मंगलवार, 25 अगस्त 2015

#‎ईसाईयों_और_कसाइयों_की_सिर्फ_कार्यशैली_में_ही_फ़र्क़_है‬ ------------‪#‎सोच_एक_ही_है‬। ‪#‎भाग‬_3

पूरा पढ़ेंगे ???? यह मात्र सार और संक्षेप में है। मर्ज़ी हो तो लाइक करें या न करे , शेयर करे या न करे ,टिप्पणी करें या न करें। क्योंकि अगले 25 -30 सालों में यानि कि जितनी मेरी ज़िन्दगी बची है कोई बहुत फ़र्क़ नहीं नज़र आने वाला, जैसे 100 साल पहले मेरे पूर्वजों को नज़र नहीं आया था। उसके बाद राम नाम ही सत्य है, सुनते हुए अपन तो चार आदमियों के कन्धों चढ़ कर निकल लेंगे, और लड़े वो जिसकी लड़ाई हो। 

पारसी अपने जन्म देश ईरान में कितने समय में ख़त्म हुए पता नहीं। बौद्धों को अफगानिस्तान से खत्म होने में कुछ शताब्दियाँ लगीं। हिन्दुओं को पाकिस्तान से ख़त्म होने में 70 साल लगे। बांग्लादेश में हिन्दुओं को 8% होने में 45 साल लगे। केरल में हिन्दू 50% से कम रह गए हैं।  भारत के नार्थ ईस्ट में 20% हिन्दू भी नहीं बचे है। कश्मीर में हिन्दुओं की संख्या नगण्य होने में 43 साल लगे। --------सही सोचते है हिन्दू "यूनान मिस्र रोमां सब मिट गए जहाँ से, क्या बात है कि मिटटी हुई नहीं हमारी। "  

मुझे लगा था कि विषय अत्यंत गंभीर है , और ईसाई मिशनरी जिस सूक्ष्म विवरण के साथ रणनीति बना रहे हैं और उस पर अम्ल कर रहे है, उसके विषय में अधिक से अधिक हिन्दुओं को जानकारी होनी चाहिए। इसीलिए उनकी रणनीति के एक एक हिस्से को मैं हिन्दुओं के सामने लाना चाहता था।  
किन्तु इस श्रृंखला के पहले और दूसरे भाग कि अपने मापदंडों पर परिणीति को देख कर मुझे लग रहा है कि शायद मैं इस विषय को बेवजह तूल दे रहा हूँ। हिन्दू समाज के लिए यह कोई गंभीर विषय प्रतीत नहीं होता। इसलिए जितना लिख लिया है उतना आपके सामने रख रहा हूँ, क्योंकि मेरा मानना है की सोते हुए व्यक्ति को जगाया जा सकता है लेकिन सेकुलरिज्म की आड़ में जो हिन्दू समाज सोने का नाटक कर रहा उसे कोई भी नहीं जगा सकता। 

बहुत संक्षेप में ----- इनकी कार्यप्रणाली मिशनरी स्कूलों , अस्पतालों और अनाथालयों से चलायी जाती है। इनके टारगेट समूहों में दलित और पिछड़े वर्ग के लोग, आदिवासी, विभिन्न समूहों के नेता ,एड्स तथा छूत की बीमारी वाले, समाज से उपेक्षित वेश्याएं और सज़ायाफ्ता मुज़रिम और एक राज्य से दूसरे राज्य में गए हुए विद्यार्थी आते है। नए ईसाईयों की यह जिम्मेदारी होती है कि वे अपने क्षेत्र में चर्च बनायें और जब उनके समूह से 20 लोग जुड़ जाते हैं तो उस चर्च की फंडिंग ये लोग शुरू कर देते हैं। यह इसलिए क्योंकि जब क्षेत्रीय लोग अपनी ज़मीन पर कोई निर्माण करते हैं उसका प्रतिरोध न के बराबर होता है और उसके बाद कोई नहीं पूछता कि इस इमारत को बनाने के लिए और इन गतिविधियों को चलने के लिए पैसा कहाँ से आ रहा है।  

इन सबसे ऊपर जो सबसे अहम बात है , वो यह कि हिन्दू समाज के विभिन्न वर्गों में जाति पाती के नाम पर तनाव कैसे उत्पन्न किया जाये। इसके लिए दिलीप सी मंडल, सुनील सरदार, कांचा इल्लैया जैसे लोगों की फ़ौज प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हिन्दू धर्म को हीन साबित करके, हिन्दुओं को भ्रमित करके, समाज के विभिन्न वर्गों में फूट डलवा कर, वैमनस्यता फैला कर  ईसाईयत की जड़ों को अपने खून पसीनेऔर विदेशी पैसे से सींच रहे हैं। वर्णव्यवस्था को जितना कुरूप प्रचार इन ईसाई मिशनरियों ने जबरदस्ती का ढोल पीट पीट कर किया है यह उतनी कुरूप कभी थी नहीं । ----- (Rudolph and Rudolph, The Modernity of Tradition, p 114.  Quoted in Claude Alvares, Decolonising History, p 190.) 

------More importantly, Shri M N Srinivas, who coined the word Sanskritisation', was talking within the context of Hinduism, and has clearly shown that the caste system was not as rigid as it is made out to be.  He said, "The tendency of the lower castes to imitate the higher has been a powerful factor in the spread of Sanskritic ritual and customs, and in the achievements of a certain amount of cultural uniformity not only throughout the caste scale, but over the entire length and breadth of India." 

 लेकिन आज मेरे मित्रों की पोस्ट पर एक एक सवर्ण से पिछले 3000 सालों का हिसाब माँगा जाता है।  सिर्फ यही नहीं , इन लोगों से जुड़े हुए किसी भी व्यक्ति की फेसबुक प्रोफाइल उठा कर देख लीजिये, अपने आप को 85% कहने वालों के दिलों में मात्र और मात्र सवर्णो  प्रति ज़हर से भरे हुए समुद्र मिल जायेंगे।परन्तु वे बिलकुल अनभिज्ञ हैं उन ईसाई और कसाई डॉकटरों से, जो बहुत महीन तरीके से उनकी नसों में जहर के इन्जेक्शन भी लगा रहे हैं और उनकी सहानुभूति भी बटोर रहे हैं। ------------

----------------------------------यदि आप के पास समय हो तो नीचे के पैरा जो पहले लिख चुका  था पढ़ लीजियेगा , अंत में इस सच्चाई से रूबरू करवाने वाले कुछ लिंक भी दिए हैं उनसे स्थिति की भयावहता का अंदाज़ लगा लीजियेगा।  मैं, अपने परिवार और मित्रों को इन तथ्यों से वाकिफ करवा कर इस सोते हुए समाज के प्रति अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रहा हूँ। यदि आप उचित समझे तो अपने मित्रों को भी इस हक़ीक़त से वाकिफ करवा दें, वैसे कोई ज़रूरी भी नहीं है क्योंकि सब लोग इसी खामख्याली जी रहे है  --"यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहाँ से , क्या बात है कि मिटटी हुई नहीं हमारी। "

#भाग_2_का _शेष_भाग ------ जब एक व्यक्ति अपना धर्मांतरण करता है, तो उसका परिवार टूटता है, समाज में तनाव व्याप्त होता है। क्योंकि धर्मांतरण की प्रक्रिया के दौरान ही उससे ऐसी बातें कहलायी जातीं है और ऐसे कृत्य करवाये जाते हैं जिससे उसके मूल सम्प्रदाय की भावनाएं आहात होती हैं। उससे उन देवताओं को अपशब्द कहलवाये जाते हैं, जिन्हे वो और उसका मूल समाज अभी तक पूजता रहा है। उससे वो कृत्य करवाये जाते है जो उसके मूल समाज में प्रतिबंधित है जैसे कि मांसाहार। धर्मपरिवर्तित व्यक्ति के ये कृत्य उसे मूल समाज से बहिष्कृत करवा देते हैं और उसे अपने नए समाज में रहने के लिए ,नयी निष्ठाओं के प्रति अपना पूर्ण दायित्व निभाने के लिए , इन नए "मर्यादित" कृत्यों को और जोर शोर से करना पड़ता है। इसीलिए यही देखते हुए स्वामी विवेकानन्द ने 125 वर्ष पहले ही यह कह दिया था कि --- "हिन्दू धर्म से बाहर जाता हुआ एक व्यक्ति इस धर्म में एक हिन्दू कम नहीं करता बल्कि एक दुश्मन बढ़ा देता है।"
वैसे इसी "प्रब्बुद्द भारत" को दिए गए साक्षात्कार के दौरान स्वामी विवेकानन्द जी ने यह भी कहा था , कि समाज में कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे इनकी "घर वापसी" सुनिश्चित करवाई जा सके। 
चर्च का मुख्य और एक मात्र "धन्धा " धर्मांतरण है, क्योंकि उन्हें ऐसा आदेश जीसस ने दिया है -----

-----तब ईसा ने उनके पास आ कर कहा, "मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है। इसलिए तुम लोग सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता,पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो। मैंने तुम्हे जो -जो आदेश दिए हैं, तुम लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ और और याद रखो -मैं संसार के अंत तक तुम्हारे साथ हूँ। ------( बाइबिल , Mathews 28 ,कथन 18-20 )

और आज की तारीख में जो लोग देवी देवताओं को गालियाँ देते हैं, ऐसा नहीं है कि गालियां देने वाली नस्ल एक दिन में पैदा हो गयी।  यह नतीजा है ईसाईयों की 500 सालों की अथक मेहनत का और बेशुमार दौलत जो इन्होने इस स्थिति को पैदा करने के लिए खर्च की है। 
इस्लाम की तरह ईसाई भी एक ही मत के हैं , की अंत समय में सिर्फ वही लोग बचेंगे जिन्हे प्रभु ईसा पर विश्वास है। इसलिए प्रभु की इच्छा के अनुसार ज्यादा से ज्यादा लोगों / आत्माओं को "harvest " करके प्रभु के चरणों में समर्पित करना ही  ईसाई धर्म को मानना है और यही एक ड्यूटी है। एक उत्पाद बनाने वाली कंपनी की तरह चर्च हमेशा अपने मार्किट शेयर के प्रति बहुत चिंतित रहता है। यूरोपियन देशों से पादरियों , नन्स और अतिरिक्त सहायक स्टाफ में भर्तियां चूँकि कम हो गयीं हैं इसलिए चर्च का पूरा ध्यान भारत की तरफ आकर्षित हो गया है। 
मिशनरी प्रकाशनों से यह पूरी तरह साफ़ हो जाता है कि उनके टारगेट /लक्ष्य निर्धारित हैं, विस्तृत योजनाएं है ,मार्केटिंग स्ट्रेटेजीज हैं कि कैसे हर गाँव में एक चर्च स्थापित करना है, हर एक हाथ के जोड़े में कैसे बाइबल पहुंचनी है ,उन लोगों के समूह का चरित्र क्या है जैसे --- महिलाएं , अनुसूचित जातियां, और सबसे ज्यादा आदिवासी लोगों की धारणाएं क्या है, और हर समूह में ऐसे कौन से तत्व हैं जो रुकावटें पैदा कर सकते हैं, उन्हें अपने अनुकूल कैसे बना कर समूह में कैसे घुसना है। 
"OPERATION WORLD" (OM प्रकाशन समूह की एक पत्रिका , इस OM प्रकाशन के विषय में पिछली पोस्ट में जानकारी दी गयी है ) के अनुसार यदि "राष्ट्रवाद" की भावना को भावना ख़त्म कर दी जाये तो हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम भी काम किया जा सकता है। एक नियम के तहत ईसाई धर्म प्रवर्तक राष्ट्रवाद की भावना के हमेशा खिलाफ बोलते है। लेकिन यह सिद्धांत "मैती" लोगों पर लागु नहीं होता है क्योंकि अधिकतर "मैती" हिन्दू हैं ( मैती , खासी और नागा की तरह उत्तर पूर्व  की आदिवासी जनजाति है)। तो यहाँ पर राष्ट्रवाद की जगह कश्तवाड़ का जहर बोया जाये। मेघालय में वैसे ही 57%  तथा मिजोरम में 85% ईसाई हैं। चकमा बौद्धों के बीच ईसाई प्रवर्तकों की पैठ हो चुकी है, बांग्लादेश से आये हुए शरणार्थी और हिन्दू ज़रूरतमंद हैं, इन्हे तथा जिनके बीच अभी तक पहुँच नहीं हुई है उन्हें अगला लक्षय बनाया जाये। यहाँ के ईसाईयों ने एक प्रतिज्ञापत्र तैयार किया कि नागालैंड से 10000 मिशनरी प्रभु की सेवा में भेजे जायेंगे। 
"OPERATION WORLD" ने अफ़सोस जताया कि हरियाणा में जहाँ पर 80 लाख जाट और 15 लाख चमार , तथा सिख हैं वहां पर हमारी कोशिशे नाकाम हो रही है। पिछली शताब्दी में सबसे अधिक धर्मपरिवर्तन चमार और चूड़ा जाति के लोगों ने किया है , जबकि भारतीय कानून के अनुसार इन नामों से उदबोधन एक गैरजंनती जुर्म है। हद तो तब हो गयी जब इसी पत्रिका ने अपने 1993 के एक अंक में भारत के नक़्शे में जम्मू -कश्मीर तथा अरुणाचलप्रदेश को भारत का हिस्सा ही नहीं दर्शाया। 
OM ---- OPERATION WORLD पत्रिका निकालने वाली कंपनी का नाम भी बहुत सोच समझ कर रखा गया। इस पत्रिका ने सुझाव दिया कि पादरी की वेशभूषा , चर्चों की रूपरेखा एवं ईसाई रीत रिवाज़ बिलकुल देशी /स्वदेशी लगने चाहिए जिससे कि किसी भी प्रकार का विदेशी या परायेपन का आभास न हो पाये। यह सुझाव "कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ़ इंडिया" ने कार्डिनल प्रेजिडेंट को भेजा,जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस सुझाव के तहत ----
1) जैसे देसी लोग पूजा में खड़े होते या बैठते हैं उसी तरह जूते उत्तर कर ईसाई प्रार्थना में बिठा या खड़े हुआ जाये। 
2)घुटने टेकने की प्रथा को झुक कर "अंजलि हस्त " से बदल दिया जाये। अंजलि हस्त -- दूसरे के दोनों हाथों को अपनी हथेलिओं के बीच में लेने की क्रिया को कहा जाता है। 
3) पश्चाताप की संस्कार क्रिया से पहले और बाद में पादरी तथा भक्त दोने "पंचांग प्रणाम" करेंगे। 
4) चूमने की प्रथा की जगह , वास्तु या अंग को उंगली या हथेली से स्थानीय मान्यताओं के अनुसार छुआ जाये। जैसे की माथा या हाथ चूमने की जगह उसका हथेली से स्पर्श।  
5) धूपबत्ती या अगरबत्ती की जगह हैंडल वाला धूपबत्तीदान इस्तेमाल किया जा सकता है। 
6) रोमन पहनावे को देसी अंगवस्त्र से बदला जा सकता है। 
7) मोमबत्ती की जगह घी या तेल के दिए का इस्तेमाल किया जा सकता है। 
8) समूह प्रार्थना में विशिष्ठ व्यक्ति का स्वागत भातीय परम्परा के अनुसार आरती की थाली , दिया जला कर या हाथ धुलवा कर किया जा सकता है। 
9) पूजा की क्रिया में फूलों से आरती , अगरबत्ती या दिए से आरती शामिल की जा सकती है। 
10 ) हिन्दू पूजा के प्रतीक चिन्हों जैसे कमल, चरण, और देवीदेवताओं के चित्रों में जीसस का दिखाना सम्मिलित किया जा सकता है। 





शनिवार, 22 अगस्त 2015

#ईसाईयों_और_कसाइयों_की_सिर्फ_कार्यशैली_में_ही_फ़र्क़_है ------------#सोच_एक_ही_है। #भाग 2

इस पोस्ट के भाग 1 में आपने पढ़ा कैसे इसे मिशनरी समाज सेवा की आड़ में धर्मपरिवर्तन करते है। अमरीका के बाहर इस समय ढाई लाख ईसाई मिशनरी काम कर रहे है , जिनका 1990 का बजट ही डेढ़ बिलियन डॉलर था। अब अपनी गतिविधियाँ चलने के लिए चर्च इतना पैसा लाये तो कहाँ से ??? आपने दारा सिंह द्वारा स्टेन की हत्या के बारे में तो पढ़ा, परन्तु आपने जो नहीं पढ़ा वे थे भारत के और विश्व भर के अखबार और इंटरनेट साइट्स और मिशनरी पत्रिकाएं। किसी ने अपनी कलम और छपाई मशीन की स्याही नहीं बचाई भारत के मुंह पर कालिख पोतने में कि --- पिछले 50 वर्षों में भारत में ईसाईयों के ऊपर किस तरह से अमानवीय ज़ुल्म किये जा रहे हैं।
‪#‎Religion_Today‬ , के 30 नवम्बर 1998 के अंक ने छापा ----- कट्टर साम्प्रदायिक समूह चर्चों और ईसाईयों पर हमला कर रहे है, ईसाईयों की प्रार्थना सभाओं को तितर बितर किया जा रहा है , धर्मप्रवर्तकों को बुरी तरह से मारा जा रहा है। चर्चों में आग लगई जा रही है, और एक परम्परागत स्कूल पर इस लिए हमला किया गया क्योंकि वहां पर संस्कृत नहीं पढाई जा रही थी। सरकार जानबूझ कर कोई कार्यवाही नहीं कर रही है। कार्यकर्त्ता अपने बचाव के लिए प्रभु से प्राथना कर रहे हैं। ईसाईयों को खोज खोज कर मारा जा रहा है , उन्हें रेजर के ब्लेड से काटा जा रहा है , चलती ट्रैन से धक्का दिया जा रहा है जिसमे 6 से 12 लोग प्रतिवर्ष शहीद हो रहे हैं।
इसी पत्रिका के अन्य पन्ने पर एक दूसरी कहानी लिखी हुई है। उत्तर भारत में जहाँ इतनी कठिनाइयां हैं वहाँ प्रवर्तकों के प्रयासों से सैकड़ों आदिवासी धर्मांतरण करके ईसाई बन गए।
उपरोक्त दोनों कहानियों को जोड़ कर कुछ निष्कर्ष निकाला आपने ????सीधा सीधा निष्कर्ष है -----
दान दीजिये। दान/ चंदा दीजिये क्योंकि भारत के लोग शैतान के हाथों में फंसे हुए हैं। दान दीजिये क्योंकि भारत के 100 करोड़ लोग, प्रभु को भक्त अर्पित करने के लिए एक स्वर्णिम अवसर प्रदान कर रहे है। दान दीजिये क्योंकि भारत में ईसाईयों को रेजर ब्लेड से काटा जा रहा है। तमाम झूठी मार्मिक कहानियां गढ़ी जातीं हैं, जिनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है दुनिया भर में यह दिखने के लिए कि भारत में ईसाईयत जैसे सभ्य मज़हब की सख्त ज़रुरत है और इसके लिए पैसा चाहिए। जितना कहानी में दर्द होता है उसी अनुपात में चन्दा गिरेगा।
तमाम मिशनरी पत्रिकाएं और इंटरनेट साइट्स इस तरह की कहानियों से भरी पड़ी हैं, और इन कहानियों के मूल स्त्रोत होते हैं भारतीय अखबार जो चर्च के एक शीशा टूटने पर पूरा चर्च टूटने की खबर छाप देते हैं। लेकिन भारतीय अखबार नहीं छापते ‪#‎AD_2000‬ जैसी इंटरनेट साइट पर छपे हुए वक्तव्यों को जिसमे "#‎Church_Growth_Research_Centre_in‬ ‪#‎Madras‬, के वसंतराज कहते हैं " मेरा विश्वास है कि भारत आज ग्लोबल चर्च के नक़्शे पर है " या पीटर वागनर जो की‪#‎United_Prayer_Mobilization_Network‬ के कोऑर्डिनेटर है और इसी साइट पर कहते हैं ---- दुनिया के सारे देशों में धर्मप्रचार निवेश के हिसाब से भारत में धर्मप्रचार तथा धर्मांतरण के लिए सबसे अधिक क्षमता, सम्भावना,और सामर्थ्य है। यही वो जगह है जहाँ धर्मांतरण के लिए समय, ऊर्जा और उपलब्ध साधनों का निवेश करना चाहिए।
संस्थाओं के ऊपर संस्थाएं, लक्ष्य के ऊपर लक्ष्य , 200 लोगों के लिए समूह,50 भाषाओँ की कार्यप्रणाली ,50 शहरी और 200 भौगोलिक जिलों का चिन्हीकरण,पांच लाख गांवों और 300 शहरों में चर्च स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इन सब लक्ष्यों को प्राप्त करने तमाम संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने ‪#‎INDIA_MISSION_ASSOCIATION‬ के साथ तारतम्य में काम करने की हामी भरी है और यह इंडिया मिशन एसोसिएशन , भारत के हर पिन कोड क्षेत्र में धर्मप्रचारकों नेटवर्किंग का काम करती है।
इसी साइट के अनुसार वर्ष 2000 में कोलकाता के 93 पिन कोड क्षेत्रों में से 63 क्षेत्रों में चर्च स्थापित कर दिए गए हैं और बाकि के बचे हुए 30 में भी बहुत जल्द चर्च स्थापित कर दिए जायेंगे। कोलकात्ता तो हिन्दू धर्म की एक शाखा मात्र है। AD 2000 में तय किया गया हिन्दू धर्म की जड़ें तब वाराणसी में हैं , और चोट तो यहीं होनी चाहिए। धर्म प्रवर्तक तैयार किये गए और एक साल बाद वाराणसी के आस पास के 60 गांवों में चर्च स्थापित कर दिए गए और 300 लोगों का धर्म परिवर्तन कर दिया गया।
(वर्तमान परिपेक्ष से हट कर एक पंक्ति --- इस्लाम के प्रचार और प्रसार के लिए अकेले सऊदी अरब की सरकार ही ‪#‎डेढ़_लाख_बैरल‬ तेल की कीमत जितना पैसा प्रतिमाह विश्व में#‎तब्लीग़ी‬ ( धर्मांतरण ) गतिविधियों के लिए देता है।)
क्रमशः ------

#ईसाईयों और #कसाइयों की सिर्फ #कार्यशैली में ही #फ़र्क़ है ------------सोच एक ही है। #भाग 1

#ईसाईयों  और #कसाइयों की सिर्फ #कार्यशैली में ही #फ़र्क़ है ------------सोच एक ही है। #भाग 1 

देखने में सुन्दर और सौम्य बत्तखों के विषय में कितने लोगों को मालूम है कि यदि वे झुण्ड में हों तो वे एक कुत्ते से ज्यादा खतरनाक और अच्छी चौकीदार होती हैं। और कितना मनोरम दृश्य होता है जब कुछ सफ़ेद बत्तखें पानी के ऊपर बहुत शांत भाव से तैरती हुई चली जाती हैं, देखने वाला कोई भी शख्स पानी के नीचे नहीं देख पाता कि बतख के पैर कितनी तेज हलचल कर रहे होते हैं। कोई नहीं जान पाता कि उन मनोहारी बत्तखों ने कितनी मछलियों का जीवन अशांत कर दिया। 
मेरी बात नहीं समझ आई होगी। समझने के लिए, नीचे दिए गए लिंक पर एक बार क्लिक कीजिये। 



http://cimindia.in/images/2015courses/OCCoordinator.jpg

समझ आया कुछ ??? नहीं आया ??? चलिए ऊपर के लिंक और भूमिका को बाइबिल निम्न कथन से जोड़ कर देखिये -------

"लोगों को देख कर ईसा को उन पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ो की तरह थके मांदे पड़े हुए थे। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा , "फसल तो बहुत है , परन्तु मज़दूर थोड़े हैं। इसलिए फसल के स्वामी से कहो कि वह अपनी फसल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे। ---( बाइबिल , Mathews 9 ,कथन 36-38 )

तब ईसा ने उनके पास आ कर कहा, "मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है। इसलिए तुम लोग सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता,पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो। मैंने तुम्हे जो -जो आदेश दिए हैं, तुम लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ और और याद रखो -मैं संसार के अंत तक तुम्हारे साथ हूँ। ------( बाइबिल , Mathews  28 ,कथन 18-20 )

"अतः इनकार करने वालो (काफिरों) की बात न मानना और इस (कुरआन) के द्वारा उनसे जिहाद करो, बड़ा जिहाद। (कुरआन --सूरा 25;52) 
 कुरआन की आयत मैंने यहाँ पर दो मज़हबों की सोच के बीच समानता दिखने भर के लिए लिखी है , चूँकि "शांति प्रिय" इस्लाम के विषय मैं अब अधिकतर लोगों को मालूम पड़ चुका है इसलिए आज चर्चा सिर्फ और सिर्फ शांत और सौम्य दिखने वाली लेकिन अत्यंत खतरनाक सफ़ेद बत्तखों पर करेंगे , जिनकी कार्यप्रणाली इतनी गोपनीय और शातिर है की आम भारतीय हिन्दू को पता ही नहीं कि उनकी पाँव के नीचे से ज़मीन खींची चली जा रही है और वो व्यस्त है दुनिया को अपना धर्मनिरपेक्ष मुखौटा दिखाने की होड़ में अपने उन हिन्दू भाईयों को साम्प्रदायिक ठहराने में, जो इन हक़ीक़तों से वाकिफ हो कर इन तथाकथित शांतिप्रिय मज़हबों की गतिविधियों के खिलाफ आवाज़ उठाने की चेष्टा करते है। 

ईसाई मिशनरी समाज सेवा की आड़ में कितने व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध तरीके से काम कर रहे है, उस एक एक कदम की विवेचना आगे करेंगे , लेकिन कैसे कर रहे है, उसके लिए यह तथ्य जानना नितांत आवश्यक है कि,भारत में प्रतिवर्ष 10000 करोड़ रुपये इन मिशनरीज को विदेश एवं "मिनिस्ट्री ऑफ़ चर्चेस"-- अमरीका से अपनी गतिविधियों के सञ्चालन के लिए दिया जाता है। वर्ष 1990 में ही "मिनिस्ट्री ऑफ़ चर्चेस"-- अमरीका ने विश्व में मिशनरी गतिविधियों के लिए 1.45 बिलियन डॉलर्स का बजट रखा था। अब कितना है यह आंकड़ा मैं ढूंढ नहीं पाया।  

सबको कलकत्ता का नन बलात्कार का किस्सा, दिल्ली, बंगलुरु और आगरा के हालिया चर्चों को तोड़ने के किस्से याद होंगे। सभी समाचार पत्रों और टीवी चैनलों ने बहुत प्रमुखता के साथ हिन्दू संगठनो को ज़िम्मेदार ठहरा दिया था। लेकिन बाद की विवेचना में क्या निकला ????? बहुत कम ने आपको बताया कि इन मामलों में या तो शांति दूत लिप्त थे या स्थानीय रंजिश या विश्व में हिन्दू समुदाय को मलिन करने की वजह से इनके मज़हब के खुद के लोगों ने ये तोड़ फोड़ की थी। 
और पीछे चलते हैं, चाहें मध्यप्रदेश के झाबुआ का केस हो, हरियाणा का झज्झर का केस हो, चाहे इलाहबाद के Dr.Jhon Sylvestor का केस हो ,चाहे ओडिशा के बारीपाडा में नन के बलात्कार का केस हो , चाहे ओडिशा के ही जंगलों में एक लड़के और लड़की की हत्या का केस हो , अनगिनत केस यहाँ पर बताये जा सकते हैं जहाँ मीडिया ने विशेषकर अंग्रेजी मीडिया ने इन सब घटनाओ को साम्प्रदायिक रंग दे कर इन सब घटनाओं के लिए हिन्दुओं को ज़िम्मेदार ठहराया था। अल्पसंख्यक आयोग ने भी बिना निष्पक्ष जांच के हिन्दू संगठनों को इस सब घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार ठहरा दिया था।  
परन्तु इन सब घटनाओं की जांच के लिए गठित आयोगों की रिपोर्ट को किसी ने नहीं दिखाया , जिनमे हर जगह ईसाई समुदाय के लोग ही इन कृत्यों में शामिल पाये गए। 
इन सब घटनाओं में एक घटना जिसने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं वो थी , 22/01/1998  को ओडिशा में मनोहरपुर के ग्राहम स्टेन और उसके बच्चों के "दारा सिंह" द्वारा कत्ल की। यही जानते हैं न सब, कि दारा सिंह जो कि बजरंग दाल का सदस्य था , ने कुष्ठ रोग निवारण के लिए कार्य करने वाले "ग्राहम स्टेन" को सिर्फ इस लिए मार दिया क्योंकि वो एक ईसाई था।  और भारत के सब हिन्दू अंत समय तक यही मानेंगे भी , क्योंकि न तो ईसाई मिशनरी और मीडिया हिन्दुओं के खिलाफ दुष्प्रचार बंद करेगा और न ही कोई भी इस केस की जांच करने वाले "Wadhwa Commission" की जुलाई 1999 में प्रस्तुत रिपोर्ट को दिखायेगा , और न ही कोई भी हिन्दू यह जानने की कोशिश करता है कि आखिर दारा सिंह ने "स्टेन" को क्यों मारा। 
अधिकाँश मीडिया ने और अल्संख्यक आयोग ने स्तही जानकारी के आधार पर सबको यह बता दिया , कि गत 10 वर्षों में स्टेन किसी तरह से ईसाई धर्म के प्रचार और प्रसार में लिप्त नहीं था और वह शुद्ध रूप से समाजोत्थान का कार्य कर रहा था। इसके बिलकुल विपरीत जस्टिस वाधवा कमीशन की रिपोर्ट जो कि ईसाइयों, सेकुलरों और मीडिया को इसलिए हजम नहीं हुई, क्योंकि उस रिपोर्ट ने स्टेन की गतिविधियों का पूरा का पूरा काला चिटठा खोल कर रख दिया। जस्टिस वाधवा कमीशन की ,दारा सिंह और स्टेन की पूरी रिपोर्ट लिखने से यह पोस्ट बहुत बहुत लम्बी हो जाएगी , इस लिए बहुत संक्षेप में उसका सार लिख रहा हूँ और जो इस विषय में अधिक जानकारी चाहते हैं उनके लिए लिंक और पुस्तकों के नाम साथ में दे रहा हूँ।  
वाधवा कमीशन को स्टेन के साथियों ने बताया कि ,स्टेन धर्म प्रचार के लिए "जंगल कैम्प्स " और "बाइबिल क्लासेज " लगाया करता था। यहाँ तक तो ठीक है , लेकिन स्टेन के ताबूत में कीलें उसके द्वारा ऑस्ट्रेलिए की एक मिशनरी मैगज़ीन " TIDINGS " के लिए लिखे लेखों ने लगाई जिनमे से दो तीन का ज़िक्र यहाँ कर रहा हूँ ----
( Gladys Staines, is the wife of Graham, working in tendom with him)
1) Graham and Gladys staines, Mayurbhanj , 25 April,1997 : The first jungle camp in Ramchandrapur was fruitful time and the Spirit of God worked among people. About 100 attaended and some were baptized at the camp.At present Misayel and some of the church leaders are touring a number of places where people are asking for baptism.Five were baptizedat Bigonbadi. Pray to the Etani Trust in which mission properties are vested.

2) Graham and Gladys satines , Mayurbhanj,23 July 1997: Praise God for answered prayers in the recent Jagannath car festival at baripada. A good team of preachers came from village churches and four OM workers helped in the second part of the festival.there were record book sales, so a lot of literature has gone into the people's hands.....( Incidentally, OM is a carefully chosen acronym: the organisaton it signifies is actually one of the largest publishers and distributors of missionary literature, and has its offices in Carlisle, Cumbria, United Kingdom)

अपनी हत्या से पहले 1998 तक ग्राहम और उसकी पत्नी धर्म परिवर्तन की गतिविधियों में लिप्त रहे और इसी तरह की रिपोर्ट Tidings को भेजते रहे , जिनमे से दो के उदाहरण मैंने आपके सामने रखे हैं। 

ग्राहम हत्याकांड की जो FIR मनोहरपुर चर्च के पादरी ने लिखवाई, उसमे उसने कहा कि हमलावर "जय बजरंग दल" के नारे लगा रहे थे।  जबकि अनेकों अनेक ईसाई चश्मदीद गवाहों ने कहा कि हमलावर "जय बजरंग बली " के नारे लगा रहे थे। उसने कहा कि चर्च को आग लगा दी गयी थी , जबकि वस्तुस्थिति यह थी की चर्च को बिलकुल नुक्सान नहीं हुआ था। वाधवा कमीशन और चश्मदीद गवाहों के सामने ही पादरी ने FIR में लिखवाई हुई घटनाओं को अस्वीकार ( अपनाने से मना ) कर दिया। और इस तरह वाधवा कमीशन ने टिप्पणी की " प्रथम दृष्टया रिपोर्ट से खुद इसे लिखवाने वाले ने अपनाने से इंकार कर दिया है तथा में मिलावट की गयी है। 
हिन्दू मानसिकता के दिवालियेपन की पराकाष्ठा देखिये कि बी. बी  पांडा , DG पुलिस Odissa के वाधवा कमीशन के सामने बयान के अनुसार दक्षिण भारत से प्रकाशित The Indian Express , ने 25 जनवरी 1999 को एक खबर प्रकाशित की --- 50  से ज्यादा बजरंग दल  और विश्व हिन्दू परिषद के से सम्बद्ध लोगों ने हमला किया था।  रिपोर्ट के आधार पर हमने 47 को गिरफ्तार कर लिया है। जबकि राज्य सरकार ने दिल्ली कांग्रेस में बैठे हुए अपने आकाओं को दिखाने के लिए 51 उन बेगुनाह व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया जिनका इस घटना से दूर दराज़ तक कोई सम्बन्ध नहीं था।  यह बात अलग है कि क्राइम ब्रांच की जांच की जांच के बाद महीनों के बेवजह जेल भुगतने के बाद उन्हें छोड़ा गया। 

जस्टिस वाधवा ने अपनी रिपोर्ट में माना है कि "दारा सिंह" इस घटना का मुख्य अभियुक्त है , लेकिन ............. 
लेकिन दारा सिंह ने ऐसा क्यों किया , यह जानने के लिए दारा सिंह की मानसिकता और चरित्र को समझना बहुत  ज़रूरी है। वाधवा कमीशन के समक्ष दसियों गवाहों ने बयान दिया कि उत्तर प्रदेश के इटावा जिले का रहने वाला दारा सिंह , बहुत शिद्दत से कसाइयों के हाथों से काटने के लिए ले जा रही गायों को छुड़वाने के लिए जाना जाता था। यह काम वो उस राज्य में करता था जहाँ "पशुओं के विरुद्ध क्रूरता " के लिए क़ानून बना हुआ है। अपने इस कृत्य के कारण उसकी छवि मुस्लिम विरोधी थी और जानवरों की तस्करी करने वालों ने उसके खिलाफ दसियों केस ठोंक रखे थे। 
गवाह नंबर 29 के अनुसार , जिसे दारा सिंह ने मोहनपुर अपने साथ चलने के लिए कहा था , दारा सिंह गांव में बहुत लोकप्रिय व्यक्ति था , क्योंकि वो कसाइयों से जबरदस्ती गायें छुड़वा कर गाँव वालों में बाँट देता था ……………
और अल्पसंख्यक आयोग और विभिन्न मीडिया की रिपोर्टिंग  कि " ईसाई मिशनरीज की गतिविधियों की वजह से क्षेत्र में कोई तनाव नहीं था को झुठलाते हुए गवाही आई, मुख्य गवाह "दीपू दास " की जो कि दारा सिंह का बहुत करीबी था कि ----गयालमुंडा और भालूघेरा के युवकों ने उससे (दारा सिंह से) अगस्त 1998 में बहुत रोष के साथ संपर्क किया कि " ईसाईयों को रोको जो हिन्दुओं का ईसाईयत में धर्मांतरण कर रहे हैं। 
और दारा सिंह, ओडिसा के भोले भाले आदिवासियों को गायों की तरह कसाइयों के हाथों से बचाना चाहता था।  

