रविवार, 26 अप्रैल 2015

Macauley -Ism = Secularism ==हिन्दुओं का बंटाधार

किसी दुश्मन को बर्बाद करना हो तो उसके बेटे को नशेड़ी बना दो ----- 26/02/15 की पोस्ट 

पिछली पोस्ट के द्वारा में यह समझाने का पर्यत्न  किया था कि आरक्षण व्यवस्था और मैकॉले  ने कैसे वर्ग विशेष में संभावित क्षमताओं को पूर्ण रूप से विकसित होने से रोका। बात सिर्फ एक वर्ग विशेष की नहीं है , जो इस शिक्षा पद्धति से प्रभावित हुआ है।  आज मुझ और अपने जैसे कुछ कूप मण्डूकों को छोड़ दें तो पूरा भारत धर्मनिरपेक्षता की उस लहर में गोते लगा कर ओत प्रोत हो रहा है जिसके लिए हम जैसे हिंदुत्व की बात करने वाले लोग सम्रदायिकता की श्रेणी में खड़े किये जाते हैं। 
पिछली पोस्ट का एक अहम वाक्य यह था कि -----"गांधी जी के वक्तव्य का हिंदी सार यह है कि 1931 से 50-100 बरस पहले भारत ज्यादा पढ़ा लिखा था और अंग्रेज़ों ने भारतीय शिक्षा प्रणाली रुपी सुन्दर पेड़ की जड़ खोद कर उसे मार दिया। "
इसी वक्तव्य के बाद Sir Daulat Ram और  Sir Philip Hartog में इंग्लैंड में बहस हुई ,जिसमे सर दौलत राम ने माडर्न ,बंगाल, मुंबई और पंजाब से एकतरित आंकड़ों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया था की भारतीय शिक्षा प्रणाली आंग्ल शिक्षा प्रणाली से बेहतर थी। जो बातें उन्होंने त्थयों के आधार पर सिद्ध कीं वे निम्न हैं ----
1) विद्यालयों एवं कॉलेजों  की संख्या ,जनसँख्या के अनुपात में थी। 
2) इन विद्यालयों में तब पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या। 
3) विद्यार्थियों द्वारा विद्यालय में बिताई जाने वाली अवधि । 
4) विद्यार्थियों का परिश्रम एवं उच्च बौद्धिक स्तर। 
5) विद्यार्थियों को विद्यालय एवं कॉलेज की पढाई पूरी करने के लिए आर्थिक सहायता। 
6) शूद्रों एवं  अन्य जातियों के बच्चों का सवर्णो की तुलना में  उच्च प्रतिशत में शिक्षा ग्रहण करना। 
7) हर स्तर पर विभिन्न विषयों  की शिक्षा की व्यवस्था। 

नयी  अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली ने इस स्वदेशी शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त करके नयी  शिक्षा प्रणाली को इस लिए नहीं लगाया गया था की उनकी पद्धति उच्च श्रेणी की थी बल्कि वे इंग्लैंड में राज करने वाली राजस्व केंद्रित पद्धति के तहत "Gentleman " बनाना चाहते थे जिन्होंने आगे चल कर निम्न जातियों और सामूहिक असंतोष को नज़रअंदाज़ किया ( आमिर खान की "लगान", उसी का एक नमूना थी) । मैकॉले की शिक्षा पद्धति ने वही काम किया जो वह चाहता था, भारतीय संस्कृति और विद्वानों के उसने जड़ खोद दी और अंग्रेजी विचारों और संस्कृति को ही सभ्य समझने वाली नयी पीढ़ियां तैयार होनी शुरू हो गयीं। इस नयी पीढ़ी को Macauley - ism से यदि ग्रसित कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। 
यह Macauley - ism , Islamism की तरह अपने विरोधियों का सर एक झटके में कलम नहीं करता  और न ही यह Christianism की तरह बहुत महीन और शरारतपूर्ण  तरीके से समाज को बाधित करता है। इसका कोई एक धर्मशास्त्र नहीं है ,न ही इसका कोई पैगम्बर है और न ही यह कोई आचारसंहिता लागू करता है। 
Macauley -Ism  एक बिना दिखे बहने वाली बहरूपिया हवा की तरह है जो देशव्यापी  मानसिकता पर बहुत धीरे धीरे जहर की तरह व्यापकता से असर करती है। इस जहर के असर से अच्छे अच्छे हिन्दू विद्वानों की बुद्धि को लकवा मार जाता है। इसके पांच खास लक्षण क्या हैं -------
1) हिन्दू इतिहास, संस्कृति , आध्यात्मिकता और संस्कारों की आलोचना करना, और तब तक करना जब तक पश्चिमी देश उसे मान्यता न दे दें। 
2) पश्चिमी सभ्यता, संस्कारों और विचारों की पूजा की हद तक प्रशंसा करना जब तक पश्चिमी देश खुद उसका खंडन न कर दें। ( 70 के दशक में एक हिप्पी कल्चर आया था,बहुत प्रचिलित हुआ था भारत में भी। कहाँ गया ??? जिन्हे इसके बारे में नहीं मालूम वे ,देव आनन्द की "हरे रामा हरे कृष्णा " देख लें )
3) बौद्धिकता का प्रदर्शन करते हुए प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कारों और व्यवस्था का पश्चिमी देशों की उस समय स्थितियों से तुलना न करके 19 वीं या 20वीं सदी के विचारों से तुलना करना। 
4) पश्चिमी आदर्शों और स्वपनलोक को प्रतिबद्धतापूर्ण सकारात्मक दृस्टि से देखना और वही नज़रें जब हिन्दू संस्कृति और समाज की तरफ मुड़ती हैं तो वे यह भूल जाती हैं कि हिन्दू समाज को अभी 70 वर्ष भी नहीं हुए हैं विदेशी आक्रन्ताओं के पंजों  से मुक्त हुए। 
5) जब भी हिन्दू इतिहास, धर्म, संस्कृति, समाज और संस्कारों  की व्याख्या या मूल्यांकन करना होता है तो उसे पश्चिमी नज़रिये से किया जाता है , क्योंकि वही उन्हें वैज्ञानिक लगता है, जबकि इन्हे बनाने वालों ने इनके मूल्यांकन और व्याख्या करने के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध करा रहे है। यदि इन साधनो के तहत व्याख्या करने की बात करी जाये तो नवज्ञानी यह कह कर हाथ खड़े कर देते हैं कि ये साधन वैज्ञानिक नहीं हैं। 

इस्लाम और ईसाइयत के बारे में जो आपकी धरना है वही मेरी भी है , जिन्हे प्रचार के माध्यमों से शांतिप्रिय घोषित करने के लिए हर तरीके के प्रचार माध्यमों का सहारा लिया जाता है , लेकिन इनकी सहिषुणता और कार्यप्रणाली जगजाहिर है। परन्तु एक पारम्परिक हिन्दू इनके अनुयायियों की तरह कट्टर नहीं है , और बात बात पर खून खराबा नहीं करने लगता चाहें उसके धर्म या मायताओं की कितनी भी धज्जियाँ उड़ा दी जाएँ। वो इन मज़हबों के मानने वालों के साथ शांति से रहना छठा है, उनके धर्मो, धर्मग्रंथों और उनकी मान्यताओं का आदर करता है। वो किसी को हिन्दू धर्म का आलोचनात्मक विश्लेषण करने से नहीं रोकता और न ही उस हिन्दू के खिलाफ कोई कातिलाना भीड़ इकट्ठी करता है जो उसके विचारों से सहमत नहीं होता। वो उस समय भी अपनी आँख मूँद लेता है जब कोई हिन्दू देवी देवताओं के ऊपर कटाक्ष करता है, कार्टून बनाता है या उनके नग्न चित्र और चलचित्र बनाता है। परन्तु ………
एक परम्परागत हिन्दू हिंसक हो उठता है जब अन्य मज़हब अपनी मर्यादा की सीमायें लाँघ कर उसके एकमात्र  देश और धर्म  की एकता और अखंडता के लिए खतरा बनने लगते हैं। वो हिंसक हो जाता जब इस्लाम और ईसाइयत धोखाधड़ी से धर्मपरिवर्तन करके उसके धर्म को ठोकरें मारने लगते है। तब वो भी अपने धर्म को जीवित रखने और आत्मरक्षा के अधिकार का उपयोग करता है।

 यहाँ पर Macaleyism की खुराक खा कर कर बड़े हुए और उसके व्यसनी हिन्दू यह अस्तित्त्व बचने और आत्मरक्षा का अधिकार "हिन्दुओं" को नहीं देना चाहते।  क्या आपको नहीं लगता उनका रवैय्या निम्न प्रकार से होता है  ????
1) पहले तो वे हिन्दू समाज ,धर्म और संस्कृति पर कोई खतरा ही मानने से इंकार कर देते हैं। और फिर ऐसे हिन्दुओं को कट्टर ,साम्प्रदायिक ,भय उत्पन्न करने वाला और अंधभक्त करार देते हैं। फिर कहते हैं कि दूसरे मज़हब तो यह इसलिए कर रहे हैं क्योकि सम्रदायिकता की शुरुआत हिन्दुओं ने की थी। 
2)फिर वो अल्पसंख्यकों की गरीब, दयनीय, दलित की तसीवर खींचने लगता है कि जब संविधान ने सबको बराबर का दर्ज दिया है तो हिन्दू उसे बराबरी का दर्ज न दे कर उसके साथ अन्याय करते हैं। 
3) फिर वो प्रवचन देता है की हिन्दू पाखंडी हैं और यह बहुसंख्यक हिन्दुओं ने जो उनका सब छीन रखा है या यदि ये निचली पायदान पर खड़े हैं तो यह बड़े बही की ज़िम्मेदारी है की उनका उत्थान करे और अगर छोटा भाई कोई गलती कर भी देता है तो उसे बर्दाश्त करे। ( यह सीख उनसे छोटे भाइयों को देते नहीं बनती )
4) इतने पर भी जब हिन्दू नहीं समझता तो वो अपना अमोघ अस्त्र ले कर आता है की पहले हिन्दू अपना घर सही करें ,जिसमे की जातिप्रथा को ख़त्म करना , निचली जातियों के साथ रोटी -बेटी का साथ विशेषतया हरिजनों के साथ वगैरह वगैरह , जबकि ऐसा बोलते समय वो यह भूल जाता है कि सामाजिक सुधारों में समय लगता है और इस समय तो धर्म का अस्तित्त्व ही संकट में पड़ा हुआ है। 
5) फिर भी किसी को समझ नहीं आया तो ब्रह्मास्त्र निकला जाता है , और वो वो आध्यात्मिकता का नकाब ओढ़ कर हिन्दुओं को हिन्दुओं की पारम्परिक  धार्मिक सहिषुणता का पाठ पढ़ाने लगता है ,उस इस्लाम और ईसाइयत के लिए जो यह नहीं जानते धार्मिक सहिषुणता होता क्या है। इतना करने के बाद वो यह कभी नहीं करता की मुसलामानों और  ईसाईयों को हमेशा  अपनी बात मनवाने की आदत से बाज आने के लिए समझाए।क्योंकि उसे तहेदिल से मालूम है की जिस दिन वो अल्संख्यंकों को समझने की कोशिश करेगा उसका सर भी उनकी गालियों  के निशाने पर होगा। वो अपनी इस धर्मनिरपेक्षता की छवि पर आंच नहीं आने देता जो इस्लाम और ईसाइयत ने उसे हिन्दुओं को गलियां देने के लिए प्रदान कर रखी है। 

जब तक मैकॉले प्रद्दत शिक्षा व्यवस्था रहेगी तब तक  Macaley -Ism से ग्रसित पीढ़ियां बाहर आती रहेंगी , और हिन्दुओं से उनका आत्मरक्षा का अधिकार, साम्प्रदायिकता की श्रेणी में खड़ा कर के हमेशा छीनती रहेंगी।         

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

आरक्षण का अनुसूचित जनजातियों पर दुष्प्रभाव


 "किसी दुश्मन को बर्बाद करना  हो तो उसके बेटे को नशेड़ी बना दो।"
 नशेड़ी का बाप बर्बाद होता है , नशेड़ी खुद बर्बाद होता है और नशेड़ी के बीवी बच्चे बर्बाद होता है। पूरी की पूरी तीन पीढ़ियां बर्बाद होती है।

