मोदीजी लाख भाषण रोक लीजिए इनकी अजान के वक़्त पर , पर जो अपनी कुरान नहीं समझ सका आपकी भाषा भी नहीं समझेगा। ये ज़िन्दगी में आपके होंगे नहीं और कहीं ऐसा न हो हिन्दू भी आपके न रहें। वो क्या कहावत है ????? धोबी का_______________
आपके साथ साथ बहुतसेमुसलामानों और धर्मनिरपेक्षों ने कुरान या तो पढ़ी नहीं, अगर पढ़ी है तो समझी नहीं इसलिए निम्न तीनों वक्तव्यों में सामन्जस्य बिठाना उनके लिए कठिन है।
कुछ दिनों पहले ओवैसी ने बयान दिया कि वो "भारत माता की" कि जय नहीं बोलेगा।
आज दिनांक 2 अप्रैल 2016 के कुछ अखबारों ने मुखपृष्ठ पर खबर छापी कि " देवबंद के उलेमाओं" ने भी कहा है कि यह नारा "गैर इस्लामिक है" और साथ में छापा कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता "राशिद अल्वी" का बयान कि "मादरे वतन ज़िंदाबाद' कहने में कोई हर्ज़ नहीं है।
इनका बयानों का सम्बन्ध हम आगे समझते हैं, लेकिन उससे उससे पहले एक तथ्य और कुरान की कुछ आयतें समझ लीजिए।
तथ्य यह कि कुरान का तर्जुमा और व्याख्या दुनिया की 65 भाषाओं में अधिकतर मुसलामानों द्वारा किया गया है। इन सबने अरबी भाषा में लिखी हुई कुरान का अनुवाद भी कर दिया और बहुत जोश खरोश के साथ बहुत तफ्सील में पूरी दुनिया को कुरान पढ़ाने और समझाने की कवायद भी कर दी। लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आया कि इन तथाकथित मुस्लिम अनुवादकों की समझ में या तो कुछ आयतें आयीं नहीं या इन्होने खुद ,खुदा की बात मानने से इन्कार कर दिया।
नीचे कुछ आयतों का हिंदी अनुवाद ( हिन्दी में उपलब्ध कुरान मजीद, अनुवाद किया है " हज़रात मौलाना अशरफ अली थानवी रह० " ने प्रकाशक "इस्लामिक बुक सर्विस प्रा लि० , ISBN 81-7231-859-6 ) आपके लिए लिख रहा हूँ, ज़रा गौर फरमायें ----
सूरा 13: आयत 37=== और इस तरह हमने उसको इस तौर पर नाज़िल किया कि वह एक खास हुक्म है, अरबी (ज़बान में )।
सूरा 20:आयत 113 === और हमने इसी तरह इसको अरबी कुरआन (करके )नाज़िल किया है , और हमने इसमें तरह तरह से वईद "यानि सजा की धमकी और तंबीह "बयान की है , ताकि वे (सुनने वाले) लोग डर जाएँ,
सूरा 26:आयत 195 ===साफ़ अरबी जबान में "नाज़िल किया"
सूरा 39:आयत 27 === और हमने लोगों की (हिदायत) के लिए इस कुरआन में हर किस्म के (जरूरी) उम्दा मज़ामीन बयान किये हैं, ताकि वे लोग नसीहत पकड़ें।
सूरा 39:आयत 28 ===जिसकी कैफियत यह है कि वह अरबी कुरआन है जिसमे ज़रा सा भी टेढ़ नहीं ( और) ताकि वे लोग डरें।
सूरा 41:आयत 3 === यह एक ऐसी किताब है जिसकी आयतें साफ़ साफ़ बयान की गईं हैं। यानि ऐसा कुरआन है जो अरबी (जबान में) है , ऐसे लोगों के लिए (नफा देने वाला है) जो अकल्मन्द हैं।
सूरा 41:आयत 44=== और अगर हम इसको अज़मी "यानि अरबी जबान के अलावा किसी और" (जबान का) कुरआन बनाते तो यूँ कहते कि इसकी आयते साफ़ साफ़ क्यों नहीं बयान की गईं ??? यह क्या बात कि अज़मी किताब और अरबी रसूल ????
सूरा 42:आयत 7====और हमने इसी तरह आप पर (यह) कुरआन अरबी वह्य के ज़रिये नाज़िल किया है, ताकि आप (सबसे पहले) मक्का में रहने वालों को और जो उनके आस पास हैं उनको डराएं और जमा होने के दिन से डराएं,जिस (के आने) में ज़रा शक नहीं। एक गिरोह जन्नत में ( दाखिल )होगा और एक दोजख में होगा।
सूरा 43:आयत 3=== कि हमने इसको अरबी जबान का कुरआन बनाया ताकि (ऐ अरब वालो) तुम (आसानी से)समझ लो।
सूरा 46:आयत 12 ====और इससे पहले मूसा (अलैहिस्लाम ) की किताब जो राह दिखाने वाली और रहमत थी , और यह एक किताब है जो उसको सच्चा करती है, अरबी जबान में , जालिमों के डराने के लिए और नेक लोगों को खुशखबरी देने के लिए।
पढ़ लीं आपने ऊपर की आयतें ????
अब सवाल यह उठता है कि जब खुदा ने यह आयते खास तौर पर अरब के जाहिलों के लिए "अरबी भाषा में नाज़िल की थीं , तो तुम कैसे मुसलमान हो जो इन आयतों की भाषा बदल रहे हो। जिस खुदा ने यह दुनिया बनायीं है , 6 दिन में धरती और आसमान बनायें हैं तो दुनिया भर की भाषाएँ भी उसी ने बनायीं होंगी ??? अगर दुनिया भर की भाषाएँ उसने बनायीं तो फिर कुरान को एक खास तबके के लिए ही , एक खास भाषा में क्यों नाज़िल किया ???? या तो खुदा जनता था कि सिर्फ अरबी लोग ही जाहिल हैं और बाकि दुनिया जैसे कि भारत वालों को धर्म का ज्ञान है। या खुदा को भारत वालों के बारे में मालूम ही नहीं था ???
अगर खुदा सर्वव्यापी ,सर्वज्ञानी है तो यकीनन उसे भारत और इसके सनातन धर्म के विषय में मालूम होगा, तो फिर तब के और अब के ये मुल्ले कुरान की इतनी सी बात क्यों नहीं समझ प रहे कि इस्लाम को खुद ने सिर्फ जाहिल अरबों के लिए बनाया था। ऊपर लिखी आयत भी इनकी समझ में नहीं आती जिसमे मूसा का ज़िक्र है जो तौरात लाए थे और यहूदी मज़हब चलाया था जिसे आज ये मुल्ले (इजराइल को) दुनिया के नक़्शे से मिटाना चाहते हैं। मोहम्मद ने माना था कि ईसा मसीह पैगम्बर हुए हैं तो फिर ये मुल्ले दुनिया भर में ईसा को मानने वालों को क्यों काटते घूम रहे हैं ???? खैर कुरआन में मोहम्मद और उसके बताये खुदा को न मानने वाले काफिर हैं और उन्हें जिहाद के द्वारा ख़त्म ही किया जाना चाहिए।
अब आते हैं ऊपर दिए गए तीन बयानों पर। तलवार की नोक के सामने ओवैसी के पुरखे मुसलमान तो बन गए ,लेकिन उन्होंने कुरान किस भाषा में पढ़ी ???? जिस भी भाषा में पढ़ी उसे इतना समझ आ गया कि खुदा के अलावा किसी की जय जयकार नहीं करनी है। इसी बात को दोहराया वहाबी इस्लाम को मानने वाले देवबंद के दारुल उलूम ने और कह दिया कि भारतमाता की जय कहना गैर इस्लामिक है। अब आ जाइए कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता "राशिद अल्वी " के बयान की भाषा पर " मादरे वतन ज़िंदाबाद " कहा जा सकता है। उम्मीद करता हूँ आप सब समझ ही गए होंगे कि #मादरे_वतन_ज़िंदाबाद अरबी भाषा के शब्द हैं। यह बयान उस पार्टी के नेता का है जिसने लगभग 55 साल भारत पर राज किया है, लेकिन अपनी गुलाम मानसिकता नहीं छोड़ सका।
गुलाम कैसे ?????
1) मुसलमान इबादत अरबी भाषा में करता है। किसी और भाषा में इबादत करना शिर्क / गुनाह है और ऐसी इबादत कबूल नहीं होती।
2) ये लोग क़िबला (मक्का/ अरब , अरबों की ज़मीन ), की तरफ मुंह करके पांच वक़्त की नमाज़ अदा करते है। जबकि खुदा हर तरफ मौजूद है।
3) ज़िन्दगी में धार्मिक रूप से अरब ( मक्का ) जाना इनके लिए अनिवार्य है।
4) किसी भी देश के मुसलमान और गैर मुस्लिम का ये अरब की भाषा में (अस्लाम अलैकुम / वालेकुम अस्लाम ) अभिवादन करते हैं।
5) अपनी दैनिक बातचीत में अरब भाषा में बात बात पर "#इंशाअल्लाह और #अलमधुलिल्लाह कह कर बार बार अपनी मानसिक गुलामी का परिचय देते हैं।
बात इतनी ही होती तो भी गनीमत थी, 9 सितम्बर 2014 का एक फतवा #Sunnipath नाम की वेब साइट पर डाला गया ( बाद में इस फतवे को इस साइट से हटा दिया गया, वर्तमान में यह साइट भी नहीं खुल रही http://qa.sunnipath.com/ issue_view.asp?HD=7&ID=9427& CATE=1 ) जिसमे साफ़ साफ़ लिखा था कि "अरब के लोग गैर अरबी लोगों से ऊंचे होते हैं। इन अरब के लोगों में भी कुरैश, गैरकुरैशों से ऊपर होते हैं। कुरैशों में भी बानी हाशिम कबीले के लोग अन्य कुरैशों के ऊपर होते हैं। विस्तार से पढ़ने के लिए इस लिंक को पढ़ें।
तो फिर यह भारत के मुल्ले बेगानी शादी में क्यों दीवाने बने जा रहे है ?????
वैसे बहुत बड़ा विज्ञानं का जानकार है खुदा जो कहता है -----सूरा 55 आयत 5 ----सूरज और चाँद हिसाब के साथ चलते है।
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