#हर_विचार_से_शब्द_बनते_हैं_शब् दों_से_प्रवृति_बनती_है_प्रवृति _से_कृत्य_बनते_हैं।
पिछले हफ्ते (27/07/17) टीवी पर मद्रास हाई कोर्ट के वन्देमातरम गाए जाने को अनिवार्य बनाने पर बहस देख रहा था। उसमे सभी मुसलमान वक्ताओं में एक हाजी अली दरगाह के सलाहकार भी थे। इन सलाहकार महोदय समेत सभी मुसलामानों का बस एक ही तर्क था कि हम उस खुदा के इलावा जिसने धरती और आसमान बनाये है किसी और को न तो नमन करेंगे और न ही वन्देमातरम गायेंगे।
A से अहमदाबाद में बड़ी बड़ी 12 हैं तो B से बैंगलोर में 42 हैं। इसी तरह से अंग्रेजी के अल्फाबेट से शहरों के नाम लिखते जाइये और Z तक से शुरू होने वाले शहरों में मौजूद नामचीन दरगाहों की गिनती कीजिये। इण्डियन सुन्नी नाम की संस्था ने एक वेब साइट औलिआ ए हिन्द बनायीं है जिसमें भारत वर्ष के 257 शहरों में मौजूद दरगाहों के विषय में संक्षेप में बताया हुआ है।और यहाँ होने वाले चमत्कारों का भी वर्णन किया है। इनमे उत्तर भारत में श्रीनगर की दरगाह हज़रतबल भी है तो दक्षिण भारत में तिरुवनंतपुरम की हज़रत कडुवाईल थंगल शरीफ भी है। इनमे पश्चिम भारत में मुंबई की हाजी अली भी है तो पूर्व में गौहाटी की हज़रत ज़ाहिर औलिया ख्वाजागन दरगाह भी है।औसतन अगर हर शहर में छोटी बड़ी पांच दरगाहें ले ली जाएँ तो भारत में 2500 से ज्यादा दरगाहें मौजूद हैं।
http://aulia-e-hind.com/Cities .htm
दरगाहें दुनिया भर में मिलती हैं बस फर्क सिर्फ पुकारे जाने वाले नाम का होता है जैसे अफ्रीका में इन्हे करामात के नाम से जानते हैं और चीन में इन्हे गोंगबै के नाम से जाना जाता है।
इन दरगाहों की मैनेजमेंट कमेटी में ज़ाहिर सी बात है मूसालमान ही होते हैं। अब दरगाहें हैं तो सिर्फ हिन्दू (चूतिये) तो वहां जाते नहीं हैं। मान लेते हैं 50% दर्शनार्थी वहां माथा टेकने वाले मुसलमान होते हैं। जैसे मुंबई की हाजी अली दरगाह के आँकड़े बताते हैं कि यहाँ रोज़ लगभग दस हज़ार लोग आते हैं और अजमेर शरीफ में डेढ़ लाख लोग रोज़ आते हैं। हर दरगाह के अलग अलग आंकड़े हैं। इन दस हज़ार या डेढ़ लाख में से हिन्दू तो साधारण सी बात है सर झुका कर वंदना ही करते होंगे। लेकिन मुसलमान सर झुका कर मत्था रगड़ कर क्या करते हैं ???
ऐसा मैंने पढ़ा है कि मुसलमान लोग वहां ज़ियारत यानि की पूजा करने जाते हैं। अबे तुम्हारे नुमाइंदे और तो और हाजी अली दरगाह के सलाहकार तो कह रहे थे कि वो अल्लाह तआला के इलावा किसी और को पूजेंगे नहीं तो फिर ये दरगाहों पर मुसलमान क्या करते हैं ???
इस्लाम में मूर्ती पूजा शिर्क है तो कब्रों की पूजा क्या है ??? मंदिरों में फूल माला और प्रसाद चढ़ाया जाता है तो दरगाहों पर भी तो फूल माला और चादर चढ़ाई जाती है। मंदिरों में भजन कीर्तन होते हैं तो इस्लाम में जब संगीत हराम है फिर हर रोज़ वहां कव्वालियों की नुमाइश कैसे हलाल हो गयी ??? मनीरों में परिक्रमा की जाती है तो दरगाहों में तो परिक्रमा की जाती है। क्या ये सब कृत्य पूजा की श्रेणी में नहीं आते ???
