एक मानसिक रोग चिकित्सक ने एक मानसिक रोगी और दुनिया के एक मज़हब में बहुत सी समानताएं देखीं। आइये आप भी जानिए मानसिक रोगियों का व्यवहार कैसा होता है।
10 ) हम बहुत पीड़ा और कष्ट में हैं --- जी पूरी दुनिया में इनका यही रोना है की यह बहुत पीड़ा और कष्ट में हैं। इनका हर जगह शोषण हो रहा है। इनके हक़ मारे जा रहे हैं। इनमे यह सलाहियत है कि सामान्य जीवन की साधारण सी घटना में भी यह अपने लिए पीड़ा ढूंढ लेते हैं। इनके दुश्मन कुछ भी करें, उसमें यह अपने लिए पीड़ा ढूंढ ही लाते हैं और यदि इनके दुश्मन कुछ न करें तो भी ये ऐसी परिस्थितयां पैदा कर देते हैं जहाँ आमना सामना हो ही जाये। भारत के परिपेक्ष में एक मुस्लिम को नौकरी न देना, मंदिर के साथ या मंदिर और गुरूद्वारे की जगह पर मस्जिद बनाना वगैरह वगैरह।
9) इन्हें जो चाहिए उसके लिए हाय तौबा करे हासिल कर ही लेते हैं -----देश और दुनिया के सामने अपने आप को साधारण नागरिक की तुलना में ऐसा दीन हीन की तरह पेश करते हैं कि किसी भी सामान्य बुद्धि वाले को इन पर तरस आ जाता है और ये वो सहानुभूति हासिल करके उस अधिकार को ले कर ही मानते हैं जो साधारण नागरिक को उपलब्ध नहीं हो सकता। भारत के परिपेक्ष में अल्पसंख्यक का दर्ज़ा, मदरसों, हज कब्रिस्तानों के लिए अनुदान वगैरह वगैरह।और यह वो पैने दांतों वाली आरी है जो कभी रुकने का नाम नहीं लेती।
8) "तकिया" का भरपूर इस्तेमाल ---- तकिया वो कला है जिसमे जिसमे यह बोलते बहुत मीठा मीठा हैं ,लेकिन दिल में ज़हर भरा हुआ होता है और नियत पूरी धोखा देने की होती है। भारत के परिपेक्ष में धर्म के नाम पर देश का विभाजन करवाया , आज यहाँ रह भी रहे हैं और कीड़े मकोड़ों की तरह गुणात्मक रूप से बढ़ भी रहे हैं और जैसा की कीड़े करते हैं, साथ में दूसरों की ज़िन्दगी नरक भी किये हुए है।
7 ) इन्हें मज़हब के नाम पर विशेषाधिकार चाहिए ---- इनका मज़हब आसमान से उतरा हुआ है इसलिए उसे निभाने के लिए इन्हे उन विशेषाधिकारों की ज़रुरत होती है जो अन्य धर्माविलम्बिओं को नहीं होती। जैसे शरीया के मुताबिक इन्हे कानून चाहिए, मुस्लिम पर्सनल लॉ चाहिए ,सड़क पर कहीं भी गमछा फैला कर नमाज़ अदा करने का हक़ चाहिए ,मंदिर में आरती के समय आवाज़ न हो लेकिन ये दिन में पांच बार लाउडस्पीकर लगा कर अजान देंगे।
6 ) ये सबके सामने बहुत शांतिप्रिय और मोहब्बत करने वाले लेकिन मौका पड़ने पर उतने ही ज़हर उगलने वाले होते हैं ---- सभी ने सुना होगा और व्यक्तिगत ज़िन्दगी में महसूस भी किया होगा, कि कितनी मीठी और सुलझी हुई बातें करते हैं यह लेकिन औकात में आने में इनको दो मिनट से ज्यादा समय नहीं लगता। भारत के परिपेक्ष में 67 सालों से स्वतंत्रता का उपयोग यह देश और समाज के खिलाफ ज़हर उगलने का काम करते है --- गिलानी ,जिलानी ,ओवैसी ,आज़म, बुखारी, शहाबुद्दीन, ………………
5 ) दुश्मन का दुश्मन इनका दोस्त ---- विश्व परिपेक्ष में इजराइल के खिलाफ पश्चिमी देशों से मदद मांगेंगे और वैसे पश्चिमी देश इनकी नज़र में इस्लाम के सबसे बड़े दुश्मन। भारत के परिपेक्ष में कल जिनको इन्होने दलित बनाया आज उन्ही के साथ " जय भीम जय मीम " का नारा बुलंद कर रहे हैं।
4 ) दुश्मन की कमज़ोरियों का भरपूर फायदा उठाते है ---- पूरे विश्व में प्रजातान्त्रिक संविधानों की धज्जियाँ उड़ाना इनका पहला काम है। कुरान ,शरिया हदीस के आगे सारे संविधान बेकार हैं ,बस इनके लिए तीन ही सच हैं इस दुनिया में,कि एक खुदा है, एक पैगम्बर था और एक क़ुरान है। इनकी बात न मानने वाले को जीने का कोई हक़ नहीं है, और 1400 सालों से यह चाहते तो वही ज़िन्दगी जीने के कायदे कानून हैं पर वर्तमान के विज्ञानं द्वारा प्रद्दत किसी भी सुविधा के उपयोग से इन्हे परहेज़ नहीं है।
3 ) अपने लिए सहानुभूति रखने वालों का एक विशेष वर्ग तैयार कर लेते हैं --- अपने दुश्मन के खिलाफ एकजुट हो कर कौओं की तरह ऐसे चिल्लायेंगे जैसे इनकी साथ बहुत अन्याय किया जा रहा है और जो इनके विचारों से सहमत नहीं उसके खिलाफ ऐसा माहोल खड़ा कर देंगे की उससे बड़ा इनका दमनकारी और कोई नहीं, इस तरह अपने लिए सहानुभूति की लहर पैदा करते हैं। क्या भारत के परिपेक्ष में मीडिया, विभिन्न राजनैतिक दलों और नेताओं की इनके साथ हमदर्दी किसी उदाहरण की मोहताज़ है ????
2 ) सबको ग़लतफहमी में डाल कर रखते हैं कि ये समस्या ख़त्म हो जाएगी ---- 1400 सालों से मोरक्को से ले कर मलेशिया तक तलवार के दम पर मुसलमान इसलिए बना दिया कि इस्लाम शांतिप्रिय मज़हब है, और सबके मुसलमान बनते ही समाज की सारी समस्याएं समाप्त हो जाएँगी , लेकिन इराक ,सीरिया ,पाकिस्तान अफगानिस्तान, यमन और धर्म के नाम पर भारत के विभाजन …………… कश्मीर कहीं हों लेकिन समस्यां बढती हुई ही नज़र आती है और ये लोग भी रोज़ बिना मारे और मरे एक दिन भी नहीं रह सकते।
1) नज़र दूर की कौड़ी पर रहती है ---- उपरोक्त मानसिकता के पीछे इनका उद्देश्य सिर्फ पूरे विश्व को दारुल इस्लाम बनाना है। चाहे वो लव जिहाद से हो या जिहाद से हो या खलीफा के राज से हो पर मुझे यकीन है कि जैसे इस्लाम हिन्दू धर्म के बिलकुल विपरीत कार्य करता है , तो हिन्दू धर्म की "जियो और जीने दो " की भावना के भी ये विपरीत ही हैं " न चैन से जिएंगे और न चैन से जीने देंगे"
क्रमशः ------
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