रविवार, 12 जुलाई 2015

मुस्लिम तुष्टिकरण

दूसरे की बीवी और भारत का संविधान दूर से देखने पर बहुत अच्छा लगता है। लेकिन हक़ीक़त क्या है उस औरत के पति और भारत में रहने वाले बहुसंख्यकों से पूछो।  
कहाँ से शुरू करूँ, हाल में तेलंगाना में ईद के मौके पर अल्पसंख्यंकों को बंटते हुए सरकारी थैले से या महाराष्ट्र सरकार द्वारा मदरसों में पढ़ाये जाने वाले विषयों तथा मदरसों को दिए जाने वाले अनुदान से सम्बंधित उपजे विवाद से या फरवरी 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस वित्तीय वर्ष में अल्पसंख्यकों (यू पी के सन्दर्भ में मुस्लिम पढें)  के नाम पर 1500 करोड़ का प्रावधान करने से या 1993 के सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश से जिसमे उसने सरकार को मस्जिदों के इमामों को मासिक वेतन देने का आदेश दिया था या 1976 के उस 42वें संविधान के संशोधन से जिसमे "भारत को धर्मनिरपेक्ष" राष्ट्र घोषित किया गया था या 
13 दिसंबर 1946 से जिस दिन संविधान लिखे जाने के लिए, कि सबको समानता, स्वतंत्रता, प्रजातंत्र, प्रभुता और देश एवं जाति में भेदभाव रहित तरीके से संचालित किया जाये, यह  Objective Resolution जवाहर लाल नेहरू ने प्रस्तावित किया था। 2 साल 11 महीने 17 दिन और 6.4 करोड़ रूपये खर्च करके संविधान को अमली जामा पहनाया गया। जून 2015 तक 100 संशोधन हो चुके हैं इस संविधान में और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए सरकार द्वारा पारित एक आदेश के अनुसार अल्पसंख्यक अपने प्रमाण पत्र खुद ही सत्यापित कर सकते है। तीन साल के संविधान लिखने के समय में संविधान निर्माताओं ने साढ़े छह करोड़ की भांग पी थी ऐसा मैं नहीं कहूँगा , लेकिन वो भांग की ऐसी खेती बो गए जिसे पी पी कर सरकारों ने बहुसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया। 
कश्मीर से लेकर केरल तक सरकारें अल्पसंख्यक तुष्टिकरण में लगी हुई हैं। कश्मीर में हिन्दू रह नहीं सकते और केरल में  लोकसेवा आयोग केरल द्वारा सरकारी नौकरियों में 12% आरक्षण मुस्लिमों को है। 
कहाँ है संविधान प्रद्दत समानता ???? बच्चे के पैदा होने से लेकर कब्रिस्तान तक आरक्षण और अनुदान की थैली खोले खड़े हैं। पढ़ना है तो आरक्षण और सरकारी वज़ीफ़ा है। मदरसों के अध्यापक सरकार से तनख्वाह पाते है। प्रतियोगिता की तैयारी करनी है तो मुफ्त की सुविधाओं से युक्त कोचिंग हैं, नौकरी के लिए आवेदन दिया तो अल्पसंख्यक आरक्षण है। पढ़ने विदेश जाना है तो सब्सिडी मिलेगी. हज करने या हाजत करने जाना है तो सब्सिडी मिलेगी। बैंक से क़र्ज़ चाहहए तो सस्ती दरों पर क़र्ज़ मिलेगा। अलग से अल्पसंख्यक मंत्रालय बना हुआ है जिसके तह केन्द्र सरकार ही 17 तरीके की योजनाएं इनके लिए चलाती है।वक़्फ़ बोर्ड बने हुए हैं जो देश को एक रुपया नहीं देते। अल्संख्यक शिक्षण संस्थान बने हुए है जो कि तमाम तरीके के सरकारी अनुदान प्राप्त करके अपने मज़हब का उल्लू सीधा करते हैं। देश के कानून से ऊपर इनका पर्सनल लॉ बोर्ड है। कोई आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त पाया जाता है तो सरकारें उनपर से केस वापिस लेने के लिए तैयार खड़ी हैं। 
 संविधान के अनुछेद  14, 15(1), 16(1) and 16(2) सबको समानता के आधार पर तौलते है लेकिन अनुछेद 16(4) राज्य सरकारों के हाथ की कठपुतली बन कर उपरोक्त अनुच्छेदों को हिजड़ा बना देता है। 


 कहाँ है समानता ??? बस एक अपवाद छोड़ कर कि मुरली मनोहर जोशी ने संस्कृत विद्यापीठों की स्थापना की और अनुदान दिया।  कहाँ है संविधान की धर्मनिरपेक्ष और वो भावना जिसके तहत जाति एवं मज़हब के आधार पर किसी से भेद भाव नहीं किया जायेगा ??? संविधान के अनुसार निम्न श्रेणियों से आने वाले आरक्षण के हक़दार नहीं है ----
1) संवैधानिक पदों का जिन्होंने लाभ लिया हो उनके बच्चे ---- इसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति ,सुप्रीम और हाई कोर्ट के न्यायधीश, केंद्र एवं राज्य सेवा आयोग के  चेयरमैन और सदस्य अथवा अन्य संवैधानिक संस्थाओं के मुखिया के बच्चे। 
2) सरकार में 1 और 2 श्रेणी ( क्लास 1 & 2 ऑफिसर्स) एवं पब्लिक सेक्टर में ग्रुप A & B ऑफिसर्स के बच्चे। 
3)सैन्य बालों तथा अर्ध सैन्य बलों के कर्नल अथवा इससे ऊपर के रैंक के अधिकारीयों के बच्चे। 
4) पेशेवर व्यवसाय --जैसे डॉक्टर, वकील चार्टर्ड अकाउंटेंट,इंजीनियर ,आर्किटेक्ट, स्पोर्ट्स पर्सन्स इत्यादि ( परन्तु यहाँ पर सालाना आय भी देखी जाएगी )
5) ज़मींदारों एवं किसानो के बच्चे ---सरकार द्वारा पारित सीलिंग एक्ट के तहत यदि किसान के पास 10 एकड़ ज़मीन है और उसके 85% पर वो खेती कर रहा है तो उसके बच्चे आरक्षण के हक़दार नहीं हैं। 
6) यदि माँ बाप की सालाना आये 6 लाख रुपये से अधिक है तो उनके बच्चे आरक्षण के हक़दार नहीं हैं।  

पहले बिंदु को छोड़ कर क्या कभी इस बात की जांच हुई , कि पात्र आरक्षण लेने की अहर्ता रखता भी है या नहीं। मेरे संज्ञान में तो एक 10 रुपये का एफिडेविट लगता है कि पात्र पिछड़ी जाति का है , कोई नहीं देखता कि वाकई क्या उसे आरक्षण का लाभ मिलना भी चाहिए या नहीं। 


सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी और विद्यार्थी अभी इस ग़लतफहमी के शिकार हैं कि आरक्षण 49.5% (50%) है, तो ग़लतफहमी दिमाग से निकाल दीजिये, 33% महिला आरक्षण को जोड़ लीजिये प्रिय कल के बेरोज़गार दुल्हो, आपके लिए सिर्फ 17% पढ़ने या नौकरी के लिए स्थान रिक्त है। 
बात शुरू हुई थी ईद पर थैलों और इमामों को सरकारी वेतन से, तो फेसबुक पर एक से एक ज्ञानी सज्जन पड़े हुए हैं,बोलेंगे की कर्नाटक, आँध्रप्रदेश में पुजारियों को भी तो सरकार वेतन देती है। लेकिन यह बोलने से पहले वे लोग यह देख लें कि मंदिर कितना पैसा सरकार को देते है और उसके कितना प्रतिशत सरकार मंदिरों को वापिस करती है। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2002 में कर्नाटक सरकार को मंदिरों से 72 करोड़ रुपये मिले , जिसमे से 10 करोड़ रुपये मंदिरों के रख रखाव के लिए वापिस किये गए, 10 करोड़ चर्चों को दिए गए और 50 करोड़ रुपये मदरसों के सञ्चालन के लिए दिए गए। 
क्या यही है समानता का अधिकार ???? अजब देश है जब धर्म के नाम पर बंटवारा हो ही गया और यहाँ से जाने की पूरी आज़ादी थी, तो हर रोज़ नए नए अधिकार किस आधार पर मांग रहे है ??? और अजब सरकारें हैं, जो बहुसंख्यकों के हितों को ताक पर रख कर अल्पसंख्यंकों के लिए नीतियां बनाती हैं। 

कोई मुझे बताएगा क्या, कि कितने प्रतिशत होने पर ये अल्पसंख्यक नहीं रहेंगे ??? और जब बहुसंख्यक हो जायेंगे तो हिन्दुओं का कश्मीर, पाकिस्तान ,बांग्लादेश में जैसा हाल किया वैसा हाल नहीं करेंगे ??? तब ये अल्पसंख्यंकों को मिलने वाले लाभ हिन्दुओं को देंगे क्या ????

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