#ईसाईयों और #कसाइयों की सिर्फ #कार्यशैली में ही #फ़र्क़ है ------------सोच एक ही है। #भाग 1
देखने में सुन्दर और सौम्य बत्तखों के विषय में कितने लोगों को मालूम है कि यदि वे झुण्ड में हों तो वे एक कुत्ते से ज्यादा खतरनाक और अच्छी चौकीदार होती हैं। और कितना मनोरम दृश्य होता है जब कुछ सफ़ेद बत्तखें पानी के ऊपर बहुत शांत भाव से तैरती हुई चली जाती हैं, देखने वाला कोई भी शख्स पानी के नीचे नहीं देख पाता कि बतख के पैर कितनी तेज हलचल कर रहे होते हैं। कोई नहीं जान पाता कि उन मनोहारी बत्तखों ने कितनी मछलियों का जीवन अशांत कर दिया।
मेरी बात नहीं समझ आई होगी। समझने के लिए, नीचे दिए गए लिंक पर एक बार क्लिक कीजिये।
समझ आया कुछ ??? नहीं आया ??? चलिए ऊपर के लिंक और भूमिका को बाइबिल निम्न कथन से जोड़ कर देखिये -------
"लोगों को देख कर ईसा को उन पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ो की तरह थके मांदे पड़े हुए थे। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा , "फसल तो बहुत है , परन्तु मज़दूर थोड़े हैं। इसलिए फसल के स्वामी से कहो कि वह अपनी फसल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे। ---( बाइबिल , Mathews 9 ,कथन 36-38 )
तब ईसा ने उनके पास आ कर कहा, "मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है। इसलिए तुम लोग सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता,पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो। मैंने तुम्हे जो -जो आदेश दिए हैं, तुम लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ और और याद रखो -मैं संसार के अंत तक तुम्हारे साथ हूँ। ------( बाइबिल , Mathews 28 ,कथन 18-20 )
"अतः इनकार करने वालो (काफिरों) की बात न मानना और इस (कुरआन) के द्वारा उनसे जिहाद करो, बड़ा जिहाद। (कुरआन --सूरा 25;52)
कुरआन की आयत मैंने यहाँ पर दो मज़हबों की सोच के बीच समानता दिखने भर के लिए लिखी है , चूँकि "शांति प्रिय" इस्लाम के विषय मैं अब अधिकतर लोगों को मालूम पड़ चुका है इसलिए आज चर्चा सिर्फ और सिर्फ शांत और सौम्य दिखने वाली लेकिन अत्यंत खतरनाक सफ़ेद बत्तखों पर करेंगे , जिनकी कार्यप्रणाली इतनी गोपनीय और शातिर है की आम भारतीय हिन्दू को पता ही नहीं कि उनकी पाँव के नीचे से ज़मीन खींची चली जा रही है और वो व्यस्त है दुनिया को अपना धर्मनिरपेक्ष मुखौटा दिखाने की होड़ में अपने उन हिन्दू भाईयों को साम्प्रदायिक ठहराने में, जो इन हक़ीक़तों से वाकिफ हो कर इन तथाकथित शांतिप्रिय मज़हबों की गतिविधियों के खिलाफ आवाज़ उठाने की चेष्टा करते है।
ईसाई मिशनरी समाज सेवा की आड़ में कितने व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध तरीके से काम कर रहे है, उस एक एक कदम की विवेचना आगे करेंगे , लेकिन कैसे कर रहे है, उसके लिए यह तथ्य जानना नितांत आवश्यक है कि,भारत में प्रतिवर्ष 10000 करोड़ रुपये इन मिशनरीज को विदेश एवं "मिनिस्ट्री ऑफ़ चर्चेस"-- अमरीका से अपनी गतिविधियों के सञ्चालन के लिए दिया जाता है। वर्ष 1990 में ही "मिनिस्ट्री ऑफ़ चर्चेस"-- अमरीका ने विश्व में मिशनरी गतिविधियों के लिए 1.45 बिलियन डॉलर्स का बजट रखा था। अब कितना है यह आंकड़ा मैं ढूंढ नहीं पाया।
सबको कलकत्ता का नन बलात्कार का किस्सा, दिल्ली, बंगलुरु और आगरा के हालिया चर्चों को तोड़ने के किस्से याद होंगे। सभी समाचार पत्रों और टीवी चैनलों ने बहुत प्रमुखता के साथ हिन्दू संगठनो को ज़िम्मेदार ठहरा दिया था। लेकिन बाद की विवेचना में क्या निकला ????? बहुत कम ने आपको बताया कि इन मामलों में या तो शांति दूत लिप्त थे या स्थानीय रंजिश या विश्व में हिन्दू समुदाय को मलिन करने की वजह से इनके मज़हब के खुद के लोगों ने ये तोड़ फोड़ की थी।
और पीछे चलते हैं, चाहें मध्यप्रदेश के झाबुआ का केस हो, हरियाणा का झज्झर का केस हो, चाहे इलाहबाद के Dr.Jhon Sylvestor का केस हो ,चाहे ओडिशा के बारीपाडा में नन के बलात्कार का केस हो , चाहे ओडिशा के ही जंगलों में एक लड़के और लड़की की हत्या का केस हो , अनगिनत केस यहाँ पर बताये जा सकते हैं जहाँ मीडिया ने विशेषकर अंग्रेजी मीडिया ने इन सब घटनाओ को साम्प्रदायिक रंग दे कर इन सब घटनाओं के लिए हिन्दुओं को ज़िम्मेदार ठहराया था। अल्पसंख्यक आयोग ने भी बिना निष्पक्ष जांच के हिन्दू संगठनों को इस सब घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार ठहरा दिया था।
परन्तु इन सब घटनाओं की जांच के लिए गठित आयोगों की रिपोर्ट को किसी ने नहीं दिखाया , जिनमे हर जगह ईसाई समुदाय के लोग ही इन कृत्यों में शामिल पाये गए।
इन सब घटनाओं में एक घटना जिसने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं वो थी , 22/01/1998 को ओडिशा में मनोहरपुर के ग्राहम स्टेन और उसके बच्चों के "दारा सिंह" द्वारा कत्ल की। यही जानते हैं न सब, कि दारा सिंह जो कि बजरंग दाल का सदस्य था , ने कुष्ठ रोग निवारण के लिए कार्य करने वाले "ग्राहम स्टेन" को सिर्फ इस लिए मार दिया क्योंकि वो एक ईसाई था। और भारत के सब हिन्दू अंत समय तक यही मानेंगे भी , क्योंकि न तो ईसाई मिशनरी और मीडिया हिन्दुओं के खिलाफ दुष्प्रचार बंद करेगा और न ही कोई भी इस केस की जांच करने वाले "Wadhwa Commission" की जुलाई 1999 में प्रस्तुत रिपोर्ट को दिखायेगा , और न ही कोई भी हिन्दू यह जानने की कोशिश करता है कि आखिर दारा सिंह ने "स्टेन" को क्यों मारा।
अधिकाँश मीडिया ने और अल्संख्यक आयोग ने स्तही जानकारी के आधार पर सबको यह बता दिया , कि गत 10 वर्षों में स्टेन किसी तरह से ईसाई धर्म के प्रचार और प्रसार में लिप्त नहीं था और वह शुद्ध रूप से समाजोत्थान का कार्य कर रहा था। इसके बिलकुल विपरीत जस्टिस वाधवा कमीशन की रिपोर्ट जो कि ईसाइयों, सेकुलरों और मीडिया को इसलिए हजम नहीं हुई, क्योंकि उस रिपोर्ट ने स्टेन की गतिविधियों का पूरा का पूरा काला चिटठा खोल कर रख दिया। जस्टिस वाधवा कमीशन की ,दारा सिंह और स्टेन की पूरी रिपोर्ट लिखने से यह पोस्ट बहुत बहुत लम्बी हो जाएगी , इस लिए बहुत संक्षेप में उसका सार लिख रहा हूँ और जो इस विषय में अधिक जानकारी चाहते हैं उनके लिए लिंक और पुस्तकों के नाम साथ में दे रहा हूँ।
वाधवा कमीशन को स्टेन के साथियों ने बताया कि ,स्टेन धर्म प्रचार के लिए "जंगल कैम्प्स " और "बाइबिल क्लासेज " लगाया करता था। यहाँ तक तो ठीक है , लेकिन स्टेन के ताबूत में कीलें उसके द्वारा ऑस्ट्रेलिए की एक मिशनरी मैगज़ीन " TIDINGS " के लिए लिखे लेखों ने लगाई जिनमे से दो तीन का ज़िक्र यहाँ कर रहा हूँ ----
( Gladys Staines, is the wife of Graham, working in tendom with him)
1) Graham and Gladys staines, Mayurbhanj , 25 April,1997 : The first jungle camp in Ramchandrapur was fruitful time and the Spirit of God worked among people. About 100 attaended and some were baptized at the camp.At present Misayel and some of the church leaders are touring a number of places where people are asking for baptism.Five were baptizedat Bigonbadi. Pray to the Etani Trust in which mission properties are vested.
2) Graham and Gladys satines , Mayurbhanj,23 July 1997: Praise God for answered prayers in the recent Jagannath car festival at baripada. A good team of preachers came from village churches and four OM workers helped in the second part of the festival.there were record book sales, so a lot of literature has gone into the people's hands.....( Incidentally, OM is a carefully chosen acronym: the organisaton it signifies is actually one of the largest publishers and distributors of missionary literature, and has its offices in Carlisle, Cumbria, United Kingdom)
अपनी हत्या से पहले 1998 तक ग्राहम और उसकी पत्नी धर्म परिवर्तन की गतिविधियों में लिप्त रहे और इसी तरह की रिपोर्ट Tidings को भेजते रहे , जिनमे से दो के उदाहरण मैंने आपके सामने रखे हैं।
ग्राहम हत्याकांड की जो FIR मनोहरपुर चर्च के पादरी ने लिखवाई, उसमे उसने कहा कि हमलावर "जय बजरंग दल" के नारे लगा रहे थे। जबकि अनेकों अनेक ईसाई चश्मदीद गवाहों ने कहा कि हमलावर "जय बजरंग बली " के नारे लगा रहे थे। उसने कहा कि चर्च को आग लगा दी गयी थी , जबकि वस्तुस्थिति यह थी की चर्च को बिलकुल नुक्सान नहीं हुआ था। वाधवा कमीशन और चश्मदीद गवाहों के सामने ही पादरी ने FIR में लिखवाई हुई घटनाओं को अस्वीकार ( अपनाने से मना ) कर दिया। और इस तरह वाधवा कमीशन ने टिप्पणी की " प्रथम दृष्टया रिपोर्ट से खुद इसे लिखवाने वाले ने अपनाने से इंकार कर दिया है तथा में मिलावट की गयी है।
हिन्दू मानसिकता के दिवालियेपन की पराकाष्ठा देखिये कि बी. बी पांडा , DG पुलिस Odissa के वाधवा कमीशन के सामने बयान के अनुसार दक्षिण भारत से प्रकाशित The Indian Express , ने 25 जनवरी 1999 को एक खबर प्रकाशित की --- 50 से ज्यादा बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद के से सम्बद्ध लोगों ने हमला किया था। रिपोर्ट के आधार पर हमने 47 को गिरफ्तार कर लिया है। जबकि राज्य सरकार ने दिल्ली कांग्रेस में बैठे हुए अपने आकाओं को दिखाने के लिए 51 उन बेगुनाह व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया जिनका इस घटना से दूर दराज़ तक कोई सम्बन्ध नहीं था। यह बात अलग है कि क्राइम ब्रांच की जांच की जांच के बाद महीनों के बेवजह जेल भुगतने के बाद उन्हें छोड़ा गया।
जस्टिस वाधवा ने अपनी रिपोर्ट में माना है कि "दारा सिंह" इस घटना का मुख्य अभियुक्त है , लेकिन .............
लेकिन दारा सिंह ने ऐसा क्यों किया , यह जानने के लिए दारा सिंह की मानसिकता और चरित्र को समझना बहुत ज़रूरी है। वाधवा कमीशन के समक्ष दसियों गवाहों ने बयान दिया कि उत्तर प्रदेश के इटावा जिले का रहने वाला दारा सिंह , बहुत शिद्दत से कसाइयों के हाथों से काटने के लिए ले जा रही गायों को छुड़वाने के लिए जाना जाता था। यह काम वो उस राज्य में करता था जहाँ "पशुओं के विरुद्ध क्रूरता " के लिए क़ानून बना हुआ है। अपने इस कृत्य के कारण उसकी छवि मुस्लिम विरोधी थी और जानवरों की तस्करी करने वालों ने उसके खिलाफ दसियों केस ठोंक रखे थे।
गवाह नंबर 29 के अनुसार , जिसे दारा सिंह ने मोहनपुर अपने साथ चलने के लिए कहा था , दारा सिंह गांव में बहुत लोकप्रिय व्यक्ति था , क्योंकि वो कसाइयों से जबरदस्ती गायें छुड़वा कर गाँव वालों में बाँट देता था ……………
और अल्पसंख्यक आयोग और विभिन्न मीडिया की रिपोर्टिंग कि " ईसाई मिशनरीज की गतिविधियों की वजह से क्षेत्र में कोई तनाव नहीं था को झुठलाते हुए गवाही आई, मुख्य गवाह "दीपू दास " की जो कि दारा सिंह का बहुत करीबी था कि ----गयालमुंडा और भालूघेरा के युवकों ने उससे (दारा सिंह से) अगस्त 1998 में बहुत रोष के साथ संपर्क किया कि " ईसाईयों को रोको जो हिन्दुओं का ईसाईयत में धर्मांतरण कर रहे हैं।
और दारा सिंह, ओडिसा के भोले भाले आदिवासियों को गायों की तरह कसाइयों के हाथों से बचाना चाहता था।
मेरा अपना मानना है कि मीडिया के ज़ोरदार दुष्प्रचार और सरकारी तंत्र के भय के चलते शायद किसी हिन्दू संगठन ने दारा सिंह को नहीं अपनाया , और हिंदुत्व के लिए लड़ने वाला आज जेल से लड़ाई अकेला लड़ रहा है।
For more details and immaculate piece of research, Read ---- "Harvesting Our Souls" and "The Missionaries In India" , By ARUN SHOURIE
क्रमशः -----
( यह लेख मात्र भूमिका है,मित्रों से निवेदन है कि विषय की गंभीरता को समझने के लिए समय निकाल कर इस श्रृंखला के अगले भाग अवश्य पढ़ें ------ और हिंदुत्व के नाम पर उन सेकुलरों को अवश्य टैग करके के पढ़वाएं, जिन्हे यह आभास कत्तई नहीं हो रहा कि उनके पैरों के नीचे से ज़मीन धीरे धीरे खिसक रही है और वे हिन्दुओं को साम्प्रदायिक घोषित करने में व्यस्त हैं। )