10 नवम्बर को कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमन्त्री सिद्धाराम्मैया ने टीपू सुल्तान की जयंती मनाई। कांग्रेस टीपू की जयंती 2015 से मना रही है लेकिन मैसूर प्रान्त के सेक्युलरिस्ट और भारत के मुसलामान इसे दशकों से राष्ट्रवीर बना रहे हैं। उसे राष्ट्रनायक बनाने के किये लेख लिखे जा रहे हैं नाटकों का मंचन किया जा रहा है जिन्हे सरकारें प्रायोजित करतीं हैं।
एक ने टीपू सुलतान पर सीरियल बनाया और आग में जल गया। दूसरे ने तलवार खरीदी और बर्बाद हो गया। टीपू की जयंती मनाने वाली कांग्रेस का क्या होगा शायद साफ़ नज़र आ रहा है।
एक ने टीपू सुलतान पर सीरियल बनाया और आग में जल गया। दूसरे ने तलवार खरीदी और बर्बाद हो गया। टीपू की जयंती मनाने वाली कांग्रेस का क्या होगा शायद साफ़ नज़र आ रहा है।
भारतीय इतिहास की सच्चाई को रौंद डालने और झूठ को ही सच्चाई की शकल में दिखने के कई उदाहरणों में से एक टीपू सुलतान का भी है।
एक समय था जब नैसुर के हाटों और बाज़ारों में , उत्सवों और महोत्सवों में भाट लोग देवी देवताओं की प्रशंसा के गीत गाने वाले, भाट बंदियों में तब्दील होकर टीपू के गीत गाने लग गए। उन्हें न इतिहास से मतलब था न टीपू के दुष्कृत्यों से। उन्हें इस काम के लिए मुसलमान व्यापारी पैसा दिया करते थे। वक़्त बदला तो टीपू का महिमामंडन करने वाले नाटकों का मंचन शुरू हो गया। जब वो अंग्रेजों से लड़ रहा था तो तत्कालीन लेखकों ने ऐसे नाटक और लेख लिखे जैसे उससे बड़ा और कोई देश भक्त था ही नहीं। देखने वालों ने इसे ही सही इतिहास मान लिया। आजादी मिलने के बाद मार्क्सवादी लेखकों ने, वोट बैंक का धंदा करने वालों ने ,मुस्लिम कलाकारों तथा नाटककारों ने , फिल्मे बनाने वालों ने , टीपू सुलतान का राष्ट्रिय नायक के रूप में खूब महिमामंडन किया। असली इतिहास को मार कर दफना दिया गया।
उसने अपने दो बच्चों को अंग्रेजों के यहाँ बंधक रखा था इसलिए वो नायक हो गया और अंग्रेज सबसे निकृष्ट कौम हो गए। ऐसा लिखते वक़्त लेखक ये छुपा गए की बच्चो और परिजनों को युद्धबंदी बना कर रखने की प्रथा मुसलामानों ने ही शुरू की थी।
अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने को लेकर यदि टीपू को राष्ट्रनायक बनाया जाता है तो उन्ही अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले मराठों को ये इतिहासकार महानायक क्यों नहीं बनाते ??? ज़माने से मैसूर में चली आने वाली राजभाषा कन्नड़ को बदल कर फ़ारसी को राजभाषा बना दिया। ( हिंदी का विरोध करने वाले आज भी राजस्व विभाग में फ़ारसी के बहुत से शब्दों का प्रयोग करते हैं, और राजस्व विभाग के दस्तावेजों में आज भी बाप और बेटे के बीच #बिन शब्द का प्रयोग होता है , जैसे राहुल गाँधी बिन राजीव गाँधी )।
गाँवों और शेरोन के नाम बदल दिए जैसे - ब्रह्मपुरी को सुल्तानपेट ,चित्रदुर्ग को फार्रुखयब , कोडगु को जफराबाद ,देवनहल्ली को युसूफाबाद ,डिंडिगल को खलीलाबाद , गुत्ती को हिस्सार , कृष्णगिरि को फलक इल अज़म , मैसूर को नज़रबाद , पेनुगोंडा को फक्राबाद, सँकरीदुर्ग को मुजफ्फराबाद , सिरा को रुस्तमाबाद , सकलेशपुर को मंजराबाद। ये सब टीपू की राष्ट्रीयता और धर्म सहिषुणता की अप्रितम मिसालें हैं।
कर्नाटक केरल और तमिलनाडु के हजारों टूटे हुए मंदिरों को देखने के बाद इतिहासकार और साहित्यकार तमाम शैव और वैष्णव युद्धों का नकली जामा पहना कर झूठ को सच साबित करने में व्यस्त हैं लेकिन वो इन पत्रों और लेखों का क्या करेंगे जो टीपू सुलतान ने खुद लिखे थे और आज भी लन्दन के " इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी में मजूद है ????
(i) अब्दुल खादर को लिखित पत्र 22 मार्च 1788
“बारह हजार से अधिक, हिन्दुओं को इ्रस्लाम से सम्मानित किया गया (धर्मान्तरित किया गया)। इनमें अनेकों नम्बूदिरी थे। इस उपलब्धि का हिन्दुओं के मध्य व्यापक प्रचार किया जाए। स्थानीय हिन्दुओं को आपके पास लाया जाए, और उन्हें इस्लाम में धर्मान्तरित किया जाए। किसी भी नम्बूदिरी को छोड़ा न जाए।”(भाषा पोशनी-मलयालम जर्नल, अगस्त 1923 )
(ii) कालीकट के अपने सेना नायकको लिखित पत्र दिनांक 14 दिसम्बर 1788
”मैं तुम्हारे पास मीर हुसैन अली के साथ अपने दो अनुयायी भेज रहा हूँ। उनके साथ तुम सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लेना और वध कर देना…”। मेरे आदेश हैं कि बीस वर्ष से कम उम्र वालों को काराग्रह में रख लेना और शेष में से पाँच हजार का पेड़ पर लटकाकार वध कर देना।”
(iii) बदरुज़ समाँ खान को लिखित पत्र (दिनांक 19 जनवरी 1790)
”क्या तुम्हें ज्ञात नहीं है निकट समय में मैंने मलाबार में एक बड़ी विजय प्राप्त की है चार लाख से अधिक हिन्दुओं को मूसलमान बना लिया गया था। मेरा अब अति शीघ्र ही उस पानी रमन नायर की ओर अग्रसर होने का निश्चय हैं यह विचार कर कि कालान्तर में वह और उसकी प्रजा इस्लाम में धर्मान्तरित कर लिए जाएँगे, मैंने श्री रंगापटनम वापस जाने का विचार त्याग दिया है।”
(उसी पुस्तक में)
टीपू ने हिन्दुओं के प्रति यातनाआं के लिए मलाबार के विभिन्न क्षेत्रों के अपने सेना नायकों को अनेकों पत्र लिखे थे।
(उसी पुस्तक में)
टीपू ने हिन्दुओं के प्रति यातनाआं के लिए मलाबार के विभिन्न क्षेत्रों के अपने सेना नायकों को अनेकों पत्र लिखे थे।
”जिले के प्रत्येक हिन्दू का इस्लाम में आदर (धर्मान्तरण) किया जाना चाहिए; उन्हें उनके छिपने के स्थान में खोजा जाना चाहिए; उनके इस्लाममें सर्वव्यापी धर्मान्तरण के लिए सभी मार्ग व युक्तियाँ- सत्य और असत्य, कपट और बल-सभी का प्रयोग किया जाना चाहिए।”
(हिस्टौरीकल स्कैचैज ऑफ दी साउथ ऑफ इण्डिया इन एन अटेम्पट टूट्रेस दी हिस्ट्री ऑफ मैसूर- मार्क विल्क्स, खण्ड 2 पृष्ठ 120)
(हिस्टौरीकल स्कैचैज ऑफ दी साउथ ऑफ इण्डिया इन एन अटेम्पट टूट्रेस दी हिस्ट्री ऑफ मैसूर- मार्क विल्क्स, खण्ड 2 पृष्ठ 120)
इतिहासकार कहते हैं कि टीपू बहुत धर्म सहिषुण और राष्ट्रीयता से ओतप्रोत था ------ मैसूर के तृतीय युद्ध (1792 ) के पूर्व से लेकर निरन्तर 1798 तक अफगानिस्तान के शासक, अहमदशाह अब्दाली के प्रपौत्र, जमनशाह, के साथ टीपू ने पत्र व्यवहार स्थापित कर लिया था। कबीर कौसर द्वारा लिखित, ‘हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान’ (पृ’ 141-147) में इस पत्र व्यवहार का अनुवाद हुआ है जिसमे उसने अफगानिस्तान के शासक और तुर्किस्तान के शासक से भारत पर हमला कर ईसाईयों को भगाने और काफिरों को खत्म करके इसे दारुल इस्लाम बनाने का प्रस्ताव भेजा था।
विकिपीडिया पढ़ेंगे तो टीपू को बहुत दानवीर बताया गया है लेकिन हक़ीक़त यह है कि जिस वर्ष टीपू सुलतान मारा गया था उस वर्ष सिर्फ दो मंदिरों ( श्रीरंगपत्तनम और श्रृंगेरी के मठ ) को ही राजकीय सहायता मिलती थी , श्रीरंगपत्तनम को इसलिए कि वो वहां राज करता था और श्रृंगेरी को इसलिए क्योंकि उस मठ पर हमला करने के बाद ही टीपू की हार हुई थी। और अगर टीपू इतना ही बड़ा धर्म सहिषुण व्यक्ति था तो पुरातत्व के संकलनकर्ता रवि वर्मा के हिसाब से उसने 8000 मंदिरों को न तोड़ा होता।
टीपू कितना बड़ा धर्म सहिषुणता का पालक था वो उसकी तलवार पर लिखी हुई निम्न नज़ीर से ही पता चलता है --- टीपू की बहुचर्चित तलवार’ पर फारसी भाषा में निम्नांकित शब्द लिखे थे- ”मेरी चमकती तलवार अविश्वासियों के विनाश के लिए आकाश की कड़कड़ाती बिजली है। तू हमारा मालिक है, हमारी मदद कर उन लोगों के विरुद्ध जो अविश्वासी हैं। हे मालिक ! जो मुहम्मद के मत को विकसित करता है उसे विजयी बना। जो मुहम्मद के मत को नहीं मानता उसकी बुद्धि को भृष्ट कर; और जो ऐसी मनोवृत्ति रखते हैं, हमें उनसे दूर रख। अल्लाह मालिक बड़ी विजय में तेरी मदद करे, हे मुहम्मद!”
इस अकाट्य तथ्य के बावजूद पिछले 70 सालों से कांग्रेस सरकार टीपू का महिमामण्डन हर संभव तरीके से कर कर रही है। अफ़सोस जिन्हे गुलामी में रहने की आदत पड़ गयी है वो दूसरों की मानसिकता भी गुलाम ही बनाये रखना कहते हैं।
एक ने टीपू सुलतान पर सीरियल बनाया और आग में जल गया। दूसरे ने तलवार खरीदी और बर्बाद हो गया। टीपू की जयंती मनाने वाली कांग्रेस का क्या होगा शायद साफ़ नज़र आ रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें