माँ दुर्गा को अपशब्द कहे जाते है , महिषासुर मंडन किया जाता है , मूलनिवासी शब्द की परिकल्पना की जाती है , गाय का माँस खाना प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया जाता है। आपको क्या लगता है कि एक सदी में ही सीधे सादे हिन्दुओं के जैविक गुणों में इतना परिवर्तन हो गया कि वे अपने बाप दादाओं की आस्था को ताक पर रख देंगे। हिन्दुओं के धर्म का बलात्कार हो रहा है और कविता कृष्णन ,गौरी लंकेश जैसे धर्मनिरपेक्ष उसे सम्भोग समझ कर अपनी इज़्ज़त लुटवाने में मस्त हैं। फेसबुक पर मेरे कुछ मित्रों को मैकाले ने जो धर्मनिरपेक्षता का चश्मा पहना रखा है उसे मैं एक आध टिप्पणी से नहीं उतार सकता। बहुत मन करता है कि उनसे कहूँ कि इस समय दुश्मन गौरी , ग़ज़नवी , औरंगज़ेब, रोबर्ट क्लाइव ,या जनरल डायर सामने से नज़र आने वाले नहीं हैं , वैश्विक शक्तियां वामपंथियों , ईसाईयों और इस्लाम के के साथ मिल कर बहुत महीन तरीके से आपको हलाल कर रहीं हैं लेकिन प्रमाण होते हुए भी ये लोग देखना क्यों नहीं चाहते ???
ऐसा नहीं है कि आपने कभी नहीं सुना होगा कि मिशनरी / कान्वेंट स्कूलों में राखी जैसा त्यौहार भी नहीं मनाने देते तो फिर इस बात का प्रतिरोध क्यों किया जा रहा है कि हिन्दू बाहुल्य स्कूलों में क्रिसमस मनाने के लिए बाध्य न किया जाये ???
क्या कभी सोचा कि क़त्ल तो रोज़ ही होते हैं फिर अख़लाक़, पहलु , जुनैद, अफ़ज़ारूल की हत्या ऐन चुनाव से पहले क्यों होती है और यह राष्ट्रीय मुद्दा बनकर सिर्फ चुनावों तक ही क्यों ज़िंदा रहता है ???? क़त्ल और बलात्कार तो रोज़ होते हैं फिर ख़बरों की सुर्खियां यह ही क्यों बनते हैं ???
मान लिया कश्मीर के समय इंटरनेट और सोशल मीडिया नहीं था, मगर 2011 में हुए आसाम के दंगे, उसके बाद पश्चिम बंगाल में ऐन त्यौहार के दिनों में दंगे, केरल के हिन्दुओं की हत्याएं , कैराना से हिन्दुओं का पलायन ये सब राष्ट्रीय मुद्दा क्यों नहीं बनते, बोडो ईसाईयों ने पिछले दस सालों में बीस हज़ार से ज्यादा हिन्दुओं को मार दिया , कहीं किसी ने मोमबत्ती जलाई ???
सुकमा में 70 CRPF के जवानों के मरने पर जश्न और अफ़ज़ल / याकूब मेमन के मरने पर मातम कौन मनाता है ??? देशद्रोहियों को नायक कौन बनता है ???
बहुत हो हल्ला किया था कुछ खास वर्ग लोगों और NGOs ने जब 25 NGO का राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के कारण और 11319 NGOs का लाइसेंस उनकी संशयात्मक गतिविधियों के कारण 2015-16 में निरस्त किया गया। कितना पैसा आता है विदेशों से ???
गृह मंत्रालय के हवाले से 2002-03 में 5046 करोड़ रूपए, 2005-06 में 7500 करोड़ , 2011-12 में 10334 करोड़ , 2012-13 में 9423 करोड़, 2013 -14 में 13092 करोड़ 2014-15 में 14525 करोड़ , 2015-16 में 17208 करोड़। गौर करें जब से मोदी आये है तबसे भारत के ऊपर विदेशों से चंदा देने वालों की कृपा में इज़ाफ़ा होता जा रहा है। क्यों ???? जवाब आप खुद ढूंढिए।
द हिन्दू में प्रकाशित एक और रिपोर्ट के अनुसार इस पैसे का 80% पैसा --दिल्ली, तमिलनाडु , केरल महाराष्ट्र , आंध्र प्रदेश, नार्थ ईस्ट स्टेट्स , कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के राज्यों को जाता है। जबकि इस 80 % का 33 % लगभग 4500 करोड़ केवल दिल्ली और तमिलनाडु में बैठी NGO को आता है।क्यों ??? भाई क्या गरीब यू पी और बिहार में नहीं रहते ??? फिर उपरोक्त राज्यों पर इतनी इनायत क्यों ??? यहाँ भी जवाब आप खुद सोचिये।
वर्तमान पोप ने 1997 में एक वेटिकन दस्तावेज़ प्रस्तुत किया था ___#डोमिनस_जीसस जिसमे हिन्दू और बौद्ध धर्म की भरसक आलोचना की थी। इसी श्रृंखला में अमरीका में ईसाई मत के प्रचारक पैट रॉबर्टसन ने एक करोड़ हिन्दुओं को अगले कुछ वर्षों में बंधनों से मुक्त करवाने की घोषणा की थी।
फरवरी 2004 के #तहलका अखबार के एक अंक में वी के शशिकुमार ने एक लेख लिखा था -- "Bush's Conversion Agenda for India " जिसमे #प्रोजेक्ट_जोशुआ (I) और (II)के विषय में बताया गया था। इस प्रोजेक्ट के अनुसार भारत में धर्मप्रचारकों को 152786 पोस्ट ऑफिस चिन्हित करने थे। इस प्रोजेक्ट के ऊपर चर्चा के लिए सितम्बर 2005 में Dallas और Texas में सम्मलेन हुआ कि भारत में 2020 तक 10 करोड़ ईसाई बनाने हैं।
चूँकि चूतियों की आँखों पर धर्मनिरपेक्षता का चश्मा चढ़ा हुआ है इस लिए इन्हे न तो तमिलनाडु में पिछले 20 वर्षों में बने हुए 17500 चर्चों , 9700 मस्जिदों और 370 मंदिरों के बनने की संख्या में कोई असमानता नज़र आती है न इन्हे धर्म आधार पर तमाम राज्यों की जनसँख्या में होते बदलाव नज़र आ हैं न इन्हे तमाम मीडिया चैनलों , पोर्टलों और अखबारों के हिन्दू विरोधी प्रचार और मानसिकता का पता चलता है। आंकड़े बता रहे हैं कि 70 के दशक में अरुणाचल प्रदेश में 1710 ईसाई थे आज 12 लाख से ऊपर हैं। 780 चर्च हैं। त्रिपुरा में आज़ादी के समय ईसाई थे ही नहीं आज सवा लाख से ऊपर हैं और ये सवा लाख भी 1990 के बाद हुई 100% बढ़ौतरी के बाद हुए हैं। एक मित्र ने दो दिन पहले ही पश्चिमी चम्पारन के नरकटियागंज से सन्देश भेजा कि इनके घर के पास एक चर्च है जिसमे 100-150 लोगों का हर महीने धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। इन मित्र के अनुसार 10 साल पहले यहाँ 50 ईसाई भी नहीं थे आज हजारों की संख्या में है। इस साल जब बिहार में बाद आयी तो मिशनरियों ने यहाँ खूब सामन बांटा लेकिन पता पूछ पूछ कर। आज उन्हीं पतों पर जाकर धर्मान्तरण कर रहे है। तमिलनाडु में 2004 आयी सुनामी के बाद ऐसे ही मदद बांटी, मदद के नाम पर बाइबिल भी बांटी और नागापट्टिनम जिले का एक पूरा का पूरा गाँव धर्मांतरित कर दिया। 2014 की नेपाल की भूकंप त्रासदी में दुनिया जहान खाने पीने का सामन और कपडे भेज रही थी , मगर ईसाईयों ने पूरा का पूरा हवाईजहाज भर के बाइबल भेजी थी। दैविक आपदाओं से घिरे हुए लोगों की खरीदना कोई इनसे सीखे। केरल के आंकड़ों में ईसाईयों की जनसँख्या तो 14% से 18.8% ही पहुंची है लेकिन जमीन और कृषि सम्बन्धी गतिविधियों में इनकी हिस्सेदारी 40% और अन्य व्यवसायों में 31.5% के ऊपर है। हिन्दुओं की निष्क्रियता और निक्कमेपन की वजह मान सकते हैं कृषि और रोज़गारों में हिस्सेदारी घटने का लेकिन केरल में ईसाईयों के गॉड और भगवान् की कार्यशैली का फर्क समझिये।
