सुन्नत कराई तुरक जउ होना , अउरत को का कहिये।
अरध सरीरी नारि बखानी , ताते हिन्दू रहिये। -------
कबीर दास जी के इस दोहे का मतलब बाद में समझेंगे। पहले मृत्युदंड को असभ्यता की श्रेणी में रखने वालों से एक सवाल है, कि अगर मृत्युदंड एक कुप्रथा है तो आज तक तुम्हारे कलेजे में इतना ताव क्यों पैदा नहीं हुआ कि तुमने अल्लाह / खुदा / प्रभु की बनायीं हुई एक उत्कृष्ट एवं सम्पूर्ण कृति में क्रूर बदलाव के लिए आज तक आवाज़ नहीं उठाई ????
अल्लाह परफेक्ट है यह मैं नहीं कह रहा बल्कि ऊपर वाले में यकीन करने वाले जानते हैं, और आसमानी किताब इसकी तस्दीक करती है कि ऊपर वाला सम्पूर्ण, निपुण ,निष्कलंक है -----
सूरा 112 :आयत 2 --- अल्लाह बेनियाज़ है। ( वो किसी का मोहताज़ नहीं और उसके सब मोहताज़ हैं )
सूरा 95 : आयत 8 --- क्या अल्लाह तआला सब हाकिमों से बढ़कर हाकिम नहीं है ???
सूरा 3 आयत 5 -बेशक अल्लाह से कोई चीज़ छुपी हुई नहीं है,(न कोई चीज़) ज़मीन में और न (कोई चीज़)आसमान में।
सूरा 3 :आयत 2 --- अल्लाह तआला ऐसे है की उनके सिवा माबूद बनाने के काबिल नहीं है और वह ज़िंदा (हमेशा रहने वाले है )हैं ,सब चीज़े सँभालने वाले हैं।
सूरा 32 :आयत 6 --वही पोषदा "छुपी" और ज़ाहिर चीज़ों का जानने वाला है। जबरदस्त, रेहमत वाला है।
बहुत से उदाहरण दिए जा सकते हैं लेकिन यह कुछ उदाहरण हैं ,जो यह बताते है की अल्लाह सर्वज्ञता और सर्व शक्तिमान है। फिर अल्लाह ने इंसान बनाया।
Perfect God Creats Human being -------
सूरा 76 :आयात 1 -- बेशक इंसान पर ज़माने में एक ऐसा वक़्त भी आ चूका है जिसमे वह कोई कबीले ज़िक्र चीज़ न था ( यानि इंसान न था बल्कि नुत्फ़ा था)
सूरा 76 : आयत 2 -- हमने उसको मख़लूत " यानि मिश्रित " नुत्फ़े से पैदा किया,इस तौर पर कि हम उसको मुकल्लफ़ बनायें। तो (इसी वास्ते _हमने उसको सुनता देखता (समझाता) बनाया।
सूरा 23: आयत 14 ---फिर हमने उस नुत्फ़े को खून का लोथड़ा बना दिया,फिर हमने उस खून के लोथड़े को (गोश्त की) बोटी बना दिया , फिर हमने उस बोटी (के बाज़ हिस्सों ) को हड्डियाँ बना दिया ,फिर हमने उन हड्डियों पर गोश्त चढ़ा दिया, फिर हमने (उसमें रूह डाल कर) उसको एक दूसरी (तरह की) मख्लूक़ बना दिया। सो कैसी बड़ी शान है अल्लाह की जो तमाम बनाने वालों से बढ़कर है।
सूरा 32 : आयत 9 -- फिर उसने आजा "यानि अंग और हिस्से" दुरुस्त किये और उसमे अपनी रूह फूँकी,और तुमको कान और आँख और दिल दिए, तुम लोग बहुत कम शुक्र करते हो,(यानि नहीं करते) .
