मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

25 दिसंबर ही क्यों ????

खुशियाँ मानाने के कोई भी बहाने हो सकते हैं। अपने प्रिय का या अपने अराध्य का जन्म दिन तो फिर एक खास वजह बनता है सबके साथ खुशियां मनाने का। और अगर जन्मदिन की तारिख न मालूम हो तो फिर तो 365 दिनों में से कोई भी दिन तय करके जन्मदिन मना लिया जाये,कोई हर्ज़ थोड़े ही है। 
यही हो रहा है विश्व भर में ,जब 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म दिन मनाया जाता है। पोप बेनेडिक्ट ने नवम्बर 2012 में अपनी पुस्तक ---  "Jesus Of Nazreth: The Infancy Narratives" के तीसरे संस्करण में यह माना कि ईसा मसीह 25 दिसंबर को पैदा नहीं हुए थे।  ऐसा नहीं है कि यह बात पहली बार कही गयी या कोई नया खुलासा था  इससे पहले भी बहुत लोग ईसाई धर्म के प्रवर्तक की जन्मतारीख पर प्रश्न चिन्ह लगा चुके है। सबके अपने अपने मत है। जैसे कि जो बाइबिल को आधार मान कर 25 दिसम्बर को गलत ठहराते हैं , उनके हिसाब से बाइबिल के अध्याय लूकस 1:13 में जिब्राइल ने एक बहुत बूढे पुजारी ज़केरियस को पूजा के बाद आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी पत्नी एलिज़ाबेथ को एक पुत्र प्राप्त होगा। इतिहासकारों के अनुसार ज़केरियस  की पूजा करने की तिथियाँ जून 13-19 थीं। ( उस समय पूजा करने के लिए ,मन्दिर में पुजारियों की महीनों में पाली लगा करती थी) (The Companion Bible -1974, Appendix 179, p. 200)। इतिहासकारों के अनुसार एलिज़ाबेथ ने यदि जून के अन्त तक गर्भाधान किया तो उनके पुत्र का जन्म मार्च में हुआ। इसी के आगे बाइबिल कहती है कि जब एलिज़ाबेथ 6 महीने की गर्भवती थी तब जिब्राइल ने मरियम को भी आशीर्वाद दिया कि उस कुवाँरी को पुत्र पैदा होगा (लूकस 1:26) । इस हिसाब से ईसा का जन्म सितम्बर में होना चाहिए। 
बाइबिल में ही दो अन्य विरोधाभासी तथ्य कहे गए हैं ---
1) ईसा के जन्म के समय गड़रिये रात में खेतों में खुले में भेड़ों पर निगरानी कर रहे थे (लूकस 2:8
2)और उस समय राजा कैसर अगस्तस ने समस्त जगत की जनगणना की राजाज्ञा निकली थी (लूकस 2:1) --- 
ये दोनों घटनाएँ ,बेथलहम की भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से दिसंबर में सम्भव नहीं हैं क्योंकि वहां पर दिसम्बर माह में बहुत अधिक ठण्ड पड़ती है, इसलिए ऐसे में न तो गड़रिये रात में खुले आसमान के नीचे रह सकते थे और न ही ऐसे मौसम में जनगणना ही संभव थी।  
बाइबिल के अतिरिक्त पहली और दूसरी शताब्दी के ईसाई लेखकों इरेनॉएस (c. 130–200) या तेरतुल्लियन  (c. 160–225) ने भी जन्मतिथि का कोई उल्लेख नहीं किया। बल्कि अलेक्सेंडरिआ के ओरिजन  (c. 165–264) ने तो रोम के लोगों का जन्म दिन मनाने पर मूर्तिपूजक कह कर मज़ाक तक उड़ाया था। इतिहासकारों का मानना है कि यहाँ तक ईसा मसीह का जन्मदिन नहीं मनाया जाता था।  लगभग वर्ष 200 C.E में  Clement of Alexandria के अनुसार बहुत से ईसाई समूहों ने जन्म तिथियाँ  निर्धारित कीं लेकिन 25 दिसम्बर किसी ने भी निर्धारित नहीं की थी। 
Clement के अनुसार बहुत से लोगों जन्मवर्ष के साथ जन्मतिथि का निर्धारण किया। उसके अनुसार राजा ऑगस्टस के 28 वें वर्ष के 25 वें दिन मिस्र के Pachon महीने में ( वर्तमान में प्रचलित केलिन्डर के अनुसार 20 मई ) को ईसा का जन्म हुआ था। अन्य कुछ का मत है मिस्र के Phamenoth महीने के 25 वें दिन (यानि कि 21 मार्च), कुछ अन्य का मानना है कि Pharmuthi के 19 वें दिन (यानि कि 15 अप्रैल ) कुछ और कहते हैं कि उनका जन्म Pharmuthi महीने के  24वें  या 25 वें दिन हुआ था (यानि कि 20 या 21 अप्रैल )  … 
चौथी शताब्दी आते आते 25 दिसंबर और 6 जनवरी दो मान्य तिथियाँ रह गयीं। रोम के पश्चिम के देश 25 दिसम्बर को जन्म दिन मानते थे और रोम के पूर्व के देश 6 जनवरी को जन्मदिन मानते थे। आधुनिक आर्मेनियन चर्च अभी भी 6 जनवरी को जन्मदिन मनाता है। 
एक मत यह भी है कि शीतकालीन अयनांत (Winter Solstice -- 21 दिसम्बर -- जब सूर्य दक्षिण अयनांश के चरमोत्कर्ष पर होता है और यह वर्ष का सबसे छोटा दिन होता है ) के अगले दिन संसार में प्रकाश फ़ैलाने के लिए ईसा ने जन्म लिया।  लेकिन गणना करने वालों से यहाँ भी चूक हुई और उन्होंने 21 दिसंबर की जगह 25 दिसम्बर को शीतकालीन अयनांत (Winter Solstice) की गणना कर डाली। 
कहते हैं कि Constantine ने 336 AD में पहली बार, फिर Liberius ने 354 AD में 25 दिसम्बर को ईसा का जन्मदिन घोषित किया था। 
25 दिसंबर ही क्यों ????

दरअसल ईसाई धर्म के रोम में फैलने से पहले रोम के लोग दिसंबर के अंत में Saturnalia त्यौहार (सूर्य का जन्मदिवस ) मनाया करते थे , तथा रोम के आस पास के लोग इस समय छुट्टियां मनाते थे।  इन सबके ऊपर ईस्वी 274 में रोम के राजा ने 25 दिसम्बर को "अविजित सूर्य"(Sol Invictus)  के जन्मदिवस में एक भोज का कार्यक्रम शुरू किया। तर्क ऐसा जाता है कि मूर्तिपूजकों की इसी तारिख से ईसा का जन्म दिवस मनाया जाना लगा। इस मत के अनुसार ईसाईयों ने बुतपरस्तों के बीच ईसाइयत को फ़ैलाने के लिए जानबूझ कर इन तिथियों को चुना था। यदि क्रिसमस मूर्तिपूजकों की छुट्टियों  में घुलमिल जाती है तो ज्यादा मूर्तीपूजक इन्ही छुट्टियों में ईसा को भी पूजने लगेंगे।  
सही है तोला भर श्रद्धा ,मन भर तर्कों पर भारी होती है। 
दिन और तारिख कोई भी हो, आप भी खुशियाँ  मनाईये लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि मैं पश्चिमी देशों के उन शोधकर्त्ताओं का क्या करूँ जो यह कह रहे हैं कि ईसा मसीह नाम के पैगम्बर कभी हुए ही नहीं।  

शनिवार, 5 दिसंबर 2015

एक बाबरी मस्जिद ही नहीं तोड़ी थी।

#वो तस्वीरें जो सऊदी अरब कभी दुनिया को दिखाना नहीं चाहेगा और वो प्रमाण कि मक्का  मे इस्लाम की सबसे प्राचीन और पवित्र अवशेष नष्ट दिए गए है।  
http://www.independent.co.uk/news/world/middle-east/the-photos-saudi-arabia-doesnt-want-seen--and-proof-islams-most-holy-relics-are-being-demolished-in-mecca-8536968.html   
 लेकिन भारत एक ऐसा देश है जहाँ के एक गुमनाम गांव कादलपुर में गैर कानूनी मस्जिद तोड़ने पर एक IAS ( दुर्गा शक्ति नागपाल ) को 40 मिनट में निलंबित किया जा सकता है,सोचने वाली बात है कि  उस देश में वर्तमान मुसलमानों की परदादियों के बलात्कारी के द्वारा बनवायी गयी मस्जिद को तोड़ने की हिम्मत कैसे की गयी। 
6 दिसम्बर को बाबरी मस्जिद तोड़ कर हिन्दुओं ने भीम राव आंबेडकर को उनके निर्वाण दिवस पर अनजाने में जो शानदार श्रद्धांजलि दी, अम्बेडकरजी के अनुयायी इतिहास में उसकी दूसरी नज़ीर पेश नहीं कर पाएंगे। लेकिन "जय भीम" के  साथ "जय मीम" के नारे को बुलन्द करने वाले नवबौद्धों और आंबेडकर जी के अनुयायियों ने अम्बेडकर जी का नाम मिट्टी में मिला दिया।     

