मनुस्मृति पढ़ी है , पढ़ी भी है या नहीं। या अंग्रेजों द्वारा बिना समझे अनुवादित मनुस्मृति में चिन्ता को को चिता पढ़ कर आज तक छाती कूट रहे हैं। बाजार से मात्र अनुवादित मनुस्मृति खरीद कर पढ़ने वालों की जानकारी में ज़रा सा इज़ाफ़ा कर दूँ कि आज जो बाज़ार में मनुस्मृति उपलब्ध है उसमे 2685 श्लोक हैं, और शोध के उपरान्त पाया गया है कि मूल मनुस्मृति में 1214 ही श्लोक हैं बाकि के 1471 श्लोकों में से अधिकांश इसमें वर्ष 1000 AD के बाद स्वार्थवश मिलाये गए हैं।
अगर मनु स्त्रीविरोधी होते तो वे निम्न श्लोक प्रश्नकर्ताओं को न #कहते ------
1) पितृभिभ्रार्तृभिश्चैताः पतिभिर्देवरैस्तथा ।
पूज्या भूषयितव्याश्च बहुकल्याणमीप्सुभिः - अध्याय 3 श्लोक 55
अर्थात --- पिता, भ्राता ,पति और देवर को योग्य है कि अपनी कन्या, बहन स्त्री और भौजाई आदि स्त्रियों की सदा पूजा करें अर्थात यथायोग्य मधुर भाषण ,भोजन, वस्त्र आभूषण आदि से प्रसन्न रखें। जिनको कल्याण की इच्छा हो वे स्त्रियों को कभी क्लेश न दें.
2) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैस्तास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः -----अध्याय 3 श्लोक 56
अर्थात जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात सत्कार होता है उस कुल में देवता ( दिव्यगुण --दिव्यभोग और उत्तम संतान ) होते हैं। और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा/सत्कार नहीं होता वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है।
3) शोचयन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।। अध्याय 3 श्लोक 57
जिस कुल में स्त्रियाँ अपने अपने पुरुषों के वेश्यागमन, अत्याचार व व्यभिचार आदि दोषों से शोकातुर रहती हैं वह कुल शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है। और जिस कुल में स्त्रीजन पुरुषों के उत्तम आचरणों से प्रसन्न रहतीं हैं वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है।
4) जामयो यानि गेहानि शपन्स्यप्रतिपूजिताः।
तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः ।। अध्याय 3 श्लोक 58
जिन कुलों और घरों में सत्कार को प्राप्त करके स्त्रीलोग जिन गृहस्थों को श्राप देती हैं वे कुल तथा गृहस्थ जैसे विष देकर बहुतों को एक बार नाश कर देवें वैसे चारों और से नष्ट भ्रष्ट हो जाते हैं।
5) तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशनैः।
भूतिकामैर्नरैनित्यं सत्कारेषूत्सवेषु च।। अध्याय 3 श्लोक 59
इस कारण ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले पुरुषों को योग्य है कि इन स्त्रियों को सत्कार के अवसरों और उत्सवों में भूषण,वस्त्र ,खानपान आदि से सदा सत्कारयुक्त प्रसन्न रखें।
6 ) सन्तुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ।। अध्याय 3 श्लोक 60
हे गृहस्थों ! जिस कुल में भार्या से प्रसन्न पति तथा पति से भार्या सदा प्रसन्न रहती है उसी कुल में निश्चित कल्याण और दोनों परस्पर अप्रसन्न रहें तो उस कुल में नित्य कलह वास करती है।
वैसे प्रेमियों के साथ मिलकर पतियों और बच्चों को मारने वाली या सेक्स के लिए कपड़ों की तरह पुरुषों को बदलने वाली स्त्रियों के लिए भी महर्षि मनु ने दो चार श्लोक #कहे हैं यदि उन श्लोकों की वजह से यदि मनुस्मृति स्त्रीविरोधी है तो इसे जलाने वाले अपने में और सड़क के जानवरों में कोई फर्क न समझें।
( आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित #विशुद्ध_मनुस्मृति के आधार पर )
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