भारतीय संविधान और नीति निर्माताओं ने देश और देश की कितनी पीढ़ियों को आरक्षण का नशेड़ी बना कर बर्बाद किया है , इसका आंकलन आप इस बात से लगा सकते हैं , की माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ ,सत्या नाडेला भारत के हैं और नौकरी विदेश में कर कर रहे हैं, 23/04/15 को भारतीय मूल के विवेक मूर्ती को अमरीका ने अपने यहाँ सर्जन जनरल  की शपथ दिलवाई।  दो बातें यहाँ से स्पष्ट होती हैं, की यही प्रतिभा भारत की तरक्की के लिए भी काम कर सकती थी और दूसरे इन लोगों ने अपनी क़ाबलियत के बल पर वहां के "मूलनिवासियों" के पेट पर लात मार दी।अमरीका ही नहीं पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित पदों से लेकर रेस्टोरेंट में बर्तन धोने तक के काम करने वाले भारतीय वहां के मूलनिवासियों के पेट पर लात मार रहे है, और इसी फेसबुक के माध्यम से मैं एक _____ कांबले को जनता हूँ जो की अमरीका के न्यू जर्सी में एक पाकिस्तानी रेस्टोरेंट में मीट के छिछड़े साफ़ करके वहां के मूलनिवासियों के पेट पर लात मारते हुए फेसबुक पर भारत के सवर्णो को मूलनिवासियों की दुर्गति के लिए गलियां देता है।  

अारक्षण या जातिवाद से ग्रसित जो लोग 3000 साल के उस इतिहास का सहारा लेते हैं जिस इतिहास का कोई प्रमाण नहीं है, बस कुछ अंग्रेजों ने और आंबेडकर ने कह दिया वो पत्थर की लकीर हो गया। चलिए यह भी कि मान लिया बहुत ही दयनीय हालत थी शूद्रों की तो यहाँ किसके पुरखों ने वो देसी घी खाया था, जिसकी खुशबू सूंघ कर ये लोग आज भी सवर्णो से नफरत करते हैं ??? 

क्या कभी पूरे विश्व का प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास के पन्ने पलटने की कोशिश करेंगे ???? किस समय और किस देश में सामंतों ने खेतिहरों का खून नहीं पिया ???? इसी अभिजात्य वर्ग और शोषित वर्ग में जब भी टकराव हुआ तो उस क्रांति ने इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा लिया। चाहें वो फ्रांस की 1789 क्रांति हो  , इंग्लैंड की  1688 क्रांति हो ,या क्रांति का दौर 1848  में डेनमार्क , नीदरलैंड, जर्मनी ,पोलैंड, इटली  और ऑस्ट्रिया जैसे देशों की क्रांति हो। 1905 की रूस की क्रांति शोषित वर्ग द्वारा "ज़ाऱ" की खून पीने वाली सामंती व्यवस्था ख़त्म करने के लिए हुई थी। दक्षिणी अफ्रीका से लेकर यमन तक के अरब देशों में तुर्की राज चलता था और सामंती व्यवस्था के तहत एक बहुत बड़ा वर्ग शोषित वर्ग था। तुर्की राज का पतन 1812 क्रांति से हुआ, लेकिन सामंती व्यवस्था ख़त्म नहीं हुई, तुर्क गएतो नए खून पीने वाले आ गए। भारत में भी यही सामंती व्यवस्था थी और किसानों का खून पिया जाता था, पर विचारणीय यह है कि जब पूरे विश्व में शोषण के खिलाफ क्रांति हुई, तो फिर देर सवेर भारत में भी होनी चाहिए थी ??? नहीं हुई।  क्यों ????
कहीं तो कोई बताये की जिन किसानों का शोषण किया जाता था, वे मात्र दलित या शूद्र हुआ करते थे। क्या सिर्फ दलित ही किसान हुआ करते थे ??? यदि कोई यह कहता है की दलित किसान नहीं होते थे और उनके पास ज़मीने नहीं होती थीं तो फिर सरकार सितम्बर 2012 में इनकी ज़मीन सवर्णो द्वारा खरीदे जाने को प्रतिबंधित नहीं करती। यदि सारे दलित गरीब नहीं थे तो सभी सवर्ण भी चांदी का चम्मच मुंह में ले कर पैदा नहीं होते थे।  
बात शुरू हुई थी नशे से और आरक्षण के नशे से। मैंने ऊपर जानबूझ कर 1812 तक के इतिहास का ज़िक्र किया है, क्योंकि आज के पढ़े लिखे शूद्र कहते हैं कि ब्राह्मणों ने उन्हें शिक्षा से वंचित रखा।  21/02/1825 J.Dent Secretary Fort.St.Georgeने एक रिपोर्ट मद्रास में शिक्षा के स्तर के सम्बन्ध में  Sir Thomas Munro Governor of Madras presidency को  सौंपी जिसका सार निम्न प्रकार से है ----( Following number doesnot include female students, which is around 4300 )
 No.of schools       Brahmins     Vaishya     shudra     Other castes    muslims      Total 
                            khsatriya    
11575                   30211          13459         75943     22925               10644      1,53,182 
% of students        20%              9%            50%        15%                 6%            

  शूद्र एवं अन्य जातियां मिला कर 65 % लोग अन्य तीन तथाकथित वर्णो के 29% की तुलना में शिक्षा ग्रहण करते थे। यहाँ पर यह भी रेखांकित करने वाली बात है की मद्रास प्रेसीडेंसी के विभिन्नं जिलों जिनका ब्यौरा ऊपर दिया गया है वहां पर 55 % से लेकर 75% तक अध्यापक शूद्र हुआ करते थे।  
इसके 18 वर्ष पश्चात W.Adam ने 1836 -39 की एक रिपोर्ट Governor of Bengal presidency को सौंपी जिसका सार निम्न है ----
बंगाल और बिहार में 1,50,748 गाँव में लगभग 1,00,000 विद्यालय थे। एडम के अनुसार इस जांच की सबसे विस्मृत करने वाली बात यह थी कि इस शिक्षा पद्धति में समाज के हर वर्ग के लोग शिक्षा दिया और लिया करते थे। उसके अनुसार "यह सही है की ज्यादातर अध्यापक कायस्थ ,ब्राह्मण ,सदगोप और अगूरी जाति के थे लेकिन बहुत से अध्यापक अन्य 30 जातियों से थे जिसमे 6 चाण्डाल अध्यापक भी थे। इससे भी ज्यादा चकित करने वाली बात यह थी कि बर्दवान जिले में 121 विद्यार्थी वैद्य की शिक्षा ले रहे थे और अन्य विद्यालयों में इनके बराबर ही 61 बच्चे डोम और 61 बच्चे ही चाण्डालों के शिक्षा ग्रहण करते थे। 
 July 1828 में  Bombay presidency, वहां की शिक्षा के सम्बन्ध में एक रिपोर्ट मांगी ,जिसमे मद्रास की तरह बहुत विस्तृत ब्यौरा नहीं था। उस रिपोर्ट के अनुसार  बम्बई के  25 विद्यालय में और गांव में 1680 विद्यालयों में 1315  अध्यापक एवं 35153 विद्यार्थी पढ़ते थे। 
तत्कालीन पंजाब की रिपोर्ट  DR g w Leitner  ने 1850 तथा 1880 की इस प्रकार दी ---- 1850 में पंजाब में 3,30,000 एवं 1880 में 1,90,000 विद्यार्थी गांवों और शहरों के विद्यालयों तथा कॉलेज में पढ़ते थे।( यहाँ पर गौर करें अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के लगते ही विद्यार्थियों की संख्या आधी रह गयी) । ये कॉलेज सिख ,हिन्दू एवं मुसलमान चलाया करते थे, तथा गाँव वाले यहाँ पढने वालों का भरण पोषण करते थे। न सिर्फ पंजाब में बल्कि पूरे भारत में उस समय गांव वाले या ज़मींदार अथवा राजा अध्यापकों के खर्चे वहन किया करते थे, तथा किसी भी धर्म एवं जाति का बालक /बालिका शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्वतंत्र था।  

इससे पहले इस विषय पर आगे कुछ लिखूं एक तथ्य यहाँ जान लेना बेहद जरूरी है ,कि भारतीय शिक्षा प्रणाली से प्रेरित इंग्लैंड ने भारतीय शिक्षाव्यवस्था को वहां पर  लागू किया जिसका नतीजा यह था की वहां 1792 में 3362 विद्यालय हुआ करते थे जिनमे कि 40000 विद्यार्थी बाइबल पढ़ना सीखा करते थे। जो कि 1851 तक आते आते 46114 विद्यालय हो गए छात्रों की संख्या 21,44,377 हो गयी।    
इसी समय 1834 में थॉमस बैबिंगटन मैकॉले भारत आया और जब उसने यहाँ की शिक्षा पद्धति और प्रणाली देखी तो यही कहा कि यदि भारत पर दीर्घकाल तक राज करना है तो इसकी रीढ़ की हड्डी जो इसकी शिक्षा व्यवस्था एवं संस्कार हैं उन्हें तोड़ना होगा। 
उसने न सिर्फ वो अंग्रेजी की शिक्षा प्रणाली भारत में लगायी ,जिसमे सब पाश्चात्य अच्छा एवं श्रेष्ठ बताया गया बल्कि भारतियों के दिल में संस्कृति और संस्कारों के प्रति हीन भावना भी भर दी, और विद्यार्थियों से शुल्क वसूल कर के भारतीय विद्यालयों की जड़ भी खोदनी शुरू कर दी। इसी सन्दर्भ में 1931 में 
1802  के आस पास  Alexander Walker , on page 246 of "Note on Indian Education system" में लिखते हैं की भारत में बच्चों को बिना हिंसा के बहुत ही सरल तरीके से पढ़ाया जाता है। यह पद्धति ब्राह्मणों से ग्रहण की गयी है और पूरे यूरोप में लगायी गयी है। हर सभ्य देश में यही शिक्षा की नींव है। 

परन्तु ……  "james Mill"  हिन्दुओं और भारत के गौरवमय इतिहास का जोरदार खंडन करते हुए तीन अंकों में "History of British India" लिखी जो की 1817 में प्रकाशित हुई  और उस समय से फिर भारत का जो भी हाल के वर्षों तक भारत का इतिहास लिखा गया इसे ही आधार मान कर लिखा गया और पढ़ाया गया इसे ही आधार और अंतिम लफ्ज़ मान कर लिखा गया। 
वर्णव्यवस्था में कट्टरपन की दीवार मुगलों ने खड़ी करदी और इसमें जहर के बीज अँगरेज़ बो गए। 
इस शिक्षा प्रणाली और इतिहास ने जो विभिन्न वर्णो में जहर के बीज बाये न सिर्फ आज का भारतीय समाज उसे काट रहा है बल्कि आरक्षण के नशे की लत लगा कर जो एक समय का सबसे शिक्षित समाज था उसे उस गड्ढे में धकेल दिया जो की नीचे दिए गए 2011 की जनगणना के आंकड़ों से साफ़ नज़र कि आज से 190 वर्ष पहले भी अनुसूचित जातियां एवं जनजातियां 65% साक्षरता पर खड़ी थीं आज भी वहीँ खड़ी हैं।  इसी कड़ी में  ---Speaking before a select audience at Chatham House, London, on October 20, 1931, Mahatma Gandhi had said: “I say without fear of my figures being successfully challenged that India today is more illiterate than it was before a fifty or hundred years ago, and so is Burma, because the British administrators when they came to India, instead of taking hold of things as they were, began to root them out. They scratched the soil and began to look at the root and left the root like that and the beautiful tree perished.”
( संक्षेप में गांधी जी के वक्तव्य का हिंदी सार यह है कि 1931 से 50-100 बरस पहले भारत ज्यादा पढ़ा लिखा था और अंग्रेज़ों ने भारतीय शिक्षा प्रणाली रुपी सुन्दर पेड़ की जड़ खोद कर उसे मार दिया)

( उपरोक्त लेख Sir Daulat Ram एवं  Sir Philip Hartog के बीच, महात्मा गांधी द्वारा दिए गए उक्त वक्तवय के बाद हुई चर्चा का सारांश हैं)  
विस्तृत जानकारी के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करे ---
इसके और क्या दुष्परिणाम हुए बहुत जल्दी आपके सामने रखने का प्रयास करूंगा ,हो सकता है आज के हालत देख कर आप उनसे सहमत होंगे  ???????

क्रमशः ------ 

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

Indian Nuclear and Defence Scientists are Eliminated One by one

आज मैं उन्हें नमन नहीं करूँगा जिन्होंने व्यक्तिगत अनुभूतियों की वजह से देश को संतरे की फांकों में बाँट दिया है।  आज मेरा नमन है उनको जिन्होंने देश के लिए जान दी और गुमनामी के अंधेरों में खो गए। क्या ये शहीदों की श्रेणी में नहीं आते ????

वर्ष 1966 में होमी जहांगीर भाभा, बहरत के पहले आणविक वैज्ञानिक ने घोषणा की कि  भारत कुछ समय में आणविक बम्ब बना लेगा। उनकी इस घोषणा के बाद ऐसा बतया जाता है की उनका विमान Swiss Alps near Mt.Blanc के पास दुर्घटना ग्रस्त हो गया,परन्तु उस विमान का मलबा आज तक नहीं मिला।    
7 अक्टूबर 2013 को पेंडुरुथि , विशाखापत्तनम के रे नज़दीक रेलवे की पटरियों पर K. K Josh और Abhish Shivam के शव बरामद हुए।  मारने वाले ने इन्हे जहर दे कर पटरियों पर डाल दिया था की जब कोई गाड़ी इनके ऊपर से निकल जाएगी तो यह आत्महत्या का मामला नज़र आएगा। परन्तु किसी ने गाड़ी निकलने से पहले ही शव देख लिए और शव गाड़ी के आने से पहले ही पटरियों से हटा दिए गए। 
क्या आप जानते हैं हैं ,कौन थे यह दोनों ???? ये दोनों भारत की Nuclear Powered पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत के इंजीनियर थे। 
23 फरवरी 2010 को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में कार्यरत वैज्ञानिक अपने फ्लैट में मृत पाये गए , बहुत हील हुज्जत के बाद मुंबई पुलिस ने आत्महत्या की जगह हत्या का केस दर्ज किया। परन्तु जैसा की होता है आज तक हत्यारों का पता नहीं चला। 
http://www.vice.com/read/why-are-indian-authorities-ignoring-the-deaths-of-nuclear-scientists

जून 2009 में आणविक वैज्ञानिक लोकनाथन महालिंगम का बिना किसी सुसाइड नोट के मृत शरीर मिलता है ,  मीडिया ने आश्चर्यजनक तरीके से इस खबर को छापा और यह भी छापा की कैसे भारतीय सुरक्षा एजेंसी ने इसे आत्महत्या का मामला बता कर इससे पल्ला झड़ लिया।
इस घटना से पांच वर्ष पहले उन्ही जंगलों से जहाँ पर महालिंगम का शव बरामद हुआ , Nuclear Power Corporation के एक वैज्ञानिक का अपहरण करने की शसस्त्र कोशिश की गयी थी लेकिन वो बच निकला। लेकिन इसी Nuclear Power Corporation के दूसरे वैज्ञानिक रवि मूल इतने भाग्यशाली नहीं थे , जिनकी कुछ सप्ताह बाद हत्या  गयी। 
इस घटना के के कुछ ही वर्षों पश्च्चात Uma Rao की संदेहास्पद मृत्यु होती है जिसे आत्महत्या का नाम दे कर पल्लू झड़ लिया जाता है। 

30 दिसंबर 2009 को Bhabha atomic Research Centre की प्रयोगशाला में दो नौजवान वैज्ञानिक उमंग सिंह एवं प्रथा प्रीतम बाग आग से झुलसने के कारण मारे गए जब की बाद की जांच में पाया गया कि जिस प्रयोगशाला में वे कार्य कर रहे थे वहां कोई ज्वलनशील पदार्थ था ही नहीं।  आज तक किसी को आग के इन कारणों का पता नहीं चला। 

2008 के आस पास जब अमरीका के बिल क्लिंटन ने भारत को राकेट लांच करने वाली क्रायोजेनिक तकनीक देने से मना कर दिया  तो रूस ने गोपनीय तरीके से यह तकनीक भारतीय वैज्ञानिकों को दी, लेकिन CIA को पता चल गया और इस तकनीक की जानकारी से सम्बंधित वैज्ञानिक को केरल पुलिस ने दो मालदीव की महिलाओं से सम्बन्ध रखने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया, और जेल भेज दिया। जांच हुई परन्तु आरोप निराधार निकले ,लेकिन इस बात पर कोई मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं है कि उसी वैज्ञानिक को गिरफ्तार करने के लिए आदेश कहाँ से आया था। किसे फायदा होता उसकी गिरफ्तारी से ???
अगस्त 2013 में आईएनएस सिंधुरक्षक , में विस्फोट होता है और यह पनडुब्बी कुछ इंजीनिरियों के साथ डूब जाती है , बस  बताया  जाता है कि इंजन रूम में विस्फोट हुआ था। कैसे और क्यों ??? जांच चल ही रही होगी।  

2009 से 2013 Department of Atomic Energy  के दसियों वैज्ञानिकों की रहस्य्मय परिस्थितियों में मौत होती है ,लेकिन किसी की जांच विशेषज्ञ जांच एजेंसी को नहीं दी जाती। 

क्यों होतीं हैं इन वैज्ञानिकों की मौतें / हत्याएँ ??? किसी लाभ होगा इससे , अमरीका को ??? चीन को ??? या पाकिस्तान को ??? किसी को भी हो, लेकिन इन वैज्ञानिकों की रक्षा न कर पाने वालीं सरकारें , इन मौतों की विशेषज्ञ जांच एंजेंसियों द्वारा न करवा कर पिछली सरकारों ने तो प्रत्यक्ष रूप से किसी का भी लाभ किया लेकिन इस देश का वो नुक्सान किया है जिसकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं है। 
इसी प्रकार की दो हत्याएं ईरान के आणविक वैज्ञानिकों की हुईं , तो वहां की सरकार ने आणविक वैज्ञानिकों की सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किये और उन मौतों पर पूरे विश्व का मीडिया चिल्लाया। भारत में विगत सरकारों ने क्या किया ??? 
http://www.sunday-guardian.com/news/pmo-unconcerned-about-scientist-deaths

और PRESSTITUTES ................. . इनके बारे में तो जितना कहा जाये कम ही है। 
   

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

Presstitude ...... !!!!!!!

