यह पोस्ट उन हिन्दुओं के लिए है जिन्हे अख़लाक़, जुनैद, पहलू और गौरी लंकेश की मौत पर प्रीमैच्योर डिलीवरी होगयी थी। जिन्हे अफ़ज़ारूल की हत्या और हिन्दू बाहुल्य स्कूलों में क्रिसमस के विरोध पर परेशानी और बेचैनी होने लगी थी और भविष्य में बहुत बार होगी। उस बिमारी का नाम क्या है यह मैं पोस्ट के अंत में बताऊंगा ,लेकिन पहले इस बिमारी के 5 लक्षणऔर कारण गौर से और विस्तार से पढ़ लीजिये।
1 ) इनका शुरुआती लक्षण है कि ये इस बात से इंकार करते हैं कि हिन्दू समाज और संस्कृति को किसी प्रकार का संकट है, आप इनके सामने कितने भी अकाट्य तर्क प्रस्तुत कर दीजिये अफगानिस्तान दिखा दीजिये , पकिस्तान दिखा दीजिये , कश्मीर दिखा दीजिये , केरल या बंगाल दिखा दीजिये पर तथ्यों को मानने की जगह ये आपको डर फैलाने वाला,साम्प्रदायिक,फासिस्ट और तरह तरह के नामों से सम्बोधित करने लगेंगे। ये हर शख्स को इन नामों से सम्बोधित करंगे जो हिन्दुओं के आत्मरक्षा के पक्ष में बोलेगा। और इन सबके ऊपर तुर्रा ये कि दूसरे धर्मो की आक्रमकता को ये हिन्दुओं द्वारा किये जा रहे अत्याचारों का प्रतिउत्तर बताते हैं।
2) दूसरे धर्मो के अतातायियों की आक्रमकता को ये बहुत ही दयनीय तरीके से वंचित और पददलित अल्पसंख्यक द्वारा हालातों के कारण के रूप में पेश करते हैं ( गरीबी , भटके हुए नौजवान, बेरोज़गारी) जिन्हे हिन्दू समानता का हक़ नहीं देते जो संविधान ने उन्हें दे रखा है।
3) इसके बाद वे पाखंड का आवरण ओढ़ कर सारी नैतिक ज़िम्मेदारी हिन्दुओं के सर पर डाल देते है , कि हिन्दू जिन्होंने इन्हे विशेषाधिकारों से वंचित किया है उनके उत्थान के लिए कुछ नहीं करते। हिन्दुओं का क्या खो जायेगा यदि हिन्दू अपने इन छोटे भाइयों के प्रति ज़रा सा उदार रवैय्या अख्तियार कर लेंगे। बेशक छोटे भाइयों से गलतियां हो जातीं है तो उनको माफ़ करने से हिन्दुओं का क्या चला जायेगा।
4) इतने में भी अगर हिन्दू न माना तो ये उग्र भाषण देना शुरू कर देते हैं कि हिन्दुओं के लिए यदि वाकई कोई डरने वाली बात है तो वो बाहरी आक्रमणों ( अन्य सम्प्रदायों) से नहीं बल्कि उनसे है जिन्हे हिन्दू की व्यवस्था ने सदियों से प्रताड़ित किया था जिनके ऊपर सदियों से अत्याचार किये थे। इन कारणों से हिन्दुओं का वंचित वर्ग दूसरे धर्मों और सम्प्रदायों की तरफ आकर्षित जहाँ उन्हें सम्मान और समानता मिलती है। यहाँ पर भी आप यदि सदियों से हुए अत्याचारों को , और इस्लाम और ईसाईयत में तथाकथित तमाम समानताओं को अकाट्य तर्कों से ख़ारिज कर दें तो वे अगले ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल करते है।
5) इनका ब्रह्मास्त्र यह है कि ये एकदम से आध्यात्म का चोला ओढ़ लेते हैं और फिर भाषण शुरू होता है हिन्दुओं के चिरकालीन संस्कारों और धार्मिक सहिष्णुता के परम्परा की दुहाई का। ( गौर करें यहाँ पर जितना उन्होंने इससे पहले हिन्दुओं को आततायी और अमानवीय करार दिया था , वो सब कुछ भूल जाते हैं) आपसे पूछा जाता है कि बुद्ध और गाँधी के देश के लोग कैसे इस्लाम और ईसाइयत के स्तर पर उतर सकते हैं ??? हिन्दू , हिन्दू नहीं रह जायेंगे यदि वे भी अन्य धर्मो के स्तर पर उतर जायेंगे। वो कभी ईसाईयों और इस्लाम के मानने वालों को यही या ऐसी कोई हिदायत देने दम नहीं रखते क्योंकि उन्हें मालूम है कि उन्हें नसीहत देने का मतलब वैसे ही गलियां खाना है जैसे हिन्दुओं को या ईसाईयों / इस्लाम का विरोध करने वालों को दी जाती हैं। ऐसा करके वो अपनी धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील छवि को बट्टा नहीं लगाना चाहते जिसका आवरण वे हिन्दुओं को अपशब्दों से नवाज़ कर ओढ़े घूम रहे हैं।
किन लोगों में पाए जाते हैं उपरोक्त लक्षण ---- जो लोग मिशनरी / अंग्रेजी स्कूलों से पढ़ कर निकले हैं और अच्छे प्रतिष्ठानों में ठीक ठाक तनख्वाह पा रहे हैं या अपने व्यवसायों में लिप्त, अपने देश और धर्म से बिलकुल निर्लिप्त भारतीय इतिहास और संस्कारों से बिलकुल अनभिज्ञ हैं। इन्हें इससे कोई मतलब नहीं है कि गौमूत्र के अमरीका ने चार पेटेंट करवा लिए हैं लेकिन इनके लिए गौमांस पर प्रतिबन्ध इनकी खाने की स्वतन्त्रता और निजता पर हमला है।
इस बिमारी कानाम है #मैकॉलिस्म और यह सिर्फ #भारत_के_हिन्दुओं_में_ही_पायी_ जाती_है।
भारत में कांग्रेस और ईसाईयों का गठजोड़ समझने के लिए यदि मन करे तो नीचे वाला लिंक भी खोल कर पढ़ें।
क्रमशः --- भारत में आपकी नाक के नीचे क्या हो रहा है ?????
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें