गुरुवार, 20 सितंबर 2018

कौन लेगा सबक इतिहास से ???

आपको याद तो होगा ही कि याकूब मेमन और अफ़ज़ल गुरु की फांसी रुकवाने के लिए बहुत से #हिन्दू_मुस्लिम एकता के कर्णधारों ने अपने पिछवाड़े आसमान तक उठा दिए थे। बुरहान बानी और खालिद मियाँ को नायक कैसे बनाया गया यह सब भी आप लोगों ने देखा। ऐसा नहीं है कि कातिलों की फांसी रुकवाने की यह कोशिश पहली बार की गयी थी। ऐसी ही कोशिश 1935 के आस पास की गयी थी बस कोशिश करने वाले पात्र और उस समय दिए गए तर्क कुछ अलग थे। 
आज  ही तरह #हिन्दू_मुस्लिम एकता की मृगतृष्णा में 1916 के खिलाफत आंदोलन से एक शख्स (नाम आप जानते है) ने भागना शुरू किया और और आज भी बहुत  से लोग इस दिशा में बयान देते और शायद दौड़ते हुए नज़र आ रहे हैं। 
100 सालों में स्थितियों में क्या फ़र्क़ आया है इसका आँकलन आप लोग खुद कर लीजियेगा लेकिन 100 साल पहले भी परिस्थितियां कुछ ज्यादा भिन्न नहीं थीं और उस समय की परिस्थितयों  को बयान करते हुए डॉ अम्बेडकर लिखते हैं ----
"सबसे पहले स्वामी श्रद्धानन्द की 23 दिसम्बर 1926 को हत्या की गयी। उसके बाद लाला नानकचन्द जो कि दिल्ली के प्रसिद्द आर्यसमाजी थे उनकी हत्या की गयी। #रंगीला_रसूल के लेखक राजपाल का 6 अप्रैल 1929 को उस समय क़त्ल कर दिया गया जब वे अपनी दूकान पर बैठे थे। सितम्बर 1934 में अब्दुल कयूम ने नाथुरामल शर्मा की हत्या कर दी। यह एक बड़ा दुस्साहसिक कार्य था क्योंकि उस समय शर्मा सिंध के जुडिशियल कमिश्नर की अदालत में इस्लामिक इतिहास के बारे में एक पेम्फ्लेट प्रकाशित करने को लेकर भारतीय दंड संहिता की धारा 195 के अंतर्गत मिली सज़ा के विरुद्ध अपनी अपील की सुनवाई का इंतज़ार कर रहे थे। 
यहाँ एक बहुत छोटी सी सूची दी गयी है और इसे आसानी से और लम्बा किया जा सकता है परन्तु महत्त्व की बात यह नहीं है कि धर्मांध मुसलामानों द्वारा कितने प्रमुख हिन्दुओं की हत्या की गयी ? मूल प्रश्न है उन लोगों के दृष्टिकोण का जिन्होंने ये क़त्ल किये। जहाँ कानून लागु किये जा सके वहां हत्यारों को कानून के अनुसार सजा मिली , तथापि प्रमुख मुसलामानों ने इन अपराधियों की निंदा कभी नहीं की। इसके विपरीत उन्हें #गाज़ी बताकर उनका स्वागत किया गया उनके क्षमादान के लिए आंदोलन शुरू कर दिए गए । इस दृष्टिकोण का एक उदाहरण है लाहौर के बेरिस्टर मि बरकत अली का, जिसने अब्दुल कयूम की ओर से अपील दायर की। वह तो यहाँ तक कह गया कि कयूम नाथुरामल की हत्या का दोषी नहीं है क्योंकि कुरान के कानून के अनुसार यह न्यायोचित है। मुसलामानों का यह दृष्टिकोण तो समझ में आता है परन्तु जो बात समझ में नहीं आती , वह है गांधीजी का दृष्टिकोण। 