Presstitude ...... !!!!!!!

18  जनवरी 2015 को सीरिया में घुस कर इजराइल की वायुसेना ने 7 आतंकवादी संगठनो के कमांडरों और ईरान के एक लेफ्टिनेंट जनरल को मार दिया, उस देश की प्रेस ने इस घटना का ज़िक्र भी नहीं किया। 
10 मार्च 2015 को अमरीका के CNN न्यूज़ चैनल के येरूसलम और तेल अवीव में सारे कार्यालयों पर इसलिए बुलडोज़र चलवा दिए, क्योंकि CNN लगातार इजराइल के विरुद्ध एक पक्षीय ख़बरों का प्रसारण करता था। बाहर के देशो का मीडिया तो ज़रूर चिल्लाया पर वहां के मीडिया ने इसके खिलाफ एक आवाज़ नहीं उठाई। हाँ Presstitude, शब्द पर भारत के अधिकांश मीडिया में ऐसे मिर्चें लगीं जैसे तेल में मिला कर मिर्चें उनके  ……में डाल दी गयीं हों।भाई काणे को काणा ( एक आँख वाला) कहेंगे तो उसे ही बुरा लगेगा दोनों आँखों वाले को नहीं। मैंने इजराइल का ही नाम क्यों लिया ???? जानिए जरा !!!!

जो इतिहास भारत का है पूरा अक्षरश वही इतिहास इजराइल का भी है, भारत 1000 वर्ष तक गुलाम रहा , तो इजराइल भी रहा। यहाँ हिन्दू मारे गए, गुलाम बनाये गए वहां यहूदी मारे गए और गुलाम बनाये गए। 1947 में भारत आज़ाद  हुआ 1948 में इजराइल आज़ाद हुआ। इजराइल का कुल क्षेत्रफल 20770 sqkm है जो की दिल्ली और एनसीआर के 45887 sqkm के आधे से भी कम है।
भारत ने विश्व को ,सबसे प्राचीनतम हिन्दू धर्म के इलावा बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म दिया तो इजराइल ने विश्व को दूसरा प्राचीनतम यहूदी धर्म ,ईसाई धर्म ,बहाई धर्म दिया और इस्लाम ने भी इसके पड़ोस में ही जन्म लिया। ईसाई भारत में भी 2 % हैं और इजराइल में भी 2 % हैं। 
 भारत की ज़मीन की सीमायें 7 देशों से जुडी हैं और दो देशों से समुद्र के द्वारा जुडी है ,इजराइल 5 मुस्लिम देशों के साथ ज़मीनी सीमा साझा करता है वैसे 21 मुस्लिम देशों का संगठन उसके खिलाफ कार्यवाही में एक साथ होता हैं। 
आज़ादी के पश्चात तमाम हिन्दू शरणार्थी पाकिस्तान से भारत आये और इजराइल में आज़ादी के बाद पूरी दुनिया से शरणार्थियों ने इजराइल में शरण ली । 
1940 के दशक में हिन्दुओं का भी बहुत खून खराबा हुआ (खास तौर पर नौआखाली और विभाजन के दौरान)और यहूदियों का भी ( नाज़ी कैम्पों में )। 
भारत के विभाजन के लिए अनुमति देने वाला गांधी भी मारा गया और फिलिस्तीन को ज़मीन देने के लिए तैयार होने वाला Yitzhak Rabin भी गोलियों का शिकार हुआ। 
आज़ादी के एकदम बाद पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया ,तो उधर आज़ादी के मात्र 6 दिन बाद ही 21 मुस्लिम देशों ने मिल कर इजराइल पर हमला किया। 
1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया उधर 1967 में मुस्लिम देशों ने मिल कर इजराइल पर हमला किया। इस युद्ध के एक वर्ष के पश्चात भारत ने पहली महिला प्रधानमंत्री को चुना और उधर युद्ध के एक लगभग एक वर्ष के पश्चात इजराइल ने गोल्डा मायर के रूप में पहली महिला प्रधानमंत्री चुनी। 
इधर पाकिस्तान लगातार सीमा और देश के अन्दर आतंकवादी गतिविधियाँ चलता है और उधर फिलिस्तीन लगातार हरकतें करता है। 
भारत के खिलाफ पाकिस्तान लगातार षड्यंत्र करता है और उधर दुनिया भर के 160 करोड़ मुसलमान कहते हैं की यदि सब मुसलमान मिलकर एक एक बाल्टी पानी इजराइल पर डाल दें तो इजराइल दुनिया के नक़्शे से धुल जायेगा। सही कहते है , यदि एक बाल्टी 20 लीटर की मान ली जाये तो 3200 करोड़ लीटर पानी भारत के सबसे बड़े डैम भाखरा नंगल से कई सौ गुना ज्यादा पानी होता है, जो की इजराइल जैसे 20-25 देश दुनिया के नक़्शे से धो सकता है । पर वे ऐसा कर नहीं पाते। पता है क्यों ????

