किसी दुश्मन को बर्बाद करना हो तो उसके बेटे को नशेड़ी बना दो ----- 26/02/15 की पोस्ट
पिछली पोस्ट के द्वारा में यह समझाने का पर्यत्न किया था कि आरक्षण व्यवस्था और मैकॉले ने कैसे वर्ग विशेष में संभावित क्षमताओं को पूर्ण रूप से विकसित होने से रोका। बात सिर्फ एक वर्ग विशेष की नहीं है , जो इस शिक्षा पद्धति से प्रभावित हुआ है। आज मुझ और अपने जैसे कुछ कूप मण्डूकों को छोड़ दें तो पूरा भारत धर्मनिरपेक्षता की उस लहर में गोते लगा कर ओत प्रोत हो रहा है जिसके लिए हम जैसे हिंदुत्व की बात करने वाले लोग सम्रदायिकता की श्रेणी में खड़े किये जाते हैं।
पिछली पोस्ट का एक अहम वाक्य यह था कि -----"गांधी जी के वक्तव्य का हिंदी सार यह है कि 1931 से 50-100 बरस पहले भारत ज्यादा पढ़ा लिखा था और अंग्रेज़ों ने भारतीय शिक्षा प्रणाली रुपी सुन्दर पेड़ की जड़ खोद कर उसे मार दिया। "
इसी वक्तव्य के बाद Sir Daulat Ram और Sir Philip Hartog में इंग्लैंड में बहस हुई ,जिसमे सर दौलत राम ने माडर्न ,बंगाल, मुंबई और पंजाब से एकतरित आंकड़ों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया था की भारतीय शिक्षा प्रणाली आंग्ल शिक्षा प्रणाली से बेहतर थी। जो बातें उन्होंने त्थयों के आधार पर सिद्ध कीं वे निम्न हैं ----
1) विद्यालयों एवं कॉलेजों की संख्या ,जनसँख्या के अनुपात में थी।
2) इन विद्यालयों में तब पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या।
3) विद्यार्थियों द्वारा विद्यालय में बिताई जाने वाली अवधि ।
4) विद्यार्थियों का परिश्रम एवं उच्च बौद्धिक स्तर।
5) विद्यार्थियों को विद्यालय एवं कॉलेज की पढाई पूरी करने के लिए आर्थिक सहायता।
6) शूद्रों एवं अन्य जातियों के बच्चों का सवर्णो की तुलना में उच्च प्रतिशत में शिक्षा ग्रहण करना।
7) हर स्तर पर विभिन्न विषयों की शिक्षा की व्यवस्था।
नयी अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली ने इस स्वदेशी शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त करके नयी शिक्षा प्रणाली को इस लिए नहीं लगाया गया था की उनकी पद्धति उच्च श्रेणी की थी बल्कि वे इंग्लैंड में राज करने वाली राजस्व केंद्रित पद्धति के तहत "Gentleman " बनाना चाहते थे जिन्होंने आगे चल कर निम्न जातियों और सामूहिक असंतोष को नज़रअंदाज़ किया ( आमिर खान की "लगान", उसी का एक नमूना थी) । मैकॉले की शिक्षा पद्धति ने वही काम किया जो वह चाहता था, भारतीय संस्कृति और विद्वानों के उसने जड़ खोद दी और अंग्रेजी विचारों और संस्कृति को ही सभ्य समझने वाली नयी पीढ़ियां तैयार होनी शुरू हो गयीं। इस नयी पीढ़ी को Macauley - ism से यदि ग्रसित कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
यह Macauley - ism , Islamism की तरह अपने विरोधियों का सर एक झटके में कलम नहीं करता और न ही यह Christianism की तरह बहुत महीन और शरारतपूर्ण तरीके से समाज को बाधित करता है। इसका कोई एक धर्मशास्त्र नहीं है ,न ही इसका कोई पैगम्बर है और न ही यह कोई आचारसंहिता लागू करता है।
Macauley -Ism एक बिना दिखे बहने वाली बहरूपिया हवा की तरह है जो देशव्यापी मानसिकता पर बहुत धीरे धीरे जहर की तरह व्यापकता से असर करती है। इस जहर के असर से अच्छे अच्छे हिन्दू विद्वानों की बुद्धि को लकवा मार जाता है। इसके पांच खास लक्षण क्या हैं -------
