नशेड़ी का बाप बर्बाद होता है , नशेड़ी खुद बर्बाद होता है और नशेड़ी के बीवी बच्चे बर्बाद होता है। पूरी की पूरी तीन पीढ़ियां बर्बाद होती है।
भारतीय संविधान और नीति निर्माताओं ने देश और देश की कितनी पीढ़ियों को आरक्षण का नशेड़ी बना कर बर्बाद किया है , इसका आंकलन आप इस बात से लगा सकते हैं , की माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ ,सत्या नाडेला भारत के हैं और नौकरी विदेश में कर कर रहे हैं, 23/04/15 को भारतीय मूल के विवेक मूर्ती को अमरीका ने अपने यहाँ सर्जन जनरल की शपथ दिलवाई। दो बातें यहाँ से स्पष्ट होती हैं, की यही प्रतिभा भारत की तरक्की के लिए भी काम कर सकती थी और दूसरे इन लोगों ने अपनी क़ाबलियत के बल पर वहां के "मूलनिवासियों" के पेट पर लात मार दी।अमरीका ही नहीं पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित पदों से लेकर रेस्टोरेंट में बर्तन धोने तक के काम करने वाले भारतीय वहां के मूलनिवासियों के पेट पर लात मार रहे है, और इसी फेसबुक के माध्यम से मैं एक _____ कांबले को जनता हूँ जो की अमरीका के न्यू जर्सी में एक पाकिस्तानी रेस्टोरेंट में मीट के छिछड़े साफ़ करके वहां के मूलनिवासियों के पेट पर लात मारते हुए फेसबुक पर भारत के सवर्णो को मूलनिवासियों की दुर्गति के लिए गलियां देता है।
अारक्षण या जातिवाद से ग्रसित जो लोग 3000 साल के उस इतिहास का सहारा लेते हैं जिस इतिहास का कोई प्रमाण नहीं है, बस कुछ अंग्रेजों ने और आंबेडकर ने कह दिया वो पत्थर की लकीर हो गया। चलिए यह भी कि मान लिया बहुत ही दयनीय हालत थी शूद्रों की तो यहाँ किसके पुरखों ने वो देसी घी खाया था, जिसकी खुशबू सूंघ कर ये लोग आज भी सवर्णो से नफरत करते हैं ???
क्या कभी पूरे विश्व का प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास के पन्ने पलटने की कोशिश करेंगे ???? किस समय और किस देश में सामंतों ने खेतिहरों का खून नहीं पिया ???? इसी अभिजात्य वर्ग और शोषित वर्ग में जब भी टकराव हुआ तो उस क्रांति ने इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा लिया। चाहें वो फ्रांस की 1789 क्रांति हो , इंग्लैंड की 1688 क्रांति हो ,या क्रांति का दौर 1848 में डेनमार्क , नीदरलैंड, जर्मनी ,पोलैंड, इटली और ऑस्ट्रिया जैसे देशों की क्रांति हो। 1905 की रूस की क्रांति शोषित वर्ग द्वारा "ज़ाऱ" की खून पीने वाली सामंती व्यवस्था ख़त्म करने के लिए हुई थी। दक्षिणी अफ्रीका से लेकर यमन तक के अरब देशों में तुर्की राज चलता था और सामंती व्यवस्था के तहत एक बहुत बड़ा वर्ग शोषित वर्ग था। तुर्की राज का पतन 1812 क्रांति से हुआ, लेकिन सामंती व्यवस्था ख़त्म नहीं हुई, तुर्क गएतो नए खून पीने वाले आ गए। भारत में भी यही सामंती व्यवस्था थी और किसानों का खून पिया जाता था, पर विचारणीय यह है कि जब पूरे विश्व में शोषण के खिलाफ क्रांति हुई, तो फिर देर सवेर भारत में भी होनी चाहिए थी ??? नहीं हुई। क्यों ????
