रविवार, 28 जून 2015

किस किस से लड़ें और किस किस को समझाएं ???

मेरी और मेरे बहुत से मित्रों की यह त्रासदी है कि किस किस से लड़ें और किस किस को समझाएं ??? 

 हम तो मंदिर के वो घंटे हो गए हैं जिसे हर कोई बजा कर चला जाता है। जी, मैं  भारत में रहने वाले एक साधारण हिन्दू की बात कर रहा हूँ। आप सुबह सुबह फेसबुक खोलते हैं और पाते हैं कि एक हाथ बढ़ा और बजा गया ,ये था -------
7 ) सातवां  हाथ और जब भी समय मिलता है मुसलमान बजाने की कोशिश करता है। ----- दुनिया का कोई भी विषय हो सबसे पहले भारतीय मुस्लिमों का धर्म संकट में पड़ता है और वे अपनी पूरी तार्किक शक्ति हिन्दुओं, हमारे देवीदेवताओं और हमारी मान्यताओं को गलत साबित करने में लगा देते हैं। इनके क़ुरान की ,मारकाट, लूटखसोट ,बलात्कार और जिहाद सरीखे रिवाज़ और उन्हें सीखने वाली कुरान कहीं से इन्हे गलत नज़र नहीं आती। कुछ पोस्ट पर जिन पर निगाह पड़ जाती है, वहां तो हमारे शेरदिल मित्र उसका बाजा बजा देते हैं, लेकिन लाखों ऐसी प्रोफाइल्स हैं, जिन पर हम या तो पहुँच नहीं पाते या या समयाभाव में नज़रअंदाज़ करना पड़ता है। 
6) छठा  हाथ मूलनिवासी और बौद्ध मारने लगे हैं।--- इनके ऊपर 3000 साल से ब्राह्मणों और यूरेशिया से आये हुए आर्यों ने बहुत अत्याचार किया।  हिन्दू धर्मग्रंथों की आलोचना उनमे ढूंढ ढूंढ का शब्दों और उनमे निहितार्थ अर्थों का अनर्थ करना इनका पहला ध्येय है। इसलिए वैदिक धर्म और इसके अनुयायियों को मार कर यूरेशिया वापिस भेजना, इनका एजेंडा है। लेकिन सबसे मज़े की बात पिछले 800 सालों में जिन मुल्लों ने इन्हे मार मार कर मुर्गा बना दिया वो आज इनके सगे हैं।   
5 )पांचवां  हाथ अपने नाम के आगे या पीछे "आर्य" शब्द लगा कर सनातन और वैदिक धर्म की जड़ें खोदने वाले डंके की चोट पर मारने लगे हैं। ----- मेरी पूरी पढ़ाई शिमला और चंडीगढ़ के डी ए वी स्कूल और कॉलेज में हुई, 1988 तक एक बार भी इन संस्थानों किसी सहविद्यार्थी या अध्यापक ने कभी मूर्तिपूजा या पुराणों और उपनिषदों का उपहास नहीं उड़ाया। परन्तु आज के ये न जाने कौन से "आर्य" पैदा हो गए हैं जो मुसलामानों सी बातें करके वेदों के अतिरिक्त मात्र "हिन्दू" धर्मग्रंथों में कुरीतियां ढूंढ रहे हैं और उन्हें जलाने की बात कर रहे हैं। यदि उनसे किसी संस्कृत के श्लोक का अर्थ पूछ लिया जाये या यह पूछ लिया जाये कि क्या आपने सारे धर्मग्रंथों का अध्ययन किया है तो वहां तो जवाब नहीं देते बल्कि अपनी कलम से नै पोस्ट पर नया मलत्याग कर देते है। हद्द तो तब हो जाती है जब यह स्वामी विवेकानंद और श्रीमद्भगवद्गीता तक को अपशब्द कहने में कोई गुरेज़ नहीं करते। और मुझे कष्ट होता है इनकी हाँ में हाँ मिलाने वालों की अक्ल पर, जिन्हे यह नहीं मालूम की बेर का मुंह कौन सा होता और #$@^ कौन सी होती है ,चालू रहते हैं अपनी पीपनी बजने के बजाये कि प्रश्नो के सार्थक उत्तर देने के।   