मेरा अपना मानना है कि मीडिया के ज़ोरदार दुष्प्रचार और सरकारी तंत्र के भय के चलते शायद किसी हिन्दू संगठन ने दारा सिंह को नहीं अपनाया , और हिंदुत्व के लिए लड़ने वाला आज जेल से  लड़ाई अकेला लड़ रहा है। 

For more details and immaculate piece of research, Read ---- "Harvesting Our Souls" and "The Missionaries In India" , By ARUN SHOURIE

http://www.vijayvaani.com/ArticleDisplay.aspx?aid=1600

और ठन्डे दिमाग से सोचिये, क्यों और कैसे भारत एक ईसाई की मूंछ का बाल गिरने से मीडिया धरती हिलाने लगता है। पूरे विश्व से प्रतिक्रिया आने लगती है। कैसे ????? क्यों ?????
क्रमशः -----
( यह लेख मात्र भूमिका है,मित्रों से निवेदन है कि विषय की गंभीरता को समझने के लिए समय निकाल कर इस श्रृंखला के अगले भाग अवश्य पढ़ें ------ और हिंदुत्व के नाम पर उन सेकुलरों को अवश्य टैग करके के पढ़वाएं, जिन्हे यह आभास कत्तई नहीं हो रहा कि उनके पैरों के नीचे से ज़मीन धीरे धीरे खिसक रही है और वे हिन्दुओं को साम्प्रदायिक घोषित करने में व्यस्त हैं। ) 

शनिवार, 8 अगस्त 2015

कौन बिका ???? कांग्रेस या भारत !!!!!!!

बने हैं अहले-हवस, मुद्दई भी मुंसिफ भी 
किसे वकील करें , किस से मुन्सिफ़ी चाहें ............ 

बदनाम तो खाली जयचंद और विभीषण हैं, वो कौन सा वक़्त रहा है, जब इस देश ने प्रचुर मात्रा में चरित्रहीन स्वार्थी देशद्रोही पैदा नहीं किये ??? 
आज नैतिकता के आधार पर संसद न चलने देने वाली कांग्रेस और वामपंथियों की नैतिकता के विषय में भारत की नासमझ और भावुक जनता को उतना ही मालूम है जितना कि लोगों को यह मालूम है की बत्तख पानी में रहती है और उसके पंख गीले नहीं होते। 
कांग्रेस की नैतिकता पर आधारित यह लेख लिखने से पहले चंद वाक्यों में वामपंथियों का चरित्र समझ लीजिये। 1917 में पैदा हुई यह वामपंथी विचारधारा 1921 तक भारत में छा चुकी थी और 1929 में इन्होने कारखानो में हड़ताल भी करवा दी थी। 

देशहित में यह कौम कितनी खतरनाक है , इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि जब पूरा देश 1942 के  "अंग्रेजों भारत छोड़ो " आंदोलन में लगा हुआ था तो "अरुण शौरी "जी की पुस्तक "The Only fatherland", Communists,"Quit India" and the Soviet Union,204 पन्नों की किताब का सारांश एक वाक्य में समझ लीजिये कि तब भारत के कम्युनिस्ट अंग्रेज़ों के दलालों के रूप में काम कर रहे थे और इन्होने उस आंदोलन को विफल करने के लिए , जो कि तत्कालीन रूस के हित में था ,कोई कसर नहीं छोड़ी थी। एक वो वक़्त था और एक आज़ादी के बाद का वक़्त है कि केंद्र से लेकर केरल तक वामपंथी और कांग्रेस ज़रुरत पड़ने पर एक दूसरे के पूरक का काम करते हैं। क्यों न निभाएं दोस्ती, आखिर कांग्रेस ने नमक खाया है रूस का। 
आपको लगा होगा मैंने क्यों प्रचुर मात्रा में देशद्रोहियों के पैदा होने की बात कही है । क्यों न कहा जाये ??? सरकार, ख़ुफ़िया तंत्र ,सेना, विदेश मंत्रालय, और पुलिस किसे पैसा नहीं खिलाती थी KGB , रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी। 

Vasili Mitrokhin.ने अपनी पुस्तक  The Mitrokhin Archive II, के दो अध्याय ,और उसके बाद ख़ुफ़िया मामलों के विशेषज्ञ  Christopher Andrew द्वारा लिखी गयी इसी पुस्तक की अगली कड़ी ने दुनिया के सामने परत दर परत खोल कर रख दिया कि किस तरह रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी की पहुँच भारत के प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय तक थी। अपने दो अध्यायों  "The Special Relationship with India " में लेखक कहता है की, रूस के बाद KGB के सबसे ज्यादा एजेंट यदि तीसरी दुनिया में काम करते थे तो वह देश भारत था। 
इन्दिरा गांधी , जिनका कूट नाम VANO था , उनको KGB कांग्रेस चलने के लिए सूट्केसों में भर कर पैसा भेजा करती थी। एक मौके पर भारत में KGB के प्रतिनिधि Leonid Shebarshin ने 20 लाख रुपये कांग्रेस (R) के नाम पर आधी रात को सात के केंद्र को व्यक्तिगत रूप से दिए थे। इसी वक़्त एक समाचार पत्र जो इंदिरा गांधी का समर्थन कर रहा था उसे 10 लाख रूपये दिए गए थे। 
1978 में , KGB के 30 जासूस भारत में काम कर रहे थे जिसमे से 10 ख़ुफ़िया तंत्र में ही थे। 
1977 में KGB ने 21 गैर कम्युनिस्ट ( जिसमे चार केंद्रीय मंत्री थे ) के चुनाव का खर्च वहन किया। 
"कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया" को दिल्ली की सड़कों कार की खिड़कियों से पैसा दिया जाता था। 
1959 में CPI General-Secretary Ajoy Ghosh, ने रूस के साथ आयात -निर्यात का कारोबार शुरू किया , जिसका एक दशक में वार्षिक लाभांश 30 लाख रुपये तक पहुँच गया। 
1975 में KGB ने इंदिरा गांधी के राजनैतिक विरोधियों को कमज़ोर करने के लिए 1 करोड़ 60 लाख रुपये खर्च किये। 
V. Krishna Menon, ( भारत का पहला घोटालेबाज, और चीन से पिटवाने वाला) के द्वारा इंग्लैंड के Lightnings लड़ाकू विमानों की जगह "मिग" खरिदवाये गए , और एवज में उसका 1962 और 1967 का चुनावी खर्च KGB ने उठाया। 
1973 तक भारत के 10 अखबार और एक न्यूज़ एजेंसी KGB से मासिक वेतन पाते थे और मात्र 1975 में ही KGB ने 5510 लेख भारत के विभिन्न अख़बारों में छपवाए थे। 
प्रमोद दासगुप्त , कम्युनिस्ट पार्टी के धुरंधर और वरिष्ठ नेता भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी IB में रूस के मुखबिर थे।  
IB के पूर्व निदेशक M.K. Dhar,ने अपनी पुस्तक "Open Secrets:India's Intelligence Unveiled", में लिखा है कि IB ने चार केंद्रीय मंत्रियों और दो दर्ज़न सांसदों को चिन्हित कर लिया है जो रूस से नियमित रूप से वेतन पाते हैं। उनके अनुसार सबसे चकित करने वाली बात थी KGB का रक्षा मंत्रालय और सेना में भेदन था, जिसके कारण रूस से सैन्य उपकरण खरीदे जाते थे। और न सिर्फ KGB, CIA ,ISI , SAUDI Intelligence बल्कि AL Quaeda भी भारत में सक्रीय हैं। और एक प्रदेश का पूर्व मुख्यमंत्री इसी से वेतन पाता है।  