केरल में तटीय किनारों पर चर्चों में #मिरेकल_बॉक्सेस (चमत्कार डिब्बे) लगे हुए हैं। इन डिब्बों में गरीब तबका अपनी जरूरत या इच्छाएं जैसे नाव खरीदने/ मकान खरीदने /लड़की की शादी के लिए पैसे चाहिए तो इसके अंदर लिख कर डाल देते हैं। और लीजिये कुछ दिनों में उनकी इच्छा पूरी हो जाती है। मगर हिन्दुओं के भगवान् ये सब नहीं कर पाते इसीलिए गॉड से मदद के अभिभूत व्यक्ति पूरे परिवार के साथ ईसाई बन जाता है और अपने आस पड़ोस के लोगों को भी ईसाई बनने के लिए प्रेरित करता है।
इन सारी गतिविधियों के लिए भारत भर में 4000 से ज्यादा मिशनरी संस्थाएं , लाखों लोगों को इस रोज़गार लगाकर पूरी मेहनत से यीशु भेड़ों को बटोरने मेंलगे हुए हैं। झुण्ड में से भेड़ें कम हो रहीं हैं सिर्फ यही कष्ट होता तो भी बर्दाश्त कर लिया जाता। लेकिन जो मुसलमान और ईसाई दुनिया भर में आपस में लड़ रहे हैं वो भारत में वामपंथियों के साथ मिल कर हर स्तर पर चाहें शारीरिक हो या बौद्धिक, चाहें धार्मिक हो या राष्ट्रीय, हिन्दुओं और भारत को नुक्सान पहुंचाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। नुक्सान पहुंचाने के लिए ये किसी भी छोटी से छोटी घटना जिसमे किसी नूं का ब्लातकार हो या चर्च के शीशे टूटना --पूरी संसद हिला देते हैं और पूरे विश्व में हिन्दुओं खिलाफ भरपूर दुष्प्रचार करते हैं। अंत में निकलता क्या है की ये घटनाएं शांतिप्रिय मज़हब के लोगों की दें थी लेकिन तब तक ये विश्वभर में हर स्तर पर हिन्दुओं को बदनाम कर चुके होते हैं। अलग राज्यों की मांग, हड़ताल, बंद, जेल भरो , रेल रोको, बांध न बनाओ, न्यूक्लिअर प्लांट न लगाओ, कोई फैक्ट्री न लगाओ जैसी मुहिम इसी पैसे के दम पर चलतीं हैं।
ज़ाकिर नायक का चंदा जग जाहिर हो गया है , लेकिन कभी सोचा हज के लिए सब्सिडी मांगने वाली कौम की मस्जिदें ीतिनि आलीशान किस पैसे से बन रहीं है ?? कभी सोचा जिन्हे ईसाईयों में हम मिशनरी कहते है इस्लाम में उसी काम को करने वालों को तब्लीगी बोलते हैं इन तब्लीगी गतिविधियों में संलिप्त ;आँखों लोगों का खर्च कहाँ से चलता है ????
हिन्दुओं के ऊपर तो रिलीजियस एंडोमेंट एक्ट भी थोप रखा है जिससे मंदिरों में चढ़ने वाला चढ़ावा भी सरकारें ले लेती है। चर्चों मस्जिदों और मजारों से क्या लिया जाता है ???
120 करोड़ लोगों के देश में आज 74% हिन्दू बचे हैं जो आज़ादी के समय 83 % होते थे। मुसलमान 8 % से बढ़कर 20 % हो गए। कोई बात नहीं। इन 120 करोड़ लोगों में सिर्फ 3.5% लोग इनकम टैक्स भरते है। अगर सिर्फ जनसँख्या को आधार मानलें तो भी सिर्फ 70 लाख मुसलमान ही टैक्स देते हैं और इन्हे हक़ भी चाहिए पूरे। क्यों न चाहे जब देश का पूर्व प्रधानमंत्री ही यह कहता है कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलामानों का है। मंदिरों का चंदा लुटवाने और सब तरीके के टैक्स देने के बाद , कश्मीर से केरल तक में मार खाने के बाद -------
कभी सोचियेगा क्या हिन्दू और हिन्दू धर्म इतना निकृष्ट हैं कि , हिन्दू नाम रखे हुए साहित्यकारों , इतिहासकारों, नेताओं और नामचीन हस्तियों का क्या फायदा होता जब वे इन्हे असहिष्णु कहते हैं या तमाम तरीके की खामियां निकलते हैं ??? कभी सोचा कि कांचा इल्लैया,सुनील सरदार ,जॉन दयाल, ज़ाकिर नायक जैसे सैंकड़ों भारत में बैठे हुए आस्तीन के सांप हैं जिन्हे विदेशो से यही सब करने के लिए पैसा आता है। पैसा आने का रास्ता साफ़ करतीं हैं कांग्रेस , वामपंथी और द्रमुक जैसी पार्टियां और इनके वो गुर्गे जो ऊँचे पदों पर बैठे हैं।
ये जाल कितना फैला हुआ है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब मोदी सरकार ने इन विदेशी फंडिंग पर प्रतिबन्ध लगे तो दर्द इन सिर्फ NGOs ईसाई मिशनरी और ग्रीनपीस जैसी संस्थाओं को ही नहीं हुआ यूनाइटेड नेशन्स तक के पेट में मरोड़ उठ गयी थी। क्यों ???? समझ पा रहे हैं न आप, भारत के खिलाफ कौन कौन काम कर रहा है ????
क्यों न हो हिन्दू असहिष्णु ???
कुछ भी लिख पढ़ ले हम मगर कल बहुत से लोग यही कहेंगे " मेरी क्रिसमस" यह कहना का दम ही नहीं है "तेरी क्रिसमस"