4) चौथा हाथ, वामपंथियों और धर्म एवं शर्म निरपेक्ष कांग्रेसी मारते हैं। ---मुगलों और मैकाले की नीतियों को जिस सिलसिलेवार और व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ा कर इन्होने हिन्दू धर्म ,भारतीय संस्कृति का नाश किया और हिन्दुओं के आत्मस्वाभिमान को ख़त्म करके अपनी ही संस्कृति के प्रति आत्मग्लानि से भर दिया है, शायद उस स्थिति से वापस आना अगली शताब्दी तक संभव नहीं है। इन लोगों ने जो संविधान और शिक्षा का पाठ्यक्रम बनाया , निकट भविष्य में उसे बदलना संभव नहीं है और यह समाज संतरे के फांकों की तरह विभाजित होता हुआ अधोगति को प्राप्त होता रहेगा। 
3 )तीसरा हाथ, अतिवृह्द मानसिकता से ग्रसित मीडिया मार रहा।----- Presstitude के विषय में मात्र इतना ही कहूँगा ,कि विदेशियों की यह रखैल उसी दाल को काट रही है जिस पर बैठी है। हमने अच्चे अचे राजाओं और नवाबों को रखैलों के हाथ बर्बाद होते हुए सुना है, अफ़सोस आने वाली पीढ़ियां करेंगी जब यह देश बर्बाद हो चूका होगा।  
2 ) दूसरा हाथ, हिन्दू ही हिन्दू को मार रहा है, जो गोधरा जनित दंगों का दर्द और शोर 12 साल तक जितना मुसलमानों ने मचाया उससे ज्यादा उसको हिन्दुओं ने हवा दे रहा है । लेकिन वही हिन्दू कश्मीर असम किश्तवाड़ और अमरनाथ यात्रा के दंगों के समय हुए दंगों को याद भी नहीं करना चाहते, और फेसबुक पर अक्सर गुजरात दंगों का ज़िक्र कर अपने धर्मनिरपेक्ष होने का परिचय पत्र बाँटने के फेर में सातवीं सदी के कासिम के आक्रमण से 2013 तक के मुज़फ्फरनगर तक के दंगों को भूल जाता हैं। 65 सालों से जिनके बाप दादे आँखों में पट्टी बांध कर मुंह में दही जमा कर बैठे रहे, सच क्या है उनके वंशजों को आज नज़र आने लगा है। जिस मुस्लिम लीग के उत्तर में हिन्दुओं की रक्षा के लिए RSS बनी थी, आज के यह नवजात उल्लू के पट्ठे बिना इतिहास जाने बुझे RSS को गालिया देने लगते हैं। 
1) और पहला हाथ, हिन्दुओं का अहँकार उन्हें मार रहा है ---- जी, बाकायदा ताज़ा तरीन उदाहरण दे कर इस विषय को समझाऊंगा। इस फेसबुक पर दो प्रतिष्ठित एवं अपने अपने क्षेत्र में दक्ष एवं ज्ञानवान विद्वान हैं। नाम सुनकर आपको लगेगा की यह व्यक्ति है लेकिन यदि इनकी क्षमताओं पर गौर करें तो ये अपने आप में फेसबुक पर संस्थाएं है जिनके पीछे मजबूत टीमें भी हैं 1) गिरधारी भार्गव जी तथा 2) त्रिभुवन सिंह जी। 
भार्गवजी एक कट्टर हिन्दू ,मुसलामानों, कांग्रेसियों गांधी नेहरू और वामपंथियों की धज्जीयां उड़ने में सिद्धहस्त। इन विषयों पर आपके लेखों का कोई जोड़ नहीं है । और दूसरी तरफ त्रिभुवन सिंह जी की दक्षता मूलनिवासियों की धज्जियाँ उड़ाने में है। वर्णव्यवस्था पर उनके शोधात्मक लेखों की कोई काट नहीं है। तीन दिन पहले भार्गव जी की "नोआखली दंगों " की एक पोस्ट पर त्रिभुवन जी की एक अव्यवहारिक टिप्पणी ने ऐसा मोड़ लिया कि फेसबुक पर एक अत्यंत शक्तिशाली,व्यवहारिक, तार्किक  एवं सामायिक सोच रखने वाला समूह छिन्न भिन्न हो गया। यदि यह दोनों समूह साथ में रहते तो मुझे नहीं लगता कि ज्ञान और तर्कों में इस टीम से कोई जीत जाता और फिर दोनों के पीछे थी रामशंकर मौर्य जी की कमांडो फ़ोर्स। मेरा पूर्व अनुभव कहता है यदि ये टीमें साथ में रहतीं तो इनकी जैसी मारक क्षमता किसी के पास नहीं थी परन्तु ……………………   
मेरी और मेरे बहुत से मित्रों की यह त्रासदी है समय के आभाव और बाध्यता में, कि किस किस से लड़ें, किस किस विषय पर लड़ें और किस किस को समझाएं ???

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