कहीं तो कोई बताये की जिन किसानों का शोषण किया जाता था, वे मात्र दलित या शूद्र हुआ करते थे। क्या सिर्फ दलित ही किसान हुआ करते थे ??? यदि कोई यह कहता है की दलित किसान नहीं होते थे और उनके पास ज़मीने नहीं होती थीं तो फिर सरकार सितम्बर 2012 में इनकी ज़मीन सवर्णो द्वारा खरीदे जाने को प्रतिबंधित नहीं करती। यदि सारे दलित गरीब नहीं थे तो सभी सवर्ण भी चांदी का चम्मच मुंह में ले कर पैदा नहीं होते थे।
बात शुरू हुई थी नशे से और आरक्षण के नशे से। मैंने ऊपर जानबूझ कर 1812 तक के इतिहास का ज़िक्र किया है, क्योंकि आज के पढ़े लिखे शूद्र कहते हैं कि ब्राह्मणों ने उन्हें शिक्षा से वंचित रखा। 21/02/1825 J.Dent Secretary Fort.St.Georgeने एक रिपोर्ट मद्रास में शिक्षा के स्तर के सम्बन्ध में Sir Thomas Munro Governor of Madras presidency को सौंपी जिसका सार निम्न प्रकार से है ----( Following number doesnot include female students, which is around 4300 )
No.of schools Brahmins Vaishya shudra Other castes muslims Total
khsatriya
11575 30211 13459 75943 22925 10644 1,53,182
% of students 20% 9% 50% 15% 6%
शूद्र एवं अन्य जातियां मिला कर 65 % लोग अन्य तीन तथाकथित वर्णो के 29% की तुलना में शिक्षा ग्रहण करते थे। यहाँ पर यह भी रेखांकित करने वाली बात है की मद्रास प्रेसीडेंसी के विभिन्नं जिलों जिनका ब्यौरा ऊपर दिया गया है वहां पर 55 % से लेकर 75% तक अध्यापक शूद्र हुआ करते थे।
इसके 18 वर्ष पश्चात W.Adam ने 1836 -39 की एक रिपोर्ट Governor of Bengal presidency को सौंपी जिसका सार निम्न है ----
बंगाल और बिहार में 1,50,748 गाँव में लगभग 1,00,000 विद्यालय थे। एडम के अनुसार इस जांच की सबसे विस्मृत करने वाली बात यह थी कि इस शिक्षा पद्धति में समाज के हर वर्ग के लोग शिक्षा दिया और लिया करते थे। उसके अनुसार "यह सही है की ज्यादातर अध्यापक कायस्थ ,ब्राह्मण ,सदगोप और अगूरी जाति के थे लेकिन बहुत से अध्यापक अन्य 30 जातियों से थे जिसमे 6 चाण्डाल अध्यापक भी थे। इससे भी ज्यादा चकित करने वाली बात यह थी कि बर्दवान जिले में 121 विद्यार्थी वैद्य की शिक्षा ले रहे थे और अन्य विद्यालयों में इनके बराबर ही 61 बच्चे डोम और 61 बच्चे ही चाण्डालों के शिक्षा ग्रहण करते थे।
July 1828 में Bombay presidency, वहां की शिक्षा के सम्बन्ध में एक रिपोर्ट मांगी ,जिसमे मद्रास की तरह बहुत विस्तृत ब्यौरा नहीं था। उस रिपोर्ट के अनुसार बम्बई के 25 विद्यालय में और गांव में 1680 विद्यालयों में 1315 अध्यापक एवं 35153 विद्यार्थी पढ़ते थे।
तत्कालीन पंजाब की रिपोर्ट DR g w Leitner ने 1850 तथा 1880 की इस प्रकार दी ---- 1850 में पंजाब में 3,30,000 एवं 1880 में 1,90,000 विद्यार्थी गांवों और शहरों के विद्यालयों तथा कॉलेज में पढ़ते थे।( यहाँ पर गौर करें अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के लगते ही विद्यार्थियों की संख्या आधी रह गयी) । ये कॉलेज सिख ,हिन्दू एवं मुसलमान चलाया करते थे, तथा गाँव वाले यहाँ पढने वालों का भरण पोषण करते थे। न सिर्फ पंजाब में बल्कि पूरे भारत में उस समय गांव वाले या ज़मींदार अथवा राजा अध्यापकों के खर्चे वहन किया करते थे, तथा किसी भी धर्म एवं जाति का बालक /बालिका शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्वतंत्र था।
