शनिवार, 24 जून 2017

जिहाद ---दि_क़ुरानिक_कॉन्सेप्ट_ऑफ़_वॉर

#दि_क़ुरानिक_कॉन्सेप्ट_ऑफ़_वॉर ----------

#अगर_आप_आदमखोरों_के_साथ_खाना_खाने_जा_रहे_है_तो_देरसवेर_आप_भी_उनका_भोजन_बनेंगे ------ भारत के तमाम छोटे बड़े तथाकथित  सेक्युलर आदमखोरों और ईद के उपलक्ष्य में कुरान को समर्पित है आज की यह पोस्ट। 
ईरान इराक सीरिया इंग्लैंड ब्रुसेल्स अफगानिस्तान कश्मीर रोज़ दुनिया का कोई न कोई कोना आतंकवादी घटना का शिकार होता। और फिर रेत के टीले में सिर घुसेड़े धर्मनिरपेक्ष शतुरमुर्ग बयां देते हैं कि आतंकवादियों का कोई मज़हब नहीं होता।

आतंकवादियों की बात छोड़ दें , कश्मीर में अब फ़ौज या पुलिस में भर्ती कश्मीरी भी मारे जाने लगे हैं ???? या पकिस्तान भारत के रोज़ रोज़ ऊँगली करता रहता है, मालूम है क्यों ???? 

कल ईद है।  जैसा सबको बताया गया है वही मैं भी जनता हूँ कि इस महीने में कुरान नाज़िल होनी शुरू हुई थी। कुरान ने पैदा होते ही दुनिया को दो हिस्सों में बाँट दिया दारुल इस्लाम ( जहाँ सिर्फ इस्लाम है ) और दारुल हर्ब (जहाँ काफिर हैं) मुसलामानों के लिए क़ुरान ने कर्तव्य निर्धारित किया वे गैर मुसलामानों को इस्लाम में शामिल करें। जो उनकी बात मान कर मुसलमान बन गए वो तो दीनी भाई हो गए। और जो नहीं मानें उनके लिए क़ुरान हिदायत देती है उनसे लड़ो और तब तक लड़ो जब तक वो इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर न हो जायें। इसी लड़ाई को #जिहाद कहते हैं। 
 कुरान --सूरा 2, आयत 193  मुसलामानों को आदेश देती है कि " तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फितना ( कुफ्र का उपद्रव) शेष न रह जाए और दीन अल्लाह का ही हो जाये . . . . . . . ". कुरान का सम्पूर्ण दर्शन ही जिहाद है। 
अगर आपको कुरान का जिहादी दर्शन समझना है तो आपको पाकिस्तानी फौज में राष्ट्रपति जिया उल हक़ के कार्यकाल में उनके एक ब्रिगेडियर एस के मलिक ने एक किताब लिखी थी " दि क़ुरानिक कांसेप्ट ऑफ़ वॉर

http://www.discoverthenetworks.org/Articles/Quranic%20Concept%20of%20War.pdf

इस किताब की प्रस्तावना खुद ज़िआ उल हक़ ने लिखी थी और इसकी भूमिका भारत में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके "अल्लाह बक्श ब्रोही ने लिखी थी।  इसकी भूमिका में ब्रोही लिखते हैं " ----