 जिन "भीम राव अम्बेडकर" के नाम पर ओवैसी, नवबौद्धों और सनातन धर्म के एक विशेष वर्ग को अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रहा है, और जो "जय भीम" कहने वाले  ओवैसी की कमर के नीचे की मूंछों में लटक रहे हैं, मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ , न उन्होंने कभी भारत का इतिहास पढ़ा और न कभी भीम राव आंबेडकर के मुसलमानों द्वारा मंदिर तोड़ने वाले वक्तव्यों को, न अम्बेडकर जी इस्लाम और मुसलामानों के विषय में यथार्थ व्यक्त करते बयानों को।  
आज बहुत से लोग एक बाबरी मस्जिद के टूटने पर शौर्य दिवस मना रहे हैं, कुछ कुंठित मानसिकता के विदेशी टुकड़ों पर पलने वाले नवबौद्ध एक नया शगूफा छोड़ रहे हैं कि बाबा साहिब के निर्वाण दिवस को लोग शौर्य दिवस के रूप में मना कर बाबा साहिब का अपमान कर रहे है और बहुत से लोग वोट की खातिर या अपनी  वृहद मानसिकता दिखाने के लिए शर्म से सिर झुकाये बैठे हैं , कि एक मज़हबी लुटेरे द्वारा मंदिर के ऊपर बनायीं गयी एक मस्जिद तोड़ दी गयी। चुल्लू भर पानी में डूब मारना चाहिए बाद वाली दोनों श्रेणियों के लोगों को।  इतिहास के पन्ने पलटिये, मुस्लिम आक्रान्ताओं ने बीस हज़ार से ज्यादा मंदिर तोड़ कर उनके ऊपर मस्जिदें बनायीं थीं। उन ख़ास खास मस्जिदों का ज़िक्र आगे करूँगा , जो आज भी वजूद में हैं और जिनकी नींव में मंदिरों की शिलाएं और मूर्तियां दबीं है , लेकिन पहले उन नवबौद्धों को जो ओवैसी को अपना दोस्त मान बैठे हैं, भीम राव आंबेडकर जी के वक्तव्य से वाकिफ करवा दिया जाये कि इन लुटेरों द्वारा मंदिरों के तोड़ने पर  "The decline and fall of Buddhism," Dr. Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches, Vol. III, Government of Maharashtr­a. 1987, p. 229-38 में भीमराव अम्बेडकर कहते है ------
" इसमें कोई शक नहीं कि भारत में बौद्ध धर्म का पतन मुस्लिम आक्रमणकारियों के कारण हुआ। इस्लाम "बुत" का दुश्मन बन कर आया।  बुत शब्द जैसा की सब जानते हैं, अरबी भाषा में मूर्ती को कहते हैं"। जैसा कि शब्द की उत्पत्ति से जाहिर है कि मुस्लिमों के दिमाग में मूर्तिपूजा बौद्धधर्म के साथ जोड़ कर देखी गयी। मूर्तियों को तोड़ने का लक्ष्य, बौद्धधर्म को नष्ट करने का लक्ष्य हो गया। मुस्लिमों ने बौद्ध धर्म का सिर्फ भारत में ही नाश नहीं किया पर जहाँ जहाँ वे गए उन्होंने बौद्ध धर्म मिटा दिया। इस्लाम के आने से पहले , बौद्ध धर्म बैक्ट्रिया, पार्थिया ,अफगानिस्तान,गांधार , चीन तुर्किस्तान और सम्पूर्ण एशिया का धर्म हुआ करता था। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नालन्दा, विक्रमशिला , जगदाला ओदन्तपुरी जैसे अनेकों विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया। बौद्ध विहार जो कि पूरे देश में हर जगह थे को , इन मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मिट्टी में मिला दिया। हजारों की संख्या में बौद्ध भिक्षु नेपाल, तिब्बत और देश के बाहर भाग गए। बहुत बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षु मुस्लिम सेनापतियों द्वारा मरे गए। बौद्ध पुरोहिताई मुस्लिम आक्रमणकारियों की तलवार की धार से कैसे नष्ट की गयी , इसका ज़िक्र तो खुद मुस्लिम इतिहासकार करते हैं। " बौद्ध भिक्षुओं के मुसलामानों द्वारा 1197 AD  में बिहार पर आक्रमण के दौरान कत्लेआम पर एकत्रित प्रमाणों का सारांश निकलते हुए विन्सेंट स्मिथ कहता है कि ......... बहुत बड़ी मात्रा में लूटपाट करने के बाद मुंडे हुए सिर वाले ब्रह्मणों यानि की बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम इतना सम्पूर्ण था कि जब विजेता ने विहारों के पुस्तकालयों में मौजूद क़िताबों को समझना चाहा तो एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जो उन्हें पढ़ सकता था।   ....... ..... कुल्हाड़ी बिलकुल जड़ पर मारी गयी थी। बौद्ध भिक्षु मारने के फेर में इस्लाम ने बौद्ध धर्म ही ख़त्म कर दिया। भारत में बुद्ध धर्म पर आई हुई यह सबसे बड़ी विपदा थी । ( पृष्ठ 229 -238 )  
अगर इतने से तस्सल्ली नहीं हुई तो -----  Pakistan or The Partition of India’ by B.R. Ambedkar, 3rd edition, 1946: BAWS Vol. 8, 1990, Govt. of Maharashtra publication; previous name of the book: Thoughts on Pakistan ---- का पृष्ठ 301 पढ़िये। "मुस्लिमों के लिए , एक हिन्दू ( और कोई भी गैर मुस्लिम) काफिर है।  एक  काफिर (इस्लाम में विश्वास न रखने वाला ) इज़्ज़त करने लायक नहीं है।  काफिर अकुलीन होते  हैं  और उनकी कोई हैसियत नहीं होती। इसीलिए एक काफिर द्वारा शासित देश मुसलमान के लिए " दार उल हर्ब " ( यानि कि युद्ध का देश) होता है ,जिसे मुसलमानों द्वारा हर हाल में , किसी भी तरह जीत कर "दारुलइस्लाम "( यानि कि सिर्फ मुस्लमानों की ज़मीन ) में तब्दील करना होता है। इसे देखते हुए इसे प्रमाणित करने के लिए किसी और प्रमाण की आवश्यकता नहीं रह जाती कि मुस्लिम किसी हिन्दू सरकार /शासक का आदेश मानेंगे  ( या किसी गैर मुस्लिम का आदेश नहीं मानेंगे )  


इन अरबी हूश लुटेरों ने सिर्फ बौद्ध और जैन मंदिरों को ही नहीं तोडा और लूटा। कुल मिला कर बीस हज़ार से ज्यादा मंदिर तोड़े और उनके ऊपर मस्जिदें बनायीं। किन इतिहासकारों के वक्तव्य पेश करूँ ???? वर्तमान इतिहासकारों के या तत्कालीन इतिहासकारों के ,भारतीय इतिहासकारों के या विदेशी इतिहासकारों के। हिन्दू इतिहासकारों के , ईसाई इतिहासकारों के या मुस्लिम इतिहासकारों के ????  

 Histoire de l' Inde - By Alain Danielou p. 222 or A Brief History of India  में Alain Danielou (1907-1994) में फ़्रांसिसी इतिहासकार लिखता है कि--" 632 AD से जब से मुसलामानों ने भारत में आना शुरू किया, भारत का इतिहास क़त्ल, नरसंहार, लूट और बिगाड़ की एक लम्बी नीरस दास्तान बन कर रह गया। यह एक आम बात है कि अपने धर्म और अपने एकमात्र खुदा के नाम पर असभ्य जंगलियों ने पूरी की पूरी सभ्यताएं और जातियां ख़त्म कर दीं। Danielou आगे लिखता है कि --महमूद गज़नी क्रूरता और निर्दयता का एक शुरूआती उदाहरण है , जिसने मथुरा के 1018 मन्दिर मिट्टी में मिला दिए , कन्नौज शहर ध्वस्त कर दिया, सोमनाथ का वो मंदिर जो सभी हिन्दुओं की श्रद्धा का केंद्र था चकनाचूर कर दिया। उसके क्रमानुयायी भी गज़नी की तरह ही निर्दयी थे जिन्होंने हिन्दुओं के पवित्र शहर बनारस के 103 मंदिर मिट्टी में मिला दिए, उन्होंने अद्भुत मंदिरों को तोड़ दिया और भव्य महलों को उजाड़ दिया।  Danielou अंत में इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि भारत को लेकर इस्लाम की नीति एक सचेत और सुनियोजित विध्वंस की थी , हर उस चीज़ को धवस्त करने की थी जो कि पवित्र थी, सुन्दर थी और परिष्कृत थी। 
 Negationism in India: Concealilng the Record of Islam - By Koenraad Elst में इतिहासकार लिखता है कि भारत के प्रबुद्ध वर्ग का एक हिस्सा, हिन्दुओं के स्मृतिपटल से इस्लाम के शमशीरबाजों द्वारा ढाई गयी ज़ुल्म की दस्तानों को मिटाने की कोशिश कर रहा है। जबकि तत्कालीन इस्लामिक इतिहासकार हिन्दुओं के कत्लेआम, मंदिरों को ध्वस्त करने , हिन्दू महिलाओं के अपहरण और जबरन धर्मांतरण को को बहुत आनंद और गर्व के साथ बताते हैं। वे इसमें कोई शक नहीं छोड़ते कि मूर्तिपूजा का ध्वस्तीकरण मुस्लिम समुदाय को खुदा के द्वारा दी गयी आज्ञा थी।इसके बावजूद बहुत से भारतीय इतिहासकार, पत्रकार और राजनीतिज्ञ इस बात से इंकार करते हैं कि हिन्दू और मुसलामानों में कभी अदावत थी। वे बेशर्मी से इतिहास को दुबारा गढ़ते हैं और इस बात का पुरज़ोर खंडन करते हैं कि भारत में हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच कभी दुश्मनी थी, परन्तु अब भारत का एक बड़ा वर्ग और पश्चिम के लोगों ने उनके इस नकारात्मक इतिहास को पहचानना शुरू कर दिया है। ऐसे लोगों को ग़लतफहमी या मतिभ्रम से निकलना कोई सहज या रोचक कार्य नहीं है ,विशेषतौर पर तब जब इन्हे जानबूझकर पैदा किया गया है।   

What the invaders really did - By Rizwan Salim ( न्यूयॉर्क में पत्रकार )- hindustantimes.com - December 28, 1997)  में कहते हैं कि मैंने हिन्दू मंदिरों के पत्थर और स्तम्भ मस्जिदों में लगे हुए देखे हैं, जिनमें जामा मस्जिद और अहमद शाह मस्जिद अहमदाबाद में हैं, जूनागढ़ (गुजरात ) के उपरकोट किले की मस्जिद, और विदिशा (भोपाल के निकट), ढ़ाई दिन का झोंपड़ा जो की अजमेर की मशहूर दरगाह के बिलकुल नज़दीक है और वर्तमान में विवादित भोजशाला मस्जिद "धार" में (इंदौर के निकट)।यह महज़ "राजनीतिक कारणों " से नहीं है कि हिन्दू टूटी हुई अयोध्या में टूटी हुई बाबरी मस्जिद, वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में ईदगाह पर भव्य मंदिर बनाना चाहते हैं। धर्म एवं राजनीति से प्रेरित हिन्दुओं के  राम मन्दिर , काशीविश्वनाथ मंदिर और कृष्ण मन्दिर ये मात्र तीन प्रयास एक हज़ार सालों से विदेशी लुटेरों से अपनी संस्कृति और धर्म वापिस पाने का संघर्ष है। 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद टूटने की घटना हिन्दुओं के सहस्राब्दी,भारत में धर्म केंद्रित संस्कृति और देश वापिस पाने के संघर्ष का मात्र एक प्रसंग है। इस बीच हिन्दुस्तान भर में सैंकड़ों मंदिर अपने मूलरूप और प्राचीन गरिमा को पाने के लिए  हिन्दू स्वाभिमान के जागने का इंतज़ार कर रहे हैं। "
मसीरी आलमगीरी -- राजशाही के सरकारी दस्तावेज़ में अनेकों मंदिर तोड़े जाने के आदेश और उनके क्रियान्वहं की सोचना दर्ज़ है। इसकी 2 सितम्बर 1669 की एक प्रविष्टि हमें बताती है ---" दरबार में खबर आयी कि राजा के आदेशों का पालन करते हुए उसके अधिकारीयों ने बनारस में विश्वनाथ का मंदिर तोड़ दिया है। 

India: A Concise History - By Francis Watson p. 96 में इतिहासकार लिखता है कि " उनके दिमाग में हिन्दुस्तान के मूर्तिपूजकों के खिलाफ कूट कूट कर ज़हर भरा हुआ था।  मुसलामानों ने बहुत बड़ी संख्या में प्राचीन हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त कर दिया। यह एक ऐतिहासिक सत्य है जिसे तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों एवं अन्य लेखों ने लिपिबद्ध किया है। परन्तु बड़ी संख्या ---- सैंकड़ों नहीं कई हज़ार ---प्राचीन मन्दिर तोड़ कर पत्थरों के छोटे छोटे टुकड़ों में तब्दील कर दिए गए। भारत के प्राचीन नगरों बनारस और मथुरा,उज्जैन और माहेश्वर ,ज्वालामुखी और द्वारका में एक भी प्राचीन मंदिर अपने पुराने स्वरुप में साबुत नहीं बचा। 

मौलाना अब्दुल हय , जो कि लखनऊ के दारुल नदवा उलूम नदवातुल -उलमा के 1923 तक प्राचार्य रहे की पुस्तक " हिन्दुस्तान इस्लामी अहद में"  के अध्याय " हिन्दुस्तान की मस्जिदें " में लिखते हैं ----
1)मेरे शोध के अनुसार दिल्ली की  "कुव्वत अल इस्लाम मस्जिद" मस्जिद क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने हिजरी 587 में पृथवीराज चौहान द्वारा बनवाए गए हिन्दू मंदिर को तोड़ कर मंदिर के कुछ हिस्से को बहार छोड़ कर बनवायी। हिजरी 592 में वो जब गज़नी से वापिस आया तो शहाब्बुद्दीन गोरी के आदेश से ऐसे लाल पत्थरों से जिनका अनुकरण नहीं किया जा सकता से वृहद मस्जिद बनवायी और मंदिर के बचे हुए हिस्से को भी इसी में शामिल कर लिया  ..........( अन्य इतिहासकारों के अनुसार और यहाँ पर पुरातत्व विभाग का शिलालेख कहता है इसे बनाने के लिए 27 हिन्दू और जैन मंदिर तोड़े गए थे)*   .
2) जौनपुर की मस्जिद ------ यह मस्जिद तराशे हुए पत्थरों से इब्राहिम शर्क़ी ने बनवायी। मूलरूप से यह एक हिन्दू मंदिर को तोड़ कर गयी। यह अटाला मस्जिद के नाम से जानी जाती है। 
3) कन्नौज की मस्जिद ---- यह एक सार्वजानिक सत्य है कि यह मस्जिद एक प्रतिष्ठित हिन्दू मस्जिद को तोड़ कर बनायीं गयी। जैसा कि "गरबत निगार " में लिखा है इसे  इब्राहिम शक़ी ने हिजरी 809 में बनवाया था। 
4) इटावा की जामी मस्जिद ---- यह मस्जिद इटावा में जमुना के किनारे पर है। यहाँ पर हिन्दू  करता था जिसे तोड़ कर मस्जिद बनायीं गयी। 
5)अयोध्या में बाबरी मस्जिद -----यह मस्जिद अयोध्या में बाबर ने उस  बनवायी जिसे हिन्दू लोग रामचन्द्रजी का जन्मस्थान कहते हैं    ..... ........ सीता का यहाँ एक मंदिर था जिसमे वो रहती थी और अपने पति के लिए खाना बनाती थीं। बिलकुल इसी जगह पर बाबर ने हिजरी 963 में मस्जिद बनवायी। 
6) बनारस की मस्जिद ---बनारस की मस्जिद आलमगीर औरंगज़ेब ने बिशेश्वर मंदिर के स्थान पर बनवाया। वो मंदिर बहुत बड़ा था और  बहुत पवित्र माना जाता था। बिलकुल इसी जगह पर और उसी मंदिर के पत्थरों से उसने आलीशान मस्जिद बनवायी। प्राचीन पत्थरों को मस्जिद की दीवारों के निमार्ण में पुनः इस्तेमाल कर लिया गया। यह हिन्दुस्तान की मशहूर मस्जिदों में से एक है। 
7) मथुरा की मस्जिद ---आलमगीर औरंगज़ेब ने मथुरा में एक मस्जिद बनवायी। यह मस्जिद गोविन्द देव के मंदिर के  बनायीं जो की एक बहुत मजबूत खूबसूरत और उत्कृष्ट मंदिर था।  

मुस्लिम इतिहासकार " महमूद बिन इब्राहिम शार्की "(1440---1457) "तबकत ऐ अकबरी" में लिखता है, " कुछ समय पश्चात वो जिहाद के मकसद से ओडिसा गया, वहां उसने आसपास के क्षेत्रों पर हमला करके उन्हें उजाड़ दिया। मंदिरों को तोड़ने के बाद उन्हें मिट्टी में मिला दिया। 
मुस्लिम इतिहासकार "अब्दुल्लाह" अपनी "तारीख ए दाऊदी" में सिकंदर लोधी के विषय में लिखता है कि " वो एक अतिउत्साही मुसलमान था और उसने काफिरों पूजास्थलों के नामो निशाँ तक मिटा दिए थे। उसने मथुरा के सारे पूजास्थलों को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। 
25 मई 1679 --- खान ए जहाँ ,(औरंगज़ेब के विषय में) जोधपुर के मंदिरों को ध्वस्त करने बाद गाड़ियों में मूर्तियां भर कर लौटे और उन्होंने आदेश दिया कि इन मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों में चुनवा दिया जाये जिससे वे पैरों के तले रौंदी जाएँ। 
"सुलतान अहमद शाही वली बहमनी " ( 1422 -1435) --- "....... वो ( अहमद शाह ) जहाँ भी जाता था आदमियों औरतों और बच्चों के बेरहमी से मौत के घाट उतार देता था। …" 
"……जब वो 20000 क़त्ल कर लेता था , तो 3 दिनों इसका जश्न मनाने के लिए रुक जाता था.……… "
1 जनवरी 1705, औरंगज़ेब ने महमूद खलील और खिदमत राय को बुलाया और " पंढरपुर " के मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया , और साथ में कसाई ले जाकर मन्दिर में गौवध करने का आदेश दिया।

 रही बात बाबरी मस्ज़िद की जिसे मीर बाकी नाम के संत ने उस समय के सेक्युलर हिंदुओं की कायदे से पूजा करके, बहुत मान मनौव्वल के बाद मंदिर तोड़ कर 1527 में बनाया। 1940 से पहले के सरकारी एवं मुस्लिम दस्तावेजों में इसका नाम था " मस्ज़िद ए जन्मस्थान"। 1992 में मस्ज़िद टूटी, इस देश और पूरी दुनिया की धर्मनिरपेक्ष शक्तियों को बहुत कष्ट हुआ ( पिछले 15 दिनों में पकिस्तान में 2 मंदिर तोड़े गए, सब अखबारों में छपा पर शायद दुनिया पढ़ नहीं पायी )। लेकिन इन धर्मनिरपेक्षों के मुंह की जुबां तब कहाँ चली गयी जब खुद "सऊदी अरब" सरकार ने          " मक्का" में "मस्ज़िद अल हरम" जिसमे पैगम्बर ने पहली नमाज़ अदा की थी को गिरा दिया। तब क्यों नहीं बोले ये लोग जब वहाँ कि सरकार ने ही "मस्ज़िद अल नबावी " जहाँ पैगम्बर दफन है को गिरा दिया। क्या इन लोगों को पता नहीं चला की उस स्तम्भ( OTTOMAN and ABBASID columns) को भी गिरा दिया गया है जिसे उस जगह को चिन्हित करने के लिए लगाया गया था जहाँ से पैगम्बर ने अपनी स्वर्गयात्रा शुरू की थी। वो स्तम्भ भी गिरा दिया गया है जिस पर पैगम्बर के साथियों और उस समय के अनुयायियों के नाम लिखे हुए थे। मौलिद का घर ( house of Mawlid ) तोड़ कर शाही इमाम का घर बनाया जा रहा है। अबु बकर का घर तोड़ कर होटल हिलटन बन चुका है। अफगानिस्तान में एक हाइवे बनाने के लिए उस मस्ज़िद को तोड़ दिया गया जहाँ कभी पैगम्बर ने नमाज़ पढ़ी थी। और तो और श्रीनगर में "मुस्लिम" आतंकवादियों ने अपनी जान बचने के लिए उस प्राचीन मस्ज़िद ( दरगाह हज़रतबल)  को सुपुर्द ए खाक कर दिया जिसमे पैगम्बर का प्रतीक चिन्ह उनका "बाल" रखा हुआ था। यह कोई किस्से नहीं है, नीचे लिंक दे रही हूँ जिसमे फ़ोटो के साथ प्रमाण है और यह किसी सेक्युलर हिन्दू कि नहीं इंग्लैंड के प्रमुख समाचार पत्र " द इंडिपेंडेंट "की रिपोर्ट है।  
http://www.independent.co.uk/news/world/middle-east/the-photos-saudi-arabia-doesnt-want-seen--and-proof-islams-most-holy-relics-are-being-demolished-in-mecca-8536968.html  

 देशी इतिहासकार मानते है , विदेशी इतिहासकार मानते है। ईसाई इतिहासकार मानते है और मुसलमान इतिहासकार मानते है। तत्कालीन इतिहासकार मानते है  वर्तमान के इतिहासकार मानते हैं। तत्कालीन राजशाही के दस्तावेज़ मानते हैं और वर्तमान के पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण मानते हैं ----

http://ayodhyafacts.org/2014/12/01/was-there-a-ram-mandir/
बस वो नहीं मानते जिनके बाप दादों ने 400 साल पहले तलवार की धार के सामने इस्लाम को मान लिया था। अम्बेडकर जी सही कह गए हैं, किसी न यह किसी काफिर के साथ रह सकते हैं किसी काफिर की सत्ता बर्दाश्त कर सकते हैं। 


 भारत में इन मुस्लिम लुटेरों और आक्रान्ताओं के ऊपर सैंकड़ों किताबें लिखी जा चुकीं है, दसियों किताबें पढ़ने के बाद मेरा दिल Ayodhya and After - By Koenraad Elst के इस एक पैराग्राफ को पढ़ कर टूट गया  --------- "#ईसाई_इतिहास_में_किये_गए_अपने_कृत्यों_को_मान_रहे_हैं। यहाँ तक की बेल्जियम में कैथोलिक वर्ग की धार्मिक संगत में हमने इतिहास में चर्च द्वारा किये गए वीभत्स कृत्यों पर ध्यान दिया है। लैटिन अमेरिका में कोलंबस के आगमन की 500 वीं वर्षगाँठ पर चर्च के अंदर और बाहर वहाँ की सभ्यता और संस्कृति के चर्च द्वारा समूल विनाश पर चर्चा की। जर्मनी तक ने मान लिया कि उसने यहूदियों पर बहुत अत्याचार किये थे। परन्तु भारत में अविश्वसनीय स्थिति है। न सिर्फ मुस्लिम इतिहासकार बल्कि सार्वजानिक हस्तियां मुस्लिम इतिहास के सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। निष्पक्ष धर्मनिरपेक्ष  इतिहासकार भी इस्लाम द्वारा व्यवस्थित ढंग से किये गए अत्याचारों को या तो छुपाने में लगे हैं या नकारने में लगे हैं। यहाँ तक की #बहुत_से_हिन्दू_उन_अत्याचारों_को_नकार_रहे_हैं_जो_उन्हीं_के_समाज_पर_किये_गए।   