गांधीजी ने हिंसा की किसी भी घटना का कोई अवसर नहीं छोड़ा ,उन्होंने कांग्रेस को भी उसकी इच्छा के विपरीत हिंसा की घटनाओं की निंदा की लिए विवश किया। परन्तु इन हत्याओं पर गाँधी जी ने कभी विरोध प्रकट नहीं किया।मुसलामानों ने तो कभी इन जघन्य अपराधों की निंदा की ही नहीं। इसके अतिरिक्त गाँधी जी ने कभी मुसलामानों से इन हत्याओं की निंदा करने का आग्रह नहीं किया। उनके इस विषय में चुप्पी साधने के दृष्टिकोण की केवल यही व्याख्या की जा सकती है कि गाँधी जी ने हिन्दू मुस्लिम एकता बनाये रखने की खातिर कुछ हिन्दुओं की हत्या की कोई चिंता नहीं की बशर्ते हिन्दुओं के बलिदान से यह एकता बनी रहे।
मालाबार में मोपलाओं ने हिन्दुओं पर वर्णानातीत हृदयविदारक अत्याचार किये। समग्र दक्षिण भारत में प्रत्येक वर्ग के हिन्दुओं में इनसे भय की एक भयानक लहर दौड़ गयी और खिलाफत के कुछ पथभ्रष्ट नेताओं द्वारा मोपलाओं को मज़हब की खातिर की जाने वाली इस जंग के लिए बधाई दी गयी। इससे दक्षिण भारत के हिन्दू और उद्धेलित हो उठे। प्रत्येक व्यक्ति जानता था कि यह हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए ज़रुरत से ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी थी। किन्तु गाँधी जी हिन्दू मुस्लिम एकता की ज़रुरत के बारे में इतने ज्यादा सनकी हो चुके थे कि उन्होंने मोपलाओं के कारनामों और बधाई देने वाले खिलाफ़तवादियों को अनदेखा कर दिया। मोपलाओं के बारे में उन्होंने कहा कि मोपला भगवान् से डरने वाले बहादुर लोग हैं और वे उस बात के लिए लड़ रहे हैं जिसे वे धर्म समझते हैं, और उस तरीके से लड़ रहे हैं जिसे वे धार्मिक सझते हैं। _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _"
बताया गया है कि स्वामी श्रद्धानन्द के हत्यारे अब्दुल रशीद की आत्मा की शांति के लिए देवबंद के प्रसिद्द इस्लामी कॉलेज के विद्यार्थियों और प्रोफेसरों ने पांच बार कुरान का पूरा पाठ किया और प्रतिदिन कुरान की सवा लाख आयतों की तिलावल की गयी। उनकी प्रार्थना थी कि 'अल्लाह मियां ' मरहूम ( अर्थात अब्दुल रशीद) को आला -ए -उलियीन (सातवें बहिश्त) में स्थान दें। ( टाइम्स ऑफ़ इंडिया 30. 07.1927 , 'थ्रू इंडियन आईज' नाम के स्तम्भ से।)  
These were  Excerpts from -- "Pakistan or Partition of India" By Dr. B.R Ambedkar  
 ये अब्दुल रशीद के बारे पढ़ कर बुरहान बानी और याकूब मेमन के जनाजे याद आये आपको ??? बुरहान बानी का महिमामंडन याद आया आपको ??? अफ़ज़ल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिन्दा हैं , याद आया आपको ???_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_#_# 

क्या बदला 1920 के दशक की हत्यायों या 1921-22 के मोपला हत्याकाण्ड के बाद की और आज की सोच में ?? सिर्फ समय बदला है। मंच बदला है। वक्ता बदले हैं। पात्र बदले हैं। मगर कुरान जब से लिखी गयी है उसमे नुक्ता भर बदलाव नहीं हुआ है और कुरान को मानने वाले बखूबी जानते हैं कि बड़े बड़े मंचों से कोई कुछ भी कह ले उन्हें काफिरों के साथ वही करना है जो कुरान और हदीस के हिसाब से वो सदियों से करते आये हैं। मोपला के कत्लेआम से पहले 900 साल तक तक के कत्लेआम आप भूलना चाहते  हैं।  मोपला के बाद डायरेक्ट एक्शन डे , नोआखली , विभाजन के समय के कत्लेआम , 1990 में कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम, पश्चिमी बंगाल में 2015 में 16 दंगों और 2016 में 24 दंगे और सैंकड़ों  गांव के हिन्दुविहीन हो गए आप भूलना चाहते हैं। मर्जी आपकी है। 
 अब इतिहास से सबक लेना है या कुरान से यह समझने की ज़िम्मेदारी हिन्दुस्तान के काफिरों की है मुसलामानों की नहीं।   

शनिवार, 15 सितंबर 2018

हिन्दुओं की नियति

भारतीय इतिहास के पन्ने पलट रहा था खून खौल रहा था , शर्म आ रही थी , गर्व हो रहा था , दिल फट रहा था , रोना आ रहा था -- कि आदतन हाथ फोन / फेसबुक पर चला गया और सामने आया जॉन दयाल का वो वक्तव्य कि " मोदी को अगर कोई हरायेगा तो हिन्दू ही हरायेंगे।"बिलकुल गलत नहीं कहा जॉन दयाल ने। एक तो हम हिन्दू इतिहास पढ़ना नहीं चाहते। जो इतिहास हमें पढ़ाया जाता है वो वैसे भी विद्रूप कर दिया गया है। फिर विद्रूप इतिहास को भी न याद रखने की ज़ेहमत करते हैं और न ही उससे कोई सबक लेते हैं। और यह सबक न लेने की हमारी फितरत से वाकिफ हो कर ही जॉन दयाल ने कहा कि " हिन्दू ही मोदी को हरायेंगे।
पूरा इतिहास लिखना एक पोस्ट में न संभव है और न #हिन्दू उसे पूरा पढ़ना चाहेंगे।वर्तमान सामाजिक और राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में डॉ अम्बेडकर द्वारा रचित "पाकिस्तान और द पार्टीशन ऑफ़ इंडिया " (1940 )से दो पैराग्राफ यहाँ उद्धृत करने के पश्चात् कुछ वाक्यों में अपनी बात को विराम दूंगा।
1)पृष्ठ संख्या 75 --
" धर्मांतरण के लिए बाध्य करने हेतु अनेकानेक कठोर कदम उठाये गए थे। एक हृदयविदारक मामले का उल्लेख फ़िरोज़शाह के शासन काल (1351-1388) का है। दिल्ली के एक ब्राह्मण पर आरोप लगाया गया कि वो अपने घर में मूर्तियों की पूजा करते और मुस्लिम महिलाओं को काफिर बनाते उसको पकड़ा गया और उसका मामला न्यायधीशों , चिकित्सकों, बुजुर्गों और वकीलों के समक्ष पेश किया गया। उन्होंने उत्तर दिया कि कानून के प्रावधान सुस्पष्ट हैं। ब्राह्मण या तो मुसलमान बन जाये अथवा उसे जला दिया जाये। उसे सच्चे दीन से अवगत करा दिया गया और सही राह भी उसे दिखायी गयी परन्तु उसने मानने से इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप सुल्तान के आदेश से उसे जला दिया गया और टिप्पणीकार ने लिखा कि -- कानून और इन्साफ के प्रति सुलतान के गहन लगाव को देखो कि किस तरह से वह अपने आदेशों से तनिक भी नहीं डिगते। "
2) पृष्ठ 77 --
"हिन्दुओं पर कर (Tax) उनकी भूमि के उत्पादन में से आधा तक था और उन्हें अपनी सभी भैंसों, बकरियों और अन्य दुधारू पशुओं पर भी कर चुकाना पड़ता था। धनी और निर्धन सभी को प्रति एकड़ और प्रति पशु की दर से सामान रूप से कर चुकाना होता था। नए नियमों को कड़ाई से लागू किया जाता था। ऐसी व्यवस्था की गयी थी जिससे कि राजस्व अधिकारी बीस विशिष्ट हिन्दुओं को शिकंजे में कस कर उनपर घूंसों से प्रहार करें और वसूली कर सकें। किसी भी हिन्दू घर में सोना अथवा चांदी तो क्या सुपारी जिसे ख़ुशी के अवसर पर पेश किया जाता है तक भी दिखाई नहीं देती थी और इन असहाय बनाये गए देशज अधिकारीयों की पत्नियों को मुस्लिम परिवारों में नौकरी करके गुज़ारा करना पड़ता था। "
उस समय के इतिहासकार का कथन है कि -- सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने मुस्लिम क़ानून के अंतर्गत हिन्दुओं की स्थिति के बारे में जब क़ाज़ी से सवाल किया तो क़ाज़ी ने स्पष्ट करते हुए बताया --
" उन्हें ख़िराज (कर) अदा करने वाला कहा जाता है और जब राजस्व अधिकारी उनसे चांदी मांगे तो उन्हें बिना सवाल उठाये अति विनम्रता और आदर व्यक्त करते हुए सोना दे देना चाहिए। यदि अधिकारी उनके मुंह में मैला फेंके तो उन्हें निसंकोच अपना मुंह खोल कर उसे ले लेना चाहिए . . . . . । मुंह में मैला फेंके जाने और इस विनम्र अदायगी से धर्म की अपेक्षित अधीनता ही व्यक्त होती होती है। इस्लाम का गरिमा गान एक कर्तव्य और दीन के प्रति अनादर दम्भ है। खुदा उनसे नफ़रत करता है और उसका आदेश है कि उन्हें दासता में रखा जाये। हिन्दुओं को अपमानित करना खासतौर पर एक मज़हबी फ़र्ज़ है क्योंकि वे पैगम्बर के सर्वाधिक कट्टर दुश्मन हैं और क्योंकि पैगमबर ने हमें उनका कत्ल करने उन्हें लूटने और गुलाम बनाने का आदेश यह कहते हुए दिया है --उन्हें इस्लाम में दीक्षित करो अथवा मार डालो और उन्हें गुलाम बनाओ और उनकी धन सम्पदा नष्ट कर दो। किसी अन्य धर्माचार्य ने नहीं अपितु महान धर्माचार्य (हनीफ) जिसकी राह के हम अनुगामी हैं हिन्दुओं पर जजिया लगाए जाने की इज़ाज़त दी है अन्य पंथों के धर्माचार्य भी किसी अन्य विकल्प की नहीं अपितु "मौत या इस्लाम " की ही अनुमति देते हैं।"
मुहम्मद गज़नी के आने और अहमद शाह अब्दाली की वापसी के बीच जो 762 वर्षों की अवधि रही उसकी यही कहानी है।
ये उद्धरण दिए थे डा आंबेडकर ने 1940 में।
हिन्दू क्यों लुटे, क्यों पिटे, क्यों गुलाम हुए उसके बहुत से कारण हैं। जिसमे से एक कारण है कि हिन्दू कभी एक नहीं हुए।
आज मोदी जी की नियत क्या है मुझे नहीं मालूम , लेकिन हिन्दुओं की नियति क्या है जॉन दयाल ने उसका पर्दा उठा दिया है। उन हिन्दुओं से 700 साल पुराने इतिहास और पूर्वजों द्वारा सही गयी यंत्रणाओं को याद रखने की उम्मीद क्या करें जिन्हे यह याद नहीं कि देश को धर्म के नाम पर बंटवाने वाली कांग्रेस और नेहरू/गाँधी परिवार था। जिन्हे यह नहीं याद कि अगस्त 1947 तक जो मुसलमान धर्म के नाम पर अलग देश मांग रहे