इस्लामी शब्दकोष में #जिहाद सर्वाधिक गौरवशाली शब्द है , जिसका अंग्रेजी में अनुवाद संभव नहीं , लेकिन जिसका प्रयोग उद्यमशील, संघर्षशील  और अल्लाह के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में प्रयासरत रहने के अर्थ में अधिकता से किया जाता है। इसके आगे अपनी लम्बी चौड़ी प्रस्तावना में ब्रोही लिखता है कि -पश्चिमी चिंतक अक्सर क़ुरान की आयतों पर उंगली उठाते हैं कि इनकी वजह से इस्लाम के अनुयायी गैर इस्लामियों के साथ हमेशा संघर्षरत रहते है। उनके लिए यह जवाब काफी है कि ---खुदा के गुलाम द्वारा खुदा के हुक्म को न मानना उसे इस्लामिक क़ानून की दृष्टि  में गुनहगार मानती है और उसका इलाज वैसे ही किया जाना चाहिए जैसे कैंसर युक्त अंग को शरीर से काट कर अलग कर दिया जाता है जिससे कि बाकि की इंसानियत को बचाया जा सके। 
ब्रिगेडियर मलिक ने अपनी इस पुस्तक में कुरान से बहुतेरे से उद्धरण देकर कहा है कि ----"#जिहाद_अनवरत_चलने_वाली_लड़ाई_है जिसे काफिरों के खिलाफ लड़ा जाता है। ब्रिग मलिक ने लिखा है , " जिहाद कुफ्र के विरुद्ध राजनितिक, आर्थिक ,सामाजिक,मानसिक,नैतिक,आध्यात्मिक ,गृह और अंतरराष्ट्रीय मोर्चों पर लड़ी जाने वाली सदा चलते रहने वाली लड़ाई है।  सशस्त्र युद्ध तो उसके अनेक तरीकों में से एक है। जिहाद हर मुसलमान का निजी और सामूहिक फ़र्ज़ है।
मलिक आगे लिखते हैं "जिहाद में हमारा लक्ष्य दुश्मन का दिल और दिमाग होता है। दुश्मन के दिलों में पैदा किया हुआ खौफ या आतंक हमारा साधन नहीं बल्कि लक्ष्य होता है। यदि एक बार दुश्मनों के दिलों में खौफ पैदा कर दिया फिर कुछ और करने के लिए बाकि नहीं बचता। आतंक दुश्मन पर निर्णय लादने का साधन नहीं है बल्कि लादा हुआ निर्णय होना चाहिए। सिर्फ वही रणनीति सीधा परिणाम पैदा कर सकती है , जो तैयारी की अवस्था से ही शत्रुओं के दिलों में आतंक उत्पन्न करने के लक्ष्य की ओर केंद्रित हो" ( पृष्ट 59 ) 
अपने इस कथन को साबित करने के लिए मलिक सूरा 8 आयत 12 को उद्घृत करता है जिसका हिंदी तर्जुमा इस तरह है --- जबकि आपका रब फरिश्तों को हुक्म देता था कि मैं तुम्हारा साथी हूँ, सो तुम ईमान वालों की हिम्मत बढ़ाओ , मैं अभी काफिरों के दिलों में रौब डाले देता हूँ , सो तुम काफिरों की गर्दनों पर मारो और और उनके पोर पोर मारो। 

ब्रिग मलिक आगे लिखता है कि " उनके दिलों में दर तभी भरा जा सकता है यदि आप उनकी आस्था को ध्वस्त कर दें।  अंतिम विश्लेषण का निष्कर्ष यही निकलता है कि काफिरों के दिलों में दर भरने के लिए उसकी आस्था की नींव हिला दी जाये।  (पृष्ट 60)
उपरोक्त कथन को सूरा 9 आयत 5 के परिपेक्ष में देखिये --- " फिर जब हुरमत के महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ कत्ल करो और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर जगह घात  लगा कर उनकी ताक  में बैठो।  फिर अगर वे तौबा कर लें , नमाज़ कायम करें, ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो। 
ब्रिग मलिक ने तो #दि_क़ुरानिक_कांसेप्ट_ऑफ़_वॉर , कुरान के आधार पर 164 पन्नों की लिख दी जिसका अंश आपके लिए मैंने यहाँ लिखा है।
 पूरी कुरान में काफिरों को  मुसलमान बनाने की ज़द्दोज़हद में जिहाद के ऊपर 164 आयते लिखी गयीं हैं। इन आयतों का सारांश यह है कि कुरान या खुदा की बात मनवाने के दौरान अगर कोई मर भी जाता है तो उसे जन्नत नसीब होगी और यही खुदा की इबादत का दूसरा सबसे बेहतरीन तरीका है।  

कभी कभी भटके हुए नौजवान क़ुरान और हदीस के संदेशों के ऊपर अपना ज्ञान झड़ने और इस्लाम को सहिष्णु दिखने के लिए और ऊपर लिखी सूरा 9 की आयत 5 के सन्दर्भ समझने लगते हैं। उन सबकी जानकारी के लिए बता दूँ कि क़ुरान में कुल 114 सूरा ( चैप्टर) हैं और सूरा 9,  113वें नम्बर पर सुनाया गया था यानि कि यह चैप्टर पहले के सब चैप्टर्स पर ग़ालिब माना जाये। और इस सूरा में साहब ने कह ही दिया था कि जो मुसलमान न बने उसे निपटा दो।  
 

अब समझ में आया आपको कि फ्रांस में क्यों गला कटा जाता है , इंग्लैंड में क्यों जनता के ऊपर ट्रक चढ़ाया जाता है, ब्रुसेल्स में क्यों धमाका होता है , इंदौर पटना ट्रेन क्यों  हादसे का शिकार होती है , भोपाल उज्जैन ट्रैन में धमाका क्यों होता है , या पाकिस्तान सैनिकों के शव क्षत विक्षत क्यों करता है ????? #पिछले_30_दिनों में (रमज़ान के महीने में )दुनिया भर 29 देशों में  164 इस्लामिक हमले हुए जिनमे 1540 लोग मारे गए 1629 लोग घायल हुए।  लिस्ट निम्न लिंक में दी गयी है। 