क्योंकि न तो वे अपना दर्द भरा इतिहास भूले , न उन्होंने वो इतिहास अपने बच्चों को इस डर से पढ़ाना बंद किया कि मुस्लिम नाराज़ हो जायेंगे और सबसे अहम बात है की उनमे स्वाभिमान है और वे अपने देश, धर्म ,संस्किृति और सभ्यता को हीन भावना नहीं गर्व की नज़र से देखते हैं। 
 भारत और इजराइल के नेताओं  जनता और मीडिया की सोच में बस इतना सा फर्क है की उसे अपने धर्म और संस्कृति पर गर्व है ,और सिर्फ यहूदी ही नहीं ,हिन्दू कमीनस्तों ( कम्युनिस्ट्स) को छोड़ कर हर धर्मपरायण व्यक्ति अपने धर्मऔर संस्कृति पर गर्व करता है। क्योंकि उनमे वो स्वाभिमान है जो हिन्दुओं में मार दिया गया है। भारतीय सन्दर्भ में धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा अब वृहद मानसिकता का परिचायक नहीं बल्कि अल्पसंख्यंकों के तुष्टिकरण के कटघरे में खड़ी है, क्योंकि उपरोक्त लोग वो जाहिल हैं, जो इतिहास से सबक न लेकर उसे कहीं अधिक कीमत चुका कर दोहराने में यकीं रखते हैं । जहाँ धार्मिक असहिषुणता के नाम पर यहूदी सर उठा कर जीते हैं वहीँ वृहद मानसिकता का परिचय कश्मीरी हिन्दुओं और यज़ीदियों ने दिया और उसकी कीमत चुका रहे है।  उसी लीक पर न सिर्फ तुम लोग चल रहे हो बल्कि पूरे समाज को वध के रस्ते पर धकेल रहे हो। 
हमारे भारत में ही बहुत से लोग इजराइल का विरोध इसलिए करते है क्योंकि उनका मानना है की इजराइल पूरी दुनिया पर किसी "इल्लुमिनाति" सोच, दूरदर्शी योजना या इल्लुमिनाति सम्प्रदाय के द्वारा राज करना चाहता है। बिलकुल हो सकता है, लेकिन इसमें भी हमारे लिए शर्म की ही बात है की वो 82 लाख 96 हज़ार लोग दुनिया पर राज करने  का ख्वाब देखते हैं और यहाँ पर 82 करोड़ हिन्दू अपने ही देश पर राज करने में सक्षम नहीं हैं।  

इसीलिए जब बात अपने धर्म और स्वाभिमान की आती है तो इजराइल पूरी दुनिया को जूते की नोक पर रखता है, और इजराइल में विदेशी पैसों से चलने वाले मीडिया नाम के कोठों पर डंके की चोट पर बुलडोज़र चलवा देता है। 




शनिवार, 4 अप्रैल 2015

महात्मा बुद्ध का जन्म किस वर्ष में हुआ था ??? भारत का राष्ट्र गान किसने लिखा था ????

महात्मा बुद्ध का जन्म किस वर्ष में हुआ था ??? भारत का राष्ट्र गान किसने लिखा था ???? 
 आप सभी के मन में यह विचार आ रहा था की मैंने यह सवाल पूछे क्यों और क्यों इन प्रश्नो को शेयर करे के लिए कहा था। मुझे आपके ज्ञान की परीक्षा नहीं लेनी थी , लेकिन शेयर करने के लिए इसलिए कहा था ,क्योंकि मेरे कुछ युवा मित्र हिन्दुओं को एक करने का अथक प्रयास कर रहे है ,लेकिन मुझे सख्त अफ़सोस के साथ कहना पढ़ रहा है, "मानसिक रूप से " शूद्र मिल कर उनकी पोस्ट पर बिना इतिहास को जाने न सिर्फ उनके प्रयासों को विफल करते है, बल्कि उस इतिहास में ज्यादा यकीं रखते है जो विदेश से अर्थशास्त्र में पीएचडी किये हुए आंबेडकर जी और अंग्रेज़ों ने लिखा। 
इन दो प्रश्नो के जो भी उत्तर आये उससे मैं आपको यह समझने की चेष्टा कर रहा हूँ ,कि प्राचीन इतिहास के बारे में जो भी उत्तर आये, उससे जब हम बुद्ध धर्म के प्रवर्तक , उस धर्म के जो कि, सारनाथ में शुरू हो कर तिब्बत, चीन, कम्बोडिया, कोरिया, जापान, श्रीलंका,अफगानिस्तान और बर्मा तक फैला जब इतिहासकार उसके प्रवर्तक की सही जन्म तिथि और जन्म स्थान बताने में असफल है तो वे उस समय के जीवन और समाज पर कैसे टिप्पणियाँ कर के और लेख लिख कर समाज में विद्वेष फैला सकते है ????

जी !!!! जितना भी इतिहास पढ़ें, शोध पत्र पढ़ें कोई आधिकारिक रूप से राजपुत्र के जन्म का वर्ष नहीं बता पा रहा,कि किस वर्ष में गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था ??? कहीं 448 BCE, 450 BCE -490 BCE, 563 BCE, 566 BCE, 622BCE, 623 BCE,624 BCE, और एक जगह तो   1880-1887 BCE.का भी ज़िक्र है। किस पर यकीन किया जाये ??? यह तो यह यदि कुछ और पढ़ने की कोशिश करेंगे तो श्रीलंका वाले यह भी दावा करते हुए मिल जायेंगे की बुद्ध ने श्रीलंका में जन्म लिया था। यहाँ तक कि उनकी माता महामाया थीं या गौतमी थीं इस पर भी कई मत हैं।
मेगस्थनीज़ ,से लेकर फाह्यान( 399 AD -412 AD ) और हुएन त्सांग (630 AD )  के किसी अभिलेख में कट्टर वर्णव्यवस्था का ज़िक्र नहीं है, यह में अपनी पूर्व की एक पोस्ट में लिख चूका हूँ। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय की कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र ( 350 BCE- 283 BCE ) उस समय का कानून और संविधान होता था। विशाखादत द्वारा रचित "मुद्राराक्षस " अर्थशाश्त्र से ही प्रेरित थी जो की हर्षवर्धन ( 590-647 AD)  के समय तक का संविधान था में कहीं कट्टर वर्णव्यवस्था का ज़िक्र नहीं मिलता। तो फिर यह इतिहास किसने रच दिया कि 3000 साल पहले शूद्रों के गले में घंटियां बढ़ी जाती थीं या उन्हें आवाज़ करके लकड़ी खटखटाते हुए नगर में प्रवेश करना पड़ता था ???

