पहली तस्वीर उस बच्चे की है जिसने एक ब्रेड चोरी करने की गलती की थी। दूसरी तस्वीर उस लड़की की है जिसकी खता यह थी कि उसका बलात्कार हुआ था और उसने अदालत की यह कह कर बेइज़्ज़ती कर दी थी कि ट्रायल उसका नहीं बलात्कारी का होना चाहिए। तीसरी तस्वीर में भी औरत को पत्थर मार मार कर मार दिया जायेगा , उसका गुनाह मुझे मालूम नहीं।
ये कुछ उदाहरण हैं शरियत क़ानून में दी जाने वाली सज़ाओं के।
भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड क्या ट्रिप्पल तलाक़ के अलावा चोरी, क़त्ल और व्यभिचार के लिए शरीयत में बताई गयी सज़ाओं के लिए वकालत करता है ????
शरीयत क़ानून वो हैं जिन्हें कुरान में तथाकथित खुदा ने बताया या जैसे मोहम्मद अपनी ज़िन्दगी जीता था उसको नज़ीर मान कर हदीसों में क़ानून बना दिया गया। सूरा
मुझे नहीं पता कि सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक़ के ऊपर क्या दलीलें पेश कर रहा है , लेकिन कुरान में भी तीन बार तलाक़ कहने की मियाद तीन महीने दी गयी है। यानि कि अगर किसी ने तलाक़ देने का मन बना ही लिया है तो वो औरत को उसकी माहवारी से पहले एक बार तलाक कहेगा , इसके बाद भी वे पति पत्नी के सम्बन्ध बना सकते हैं। फिर दूसरी माहवारी के बाद दूसरी बार तलाक़ कहेगा। इसके बाद भी वे पति पत्नी की तरह रह सकते हैं। और यदि सुलह की कोई गुंजाइश हो तो उसे मौका दिया जा सकता है ,लेकिन तीसरी माहवारी के बाद भी यदि तलाक कह दिया जाता है तो तलाक हो जाता है। ये तीन महीने की मोहलत देने की दो वजह थीं। पहली कि, इस समय के दौरान सुलह की कोशिश की जानी चाहिए। दोनों पक्षों के दो दो समझदार लोगों या निकाह के समय के चश्मदीद गवाह सुलह सफाई करवाने में मदद करें। यदि वे असफल हो जाते हैं तो पति पत्नी अलग हो सकते हैं। दूसरी वजह यह थी कि यदि तलाक देने के समय औरत गर्भवती हो जाती है तो बच्चा पैदा होने के तीन महीने बाद या इद्दत के समय तक मर्द उस औरत को घर से नहीं निकल सकता और उसे उस औरत और बच्चे का पूरा खर्च उठाना पड़ेगा। इद्दत का समय तीन महीने यानि की 90 दिन होती है। इसके बाद औरत अपने बच्चों की गठरी लाद कर भाड़ में जाये न पति को इससे कोई मतलब है , न समाज को और मुझे तो बिलकुल नहीं है।
मुझे क्यों दिक्कत नहीं है , इसकी भी दो वजहें हैं। पहली कि मैंने बहुत सी मुसलमान औरतों की हिन्दू धर्म की मान्यताओं की धज्जियाँ उड़ाती हुई पोस्ट पढ़ीं हैं , इसलिए मेरी दिली ख्वाइश है कि इस्लाम उन्हें इस तरह से ही रखे। और दूसरी वजह है कि जब कुरान ने ही उन्हें मर्द के मुकाबले में कमतर बताया है तो फिर हम क्यों बेगानी शादी में दीवाने हों। आइये12 उदाहरण देखें कुरान में औरतों का क्या दर्ज है --
12) सूरा 2 आयत 223 ---- औरतें तुम्हारे खेत हैं इनमे चाहें जहाँ मर्जी से घुसो।
11 ) सूरा 2 आयत 228 ---- मर्दों का औरतों के मुकाबले दर्जा बढ़ा हुआ है।
10 )सूरा 4 आयत 11 -12 ---- लड़के का जायदाद में हिस्सा लड़की से दुगना होगा , और माँ और बीवी का 1/3 , 1/4 ,1/6वाँ हिस्सा ( अलग अलग परिस्थितियों में)
9 ) सूरा 2 आयत 282 ---- दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर
8 ) सूरा 2 आयत 230 ---- एक तलाकशुदा औरत को अपने पहले पति से निकाह करने से पहले किसी दूसरे मर्द से निकाह करके शरीरिक सम्बन्ध बनाने होंगे। जब दूसरा मर्द तलाक दे देगा तभी पहले पति से निकाह कर सकती है।
7) सूरा 4 आयत 3 , 23:5-6 , 33:50 ,70 :30 ----बांदियों / गुलाम औरतों के साथ सेक्स की इज़ाज़त।
6 ) सूरा 4 आयत 3 --- अगर तुम्हे अंदेशा हो कि यतीम लड़कियों के साथ इन्साफ नहीं कर सकोगे तो दो तीन चार निकाह कर सकते हो पर अगर अंदेशा हो कि सबके साथ बराबर का व्यवहार नहीं कर सकते तो सिर्फ एक ही निकाह करो।
5 )सूरा 4 आयत 129 ---- ये आयत 4:3 की बिलकुल विरोधाभासी है --तुमसे ये कभी न हो सकेगा कि सब बीबियों में बराबरी बनाये रखो। इसी के आगे आयत 130 में आयत 129 के सन्दर्भ में कहती है कि ऐसे हालात में मियां बीवी जुदा हो जाएँ।
4) सूरा 4 आयत 34 --- मर्द हाकिम है औरतों पर। अगर औरत से बददिमागी का अंदेशा हो तो पहले उसे जुबानी नसीहत दो, और उसके बाद उसे मारो।
3 ) सूरा 65 आयत 4 ---- जिन औरतों को उम्र की वजह से माहवारी आनी बंद हो गयी है या जिनको काम उम्र की वजह से माहवारी शुरू नहीं हुई है , उनके लिए तलाक़ के बाद इद्दत का का समय 90 दिन है। #गौर_करें ----#इसी_आयत_से_
2) सूरा 33 आयत 37 -- ससुर अपनी बहु ( गोद लिए हुए बेटे की बीवी ) से निकाह कर सकता है। ( ये आयत तब नाज़िल हुई जब पैगम्बर का दिल अपने गॉड लिए हुए बेटे ज़ैद की बीवी जैनब पर आ गया था। )
और मेरे हिसाब से पहले पायदान पर आती है निम्न आयत,जो कि सिर्फ पैगम्बर पर अप्लाई होती है और ईमान वालों के लिए प्रतिबंधित है ---
1) सूरा 33 आयत 50 --- ऐ नबी ! हमने आपके लिए आपकी ये बीवियां जिनको आप मेहर दे चुके है, हलाल की हैं और वे औरतें भी तो तुम्हारी मम्लूक (गुलाम) हैं,जो अल्लाह तआला की गनीमत से आपको दिलवा दीं हैं और आपके चचा की बेटियां ,और आपके फूफियों की बेटियां और आपके मामूं की बेटियां और आपकी ख़ालाओं की बेटियां भी जिन्होंने आपके साथ हिज़रत की हो और उस मुसलमान औरत को भी जो बिना बदले के अपने को पैगम्बर को दे दे बशर्ते कि पैगम्बर उनको निकाह में लाना चाहें। ये सब आपके लिए मख़सूस किये गए हैं न कि और मोमिनों के लिए।
वैसे शरीयत में ब्लात्कारी को बचाने का पूरा प्रावधान किया गया है । अगर कोई महिला किसी पुरुष पर बलात्कार करने का आरोप लगाती है और वो आदमी अगर अपना गुनाह कबूल नहीं करता तो 4 गवाह ला कर आरोप सिद्ध ने की ज़िम्मेदारी स औरत की है । अगर वो सिद्ध नहीं कर पाती तो उसे 80 कोड़ों की सज़ा है । और 4 गवाह भी ऐसे होने चाहिए जिन्होने जननांगों को एक दूसरे के ............... ।
खैर इतना पढ़ने के बाद आपके लिए यह समझना बहुत ज़रूरी है कि #निकाह एक अरबी शब्द है जिसका हिंदी में मतलब होता है कानूनी अनुबंध ---और अंग्रेजी में LEGAL CONTRACT
और मुझे शरीयत से नफरत के बहुत से कारण हैं , जिसमें तीन अहम् कारन हैं -----
3) शरीयत मुसलामानों को इज़ाज़त देती है कि वे काफिरों पर हमला करके उन्हें या तो जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाएं या इस्लाम न कबूल करने की स्थिति में धीम्मी बना कर उनसे जज़िया वसूलें और दोनों स्थितियां संभव न होने पर काफिरों के पोर पोर काट कर उन्हें मार दें।
2 ) काफिरों के खिलाफ जिहाद कआरके उनकी औरतों को गुलाम बना सकते हैं और उनके साथ बीलटकर को जायज़ ठहराती है।
1) शरीयत के हिसाब से यहूदी और ईसाई की जान की कीमत मुसलमान के मुकाबले में आधी है और बौद्ध,जैन, हिन्दू और यज़ीदियों की जान की कीमत 1/16 है।
#तो_अब_कौन_चादरमोड़_कहता_है_कि_
Gyan vardhak lekh 😁😁😁
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