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

#हिन्दू_असहिष्णु_है।

देखते ही देखते मौज़ों में कश्ती बह गयी। 
हाथ फैला कर किनारे फड़फड़ा कर रह गए। 

जी, कुछ ऐसा ही हुआ है भारतीय इतिहास और वैदिक संस्कृति के साथ। हर बार की तरह मेरी लम्बी लम्बी पोस्ट को जैसे आप बर्दाश्त करते है , आज के इस विशेष दिवस पर इसे भी बर्दाश्त करिये। विशेष दिवस दीपावली का नहीं है , पर हाँ आज मैं एक नया दिया आपके सामने जला रहा हूँ। लड़ियों या कड़ियों को अंत में आप जोड़ लीजियेगा। 
एक थे E.R Sathe, पुरातत्व विभाग में अधिकारी।  1955 के आसपास, ताज महल की देखरेख करते समय, उन्हें वहां कुछ वैदिक धर्म के चिन्ह मिले।  उन्होंने यह बात तत्कालीन केंद्रीय शिक्षा मंत्री " मौलाना अबुल कलम आज़ाद"(15 अगस्त 1947 -2 फरवरी 1958 )को बताई। मौलाना कहिये या आज़ाद, आज़ाद ने उन्हें दो नसीहतें दीं , एक ,ताज महल के तहखाने के दरवाज़े बंद कर दो  दूसरी अपना मुंह बंद रखो। 
बर्दवान एजुकेशन सोसाइटी एवं टीचर्स एंटरप्राइज द्वारा लिखित तथा सुखोमोय दास द्वारा प्रकाशित "भारत कथा "  के पृष्ठ 113 पर लिखा था " गैर मुस्लिमों को इस्लाम या मौत में से एक चुनना होता था। सिर्फ हनफ़ी मुसलमानों ने जजिया के बदले ज़िन्दगी की इज़ाज़त दे रखी थी। 
कुछ दिन बाद यह पुस्तक सम्पादित कर दी गयी और सम्पादित अंश इस तरह है "अलाउद्दीन ख़िलजी को जजिया देने के पश्चात गैर मुस्लिम आम ज़िन्दगी जी सकते थे। "
पृष्ठ 89 --- " सुलतान महमूद ने लूट ,हत्या ,तोड़फोड़ और धर्मांतरण के लिए बल का प्रयोग किया। 
संपादन के पश्चात --- " सुलतान महमूद ने बहुत ज़्यादा तोड़फोड़ और लूटपाट की "-------- #हत्याओं_और_धर्मांतरण_ का_कोई_ज़िक्र_नहीं।  
मुस्लिम इतिहासकार " महमूद बिन इब्राहिम शार्की "(1440---1457) "तबकत ऐ अकबरी" में लिखता है, " कुछ समय पश्चात वो जिहाद के मकसद से ओडिसा गया, वहां उसने आसपास के क्षेत्रों पर हमला करके उन्हें उजाड़ दिया। मंदिरों को तोड़ने के बाद उन्हें मिट्टी में मिला दिया। 
मुस्लिम इतिहासकार "अब्दुल्लाह" अपनी  "तारीख ए दाऊदी" में सिकंदर लोधी के विषय में लिखता है कि " वो एक अतिउत्साही मुसलमान था और उसने काफिरों पूजास्थलों के नामो निशाँ तक मिटा दिए थे। उसने मथुरा के सारे पूजास्थलों को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। 
25 मई 1679 --- खान ए जहाँ , जोधपुर के मंदिरों को ध्वस्त करने बाद गाड़ियों में मूर्तियां भर कर लौटे और उन्होंने आदेश दिया कि इन मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों में चुना दिया जाये जिससे वे पैरों के तले रौंदी जाएँ। 
"सुलतान अहमद शाही वली बहमनी " ( 1422 -1435) --- "....... वो ( अहमद शाह ) जहाँ भी जाता था आदमियों औरतों और बच्चों के बेरहमी से मौत के घाट उतार देता था। …" 
"……जब वो 20000 क़त्ल कर लेता था , तो 3 दिनों इसका जश्न मनाने के लिए  रुक जाता था.……… "
1 जनवरी 1705, औरंगज़ेब ने महमूद खलील और खिदमत राय को बुलाया और " पंढरपुर " के मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया , और साथ में कसाई ले जाकर मन्दिर में गौवध करने का आदेश दिया। और ऐसा किया गया।( ये इतिहास खुद औरंगज़ेब के दस्तावेज़ बताते हैं , जबकि वामपंथी इतिहासकार हमें यह विश्वास करने के लिए मजबूर करते हैं कि यह सब औरंगज़ेब ने आर्थिक कारणों से किया था ,और उसमे #धार्मिक_असहिष्णुता तो थी ही नहीं और न ही उसने मज़हबी कारणों से ऐसा किया। ) और इतिहास के उपरोक्त दस्तावेज़ों की भाषाशैली बताती है कि यह सब गर्व से लिखी हुई ऐतिहासिक घटनाएँ हैं।

http://www.slideshare.net/IndiaInspires/arun-shourie-eminent-historians-15410533
कुरान के विषय में सब जानते हैं, और बाइबिल के विषय में जिसे संदेह हो उसे मै अध्याय और कथन दे सकता हूँ कि ये आसमानी किताबें काफिरों को लूट मार और बलात्कार के ही पाठ पढ़ाती हैं। लेकिन ISC Board की सातवीं कक्षा की Social Science की  पुस्तक उठा कर देख लीजिये , पहला अध्याय Christianity , दूसरा Islam पर और तीसरा Hindu Culture पर है।
दसवीं तक की किसी बोर्ड की Social Science किताब उठा कर देख लीजिये , जज़िया नाम के शब्द का ज़िक्र नहीं है। कोई भी  इस्लाम, मोहम्मद  और ईसाइयत तो वो धर्म बताये गए हैं जिनमे से प्रेम की धाराएं फुट रही हैं और जितनी भी कुरीतियाँ हिन्दू धर्म में इन मज़हबों के आने के बाद आयीं है सब की सब वैदिक काल से चली आ कर बता कर क्या छवि बताना चाहते हैं ये वामपंथी वैदिक धर्म के विषय में ????

आज की तारीख में इतिहास लिखने के दो ही स्तम्भ हैं। 1 ) हिन्दू सदैव असहिष्णु थे 2) मुस्लिम इतिहास की साम्प्रदायिकता को सहानुभूति की नज़र से देखा जाये।  
बुद्ध धर्म कैसे इस्लाम की तलवार की धार से काटा गया , यह तो मुस्लिम इतिहासकार खुद स्वीकारते है , लेकिन वामपंथी इतिहासकारों ने बहुत सलीके से पूरी की पूरी दुकान सनातन धर्मियों पर पलट दी।  
आज की तारीख में फेस बुक सनातन धर्मियों के लिए गलियों से लबरेज़ पोस्ट और चुनावी गठबंधनों को देखते हुए कोई भी कह सकता है कि वामपंथी इतिहासकार अपनी इस मुहीम में सफल हुए है। 
कब , क्यों और कैसे विद्रूप हो गयीं यह स्थितियां ???? बहुत लम्बी कहानी है। लेकिन संक्षेप में सुनिए। 
अंग्रेज़ों ने " Aryan Invasion Theory" को इज़ाद करने के साथ भारतीय इतिहास को इसलिए इतना तोडा मरोड़ा कि भारतियों कि नज़र में उनकी संस्कृति निकृष्ट नज़र आये और आने वाली पीढ़ियां यही समझें कि अँगरेज़ बहुत उत्कृष्ट नस्ल के एवं काबिल प्रशासक थे। अंगेज़ों के काम को वामपंथियों द्वारा आगे बढ़ाने में जिसने बल्ली लगायी वो  ----------
 सज्जन 11 नवम्बर 1888 को पैदा हुए मक्का में, वालिद का नाम था " मोहम्मद खैरुद्दीन" और अम्मी मदीना की थीं। नाना शेख मोहम्मद ज़ैर वत्री ,मदीना के बहुत बड़े विद्वान थे। ये सज्जन जब दो साल के थे तो इनके वालिद कलकत्ता आ गए। दीनी और दुनियावी पढाई के लिए, घर पर ही ट्यूटर का इंतज़ाम किया गया।  बहुत विलक्षण प्रतिभा के धनी थे,  सब कुछ घर में पढ़ा और कभी स्कूल कॉलेज नहीं गए। बहुत ज़हीन मुसलमान थे। इतने ज़हीन कि इन्हे मृत्युपर्यन्त "भारत रत्न " से भी नवाज़ा गया। इतने काबिल कि कभी स्कूल कॉलेज का मुंह नहीं देखा और बना दिए गए भारत के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री। इस शख्स का नाम था "मौलाना अबुल कलम आज़ाद "।
 वर्तमान में इस्लाम की क्रूरता का इतिहास जो मिटाया जा रहा है , वो इस लिए कि " वैदिक धर्मी" भाई चारा बना कर रखे। आप पुराना  इतिहास तो बदल सकते हो , पर अख़लाक़ को बछड़ा चुराने से नहीं रोक सकते और लिखोगे वही कि #हिन्दू_असहिष्णु_है। आप पुराण इतिहास तो बदल सकते है , पर #कुलबर्गी के विषय में यह नहीं लिखोगे  कि वो कुरान और बाइबिल पर मूतने का दम नहीं रखता था , हाँ हिन्दू देवी देवताओं कि मूर्तियों पर मूतना अस्का शौक था। फिर जब काट दिया जाता है तो #हिन्दू_असहिष्णु_है।

बुधवार, 23 सितंबर 2015

तोला भर श्रद्धा मन भर तर्कों पर भारी होती है।

तोला भर श्रद्धा मन भर तर्कों पर भारी होती है। 
हिन्दू धर्म में बलि प्रथा की कहीं संस्तुति नहीं है इस पर पहले ही पोस्ट डाल चुका  हूँ अतः अतिउत्साही कम्मेंट लिखने वाले मेरी टाइम लाइन देख लें। बकरीद मनाने वाले या धर्म, इस्लाम के नाम पर कुर्बानी क्यों नहीं देनी चाहिए , इनके धर्म के अनुसार ही समझाऊंगा ,लेकिन
कल बकरीद है और आज एक पोस्ट से ,एक दिन में , एक साल में या एक शताब्दी में यह निरीह और मूक जानवरों का कत्लेआम तो बंद होने से रहा। मैं यह भली प्रकार से जनता हूँ कि मांसाहार आज की तारिख में बहुत से लोगों के जीवन का और भोजन का इतना अभिन्न अंग बन गया है कि जैन समुदाय की भावनाओं को ताक पर रख कर लोग चार दिन के लिए मांसाहार नहीं छोड़ सकते। सरदेसाई सरीखे बड़े बड़े पत्रकार मीडिया और तमाम वर्ग ऐसे चिल्लाते हैं मानो चार दिन मांस नहीं खाया तो बस मौत ही आ जाएगी।  मौत फिर भी आती है उन निरीह जानवरों की, मगर अफ़सोस है उस मौत को लाने वाली  दर्दनाक "हलाल" प्रक्रिया पर। 
क्या हलाल करना जरूरी है ???
क्या क़ुरबानी देनी जरूरी है ???  
पहले हलाल क्यों किया जाता है यह समझ लें-- 
Bible --- (Leviticus 7:26,27) --- तुम अपने घरों में किसी भी पक्षी या पशु के रक्त का उपभोग नहीं कर सकते। जो रक्त का उपभोग करता है , उसे समुदाय से बहिष्कृत कर दिया जायेगा। 
(Leviticus 11:1-47 )-----  ऊँट ,सूअर, खरगोश ,चट्टानी बिज्जू मरे हुए जानवर खाना भी मना है। 
Quran -- सूरा 2 आयात 173( सूरा 5: आयत 3) ---अल्लाह तआला ने तो तुमपर सिर्फ हराम किया है मुर्दा जानवर ,और खून को (जो बहता हो )और सूअर के गोश्त को ,(इसी तरह उसके सब अंगों और हिस्सों को भी ) ………   ....

तो जानवर को मेरे विचार से ये इसलिए हलाल करते हैं कि  से खून की एक एक बूँद निकल जाये जिससे वो इनके लिए हराम न हो। क्या झटके से मारने के बाद पूरा खून नहीं निकला जा सकता ?????
 

बकरीद के बारे में सब जानते हैं कि तथाकथित "प्रभु" ने इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उसके पुत्र इसहाक की बलि मांगी थी। कुछ आधी अधूरी तस्वीर ही है मेरे मित्रों के सामने और इस रिवाज़ को जी जान से निभाने वालों के सामने। इस प्रथा को शुरू करने वाला "अब्राम" फिर प्रभु के आदेशानुसार "इब्राहिम" कौन था ??
 तथाकथित प्रभु कहता है कि उसने आदम और हव्वा बनाये। यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों इस बात को मानते है।  फिर उसने नूह और उसके परिवार को छोड़ कर पूरी दुनिया खत्म कर दी। यह बात भी तीनों धर्म मानते हैं। फिर नूह के आगे वंशज हुए जिनमे एक इब्राहिम हुए। उनकी, उनसे बात करने वाले प्रभु / प्रभु के दूत पर अगाध श्रद्धा थी। जैसा कि होता है, प्रभु ने उनकी परीक्षा लेने के लिए उन्हें आदेश दिया कि -------

Bible, (Genesis 22:1-2  ) -- "इब्राहिम ! इब्राहिम !" इब्राहिम ने उत्तर दिया "प्रस्तुत हूँ। "ईश्वर ने कहा, " अपने पुत्र को,अपने एकलौते को, परमप्रिय इसहाक को साथ ले जा कर मोरिया देश जाओ।वहाँ,जिस पहाड़ पर मैं तुम्हे बताऊंगा,उसे बलि चढ़ा देना। 
( बीच की कहानी छोड़ रहा हूँ ) (Genesis 22 :9-14) जब वे उस जगह पहुँच गए,जिसे ईश्वर ने बताया था , तो इब्राहिम ने वहां एक वेदी बना ली और उस पर लकड़ी सजाई। इसके बाद उसने अपने पुत्र को बांधा और उस वेदी के उप्र रख दिया। तब इब्राहिम ने अपने पुत्र को बलि चढ़ाने के लिए छुरा उठा लिया। किन्तु प्रभु का दूत स्वर्ग से उसे पुकार कर बोला ,"इब्राहिम ! इब्राहिम !" उसने उत्तर दिया "प्रस्तुत हूँ " दूत ने कहा "बालक पर हाथ नहीं उठाना ; उसे कोई हानि नहीं पहुँचाना। अब मैं जान गया कि तुम ईश्वर पर श्रद्धा रखते हो --- तुमने मुझे अपने पुत्र इकलौते पुत्र, को भी देने से इंकार नहीं किया। " इब्राहिम ने आँखे ऊपर उठाईं और सींगों से झड़ी में फंसे हुए एक मेढ़े को देखा। इब्राहिम ने जा कर मेढ़े को पकड़ लिया और उसे अपने पुत्र के बदले बलि चढ़ा दिया। लेकिन बेटे के नाम पर बलि इब्राहिम के साथ ही खत्म हो गयी थी।
इसके बाद 1200 BC के लगभग में एक "मूसा" आये और उन्होंने ईश्वरीय आदेशानुसार पूजा पाठ के नाम पर ईश्वर को वेदी के ऊपर हर वक़्त बैल ,बकरी भेड़ें और पक्षी बलि चढ़ाने की प्रथा शुरू की। और यह कार्यक्रम किसी भी दिन और 365 दिन हो सकता था। इसका एक उदाहरण है ----
Bible -(2 CHRONICLES7:5)---राजा सुलेमान ने 22000 बैलों और 120000 भेड़ों की बलि चढ़ाई। इस प्रकार राजा ने सारी प्रजा के साथ ईश्वर के मंदिर का प्रतिष्ठान किया। 

लेकिन ईस्वी 740 ई. पू. से 539 ई. पू. के मध्य ईश्वर को कुछ सद्बुद्धि आई, और उसने कहा 
Bible --(Isaiah 7:10-13)---- सोदोम के शासको ! प्रभु की वाणी सुनो। गोमोरा की प्रजा !ईश्वर की शिक्षा पर ध्यान दो। प्रभु कहता है "तुम्हारे असंख्य बलिदानों से मुझ को क्या?
#मैं_तुम्हारे_मेढ़ों_और_बछड़ों_की_चर्बी_से_ऊब_गया_हूँ। #मैं_सांडों_मेमनों_और_बकरों_का_रक्त_नहीं_चाहता। जब तुम मेरे दर्शन करने आते हो तो कौन तुमसे यह सब यह सब मांगता है ? तुम मेरे प्रांगण क्यों रोंदते हो ?मेरे पास व्यर्थ का चढ़ावा लिए फिर नहीं आना। 

अब पोस्ट पढने वाले कहेंगे कि बाइबल और इस्लाम / कुरान का क्या सम्बन्ध ??? है , सम्बन्ध है। विस्तार में तो बाद में लिखेंगे लेकिन सबने सुना होगा या कि कुरान की आयतें "गैब्रिएल-- प्रभु का दूत" मोहम्मद साहब को आ कर सुनाता था। 
और बाइबिल में भी तो प्रभु या उसका दूत ही आदेश देता है ---
Bible -(Luke 1:19)---स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, "मैं गैब्रिएल हूँ --ईश्वर के सामने उपस्थित रहता हूँ। मैं आपसे बातें करने और आपको शुभ समाचार सुनाने भेजा गया हूँ। 
Bible --( Daniel 9 :21,22)-- इसी बीच संध्या बलि के समय जिस गैब्रिएल नमक मनुष्य को मैं पहले देख चुका था,वह शीघ्र ही उड़ कर मेरे समीप आया। उसने मुझे समझते हुए कहा  "डेनियल! मैं तुम को विद्या और बुद्धि प्रदान करने आया हूँ। 

हजारों सालों से दुनिया को आदेशित करने वाला प्रभु 770 B.C  से 620 A.D आते आते, दोनों को प्रभु की शिक्षा देने वाला गैब्रिएल, मोहम्मद साहब को क्या यह शिक्षा देना भूल गया कि ----------#मैं_तुम्हारे_मेढ़ों_और_बछड़ों_की_चर्बी_से_ऊब_गया_हूँ। #मैं_सांडों_मेमनों_और_बकरों_का_रक्त_नहीं_चाहता। या 
 कुरान सूरा 2 आयत 106 --- हम किसी आयत का हुक्म जो मौक़ूफ़ "यानि रोक देते और मुल्तवी कर देते हैं, या उस आयत(ही) को (जेहनों से भुला देते हैं,तो हम उस आयत से बेहतर या उस आयत ही की जैसी ले आते हैं। ( ऐ ऐतिराज़ करने वाले!) क्या तुझको यह मालूम नहीं कि हक़ तआला हर चीज़ पर कुदरत रखते हैं। 
क़ुरान 16 :101 ---और जब हम किसी आयत को दूसरी आयत की जगह बदलते हैं, और हालाँकि अल्लाह तआला जो हुक्म भेजता है उसको वाही खूब जनता है, तो ये लोग ये कहते हैं की आप घड़ने हैं, बल्कि उन्ही में अक्सर लोग जाहिल हैं। ( means he added,deleted or cahnged ayats as per his will)

वरना प्रभु तो ऊब गया है चर्बी और खून की कुर्बानी से। 

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

#‎ईसाईयों_और_कसाइयों_की_सिर्फ_कार्यशैली_में_ही_फ़र्क़_है‬ ------------‪#‎सोच_एक_ही_है‬। ‪#‎भाग‬_3

पूरा पढ़ेंगे ???? यह मात्र सार और संक्षेप में है। मर्ज़ी हो तो लाइक करें या न करे , शेयर करे या न करे ,टिप्पणी करें या न करें। क्योंकि अगले 25 -30 सालों में यानि कि जितनी मेरी ज़िन्दगी बची है कोई बहुत फ़र्क़ नहीं नज़र आने वाला, जैसे 100 साल पहले मेरे पूर्वजों को नज़र नहीं आया था। उसके बाद राम नाम ही सत्य है, सुनते हुए अपन तो चार आदमियों के कन्धों चढ़ कर निकल लेंगे, और लड़े वो जिसकी लड़ाई हो। 

पारसी अपने जन्म देश ईरान में कितने समय में ख़त्म हुए पता नहीं। बौद्धों को अफगानिस्तान से खत्म होने में कुछ शताब्दियाँ लगीं। हिन्दुओं को पाकिस्तान से ख़त्म होने में 70 साल लगे। बांग्लादेश में हिन्दुओं को 8% होने में 45 साल लगे। केरल में हिन्दू 50% से कम रह गए हैं।  भारत के नार्थ ईस्ट में 20% हिन्दू भी नहीं बचे है। कश्मीर में हिन्दुओं की संख्या नगण्य होने में 43 साल लगे। --------सही सोचते है हिन्दू "यूनान मिस्र रोमां सब मिट गए जहाँ से, क्या बात है कि मिटटी हुई नहीं हमारी। "  

मुझे लगा था कि विषय अत्यंत गंभीर है , और ईसाई मिशनरी जिस सूक्ष्म विवरण के साथ रणनीति बना रहे हैं और उस पर अम्ल कर रहे है, उसके विषय में अधिक से अधिक हिन्दुओं को जानकारी होनी चाहिए। इसीलिए उनकी रणनीति के एक एक हिस्से को मैं हिन्दुओं के सामने लाना चाहता था।  
किन्तु इस श्रृंखला के पहले और दूसरे भाग कि अपने मापदंडों पर परिणीति को देख कर मुझे लग रहा है कि शायद मैं इस विषय को बेवजह तूल दे रहा हूँ। हिन्दू समाज के लिए यह कोई गंभीर विषय प्रतीत नहीं होता। इसलिए जितना लिख लिया है उतना आपके सामने रख रहा हूँ, क्योंकि मेरा मानना है की सोते हुए व्यक्ति को जगाया जा सकता है लेकिन सेकुलरिज्म की आड़ में जो हिन्दू समाज सोने का नाटक कर रहा उसे कोई भी नहीं जगा सकता। 

बहुत संक्षेप में ----- इनकी कार्यप्रणाली मिशनरी स्कूलों , अस्पतालों और अनाथालयों से चलायी जाती है। इनके टारगेट समूहों में दलित और पिछड़े वर्ग के लोग, आदिवासी, विभिन्न समूहों के नेता ,एड्स तथा छूत की बीमारी वाले, समाज से उपेक्षित वेश्याएं और सज़ायाफ्ता मुज़रिम और एक राज्य से दूसरे राज्य में गए हुए विद्यार्थी आते है। नए ईसाईयों की यह जिम्मेदारी होती है कि वे अपने क्षेत्र में चर्च बनायें और जब उनके समूह से 20 लोग जुड़ जाते हैं तो उस चर्च की फंडिंग ये लोग शुरू कर देते हैं। यह इसलिए क्योंकि जब क्षेत्रीय लोग अपनी ज़मीन पर कोई निर्माण करते हैं उसका प्रतिरोध न के बराबर होता है और उसके बाद कोई नहीं पूछता कि इस इमारत को बनाने के लिए और इन गतिविधियों को चलने के लिए पैसा कहाँ से आ रहा है।  

इन सबसे ऊपर जो सबसे अहम बात है , वो यह कि हिन्दू समाज के विभिन्न वर्गों में जाति पाती के नाम पर तनाव कैसे उत्पन्न किया जाये। इसके लिए दिलीप सी मंडल, सुनील सरदार, कांचा इल्लैया जैसे लोगों की फ़ौज प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हिन्दू धर्म को हीन साबित करके, हिन्दुओं को भ्रमित करके, समाज के विभिन्न वर्गों में फूट डलवा कर, वैमनस्यता फैला कर  ईसाईयत की जड़ों को अपने खून पसीनेऔर विदेशी पैसे से सींच रहे हैं। वर्णव्यवस्था को जितना कुरूप प्रचार इन ईसाई मिशनरियों ने जबरदस्ती का ढोल पीट पीट कर किया है यह उतनी कुरूप कभी थी नहीं । ----- (Rudolph and Rudolph, The Modernity of Tradition, p 114.  Quoted in Claude Alvares, Decolonising History, p 190.) 

