शनिवार, 29 जुलाई 2017

दरगाहों को पूजेंगे पर धरती को नहीं

#हर_विचार_से_शब्द_बनते_हैं_शब्दों_से_प्रवृति_बनती_है_प्रवृति_से_कृत्य_बनते_हैं। 

पिछले हफ्ते  (27/07/17) टीवी पर मद्रास हाई कोर्ट के वन्देमातरम गाए जाने को अनिवार्य बनाने पर बहस देख रहा था। उसमे सभी मुसलमान वक्ताओं में एक हाजी अली दरगाह के सलाहकार भी थे। इन सलाहकार महोदय समेत सभी मुसलामानों का बस एक ही तर्क था कि हम उस खुदा के इलावा जिसने धरती और आसमान बनाये है किसी और को न तो नमन करेंगे और न ही वन्देमातरम गायेंगे। 
A से अहमदाबाद में बड़ी बड़ी 12 हैं तो B से बैंगलोर में 42 हैं। इसी तरह से अंग्रेजी के अल्फाबेट से शहरों के नाम लिखते जाइये और Z तक से शुरू होने वाले शहरों में मौजूद नामचीन दरगाहों की गिनती कीजिये।  इण्डियन सुन्नी नाम की संस्था ने  एक वेब साइट औलिआ ए हिन्द बनायीं है जिसमें भारत वर्ष के 257 शहरों में मौजूद दरगाहों के विषय में संक्षेप में बताया हुआ है।और यहाँ होने वाले चमत्कारों का भी वर्णन किया है। इनमे उत्तर भारत में  श्रीनगर की दरगाह हज़रतबल भी है तो दक्षिण भारत में तिरुवनंतपुरम की हज़रत कडुवाईल थंगल शरीफ भी है। इनमे पश्चिम भारत में मुंबई की हाजी अली भी है तो पूर्व में गौहाटी की हज़रत ज़ाहिर औलिया ख्वाजागन दरगाह भी है।औसतन अगर हर शहर में छोटी बड़ी पांच दरगाहें ले ली जाएँ तो भारत में 2500 से ज्यादा दरगाहें मौजूद हैं। 
http://aulia-e-hind.com/Cities.htm
दरगाहें दुनिया भर में मिलती हैं बस फर्क सिर्फ पुकारे जाने वाले नाम का होता है जैसे अफ्रीका में इन्हे करामात के नाम से जानते हैं और चीन में इन्हे गोंगबै के नाम से जाना जाता है।
इन दरगाहों की मैनेजमेंट कमेटी में ज़ाहिर सी बात है मूसालमान ही होते हैं। अब दरगाहें हैं तो सिर्फ हिन्दू (चूतिये) तो वहां जाते नहीं हैं। मान लेते हैं 50% दर्शनार्थी वहां माथा टेकने वाले मुसलमान होते हैं। जैसे मुंबई की हाजी अली दरगाह के आँकड़े बताते हैं कि यहाँ रोज़ लगभग दस हज़ार लोग आते हैं और अजमेर शरीफ में डेढ़ लाख लोग रोज़ आते हैं। हर दरगाह के अलग अलग आंकड़े हैं। इन दस हज़ार या डेढ़ लाख में से हिन्दू तो साधारण सी बात है सर झुका कर वंदना ही करते होंगे। लेकिन मुसलमान सर झुका कर मत्था रगड़ कर क्या करते हैं ???
ऐसा मैंने पढ़ा है कि मुसलमान लोग वहां ज़ियारत यानि की पूजा करने जाते हैं। अबे तुम्हारे नुमाइंदे और तो और हाजी अली दरगाह के सलाहकार तो कह रहे थे कि वो अल्लाह तआला के इलावा किसी और को पूजेंगे नहीं तो फिर ये दरगाहों पर मुसलमान क्या करते हैं ???
इस्लाम में मूर्ती पूजा शिर्क है तो कब्रों की पूजा क्या है ??? मंदिरों में फूल माला और प्रसाद चढ़ाया जाता है तो दरगाहों पर भी तो फूल माला और चादर चढ़ाई जाती है। मंदिरों में भजन कीर्तन होते हैं तो इस्लाम में जब संगीत हराम है फिर हर रोज़ वहां कव्वालियों की नुमाइश कैसे हलाल हो गयी ??? मनीरों में परिक्रमा की जाती है तो दरगाहों में तो परिक्रमा की जाती है। क्या ये सब कृत्य पूजा की श्रेणी में नहीं आते ???
बहुत से मुसलमान अभी कहेंगे कि हम दरगाहों को नहीं मानते। अच्छी बात है मत मानो पर जितने मुसलमान दरगाहों पर जाते हैं क्या वो सभी सूफी सम्प्रदाय के मानने वाले होते हैं ??? नहीं, क्योंकि जिन 2500 दरगाहों का ज़िक्र ऊपर किया है वो सब अलग अलग शाखाओं के मुसलामानों की हैं।  उनमे सूफी भी हैं शिया भी हैं सुन्नी भी हैं बरेलवी भी हैं। तो क्या इनको पूजने वाले तुमसे कमतर मुसलमान हैं ??? आसिफ अली ज़रदारी , शाहरुख़ खान , कैटरीना कैफ ,ज़हीर खान इमरान हाशमी ये सब अजमेर शरीफ में फूलों और चादर का टोकरा अपने सर पर उठा कर ले कर गए थे , क्या किया था उसका ??? हिंदी भाषा में कहें तो सब पूजा करके आये थे। तब कहाँ गया था एक और एक अल्लाह तआला जिसने पूरी कायनात को बनाया ??? फिर जब वो अल्लाह के साथ दरगाहों को पूज सकते हैं हाजी अली दरगाह के सलाहकार महोदय वंदेमातरम गाने में आपके पेट में मरोड़ क्यों उठाने लगी ???? महोदय , जब #पिया_हाजी_अली_गाया_और_फिलमाया_जा_रहा_था तब भारत भर के मुसलमान कहाँ थे कि एक अल्लाह की शान के इलावा दूसरे की शान में आप संगीत गा बजा कर गैर इस्लामिक काम कर रहे हैं। 
छोड़ो दरगाह की बातों को। 
अगर तुम्हारा सर्वशक्तिमान निराकार  अल्लाह सर्वव्यापी है तो फिर अरब जा हज का ढोंग क्यों ?? #संगे_अस्वद को चूमने चाटने छूने और उसकी परिक्रमा करने मक्का तक जाने की ज़ेहमत क्यों ?? 