बहुत से मुसलमान अभी कहेंगे कि हम दरगाहों को नहीं मानते। अच्छी बात है मत मानो पर जितने मुसलमान दरगाहों पर जाते हैं क्या वो सभी सूफी सम्प्रदाय के मानने वाले होते हैं ??? नहीं, क्योंकि जिन 2500 दरगाहों का ज़िक्र ऊपर किया है वो सब अलग अलग शाखाओं के मुसलामानों की हैं। उनमे सूफी भी हैं शिया भी हैं सुन्नी भी हैं बरेलवी भी हैं। तो क्या इनको पूजने वाले तुमसे कमतर मुसलमान हैं ??? आसिफ अली ज़रदारी , शाहरुख़ खान , कैटरीना कैफ ,ज़हीर खान इमरान हाशमी ये सब अजमेर शरीफ में फूलों और चादर का टोकरा अपने सर पर उठा कर ले कर गए थे , क्या किया था उसका ??? हिंदी भाषा में कहें तो सब पूजा करके आये थे। तब कहाँ गया था एक और एक अल्लाह तआला जिसने पूरी कायनात को बनाया ??? फिर जब वो अल्लाह के साथ दरगाहों को पूज सकते हैं हाजी अली दरगाह के सलाहकार महोदय वंदेमातरम गाने में आपके पेट में मरोड़ क्यों उठाने लगी ???? महोदय , जब #पिया_हाजी_अली_गाया_और_फिलमाया _जा_रहा_था तब भारत भर के मुसलमान कहाँ थे कि एक अल्लाह की शान के इलावा दूसरे की शान में आप संगीत गा बजा कर गैर इस्लामिक काम कर रहे हैं।
छोड़ो दरगाह की बातों को।
अगर तुम्हारा सर्वशक्तिमान निराकार अल्लाह सर्वव्यापी है तो फिर अरब जा हज का ढोंग क्यों ?? #संगे_अस्वद को चूमने चाटने छूने और उसकी परिक्रमा करने मक्का तक जाने की ज़ेहमत क्यों ??
दर असल भारत के मुसलामानों को चाहिए तुर्की के अता तुर्क जैसा शासक जिसने 1925 में सभी #मदरसों_और_दरगाहों को जमींदोज़ कर दिया था। या इनको चाहिए चीन जैसी लठमार सरकार जिसने 1958 से 1966 के बीच सभी दरगाहों और मस्जिदों के नमो निशान मिटा दिए थे। छोड़ो तुर्की और चीन की बात जब सऊदी अरब सरकार ने मक्का और मदीना में मोहम्मद और उनके परिवार से जुडी सभी मस्जिदें और कब्रगाहें मिट्टी में मिला दी उनका नामो निशाँ तक नहीं छोड़ा
कर्बला को उन्होंने 1802 में ही नेस्तनाबूद कर दिया था।
https://en.wikipedia.org/wiki/ Wahhabi_sack_of_Karbala तो क्या है तुममें दम कि भारत की ज़मीन पर गैरकानूनी रूप से गारे मिट्टी की एक मस्जिद भी तुड़वा दो ??? नहीं , क्योंकि भारत और पकिस्तान में तो कोई मस्जिद में पाद देता है तो इस्लाम खतरे में पड़ जाता है फिर मुसलामानों में हिम्मत कहाँ कि मुंह से उस धरती माँ की प्रशंसा के दो लफ्ज़ बोल दें जिसकी छाती पर पैदा हुए अनाज को खा कर जिसकी मिट्टी में खेल कर पालते बढ़ते हो।
#हर_विचार_से_शब्द_बनते_हैं_शब् दों_से_प्रवृति_बनती_है_प्रवृति _से_कृत्य_बनते_हैं।-----समझ में आया इस ऋषि वाक्य का मतलब ????? चूँकि तुम्हारे विचारों में तमाम जीव जंतुओं को पलने वाली प्रकृति वन्दनीय नहीं है इसलिए पूरी दुनिया में इसे उजाड़ते घूम रहे हो। चूँकि तुम्हारे विचारों में स्त्री वंदनीय नहीं है इस लिए दुनिया भर में बलात्कार करते घुमते हो। चूँकि तुम्हारे विचार में ही धरती माँ वन्दनीय नहीं है इसीलिए भारत समेत पूरी दुनिया में बम फोड़ते घूम रहे हो।
चूँकि तुम भ्रमित हो इसलिए उन दरगाहों और मज़ारों को तो पूजते हो जो अल्लाह टाला से इतर हैं मगर उस धरती को पूजने से इंकार करते हो जिसने इन्हे सदियों से अपनी छाती पर सुला रखा है।
बहुत छोटी मानसिकता का है तुम्हारा खुदा जो अपने इलावा किसी की प्रशंसा सुनने का कलेजा नहीं रखता।
इस्लाम के अनुयायियों , बात सिर्फ भावनाओं की है। कैसा लगेगा आपकी माँ या बहन को अगर आपका भाई बीवी की तरह इस्तेमाल करने लगे। करते ही है , क्योंकि बात सिर्फ विचारों और भावनाओं की है।