रविवार, 28 जून 2015

किस किस से लड़ें और किस किस को समझाएं ???

मेरी और मेरे बहुत से मित्रों की यह त्रासदी है कि किस किस से लड़ें और किस किस को समझाएं ??? 

 हम तो मंदिर के वो घंटे हो गए हैं जिसे हर कोई बजा कर चला जाता है। जी, मैं  भारत में रहने वाले एक साधारण हिन्दू की बात कर रहा हूँ। आप सुबह सुबह फेसबुक खोलते हैं और पाते हैं कि एक हाथ बढ़ा और बजा गया ,ये था -------
7 ) सातवां  हाथ और जब भी समय मिलता है मुसलमान बजाने की कोशिश करता है। ----- दुनिया का कोई भी विषय हो सबसे पहले भारतीय मुस्लिमों का धर्म संकट में पड़ता है और वे अपनी पूरी तार्किक शक्ति हिन्दुओं, हमारे देवीदेवताओं और हमारी मान्यताओं को गलत साबित करने में लगा देते हैं। इनके क़ुरान की ,मारकाट, लूटखसोट ,बलात्कार और जिहाद सरीखे रिवाज़ और उन्हें सीखने वाली कुरान कहीं से इन्हे गलत नज़र नहीं आती। कुछ पोस्ट पर जिन पर निगाह पड़ जाती है, वहां तो हमारे शेरदिल मित्र उसका बाजा बजा देते हैं, लेकिन लाखों ऐसी प्रोफाइल्स हैं, जिन पर हम या तो पहुँच नहीं पाते या या समयाभाव में नज़रअंदाज़ करना पड़ता है। 
6) छठा  हाथ मूलनिवासी और बौद्ध मारने लगे हैं।--- इनके ऊपर 3000 साल से ब्राह्मणों और यूरेशिया से आये हुए आर्यों ने बहुत अत्याचार किया।  हिन्दू धर्मग्रंथों की आलोचना उनमे ढूंढ ढूंढ का शब्दों और उनमे निहितार्थ अर्थों का अनर्थ करना इनका पहला ध्येय है। इसलिए वैदिक धर्म और इसके अनुयायियों को मार कर यूरेशिया वापिस भेजना, इनका एजेंडा है। लेकिन सबसे मज़े की बात पिछले 800 सालों में जिन मुल्लों ने इन्हे मार मार कर मुर्गा बना दिया वो आज इनके सगे हैं।   
5 )पांचवां  हाथ अपने नाम के आगे या पीछे "आर्य" शब्द लगा कर सनातन और वैदिक धर्म की जड़ें खोदने वाले डंके की चोट पर मारने लगे हैं। ----- मेरी पूरी पढ़ाई शिमला और चंडीगढ़ के डी ए वी स्कूल और कॉलेज में हुई, 1988 तक एक बार भी इन संस्थानों किसी सहविद्यार्थी या अध्यापक ने कभी मूर्तिपूजा या पुराणों और उपनिषदों का उपहास नहीं उड़ाया। परन्तु आज के ये न जाने कौन से "आर्य" पैदा हो गए हैं जो मुसलामानों सी बातें करके वेदों के अतिरिक्त मात्र "हिन्दू" धर्मग्रंथों में कुरीतियां ढूंढ रहे हैं और उन्हें जलाने की बात कर रहे हैं। यदि उनसे किसी संस्कृत के श्लोक का अर्थ पूछ लिया जाये या यह पूछ लिया जाये कि क्या आपने सारे धर्मग्रंथों का अध्ययन किया है तो वहां तो जवाब नहीं देते बल्कि अपनी कलम से नै पोस्ट पर नया मलत्याग कर देते है। हद्द तो तब हो जाती है जब यह स्वामी विवेकानंद और श्रीमद्भगवद्गीता तक को अपशब्द कहने में कोई गुरेज़ नहीं करते। और मुझे कष्ट होता है इनकी हाँ में हाँ मिलाने वालों की अक्ल पर, जिन्हे यह नहीं मालूम की बेर का मुंह कौन सा होता और #$@^ कौन सी होती है ,चालू रहते हैं अपनी पीपनी बजने के बजाये कि प्रश्नो के सार्थक उत्तर देने के।   
4) चौथा हाथ, वामपंथियों और धर्म एवं शर्म निरपेक्ष कांग्रेसी मारते हैं। ---मुगलों और मैकाले की नीतियों को जिस सिलसिलेवार और व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ा कर इन्होने हिन्दू धर्म ,भारतीय संस्कृति का नाश किया और हिन्दुओं के आत्मस्वाभिमान को ख़त्म करके अपनी ही संस्कृति के प्रति आत्मग्लानि से भर दिया है, शायद उस स्थिति से वापस आना अगली शताब्दी तक संभव नहीं है। इन लोगों ने जो संविधान और शिक्षा का पाठ्यक्रम बनाया , निकट भविष्य में उसे बदलना संभव नहीं है और यह समाज संतरे के फांकों की तरह विभाजित होता हुआ अधोगति को प्राप्त होता रहेगा। 
3 )तीसरा हाथ, अतिवृह्द मानसिकता से ग्रसित मीडिया मार रहा।----- Presstitude के विषय में मात्र इतना ही कहूँगा ,कि विदेशियों की यह रखैल उसी दाल को काट रही है जिस पर बैठी है। हमने अच्चे अचे राजाओं और नवाबों को रखैलों के हाथ बर्बाद होते हुए सुना है, अफ़सोस आने वाली पीढ़ियां करेंगी जब यह देश बर्बाद हो चूका होगा।  
2 ) दूसरा हाथ, हिन्दू ही हिन्दू को मार रहा है, जो गोधरा जनित दंगों का दर्द और शोर 12 साल तक जितना मुसलमानों ने मचाया उससे ज्यादा उसको हिन्दुओं ने हवा दे रहा है । लेकिन वही हिन्दू कश्मीर असम किश्तवाड़ और अमरनाथ यात्रा के दंगों के समय हुए दंगों को याद भी नहीं करना चाहते, और फेसबुक पर अक्सर गुजरात दंगों का ज़िक्र कर अपने धर्मनिरपेक्ष होने का परिचय पत्र बाँटने के फेर में सातवीं सदी के कासिम के आक्रमण से 2013 तक के मुज़फ्फरनगर तक के दंगों को भूल जाता हैं। 65 सालों से जिनके बाप दादे आँखों में पट्टी बांध कर मुंह में दही जमा कर बैठे रहे, सच क्या है उनके वंशजों को आज नज़र आने लगा है। जिस मुस्लिम लीग के उत्तर में हिन्दुओं की रक्षा के लिए RSS बनी थी, आज के यह नवजात उल्लू के पट्ठे बिना इतिहास जाने बुझे RSS को गालिया देने लगते हैं। 
1) और पहला हाथ, हिन्दुओं का अहँकार उन्हें मार रहा है ---- जी, बाकायदा ताज़ा तरीन उदाहरण दे कर इस विषय को समझाऊंगा। इस फेसबुक पर दो प्रतिष्ठित एवं अपने अपने क्षेत्र में दक्ष एवं ज्ञानवान विद्वान हैं। नाम सुनकर आपको लगेगा की यह व्यक्ति है लेकिन यदि इनकी क्षमताओं पर गौर करें तो ये अपने आप में फेसबुक पर संस्थाएं है जिनके पीछे मजबूत टीमें भी हैं 1) गिरधारी भार्गव जी तथा 2) त्रिभुवन सिंह जी। 
भार्गवजी एक कट्टर हिन्दू ,मुसलामानों, कांग्रेसियों गांधी नेहरू और वामपंथियों की धज्जीयां उड़ने में सिद्धहस्त। इन विषयों पर आपके लेखों का कोई जोड़ नहीं है । और दूसरी तरफ त्रिभुवन सिंह जी की दक्षता मूलनिवासियों की धज्जियाँ उड़ाने में है। वर्णव्यवस्था पर उनके शोधात्मक लेखों की कोई काट नहीं है। तीन दिन पहले भार्गव जी की "नोआखली दंगों " की एक पोस्ट पर त्रिभुवन जी की एक अव्यवहारिक टिप्पणी ने ऐसा मोड़ लिया कि फेसबुक पर एक अत्यंत शक्तिशाली,व्यवहारिक, तार्किक  एवं सामायिक सोच रखने वाला समूह छिन्न भिन्न हो गया। यदि यह दोनों समूह साथ में रहते तो मुझे नहीं लगता कि ज्ञान और तर्कों में इस टीम से कोई जीत जाता और फिर दोनों के पीछे थी रामशंकर मौर्य जी की कमांडो फ़ोर्स। मेरा पूर्व अनुभव कहता है यदि ये टीमें साथ में रहतीं तो इनकी जैसी मारक क्षमता किसी के पास नहीं थी परन्तु ……………………   
मेरी और मेरे बहुत से मित्रों की यह त्रासदी है समय के आभाव और बाध्यता में, कि किस किस से लड़ें, किस किस विषय पर लड़ें और किस किस को समझाएं ???

शुक्रवार, 12 जून 2015

रालिव --चालिव ---गालिव

रालिव ----- धर्म परिवर्तन कर लो 
चालिव ---- छोड़ कर चले जाओ  और 
गालिव ---- मौत को अंगीकार कर लो।


ये शेख अब्दुल्ला का फतवा मैं कश्मीरी हिन्दुओं , नेहरू और कश्मीर के सम्बन्ध में उद्धृत कर रहा हूँ। आज की तारिख में सब जानते हैं कि मोदी कश्मीर समस्या का लोकतान्त्रिक तरीके से जबरदस्ती एक समाधान ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं। और मेरा यह मानना है कि जब वहां के लोगों के दिलों में ही ज़हर भरा हुआ है, तो यह सिर्फ नाम की चुनी हुई सरकार है बाकि पाकिस्तान के झंडे उन्होंने लहराने न अभी बंद किये हैं और न ही झंडे फहराने वालों के खिलाफ वहां की जनता और सरकार ही कोई प्रतिकार की आवाज़ उठाती है। आईये देखें नेहरू ने इस बेरी के पौधे को, कुचलने की बजाये झाड़ बनाने में कैसे मदद की। 

यहाँ पर एक बात का याद रखना ज़रूरी है कि , जिन्ना और माउण्टबैटन चाहते थे कि कश्मीर पाकिस्तान के पास जाना चाहिए। नेहरू चाहते थे कि या तो कश्मीर अपने आप में एक आज़ाद देश हो जाये या वहां जनता की रायशुमारी करवा कर जनता को यह हक़ दिया जाये कि वो तय करे कि उसे किस देश के साथ विलय करना है। इसी जनता की राय लेने वाले विषय पर चर्चा के लिए, जिन्ना ने माउंटबैटन और नेहरू को लाहौर आने का निमंत्रण दे दिया। माउण्टबैटन और नेहरू लाहौर जाने के लिए तैयार हो गए लेकिन सरदार पटेल और मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों ने विरोध जाता कर नेहरू को रोक दिया। ऐसी हर स्थिति को अपने पक्ष में करने के लिए नेहरू, गांधी की गोद में जा कर बैठ जाया करते थे। इधर गांधी ने भी पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने की ज़िद पकड़ ली थी, और सरदार पटेल एवं उनके साथियों का कहना था कि 55 करोड़ तभी दिए जायेंगे जब पाकिस्तानी सेना और कबायली कश्मीर खाली कर देंगे।  
एक अलग आज़ाद देश की परिकल्पना कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरी सिंह की भी हुआ करती थी जिस वजह से उन्होंने पहले भारत गणराज्य में विलय से मना कर दिया था। हरी सिंह की ऐसी इच्छा देख कर गांधी ने तो उन्हें यह सुझाव तक दे दिया था कि वे सन्यास लेकर काशी में बस जाएँ, क्योंकि गांधी और नेहरू शेख अब्दुल्ला को राज्य की कमान सौंपना चाहते थे।  उस समय मेहर चन्द महाजन, महाराजा हरी सिंह द्वारा नियुक्त कश्मीर के प्रधानमंत्री हुआ करते थे।
इसके आगे की कहानी का सार यह है कि शेख अब्दुल्ला ने महाजन को हटाने के बहुत से यत्न किये और अंत में नेहरू ने उसे महाजन के साथ  " Head of Emergency administration" बना ही दिया। अब्दुल्ला महाजन के खिलाफ नित नयी शिकायतें नेहरू और गांधी से किया करता था और यह दोनों तथ्यों को बिना परखे महाजन को दोषी करार देते थे। इसी समय कबायलियों से निपटने के लिए महाजन ने नेहरू से हवाई जहाज द्वारा फ़ौज को कश्मीर भेजने की इल्तिज़ा की ,जिसे नेहरू ने दो टूक लफ़्ज़ों में यह कह कर ठुकरा दिया कि हवाई जहाज द्वारा फ़ौज भेजना कोई आसान काम नहीं है। जब कश्मीर में हालत बहुत बिगड़ने लगे तो महाराजा हरी सिंह कश्मीर के भारत में विलय के लिए तैयार हो गए। यहाँ पर नेहरू ने दो शर्तें लगा दीं , पहली कि रियासत का विलय कश्मीर की जनता की सम्मति से तय किया जायेगा और दूसरी कि शेख अब्दुल्ला कश्मीर का प्रधानमंत्री होगा। 
मेहर चंद महाजन को कश्मीर के प्रधानमन्त्री के पद से जबरदस्ती हटा कर भारत में न्यायधीश नियुक्त कर दिया गया और दिसम्बर 1905 की पैदाइश वाले शेख अब्दुल्ला को वहां का प्रधानमंत्री बना दिया गया जिसका दिल पाकिस्तान चला गया था और दिमाग यहाँ के प्रधानमंत्रित्व में रह गया था । उस शेख अब्दुल्ला को जिसने अपनी आत्मकथा " आतिशे चिनार" में कश्मीरी हिन्दुलों को तीन विकल्प दिए थे -----
रालिव ----- धर्म परिवर्तन कर लो 
चालिव ---- छोड़ कर चले जाओ  और 
गालिव ---- मौत को अंगीकार कर लो।   19 जनवरी 1990 को यही वाक्य कश्मीर की मज़जिदों से दुबारा दोहराये गए, बस इस बार हरामियों ने इतना फ़र्क़ किया कि इस बार वे यह चाहते थे कि हिन्दू अपनी औरतें और लड़कियां उनके लिए छोड़ जाएँ।  इसका नतीजा क्या हुआ ???? वर्ष 1901 की जनगणना के मुताबिक कश्मीर घाटी में 6,89,073 हिन्दू रहते थे, 1900 के बाद 350000 हिन्दुओं ने कश्मीर घाटी छोड़ दी और आज वहां 3000 से भी कम बचे हैं, और 1928 की पैदाइश वाले गिलानी सरीखे आज भी जहर की खेती कश्मीर में बो रहे हैं। और मैं यह समझने में नाकामयाब हूँ कि जिस गांधी और नेहरू ने देश का बेडा गर्क किया उनका इतना महिमामंडन क्यों किया जाता है ???

शनिवार, 6 जून 2015

गॉडफादर और कुरान मजीद में समानताएं

 भाग --2  गत पोस्ट दिनांक 04 /06 /15 का शेष भाग --------




अब जाकर बुढ़ापे में हमने पढ़ी "कुरान मजीद"। दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तकों में इसका नाम ऊपर की इकाई में होगा।  इसका मुख्य किरदार खुदा है और इसके आदेशों का पालन करवाने वाला तथा आम जन और जनता के बीच की कड़ी पैगम्बर है। क़ुरान का खुदा किसी से नहीं मिलता और क़ुरान/ इस्लाम में खुदा और आम जन के बीच की कड़ी पैगम्बर है। 
और मेरे बचपन का हमारा पहला नॉवल Mario Puzo का लिखा हुआ, जिसका शुमार आज भी बेस्ट सेलर्स में होता है ---,"GodFather" था। नॉवल अमरीका के सबसे शक्तिशाली माफिया पर आधारित है , अब "माफिया" शब्द से आप गॉडफादर और उसके कृत्यों की कल्पना कर सकते है।  इस नॉवल का मुख्य किरदार Don Vito Corleone था जिसे डॉन या गॉडफादर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। यहाँ एक बात याद रखियेगा कि डॉन से कोई सीधे मिल नहीं सकता था या यूँ कह लीजिये की डॉन किसी से नहीं मिलता। और उसका दायां हाथ या कह लीजिये उसके आदेशों को मूर्तरूप देने वाला तथा आम जन और डॉन के बीच की कड़ी Tom Hagen था। 
यह तो हुई एक समानता और भूमिका खुदा और गॉडफादर में, उनके लिए जिन्होंने गॉडफादर और क़ुरान या दोनों में से कोई एक नहीं पढ़ी हैं, आइये अब देखें "गॉडफादर" एवं " क़ुरान /इस्लाम" में और क्या क्या समानताएं हैं। 
10) आदेश के आगे शक और सवाल मत करो ( Don't Question)----- गॉडफादर का एक बिना लिखा क़ानून था की यदि डॉन ने कोई आदेश दिया है तो उस पर कोई सवाल नहीं पूछेगा और आदेश का क्रियान्वहन अक्षरशः होना चाहिए। न मानने वाले को दिक्कतों या मौत का उपहार दिया जाता है। 
क़ुरान-- सूरा 5 आयत 101 ---- ऐ इमां वालों ! ऐसी फ़िज़ूल की बातें मत पूछो कि अगर तुमसे ज़ाहिर कर दी जाएँ तो तुम्हारी नगवारी का सबब हों। या 
सूरा 43  आयत 61 --- और वह क़ियामत के यकीन का जरिया है,तो तुम लोग उस के ( सही होने ) में शक मत करो,और मेरी पैरवी करो, यह सीधा रास्ता है। 

9) समझाने का खौफनाक अंदाज़ ---- डॉन का एक दत्तक पुत्र था , ठीक ठाक गाना गाता था उसे हॉलीवुड के एक प्रोड्यूसर ने डॉन के सन्देश की अवहेलना करते हुए काम देने से मना कर दिया। इस प्रोड्यूसर के पास उस समय विश्व का सबसे महंगा घोड़ा था। बहुत अधिक सुरक्षा में रहने वाला प्रोड्यूसर एक दिन सुबह जब सो कर उठा तो उसे अपनी आँखों पर यकीं नहीं हुआ की उसके घोड़े का सर एक बड़ी सी थाल में उसके बिस्तर के पैताने रखा हुआ था और साथ में एक वाक्य का एक पत्र रखा हुआ था कि "घोड़े की जगह तुम्हारा सिर भी हो सकता था ".  
क़ुरान सूरा 7, आयत 77 ---- ग़रज़ उन्होंने उस ऊँटनी को मार डाला और अपने परवरदिगार के हुक्म से सरकशी की और कहने लगे की ऐ सालेह! जिसकी आप हमको धमकी देते थे उसको मंगवाइये। 


8) दुश्मनों का खात्मा ( No toleration for opposition)--- डॉन अपने दुश्मनो को जिन्दा नहीं छोड़ता था। खासतौर पर तब जब कोई उससे सीधी प्रतिद्वन्दिता ज़ाहिर कर देता था। पहला मौका और पहला वार। अपनी इसी नीति पर चलते हुए डॉन ने अमरीका के पांच बड़े माफिया घरानों, जो कि उसके अधीन आने के लिए तैयार नहीं थे के खिलाफ एक बार आल आउट वॉर छेड़ दी और सबको ख़त्म करके अपना वर्चस्व स्थापित कर दिया। 

इस्लाम के जानने वालों ने  "काब इब्न अशरफ" नाम के गैर मुस्लिम कवि जिसने मोहम्मद का मज़ाक उड़ाया था उसकी हत्या, बनो कुरेजा नरसंहार ,कुरैशों और अन्य कबीलों का सफाया तो सबने पढ़ा होगा, लेकिन क़ुरान दसियों जगह पर काफिरों को मार डालने साफ़ साफ़ हिदायत दी गयी है।  जिसकी एक बानगी निम्न है :
सूरा 9 आयत 5 ---सो जब हुरमत के महीने गुज़र जाएँ तो उन मुश्रिकों को जहाँ पाओ वहां मारो,और पकड़ो और बांधो और दांव-घात के मौकों में उनकी ताक में बैठो, फिर अगर वे तौबा कर लें और नमाज़ पढने लगें और ज़कात देने लगें तो उनका रास्ता छोड़ दो वाकई अल्लाह तआला बड़ी मगफिरत करने वाले, बड़ी रेहमत करने वाले हैं।

7) हालात सब कुछ होते हैं (Circumstanses are everything)----- डॉन के निर्णय समय ,स्थान ,देश और काल के अनुसार हुआ करते थे। एक बार जब डॉन गोली लगने से घायल हो गया तो पूरा गिरोह कछुए की तरह तब तक सिकुड़ा रहा जब तक हालात सामान्य नहीं हो गए। 
इस्लाम और क़ुरान ---- शुरुआत में जब मोहम्मद की इस्लाम की थ्योरी कुरैशों को समझ नहीं आई तो उन्होंने जम कर मोर्चा लिया, और मोहम्मद मदीना चले गया। जब वो मजबूत हो गया तो पलट कर मक्का वापिस आया और कुरैशों की तरफ दोस्ती का  हाथ बढ़ाया, इस दोस्ती के हाथ के पीछे दुश्मनी का कितना बड़ा खंजर था ये वो लोग नहीं देख पाये और उनका नाम इतिहास में दर्ज़ हो कर रह गया। 
क़ुरान -- सूरा 53 आयत --29 ----तो आप ऐसे शख्स से अपना ध्यान हटा लीजिये  जो हमारी नसीहत का ख्याल न करे और दुनियावी जिन्दगी के सिवा उसको कोई मक़सूद न हो। 
सूरा 73 आयत 10 ---- ये लोग जो बातें करते हैं उनपर सब्र करो ,और खूबसूरती के साथ उनसे अलग रहो। 
सूरा 73 आयत  11 ---- और मुझको और उन झुठलाने वालों और ऐश व् आराम में रहने वालों को छोड़ दो और उन लोगों को थोड़े दिनों की महोलत दे दो। 

6) गिरोह के साथ वफादारी ( Clan Loyalty)--- ऊपर डॉन को गोली लगने की घटना का ज़िक्र किया गया है। डॉन के गैंग को पता चल जाता है कि गैंग में से कौन से गुर्गे ने मुखबिरी और बेवफाई की थी। पहले मौके पर दूसरों को सबक देने वाली दर्दनाक मौत उसे उपहार स्वरुप दी जाती है जो कि गैंग के अन्य सदस्यों के लिए "घराने" के प्रति निष्ठापूर्वक वफादार रहने का एक सन्देश देती है। अपने वफादारों को डॉन पर्याप्त रूप से पारितोषिक देता था और जो डॉन के साथ वफादारी करते हुए मारे जाते थे तो डॉन उनके परिवार के भरण पोषण का पूरा ख्याल रखता था।  
क़ुरान -- सूरा 8 आयत 67 -- नबी की शान के लायक नहीं कि उनके कैदी बाकि रहें ,बल्कि क़त्ल कर दिए जाएं जब तक वह ज़मीन में अच्छी तरह काफिरों का खून न बहा लें। तुम तो दुनिया  व् असबाब चाहते हो और अल्लाह तआला आख़िरत को चाहते हैं और अल्लाह तआला बड़े ज़बरदस्त हैं बड़ी हिकमत वाले हैं। 
सूरा 8 आयत 71 --- और अगर ये लोग आपके साथ खियानत करने का इरादा रखते हों तो इससे पहले उन्होंने अल्लाह के साथ खियनत की थी ,फिर अल्लाह तआला ने उन्हें गिरफ्तार करा दिया, और अल्लाह तआला खूब जानने वाले बड़ी हिकमत वाले है। 
सूरा 32  आयत 22 ---- " और उस शख्स से ज्यादा कौन जालिम होगा जिसको उसके रब की आयतें याद दिलाई जाएँ , फिर वह उनसे मुंह मोड़े , हम ऐसे मुज़रिमों से बदला लेंगे। 
सूरा 9 : आयत 111 --- बेशक अल्लाह तआला ने मुसलमानो से उनकी जानो और मालों को इस बात के बदले खरीद लिया है कि  मिलेगी। वे लोग अल्लाह की राह में लड़ते है,क़त्ल करते है और क़त्ल किये जाते हैं, इसपर सच्चा वायदा (किया गया) है "तौरात" में भी और "इंजील" में भी और "क़ुरान" में भी और अल्लाह से ज्यादा अपने अहद को पूरा करने वाला कौन है तो तुम लोग अपने इस बेचने पर जिसका तुमने उससे (यानि की अल्लाह से) मामला ठहराया है, ख़ुशी मनाओ, और यह बड़ी कामयाबी है। 
5) नफरत और अविश्वास ( Revenge and Distrust)-----गॉडफादर में डॉन अपने बड़े बेटे के क़त्ल के बाद सबसे छोटे बेटे माइकल को कुछ दिनों के लिए शांत हो जाने की हिदायत देता है और पांच बड़े गिरोहों पर विशवास न करते हुए दोस्ती रखने के लिए कहता है।  (नया डॉन ) अपने जीजा के द्वारा अपनी बहन की प्रताड़ना और अपने बड़े भाई के क़त्लके लिए जिम्मेदार अपने जीजाके प्रति इंतकाम का ज़हर कई साल तक दिल में दबा कर रखता ,और और लगभग पांच साल बाद जीजा का क़त्ल करवा कर बदला लेता है। 
क़ुरान --- 9 अायत 23 --- ऐ ईमान वालों ! अपने बापों को, अपने भाइयों को (अपना रफ़ीक़) यानि दोस्त मत बनाओ , अगर वे लोग कुफ्र को ईमान के मुकाबले में अज़ीज रखे। .(कि उनके ईमान लेन की उम्मीद न रहे) और जो लोग तुममें से उनके साथ दोस्ती और दिली ताल्लुक रखेगा सो ऐसे लोग बड़े नाफरमान हैं। 
( ऐसे ही ख्यालात काफिरों से दोस्ती न करने के और उनपर विश्वास न करने के बहुत जगह दिए गए हैं, जैसे 4:89 , 5:44, 6: 40 , 9: 23, 58: 22 ,4: 144 )