------More importantly, Shri M N Srinivas, who coined the word Sanskritisation', was talking within the context of Hinduism, and has clearly shown that the caste system was not as rigid as it is made out to be.  He said, "The tendency of the lower castes to imitate the higher has been a powerful factor in the spread of Sanskritic ritual and customs, and in the achievements of a certain amount of cultural uniformity not only throughout the caste scale, but over the entire length and breadth of India." 

 लेकिन आज मेरे मित्रों की पोस्ट पर एक एक सवर्ण से पिछले 3000 सालों का हिसाब माँगा जाता है।  सिर्फ यही नहीं , इन लोगों से जुड़े हुए किसी भी व्यक्ति की फेसबुक प्रोफाइल उठा कर देख लीजिये, अपने आप को 85% कहने वालों के दिलों में मात्र और मात्र सवर्णो  प्रति ज़हर से भरे हुए समुद्र मिल जायेंगे।परन्तु वे बिलकुल अनभिज्ञ हैं उन ईसाई और कसाई डॉकटरों से, जो बहुत महीन तरीके से उनकी नसों में जहर के इन्जेक्शन भी लगा रहे हैं और उनकी सहानुभूति भी बटोर रहे हैं। ------------

----------------------------------यदि आप के पास समय हो तो नीचे के पैरा जो पहले लिख चुका  था पढ़ लीजियेगा , अंत में इस सच्चाई से रूबरू करवाने वाले कुछ लिंक भी दिए हैं उनसे स्थिति की भयावहता का अंदाज़ लगा लीजियेगा।  मैं, अपने परिवार और मित्रों को इन तथ्यों से वाकिफ करवा कर इस सोते हुए समाज के प्रति अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रहा हूँ। यदि आप उचित समझे तो अपने मित्रों को भी इस हक़ीक़त से वाकिफ करवा दें, वैसे कोई ज़रूरी भी नहीं है क्योंकि सब लोग इसी खामख्याली जी रहे है  --"यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहाँ से , क्या बात है कि मिटटी हुई नहीं हमारी। "

#भाग_2_का _शेष_भाग ------ जब एक व्यक्ति अपना धर्मांतरण करता है, तो उसका परिवार टूटता है, समाज में तनाव व्याप्त होता है। क्योंकि धर्मांतरण की प्रक्रिया के दौरान ही उससे ऐसी बातें कहलायी जातीं है और ऐसे कृत्य करवाये जाते हैं जिससे उसके मूल सम्प्रदाय की भावनाएं आहात होती हैं। उससे उन देवताओं को अपशब्द कहलवाये जाते हैं, जिन्हे वो और उसका मूल समाज अभी तक पूजता रहा है। उससे वो कृत्य करवाये जाते है जो उसके मूल समाज में प्रतिबंधित है जैसे कि मांसाहार। धर्मपरिवर्तित व्यक्ति के ये कृत्य उसे मूल समाज से बहिष्कृत करवा देते हैं और उसे अपने नए समाज में रहने के लिए ,नयी निष्ठाओं के प्रति अपना पूर्ण दायित्व निभाने के लिए , इन नए "मर्यादित" कृत्यों को और जोर शोर से करना पड़ता है। इसीलिए यही देखते हुए स्वामी विवेकानन्द ने 125 वर्ष पहले ही यह कह दिया था कि --- "हिन्दू धर्म से बाहर जाता हुआ एक व्यक्ति इस धर्म में एक हिन्दू कम नहीं करता बल्कि एक दुश्मन बढ़ा देता है।"
वैसे इसी "प्रब्बुद्द भारत" को दिए गए साक्षात्कार के दौरान स्वामी विवेकानन्द जी ने यह भी कहा था , कि समाज में कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे इनकी "घर वापसी" सुनिश्चित करवाई जा सके। 
चर्च का मुख्य और एक मात्र "धन्धा " धर्मांतरण है, क्योंकि उन्हें ऐसा आदेश जीसस ने दिया है -----

-----तब ईसा ने उनके पास आ कर कहा, "मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है। इसलिए तुम लोग सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता,पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो। मैंने तुम्हे जो -जो आदेश दिए हैं, तुम लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ और और याद रखो -मैं संसार के अंत तक तुम्हारे साथ हूँ। ------( बाइबिल , Mathews 28 ,कथन 18-20 )

और आज की तारीख में जो लोग देवी देवताओं को गालियाँ देते हैं, ऐसा नहीं है कि गालियां देने वाली नस्ल एक दिन में पैदा हो गयी।  यह नतीजा है ईसाईयों की 500 सालों की अथक मेहनत का और बेशुमार दौलत जो इन्होने इस स्थिति को पैदा करने के लिए खर्च की है। 
इस्लाम की तरह ईसाई भी एक ही मत के हैं , की अंत समय में सिर्फ वही लोग बचेंगे जिन्हे प्रभु ईसा पर विश्वास है। इसलिए प्रभु की इच्छा के अनुसार ज्यादा से ज्यादा लोगों / आत्माओं को "harvest " करके प्रभु के चरणों में समर्पित करना ही  ईसाई धर्म को मानना है और यही एक ड्यूटी है। एक उत्पाद बनाने वाली कंपनी की तरह चर्च हमेशा अपने मार्किट शेयर के प्रति बहुत चिंतित रहता है। यूरोपियन देशों से पादरियों , नन्स और अतिरिक्त सहायक स्टाफ में भर्तियां चूँकि कम हो गयीं हैं इसलिए चर्च का पूरा ध्यान भारत की तरफ आकर्षित हो गया है। 
मिशनरी प्रकाशनों से यह पूरी तरह साफ़ हो जाता है कि उनके टारगेट /लक्ष्य निर्धारित हैं, विस्तृत योजनाएं है ,मार्केटिंग स्ट्रेटेजीज हैं कि कैसे हर गाँव में एक चर्च स्थापित करना है, हर एक हाथ के जोड़े में कैसे बाइबल पहुंचनी है ,उन लोगों के समूह का चरित्र क्या है जैसे --- महिलाएं , अनुसूचित जातियां, और सबसे ज्यादा आदिवासी लोगों की धारणाएं क्या है, और हर समूह में ऐसे कौन से तत्व हैं जो रुकावटें पैदा कर सकते हैं, उन्हें अपने अनुकूल कैसे बना कर समूह में कैसे घुसना है। 
"OPERATION WORLD" (OM प्रकाशन समूह की एक पत्रिका , इस OM प्रकाशन के विषय में पिछली पोस्ट में जानकारी दी गयी है ) के अनुसार यदि "राष्ट्रवाद" की भावना को भावना ख़त्म कर दी जाये तो हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम भी काम किया जा सकता है। एक नियम के तहत ईसाई धर्म प्रवर्तक राष्ट्रवाद की भावना के हमेशा खिलाफ बोलते है। लेकिन यह सिद्धांत "मैती" लोगों पर लागु नहीं होता है क्योंकि अधिकतर "मैती" हिन्दू हैं ( मैती , खासी और नागा की तरह उत्तर पूर्व  की आदिवासी जनजाति है)। तो यहाँ पर राष्ट्रवाद की जगह कश्तवाड़ का जहर बोया जाये। मेघालय में वैसे ही 57%  तथा मिजोरम में 85% ईसाई हैं। चकमा बौद्धों के बीच ईसाई प्रवर्तकों की पैठ हो चुकी है, बांग्लादेश से आये हुए शरणार्थी और हिन्दू ज़रूरतमंद हैं, इन्हे तथा जिनके बीच अभी तक पहुँच नहीं हुई है उन्हें अगला लक्षय बनाया जाये। यहाँ के ईसाईयों ने एक प्रतिज्ञापत्र तैयार किया कि नागालैंड से 10000 मिशनरी प्रभु की सेवा में भेजे जायेंगे। 
"OPERATION WORLD" ने अफ़सोस जताया कि हरियाणा में जहाँ पर 80 लाख जाट और 15 लाख चमार , तथा सिख हैं वहां पर हमारी कोशिशे नाकाम हो रही है। पिछली शताब्दी में सबसे अधिक धर्मपरिवर्तन चमार और चूड़ा जाति के लोगों ने किया है , जबकि भारतीय कानून के अनुसार इन नामों से उदबोधन एक गैरजंनती जुर्म है। हद तो तब हो गयी जब इसी पत्रिका ने अपने 1993 के एक अंक में भारत के नक़्शे में जम्मू -कश्मीर तथा अरुणाचलप्रदेश को भारत का हिस्सा ही नहीं दर्शाया। 
OM ---- OPERATION WORLD पत्रिका निकालने वाली कंपनी का नाम भी बहुत सोच समझ कर रखा गया। इस पत्रिका ने सुझाव दिया कि पादरी की वेशभूषा , चर्चों की रूपरेखा एवं ईसाई रीत रिवाज़ बिलकुल देशी /स्वदेशी लगने चाहिए जिससे कि किसी भी प्रकार का विदेशी या परायेपन का आभास न हो पाये। यह सुझाव "कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ़ इंडिया" ने कार्डिनल प्रेजिडेंट को भेजा,जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस सुझाव के तहत ----
1) जैसे देसी लोग पूजा में खड़े होते या बैठते हैं उसी तरह जूते उत्तर कर ईसाई प्रार्थना में बिठा या खड़े हुआ जाये। 
2)घुटने टेकने की प्रथा को झुक कर "अंजलि हस्त " से बदल दिया जाये। अंजलि हस्त -- दूसरे के दोनों हाथों को अपनी हथेलिओं के बीच में लेने की क्रिया को कहा जाता है। 
3) पश्चाताप की संस्कार क्रिया से पहले और बाद में पादरी तथा भक्त दोने "पंचांग प्रणाम" करेंगे। 
4) चूमने की प्रथा की जगह , वास्तु या अंग को उंगली या हथेली से स्थानीय मान्यताओं के अनुसार छुआ जाये। जैसे की माथा या हाथ चूमने की जगह उसका हथेली से स्पर्श।  
5) धूपबत्ती या अगरबत्ती की जगह हैंडल वाला धूपबत्तीदान इस्तेमाल किया जा सकता है। 
6) रोमन पहनावे को देसी अंगवस्त्र से बदला जा सकता है। 
7) मोमबत्ती की जगह घी या तेल के दिए का इस्तेमाल किया जा सकता है। 
8) समूह प्रार्थना में विशिष्ठ व्यक्ति का स्वागत भातीय परम्परा के अनुसार आरती की थाली , दिया जला कर या हाथ धुलवा कर किया जा सकता है। 
9) पूजा की क्रिया में फूलों से आरती , अगरबत्ती या दिए से आरती शामिल की जा सकती है। 
10 ) हिन्दू पूजा के प्रतीक चिन्हों जैसे कमल, चरण, और देवीदेवताओं के चित्रों में जीसस का दिखाना सम्मिलित किया जा सकता है। 





शनिवार, 22 अगस्त 2015

#ईसाईयों_और_कसाइयों_की_सिर्फ_कार्यशैली_में_ही_फ़र्क़_है ------------#सोच_एक_ही_है। #भाग 2

इस पोस्ट के भाग 1 में आपने पढ़ा कैसे इसे मिशनरी समाज सेवा की आड़ में धर्मपरिवर्तन करते है। अमरीका के बाहर इस समय ढाई लाख ईसाई मिशनरी काम कर रहे है , जिनका 1990 का बजट ही डेढ़ बिलियन डॉलर था। अब अपनी गतिविधियाँ चलने के लिए चर्च इतना पैसा लाये तो कहाँ से ??? आपने दारा सिंह द्वारा स्टेन की हत्या के बारे में तो पढ़ा, परन्तु आपने जो नहीं पढ़ा वे थे भारत के और विश्व भर के अखबार और इंटरनेट साइट्स और मिशनरी पत्रिकाएं। किसी ने अपनी कलम और छपाई मशीन की स्याही नहीं बचाई भारत के मुंह पर कालिख पोतने में कि --- पिछले 50 वर्षों में भारत में ईसाईयों के ऊपर किस तरह से अमानवीय ज़ुल्म किये जा रहे हैं।
‪#‎Religion_Today‬ , के 30 नवम्बर 1998 के अंक ने छापा ----- कट्टर साम्प्रदायिक समूह चर्चों और ईसाईयों पर हमला कर रहे है, ईसाईयों की प्रार्थना सभाओं को तितर बितर किया जा रहा है , धर्मप्रवर्तकों को बुरी तरह से मारा जा रहा है। चर्चों में आग लगई जा रही है, और एक परम्परागत स्कूल पर इस लिए हमला किया गया क्योंकि वहां पर संस्कृत नहीं पढाई जा रही थी। सरकार जानबूझ कर कोई कार्यवाही नहीं कर रही है। कार्यकर्त्ता अपने बचाव के लिए प्रभु से प्राथना कर रहे हैं। ईसाईयों को खोज खोज कर मारा जा रहा है , उन्हें रेजर के ब्लेड से काटा जा रहा है , चलती ट्रैन से धक्का दिया जा रहा है जिसमे 6 से 12 लोग प्रतिवर्ष शहीद हो रहे हैं।
इसी पत्रिका के अन्य पन्ने पर एक दूसरी कहानी लिखी हुई है। उत्तर भारत में जहाँ इतनी कठिनाइयां हैं वहाँ प्रवर्तकों के प्रयासों से सैकड़ों आदिवासी धर्मांतरण करके ईसाई बन गए।
उपरोक्त दोनों कहानियों को जोड़ कर कुछ निष्कर्ष निकाला आपने ????सीधा सीधा निष्कर्ष है -----
दान दीजिये। दान/ चंदा दीजिये क्योंकि भारत के लोग शैतान के हाथों में फंसे हुए हैं। दान दीजिये क्योंकि भारत के 100 करोड़ लोग, प्रभु को भक्त अर्पित करने के लिए एक स्वर्णिम अवसर प्रदान कर रहे है। दान दीजिये क्योंकि भारत में ईसाईयों को रेजर ब्लेड से काटा जा रहा है। तमाम झूठी मार्मिक कहानियां गढ़ी जातीं हैं, जिनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है दुनिया भर में यह दिखने के लिए कि भारत में ईसाईयत जैसे सभ्य मज़हब की सख्त ज़रुरत है और इसके लिए पैसा चाहिए। जितना कहानी में दर्द होता है उसी अनुपात में चन्दा गिरेगा।
तमाम मिशनरी पत्रिकाएं और इंटरनेट साइट्स इस तरह की कहानियों से भरी पड़ी हैं, और इन कहानियों के मूल स्त्रोत होते हैं भारतीय अखबार जो चर्च के एक शीशा टूटने पर पूरा चर्च टूटने की खबर छाप देते हैं। लेकिन भारतीय अखबार नहीं छापते ‪#‎AD_2000‬ जैसी इंटरनेट साइट पर छपे हुए वक्तव्यों को जिसमे "#‎Church_Growth_Research_Centre_in‬ ‪#‎Madras‬, के वसंतराज कहते हैं " मेरा विश्वास है कि भारत आज ग्लोबल चर्च के नक़्शे पर है " या पीटर वागनर जो की‪#‎United_Prayer_Mobilization_Network‬ के कोऑर्डिनेटर है और इसी साइट पर कहते हैं ---- दुनिया के सारे देशों में धर्मप्रचार निवेश के हिसाब से भारत में धर्मप्रचार तथा धर्मांतरण के लिए सबसे अधिक क्षमता, सम्भावना,और सामर्थ्य है। यही वो जगह है जहाँ धर्मांतरण के लिए समय, ऊर्जा और उपलब्ध साधनों का निवेश करना चाहिए।
संस्थाओं के ऊपर संस्थाएं, लक्ष्य के ऊपर लक्ष्य , 200 लोगों के लिए समूह,50 भाषाओँ की कार्यप्रणाली ,50 शहरी और 200 भौगोलिक जिलों का चिन्हीकरण,पांच लाख गांवों और 300 शहरों में चर्च स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इन सब लक्ष्यों को प्राप्त करने तमाम संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने ‪#‎INDIA_MISSION_ASSOCIATION‬ के साथ तारतम्य में काम करने की हामी भरी है और यह इंडिया मिशन एसोसिएशन , भारत के हर पिन कोड क्षेत्र में धर्मप्रचारकों नेटवर्किंग का काम करती है।
इसी साइट के अनुसार वर्ष 2000 में कोलकाता के 93 पिन कोड क्षेत्रों में से 63 क्षेत्रों में चर्च स्थापित कर दिए गए हैं और बाकि के बचे हुए 30 में भी बहुत जल्द चर्च स्थापित कर दिए जायेंगे। कोलकात्ता तो हिन्दू धर्म की एक शाखा मात्र है। AD 2000 में तय किया गया हिन्दू धर्म की जड़ें तब वाराणसी में हैं , और चोट तो यहीं होनी चाहिए। धर्म प्रवर्तक तैयार किये गए और एक साल बाद वाराणसी के आस पास के 60 गांवों में चर्च स्थापित कर दिए गए और 300 लोगों का धर्म परिवर्तन कर दिया गया।
(वर्तमान परिपेक्ष से हट कर एक पंक्ति --- इस्लाम के प्रचार और प्रसार के लिए अकेले सऊदी अरब की सरकार ही ‪#‎डेढ़_लाख_बैरल‬ तेल की कीमत जितना पैसा प्रतिमाह विश्व में#‎तब्लीग़ी‬ ( धर्मांतरण ) गतिविधियों के लिए देता है।)
क्रमशः ------

#ईसाईयों और #कसाइयों की सिर्फ #कार्यशैली में ही #फ़र्क़ है ------------सोच एक ही है। #भाग 1

#ईसाईयों  और #कसाइयों की सिर्फ #कार्यशैली में ही #फ़र्क़ है ------------सोच एक ही है। #भाग 1 

देखने में सुन्दर और सौम्य बत्तखों के विषय में कितने लोगों को मालूम है कि यदि वे झुण्ड में हों तो वे एक कुत्ते से ज्यादा खतरनाक और अच्छी चौकीदार होती हैं। और कितना मनोरम दृश्य होता है जब कुछ सफ़ेद बत्तखें पानी के ऊपर बहुत शांत भाव से तैरती हुई चली जाती हैं, देखने वाला कोई भी शख्स पानी के नीचे नहीं देख पाता कि बतख के पैर कितनी तेज हलचल कर रहे होते हैं। कोई नहीं जान पाता कि उन मनोहारी बत्तखों ने कितनी मछलियों का जीवन अशांत कर दिया। 
मेरी बात नहीं समझ आई होगी। समझने के लिए, नीचे दिए गए लिंक पर एक बार क्लिक कीजिये। 



http://cimindia.in/images/2015courses/OCCoordinator.jpg

समझ आया कुछ ??? नहीं आया ??? चलिए ऊपर के लिंक और भूमिका को बाइबिल निम्न कथन से जोड़ कर देखिये -------

"लोगों को देख कर ईसा को उन पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ो की तरह थके मांदे पड़े हुए थे। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा , "फसल तो बहुत है , परन्तु मज़दूर थोड़े हैं। इसलिए फसल के स्वामी से कहो कि वह अपनी फसल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे। ---( बाइबिल , Mathews 9 ,कथन 36-38 )

तब ईसा ने उनके पास आ कर कहा, "मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है। इसलिए तुम लोग सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता,पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो। मैंने तुम्हे जो -जो आदेश दिए हैं, तुम लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ और और याद रखो -मैं संसार के अंत तक तुम्हारे साथ हूँ। ------( बाइबिल , Mathews  28 ,कथन 18-20 )

"अतः इनकार करने वालो (काफिरों) की बात न मानना और इस (कुरआन) के द्वारा उनसे जिहाद करो, बड़ा जिहाद। (कुरआन --सूरा 25;52) 
 कुरआन की आयत मैंने यहाँ पर दो मज़हबों की सोच के बीच समानता दिखने भर के लिए लिखी है , चूँकि "शांति प्रिय" इस्लाम के विषय मैं अब अधिकतर लोगों को मालूम पड़ चुका है इसलिए आज चर्चा सिर्फ और सिर्फ शांत और सौम्य दिखने वाली लेकिन अत्यंत खतरनाक सफ़ेद बत्तखों पर करेंगे , जिनकी कार्यप्रणाली इतनी गोपनीय और शातिर है की आम भारतीय हिन्दू को पता ही नहीं कि उनकी पाँव के नीचे से ज़मीन खींची चली जा रही है और वो व्यस्त है दुनिया को अपना धर्मनिरपेक्ष मुखौटा दिखाने की होड़ में अपने उन हिन्दू भाईयों को साम्प्रदायिक ठहराने में, जो इन हक़ीक़तों से वाकिफ हो कर इन तथाकथित शांतिप्रिय मज़हबों की गतिविधियों के खिलाफ आवाज़ उठाने की चेष्टा करते है। 

ईसाई मिशनरी समाज सेवा की आड़ में कितने व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध तरीके से काम कर रहे है, उस एक एक कदम की विवेचना आगे करेंगे , लेकिन कैसे कर रहे है, उसके लिए यह तथ्य जानना नितांत आवश्यक है कि,भारत में प्रतिवर्ष 10000 करोड़ रुपये इन मिशनरीज को विदेश एवं "मिनिस्ट्री ऑफ़ चर्चेस"-- अमरीका से अपनी गतिविधियों के सञ्चालन के लिए दिया जाता है। वर्ष 1990 में ही "मिनिस्ट्री ऑफ़ चर्चेस"-- अमरीका ने विश्व में मिशनरी गतिविधियों के लिए 1.45 बिलियन डॉलर्स का बजट रखा था। अब कितना है यह आंकड़ा मैं ढूंढ नहीं पाया।  

