बने हैं अहले-हवस, मुद्दई भी मुंसिफ भी
किसे वकील करें , किस से मुन्सिफ़ी चाहें ............
बदनाम तो खाली जयचंद और विभीषण हैं, वो कौन सा वक़्त रहा है, जब इस देश ने प्रचुर मात्रा में चरित्रहीन स्वार्थी देशद्रोही पैदा नहीं किये ???
आज नैतिकता के आधार पर संसद न चलने देने वाली कांग्रेस और वामपंथियों की नैतिकता के विषय में भारत की नासमझ और भावुक जनता को उतना ही मालूम है जितना कि लोगों को यह मालूम है की बत्तख पानी में रहती है और उसके पंख गीले नहीं होते।
कांग्रेस की नैतिकता पर आधारित यह लेख लिखने से पहले चंद वाक्यों में वामपंथियों का चरित्र समझ लीजिये। 1917 में पैदा हुई यह वामपंथी विचारधारा 1921 तक भारत में छा चुकी थी और 1929 में इन्होने कारखानो में हड़ताल भी करवा दी थी।
देशहित में यह कौम कितनी खतरनाक है , इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि जब पूरा देश 1942 के "अंग्रेजों भारत छोड़ो " आंदोलन में लगा हुआ था तो "अरुण शौरी "जी की पुस्तक "The Only fatherland", Communists,"Quit India" and the Soviet Union,204 पन्नों की किताब का सारांश एक वाक्य में समझ लीजिये कि तब भारत के कम्युनिस्ट अंग्रेज़ों के दलालों के रूप में काम कर रहे थे और इन्होने उस आंदोलन को विफल करने के लिए , जो कि तत्कालीन रूस के हित में था ,कोई कसर नहीं छोड़ी थी। एक वो वक़्त था और एक आज़ादी के बाद का वक़्त है कि केंद्र से लेकर केरल तक वामपंथी और कांग्रेस ज़रुरत पड़ने पर एक दूसरे के पूरक का काम करते हैं। क्यों न निभाएं दोस्ती, आखिर कांग्रेस ने नमक खाया है रूस का।
आपको लगा होगा मैंने क्यों प्रचुर मात्रा में देशद्रोहियों के पैदा होने की बात कही है । क्यों न कहा जाये ??? सरकार, ख़ुफ़िया तंत्र ,सेना, विदेश मंत्रालय, और पुलिस किसे पैसा नहीं खिलाती थी KGB , रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी।
Vasili Mitrokhin.ने अपनी पुस्तक The Mitrokhin Archive II, के दो अध्याय ,और उसके बाद ख़ुफ़िया मामलों के विशेषज्ञ Christopher Andrew द्वारा लिखी गयी इसी पुस्तक की अगली कड़ी ने दुनिया के सामने परत दर परत खोल कर रख दिया कि किस तरह रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी की पहुँच भारत के प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय तक थी। अपने दो अध्यायों "The Special Relationship with India " में लेखक कहता है की, रूस के बाद KGB के सबसे ज्यादा एजेंट यदि तीसरी दुनिया में काम करते थे तो वह देश भारत था।
इन्दिरा गांधी , जिनका कूट नाम VANO था , उनको KGB कांग्रेस चलने के लिए सूट्केसों में भर कर पैसा भेजा करती थी। एक मौके पर भारत में KGB के प्रतिनिधि Leonid Shebarshin ने 20 लाख रुपये कांग्रेस (R) के नाम पर आधी रात को सात के केंद्र को व्यक्तिगत रूप से दिए थे। इसी वक़्त एक समाचार पत्र जो इंदिरा गांधी का समर्थन कर रहा था उसे 10 लाख रूपये दिए गए थे।
1978 में , KGB के 30 जासूस भारत में काम कर रहे थे जिसमे से 10 ख़ुफ़िया तंत्र में ही थे।
1977 में KGB ने 21 गैर कम्युनिस्ट ( जिसमे चार केंद्रीय मंत्री थे ) के चुनाव का खर्च वहन किया।
"कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया" को दिल्ली की सड़कों कार की खिड़कियों से पैसा दिया जाता था।
1959 में CPI General-Secretary Ajoy Ghosh, ने रूस के साथ आयात -निर्यात का कारोबार शुरू किया , जिसका एक दशक में वार्षिक लाभांश 30 लाख रुपये तक पहुँच गया।
1975 में KGB ने इंदिरा गांधी के राजनैतिक विरोधियों को कमज़ोर करने के लिए 1 करोड़ 60 लाख रुपये खर्च किये।
V. Krishna Menon, ( भारत का पहला घोटालेबाज, और चीन से पिटवाने वाला) के द्वारा इंग्लैंड के Lightnings लड़ाकू विमानों की जगह "मिग" खरिदवाये गए , और एवज में उसका 1962 और 1967 का चुनावी खर्च KGB ने उठाया।
1973 तक भारत के 10 अखबार और एक न्यूज़ एजेंसी KGB से मासिक वेतन पाते थे और मात्र 1975 में ही KGB ने 5510 लेख भारत के विभिन्न अख़बारों में छपवाए थे।
प्रमोद दासगुप्त , कम्युनिस्ट पार्टी के धुरंधर और वरिष्ठ नेता भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी IB में रूस के मुखबिर थे।
IB के पूर्व निदेशक M.K. Dhar,ने अपनी पुस्तक "Open Secrets:India's Intelligence Unveiled", में लिखा है कि IB ने चार केंद्रीय मंत्रियों और दो दर्ज़न सांसदों को चिन्हित कर लिया है जो रूस से नियमित रूप से वेतन पाते हैं। उनके अनुसार सबसे चकित करने वाली बात थी KGB का रक्षा मंत्रालय और सेना में भेदन था, जिसके कारण रूस से सैन्य उपकरण खरीदे जाते थे। और न सिर्फ KGB, CIA ,ISI , SAUDI Intelligence बल्कि AL Quaeda भी भारत में सक्रीय हैं। और एक प्रदेश का पूर्व मुख्यमंत्री इसी से वेतन पाता है।
भारत में अमरीका के पूर्व राजदूत Daniel Moynihan ने भी इंदिरा गांधी द्वारा पैसा लेने का दावा किया है। Daniel Moynihan ने अपने संस्मरण A Dangerous Place में लिखा है, " हमने दो बार भारतीय राजनीती में पैसा देने की हद तक दखलंदाज़ी की है। दोनों बार पैसा कांग्रेस पार्टी को दिया गया जिसने इसकी मांग की थी और एक बार पैसा श्रीमती गांधी के हाथ में ही दिया गया था। इस सन्दर्भ में कांग्रेस के पूर्वमंत्री V.C. Shukla, (विद्या चरण शुक्ल) ने स्पष्ट किया कि "वे अपने आप को ऐसे पोलिटिकल फंडिंग के मामलों में बिलकुल साफ़ सुथरा रखतीं थी।"
KGB की सक्रियता सिर्फ भारत में ही नहीं थी , बल्कि मास्को में एक भारतीय राजनयिक जिसे कूट नाम PROKHOR, दिया गया था , उसे एक महिला जिसे कूटनाम NEVEROVA के सौंदर्य जाल में फंसा दिया गया था उसे सामान के साथ हर माह 4000 रुपये दिए जाते थे।
चूँकि भारत की विदेश नीति अमरीका के खिलाफ थी इसलिए KGB को अपने कार्य करने में और ज्यादा सहूलियत हो जाती थी। KGB का पूरा समर्थन रक्षा मंत्री V. Krishna Menon को था क्योंकि KGB सोच में वही नेहरू के बाद प्रधानमंत्री होते यदि 1962 में मेनन ने चीन द्वारा अतिक्रमण के मामले में घोर चूक न की होती ।
1967 के चुनावों में KGB ने न सिर्फ CPI या अन्य वामदलों का चुनावी खर्च वहन किया बल्कि दसियों कांग्रेस के उम्मीदवारों तथा एक बहुत ही प्रभावशाली मंत्री जिसे कूट नाम ABAD दिया गया था का चुनावी खर्च उठाया।
दिल्ली में KGB के मुखिया Shebarshin ने अपने दस्तावेज़ों "in an endless stream", में लिखा है कि जो रूसी हथियारों को खरीदने की रिवायत मेनन ने शुरू की थी ,उसके चलते 70 के दशक की शुरुआत होते होते भारतीय आवश्यकता के सारे सैन्य उपकरण रूस से खरीदे जाने लगे थे।
सिर्फ सरकार में ही नहीं ,बल्कि KGB ने उस समय के भारत के सबसे प्रतिष्ठित पत्रकार, जो कि अमरीका के खिलाफ जहर उगलने में सिद्धहस्त था , उसे अपने वेतनमान पर रख लिया और उसे कूट नाम NOK, दिया गया था।
The Mitrokhin Archives, के अनुसार 1969 में Andropov ने मास्को में पोलितब्यूरो को सूचित किया कि दिल्ली में अमरीकी दूतावास के बहार 20000 मुस्लिमों का धरना प्रदर्शन आयोजित करने का खर्च 5000 रुपये आएगा, अतः आपसे निवेदन है कि इसे संस्तुति दे। जिस पर " Leonid Brezhnev ने लिखा , "Agreed on Andropov's request."।
बात , यहाँ पर ख़त्म नहीं ख़त्म नहीं हुई , दरअसल कहानी शुरू ही यहीं से हुई थी जब1992 में The Times Of India और The Hindu ने एक खबर प्रकाशित की, कि राजीव गांधी को रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी KGB से फंड्स मिलते थे। इसपर तत्कालीन रूस की सरकार ने माना की हाँ, रूस के सैद्धांतिक हितों को ध्यान में रख कर ये भुगतान किया जाता था।
Yevgenia Albats एवं Catherrine Fitzpatric जिन्होंने "The State Within a State:The KGB and its Hold on Russia- Past, Present and Future" किताब लिखी , में Victor Chebrikov जो की 1980 के दशक में KGB के प्रमुख थे, के हस्ताक्षरित एक पत्र का उद्धरण दिया। पत्र के अनुसार KGB के राजीव गांधी के साथ सम्बन्ध थे और राजीव गांधी ने KGB को आभार प्रकट किया था कि उनके (राजीव गांधी के) परिवार को एक कंपनी के नाम पर सौदों की आड़ में एकत्रित वाणिजीयिक फायदा पहुँचाने के लिए। तथा माना था कि इस रूप से प्राप्त की गयी धन राशि का एक हिस्सा पार्टी फण्ड में इस्तेमाल किया जाता था।
KGB के मुखिया Victor Chebrikov ने दिसम्बर 1985 में सोवियत यूनियन की कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय समिति को एक प्रस्ताव पेश किया जिसमे राजीव गांधी के परिवार के सदस्यों जिसमे सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी को भी भुगतान करने की अनुमति मांगी थी और USSR Council of Ministers ने सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी और यह भी माना था की यह भुगतान 1971 से किया जा रहा है। (Albats, Yevgenia; Fitzpatrick, Catherine (1999) [1994]. "The Stae within a State :The KGB and its Hold on Russia-Past Present and Future.". London, United Kingdom: Macmillan. p. 223. )
ऐसा नहीं है कि सिर्फ KGB ही भारत में छेद कर रही थी , CIA भी बिकाऊ लोगों को उचित दाम दे रही थी।
गिलानी सोपोर से चार बार विधायक रह चुका है, और ISI से वेतन पाता है, तो कम से कम डंके की चोट पर पाकिस्तान का नमक अदा करता है।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के किसी भी सांसद को अपनी पार्टी की हक़ीक़त मालूम नहीं होगी। ऐसा नहीं है कि विपक्ष के किसी नेता को यह मालूम नहीं होगा कि देश में क्या चल रहा है। ऐसा नहीं है कि ख़ुफ़िया तन्त्र को यह नहीं मालूम होगा कि कौन नेता, कौन सरकारी मुलाज़िम या कौन पत्रकार बिक रहा है।
सब देख रहे हैं देश बिक रहा है। विदेशी ताकतें देश को तोड़ रही हैं। भारत का झूठा इतिहास पुनः रच दिया गया। 80 सालों से जिस मेहनत से वामपंथियों ने इस देश और इसकी संस्कृति को नष्ट करने की जो मुहीम चलायी है वो कामयाब होती नज़र आ रही है क्योंकि देश के नेता, वकील, समाजशास्त्री और मीडिया, आतंकवादियों की फांसी रुकवाने के लिए दया याचिका दाखिल करने में अपने आप को प्रगतिशील समझने लगे है, सिविल सोसाइटी और समाचार पत्र अश्लील साइट्स बंद होने के खिलाफ आवाज़ उठाने में व्यस्त हैं।
पर किसी से अगर आवाज़ नहीं उठती, तो यह नहीं उठती की देश को बेच कौन रहा है ????? इस देश में कौन कौन बिक रहा है ???
जब बाड़ ही खेत को खाने लगे , तो मुंह से यही निकलता है ----
बने हैं अहले-हवस, मुद्दई भी मुंसिफ भी
किसे वकील करें , किस से मुन्सिफ़ी चाहें ............
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