सबसे अहम बात यह है कि यह इतिहास लिखा किसने ??? भारत के सबसे बुजुर्ग इतिहासकार "राजेन्द्र लाल मित्रा 1822 में पैदा हुए थे। 1880 के दशक तथा 1900 दशक में पहली बार वैज्ञानिक विधि से इतिहास का अवलोकन किया जाये इस पर चर्चा हुई थी। 1899 में रबिन्द्र नाथ टैगोर पहली बार "भारती " नाम की पत्रिका में "अक्षय कुमार मित्रा" नाम के नवोदित इतिहासकार के Oitihashik chitra (Historical Vignettes), नाम की शोध पत्रिका की प्रशंसा करते हुए एक लेख लिखा था " Enthusiasm for History" । 1919 बंगाल यूनिवर्सिटी पहली बार आधुनिक एवं मध्यकालीन इतिहास का परास्नातक पाठयक्रम शुरू किया गया ,1920 से 1930 तक के काल खंड में अन्य विश्वविद्यालयों में इतिहास के विभाग खोले गए तथा स्नातक स्तर पर इतिहास पढने की शुरुआत की गयी। तो फिर प्राचीन भारत में वर्ण व्यवस्था पर आधिकारिक इतिहास किसने लिखा और किस आधार पर लिखा ??????
http://publicculture.org/…/the-public-life-of-history-an-ar…

कवि ,साहित्यकार एवं लेखक अपने समय  के समाज का आइना होते हैं।  प्राचीन भारत के इतिहासकारों को कालिदास ,बाणभट ,भावभूति, भाष्य,शूद्रक,अश्वघोष ,शशांक की रचनाओं में उस समय के सामाजिक स्थिति को चित्रण करने वाला यदि कुछ नहीं मिला तो भी वे कल्हड़ की " राजतरंगनी" को कैसे अनदेखा कर सकते हैं जिसमें महाभारत से लेकर 1009 तक का कालक्रमबद्ध इतिहास लिखा है।
इस देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि जिस "कौटिल्य" के अर्थशास्त्र का आज के तमाम IIM ,मैनेजमेंट गुरु, और विदेशों में सन्दर्भ लिया लिया जाता है, जो की प्रबन्धन एवं प्रशासन की दृष्टि से एक अद्वित्य निबंध है और पूरी दुनिया के लिए एक नज़ीर है, यहाँ के "मूल निवासी" ही उसकी प्रमाणिकता पर प्रश्नचिन्ह लगा कर मानने से इंकार करते है।     

वर्तमान में पढ़ाया जाने वाला इतिहास लिखा अंग्रेज़ों ने और वामपंथियों ने, और इसी इतिहास को पढ़ कर ज्योतिबा फुले और अम्बेडकर ने भावावेश में इतिहास और त्थयों को कैसे तोड़ा मरोड़ा और एक नया इतिहास रच दिया जिसके चलते आज के अम्बेडकरवादी अन्य लोगों को विदेशी और खुद को भारत का मूल नागरिक बताते हैं।यदि अंग्रेज़ों द्वारा लिखित इतिहास पढ़ना है तो अम्बेदकरवादी " Aryans, Jews, Brahmins :Theorising Authority Through Myths Of Identity " By Dorothy M.Figueira, published by Navayana,अवश्य पढ़ लें तथा जो बहुत से अम्बेडकरवादी कमेंट बॉक्स में हिंदी में लिखने की बात करते हैं, उनके लिए यह लिंक पढ़ना मुश्किल होगा, अतः उनसे निवेदन है की किसी से पढ़वा कर अपना भ्रम ज़रूर दूर कर लें अन्यथा , आप के दिल में अन्य जातियों के लिए अम्बेडकर जी द्वारा भरा गया ज़हर हमेशा भरा रहेगा जो की भविष्य में देश के लिए अहितकर होगा या मात्र वोट बैंक की राजनीती के द्वारा सत्तासीन रहने के लिए हिन्दुओं को इसी तरह से विभाजित रखा जायेगा ????? 
http://epaper.indianexpress.com/…/Indian-Exp…/13-March-2015…


ब्राह्मणों ने आंबेडकर जी के जीवन को संवारने में क्या योगदान दिया उसे तो कूड़े के ढेर में डाल दीजिये,
लेकिन हिन्दू धर्म और वर्णव्यवस्था को गलियां देने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए की महाराजा बड़ौदा ने ही उन्हें पढ़ने के लिए विदेश भेजा था और तीन साल का उनके विदेश में खर्च को वहन किया था। 
हम मानते हैं कि अम्बेडकर जी के समय में समाज में जाति व्यवस्था कुरूपतम स्थिति में थी ,लेकिन जो नवबौद्ध इसके लिए पूरे हिन्दू  धर्म को ही निकृष्ट घोषित कर देते हैं, वे आज उस वज्रयान के अनुयायी हैं जिसने एक समय में अश्लीलता की सारी सीमायें तोड़ दी थीं जबकि वे उसका मूल सिद्धांत "व्यवहारिक बुद्धि एवं वास्तविकता से सामंजस्य तथा प्रबुद्धता" को प्राप्त करना है,को भूल जाते हैं। हाँ भारत की वर्णव्यवस्था में कुरूपता आई थी और उसकी जड़ें बहुत गहरी हो गयीं थीं। कारण अन्य पोस्ट में बताये जा चुके हैं। लेकिन जब हम गलत इतिहास पढ़ाएंगे और जब तक उसे तमाम सरकारी योजनाओं से सिंचित करते रहेंगे तब तक यह समाज में यह जहर की बेल फलती फूलती रहेगी। 

दूसरा प्रश्न था "भारत का राष्ट्रगान किसने लिखा " ????? सब अपने अपने जवाब देख लें सभी ने "बहुत कुछ लिखने के बाद रबीन्द्रनाथ "टैगोर" लिखा है। इस उत्तर से में आपको सिर्फ इतना बताना चाह रहा हूँ की जैसा अंग्रेज़ों ने बोला और लिखा वैसा आपने सुना और याद किया। जब हमें अपने राष्ट्र गान के रचियता का नाम ( जन्म 7 मई 1861 -मृत्यु 7 अगस्त 1941 ) भारत के प्रथम नोबल पुरस्कार के जीतने वाले का सही नाम भी नहीं याद रख सकते तो 1500 वर्ष पुराने इतिहास का क्या खाक विश्लेषण करेंगे। 

उपरोक्त प्रश्न का सबने वही उत्तर दिया जो अंग्रेज़ लिख गए थे ,कह गए थे, बार बार दोहरा कर आपके दिलोदिमाग में बिठा गए और जो आज आपको पढ़ाया जा रहा है। मात्र एक मित्र "आर्य प्रशांत "ने इस प्रश्न का सही उत्तर दिया " रबीन्द्रनाथ ठाकुर "