दर असल भारत के मुसलामानों को चाहिए तुर्की के अता तुर्क जैसा शासक जिसने 1925 में सभी #मदरसों_और_दरगाहों को जमींदोज़ कर दिया था। या इनको चाहिए चीन जैसी लठमार सरकार जिसने 1958 से 1966 के बीच सभी दरगाहों और मस्जिदों के नमो निशान मिटा दिए थे। छोड़ो तुर्की और चीन की बात जब सऊदी अरब सरकार ने मक्का और मदीना में मोहम्मद और उनके परिवार से जुडी सभी मस्जिदें और कब्रगाहें मिट्टी में मिला दी उनका नामो निशाँ तक नहीं छोड़ा 
कर्बला को उन्होंने 1802 में ही नेस्तनाबूद कर दिया था।
https://en.wikipedia.org/wiki/Wahhabi_sack_of_Karbala  तो क्या है तुममें दम कि  भारत की ज़मीन पर गैरकानूनी रूप से  गारे मिट्टी की एक मस्जिद भी तुड़वा दो ??? नहीं , क्योंकि भारत और पकिस्तान में तो कोई मस्जिद में पाद देता है तो इस्लाम खतरे में पड़ जाता है फिर मुसलामानों में हिम्मत कहाँ कि मुंह से उस धरती माँ की प्रशंसा के दो लफ्ज़ बोल दें जिसकी छाती पर पैदा हुए अनाज को खा कर जिसकी मिट्टी में खेल कर पालते बढ़ते हो।   

#हर_विचार_से_शब्द_बनते_हैं_शब्दों_से_प्रवृति_बनती_है_प्रवृति_से_कृत्य_बनते_हैं।-----समझ में आया इस ऋषि वाक्य का मतलब ????? चूँकि तुम्हारे विचारों में तमाम जीव जंतुओं को पलने वाली प्रकृति वन्दनीय नहीं है इसलिए पूरी दुनिया में इसे उजाड़ते घूम रहे हो। चूँकि तुम्हारे विचारों में स्त्री वंदनीय नहीं है इस लिए दुनिया भर में बलात्कार करते घुमते हो।   चूँकि तुम्हारे विचार में ही धरती माँ वन्दनीय नहीं है इसीलिए भारत समेत पूरी दुनिया में बम फोड़ते घूम रहे हो। 
चूँकि तुम भ्रमित हो इसलिए उन दरगाहों और मज़ारों को तो पूजते हो जो अल्लाह टाला से इतर हैं मगर उस धरती को पूजने से इंकार करते हो जिसने इन्हे सदियों से अपनी छाती पर सुला रखा है। 
बहुत छोटी मानसिकता का है तुम्हारा खुदा जो अपने इलावा किसी की प्रशंसा सुनने का कलेजा नहीं रखता।
इस्लाम के अनुयायियों , बात सिर्फ भावनाओं की है। कैसा लगेगा आपकी माँ या बहन को अगर आपका भाई बीवी की तरह इस्तेमाल करने लगे। करते ही है , क्योंकि बात सिर्फ विचारों और भावनाओं की है।

शनिवार, 22 जुलाई 2017

भाड़ में गयी हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएँ और वैज्ञानिक शोध।


गज़ब बेवकूफों का देश है भारत। लिंचिंग के ऊपर संसद में बहस कर रहे हैं लेकिन यह कहने का दम किसी में नहीं है कि अगर बहुसंख्यकों की धार्मिक  भावनाओं को आहत करोगे तो नतीजा कुछ ऐसा ही निकलेगा। 
भाड़ में गयीं बहुसंख्यकों की धार्मिक भावनाएं। किसी के पीट पीट कर मारे जाने पर ही इंसानियत शर्मसार होती है क्या ???? फेसबुक और संसद में लिंचिंग की अलग अलग गिनती सामने आ रही है। कोई दस कह रहा है , कोई तेईस कह रहा है।  इन 23 मौतों से संसद हिली जा रही है, क्यों  ???? आप भारत के अलग अलग हिस्सों में रहते होंगे। अखबार भी पढ़ते होंगे। आपके क्षेत्र के अखबार में रोज़ दो या तीन घटनाएं बलात्कार के बाद हत्या की छपती हैं। यदि सिर्फ बलात्कार की बात करें तो यही दो-तीन आपके क्षेत्र की मिल कर भारत में 2015 में 34600 हो गयीं थीं।  लेकिन संसद विधानसभा का हिलना तो छोड़िये हम भी पढ़ कर अगली खबर पढ़ने लगते हैं , क्यों ???? संसद  छह महीनों में 23 हत्याओं से इसलिए हिलती है क्योंकि मरने वाला मुसलमान होता है। और बलात्कार फिर उसके बाद हत्या झेलने वाली बच्ची , लड़की , महिला या वृद्धा इनकी न तो अस्मिता  की कोई इज़्ज़त है और न जान की कोई कीमत , तो फिर संसद  में कोई क्यों मुद्दा उठाने लगा इन दसियों नहीं सैकड़ों नहीं हज़ारों बलात्कारों का , और उन मासूमों का जिनकी हत्या हो गयी। 
2006 का निठारी काण्ड याद है , 15 नरमुंड मिले पुंडीर और कोली के पास। अगर 20 वर्षीय पिंकी सरकार को इन लोगों ने न मारा होता तो इनका वीभत्स खेल यूँ ही चलता रहता। क्यों ????? पहले 14 बच्चे जब इनके शिकार हुए तो कानून व्यवस्था क्या कर रही थी ???दिल्ली की ज्योति पर रोने वाले लोग थे , रोहतक में बलात्कार फिर हत्या के ऊपर रोने वाले थे, शिमला में बलात्कार फिर हत्या उस बच्ची के लिए रोने वाले हैं। लेकिन जैसे निठारी के 14  बच्चों और अनगिनत बलात्कार और हत्यायें जो लोगों के संज्ञान में नहीं आतीं उनके ऊपर कोई रोने वाला नहीं है कोई अवार्ड वापसी वाला नहीं है उसी तरह से #हलाल करके मारी गयी गायों के ऊपर भी कुछ ही रोने वाले हैं। 

