शनिवार, 25 जुलाई 2015

बाइबिल की वर्णव्यवस्था ही सही है ,भारतियों के लिए।

 मीनाई , विमला और गुणादो ----यह ऑस्ट्रेलिया की तीन पहाड़ियों के नाम हैं। इन नामों से क्या लगता है ??? तथाकथित यूरेशिया मूल के आर्य वहां गए थे या ये भारतीय मूलनिवासियों के नाम हैं जो समय की धार के साथ बहते बहते, ऑस्ट्रेलिया पहुँच गए थे। है न अजब कहानी बिलकुल "अहिल्या" की तरह कि इन तीनो बहनो को भी इनके बाप ने पत्थर की शीला में तब्दील कर दिया था और इससे पहले कि वो इन्हे वापिस नारियों में बदलता उसकी मृत्यु हो गयी। बहरहाल चाहे ये कहानी आर्यों ने बनायीं या वहां के मूलनिवासियों ने लेकिन ऑस्ट्रेलिया में मूलनिवासी 200 साल बाद ( 1802 में ऑस्ट्रेलिया की खोज हुई थी ) मिल जुल कर विदेशियों के साथ समृद्ध जीवन बिता रहे हैं।  और 150 सालों से भारत के मूलनिवासी आर्यों / विदेशियों को यूरेशिया भेजने का दिवास्वपन देख रहे है। क्यों ??? 
क्योंकि आर्यों ने वेदों और मनुस्मृति में लचीली और परिवर्तनीय वर्णव्यवस्था का प्रावधान किया था। लेकिन बाबा इस्लाम और बाइबल की वर्णव्यवस्था पढ़ना भूल गए। एक बार फिर संक्षेप में वेदो और मनुस्मृति में वर्णव्यवस्था की परिभाषा दोहरा देता हूँ, फिर बाइबिल की वर्णव्यवस्था को उद्घृत करता हूँ -----

शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्। क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्या द्वैश्यात्तथैव च।----

 अर्थात श्रेष्ठ -अश्रेष्ठ कर्मो के अनुसार शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र हो जाता है। जो ब्राह्मण ,क्षत्रिय वैश्य और शूद्र के गुणों वाला हो वह उसी वर्ण का हो जाता है।

मुसलामानों को वर्णव्यवस्था के बारे में भान ही नहीं है अधिकांश लोगों को, जो की निम्न हैं। 

1.) अशराफ़ श्रेणी में मुसलमानों कि उच्च बिरादरियां—जैसे कि सय्यद, शेख़, मुग़ल, पठान और मल्लिक/मलिक आदि वर्गीकृत की गई हैं!
2.) अजलाफ़ श्रेणी में मुसलमानों ने अपनी तथाकथित ‘शूद्र / शुद्दर’ तबके की या वैश्यकर्म प्रधान जातियां वर्गीकृत की हैं जैसे – तेली, जुलाहे, राईन, धुनिये , रंगरेज इत्यादि शामिल की जा सकती हैं!
3.) अरज़ाल श्रेणी में तथाकथित रूप से “मुसलमानों के दलित” या “अतिशूद्र मुस्लिम जातियां” हैं जैसे कि मेहतर, भंगी, हलालखोर, बक्खो, कसाई, इत्यादि!  
लेकिन बाइबिल में जैसी वर्णव्यवस्था लिपिबद्ध की गयी है, क्या कभी मनुस्मिृति को न पढ़ कर सुनी सुनाई बातों पर यकीन करके कोसने वालों और मुल्लों और ईसाईयों के हाथों में खेलने वालों ने पढ़ी है क्या कभी ??? 
हिंदी में बाइबिल के जिस अध्याय में इसका विवरण दिया गया है उसका नाम है "प्रवक्ता ग्रन्थ" और अंग्रेजी में इसे SIRACH कहते है। ( हिंदी और इंग्लिश बाइबिल में सूक्तियों के क्रम में थोड़ा सा अंतर है )

"प्रवक्ता ग्रन्थ" 38:25 --- अवकाश मिलने के कारण ही शास्त्री को प्रज्ञा Wisdom) प्राप्त होती है। जो काम धंधों में नहीं फँसा रहता वाही प्रज्ञ (knowledgeable) बन सकता है। 
38:26 --- जो हल चलाता और घमंड से पैना माँजता है ,जो बैलों को जोतता है और उनके कामों में लगा रहता है, जो अपने साँड़ों की ही बात करता है उसे प्रज्ञा कैसे प्राप्त हो सकती है ?
38:28 ---- यही हाल प्रत्येक शिल्पकार और हर कारीगर का है जो दिन रात अपने काम में लगा रहता है ....... 
38:29 ----- यही हाल लोहार का है, जो अपनी निकाई के पास बैठ कर मन लगा कर लोहे का काम करता है ……………… 
38:32 ---- यही हाल कुम्हार का है ,जो अपने चाक के पास बैठ कर उसे अपने पैरों से घुमाता  रहता है ..........
38 :36  इनके बिना कोई नगर नहीं बसाया जा सकता। 