मकसद सिर्फ दिलों में खौफ पैदा करके ईमान कबुलवाना। मकसद पूरी दुनिया को इस्लामिक राष्ट्र बनाना है।  मकसद आपकी आस्था की नीवें हिलाना है।  और इसी मकसद से #दि_कुरानिक_कांसेप्ट_ऑफ़_वॉर, जो कि मुझे कुरान का संशोधित संस्करण नज़र आती है ,लिखी गयी है। 

मेरी मित्रता सूची में जो सेक्युलर इसे पढ़ चुके हैं , वे सब कुछ भूल कर कल ईद मिलन की तैयारी शुरू कर दें। क्योंकि भुगतना आपने नहीं आपकी आने वाली पीढ़ियों ने है। Please Go ahead and enjoy the BEEF PARTY.  

शनिवार, 3 जून 2017

प्रसव का दर्द झेला माँ ने , नेग ले गयी दाई और हिजड़े ले गए बधाई।

प्रसव का दर्द झेला माँ ने , नेग ले गयी दाई और हिजड़े ले गए बधाई। 
 यदि वैदिक मान्यताओं में विश्वास रखने वाले सनातन धर्मी है तो इस लेख को पढियेगा जरूर , वर्ना जानकारी के आभाव में कदम कदम पर आप जलील होते रहेंगे और गायें कटती रहेंगी। 
मुख्य मुद्दे पर बाद में आएंगे पहले अपने पिछड़ेपन की निशानियों का छोटा सा नमूना देख लीजिये। 

नयी पीढ़ी को छोड़ दें , तो शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे जब चोट लगी होगी तो उसे गर्म दूध के साथ हल्दी न पिलाई गयी हो या चोट पर हल्दी लगा कर पट्टी न बंधी गयी हो। पूजा में अक्सर हल्दी या तो भगवान् को चढ़ाई होगी या उसका तिलक किया होगा। । यह भी कोई नहीं कह सकता कि उसने सर्दियों में कभी चाय में तुलसी की पत्तियां डाल कर चाय नहीं पी होगी या आजकल प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले "तुलसी ड्रॉप्स" का विज्ञापन नहीं देखा होगा । वैसे पहले ज़माने में घर के आँगन में तुसलीचौरा हुआ करता था और उसकी पूजा की जाती थी।
कुछ दिन पहले बड़ी अमावस को आपने महिलाओं को बरगद की पूजा करते देखा होगा , या शनिवार को बहुत से लोगों को पीपल के पेड़ के नीचे दिया जलाते देखा होगा या यह कहते हुए सुना होगा कि पीपल के पेड़ को काटने से पाप लगता है। बृहस्पतिवार को केले की पूजा करते हुए महिला या पुरुष को देख कर उसका मज़ाक भी उड़ाया होगा। 
आंवला एकादशी शायद ही कुछ लोगों को मालूम हो, लेकिन इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा का विधान बताया गया है। 
तुलसी केले नीम पीपल बरगद आंवले की पूजा कोई 1990 के दशक में तो भारतियों को बताई नहीं गयी कुछ हजार साल पहले किस रूप में बताई गयीं थीं मालुम नहीं पर आज जैसी नहीं बचीखुची है , उनको उतना ही मान लीजिये। 

भारतीय बेवकूफों का पिछड़ापन इसमें नहीं है , कि वे हल्दी का इस्तेमाल करते हैं , केले , बरगद, पीपल और आंवले को पूजते हैं। भारतियों का पिछड़ापन इसमें है कि बजाये इसके पीछे का तर्क समझ कर पूर्वजों द्वारा दिए गए इस ज्ञान और थाती को समझ कर सहेजते , बल्कि 1990 के दशक तक अपनी हीनभावना में तब तक डूबे रहे जब तक , विदेशियों ने इस बात के मर्म को समझ कर उपरोक्त इन सब चीज़ों के पेटेंट नहीं करवा लिए। 

कुछ उदाहरण दे रहा हूँ ---
बरगद का पेटेंट ---
तुलसी का एक पेटेंट नहीं करवाया गया है , कई हैं , एक का उद्धरण दे रहा हूँ ---- https://www.google.co.in/search?q=patent+of+basil&oq=patent+of+basil&aqs=chrome.0.69i59j0l2.13000j0j7&sourceid=chrome&ie=UTF-8