सबको कलकत्ता का नन बलात्कार का किस्सा, दिल्ली, बंगलुरु और आगरा के हालिया चर्चों को तोड़ने के किस्से याद होंगे। सभी समाचार पत्रों और टीवी चैनलों ने बहुत प्रमुखता के साथ हिन्दू संगठनो को ज़िम्मेदार ठहरा दिया था। लेकिन बाद की विवेचना में क्या निकला ????? बहुत कम ने आपको बताया कि इन मामलों में या तो शांति दूत लिप्त थे या स्थानीय रंजिश या विश्व में हिन्दू समुदाय को मलिन करने की वजह से इनके मज़हब के खुद के लोगों ने ये तोड़ फोड़ की थी। 
और पीछे चलते हैं, चाहें मध्यप्रदेश के झाबुआ का केस हो, हरियाणा का झज्झर का केस हो, चाहे इलाहबाद के Dr.Jhon Sylvestor का केस हो ,चाहे ओडिशा के बारीपाडा में नन के बलात्कार का केस हो , चाहे ओडिशा के ही जंगलों में एक लड़के और लड़की की हत्या का केस हो , अनगिनत केस यहाँ पर बताये जा सकते हैं जहाँ मीडिया ने विशेषकर अंग्रेजी मीडिया ने इन सब घटनाओ को साम्प्रदायिक रंग दे कर इन सब घटनाओं के लिए हिन्दुओं को ज़िम्मेदार ठहराया था। अल्पसंख्यक आयोग ने भी बिना निष्पक्ष जांच के हिन्दू संगठनों को इस सब घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार ठहरा दिया था।  
परन्तु इन सब घटनाओं की जांच के लिए गठित आयोगों की रिपोर्ट को किसी ने नहीं दिखाया , जिनमे हर जगह ईसाई समुदाय के लोग ही इन कृत्यों में शामिल पाये गए। 
इन सब घटनाओं में एक घटना जिसने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं वो थी , 22/01/1998  को ओडिशा में मनोहरपुर के ग्राहम स्टेन और उसके बच्चों के "दारा सिंह" द्वारा कत्ल की। यही जानते हैं न सब, कि दारा सिंह जो कि बजरंग दाल का सदस्य था , ने कुष्ठ रोग निवारण के लिए कार्य करने वाले "ग्राहम स्टेन" को सिर्फ इस लिए मार दिया क्योंकि वो एक ईसाई था।  और भारत के सब हिन्दू अंत समय तक यही मानेंगे भी , क्योंकि न तो ईसाई मिशनरी और मीडिया हिन्दुओं के खिलाफ दुष्प्रचार बंद करेगा और न ही कोई भी इस केस की जांच करने वाले "Wadhwa Commission" की जुलाई 1999 में प्रस्तुत रिपोर्ट को दिखायेगा , और न ही कोई भी हिन्दू यह जानने की कोशिश करता है कि आखिर दारा सिंह ने "स्टेन" को क्यों मारा। 
अधिकाँश मीडिया ने और अल्संख्यक आयोग ने स्तही जानकारी के आधार पर सबको यह बता दिया , कि गत 10 वर्षों में स्टेन किसी तरह से ईसाई धर्म के प्रचार और प्रसार में लिप्त नहीं था और वह शुद्ध रूप से समाजोत्थान का कार्य कर रहा था। इसके बिलकुल विपरीत जस्टिस वाधवा कमीशन की रिपोर्ट जो कि ईसाइयों, सेकुलरों और मीडिया को इसलिए हजम नहीं हुई, क्योंकि उस रिपोर्ट ने स्टेन की गतिविधियों का पूरा का पूरा काला चिटठा खोल कर रख दिया। जस्टिस वाधवा कमीशन की ,दारा सिंह और स्टेन की पूरी रिपोर्ट लिखने से यह पोस्ट बहुत बहुत लम्बी हो जाएगी , इस लिए बहुत संक्षेप में उसका सार लिख रहा हूँ और जो इस विषय में अधिक जानकारी चाहते हैं उनके लिए लिंक और पुस्तकों के नाम साथ में दे रहा हूँ।  
वाधवा कमीशन को स्टेन के साथियों ने बताया कि ,स्टेन धर्म प्रचार के लिए "जंगल कैम्प्स " और "बाइबिल क्लासेज " लगाया करता था। यहाँ तक तो ठीक है , लेकिन स्टेन के ताबूत में कीलें उसके द्वारा ऑस्ट्रेलिए की एक मिशनरी मैगज़ीन " TIDINGS " के लिए लिखे लेखों ने लगाई जिनमे से दो तीन का ज़िक्र यहाँ कर रहा हूँ ----
( Gladys Staines, is the wife of Graham, working in tendom with him)
1) Graham and Gladys staines, Mayurbhanj , 25 April,1997 : The first jungle camp in Ramchandrapur was fruitful time and the Spirit of God worked among people. About 100 attaended and some were baptized at the camp.At present Misayel and some of the church leaders are touring a number of places where people are asking for baptism.Five were baptizedat Bigonbadi. Pray to the Etani Trust in which mission properties are vested.

2) Graham and Gladys satines , Mayurbhanj,23 July 1997: Praise God for answered prayers in the recent Jagannath car festival at baripada. A good team of preachers came from village churches and four OM workers helped in the second part of the festival.there were record book sales, so a lot of literature has gone into the people's hands.....( Incidentally, OM is a carefully chosen acronym: the organisaton it signifies is actually one of the largest publishers and distributors of missionary literature, and has its offices in Carlisle, Cumbria, United Kingdom)

अपनी हत्या से पहले 1998 तक ग्राहम और उसकी पत्नी धर्म परिवर्तन की गतिविधियों में लिप्त रहे और इसी तरह की रिपोर्ट Tidings को भेजते रहे , जिनमे से दो के उदाहरण मैंने आपके सामने रखे हैं। 

ग्राहम हत्याकांड की जो FIR मनोहरपुर चर्च के पादरी ने लिखवाई, उसमे उसने कहा कि हमलावर "जय बजरंग दल" के नारे लगा रहे थे।  जबकि अनेकों अनेक ईसाई चश्मदीद गवाहों ने कहा कि हमलावर "जय बजरंग बली " के नारे लगा रहे थे। उसने कहा कि चर्च को आग लगा दी गयी थी , जबकि वस्तुस्थिति यह थी की चर्च को बिलकुल नुक्सान नहीं हुआ था। वाधवा कमीशन और चश्मदीद गवाहों के सामने ही पादरी ने FIR में लिखवाई हुई घटनाओं को अस्वीकार ( अपनाने से मना ) कर दिया। और इस तरह वाधवा कमीशन ने टिप्पणी की " प्रथम दृष्टया रिपोर्ट से खुद इसे लिखवाने वाले ने अपनाने से इंकार कर दिया है तथा में मिलावट की गयी है। 
हिन्दू मानसिकता के दिवालियेपन की पराकाष्ठा देखिये कि बी. बी  पांडा , DG पुलिस Odissa के वाधवा कमीशन के सामने बयान के अनुसार दक्षिण भारत से प्रकाशित The Indian Express , ने 25 जनवरी 1999 को एक खबर प्रकाशित की --- 50  से ज्यादा बजरंग दल  और विश्व हिन्दू परिषद के से सम्बद्ध लोगों ने हमला किया था।  रिपोर्ट के आधार पर हमने 47 को गिरफ्तार कर लिया है। जबकि राज्य सरकार ने दिल्ली कांग्रेस में बैठे हुए अपने आकाओं को दिखाने के लिए 51 उन बेगुनाह व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया जिनका इस घटना से दूर दराज़ तक कोई सम्बन्ध नहीं था।  यह बात अलग है कि क्राइम ब्रांच की जांच की जांच के बाद महीनों के बेवजह जेल भुगतने के बाद उन्हें छोड़ा गया। 

जस्टिस वाधवा ने अपनी रिपोर्ट में माना है कि "दारा सिंह" इस घटना का मुख्य अभियुक्त है , लेकिन ............. 
लेकिन दारा सिंह ने ऐसा क्यों किया , यह जानने के लिए दारा सिंह की मानसिकता और चरित्र को समझना बहुत  ज़रूरी है। वाधवा कमीशन के समक्ष दसियों गवाहों ने बयान दिया कि उत्तर प्रदेश के इटावा जिले का रहने वाला दारा सिंह , बहुत शिद्दत से कसाइयों के हाथों से काटने के लिए ले जा रही गायों को छुड़वाने के लिए जाना जाता था। यह काम वो उस राज्य में करता था जहाँ "पशुओं के विरुद्ध क्रूरता " के लिए क़ानून बना हुआ है। अपने इस कृत्य के कारण उसकी छवि मुस्लिम विरोधी थी और जानवरों की तस्करी करने वालों ने उसके खिलाफ दसियों केस ठोंक रखे थे। 
गवाह नंबर 29 के अनुसार , जिसे दारा सिंह ने मोहनपुर अपने साथ चलने के लिए कहा था , दारा सिंह गांव में बहुत लोकप्रिय व्यक्ति था , क्योंकि वो कसाइयों से जबरदस्ती गायें छुड़वा कर गाँव वालों में बाँट देता था ……………
और अल्पसंख्यक आयोग और विभिन्न मीडिया की रिपोर्टिंग  कि " ईसाई मिशनरीज की गतिविधियों की वजह से क्षेत्र में कोई तनाव नहीं था को झुठलाते हुए गवाही आई, मुख्य गवाह "दीपू दास " की जो कि दारा सिंह का बहुत करीबी था कि ----गयालमुंडा और भालूघेरा के युवकों ने उससे (दारा सिंह से) अगस्त 1998 में बहुत रोष के साथ संपर्क किया कि " ईसाईयों को रोको जो हिन्दुओं का ईसाईयत में धर्मांतरण कर रहे हैं। 
और दारा सिंह, ओडिसा के भोले भाले आदिवासियों को गायों की तरह कसाइयों के हाथों से बचाना चाहता था।  

मेरा अपना मानना है कि मीडिया के ज़ोरदार दुष्प्रचार और सरकारी तंत्र के भय के चलते शायद किसी हिन्दू संगठन ने दारा सिंह को नहीं अपनाया , और हिंदुत्व के लिए लड़ने वाला आज जेल से  लड़ाई अकेला लड़ रहा है। 

For more details and immaculate piece of research, Read ---- "Harvesting Our Souls" and "The Missionaries In India" , By ARUN SHOURIE

http://www.vijayvaani.com/ArticleDisplay.aspx?aid=1600

और ठन्डे दिमाग से सोचिये, क्यों और कैसे भारत एक ईसाई की मूंछ का बाल गिरने से मीडिया धरती हिलाने लगता है। पूरे विश्व से प्रतिक्रिया आने लगती है। कैसे ????? क्यों ?????
क्रमशः -----
( यह लेख मात्र भूमिका है,मित्रों से निवेदन है कि विषय की गंभीरता को समझने के लिए समय निकाल कर इस श्रृंखला के अगले भाग अवश्य पढ़ें ------ और हिंदुत्व के नाम पर उन सेकुलरों को अवश्य टैग करके के पढ़वाएं, जिन्हे यह आभास कत्तई नहीं हो रहा कि उनके पैरों के नीचे से ज़मीन धीरे धीरे खिसक रही है और वे हिन्दुओं को साम्प्रदायिक घोषित करने में व्यस्त हैं। )