Now read the next points carefully ----

38 :37 --- इनके बिना न तो कोई रह सकता है और न कोई आ जा सकता है, किन्तु नगर परिषद में इनसे परामर्श नहीं लिया जायेगा। इन्हे सार्वजानिक सभाओं में प्रमुख स्थान नहीं दिया जायेगा। 
38:38 --- ये न्यायधीश के आसान पर नहीं बैठेंगे। ये न तो संहिता के निर्णय समझते है और न ही शिक्षा एवं न्याय के क्षेत्र में योग देते हैं। शसकों में से इनमे से कोई नहीं। 
38:39 --- किन्तु ये ईश्वर की  सृष्टि  बनाये रखते हैं। इनका काम ही इनकी प्रार्थना है। 
इसी तरह से 39: 1 से 15 तक पढ़े लिखे  वर्ग( भारतीय भाषा में ब्राह्मण ) के गुण एवं कर्म बताये गए हैं। उदहारण --
39 :1  ----- उस व्यक्ति की बात दूसरी है ,जो पूरा ध्यान लगा कर सर्वोच्च प्रभु की संहिता का मनन करता है ;जो प्राचीन कल के प्रज्ञा साहित्य का और नबियों के उद्गारों का अध्ययन करता है। 

इसी प्रकार नौकरों को कैसे रखना चाहिए उसकी एक बानगी देखिये !
33:25 ---गधे के लिए चारा ,लाठी और बोझ; दास के लिए रोटी , दंड और परिश्रम। 
33 :26--- नौकर को काम में लगाओ और तुम को आराम मिलेगा। 
33:27 ----जुआ ( बैल के गले में डालने वाला)और लगाम गर्दन झुकाती है। कठोर परिश्रम नौकर को अनुसाशन में रखता है। 
33 28 --- टेढ़े नौकर के लिए यंत्रणा और बेड़ियां। उसे काम में लगाओ, नहीं तो वो अलसी हो जायेगा। 

बहुत से नवबौद्ध या छद्मनामधारी हिन्दू देवी देवताओं के फोटोशॉप करके अश्लील चित्र डाल रहे हैं और अश्लील टिप्पणियां कर रहे हैं उनके लिए बाइबिल के इसी अध्याय में लिखा है --
23:20 ---जो अश्लील बातचीत का आदी बन गया है, वो ज़िन्दगी भर सभ्य नहीं बनेगा। 

वैसे जिनके लिए मैं यह पोस्ट लिख रहा हूँ ,पता नहीं वे इससे कोई सबक लेंगे भी या नहीं लेकिन बाइबिल ने उनके लिए भी लिखा है। 
22:7 --- मूर्ख को शिक्षा देना फूटे घड़े के ठीकरे जोड़ने जैसा है। 
22:8  अनसुनी बात करने वाले से बात करने वाले से बात करना गहरी नींद में सोने  वाले को जगाने जैसा है। ---अन्त में वो पूछेगा  ;"बात क्या है ??"

रविवार, 19 जुलाई 2015

दास प्रथा को बाइबिल की मान्यता

वेदों ने शूद्र बनाये। मनुस्मृति ने शूद्र बनाये। पुराणों ने शूद्र बनाये। बस नहीं बनाये तो भारत के संविधान ने शूद्र नहीं बनाये। 
एक से एक जाहिल हिन्दुओं से पाला पड़ता है, जिन्हे यह नहीं मालूम होगा कि किस वेद में कितने अध्याय हैं, लेकिन मुल्लों के हाथ की कठपुतली बन कर अपने धर्म, धर्मशास्त्रों और परम्पराओं को गलियां देने में अपने आप को बहुत विद्वान समझते हैं। इन्ही अति ज्ञानियों से एक साधारण सा सवाल है, कि मान लिया वेद और पुराण में बकवास लिखी है, लेकिन क्या कभी किसी मुल्ले को लूट खसोट और बलात्कार की इज़ाज़त देने वाली क़ुरान के खिलाफ बोलते सुना है ??? क्या कभी किसी ईसाई को दास प्रथा, सम्लेंगिक मैथुन, शादीशुदा होते हुए भी मामा की दो दो बेटियों और उनकी दासियों से बच्चे पैदा करने की सीख देने वाली , बलि प्रथा की शुरुआत करवाने वाली बाइबिल के खिलाफ बोलते सुना है ???
बस क्या एक तुम ही पैदा हुए हो अपने धर्म को सुधारने के लिए। 
ईद उल ज़ुहा की प्रथा कैसे शुरू हुई ??? ईसाईयों के भगवान ने अब्राहम से उसके इकलौते बेटे आइज़ैक की बलि चढाने का आदेश दिया। --Bible (Genesis  22:1 -18 ), 
अपने पहले बच्चे की बलि चढ़ाओ ---Bible (Exodus 13:2)
चाहें आदमी की बलि चढ़ाओ या जानवर की ,जो नहीं चढ़ाएगा वो बर्बाद हो जायेगा -- Bible (Leviticus 27;28 -29)
बलि दो, उसका खून हवन वेदी में चढ़ाओ और मांस खा जाओ। Bible (Deuteronomy 12:27)
अपनी फसल का पहला फल ,पहली शराब, और पहला बच्चा मुझे चढाने में देर न करो। -- Bible (Exodus 22:29 )
तुम विदेशी मर्द और औरत दास खरीद कर रख सकते हो , और उन्हें वसीयत में अपने बच्चो को हमेशा के लिए दे सकते हो। लेकिन इजराइल के लोगों को दस नहीं बना सकते। Bible (Leviticus 25 ;44-46)  
एक आदमी अपनी बेटी को गुलाम की तरह बेच सकता है। खरीदने वाला या उसका बेटा उसके साथ यदि विवाह कर ले तो वो दासी नहीं रहेगी। अगर वो दूसरी शादी कर लेता है तो इस महिला का भोजन कम नहीं करेगा। -Bible (Exodus 21:7-11)
दास की कड़ी मार लगायी जा सकती है। Bible (Luke 12;47 -48)
एक बार गॉड / खुदा ने मोसेस को मदीने वालों पर आक्रमण करने का आदेश दिया क्योंकि उन्होंने इसरायली लोगों का धर्म परिवर्तन करने की कोशिश की थी। मोसेस ने मदीने के सारे लोगों को मार दिया 32000 कुआंरी लड़कियों को छोड़ कर। उन्हें अपनी दासी बना कर सेना के साथ आपस में बाँट लिया।  2% गॉड का हिस्सा पुजारी को मिला जिससे उसके हिस्से में 365 लड़कियां आयीं। Bible ( Numbers 28:47 )
तुम अपने भाई को दास बना सकते हो ,बशर्ते वो 50 साल बाद आज़ाद हो जायेगा। ---Bible (Leviticus 25:39)
खुदा / गॉड मोसेस को कहता है कि तुम पर जादू टोना असर नहीं करेगा। ---Bible (Exodus 22 :18 ,19)
दासों , तुम अपने मालिकों से इज़्ज़त और दर से ऐसे पेश आओ जैसे तुम क्राइस्ट की बंदगी कर रहे हो।Bible (Ephesians 6:5)

और वेद क्या कहते हैं शूद्रों के बारे में ----
शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्। 
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्या द्वैश्यात्तथैव च।---- अर्थात श्रेष्ठ -अश्रेष्ठ कर्मो के अनुसार शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र हो जाता है। जो ब्राह्मण ,क्षत्रिय वैश्य और शूद्र के गुणों वाला हो वह उसी वर्ण का हो जाता है। 

कुरान और हदीस के बारे में कुछ न ही लिखूं तो उचित रहेगा, क्योंकि मेरी मित्रमंडली में इसके अच्छे अछ्छे ज्ञाता बैठे है। हाँ कुरान के विषय में एक बात ज़रूर कहूँगा की इसने मनुष्य बलि का इबादत के नाम पर समर्थन कभी नहीं किया ,वो जो गले कटे जाते हैं वो तो जिहाद का हिस्सा हैं। 
उपरोक्त उद्धरण बाइबिल के सबसे परिष्कृत संस्करण जो कि 1977 में प्रकाशित किया गया और, दुनिया भर के ईसाइयत को मैंने वाले Protestent, Anglicans, Roman, Catholic, and Eastern Orthodox Churches को मान्य है उसमे से लिए गए हैं। हो सकता है आपके ज़ेहन में यह सवाल आये कि सबसे परिस्कृत का क्या मतलब हुआ ??? जी वर्ष 1611 तक बाइबिल का King James Version दुनिया में चलता था और वो पत्थर की लकीर होता था। 1870 में इसमें से दोष दूर करने की दृस्टि से इसका परिष्कृतकरण शुरू हुआ जिसके बाद 1881-85 में इसका ब्रिटिश संस्करण निकला गया। 1901 में इसको धो मांझ कर अमेरिकन संस्करण निकला गया। 1937, 1946, 1952 में हर बार सुधर करके नए स्टैण्डर्ड संस्करण निकले गए। 1977 में आज तक जो कुछ भी बाइबिल के नाम पर उपलब्ध हुआ उसे इसमें डाल कर दुनिया के सामने रखा गया। 
अब वेदों की टाँग तोड़ने वालों से पूछना चाहता हूँ कौन से वेद पढ़े हैं आपने ??? और किस वेद ने और मनुस्मृति ने तुम्हे दास बनाया ???उन वेदों ने जिनका लिप्यंतरण मैक्समूलर ने किया था या जिस मैक्समूलर की भी टाँग बाबा ने तोड़ दी बिना कुरान, बाइबिल और सही वेद पढ़े हुए ???
तो दास और शूद्र में क्या अंतर होता है समझ आ ही गया होगा। क्या अभी भी वेद और मनुस्मृति ही निशाने पर रहेगी, या अन्य आसमानी किताबों के समक्ष उनका तुलनात्मक समीक्षा होगी। वैसे इतिहास पढ़ लीजियेगा भारत में दास प्रथा कभी नही थी और जो विद्रूपता भारतीय वर्णव्यवस्था में आई थी वो इन्ही किताबों की छाया भारत में पड़ने के बाद ही आई थी।

हो सकता है , बहुत से विद्व जानो को ये सब पढ़ कर पेट में मरोड़ उठेगी। सनातन धर्म के धर्म शास्त्रो के विरुद्ध वही लिखे जिसने खुद इनका अध्यन किया है और इनके अर्थ को समझा है।  फिर भी यदि कुछ कहने की इच्छा हो तो पहले निम्न श्लोक ज़रूर समझ ले। 

अधीत्य चतुरो वेदान् सर्वशास्त्राण्यनेकशः।
 ब्रहात्वं न जानेती दर्वी पाकरसं यथा।। 
यथाखरचंदनभारवाही भारस्यवेता न तु चंदनस्य।
 तथैव विप्रा षटशास्त्रयुक्ता सद्ज्ञानहीनाः खरवद् वहन्ति।। 

अर्थात - - - चारों वेद एवं अनेकों शास्त्रों को पढ़ लेने के बाद यदि ब्रह्मज्ञान नहीं हुआ तो वह वैसे ही है जैसे कलछुली अनेक व्यंजनों में घूमते हुए भी उनके स्वाद से अनभिज्ञ रह जाती है। जैसे गधा चंदन का भार ढोता है परन्तु उसकी सुगंध को नहीं जानता, वैसे ही वह विद्वान है जो छहों शास्त्रों का ज्ञाता होकर भी सद्ज्ञान से हीन है। वह गधे के बोझा ढोने के समान शास्त्र मद, विद्या मद का बोझा ढो रहा है। 

रविवार, 12 जुलाई 2015

मुस्लिम तुष्टिकरण

दूसरे की बीवी और भारत का संविधान दूर से देखने पर बहुत अच्छा लगता है। लेकिन हक़ीक़त क्या है उस औरत के पति और भारत में रहने वाले बहुसंख्यकों से पूछो।  
कहाँ से शुरू करूँ, हाल में तेलंगाना में ईद के मौके पर अल्पसंख्यंकों को बंटते हुए सरकारी थैले से या महाराष्ट्र सरकार द्वारा मदरसों में पढ़ाये जाने वाले विषयों तथा मदरसों को दिए जाने वाले अनुदान से सम्बंधित उपजे विवाद से या फरवरी 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस वित्तीय वर्ष में अल्पसंख्यकों (यू पी के सन्दर्भ में मुस्लिम पढें)  के नाम पर 1500 करोड़ का प्रावधान करने से या 1993 के सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश से जिसमे उसने सरकार को मस्जिदों के इमामों को मासिक वेतन देने का आदेश दिया था या 1976 के उस 42वें संविधान के संशोधन से जिसमे "भारत को धर्मनिरपेक्ष" राष्ट्र घोषित किया गया था या 
13 दिसंबर 1946 से जिस दिन संविधान लिखे जाने के लिए, कि सबको समानता, स्वतंत्रता, प्रजातंत्र, प्रभुता और देश एवं जाति में भेदभाव रहित तरीके से संचालित किया जाये, यह  Objective Resolution जवाहर लाल नेहरू ने प्रस्तावित किया था। 2 साल 11 महीने 17 दिन और 6.4 करोड़ रूपये खर्च करके संविधान को अमली जामा पहनाया गया। जून 2015 तक 100 संशोधन हो चुके हैं इस संविधान में और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए सरकार द्वारा पारित एक आदेश के अनुसार अल्पसंख्यक अपने प्रमाण पत्र खुद ही सत्यापित कर सकते है। तीन साल के संविधान लिखने के समय में संविधान निर्माताओं ने साढ़े छह करोड़ की भांग पी थी ऐसा मैं नहीं कहूँगा , लेकिन वो भांग की ऐसी खेती बो गए जिसे पी पी कर सरकारों ने बहुसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया। 
कश्मीर से लेकर केरल तक सरकारें अल्पसंख्यक तुष्टिकरण में लगी हुई हैं। कश्मीर में हिन्दू रह नहीं सकते और केरल में  लोकसेवा आयोग केरल द्वारा सरकारी नौकरियों में 12% आरक्षण मुस्लिमों को है। 
कहाँ है संविधान प्रद्दत समानता ???? बच्चे के पैदा होने से लेकर कब्रिस्तान तक आरक्षण और अनुदान की थैली खोले खड़े हैं। पढ़ना है तो आरक्षण और सरकारी वज़ीफ़ा है। मदरसों के अध्यापक सरकार से तनख्वाह पाते है। प्रतियोगिता की तैयारी करनी है तो मुफ्त की सुविधाओं से युक्त कोचिंग हैं, नौकरी के लिए आवेदन दिया तो अल्पसंख्यक आरक्षण है। पढ़ने विदेश जाना है तो सब्सिडी मिलेगी. हज करने या हाजत करने जाना है तो सब्सिडी मिलेगी। बैंक से क़र्ज़ चाहहए तो सस्ती दरों पर क़र्ज़ मिलेगा। अलग से अल्पसंख्यक मंत्रालय बना हुआ है जिसके तह केन्द्र सरकार ही 17 तरीके की योजनाएं इनके लिए चलाती है।वक़्फ़ बोर्ड बने हुए हैं जो देश को एक रुपया नहीं देते। अल्संख्यक शिक्षण संस्थान बने हुए है जो कि तमाम तरीके के सरकारी अनुदान प्राप्त करके अपने मज़हब का उल्लू सीधा करते हैं। देश के कानून से ऊपर इनका पर्सनल लॉ बोर्ड है। कोई आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त पाया जाता है तो सरकारें उनपर से केस वापिस लेने के लिए तैयार खड़ी हैं। 
 संविधान के अनुछेद  14, 15(1), 16(1) and 16(2) सबको समानता के आधार पर तौलते है लेकिन अनुछेद 16(4) राज्य सरकारों के हाथ की कठपुतली बन कर उपरोक्त अनुच्छेदों को हिजड़ा बना देता है। 