नीम के कई पेटेंट में से एक का उदाहरण ---
हल्दी का पेटेंट वैसे भारत ने कानूनी लड़ाई के तहत जीत लिया है , लेकिन वो स्थिति ही क्यों आयी जब किसी और देश ने इसे अपने नाम करवा लिया था ????---
पीपल के पेड़ के भी एक दो नहीं कई पेटेंट विदेशों ने करवा रखे है ,----

बासमती का पेटेंट तो बेशक भारत जीत गया हो , लेकिन ट्रेड मार्क नहीं जीत पाया ---


आंवला जिसके गुण च्यवन ऋषि बताते बताते खत्म हो गए , उसे सुंदरता के लिए अमरीका ने पेटेंट करवावा लिया --

क्या बड़ा किला फतह कर लिया अगर हल्दी और बासमती के पेटेंट कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद वापिस जीत लिए ???? लेकिन सूतियो हजारों सालों से तुम्हारी रही चीज़ को कोई कानूनी रूप से अपना बताने लगा और तब भी अन्य विषयों पर तुम्हारा अपने धर्म और संस्कृति के प्रति स्वाभिमान नहीं जगा। 
पहली रोटी गाय को और गाए को पूजने का विधान भी आज का नहीं ऋग्वेद के समय का है। बेवकूफ थे सनातन धर्म वाले जो नदियों को पूजने की बात करते थे। गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर लगाने पर विद्व्जन बहुत हँसतें है लेकिन जब पहली बार , मनुष्य का दिल , लिवर , किडनी बदली गयी कटा हुआ हाथ जोड़ा गया तो उसे विज्ञान और और पश्चिमी देशों का चमत्कार माना गया। भारतीय जाहिल जानवरों के अंगो के  मनुष्यों में प्रतिरोपण का अभी मज़ाक उड़ाने में व्यस्त हैं और विदेशी वैज्ञानिक इस पर काम भी कर रहे है।  जिस दिन वो सफल हो जायेंगे तो भारत के सूतिये दूर खड़े हो कर हिजड़ों की तरह तालियां बजायेंगे।

http://www.smithsonianmag.com/…/future-animal-to-human-org…/

कल से एक खबर देख कर चित्त खिन्न हो गया , जिसमे दिल्ली के हवाला व्यापारी कश्मीरियों तक पैसा पहुंचा रहे थे। क्या उम्मीद की जाए ऐसे लोगों से गाय बचाने की जिन्हे देश को मारने में कोई दर्द नहीं हो रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग पर 2 जून को विश्व के लगभग सभी देश आज चिन्तित नज़र आये। ग्लोबल वार्मिंग के बहुत से कारणों में मीट खाना एक अहम् कारण है। अगर ये बात कोई वैक धर्म से सम्बंधित जज कहता तो पूरी दुनिया में उसका मज़ाक उड़ता ,लेकिन यह बात ऑक्सफ़ोर्ड मार्टिन स्कूल के वैज्ञानिक कह रहे हैं। न यकीन आये तो निम्न लिंक पढ़ लीजिये।  


अब चूँकि गोरी चमड़ी के विदेशी वैज्ञानिक यह कह रहे हैं तो पूरी दुनिया इसे मानेगी। लेकिन जब हमारे शास्त्रों ने प्रकृति जिसमे पेड़ पौधे , जीव जन्तु और सूर्य पृथ्वी और जल शामिल हैं , ने इसकी पूजा करने के तरीके से इन्हे बचाने का सन्देश दिया तो वो आज मूढ़मगजों के हँसी के पात्र बन रहे हैं।  
हमारे पूर्वजों ने आत्मीयता की दृष्टि से धार्मिक जामा पहनाते हुए समझाया कि गौ का संरक्षण होना चाहिए , तो किसी की समझ नहीं आया। अब अमरीकी वैज्ञानिक कह रहे हैं कि रेड मीट खाने से कैंसर के खतरा 60 -70 प्रतिशत बढ़ जाता है यह मैं नहीं कह रहा हूँ , यह कैंसर काउंसिल कह रही है ,तो भी इस ढाई इंच की जुबान के कुछ मिनटों के स्वाद के गुलाम शायद इसे नहीं छोड़ पाएंगे।

बहुत विस्तार में जाते में न जाते वैज्ञानिकों द्वारा गौ उत्पादों #पंचगव्य पर शोधपत्र का सारांश यहाँ लिख रहा हूँ ---दुनिया भर में शोध के पश्चात् गाय का दूध A 2 श्रेणी में रखा गया है। जो कि सिर्फ गायों में ही पाया जाता है , वो भी विशेषकर भारतीय गायें में। 
(A 2 Milk के विषय में अधिक जानकारी के लिए पढ़ें  https://en.wikipedia.org/wiki/A2_milk ) 

