बुधवार, 8 मार्च 2017

और अखिलेश का रथ रुक गया।

और अखिलेश का रथ रुक गया। 
कल चुनाव संपन्न हो गए, और आज से जमीन पर किये गए सर्वेक्षणों और अनन्य वैज्ञानिक विधियों से उनकी व्याख्या की जाएगी। सबके अपने अपने आंकलन होंगे। सांखियिकी के आधार पर विभिन्न दलों की सीटें भी बताई जाएँगी। कौन जीतेगा कौन हारेगा यह  बताया जायेगा। अनेकों विधियों में मुझे प्रकृति के इशारे पढने और समझने में कुछ ज्यादा ही रूचि है।  लोग इसे अंधविश्वास  सकते हैं, लेकिन 11 मार्च के बाद यह तय हो जायेगा कि वाकई प्रकृति  करती है या नहीं। 
1988 में पाओलो कोएल्हो ने पुर्तगाली भाषा में एक नॉवल लिखा था "अलकेमिस्ट" । कालान्तर में इसे दुनिया की 69 भाषाओँ अनुवादित किया गया।  इस पर फिल्मे भी बनीं। इस पुस्तक की विषयवस्तु थी , कि यदि आप किसी चीज़ को शिद्दत से चाहें तो पूरी प्रकृति आपको उससे मिलवाने के लिए आतुर हो उठती है।और इसी पटकथा से एक सन्देश और निकलता है कि जब आप कोई काम करते है तो प्रकृति आपको इशारों में उसके अंजाम के बारे में सचेत करती रहती है।
मुझे पूरा यकीन है कि ज़िन्दगी की व्यस्तताओं के चलते अखिलेश यादव जी ने यह नॉवल नहीं पढ़ा होगा। पढ़ा भी होगा तो उसे अंधविश्वास से ज्यादा कुछ नहीं माना होगा।  सबको मालूम था कि चुनाव कुछ ही महीनों में होने वाले हैं सब राजनीतिक दलों ने अपनी अपनी कवायद शुरू कर दी। अखिलेश यादव ने यह कवायद चार साल पहले ही स्टीव जार्दिङ्ग्स , हारवर्ड के प्रख्यात प्रोफेसर को अपनी और अपनी सरकार के छवि निर्माता के रूप में अनुबंधित किया था। स्टीव जार्डिनगस ने 2011 का स्पेन के मारियानो राजोय की  बागडोर संभाल कर उन्हें प्रधानमंत्री बनाया लेकिन वो ये क्रिश 2015 में नहीं दोहरा पाए। 2016 में अमरीकी चुनाव में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन और  उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार अल गोर की चुनावी बागडोर संभाली, और इन तीनों में से कोई चुनाव नहीं जीता है। इसी कड़ी में स्टीव परदे के  पीछे से अखिलेश की चुनावी बागडोर संभाल  रहे हैं और नतीजे दो दिन  सामने होंगे। 
सबसे अहम् इशारा प्रकृति ने 3 नवम्बर को किया।  अखिलेश ने विश्वप्रसिद्ध कर निर्माता मर्सिडीज़ बेंज से अपनी चुनावी रथ यात्रा के लिए करोड़ों रुपये खर्च करके बस बनवाई। मुलायम सिंह जी ने उसे झंडी दिखा कर रवाना किया। रथ आधे घंटे और डेढ़ किलोमीटर चले के बाद ख़राब हो गया।  बहुत ठीक करने की कोशिश की गयी लेकिन रथ ठीक नहीं हुआ यहाँ तक की बड़े बड़े इंजीनियर उसे ठीक नहीं कर पाए। यहाँ तक की क्रेन भी उसे अपनी जगह से हिला नहीं सकी। यह पहला इशारा था प्रकृति का अखिलेश यादव के लिए। 
रथ का रुकना अपनी जगह था ,लेकिन न जाने क्या सोच कर अखिलेश ने राहुल गाँधी को अपना हमसफ़र बना लिया. जनवरी 2013 में कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने। उसके बाद से भारत में जिन भी चुनावों में उन्होंने कांग्रेस की बागडोर अपने हाथों में संभाली, उसमे कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई। यह प्रकृति का दूसरा इशारा था , जिसे अखिलेश ने समझने से इनकार कर दिया। 
चुनावी दौर चल रहा था, अखिलेश मैदान मैं पूरी तरह से उतरे हुए थे अब प्रकृति उन्हें इशारा करती भी और वो समझते भी तो भी कोई लाभ नहीं था। इसी दौरान प्रकृति ने फिर इशारा किया और अल्लाहाबाद में जिस मंच से राहुल और अखिलेश ने भाषण देना था वो मंच टूट गया।  अखिलेश और राहुल बस उस सभा को रद्द ही कर सकते थे और उन्होंने किया। यह तीसरा इशारा था प्रकृति का। 
इन सबसे ऊपर अखिलेश अपने भाषणों  बार बार मोदी जी को गंगा मैय्या की सौगंध खाने के लिए कह रहे थी, कि गंगा मैय्या की कसम खा कर यह कहें की वाराणसी में 24 घंटे बिजली आती है। और प्रकृति का इससे बड़ा इशारा क्या हो सकता था कि अखिलेश जब खुद बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने पहुंचे तो बिजली चली गयी। 

ये अखिलेश को प्रकृति के इशारे थे या अंधविश्वास यह तो 11 मार्च को ही पता चलेगा।   

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