1) हिन्दू इतिहास, संस्कृति , आध्यात्मिकता और संस्कारों की आलोचना करना, और तब तक करना जब तक पश्चिमी देश उसे मान्यता न दे दें।
2) पश्चिमी सभ्यता, संस्कारों और विचारों की पूजा की हद तक प्रशंसा करना जब तक पश्चिमी देश खुद उसका खंडन न कर दें। ( 70 के दशक में एक हिप्पी कल्चर आया था,बहुत प्रचिलित हुआ था भारत में भी। कहाँ गया ??? जिन्हे इसके बारे में नहीं मालूम वे ,देव आनन्द की "हरे रामा हरे कृष्णा " देख लें )
3) बौद्धिकता का प्रदर्शन करते हुए प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कारों और व्यवस्था का पश्चिमी देशों की उस समय स्थितियों से तुलना न करके 19 वीं या 20वीं सदी के विचारों से तुलना करना।
4) पश्चिमी आदर्शों और स्वपनलोक को प्रतिबद्धतापूर्ण सकारात्मक दृस्टि से देखना और वही नज़रें जब हिन्दू संस्कृति और समाज की तरफ मुड़ती हैं तो वे यह भूल जाती हैं कि हिन्दू समाज को अभी 70 वर्ष भी नहीं हुए हैं विदेशी आक्रन्ताओं के पंजों से मुक्त हुए।
5) जब भी हिन्दू इतिहास, धर्म, संस्कृति, समाज और संस्कारों की व्याख्या या मूल्यांकन करना होता है तो उसे पश्चिमी नज़रिये से किया जाता है , क्योंकि वही उन्हें वैज्ञानिक लगता है, जबकि इन्हे बनाने वालों ने इनके मूल्यांकन और व्याख्या करने के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध करा रहे है। यदि इन साधनो के तहत व्याख्या करने की बात करी जाये तो नवज्ञानी यह कह कर हाथ खड़े कर देते हैं कि ये साधन वैज्ञानिक नहीं हैं।
इस्लाम और ईसाइयत के बारे में जो आपकी धरना है वही मेरी भी है , जिन्हे प्रचार के माध्यमों से शांतिप्रिय घोषित करने के लिए हर तरीके के प्रचार माध्यमों का सहारा लिया जाता है , लेकिन इनकी सहिषुणता और कार्यप्रणाली जगजाहिर है। परन्तु एक पारम्परिक हिन्दू इनके अनुयायियों की तरह कट्टर नहीं है , और बात बात पर खून खराबा नहीं करने लगता चाहें उसके धर्म या मायताओं की कितनी भी धज्जियाँ उड़ा दी जाएँ। वो इन मज़हबों के मानने वालों के साथ शांति से रहना छठा है, उनके धर्मो, धर्मग्रंथों और उनकी मान्यताओं का आदर करता है। वो किसी को हिन्दू धर्म का आलोचनात्मक विश्लेषण करने से नहीं रोकता और न ही उस हिन्दू के खिलाफ कोई कातिलाना भीड़ इकट्ठी करता है जो उसके विचारों से सहमत नहीं होता। वो उस समय भी अपनी आँख मूँद लेता है जब कोई हिन्दू देवी देवताओं के ऊपर कटाक्ष करता है, कार्टून बनाता है या उनके नग्न चित्र और चलचित्र बनाता है। परन्तु ………
एक परम्परागत हिन्दू हिंसक हो उठता है जब अन्य मज़हब अपनी मर्यादा की सीमायें लाँघ कर उसके एकमात्र देश और धर्म की एकता और अखंडता के लिए खतरा बनने लगते हैं। वो हिंसक हो जाता जब इस्लाम और ईसाइयत धोखाधड़ी से धर्मपरिवर्तन करके उसके धर्म को ठोकरें मारने लगते है। तब वो भी अपने धर्म को जीवित रखने और आत्मरक्षा के अधिकार का उपयोग करता है।
यहाँ पर Macaleyism की खुराक खा कर कर बड़े हुए और उसके व्यसनी हिन्दू यह अस्तित्त्व बचने और आत्मरक्षा का अधिकार "हिन्दुओं" को नहीं देना चाहते। क्या आपको नहीं लगता उनका रवैय्या निम्न प्रकार से होता है ????