भारत में अमरीका के पूर्व राजदूत Daniel Moynihan ने भी इंदिरा गांधी द्वारा पैसा लेने का दावा किया है। Daniel Moynihan ने अपने संस्मरण A Dangerous Place में लिखा है, " हमने दो बार भारतीय राजनीती में पैसा देने की हद तक दखलंदाज़ी की है।  दोनों बार पैसा कांग्रेस पार्टी  को दिया गया जिसने इसकी मांग की थी और एक बार पैसा श्रीमती गांधी के हाथ में ही दिया गया था। इस सन्दर्भ में कांग्रेस के पूर्वमंत्री V.C. Shukla, (विद्या चरण शुक्ल) ने स्पष्ट किया कि "वे अपने आप को ऐसे पोलिटिकल फंडिंग के मामलों में बिलकुल साफ़ सुथरा रखतीं थी।" 
KGB की सक्रियता सिर्फ भारत में ही नहीं थी , बल्कि मास्को में एक भारतीय राजनयिक जिसे कूट नाम PROKHOR, दिया गया था , उसे एक महिला जिसे कूटनाम NEVEROVA के सौंदर्य जाल में फंसा दिया गया था उसे सामान के साथ हर माह 4000 रुपये दिए जाते थे। 
चूँकि भारत की विदेश नीति अमरीका के खिलाफ थी इसलिए KGB को अपने कार्य करने में और ज्यादा सहूलियत हो जाती थी। KGB का पूरा समर्थन रक्षा मंत्री  V. Krishna Menon को था क्योंकि KGB सोच में वही नेहरू के बाद प्रधानमंत्री होते यदि 1962 में मेनन ने चीन द्वारा अतिक्रमण के मामले में घोर चूक न की होती । 
1967 के चुनावों में KGB ने न सिर्फ CPI या अन्य वामदलों का चुनावी खर्च वहन किया बल्कि दसियों कांग्रेस के उम्मीदवारों तथा एक बहुत ही प्रभावशाली मंत्री जिसे कूट नाम ABAD दिया गया था का चुनावी खर्च उठाया। 
दिल्ली में KGB के मुखिया Shebarshin ने अपने दस्तावेज़ों "in an endless stream", में लिखा है कि जो रूसी हथियारों को खरीदने की रिवायत मेनन ने शुरू की थी ,उसके चलते 70 के दशक की शुरुआत होते होते भारतीय आवश्यकता के सारे सैन्य उपकरण रूस से खरीदे जाने लगे थे। 
सिर्फ सरकार में ही नहीं ,बल्कि KGB ने उस समय के भारत के सबसे प्रतिष्ठित पत्रकार, जो कि अमरीका के खिलाफ जहर उगलने में सिद्धहस्त था , उसे अपने वेतनमान पर रख लिया और उसे कूट नाम NOK, दिया गया था।  
The Mitrokhin Archives, के अनुसार 1969 में Andropov ने मास्को में पोलितब्यूरो को सूचित किया कि दिल्ली में अमरीकी दूतावास के बहार 20000 मुस्लिमों का धरना प्रदर्शन आयोजित करने का खर्च 5000 रुपये आएगा, अतः आपसे निवेदन है कि इसे संस्तुति दे। जिस पर " Leonid Brezhnev ने लिखा , "Agreed on Andropov's request."। 


बात , यहाँ पर ख़त्म नहीं ख़त्म नहीं हुई , दरअसल कहानी शुरू ही यहीं से हुई थी जब1992 में  The Times Of India और The Hindu ने एक खबर प्रकाशित की, कि राजीव गांधी को रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी KGB से फंड्स मिलते थे। इसपर तत्कालीन रूस की सरकार ने माना की हाँ, रूस के सैद्धांतिक हितों को ध्यान में रख कर ये भुगतान किया जाता था।
Yevgenia Albats एवं Catherrine Fitzpatric जिन्होंने "The State Within a State:The KGB and its Hold on Russia- Past, Present and Future" किताब लिखी , में Victor Chebrikov जो की 1980 के दशक में KGB के प्रमुख थे, के हस्ताक्षरित एक पत्र का उद्धरण दिया। पत्र के अनुसार KGB के राजीव गांधी के साथ सम्बन्ध थे और राजीव गांधी ने KGB को आभार प्रकट किया था कि उनके (राजीव गांधी के) परिवार को एक कंपनी के नाम पर सौदों की आड़ में एकत्रित वाणिजीयिक फायदा पहुँचाने के लिए। तथा माना था कि इस रूप से प्राप्त की गयी धन राशि का एक हिस्सा पार्टी फण्ड में इस्तेमाल किया जाता था।
KGB के मुखिया Victor Chebrikov ने दिसम्बर 1985 में सोवियत यूनियन की कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय समिति को एक प्रस्ताव पेश किया जिसमे राजीव गांधी के परिवार के सदस्यों जिसमे सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी को भी भुगतान करने की अनुमति मांगी थी और USSR Council of Ministers ने सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी और यह भी माना था की यह भुगतान 1971 से किया जा रहा है। (Albats, Yevgenia; Fitzpatrick, Catherine (1999) [1994]. "The Stae within a State :The KGB and its Hold on Russia-Past Present and Future.". London, United Kingdom: Macmillan. p. 223. )

ऐसा नहीं है कि सिर्फ KGB ही भारत में छेद कर रही थी , CIA भी बिकाऊ लोगों को उचित दाम दे रही थी। 

गिलानी सोपोर से चार बार विधायक रह चुका  है, और ISI से वेतन पाता  है, तो कम से कम डंके की चोट पर पाकिस्तान का नमक अदा करता है। 

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के किसी भी सांसद को अपनी पार्टी की हक़ीक़त मालूम नहीं होगी। ऐसा नहीं है कि विपक्ष के किसी नेता को यह मालूम नहीं होगा कि देश में क्या चल रहा है। ऐसा नहीं है कि ख़ुफ़िया तन्त्र को यह नहीं मालूम होगा कि कौन नेता, कौन सरकारी मुलाज़िम या कौन पत्रकार बिक रहा है। 
सब देख रहे हैं देश बिक रहा है। विदेशी ताकतें देश को तोड़ रही हैं। भारत का झूठा इतिहास पुनः रच दिया गया। 80 सालों से जिस मेहनत से वामपंथियों ने इस देश और इसकी संस्कृति को नष्ट करने की जो मुहीम चलायी है वो कामयाब होती नज़र आ रही है क्योंकि देश के नेता, वकील, समाजशास्त्री और मीडिया, आतंकवादियों की फांसी रुकवाने के लिए दया याचिका दाखिल करने में अपने आप को प्रगतिशील समझने लगे है, सिविल सोसाइटी और समाचार पत्र  अश्लील साइट्स बंद होने के खिलाफ आवाज़ उठाने में व्यस्त हैं। 
पर किसी से अगर आवाज़ नहीं उठती, तो यह नहीं उठती की देश को बेच कौन रहा है ????? इस देश में कौन कौन बिक रहा है ??? 

 जब बाड़ ही खेत को खाने लगे , तो मुंह से यही निकलता है ----

बने हैं अहले-हवस, मुद्दई भी मुंसिफ भी
किसे वकील करें , किस से मुन्सिफ़ी चाहें ............