4) धोखा देना ( Deception)--- वैसे डॉन असूलों वाला व्यक्ति दिखया गया है लेकिन गॉडफादर के अंत में अपना अस्तित्व बरकरार रखने के लिए डॉन का बेटा शहर के पुलिस कप्तान को  धोखे से मार देता है। और कुरान क्या कहती है इस सम्बन्ध में ------   
कुरान -सूरा 2:58 ---और जब हमने हुक्म किया की तुम लोग उस आबादी के अंदर दाख़िल हो,फिर खाओ उस (की चीज़ों में) से जिस जगह तुम रगबत करो बेतकुल्लफी से , और दरवाज़े में दाखिल होना (अज़ीज़ी से ) झुके-झुके और (ज़बान से) कहते जाना तौबा है (तौबा है) । हम माफ़ कर देंगे तुम्हारी खतायें और उस पर और ज़्यादा देंगे दिल से नेक काम करने वालों को। 
सूरा 2:45 और (अगर तुमको माल और पद व् दबदबे की मुहब्बत के ग़लबे से ईमान लाना दुश्वार मालूम हो तो) मदद लो सब्र और नमाज़ से, और बेशक वह नमाज़ दुश्वार ज़रूर है मगर जिनके दिल में खुशुअ " यानि अज़ीज़ी और गिड़गिड़ाना" हो उन पर कुछ दुश्वार नहीं है। 

3) चालबाज़ी ( Decieving)----- डॉन ने वक़्त के साथ पूरे अमरीका के कानून और जुर्म की दुनिया में अपने गुर्गे फिट कर रखे थे, जो वक़्त पड़ने पर उसकी मदद करते थे। 
इस्लाम --- में तकिया नाम की जीने की कला का भरपूर इस्तेमाल होता है। तकिया Taqiyya-- In Islam, taqiyya تقية (alternative spellings taqiyeh, taqiya, taqiyah, tuqyah) is a form of religious dissimulation,[1] or a legal dispensation whereby a believing individual can deny his faith or commit otherwise illegal or blasphemous acts while they are in fear or at risk of significant persecution.[2]---- यह परिभाषा Wikipedia से कॉपी की गयी है। इसके बारे में विस्तार से पढ़ेंगे तो 2 बातें आपकी समझ में आएँगी। एक तो यह की बहुसंख्यकों को बेवकूफ बना कर जीने की वो कला है जिसके कारण ये जहाँ कम संख्या में होते है वहां बहुसंख्यकों में घुल मिल कर इतना मीठा क्यों बोलते हैं। और दूसरी बात यह की दुनिया भर के धर्मनिरपेक्ष इसी झूठ का सहारा ले कर यह धारणा दूसरों पर जबरदस्ती मढ़ते हैं की "यह बहुत शांतिप्रिय मज़हब है"। 

2) हफ्ता वसूली or Protection Business -- जैसा की हर छोटे बड़े माफिया की दुकान गैर कानूनी धंधों के साथ आम लोगों, छुटभइये गुंडों और सामान्य नागरिकों को कोई परेशान न करे इसलिए हफ्ता वसूली पर भी निर्भर करती है ऐसे ही डॉन भी वसूली करके आम जान को संरक्षण प्रदान किया करता था। 
सूरा 9 आयत 29 --- अहले किताब जो कि न खुदा पर ईमान रखते है और न क़ियामत के दिन पर ,और न उन चीज़ों को हराम समझते हैं जिनको खुदा तआला ने और उसके रसूल ने बताया है और न सच्चे दीन इस्लाम को कबूल करते है ,उनसे यहाँ तक लड़ो कि वे मातहत होकर और रैय्यत बनकर "जिजिया" यानि इस्लामी हुकूमत में रहने का टैक्स देना मंज़ूर करें। 
सूरा 8: आयत 41 --- और जान लो की जो चीज़ (काफिरो) से गनीमत के तौर पर तुमको हासिल हो तो (उसका हुक्म यह है कि) कुल का पांचवा हिस्सा अल्लाह का और उसके रसूल का है, और (एक हिस्सा) आपके रिश्तेदारों का है,और (हिस्सा) यतीमों का है,और (एक हिस्सा) गरीबों का है, और (एक हिस्सा) मुसाफिरों का है, अगर तुम अल्लाह पर यकीन रखते हो और उस चीज़ पर जिसको हमने अपने बन्दे (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व् सल्लम) पर फैसले के दिन, जिस दिन कि (मोमिनो व काफिरों की) दोनों जमातें आपस में आमने -सामने हुई थीं, नाज़िल फ़रमाया था। और अल्लाह तआला (ही) हर चीज़ पर कुदरत रखने वाले हैं।  

1) जिहाद ( Fight Unto Finish) -----डॉन के रहते हुए  उसके कारिंदो ने हर उस शख्स से जीने का हक़ चीन लिया जिसने उसकी मुखालफत की। और डॉन मरने के पश्चात तो उसके बेटे ने सत्ता सम्भाने के कुछ समय बाद हर उस शख्स को मौत के घाट उत्तर दिया जो कभी उनका प्रतिद्वंदी हुआ करता था और इस तरह वो जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया। 
क़ुरान --सूरा 9: आयत 73 --- ऐ नबी! कुफ़्फ़ार (से तलवार के साथ )और मुनाफिकों से जिहाद कीजिये,और उनपर सख्ती कीजिये। ( वे दुनिया में तो इसके हक़दार हैं) और इनका ठिकाना दोजख है,और वह बुरी जगह है। 
9 सूरा :आयत 41 -- निकल पड़ो (चाहे) थोड़े से सामन से और (चाहे ) ज्यादा सामान से और अल्लाह तआला की रह में अपने माल और जान से जिहाद करो,यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम यकीन रखते हो (तो देर मत करो )   कुछ ऐसी ही भाषा या अर्थ 9:44 8:65 और इन जैसी बहुत सी आयतों का है।  

0 ) डॉन की एक पंच लाइन हुआ करती थी " I'm gonna make him an offer,He can't refuse" इसके बाद डॉन या तो पैसे से या डर और बाहुबल से अपना काम करवा लेता था और जो इन दोनों से नहीं मानता था उसके हिस्से में मौत आती थी। 
इस्लाम ---1) प्यार से या डर से इस्लाम कबूल कर लो 2) नहीं मुसलमान बनाना है तो जजिया दो और ढिम्मी बन कर रहो 3) नहीं तो मौत आपका इंतज़ार कर रही है।  

बस अगर फ़र्क़ है इन में तो यह कि डॉन और उसके वंशजों ने औरतों के साथ कभी बदसलूकी नहीं की और उन्हें कभी भोग की वस्तु नहीं समझा।गरीब और बेसहारा उसे वाकई खुदा मानते थे और हर मुसीबत में उसकी तरफ मदद के लिए हाथ फैलाते थे।
और इस्लाम ????  ……… कॉमेंट बॉक्स आपके लिए खाली है।

गुरुवार, 4 जून 2015

इस्लाम की विकृत मानसिकता के लक्षण

एक मानसिक रोग चिकित्सक ने एक मानसिक रोगी और दुनिया के एक मज़हब में बहुत सी समानताएं देखीं। आइये आप भी जानिए मानसिक रोगियों का व्यवहार कैसा होता है। 

भाग -1 



10 ) हम बहुत पीड़ा और कष्ट में हैं  --- जी पूरी दुनिया में इनका यही रोना  है की यह बहुत पीड़ा और कष्ट में हैं।  इनका हर जगह शोषण हो रहा है।  इनके हक़ मारे जा रहे हैं। इनमे यह सलाहियत है कि सामान्य जीवन की साधारण सी घटना में भी यह अपने लिए पीड़ा ढूंढ लेते हैं। इनके दुश्मन कुछ भी करें, उसमें यह अपने लिए पीड़ा ढूंढ ही लाते हैं और यदि इनके दुश्मन कुछ न करें तो भी ये ऐसी परिस्थितयां पैदा कर देते हैं जहाँ आमना सामना हो ही जाये। भारत के परिपेक्ष में एक मुस्लिम को नौकरी न देना, मंदिर के साथ या मंदिर और गुरूद्वारे की जगह पर मस्जिद बनाना वगैरह वगैरह। 

9) इन्हें जो चाहिए उसके लिए हाय तौबा करे हासिल कर ही लेते हैं -----देश और दुनिया के सामने अपने आप को साधारण नागरिक की तुलना में ऐसा दीन हीन की तरह पेश करते हैं कि किसी भी सामान्य बुद्धि वाले को इन पर तरस आ जाता है और ये वो सहानुभूति हासिल करके उस अधिकार को ले कर ही मानते हैं जो साधारण नागरिक को उपलब्ध नहीं हो सकता। भारत के परिपेक्ष में अल्पसंख्यक का दर्ज़ा, मदरसों, हज  कब्रिस्तानों के लिए अनुदान वगैरह वगैरह।और यह वो पैने दांतों वाली आरी है जो कभी रुकने का नाम नहीं लेती। 
 
8) "तकिया" का भरपूर इस्तेमाल ---- तकिया वो कला है जिसमे जिसमे यह बोलते बहुत मीठा मीठा हैं ,लेकिन दिल में ज़हर भरा हुआ होता है और नियत पूरी धोखा देने की होती है। भारत के परिपेक्ष में धर्म के नाम पर देश का विभाजन करवाया , आज यहाँ रह भी रहे हैं और कीड़े मकोड़ों की तरह गुणात्मक रूप से बढ़ भी रहे हैं और जैसा की कीड़े करते हैं, साथ में दूसरों की ज़िन्दगी नरक भी किये हुए है। 

