डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया में नेहरू ने खिलजी को महान बताया है और उसकी प्रशंसा की है कि उसने हिन्दू रानियों से शादी की थी। हाँ नेहरू ने यह नहीं बताया कि खिलजी ने हिन्दू रानियों से शादियां कैसे उनके पतियों का क़त्ल करके कीं थीं।
शांतिप्रिय मज़हब के अनुयायी और धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़े हुए हम विज्ञान और कॉमर्स के छात्रों को एक वाक्य में उड़ा कर चले जाते हैं कि रानी पद्मावती तो महज़ जायसी की कल्पना थीं उनका कहीं किसी इतिहास में कोई ज़िक्र नहीं है।
मेरे जैसे करोड़ों फेसबुक चलाने वाले जिनके ज्ञान का स्रोत फेसबुक या व्हाट्सएप है , बिना किसी प्रतिवाद के हाँ में हाँ मिला कर सन्नाटा खींच लेते हैं।
इतिहास तो कुरान में बताये गए 6 दिन में दुनिया बनने का भी नहीं है। आदम और हव्वा ने सेब खाया था उसका भी नहीं है और चाँद के दो टुकड़े किये गए थे उसका भी नहीं। लेकिन रानी पद्मावती का इतिहास है , आपको पढ़ाया नहीं गया या आपने पढ़ा नहीं तो इसका मतलब यह नहीं है जलालुद्दीन अलाउद्दीन का चाचा और ससुर नहीं था।
हो सकता है कि आपने इतिहास के पन्नो में यह ज़रूर पढ़ा हो अलाउद्दीन ने बेहद प्यार करने वाले अपने चाचा और ससुर को धोखे से मरवा कर अपने को 19 जुलाई 1296 को सुलतान घोषित कर दिया था।
अपनी किताब #तारिख_ए_फ़िरोज़शाही में ज़िआउद्दीन बरनी ( 1285 -1357) अलाउद्दीन के बारे में लिखता है कि -----उसने अपने जीवन में दो उद्देश्य बनाये थे ;यथा ---वह एक नए धर्म को प्रचलित करना चाहता था तथा सिकंदर महान के समान विश्व विजय करना चाहता था।
अपने प्रथम उद्देश्य में वह कहा करता था -----" ईश्वर ने अपने प्रवर्तक को चार मित्र प्रदान किये थे , जिनकी सहायता के आधार पर वह एक नए धर्म को चलाने में तथा उसका विस्तार करने में सफल हुआ था। ईश्वर ने मुझे भी चार मित्र उलूग खां , नुसरत खां,ज़फर खां और अलप खां प्रदान किये हैं। यदि मैं चाहूँ तो मैं भी उनके द्वारा एक नया धर्म चला सकता हूँ और अपनी तलवार द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को उस धर्म को मानने के लिए मजबूर कर सकता हूँ।"
दूसरे उद्देश्य के विषय में वह कहा करता था ---"मेरे पास अतुल धन-संपत्ति है एक सुसंगठित सेना है , जिसके द्वारा मैं विश्वविजय कर सकता हूँ। मैं अपनी अनुपस्थि में भारत साम्राज्य के लिए अपना प्रतिनिधि छोड़कर विश्व-विजय के लिए प्रस्थान करूँगा।
इतिहासकारों के अनुसार वर्ष 1300 में खिलजी ने उलूग खां और नुसरत खान को रणथम्बोर पर आक्रमण करने का आदेश दिया। अनेक इतिहासकारों और अमीर खुसरो की #तारीखे_अलाइ या #ख़ज़ैन_उल_फुतुह के अनुसार भीषण युद्ध में नुसरत खान मारा गया और उलूग खान ने भाग कर #झाई के दुर्ग में जान बचाई। इसके बाद अलाउद्दीन भारी सेना को लेकर खुद रणथम्बौर पहुंचा और एक वर्ष तक निरन्तर युद्ध चले के पश्चात् जीत की कोई उम्मीद न देख कर उसने राजा हम्मीर देव के साथ छल कपट कर के दुर्ग के फाटक खुलवा लिए। युद्ध करने लायक पुरुषों ने युद्द किया नारियों ने जौहर कर लिया। राजा हम्मीर देव लड़ते हुए मारे गए और किले को जीत कर उस का नाम दारुल इस्लाम रख दिया गया।
वर्ष 1303 चित्तौड़ का युद्ध ----चित्तौड़ मेवाड़ की राजधानी था और चित्तौड़ का दुर्ग सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था। यहाँ का राजा रत्न सिंह था। अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण क्यों किया , यह प्रश्न इतिहास का एक विवादस्पद विषय है।
रानी पद्मिनी की कथा -- कुछ इतिहासकार कहते हैं कि रानी पद्मिनी लंका के राजा गन्धर्व सेन की अत्यंत सुन्दर पुत्री थीं। राजा रतनसिंघ ने अपने हीरामन नमक तोते से उसकी प्रशंसा सुनी और उससे विवाह करके ले आये। एक दिन राघव चेतन नाम का साधु शाही महल में भिक्षा मांगने गया और वहीँ उसने रानी के आलोकिक सौंदर्य को देखा। उसी साधु से अलाउद्दीन को रानी पद्मिनी के अप्रितम सौंदर्य का ज्ञान प्राप्त हुआ और उसके दिल में उन्हें प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न हो गयी। अपनी कुचेष्टा के चलते उसने धोखे से राणा रत्न सिंह को बंदी बना लिया। सुलतान ने रानी को यह सन्देश भेजा कि यदि वे सुलतान की मलिका बनना स्वीकार कर लेंगी तो राजा रत्न सिंह को रिहा कर दिया जायेगा। रानी ने सुलतान के प्रस्ताव को स्वीकार करके एक चाल चली। उन्होंने पहले राजा से मिलने की अनुमति मांगी। खिलजी तैयार हो गया। 