इस A 2 मिल्क को पीने मोटापे, गठिया , टाइप 1 डायबटीज़ , और बच्चों में आटिज्म की बिमारी से बचा जा सकता है। आज की तारीख में विश्व के वैज्ञानिक बिमारियों पर दवाइयों के विशेष कर एंटीबायोटिक दवाइयों के बेअसर होने के कारण चिंतित हैं। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार अगले बीस सालों में एंटीबायोटिक दवाईयां बिकुल असर करना बंद कर देंगी। इसका विकल्प उन्होंने गौमूत्र में ढूंढा और गौमूत्र का 6896907 , तथा 6410059 नंबर का गौमूत्र का पेटेंट इसके औषधीय गुणों के कारण करवा लिया ।  These Patents have been granted for its medicinal properties, particularly as a bioenhancer, and as an antibiotic, antifungal, ant anticancer agent . ( #आइये_हम_भारतीय_गौमूत्र_का_मज़ाक_उड़ा_कर_समय_व्यतीत_करें )

पिछले वर्षों में खेती में रासायनिक खाद का बहुतायत में उपयोग होने से एक तो उनके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं और फसलों की बहुत सी बीमारियाँ भी रसायन प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर चुकीं हैं। इन्ही बिमारियों से लड़ने के लिए भारतीय साहीवाल गाये के दूध में से Bacilus Lentimorbus  NBRI 0725 ,B. Subtilis NBRI 1205 , और B.Lentimorbus NBRI 3009 नाम के पदार्थ (Strains) अलग किये गए हैं  which have the capability to control phytopathogenic Fungi and promote plant growth under field conditions, increase tolerance for antibiotic stresses and solubilise Phosphate under abiotic conditions.

गोबर से बने उपलों या गोबर गैस द्वारा ऊष्मता एक ख़ास तापमान से ऊपर नहीं जाती है जिससे खाने के पौष्टिक तत्व अन्य साधनो पर पकाये खाने की तरह नष्ट नहीं होते। 

 रूरल डेवलपमेंट एंड टेक्नोलॉजी ( CRDT) ने IITs , ICAR ,DBT ,ICMR ,CSIR ,AAYUSH , NDRI से से शोध पत्र मांगे , जिसमे से पूरे भारत में से प्रारम्भिक रूप में आये हुए 54 में से 34 को पंचगव्य पर पारम्परिक मान्यताओं को मान्यता देने के लिए चुना गया। 
अगर अभी भी समझ नहीं आया कि गौ को क्यों पूजने के लिए कहा गया है तो 
आइये मिलकर अपनी धार्मिक मान्यताओं की धज्जियाँ उड़ाते हुए , नीम ,आंवले और पीपल के पेड़ काटें , शहर भर के गंदे नाले नदियों में मिलाएं और हर सड़क चौराहे पर गौहत्या की जाए।  बीफ पार्टी का न्योता सबको दिया जाए। गाये की पूजा और पर्यावरण की चिंता हम और आप क्यों करें। कोई अगले 20-25 सालों में जब तक हमने जीना है गायों के ख़त्म होने से कयामत तो आ नहीं जाएगी।  रही बात दूध की तो वो तो यूरिया , पानी, पेंट, डिटर्जेंट ,चीनी कास्टिक सोडा से बन कर आज भी बिकना शुरू हो गया है , 20 साल बाद गाय का मांस पचाने वाले इस प्रकार निर्मित दूध को भी पचाने लगेंगे। 



अभी आपको समझ आया ???? प्रसव का दर्द झेला माँ ने , नेग ले गयी दाई और हिजड़े ले गए का मतलब ???? बधाई प्रसव या कटने का दर्द झेला गाय ने। नेग यानि की काटने का पैसा ले गया कसाई और हिजड़े वो जो खायें और खिलाएँ गाय का मांस।
या यूँ कह लीजिये , ऋषि मुनियों ने मेहनत से ज्ञान अर्जित किया , आज के विदेशी वैज्ञानिक उसी भारतीय ज्ञान पर आधारित सभी शोध अपने नाम लिखवा रहे हैं और दवा कंपनियां कर इन्ही दवाओं पर जमकर पैसा कमा रहीं हैं।
और सबसे मज़ेदार बात बच्चे के बाप होने की दावेदारी पडोसी पेश कर रहा और पेटेंट अपने नाम लिखवा रहा है।