1) पहले तो वे हिन्दू समाज ,धर्म और संस्कृति पर कोई खतरा ही मानने से इंकार कर देते हैं। और फिर ऐसे हिन्दुओं को कट्टर ,साम्प्रदायिक ,भय उत्पन्न करने वाला और अंधभक्त करार देते हैं। फिर कहते हैं कि दूसरे मज़हब तो यह इसलिए कर रहे हैं क्योकि सम्रदायिकता की शुरुआत हिन्दुओं ने की थी।
2)फिर वो अल्पसंख्यकों की गरीब, दयनीय, दलित की तसीवर खींचने लगता है कि जब संविधान ने सबको बराबर का दर्ज दिया है तो हिन्दू उसे बराबरी का दर्ज न दे कर उसके साथ अन्याय करते हैं।
3) फिर वो प्रवचन देता है की हिन्दू पाखंडी हैं और यह बहुसंख्यक हिन्दुओं ने जो उनका सब छीन रखा है या यदि ये निचली पायदान पर खड़े हैं तो यह बड़े बही की ज़िम्मेदारी है की उनका उत्थान करे और अगर छोटा भाई कोई गलती कर भी देता है तो उसे बर्दाश्त करे। ( यह सीख उनसे छोटे भाइयों को देते नहीं बनती )
4) इतने पर भी जब हिन्दू नहीं समझता तो वो अपना अमोघ अस्त्र ले कर आता है की पहले हिन्दू अपना घर सही करें ,जिसमे की जातिप्रथा को ख़त्म करना , निचली जातियों के साथ रोटी -बेटी का साथ विशेषतया हरिजनों के साथ वगैरह वगैरह , जबकि ऐसा बोलते समय वो यह भूल जाता है कि सामाजिक सुधारों में समय लगता है और इस समय तो धर्म का अस्तित्त्व ही संकट में पड़ा हुआ है।
5) फिर भी किसी को समझ नहीं आया तो ब्रह्मास्त्र निकला जाता है , और वो वो आध्यात्मिकता का नकाब ओढ़ कर हिन्दुओं को हिन्दुओं की पारम्परिक धार्मिक सहिषुणता का पाठ पढ़ाने लगता है ,उस इस्लाम और ईसाइयत के लिए जो यह नहीं जानते धार्मिक सहिषुणता होता क्या है। इतना करने के बाद वो यह कभी नहीं करता की मुसलामानों और ईसाईयों को हमेशा अपनी बात मनवाने की आदत से बाज आने के लिए समझाए।क्योंकि उसे तहेदिल से मालूम है की जिस दिन वो अल्संख्यंकों को समझने की कोशिश करेगा उसका सर भी उनकी गालियों के निशाने पर होगा। वो अपनी इस धर्मनिरपेक्षता की छवि पर आंच नहीं आने देता जो इस्लाम और ईसाइयत ने उसे हिन्दुओं को गलियां देने के लिए प्रदान कर रखी है।
जब तक मैकॉले प्रद्दत शिक्षा व्यवस्था रहेगी तब तक Macaley -Ism से ग्रसित पीढ़ियां बाहर आती रहेंगी , और हिन्दुओं से उनका आत्मरक्षा का अधिकार, साम्प्रदायिकता की श्रेणी में खड़ा कर के हमेशा छीनती रहेंगी।