रविवार, 2 अगस्त 2015

सुन्नत कराई तुरक जउ होना , अउरत को का कहिये।

सुन्नत कराई तुरक जउ होना , अउरत को का कहिये। 
अरध सरीरी नारि बखानी , ताते हिन्दू रहिये। -------

कबीर दास जी के इस दोहे का मतलब बाद में समझेंगे। पहले मृत्युदंड को असभ्यता की श्रेणी में रखने वालों से एक सवाल है, कि अगर मृत्युदंड एक कुप्रथा है तो आज तक तुम्हारे कलेजे में इतना ताव क्यों पैदा नहीं हुआ कि तुमने  अल्लाह / खुदा / प्रभु  की बनायीं हुई एक उत्कृष्ट एवं सम्पूर्ण कृति में क्रूर बदलाव के लिए आज तक आवाज़ नहीं उठाई ????
अल्लाह परफेक्ट है यह मैं नहीं कह रहा बल्कि ऊपर वाले में यकीन करने वाले जानते हैं, और आसमानी किताब इसकी तस्दीक करती है कि ऊपर वाला सम्पूर्ण, निपुण ,निष्कलंक है  -----
सूरा 112 :आयत 2 --- अल्लाह बेनियाज़ है। ( वो किसी का मोहताज़ नहीं और उसके सब मोहताज़ हैं )
सूरा 95 : आयत 8 --- क्या अल्लाह तआला सब हाकिमों से बढ़कर हाकिम नहीं है ???
सूरा 3 आयत 5 -बेशक अल्लाह से कोई चीज़ छुपी हुई नहीं है,(न कोई चीज़) ज़मीन में और न (कोई चीज़)आसमान में। 
सूरा 3 :आयत 2 --- अल्लाह तआला  ऐसे है की उनके सिवा माबूद बनाने के काबिल नहीं है और वह ज़िंदा (हमेशा रहने वाले है )हैं ,सब चीज़े सँभालने वाले हैं।
सूरा 32 :आयत 6  --वही पोषदा "छुपी" और ज़ाहिर चीज़ों का जानने वाला है। जबरदस्त, रेहमत वाला है।

बहुत से उदाहरण दिए जा सकते हैं लेकिन यह कुछ उदाहरण हैं ,जो यह बताते है की अल्लाह सर्वज्ञता और सर्व शक्तिमान है। फिर अल्लाह ने इंसान बनाया।
 Perfect God Creats Human being -------

सूरा 76 :आयात 1 -- बेशक इंसान पर ज़माने में एक ऐसा वक़्त भी आ चूका है जिसमे वह कोई कबीले ज़िक्र चीज़ न था ( यानि इंसान न था बल्कि नुत्फ़ा था)
सूरा 76 : आयत 2 -- हमने उसको मख़लूत " यानि मिश्रित " नुत्फ़े से पैदा किया,इस तौर पर कि हम उसको मुकल्लफ़ बनायें। तो (इसी वास्ते _हमने उसको सुनता देखता (समझाता) बनाया। 
सूरा 23: आयत 14 ---फिर हमने उस नुत्फ़े को खून का लोथड़ा बना दिया,फिर हमने उस खून के लोथड़े को (गोश्त की) बोटी बना दिया , फिर हमने उस बोटी (के बाज़ हिस्सों ) को हड्डियाँ बना दिया ,फिर हमने उन हड्डियों पर गोश्त चढ़ा दिया, फिर हमने (उसमें रूह डाल कर) उसको एक दूसरी (तरह की) मख्लूक़ बना दिया। सो कैसी बड़ी शान है अल्लाह की जो तमाम बनाने वालों से बढ़कर है। 
सूरा 32 : आयत 9 -- फिर उसने आजा "यानि अंग और हिस्से" दुरुस्त किये और उसमे अपनी रूह फूँकी,और तुमको कान और आँख और दिल दिए, तुम लोग बहुत कम शुक्र करते हो,(यानि नहीं करते) . 
सूरा 3: आयत 6 वह ऐसी जाते पाक हैं कि तुम्हारी सूरत (व् शक्ल )बनाता है रहमों "यानि बच्चे दानियों "में , जिस तरह चाहता है। कोई इबादत के लायक नहीं सिवाए उसके ,वह ग़लबे वाले हैं और हिकमत वाले है।  
सूरा 40 :आयत 64 --- अल्लाह ही है जिसने जमीन को रहने का ठिकाना बनाया , और आसमान को छत (की तरह) बनाया , और "तुम्हारा नक्शा बनाया , बहुत उम्दा नक्शा बनाया" , और तुमको बहुत बहुत उम्दा उम्दा चीज़ें खाने को दीं। यह अल्लाह है तुम्हारा रब, सो बड़ा आलिशान हैं अल्लाह ,जो सारे जहाँ का परवरदिगार है। 
सूरा 64 :आयत 3 --- उसी ने आसमानो और ज़मीन को ठीक तौर पर पैदा किया "और तुम्हारा नक्शा बनाया ,सो उम्दा नक्शा बनाया" और उसी के पास (सबको )लौटना है। 
और फिर सबसे ऊपर खुद कहता है -----he created best and moulded beautiful human beings .
सूरा 32  :आयत 7 --- उसने जो चीज़ बनायीं खूब बनायीं, और इंसान की पैदाइश मिट्टी सी शुरू की। 
सूरा 95 :आयत 4 --- कि हमने इंसान को बहुत खूबसूरत साँचे में ढाला है। 


और हमारा सवाल वहीँ खड़ा है , जब खुदा परफेक्ट है , उसने परफेक्ट मॉडल बनाया है , तो तुम किस आधार पर उसकी कृति से छेड़छाड़ करके उसमे बदलाव करते हो ??? अगर खुदा को सब कुछ मालूम है उसने अभी तक अपने मॉडल्स का यह BUILT IN DEFECT सही क्यों नहीं किया ??? जब तुम खुदा के फैसले को बदल सकते हो तो भारतीय न्यायलय क्या है , तुम्हारे लिए, हर रोज़ उसके फैसलों को चुनौती दे सकते हो। 

 हाँ तो कबीरदास जी कह रहे थे, कि " सुन्नत करने से अगर तुम मुसलमान होते हो तो औरत को क्या कहोगे ??? औरत का तो तुम सुन्नत कराते नहीं , तब तो वह मुसलमान हुई नहीं और गृहस्थ आश्रम में आधा शरीर ,आधा अंग नारी का माना जाता है। तुम्हारे गृहस्थ आश्रम का आधा शरीर, आधा अंग स्त्री तो बिना सुन्नत का होने के कारण हिन्दू ही रह गयी फलतः तुम आधे ही मुसलमान हुए। "ताते हिन्दू रहिये"----- तुम हिन्दू ही रहो।   

वैसे में ऊपर जो कुछ भी लिखा है उसमे मेरा कोई हाथ नहीं है , कैसे ???? नीचे की आयत पढ़ लीजिये ---
सूरा 2 :आयत 7 --- बंद लगा दिया है अल्लाह तआला ने उनके (काफिरों के ) दिलों पर और उनके कानों पर और उनकी आँखों पर पर्दा है , और उनके लिए सज़ा बड़ी है। 
तो हमारी आँखों , कानो और अक्ल पर जब खुदा ने ही पर्दा डाल दिया है तो हम तो यही कहते कहते मर जायेंगे ------                       --हरी ॐ तत्सत ----