800 सैनिकों को पालकियों में छिपा कर यूँ जाहिर किया गया जैसे रानी मिलने आयीं हैं। अलाउद्दीन बहुत आतुरता से रानी के मिलने का इंतज़ार क्र रहा था, किन्तु पालकियों में छुपे राजपूतों ने अलाउद्दीन के करीब पहुंचते ही अचानक हमला बोल दिय और रजा रत्न सिंह को छुड़ा लाये। इसके बाद क्रोधित होकर सुलतान ने दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। सुलतान के विजयी होने से पहले ही रानी ने अपनी दासियों के साथ जौहर कर लिया।
इस कहानी की पुष्टि #श्रीनेत्र पाण्डेय, #अमीर_खुसरो और #जायसी, #जेम्स_टॉड करते हैं। परन्तु आधुनिक इतिहासकार इस कहानी का विशवास नहीं करते।
इसके विपरीत #डॉ_आशीर्वादी_लाल_श्रीवास्तव का मत है कि --"आधुनिक इतिहासकारों का यह कथन कि यह जैसी की मनगढंत कहानी थी , गलत है। सत्य तो यह है कि जैसी ने प्रेमकाव्य की रचना की और उसका कथानक आमिर खुसरो के #खजान_उल_फुतुह से लिया है। पद्मावत में वर्णित प्रेम कहानी के विवरण की अनेक घटनाएं कल्पित हैं , किंतु काव्य का मुख्य कथानक सत्य प्रतीत होता है। अलाउद्दीन पद्मिनी कोप्राप्त करने का इच्छुक था , कामुक सुलतान को रानी का प्रतिबिम्ब दिखाया गया था और उसने धोखे से उसके पति को बंदी बना लिया था , ये घटनाएं सम्भवतः ऐतिहासिक सत्य पर आधारित हैं। "
परन्तु यह निर्विवाद है कि अलाउद्दीन को चित्तौर के घेरे में राजपूतों के साथ कड़ा संघर्ष करना पड़ा था और अंत में उसे विजय मिली थी। रानी ने जौहर कर लिया और सुलतान के बेटे खिज्र खां को चित्तौड़ का शासक नियुक्त किया गया और तत्पश्चात चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद रख दिया गया।
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ऊपर एक पंक्ति में लिखा है कि जायसी की पद्मावत , #खुसरो की #खजान_उल_फुतुह से प्रेरित है । तो #खजान_उल_फुतुह में खुसरो ने क्या लिखा है ????
आमिर खुसरो 1273 में इल्तुतमिश का सिपाही बना उसके बाद , उसके बाद गयासुद्दीन बलबन के भतीजे छज्जू मलिक का , फिर बलबन के बेटे बुर्ग़ा खान का , फिर जलादुद्दीन खिलजी का और फिर अलाउद्दीन खिलजी का। यह युद्ध में जाता था और अपने मालिकों के युद्ध का चापलूसीयुक्त वर्णन वर्णन प्रतीकों से करता था। बिलकुल वैसे ही जैसे पहले ज़माने के चारण , भाट और राजदरबारी किया करते थे। जैसे इल्तुतमिश ने एक बार गंदे पानी का हौज़ साफ़ करवाया तो उसको इसने सांकेतिक भाषा में बाइबल और कुरान में वर्णित मूसा द्वारा समुद्र के दो फाड़ कर देने से तुलना की।
देवगढ़ जीतने के बाद खुसरो प्रतीकात्मक भाषा में कहता है की सुलतान तो ईसा मसीह की तरह क्षमाशील हैं सबको माफ़ कर देते हैं। इसी तरह से चित्तौड़ युद्ध को यह तोराह, बाइबिल, कुरान में वर्णित राजा सोलोमन के रानी शेबा के ऊपर आक्रमण से तुलना करता है। जिसमे राजा सोलोमन ने हुदहुद चिड़िया के मुंह से रानी शेबा के विषय में सुन कर उसे अपने यहाँ आने का न्यौता दिया था।यदि वो न आती तो फौज तैयार कर ली थी फिर भी , अनेक गुणों की खान रानी उसका न्योता स्वीकार कर लेती है और राजा सोलोमन से शादी कर के बिलकीस बानो बन जाती है ( कुरान सूरा 27- आयत 20 से 40 तक)। सोलोमन =खिलजी , हिरामन तोता = हुदहुद चिड़िया , रानी शेबा = पद्मावती।
सबकुछ वैसा ही ही है, बस यहाँ रानी ने खिलजी को चुनने की जगह जौहर चुन लिया और जायसी को पद्मावत रचने की कथा वस्तु मिल गयी। इसी तथ्य को कुछ इतिहासकार मान रहे हैं और कुछ नकार रहे हैं।
वैसे मेरा मानना है कि बिना आग के धुआं नहीं होता।
और जो कुछ फसबुकिया सूतिये कमेंट या पोस्ट डाल रहे हैं कि जौहर करने से अच्छा था कि तलवार ले कर लड़ लीं होती उनके लिए दो बाते कहूँगा कि जब आप इतिहास पढ़ेंगे तो पाएंगे कि हिन्दू राजाओं ने एक एक साल तक अनवरत युद्ध किया था और हारे थे तो अधिकाँश में चल कपट से और मुसलमान और मुग़ल सैनिक मृत महिलाओं के शरीर से बलात्कार करने से भी बाज नहीं आते थे तो जौहर ही ऐसा रास्ता बचता था जिससे भारतीय महिलाएं अपना मृत शरीर भी गन्दा होने नहीं देतीं थीं।