थे उन्हें इसी देश में रोकने वाले ये नेहरू गाँधी और कांग्रेस वाले ही थे। जिन्हे यह नहीं याद की एक देश में दो संविधान दो झण्डे दो वजीरेआजम यहाँ तक कि कश्मीर में जाने के लिए वीसा का नियम भी कांग्रेस की ही देन था। समानता की बात करने वाले संविधान में आरक्षण की अवधि को दस साल से बेमियादी करने वाली भी कांग्रेस ही है। जब धर्म के नाम पर देश बंट ही गया था तो संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द 1975 में घुसेड़ने वाली कांग्रेस ही थी। वो कांग्रेस ही है जिसकी शह पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बना और आज भारत में अपनी शर्तों पर संविधान को दरकिनार करके शरिया अदालतें चला रहा है। ये कांग्रेस की ही देन थी कि एक समय पर पंजाब जला और कश्मीर और दार्जिलिंग आज तक जल रहा है।बांग्लादेशियों और रोहंगिया को भारत में बसाने वाली भी कांग्रेस ही है। यह कांग्रेस की ही देन है कि जिन उत्तर पूर्वी राज्यों में ईसाई कभी 1-2% हुआ करते थे आज 70% से अधिक हैं। आज एस सी एक्ट के लिए छाती पीटने वालो ये भी कांग्रेस का दिया हुआ है और इसके बाप कम्युनल वायलेंस बिल भी कांग्रेस ही ला रही थी।
मालूम है न कम्युनल वायलेंस बिल का मसौदा - - किसी भी दंगे के लिए जिम्मेदार कोई भी होता लेकिन गिरफ्तार सिर्फ हिन्दुओं को ही होना था।
ये जो बात बात में अख़लाक़, आसिफा, गौरी ,वेमुला के मुद्दों से दुनिया हिलाने लगते हैं , इन वामपंथियों को भी कांग्रेस ने ही दूध पिला पिला कर इतना बड़ा किया है।
सब कुछ छोड़ो गौहत्या और राम जन्मभूमि का इतिहास पढ़ लो, ये भी कांग्रेस के ही दिए हुए नासूर हैं जिनसे आज आपका खून रिस रहा है।
मैंने गलत कहा कि उपरोक्त घटनाओं के लिए कांग्रेस ज़िम्मेदार है। इसके लिए हम हिन्दू ज़िम्मेदार हैं जिनके पूर्वजों ने 60 साल तक अपनी खाल नोचने का निर्बाध लाइसेंस कांग्रेस को दिया। और बहुत कुछ आज के वो कूल ड्यूड जिम्मेदार हैं जिन्हे धर्म से कोई मतलब नहीं और वो 4 साल के फेसबूकिया मठाधीश ज़िम्मेदार हैं जो 1000-500 लाइक क्या पाने लग गए अपने ही मंदिरों और पुजारियों पर उंगलियां उठाने लग गए। भूल रहे हैं वो कि तुम कल उस बैलगाड़ी के नीचे आ कर जिसे खींचने की ग़लतफहमी पाल रहे हो उसे उन पुजारियों के पूर्वजों ने सदियों तक अपने बदन जला कर तमाम यंत्रणायें सह कर यहाँ तक पहुँचाया है।
कुछ नहीं हो सकता तीतर बटेर की तरह अलग अलग दिशा में उड़ने वाले हिन्दुओं का। जॉन दयाल ने आधी बात कही है , पूरी मैं कर देता हूँ ---- हिन्दू ही मोदी को हरायेंगे और गुलामी इनकी फितरत में है ये उससे बाज नहीं आएंगे।
इतिहास पढ़ कर खून खौल रहा है , शर्म आ रही है गर्व हो रहा। गर्व इसलिए कि हमारे पूर्वजों ने सब कष्ट सहे लेकिन अपना धर्म नहीं छोड़ा। दुःख इसलिए हो रहा है कि हमने इतिहास से सबक न लेने की कसम खा रखी है।