 कहाँ है समानता ??? बस एक अपवाद छोड़ कर कि मुरली मनोहर जोशी ने संस्कृत विद्यापीठों की स्थापना की और अनुदान दिया।  कहाँ है संविधान की धर्मनिरपेक्ष और वो भावना जिसके तहत जाति एवं मज़हब के आधार पर किसी से भेद भाव नहीं किया जायेगा ??? संविधान के अनुसार निम्न श्रेणियों से आने वाले आरक्षण के हक़दार नहीं है ----
1) संवैधानिक पदों का जिन्होंने लाभ लिया हो उनके बच्चे ---- इसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति ,सुप्रीम और हाई कोर्ट के न्यायधीश, केंद्र एवं राज्य सेवा आयोग के  चेयरमैन और सदस्य अथवा अन्य संवैधानिक संस्थाओं के मुखिया के बच्चे। 
2) सरकार में 1 और 2 श्रेणी ( क्लास 1 & 2 ऑफिसर्स) एवं पब्लिक सेक्टर में ग्रुप A & B ऑफिसर्स के बच्चे। 
3)सैन्य बालों तथा अर्ध सैन्य बलों के कर्नल अथवा इससे ऊपर के रैंक के अधिकारीयों के बच्चे। 
4) पेशेवर व्यवसाय --जैसे डॉक्टर, वकील चार्टर्ड अकाउंटेंट,इंजीनियर ,आर्किटेक्ट, स्पोर्ट्स पर्सन्स इत्यादि ( परन्तु यहाँ पर सालाना आय भी देखी जाएगी )
5) ज़मींदारों एवं किसानो के बच्चे ---सरकार द्वारा पारित सीलिंग एक्ट के तहत यदि किसान के पास 10 एकड़ ज़मीन है और उसके 85% पर वो खेती कर रहा है तो उसके बच्चे आरक्षण के हक़दार नहीं हैं। 
6) यदि माँ बाप की सालाना आये 6 लाख रुपये से अधिक है तो उनके बच्चे आरक्षण के हक़दार नहीं हैं।  

पहले बिंदु को छोड़ कर क्या कभी इस बात की जांच हुई , कि पात्र आरक्षण लेने की अहर्ता रखता भी है या नहीं। मेरे संज्ञान में तो एक 10 रुपये का एफिडेविट लगता है कि पात्र पिछड़ी जाति का है , कोई नहीं देखता कि वाकई क्या उसे आरक्षण का लाभ मिलना भी चाहिए या नहीं। 


सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी और विद्यार्थी अभी इस ग़लतफहमी के शिकार हैं कि आरक्षण 49.5% (50%) है, तो ग़लतफहमी दिमाग से निकाल दीजिये, 33% महिला आरक्षण को जोड़ लीजिये प्रिय कल के बेरोज़गार दुल्हो, आपके लिए सिर्फ 17% पढ़ने या नौकरी के लिए स्थान रिक्त है। 
बात शुरू हुई थी ईद पर थैलों और इमामों को सरकारी वेतन से, तो फेसबुक पर एक से एक ज्ञानी सज्जन पड़े हुए हैं,बोलेंगे की कर्नाटक, आँध्रप्रदेश में पुजारियों को भी तो सरकार वेतन देती है। लेकिन यह बोलने से पहले वे लोग यह देख लें कि मंदिर कितना पैसा सरकार को देते है और उसके कितना प्रतिशत सरकार मंदिरों को वापिस करती है। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2002 में कर्नाटक सरकार को मंदिरों से 72 करोड़ रुपये मिले , जिसमे से 10 करोड़ रुपये मंदिरों के रख रखाव के लिए वापिस किये गए, 10 करोड़ चर्चों को दिए गए और 50 करोड़ रुपये मदरसों के सञ्चालन के लिए दिए गए। 
क्या यही है समानता का अधिकार ???? अजब देश है जब धर्म के नाम पर बंटवारा हो ही गया और यहाँ से जाने की पूरी आज़ादी थी, तो हर रोज़ नए नए अधिकार किस आधार पर मांग रहे है ??? और अजब सरकारें हैं, जो बहुसंख्यकों के हितों को ताक पर रख कर अल्पसंख्यंकों के लिए नीतियां बनाती हैं। 

कोई मुझे बताएगा क्या, कि कितने प्रतिशत होने पर ये अल्पसंख्यक नहीं रहेंगे ??? और जब बहुसंख्यक हो जायेंगे तो हिन्दुओं का कश्मीर, पाकिस्तान ,बांग्लादेश में जैसा हाल किया वैसा हाल नहीं करेंगे ??? तब ये अल्पसंख्यंकों को मिलने वाले लाभ हिन्दुओं को देंगे क्या ????

शनिवार, 4 जुलाई 2015

तो फिर तुम बौद्ध कैसे ?????

                    तो फिर तुम बौद्ध कैसे ????? 
बहुत बढ़िया अलादीन का चिराग है यह फेसबुक, सभ्य असभ्य, साक्षर अनपढ़, अमीर गरीब, हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई किसके मन में क्या चल रह है सब कुछ निसंकोच आपको बता देता है। बस ज़रा सी मेहनत करनी होती है किसी की टाइमलाइन पर जा कर कुछ समय उसकी पोस्ट और कमेंट्स देखने बाद उसकी मानसिकता समझने के लिए। 

बहुत दिनों से कुछ हिन्दू नामों से सनातन धर्म, और देवीदेवताओं के विषय में अपशब्द सुनने के पश्चात एक शोध विद्यार्थी की तरह कुछ प्रोफाइल्स का गहन अध्ययन किया तो पाया कि बस नाम ही हिन्दू सरीखे हैं, या तो वे झूठी प्रोफाइल्स हैं या नवबौद्धों की प्रोफाइल्स हैं जिनके दिलों में हिन्दुओं के प्रति कूट कूट कर ज़हर भरा हुआ है। 
इन्हे वो इस्लाम बहुत प्रिय है जिसने इनके पूर्वजों को मार मार कर मुसलमान बना दिया।  इन्हे वो ईसाइयत बहुत प्रिय जिसने चंद चांदी के टुकड़ों से इनका ज़मीर खरीद लिया। बस इन्हे नफरत है हिन्दू धर्म से तो बिना कारण जाने इस घटना से कि एक द्रोणाचार्य ने एकलव्य से अंगूठा क्यों मांग लिया था। इन्हे नफरत है हिन्दू धर्म से कि श्रीराम ने शम्बूक वध क्यों किया था। इन्हे नफरत है हिन्दू धर्म से कि यह कहावत क्यों है " कहाँ राजा भोज ,कहाँ गंगू तेली "
5000 सालों का एक पता नहीं कौन सा इतिहास ले कर सिर पर उठाये घूम रहे हैं लेकिन इन्हे वर्ष 1200 A D  और तत्पश्चात के बख्तियार ख़िलजी जिसने बौद्धों के नरमुंडों के पहाड़ खड़े कर दिए थे, नालंदा विश्वविद्यालय को विध्वंस कर दिया था, वो भुला गया लेकिन उसके वंशज बहुत प्रिय हैं। 
मुझे आज तक उत्तर भारत  में वैष्णो देवी से लेकर दक्षिणभारत में पद्मनाभस्वामी के मंदिर तक, किसी एक प्रतिष्ठित मंदिर का नाम नहीं बता पाये जहाँ इनके प्रवेश पर प्रतिबन्ध हो। लेकिन हर चर्चा में यही रोना कि दलितों का मंदिरों में प्रवेश वर्जित है। अगर बौद्ध हो , हिन्दू धर्म को नहीं मानते हो तो फिर हम भी पूछ सकते हैं कि तुम्हें वैदिक मंदिरों में जाने कि ज़रुरत क्या है ??? जब तुम्हारे बौद्ध विहारों के पुजारी/ भिक्षु  थाईलैंड,बर्मा ,भूटान,कम्बोडिया, श्रीलंका , तिब्बत से रखे जाते हैं और तुम्हारे पेट में दर्द नहीं होता तो हिन्दू मंदिरों के पुजारियों की नौकरी पर क्यों दांत गड़ाए बैठे रहते हो ?? जिस तरह से प्रतिष्ठित हिन्दू मंदिरों का चढ़ावे का 80% सरकार ले लेती है ,क्या तुम्हारे मंदिरों के चढ़ावे का एक भी पैसा देश हित में लगता है ??? नहीं लगता। 
लेकिन आरक्षण चाहिए और हक़ से चाहिए , हिन्दुओं को गलियां दे कर चाहिए। जब आरक्षण मिल गया तो क्या खुश हो गए या तुम्हारे मन का ज़हर धूल गया।  नहीं धुला, क्योंकि तुम लोग बौद्ध सिर्फ आरक्षण पाने के लिए बने बाकि तुमको महात्मा बुद्ध की एक भी शिक्षा याद नहीं है। तुम लोग अपने दुखों के लिए हिन्दुओं और वर्णव्यवस्था को दोषी ठहराते हो लेकिन महात्मा बुद्ध की उस शिक्षा को भूल गए जिसमे उन्होंने कहा कि इस जन्म के दुःख पूर्वजन्मों के कर्मों के कारण हैं।
तुम लोग महात्मा बुद्ध के द्वारा बताये गए निम्न चार "आर्य सत्यों" को भी भूल गए ------
1) दुःख --- बुद्ध का कहना था कि मानव जीवन में चारों और दुःख ही दुःख है। रोग,बुढ़ापा और मृत्यु ये तीनों दुःख मनुष्य के जीवन में निश्चित रूप से आते हैं।  इसके अतिरिक्त, इच्छित वस्तु की प्राप्ति न होने पर भी दुःख का अनुभव होता है। इस प्रकार संसार दुखों का सागर है। 
2) दुःख समुदाय ( दुःख का कारण)----भगवन बुध ने निर्बोध जनसमुदाय को केवल दुःख की स्थिति को ही नहीं बताया , बल्कि दुःखों की उत्पति का कारन ( इच्छा,तृष्णा,भोग,काम वासना आदि) भी बताया। 
3) दुःखों की समाप्ति तृष्णा के नाश से संभव है ---लोगों को दुख का कारण समझा देने के बाद बुध ने तीसरे सत्य के अंतर्गत यह बताया कि यदि इस तृष्णा को समाप्त कर दिया जाये, तो मनुष्य इस जन्म मरण के चक्कर से मुक्त हो कर निर्वाण प्राप्त कर सकता है। महात्मा बुद्ध का भिक्षों को उपदेश था कि " संसार में जो कुछ भी प्रिय लगता है, संसार में जिसमे भी रस मिलता है, उसे जो उसे जो दुःख -रूप समझेंगे, रोग रूप समझेंगें, उसे उठेंगे , वे ही तृष्णा को छोड़ सकेंगे। "
4) दुःख निवारण का मार्ग : अष्टांगिक मार्ग --- गौतम बुद्ध ने अपने चौथे आर्य सत्य में लोगों को इस तृष्णा से मुक्ति पाने के लिए अष्टांगिक मार्ग ( EIGHT FOLD PATH ) का अनुसरण करने पर बल दिया। 
1) सम्यक दृष्टि 2)सम्यक संकल्प 3) सम्यक वाणी 4) सम्यक जीविका 5) सम्यक कर्म 6)सम्यक स्मृति 7) सम्यक व्यायाम एवं 8) सम्यक समाधि। 
और इसके बाद जो महात्मा बुद्ध ने दस आचरणों का पालन करने का निर्देश दिया था, वो भी तुम्हें याद नहीं है ---
दस आचरण (शील)---- निम्न पांच नियम गृहस्थों के लिए थे ---
1) अहिंसा -- हिंसा न करना 2) सत्य --झूठ न बोलना 3) अचौर्य -- चोरी न करना 4)ब्रह्मचर्य --संयमित जीवन व्यतीत करना 5) अपरिग्रह -- अधिक वस्तुओं का संग्रह न करना,
तथा बौद्ध भिक्षों और भिक्षुणियों के लिएजो पांच नियम अतिरिक्त थे वे हैं ---
6) असमय भोजन का परित्याग 7) कोमल शैय्या का परित्याग 8) नृत्य ,गायन एवं मादक वस्तुओं का त्याग 9) सुगन्धित पदार्थों का त्याग 10) कुविचारों का त्याग। 

वैदिक सनातन धर्म से नफरत करने वाले प्रिय बौद्धों, महात्मा बुद्ध की उपरोक्त किस बात को मानते हो तुम ??? किसी एक को भी नहीं। तो यह मानने में भी तुम लोग द्वितीय शील की अवहेलना ही करोगे कि मात्र आरक्षण लेने के लिए ही बौद्ध बने घूम रहे हो, वरना यही शिक्षाएं हिन्दू धर्म ग्रंथों में भी दी गयीं हैं जिसे अल्पबुद्धि वालों ने तोड़ मरोड़ कर इस्तेमाल किया और आज आप लोग तोड़ मरोड़ कर बदनाम कर रहे हो। 
जैसे जैन धर्मावलम्बी हिन्दुओं के साथ मिलजुल कर रहते हैं, तुम भी रहो। अगर नफरत दिल में भर कर रहना चाहते हो तो यह मान लो तुम भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का पालन ही नहीं कर रहे तो फिर तुम बौद्ध कैसे ????? और तुम लोगों के आचरण से महात्मा बुद्ध का अपने "शिष्य आनंद और मौसी प्रजापति गौतमी "कहा हुआ यह वाक्य सच न हो जाये ------
" आनंद ! मैंने जो धर्म चलाया था, वह पांच हज़ार वर्ष तक स्थायी रहने वाला था, लेकिन अब केवल पांच सौ वर्ष ही चलेगा, क्योंकि हमने स्त्रियों को संघ में सम्मिलित होने की अनुमति दे दी है। "

मेरी और मेरे बहुत से मित्रों की यह त्रासदी

हम तो मंदिर के वो घंटे हो गए हैं जिसे हर कोई बजा कर चला जाता है। जी, मैं  भारत में रहने वाले एक साधारण हिन्दू की बात कर रहा हूँ। आप सुबह सुबह फेसबुक खोलते हैं और पाते हैं कि -------
7 ) सातवां  हाथ और जब भी समय मिलता है मुसलमान मारता है। ----- दुनिया का कोई भी विषय हो सबसे पहले भारतीय मुस्लिमों का धर्म संकट में पड़ता है और वे अपनी पूरी तार्किक शक्ति हिन्दुओं, हमारे देवीदेवताओं और हमारी मान्यताओं को गलत साबित करने में लगा देते हैं। इनके क़ुरान की ,मारकाट, लूटखसोट ,बलात्कार और जिहाद सरीखे रिवाज़ और उन्हें सीखने वाली कुरान कहीं से इन्हे गलत नज़र नहीं आती। 
6) छठा  हाथ मूलनिवासी और बौद्ध मारने लगे हैं।--- इनके ऊपर 3000 साल से ब्राह्मणों और यूरेशिया से आये हुए आर्यों ने बहुत अत्याचार किया।  हिन्दू धर्मग्रंथों की आलोचना उनमे ढूंढ ढूंढ का शब्दों और उनमे निहितार्थ अर्थों का अनर्थ करना इनका पहला ध्येय है। इसलिए वैदिक धर्म और इसके अनुयायियों को मार कर यूरेशिया वापिस भेजना, इनका एजेंडा है। लेकिन सबसे मज़े की बात पिछले 800 सालों में जिन मुल्लों ने इन्हे मार मार कर मुर्गा बना दिया वो आज इनके सगे हैं।   
5 )पांचवां  हाथ अपने नाम के आगे या पीछे "आर्य" शब्द लगा कर सनातन और वैदिक धर्म की जड़ें खोदने वाले डंके की चोट पर मारने लगे हैं। ----- मेरी पूरी पढ़ाई शिमला और चंडीगढ़ के डी ए वी स्कूल और कॉलेज में हुई, 1988 तक एक बार भी इन संस्थानों किसी सहविद्यार्थी या अध्यापक ने कभी मूर्तिपूजा या पुराणों और उपनिषदों का उपहास नहीं उड़ाया। परन्तु आज के ये न जाने कौन से "आर्य" पैदा हो गए हैं जो मुसलामानों सी बातें करके वेदों के अतिरिक्त मात्र "हिन्दू" धर्मग्रंथों में कुरीतियां ढूंढ रहे हैं और उन्हें जलाने की बात कर रहे हैं। यदि उनसे किसी संस्कृत के श्लोक का अर्थ पूछ लिया जाये या यह पूछ लिया जाये कि क्या आपने सारे धर्मग्रंथों का अध्ययन किया है तो वहां तो जवाब नहीं देते बल्कि अपनी कलम से नै पोस्ट पर नया मलत्याग कर देते है। हद्द तो तब हो जाती है जब यह स्वामी विवेकानंद और श्रीमद्भगवद्गीता तक को अपशब्द कहने में कोई गुरेज़ नहीं करते। और मुझे कष्ट होता है इनकी हाँ में हाँ मिलाने वालों की अक्ल पर, जिन्हे यह नहीं मालूम की बेर का मुंह कौन सा होता और #$@^ कौन सी होती है ,चालू रहते हैं अपनी पीपनी बजने के बजाये कि प्रश्नो के सार्थक उत्तर देने के।   
4) चौथा हाथ, वामपंथियों और धर्म एवं शर्म निरपेक्ष कांग्रेसी मारते हैं। ---मुगलों और मैकाले की नीतियों को जिस सिलसिलेवार और व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ा कर इन्होने हिन्दू धर्म ,भारतीय संस्कृति का नाश किया और हिन्दुओं के आत्मस्वाभिमान को ख़त्म करके अपनी ही संस्कृति के प्रति आत्मग्लानि से भर दिया है, शायद उस स्थिति से वापस आना अगली शताब्दी तक संभव नहीं है। इन लोगों ने जो संविधान और शिक्षा का पाठ्यक्रम बनाया , निकट भविष्य में उसे बदलना संभव नहीं है और यह समाज संतरे के फांकों की तरह विभाजित होता हुआ अधोगति को प्राप्त होता रहेगा। 
3 )तीसरा हाथ, अतिवृह्द मानसिकता से ग्रसित मीडिया मार रहा।----- Presstitude के विषय में मात्र इतना ही कहूँगा ,कि विदेशियों की यह रखैल उसी दाल को काट रही है जिस पर बैठी है। हमने अच्चे अचे राजाओं और नवाबों को रखैलों के हाथ बर्बाद होते हुए सुना है, अफ़सोस आने वाली पीढ़ियां करेंगी जब यह देश बर्बाद हो चूका होगा।  
2 ) दूसरा हाथ, हिन्दू ही हिन्दू को मार रहा है, जो गोधरा जनित दंगों का दर्द और शोर 12 साल तक जितना मुसलमानों ने मचाया उससे ज्यादा उसको हिन्दुओं ने हवा दे रहा है । लेकिन वही हिन्दू कश्मीर असम किश्तवाड़ और अमरनाथ यात्रा के दंगों के समय हुए दंगों को याद भी नहीं करना चाहते, और फेसबुक पर अक्सर गुजरात दंगों का ज़िक्र कर अपने धर्मनिरपेक्ष होने का परिचय पत्र बाँटने के फेर में सातवीं सदी के कासिम के आक्रमण से 2013 तक के मुज़फ्फरनगर तक के दंगों को भूल जाता हैं। 65 सालों से जिनके बाप दादे आँखों में पट्टी बांध कर मुंह में दही जमा कर बैठे रहे, सच क्या है उनके वंशजों को आज नज़र आने लगा है। जिस मुस्लिम लीग के उत्तर में हिन्दुओं की रक्षा के लिए RSS बनी थी, आज के यह नवजात उल्लू के पट्ठे बिना इतिहास जाने बुझे RSS को गालिया देने लगते हैं। 
1) और पहला हाथ, हिन्दुओं का अहँकार उन्हें मार रहा है ---- जी, बाकायदा ताज़ा तरीन उदाहरण दे कर इस विषय को समझाऊंगा। इस फेसबुक पर दो प्रतिष्ठित एवं अपने अपने क्षेत्र में दक्ष एवं ज्ञानवान विद्वान हैं। नमम सुन्नन से आपको लगेगा कि यह एक व्यक्ति हैं यदि गौर से देखें तो ये अपने आप में फेसबुक पर संस्थाएं है जिनके पीछे मजबूत टीमें हैं 1) गिरधारी भार्गव जी तथा 2) त्रिभुवन सिंह जी। 
भार्गवजी एक कट्टर हिन्दू ,मुसलामानों, कांग्रेसियों गांधी नेहरू और वामपंथियों की धज्जीयां उड़ने में सिद्धहस्त। इन विषयों पर आपके लेखों का कोई जोड़ नहीं है । और दूसरी तरफ त्रिभुवन सिंह जी की दक्षता मूलनिवासियों की धज्जियाँ उड़ाने में है। वर्णव्यवस्था पर उनके शोधात्मक लेखों की कोई काट नहीं है। तीन दिन पहले भार्गव जी की "नोआखली दंगों " की एक पोस्ट पर त्रिभुवन जी की एक अव्यवहारिक टिप्पणी ने ऐसा मोड़ लिया कि फेसबुक पर एक अत्यंत शक्तिशाली,व्यवहारिक, तार्किक  एवं सामायिक सोच रखने वाला समूह छिन्न भिन्न हो गया। यदि यह दोनों समूह साथ में रहते तो मुझे नहीं लगता कि ज्ञान और तर्कों में इस टीम से कोई जीत जाता और फिर दोनों के पीछे थी रामशंकर मौर्य जी की कमांडो फ़ोर्स। मेरा पूर्व अनुभव कहता है यदि ये टीमें साथ में रहतीं तो इनकी जैसी मारक क्षमता किसी के पास नहीं थी परन्तु ……………………   
मेरी और मेरे बहुत से मित्रों की यह त्रासदी है समय के आभाव और बाध्यता में, कि किस किस से लड़ें, किस किस विषय पर लड़ें और किस किस को समझाएं ???