शनिवार, 10 सितंबर 2016

धर्मो में विरोधाभास की पराकाष्ठा



सितंबर का दूसरा सप्ताह चल रहा है और भारत के दो मुख्य त्यौहार इस सप्ताह मनाये जा रहे हैं। जैन लोग पर्युषण (संवत्सरी) मना रहे हैं और मुसलमान लोग तैयारी कर रहे है ईद उल ज़ुहा की ।त्यौहार दोनों ही त्याग आधारित हैं लेकिन दोनों में विरोधाभास की पराकष्ठा है। 
एक नज़र डालते हैं जैन धर्म के पर्युषण पर्व पर। जैनियों में सबसे अधिक महत्ता रखने वाला पर्व यही है। श्वेतांबर जैन इसे आठ दिन और दिगम्बर जैन इसे दस दिन मनाते हैं। दस दिनों के इस पर्व का मुख्य विषय आत्मा की शुद्धि होता है , जिसे शारीरिक और मानसिक उपवास रख कर अपनी आत्मा पर अधिक से अधिक ध्यान लगा कर शुद्ध करने का प्रयास किया जाता है। इस पर्व में निम्न दो मन्त्रों का विशेष रूप से जाप किया जाता है --
1) #मिच्छामि_दुक्कड़म
अर्थात ----यदि मैंने आपको जाने अनजाने में मनसा , वाचा, कर्मणा कोई कष्ट दिया है तो उसके लिए मैं आपसे क्षमा प्रार्थना करता हूँ।

,
2 ) खमेमी सव् वे जीवा, सववे जीवा खमंतु मे, मित् ती मे सव् वे भूएसु, वेरं मज् झ न केणइऐ। (#Note--- Please ignore the spelling mistakes done by me while writting this mantra)
Meaning: I forgive all the living beings of the universe, and may all the living-beings forgive me for my faults. I do not have any animosity towards anybody, and I have friendship for all living beings. अर्थात मैंने इस ब्रह्माण्ड में सभी जीवित प्राणियों को माफ़ कर दिया और सभी जीवित प्राणी मुझे माफ़ कर दें। मेरे दिल में किसी के प्रति कोई बैर भाव नहीं है और मेरी सभी जीवित प्राणियों से मित्रता है।
----- न सिर्फ इस मन्त्र का जप किया जाता है बल्कि अपने सभी मित्रों और सम्बन्धियों से पिछली कर्मो और वचनों द्वारा की गयी गलतियों के लिए माफ़ी मांगी जाती है। उन प्राणियों से भी माफ़ी मांगी जाती है जो जाने अनजाने में इनसे आहात हो गए हों। वैसे तो जैन धर्म है ही अहिंसा का प्रतीक फिर भी इस समय अनजाने में किसी भी प्राणी के प्रति हुई हिंसा के लिए क्षमा मांगी जाती है।
अब आ जाइये ईद पर---- मैं इस हफ्ते पड़ने वाली ईद ---ईद उल ज़ुहा--बकरीद की बात कर रहा हूँ। अल्लाह के नाम पर बलि चढाने का ये सिलसिला तो वैसे यहूदियों के पैगम्बर मूसा से भी बहुत पहले इब्राहिम ने ऊपर वाले के कहने पर अपने सबसे प्रिय बेटे इसहाक की बलि चढ़ाने की मांग से शुरू किया था। लेकिन बाइबिल में लिखा है कि जैसे ही इब्राहिम,इसहाक का गला रेतने वाले थे खुदा के दूत ने उन्हें रोक दिया और तभी इब्राहिम ने देखा कि झाड़ियों में एक मेढा फंसा हुआ है ,तो इब्राहिम ने उसे पकड़ कर उसकी बलि चढ़ा दी। ( बाइबिल --जेनेसिस -22: 1-14 )
कुछ ऐसी ही कहानी कुरान के सूरा 37 आयत 100 -110 में है, कि इब्राहिम को को ख्वाब आता था कि खुदा उससे उसके सबसे प्रिय बेटे की बलि मांग रहा है। जब इब्राहिमअपने बेटे की बलि चढ़ाने लगे तो खुदा ने उनके रोक कर शाबाशी दी और बलि चढाने के लिए बेटे की जगह एक जानवर दे दिया। 

त्याग दोनों पर्वों में हैं , एक में खुद को पीड़ा दे कर और दूसरे में दो दिन पहले खरीदे हुए बेजुबानों की जान लेकर अपने पैसे का त्याग। खैर यह तो अब ऊपर वाला तय करे कि कौन सा त्याग उसे स्वीकार है।
एक धर्म है सभी के सुख की कामना करता है और अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करता है और एक मज़हब है जो अपनी प्राथना के बाद उपरवाले से कहता है कि हमें काफिरों को मारने और उनपर राज करने की ताकत दे। सिर्फ अपनी प्रार्थना में ही नहीं कहते बल्कि अपने पवित्रतम धर्मस्थल मक्का से उनके धर्मगुरु प्रार्थना सभा के दौरान सभी काफिरों को मारने का एलान भी करते हैं। यकीं न हो तो नीचे दिया गया लिंक खोल लीजिये।
https://sputniknews.com/…/saudi-imam-calls-death-shia-jews-…
वैसे ऊपर वाले के ऊपर एक मजेदार बात यह है कि आज की तारिख में कोई उसके ऊपर रिस्क लेकर अपने सबसे प्रिय बेटे को ज़िब्ह के लिए छुरी के नीचे नहीं रखता अलबत्ता जिहाद में मरवा कर पता नहीं कौन सी जन्नत का वीसा दिलवाते है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें