रविवार, 7 अक्टूबर 2018

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः

22 अगस्त 2017 को ट्रिप्पल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमे से दो जजों जिसमे एक मुख्यन्यायधीश केहर थे का निर्णय था चूँकि यह 1400 वर्षों पुरानी परम्परा है और आस्था से सम्बंधित है इसलिए यह संवैधानिक रूप से जायज़ है। अन्य तीन जजों ने माना कि यह संविधान  अनुछेद 14 जो कि समानता का अधिकार देता है , के विरुद्ध एवं एक घिनौनी प्रथा है इसलिए इसे हटाया जाना चाहिए। परन्तु सुप्रीम कोर्ट के पास इसे प्रतिबंधित करने का अधिकार नहीं है इसलिए सरकार इसपर कानून लाये। 
इस निर्णय के ठीक एक साल एक महीने और एक हफ्ते बाद यानि कि 29 सितम्बर 2018 को सबरीमाला केस में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ आस्था के प्रश्न को भूल गए और उन्हें यह अधिकार भी मिल गया कि परशुराम जी द्वारा स्थापित मंदिर जिसमें 12वीं सदी से कुछ परम्पराओं के साथ अनवरत पूजा की जा रही है की हिन्दुओं की आस्थाओं को ताक पर रख कर यह आदेश पारित कर दें कि इस मंदिर में महिलाओं को समानता का अधिकार नहीं दिया जाता। यदि इस मंदिर में महिलाओं को समानता का अधिकार नहीं दिया जाता होता तो न तो इस मंदिर के प्रांगण में देवी मालिकापुरम का मंदिर होता और न नागराज के मंदिर के साथ  उनकी धर्मपत्नी नागाक्षी का मंदिर होता और न ही यहाँ 10 वर्ष से कम और 50 वर्ष से अधिक आयु की महिला को प्रवेश मिलता। 
खैर मेरा विषय यहाँ पर मन्दिर में महिलाओं की समानता सिद्ध करना नहीं है जो कि सबरीमाला मन्दिर के प्रबुद्ध वकीलों ने बेहतर तरीके से किया होगा।  मेरे दिमाग में तो सिर्फ एक सवाल उठ रहा है कि एक साल में आस्था पर अपना निर्णय न देने वाली सुप्रीम कोर्ट को यहाँ पर आस्थायें और परम्पराएं नज़र क्यों नहीं आयीं। 
जज साहेबान धार्मिक मामलों में यदि महिला समानता के प्रति इतने चिंतित और जागरूक हैं तो कभी ईसाईयों की धर्मव्यवस्था पर भी निगाह डालिये जहाँ ननों के साथ दासियों की तरह व्यवहार किया जाता है।  कभी उनके धर्म ग्रन्थ भी पढ़ कर देखिये। लिखने के लिए तो बहुत से उदाहरण हैं लेकिन बाइबल से एक दो उदाहरण दे रहा हूँ --
1) अध्याय LEVITICUS, कथन 12 में 2 से 7 --- प्रभु ने मूसा से कहा , " इस्राएलियों से कहो -- यदि कोई स्त्री पुत्र प्रसव करेगी तो वह सात दिन तक अशुद्ध रहेगी। जैसे वह ऋतुकाल में अशुद्ध रहती है। आठवें दिन पुत्र का खतना किया जायेगा ,इसके बाद वह प्रसव के रक्तस्राव से तैतीस दिन तक अशुद्ध रहेगी। जब तक उसके शुद्ध होने के दिन पूरे नहीं हो जायेंगे तब तक वह न तो किसी पवित्र वास्तु का स्पर्श करेगी और न किसी पवित्र स्थान में प्रवेश करेगी। यदि वह कन्या प्रसव करेगी तो वह दो सप्ताह तक अशुद्ध रहेगी, जैसे वह ऋतुकाल में रहती है।  वह प्रसव के छियासठ दिन तक अशुद्ध रहेगी। जब उसके शुद्धिकरण के दिन पूरे हो हो जायेंगे, तब चाहें उसने पुत्र प्रसव किया हो या कन्या, वह दर्शन कक्ष के द्वार के सामने याजक के पास होम -बलि के लिए एक वर्ष का मेमना और प्रायश्चित बलि के लिए एक कबूतर या पण्डुक लाये। याजक उनको प्रभु के सामने चढ़ा कर उसके लिए प्रायश्चित - विधि संपन्न करेगा। इस प्रकार वह प्रसव के रक्तस्राव से शुद्ध हो जायेगी। 
2) Timothy'S letter 1  ( टिमोथी का पहला पत्र) कथन 2 में 11 से 14 ---धर्मशिक्षा के समय स्त्रियाँ अधीनता स्वीकार करते हुए मौन रहें।  मैं नहीं चाहता कि वे शिक्षा दें या पुरुषों पर अधिकार जतायें। वे मौन ही रहें : क्योंकि आदम पहले बना और हव्वा बाद में और आदम बहकावे में नहीं पड़ा बल्कि हव्वा ने बहकावे में पड़कर अपराध किया।   

महोदय ,स्त्री और पुरुष में बराबरी या समानता के विषय में लगे हाथ कुरान का मत भी जान लेते हैं कि क्या है। 
1) सूरा 4 आयत 11 -- ( विरासत के सिलसिले में कही गयी यह आयत) लड़के का हिस्सा दो लड़कियों के हिस्से के बराबर , और अगर सिर्फ लड़कियाँ ही हों अगरचे दो से ज्यादा हों तो उन लड़कियों को दो तिहाई मिलेगा जो मूरिस छोड़ कर मरा है , और अगर एक ही लड़की हो तो उस लड़की को आधा मिलेगा _ _ _  _ _ _
2) सूरा 2 आयत 282 --- _ _ _ _ _ _ दो शख्सों को अपने मर्दों में से गवाह भी कर लिया करो , फिर अगर वो दो गवाह मर्द न हों तो एक मर्द और दो औरतें गवाह बना ली जाएँ _ _ _ _ _ 
3)सूरा 2 आयत 223 ----तुम्हारी बीवियाँ तुम्हारे खेत हैं। सो अपने खेत में जिस तरफ से होकर चाहो जाओ। _ _ _ _ _ 

सिर्फ एक मन्दिर की एक परम्परा के आधार पर आपने पूरे सनातन धर्म को कटघरे में खड़ा कर दिया कि इसमें महलाओं के साथ सदियों से असमानता का व्यवहार किया जा रहा है। महोदय कभी हिन्दुओं की महिलाओं के विषय में अवधारणा का भी अवलोकन किया होता कि इनके धर्मशास्त्र क्या कहते है ??? 

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैताः तु न पूज्यन्ते सर्वाः तत्राफलाः क्रियाः ।।
अर्थात -- जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात सत्कार  (तत्र) उस कुल में (देवता) दिव्यगुण = दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं (यत्र) और जिस कुल में (एतास्तु न पूज्यन्ते ) स्त्रियों की पूजा नहीं होती है वहाँ जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है। 

प्रजनार्थ महाभागाः पूजार्हाः गृहदीप्तयः। 
स्त्रियः श्रियश्च गेहेषु न विशेषो$स्ति कश्चन।। 
हे पुरुषो ! संतानोत्पत्ति के लिए महाभाग्योदय करने वाली पूजा के योग्य गृहाश्रम को को प्रकाशित करती,सन्तानोपत्ति करने कराने वाली घरों में स्त्रियां हैं वे श्री अर्थात लक्ष्मीस्वरूप होती हैं क्योंकि लक्ष्मी, शोभा,धन और स्त्रियों में भेद नहीं है। 
कहीं पढ़ा था कि कानून परम्पराओं के आधार पर बनाये जाते हैं , लेकिन भारत में तो ऐसा लग रहा है कि कानून परम्पराओं को तोड़ने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। ऐसा भारत में ही क्यों होता है कि धर्म देख कर कानून और संविधान की भाषा बदल जाती है??? ऐसा क्यों होता है कि बह्संख्यकों के देश में उनकी भावनाओं और परम्पराओं का कोई मूल्य नहीं है ??? ऐसा क्यों होता है भारत में कि मंदिरों पर तो सरकारी अधिकार चलते हैं और मुस्लिमों के लिए #दरगाह_ख्वाजा_एक्ट_1955 बना दिया जाता है ???
भारत में ही ऐसा क्यों होता है ??? क्योंकि हिन्दू असहिष्णु कहे जाने तक की हद तक बर्दाश्त करते हैं या वाकई ये कौम गुलाम होने तक की हद सहिष्णुता रखती है ??? 

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