सूरा 3: आयत 6 वह ऐसी जाते पाक हैं कि तुम्हारी सूरत (व् शक्ल )बनाता है रहमों "यानि बच्चे दानियों "में , जिस तरह चाहता है। कोई इबादत के लायक नहीं सिवाए उसके ,वह ग़लबे वाले हैं और हिकमत वाले है।
सूरा 40 :आयत 64 --- अल्लाह ही है जिसने जमीन को रहने का ठिकाना बनाया , और आसमान को छत (की तरह) बनाया , और "तुम्हारा नक्शा बनाया , बहुत उम्दा नक्शा बनाया" , और तुमको बहुत बहुत उम्दा उम्दा चीज़ें खाने को दीं। यह अल्लाह है तुम्हारा रब, सो बड़ा आलिशान हैं अल्लाह ,जो सारे जहाँ का परवरदिगार है।
सूरा 64 :आयत 3 --- उसी ने आसमानो और ज़मीन को ठीक तौर पर पैदा किया "और तुम्हारा नक्शा बनाया ,सो उम्दा नक्शा बनाया" और उसी के पास (सबको )लौटना है।
और फिर सबसे ऊपर खुद कहता है -----he created best and moulded beautiful human beings .
सूरा 32 :आयत 7 --- उसने जो चीज़ बनायीं खूब बनायीं, और इंसान की पैदाइश मिट्टी सी शुरू की।
सूरा 95 :आयत 4 --- कि हमने इंसान को बहुत खूबसूरत साँचे में ढाला है।
और हमारा सवाल वहीँ खड़ा है , जब खुदा परफेक्ट है , उसने परफेक्ट मॉडल बनाया है , तो तुम किस आधार पर उसकी कृति से छेड़छाड़ करके उसमे बदलाव करते हो ??? अगर खुदा को सब कुछ मालूम है उसने अभी तक अपने मॉडल्स का यह BUILT IN DEFECT सही क्यों नहीं किया ??? जब तुम खुदा के फैसले को बदल सकते हो तो भारतीय न्यायलय क्या है , तुम्हारे लिए, हर रोज़ उसके फैसलों को चुनौती दे सकते हो।
और हमारा सवाल वहीँ खड़ा है , जब खुदा परफेक्ट है , उसने परफेक्ट मॉडल बनाया है , तो तुम किस आधार पर उसकी कृति से छेड़छाड़ करके उसमे बदलाव करते हो ??? अगर खुदा को सब कुछ मालूम है उसने अभी तक अपने मॉडल्स का यह BUILT IN DEFECT सही क्यों नहीं किया ??? जब तुम खुदा के फैसले को बदल सकते हो तो भारतीय न्यायलय क्या है , तुम्हारे लिए, हर रोज़ उसके फैसलों को चुनौती दे सकते हो।
हाँ तो कबीरदास जी कह रहे थे, कि " सुन्नत करने से अगर तुम मुसलमान होते हो तो औरत को क्या कहोगे ??? औरत का तो तुम सुन्नत कराते नहीं , तब तो वह मुसलमान हुई नहीं और गृहस्थ आश्रम में आधा शरीर ,आधा अंग नारी का माना जाता है। तुम्हारे गृहस्थ आश्रम का आधा शरीर, आधा अंग स्त्री तो बिना सुन्नत का होने के कारण हिन्दू ही रह गयी फलतः तुम आधे ही मुसलमान हुए। "ताते हिन्दू रहिये"----- तुम हिन्दू ही रहो।
वैसे में ऊपर जो कुछ भी लिखा है उसमे मेरा कोई हाथ नहीं है , कैसे ???? नीचे की आयत पढ़ लीजिये ---
सूरा 2 :आयत 7 --- बंद लगा दिया है अल्लाह तआला ने उनके (काफिरों के ) दिलों पर और उनके कानों पर और उनकी आँखों पर पर्दा है , और उनके लिए सज़ा बड़ी है।
तो हमारी आँखों , कानो और अक्ल पर जब खुदा ने ही पर्दा डाल दिया है तो हम तो यही कहते कहते मर जायेंगे ------ --हरी ॐ तत्सत ----
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