7 ) इन्हें मज़हब के नाम पर विशेषाधिकार चाहिए ---- इनका मज़हब आसमान से उतरा हुआ है इसलिए उसे निभाने के लिए इन्हे उन विशेषाधिकारों की ज़रुरत होती है जो अन्य धर्माविलम्बिओं को नहीं होती। जैसे शरीया के मुताबिक इन्हे कानून चाहिए, मुस्लिम पर्सनल लॉ चाहिए ,सड़क पर कहीं भी गमछा फैला कर नमाज़ अदा करने का हक़ चाहिए ,मंदिर में आरती के समय आवाज़  न हो लेकिन ये दिन में पांच बार लाउडस्पीकर लगा कर अजान देंगे। 

6 ) ये सबके सामने बहुत शांतिप्रिय और मोहब्बत करने वाले लेकिन मौका पड़ने पर उतने ही ज़हर उगलने वाले होते हैं ---- सभी ने सुना होगा और व्यक्तिगत ज़िन्दगी में महसूस भी किया होगा, कि कितनी मीठी और सुलझी हुई बातें करते हैं यह लेकिन औकात में आने में इनको दो मिनट से ज्यादा समय नहीं लगता। भारत के परिपेक्ष में 67 सालों से स्वतंत्रता का उपयोग यह देश  और समाज के खिलाफ ज़हर उगलने का काम करते है --- गिलानी ,जिलानी ,ओवैसी ,आज़म, बुखारी, शहाबुद्दीन, ……………… 

5 ) दुश्मन का दुश्मन इनका दोस्त ---- विश्व परिपेक्ष में इजराइल के खिलाफ पश्चिमी देशों से मदद मांगेंगे और वैसे पश्चिमी देश इनकी नज़र में इस्लाम के सबसे बड़े दुश्मन। भारत के परिपेक्ष में कल जिनको इन्होने दलित बनाया आज उन्ही के साथ " जय भीम जय मीम " का नारा बुलंद कर रहे हैं। 

4 ) दुश्मन की कमज़ोरियों का भरपूर फायदा उठाते है ---- पूरे विश्व में प्रजातान्त्रिक संविधानों की धज्जियाँ उड़ाना इनका पहला काम है। कुरान ,शरिया हदीस के आगे सारे संविधान बेकार हैं ,बस इनके लिए तीन ही सच हैं इस दुनिया में,कि एक खुदा है, एक पैगम्बर था और एक क़ुरान है। इनकी बात न मानने वाले को जीने का कोई हक़ नहीं है, और 1400 सालों से यह चाहते तो वही ज़िन्दगी जीने के कायदे कानून हैं पर वर्तमान के विज्ञानं द्वारा प्रद्दत किसी भी सुविधा के उपयोग से इन्हे परहेज़ नहीं है। 

3 ) अपने लिए सहानुभूति रखने वालों का एक विशेष वर्ग तैयार कर लेते हैं --- अपने दुश्मन के खिलाफ एकजुट हो कर कौओं की तरह ऐसे चिल्लायेंगे जैसे इनकी साथ बहुत अन्याय किया जा रहा है और जो इनके विचारों से सहमत नहीं उसके खिलाफ ऐसा माहोल खड़ा कर देंगे की उससे बड़ा इनका दमनकारी और कोई नहीं, इस तरह अपने लिए सहानुभूति की लहर पैदा करते हैं। क्या भारत के परिपेक्ष में मीडिया, विभिन्न राजनैतिक दलों और नेताओं की इनके साथ हमदर्दी किसी उदाहरण की मोहताज़ है ????

2 ) सबको ग़लतफहमी में डाल कर रखते हैं कि ये समस्या ख़त्म हो जाएगी ---- 1400 सालों से मोरक्को से ले कर मलेशिया तक तलवार के दम पर मुसलमान इसलिए बना दिया कि  इस्लाम शांतिप्रिय मज़हब है, और सबके मुसलमान बनते ही समाज की सारी समस्याएं समाप्त हो जाएँगी , लेकिन इराक ,सीरिया ,पाकिस्तान अफगानिस्तान, यमन और धर्म के नाम पर भारत के विभाजन …………… कश्मीर कहीं हों लेकिन समस्यां बढती हुई ही नज़र आती है और ये लोग भी रोज़ बिना मारे और मरे एक दिन भी नहीं रह सकते। 

1) नज़र दूर की कौड़ी पर रहती है ---- उपरोक्त मानसिकता के पीछे इनका उद्देश्य सिर्फ पूरे विश्व को दारुल इस्लाम बनाना है। चाहे वो लव जिहाद से हो या जिहाद से हो या खलीफा के राज से हो पर मुझे यकीन है कि जैसे इस्लाम हिन्दू धर्म के बिलकुल विपरीत कार्य करता है , तो हिन्दू धर्म की "जियो और जीने दो " की भावना के भी ये विपरीत ही हैं " न चैन से जिएंगे और न चैन से जीने देंगे" 
क्रमशः ------