शनिवार, 11 नवंबर 2017

गुलाम लोगों की गुलाम मानसिकता (1)



#तेलंगाना_में_मुस्लिमों_को_नौकरियों_में_12%_आरक्षण ( 10  नवम्बर के समाचारपत्रों में छपी मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की घोषणा )
#टीपू_सुलतान_की_जयन्ती_ समारोह ( 11 नवम्बर के समाचार पत्रों में सिद्धरमैया द्वारा महिमागान) और #पद्मावती_जी_के_ऊपर_विवादित_चलचित्र।  
 तेलंगाना में आरक्षण की खबर कुछ यूँ है कि मुख्यमंत्री ने पिछड़े हुए मुसलामानों का आरक्षण का कोटा 6 से 12 प्रतिशत तथा मुस्लिम जनजातियों के 4% से 10 प्रतिशत करने का बिल इस शीतकालीन विधानसभा सत्र में करने की घोषणा की है और कुल आरक्षण फिलहाल 62 % तक ले जाने की बात कही है जिसे तमिनाडु की तर्ज़ पर 69% तक ले जाने की चाहत जतायी है। मुसलामानों पर इतनी इनायत क्यों ????

दो पंक्तियों में इस्लाम की मानसिकता को समझने के बाद जब मुस्लिम बादशाह भारत पर राज्य कर रहे थे उस समय के हिन्दुओं और मुसलामानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर एक नज़र डालते है। 
कुरान के अनुसार इस पूरी दुनिया को अल्लाह ने बनाया है और वही इसका सही मायने में राजा है। धरती पर हुकूमत चलाने वाला राजा ही अल्लाह नाम के उस राजा का सही प्रतिनिधि है; अल्लाह के मज़हब का प्रचार और प्रसार करना ही हुकूमत का अहम् लक्ष्य होता है। अल्लाह के प्रतिस्पर्धी किसी और खुदा के प्रति विश्वास रखता है या ऐसे प्रतिस्पर्धी खुदा के अस्तित्व का प्रचार और प्रसार करता है तो वह राजद्रोह करता है , उससे बढ़कर कोई पाप नहीं होता और उसके लिए मौत ही सही दंड है : अल्लाह के इस मार्ग पर चलना ही #जिहाद कहलाता है। लड़ाई में जीत जाने के बाद इस्लाम में विश्वास नहीं रखने वाले सभी लोग , जीतने वालों के गुलाम बन जाते हैं। और फिर भी जो धर्म परिवर्तन नहीं करता उसे मार दिया जाए ऐसा क़ुरान की सूरा 9 आयत 5-6 और सूरा 8 आयत 38 कहती है कि यदि वे इस्लाम कबूल कर लेते हैं तो उनके पिछले सारे गुनाह माफ़। काफिरों के न मानने पर उन्हें जान से मार देने वाली दसियों आयतें कुरान में दी गयीं हैं। ये थी कुरान मानने वालों की मानसिकता और इसके परिणाम जो हिन्दुओं ने झेले उसका साराँश इतिहास की पुस्तकों में कुछ यूँ दिया हुआ है। 

जो मुसलमान नहीं होता, उसके लिए कोई राजनितिक अधिकार भी नहीं होता।  मुसलमानी सल्तनत में उसे जीने का हक़ भी नहीं होता। उसे जीने दिया जाता है तो वह भी तत्काल के लिए ही। तब भी उसकी हालत गुलामों की हालत से थोड़ी सी बेहतर होतीथी।  तब उसको "जिम्मी" कहा जाता था क्योंकि तब वह एक करारनामे के तहत जीता था। इसके इलावा मुसलमानी सल्तनत के तहत जीने दिए जाने के एवज़ में उसे एक खास टैक्स भरना पड़ता था। उसका नाम था जजिया ( जज़िया का प्रावधान कुरान के सूरा 9 आयत 29 में है)। मुसलामानों को जिस भूमिकर से छूट मिली होती थी उसे जजिया के साथ वो कर "खरज" भी भरना पड़ता था। लड़ाई के लिए पाले जाने वाले सैनिकों के लिए उसे एक और टैक्स देना होता था।  मुसलामानों को ही सिपाही बनने का अवसर मिलता था और जो गैर मुसलमान होता था उसे सिर्फ निचले दर्जे का नौकर बनने दिया जाता था , वह कभी सिपहसालार या घुड़सवार नहीं बन सकता था। वह कभी घोड़े पर सवार नहीं हो सकता था था अच्छे कपडे नहीं पहन सकता था, हथियार नहीं रख सकता था। मुसलमान जाति के सभी सभी व्यक्तियों के सामने उसे विनीत रहना होता था । अदालत में उसके सबूत के लिए वह मान्यता नहीं होती थी जो एक मुसलमान के सबूत को मिलती थी। वह मेलों, पर्वो तथा त्योहारों में भाग नहीं ले सकते थे। नए मंदिरों का निर्माण नहीं कर सकता था : पुराने मंदिरों को दुरुस्त नहीं करवा सकता था। कमर झुका कर , खुद आ कर खड़े होकर उसे जजिया चुकाना होता था। ये प्रथा कुरआन की सूरा 9 आयत 29  के आधार पर बनायीं गयी थी ( जब तक काफिर जजिया नहीं भरते उनके साथ लड़ते रहो) , जजिया स्वीकार करने वाले मुसलमान को ऊँचे स्थान पर बैठना होता था। 
कभी कोई मुसलमान खंखार के थूकता था तो जिम्मी को भय और भक्ति के साथ , मुंह खोलकर उसको स्वीकार कर लेना चाहिए। परहेज़ की भावना व्यक्त न करते हुए , इसे निगल लेना चाहिए। यदि कोई मुसलमान गैर मुसलमान का  क़त्ल कर देता था तो यह गुनाह नहीं होता था। ये सब जिम्मियों पर इसलिए थोपा जाता था ताकि बेइज़्ज़ती, गरीबी और करों के बोझ से बचने के लिए ये जिम्मी धर्मांतरण करके मुसलमान बन जाएँ। 
मुसलमान व्यापारियों पर ढाई प्रतिशत टैक्स लगता था तो हिन्दू व्यापारियों पर पांच प्रतिशत।  एक समय ऐसा भी आया जब मुसलमान व्यापारियों का टैक्स तो पूरी तरह माफ़ कर दिया गया लेकिन हिन्दू व्यापारियों का यथावत रखा गया। बात यहीं ख़त्म नहीं हुई हिन्दुओं को इन सब करों के अतिरिक्त जब कभी तीर्थयात्रा ( प्रयाग में कुम्भ,काशी , मथुरा वगैरह ) करनी होती थी तो उसके लिए अलग से कर देना होता था। 
नीतिविहीन युद्ध करके जीतना और जीत कर काफिर आदमियों को मार डालना , गुलाम बना लेना और कंधार से लेकर ईरान तक के बाजार में बेचना ,औरतों को अपने जनानखाने में लौंडिया  बना कर रखना और 15 साल से काम उम्र के लड़कों को हिजड़ा बनाने को ये दारुल इस्लाम की तरफ एक कदम मानते थे। 
किसानों के ऊपर लगान का इतना बोझ लाद दिया था कि लगान न चुका पाने की स्थिति में किसान को अपने चार चार साल के  बच्चों को हिजड़ा बना कर गुलामों के बाज़ार में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता था। और वक़्त के साथ ये मजबूरी एक प्रथा बन गयी जिसके विषय में अकबर के बेटे जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा "तुजुक ए जहाँगीरी " में लिखा है कि -- "हिन्दुस्तान में , खासकर बंगाल की मातहत में रहने वाले सिलहट प्रांत के लोगों में अपने बच्चों को हिजड़ा बना कर , लगान के बदले सुबहदारों को सौंप देने की प्रथा जारी थी। अन्य प्रांत के लोग भी इस प्रथा को धीरे धीरे अपनाने लगे हैं। इस वजह से बच्चे अपनी सृजन शक्ति से वंचित हो रहे हैं। " यह प्रथा बंगाल के बाहर भी प्रचलित थी यानि सारी मुग़ल सल्तनत में फैली हुई थी। स्थिति यहाँ तक पहुँच चुकी थी की हिजड़ों की तादाद के आधार पर राज्य के लगान का हिसाब किताब होता था। .जहांगीर ने ही लिखा है कि उसके दरबारी सैय्यद खान छुगताय के पास ही हज़ार दो सौ हिजड़े थे। इसके अलावा हिजड़ों का व्यवसाय बहुत फायदे का बना हुआ था। एक हिजड़े की कीमत आम गुलाम के मुकाबले तीन गुना हुआ करती थी। भारत के हिजड़ों की मांग इस्पहान , समरकंद और विदेशों में बहुत अधिक थी। औरंगज़ेब ने बेशक मज़हबी कारणों से अण्डकोष फोड़ने की प्रक्रिया का निषेद किया था,फिर भी इस प्रथा को बंद नहीं करवा पाया।  उसकी हुकूमत के दौरान गोलकुण्डा (हैदराबाद) शहर में 1659 में ही बाईस हज़ार मर्दों के अंडकोष फोड़े गए थे। ऐसे हिजड़ों की बजाय लगान के रूप में बच्चों को को ही लेकर उनका धर्मांतरण कर देने से मुसलामानों की तादाद बढ़ेगी , यह जहांगीर का विचार था।" 

यह सिर्फ सारांश है , अत्याचारों की पराकाष्ठा की कल्पना भी आज की पीढ़ी नहीं कर सकती और नामपंथी इतिहासकार पूरी शिद्दत से उन ज़ख़्मों को छुपाने में व्यस्त हैं। मुझे गर्व है और आपको भी होना चाहिए अपने पूर्वजों पर जो अत्याचारों को सहते हुए प्रलोभनों को नकारते हुए मुगलों के सामने नहीं झुके।  पर आज के हिजड़ों का क्या किया जाये ?????

इतिहास में हिन्दुओं द्वारा झेले गए ये असहनीय अत्याचारों का संक्षेप लिखने के बाद चन्द्रशेखर राव  मैं ये पूछना चाहता हूँ कि जब मुग़ल सल्तनत थी तब भी मुसलामानों ने सत्ता का सुख भोगा, जो कष्ट नहीं झेल पाए वो सुख भोगने के लिए मुसलमान बन गए। क्या उन्ही कष्टों को भोगने का सिला आज तुम हिन्दुओं को दे रहे हो , बिना अंडकोष फुड़वाये हुए हिजड़े बनकर ??????

क्रमशः ----#टीपू_सुलतान_की_जयन्ती_ समारोह ( 11 नवम्बर के समाचार पत्रों में सिद्धरमैया द्वारा महिमागान) और #पद्मावती_जी_के_ऊपर_विवादित_चलचित्र।  

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