भारतीय सुप्रीम कोर्ट में इतना दम तो है नहीं कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 का या अपने ही 2006 के आदेश का पालन करवा ले हाँ, होली, दिवाली दही हांड़ी कैसे मनाई जाये या गौरक्षकों को न बचाया जाये इसके लिए आदेश पारित करने में एक दिन का समय नहीं लगाती वहीँ मुसलमानो की धार्मिक भावनाएं आहत न हों उसके लिए तीन तलाक जैसे मुद्दों को धार्मिक रंग चढ़ा कर फैंसला सुरक्षित कर देती है। 
खैर भाड़ में गयीं हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं। गाय काटो और खाओ संसद में तुम्हारे इस हक़ लिए चिल्लाने वाले बहुत मौजूद हैं।  अजी गाय की बात छोड़ो मुसलामानों को खुश करने के लिए तो संसद में तथाकथित हिन्दू नेताओं को व्हिस्की में विष्णु और रम में राम नज़र आ सकते हैं लेकिन रमज़ान में रम और पैगम्बर में पैग नज़र नहीं आ सकता। 
भाड़ में गयीं हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं। लेकिन इन्ही धार्मिक भावनाओं को यदि वैज्ञानिक जामा  पहना दिया जाता तो आज तक जो 881 नोबल प्राइज बंटे हैं उनमे से एक उस ऋषि को मिलता जिसने गाय को पूजनीय बनाया। वैसे क्या आपको मालूम है कि अब तक 881 में सेपूरी दुनिया में सिर्फ 12 नोबल पुरूस्कार मुसलमानों को मिले हैं उसमे से भी 3 को ही विज्ञान के लिए मिले है। गाय, विज्ञान के लिए नोबल पुरूस्कार और मुसलमानो को मैंने क्यों जोड़ा ???? इसलिए क्योंकि विज्ञान के इनके शोधार्थी आज भी सूरज को ही पृथवी का चक्कर काटते हुए बताते है और  औरत को इन्सान न मान कर सिर्फ स्तनधारी प्राणी की श्रेणी में ही रखते है और गाय काटने का काम भी यही करते हैं तो फिर इनसे गाय की वैज्ञानिक उपयोगिता की बात करना निरी मूर्खता है क्योंकि इनकी कुरआन में तो खून, रेंगने वाले जानवर , बिना खुर वाले जानवर और सूअर के इलावा सब कुछ खाना जायज़ बताया गया है। 
गाय के उत्पादों के विदेशी वैज्ञानिकों द्वारा बताये गए औषधीय गुणों  के ऊपर एक लेख 4 जून के पहले ही लिख चूका हूँ जिसमे गठिया मधुमेह मोटापा  और कैंसर जैसी बिमारियों के इलाज की दवाइयाँ गाय के दूध और गौमूत्र से बनायीं जा रही हैं , जिसका लिंक नीचे दे रहा हूँ। 


लेकिन हाल ही में #स्क्रिप्स_इंस्टिट्यूट_और_ए_एंड_एम_विश्वविद्यालय_टेक्सास में किये गए एक शोध के अनुसार गाय से एच आई वी (एड्स) की दवाई बनायीं जा सकती है। (पूरी जानकारी के लिए निम्न लिंक क्लिक करें )


दो दिनों से एक पोस्ट चल रही है जिसमे बीफ 1 , बीफ 2 और बीफ 3 तरह की किस्में बता कर यह साबित किया गया है कि बीफ -3 गाय का मांस होता है और भारत में इसका उत्पादन और उपभोग नगण्य है। चलिए मान ली आपकी बात , पर इतना ध्यान रखियेगा कि बीफ 3 को वील भी कहते हैं। नीचे लिंक दे रहा हूँ जिसमें अमरीका के कृषि विभाग ने भारत के पशुओं के सन्दर्भ में डाटा दिया है , आँखें खोल कर देख लेना क्या सिर्फ भैंस काटे जा रही है भारत में ???? क्या सिर्फ भैंस के मांस के निर्यात के बल पर भारत विश्व में बीफ का सबसे बड़ा निर्यातक देश है ???? नहीं। बीफ के साथ साथ उसमे वील ( Veal) भी लिखा है। और एक सांख्यिकी यह भी दी है कि 2007 के मुकाबले 2012 में 19वीं पशु गणना के अनुसार भारत में पशुओं की संख्या सिर्फ 4.1% गिरी है। 


अभी ये बातें न अवैज्ञानिक मुसलामानों को नज़र आयेंगी ( क्योंकि वो तो शारीरिक व्यायाम योग को भी अपने मज़हब के खिलाफ मानते है ) न मुसलामानों के वोटों के भूखे सांसदों को नज़र आएँगी न फट्टू सुप्रीम कोर्ट को नज़र आएँगी। जब गाय की उपयोगिता नज़र और समझ आएगी तब तक गायों की हालत सफ़ेद गैंडे , बाघ , काले हिरण गिर के शेर जैसे लुप्तप्राय जानवरों जैसी हो जाएगी। 


भाड़ में गयी हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएँ और वैज्ञानिक शोध।  मुसलामानों को तो गाय का ही मीट खाना है उसके लिए चाहे जान देनी ही क्यों न पड़ जाये बाकि तो सुप्रीम कोर्ट और तमाम अवार्ड वापसी गैंग के सदस्य  है ही इनकी तरफदारी करने के लिए। 
बलात्कार और फिर हत्या , लगता है सबने सऊदी अरब के वैज्ञानिक के शोध को सहमति दे दी है कि  औरत सिर्फ  एक स्तनधारी प्राणी है साल में अगर 35-36000 बलात्कार और क़त्ल हो गए तो क्या फ़र्क़ पड़ता है। फ़र्क़ तो सिर्फ मुसलामानों की मौत से पड़ता है। 

शनिवार, 1 जुलाई 2017

जोशुआ प्रोजेक्ट्स

कृपया जातिवाद, क्षेत्रवाद  से ऊपर उठ कर धर्म पर मंडराते हुए इस सुनियोजित खतरे पर मनन करे। जाल आपके ऊपर फेंका जा चुका है , अलग अलग दिशा में उड़ने की ज़िद में सब जाल में फंसे रह जाओगे।

हम मूलनिवासी और विदेशियों पर बहस करते हैं। हम जातियों और भाषाओँ पर बहस करते हैं। हम आपस में अपनी मान्यताओं की खिल्ली उड़ाते हैं एक दुसरे को जातिसूचक शब्दों से सम्बोधित करते हैं। हम आरक्षण के समर्थन में लड़ते है और आरक्षण के विरोध में लड़ते हैं।  हम जातियों के आधार पर राजनितिक पार्टियों में बंटे हुए हैं। पर हम कौन हैं हम कितने हैं यह हमें तो क्या शायद सूक्ष्म रूप से भारत सरकार को भी नहीं पता होगा। 

लेकिन विश्व में एक संस्था है जिसे आपके किसी भावनात्मक मुद्दे से कोई मतलब नहीं है फिर भी उसे भारत में रहने वाले हर वर्ग और जाति ---बनिआ, भील, ब्राह्मण ,चमार , धोबी,गोंड ,जाट (हिन्दू), जाट (सिख),कापु, कोली, कुम्हार, कुंबी, मराठा, नाइ, राजपूत, तेली, वन्नियां, यादव, जाटव  . . . . . . . . . . . . . . . की गिनती हजार तक (राउंड ऑफ करने के बाद ) मालूम है। फिर एक जाति कितने वर्गों में बंटी हुई है इस संस्था ने त्रुटिहीन  तरीके से उनका भी विवरण संकलित किया हुआ है। जैसे कि ब्राह्मणों में ---चितपावन , औदिच्च , देशस्था , वारेन्द्र , गौड़ , सारस्वत , कनौजिया ,जोशी, कश्मीरी पण्डित , जोशी , वगैरह वगैरह। आप लोग अपने आप को सवर्ण और दलितों में बांटते होंगे मगर उस संस्था के लिए आप सिर्फ हिन्दू हैं और आपको आपकी मान्यताओं के हिसाब से उसने आपका सूक्ष्तम विवरण एकत्रित किया हुआ है।  
इस संस्था का नाम है #जोशुआ_प्रोजेक्ट्स। अमरीका में स्थापित इस संस्था का सिर्फ एक उद्देश्य है पूरे विश्व को ईसाई बनाना।  इसको धन से वैसे तो विश्व भर के ईसाई पोषित करते हैं लेकिन अमरीकी सरकार भी इसे पोषित करती है। 

इनकी कार्यशैली पर बहुत लम्बी पोस्ट न लिखते हुए बस इतना ही बताना चाहता  हूँ कि इसने भारत को 2507 ग्रुप्स  में बाँट रखा है जिसमे इनके अनुसार अभी तक यह संस्था  अभी 2250 ग्रुप्स तक नहीं पहुँच पायी है जो कि इसका लक्ष्य है।
निम्न लिंक का अवलोकन कर सकते हैं। इसी लिंक से आगे बढ़ते बढ़ते आप इनकी वृहद् कार्यशैली के पैमाने को नाप सकते हैं।  

ऊपर मैंने लिखा है कि ये आपको सिर्फ हिन्दू समझते हैं और जैसे विश्व भर में ये सफल हैं वैसे भारत में सफल नहीं हो प् रहे । भारत में सफल क्यों नहीं हो पा रहे उसका कारण इन्होने निम्न लिंक में दिया है , जिसके आखिरी दो बिंदुओं को अंग्रेजी में कॉपी पेस्ट करने के साथ उसका  हिंदी तर्जुमा मैं यहाँ लिख रहा हूँ।


Prayer Points
* Brahmins are a key community in India who uphold Hinduism. Please pray that the light of the gospel breaks through the veil that blinds this community.
* Pray that the true God will reveal Himself to this community and use Brahmins to preach and teach about Jesus Christ.

1) भारत में ब्राह्मण एक बुनियादी / महत्वपूर्ण समुदाय हैं जिन्होंने हिन्दू धर्म को थाम रखा है। कृपया प्रार्थना कीजिये कि सत्य की रोशनी ( Gospal) इनके उस परदे को काट दे जिससे ये अंधे हैं। 
2) प्रार्थना कीजिये कि असली भगवान् इस समुदाय के समक्ष खुद को प्रस्तुत करे और जीसस क्राइस्ट के विषय में प्रचार करने और पढ़ाने के लिए ब्राह्मणों का उपयोग करे। 

#क्या_अभी_भी_समझ_नहीं_आया_कि_आपको_ईसाई_बनाने_के_लिए_कैसे_एक_एक_वर्ग_को_तोड़कर_कमज़ोर_किया_जा_रहा_है_????? #क्या_अभी_भी_समझ_नहीं_आया_क्यों_इतिहास_के_हर_अनदेखे_पन्ने_से_लेकर_आजतक_हर_घटना_के_लिए_ब्राह्मणों_को_कटघरे_में_खड़ा_किया_जाता_है ???
#क्या_अब_भी_समझ_नहीं_आया_कि_सहारनपुर_की_घटना_से_बंदूकों_का_मुंह_ठाकुरों_की_तरफ_क्यों_मोड़_दिया_गया_है ????
#क्या_अब_भी_समझ_नहीं_आया_कि_हर_मुद्दे_को_सवर्ण_और_दलित_रंग_क्यों_दिया_जाता_है ?????