इससे पहले इस विषय पर आगे कुछ लिखूं एक तथ्य यहाँ जान लेना बेहद जरूरी है ,कि भारतीय शिक्षा प्रणाली से प्रेरित इंग्लैंड ने भारतीय शिक्षाव्यवस्था को वहां पर लागू किया जिसका नतीजा यह था की वहां 1792 में 3362 विद्यालय हुआ करते थे जिनमे कि 40000 विद्यार्थी बाइबल पढ़ना सीखा करते थे। जो कि 1851 तक आते आते 46114 विद्यालय हो गए छात्रों की संख्या 21,44,377 हो गयी।
इसी समय 1834 में थॉमस बैबिंगटन मैकॉले भारत आया और जब उसने यहाँ की शिक्षा पद्धति और प्रणाली देखी तो यही कहा कि यदि भारत पर दीर्घकाल तक राज करना है तो इसकी रीढ़ की हड्डी जो इसकी शिक्षा व्यवस्था एवं संस्कार हैं उन्हें तोड़ना होगा।
उसने न सिर्फ वो अंग्रेजी की शिक्षा प्रणाली भारत में लगायी ,जिसमे सब पाश्चात्य अच्छा एवं श्रेष्ठ बताया गया बल्कि भारतियों के दिल में संस्कृति और संस्कारों के प्रति हीन भावना भी भर दी, और विद्यार्थियों से शुल्क वसूल कर के भारतीय विद्यालयों की जड़ भी खोदनी शुरू कर दी। इसी सन्दर्भ में 1931 में
1802 के आस पास Alexander Walker , on page 246 of "Note on Indian Education system" में लिखते हैं की भारत में बच्चों को बिना हिंसा के बहुत ही सरल तरीके से पढ़ाया जाता है। यह पद्धति ब्राह्मणों से ग्रहण की गयी है और पूरे यूरोप में लगायी गयी है। हर सभ्य देश में यही शिक्षा की नींव है।
परन्तु …… "james Mill" हिन्दुओं और भारत के गौरवमय इतिहास का जोरदार खंडन करते हुए तीन अंकों में "History of British India" लिखी जो की 1817 में प्रकाशित हुई और उस समय से फिर भारत का जो भी हाल के वर्षों तक भारत का इतिहास लिखा गया इसे ही आधार मान कर लिखा गया और पढ़ाया गया इसे ही आधार और अंतिम लफ्ज़ मान कर लिखा गया।
वर्णव्यवस्था में कट्टरपन की दीवार मुगलों ने खड़ी करदी और इसमें जहर के बीज अँगरेज़ बो गए।
इस शिक्षा प्रणाली और इतिहास ने जो विभिन्न वर्णो में जहर के बीज बाये न सिर्फ आज का भारतीय समाज उसे काट रहा है बल्कि आरक्षण के नशे की लत लगा कर जो एक समय का सबसे शिक्षित समाज था उसे उस गड्ढे में धकेल दिया जो की नीचे दिए गए 2011 की जनगणना के आंकड़ों से साफ़ नज़र कि आज से 190 वर्ष पहले भी अनुसूचित जातियां एवं जनजातियां 65% साक्षरता पर खड़ी थीं आज भी वहीँ खड़ी हैं। इसी कड़ी में ---Speaking before a select audience at Chatham House, London, on October 20, 1931, Mahatma Gandhi had said: “I say without fear of my figures being successfully challenged that India today is more illiterate than it was before a fifty or hundred years ago, and so is Burma, because the British administrators when they came to India, instead of taking hold of things as they were, began to root them out. They scratched the soil and began to look at the root and left the root like that and the beautiful tree perished.”
( संक्षेप में गांधी जी के वक्तव्य का हिंदी सार यह है कि 1931 से 50-100 बरस पहले भारत ज्यादा पढ़ा लिखा था और अंग्रेज़ों ने भारतीय शिक्षा प्रणाली रुपी सुन्दर पेड़ की जड़ खोद कर उसे मार दिया)
( उपरोक्त लेख Sir Daulat Ram एवं Sir Philip Hartog के बीच, महात्मा गांधी द्वारा दिए गए उक्त वक्तवय के बाद हुई चर्चा का सारांश हैं)
विस्तृत जानकारी के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करे ---
इसके और क्या दुष्परिणाम हुए बहुत जल्दी आपके सामने रखने का प्रयास करूंगा ,हो सकता है आज के हालत देख कर आप उनसे सहमत होंगे ???????
क्रमशः ------
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