शनिवार, 4 अप्रैल 2015

महात्मा बुद्ध का जन्म किस वर्ष में हुआ था ??? भारत का राष्ट्र गान किसने लिखा था ????

महात्मा बुद्ध का जन्म किस वर्ष में हुआ था ??? भारत का राष्ट्र गान किसने लिखा था ???? 
 आप सभी के मन में यह विचार आ रहा था की मैंने यह सवाल पूछे क्यों और क्यों इन प्रश्नो को शेयर करे के लिए कहा था। मुझे आपके ज्ञान की परीक्षा नहीं लेनी थी , लेकिन शेयर करने के लिए इसलिए कहा था ,क्योंकि मेरे कुछ युवा मित्र हिन्दुओं को एक करने का अथक प्रयास कर रहे है ,लेकिन मुझे सख्त अफ़सोस के साथ कहना पढ़ रहा है, "मानसिक रूप से " शूद्र मिल कर उनकी पोस्ट पर बिना इतिहास को जाने न सिर्फ उनके प्रयासों को विफल करते है, बल्कि उस इतिहास में ज्यादा यकीं रखते है जो विदेश से अर्थशास्त्र में पीएचडी किये हुए आंबेडकर जी और अंग्रेज़ों ने लिखा। 
इन दो प्रश्नो के जो भी उत्तर आये उससे मैं आपको यह समझने की चेष्टा कर रहा हूँ ,कि प्राचीन इतिहास के बारे में जो भी उत्तर आये, उससे जब हम बुद्ध धर्म के प्रवर्तक , उस धर्म के जो कि, सारनाथ में शुरू हो कर तिब्बत, चीन, कम्बोडिया, कोरिया, जापान, श्रीलंका,अफगानिस्तान और बर्मा तक फैला जब इतिहासकार उसके प्रवर्तक की सही जन्म तिथि और जन्म स्थान बताने में असफल है तो वे उस समय के जीवन और समाज पर कैसे टिप्पणियाँ कर के और लेख लिख कर समाज में विद्वेष फैला सकते है ????

जी !!!! जितना भी इतिहास पढ़ें, शोध पत्र पढ़ें कोई आधिकारिक रूप से राजपुत्र के जन्म का वर्ष नहीं बता पा रहा,कि किस वर्ष में गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था ??? कहीं 448 BCE, 450 BCE -490 BCE, 563 BCE, 566 BCE, 622BCE, 623 BCE,624 BCE, और एक जगह तो   1880-1887 BCE.का भी ज़िक्र है। किस पर यकीन किया जाये ??? यह तो यह यदि कुछ और पढ़ने की कोशिश करेंगे तो श्रीलंका वाले यह भी दावा करते हुए मिल जायेंगे की बुद्ध ने श्रीलंका में जन्म लिया था। यहाँ तक कि उनकी माता महामाया थीं या गौतमी थीं इस पर भी कई मत हैं।
मेगस्थनीज़ ,से लेकर फाह्यान( 399 AD -412 AD ) और हुएन त्सांग (630 AD )  के किसी अभिलेख में कट्टर वर्णव्यवस्था का ज़िक्र नहीं है, यह में अपनी पूर्व की एक पोस्ट में लिख चूका हूँ। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय की कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र ( 350 BCE- 283 BCE ) उस समय का कानून और संविधान होता था। विशाखादत द्वारा रचित "मुद्राराक्षस " अर्थशाश्त्र से ही प्रेरित थी जो की हर्षवर्धन ( 590-647 AD)  के समय तक का संविधान था में कहीं कट्टर वर्णव्यवस्था का ज़िक्र नहीं मिलता। तो फिर यह इतिहास किसने रच दिया कि 3000 साल पहले शूद्रों के गले में घंटियां बढ़ी जाती थीं या उन्हें आवाज़ करके लकड़ी खटखटाते हुए नगर में प्रवेश करना पड़ता था ???

सबसे अहम बात यह है कि यह इतिहास लिखा किसने ??? भारत के सबसे बुजुर्ग इतिहासकार "राजेन्द्र लाल मित्रा 1822 में पैदा हुए थे। 1880 के दशक तथा 1900 दशक में पहली बार वैज्ञानिक विधि से इतिहास का अवलोकन किया जाये इस पर चर्चा हुई थी। 1899 में रबिन्द्र नाथ टैगोर पहली बार "भारती " नाम की पत्रिका में "अक्षय कुमार मित्रा" नाम के नवोदित इतिहासकार के Oitihashik chitra (Historical Vignettes), नाम की शोध पत्रिका की प्रशंसा करते हुए एक लेख लिखा था " Enthusiasm for History" । 1919 बंगाल यूनिवर्सिटी पहली बार आधुनिक एवं मध्यकालीन इतिहास का परास्नातक पाठयक्रम शुरू किया गया ,1920 से 1930 तक के काल खंड में अन्य विश्वविद्यालयों में इतिहास के विभाग खोले गए तथा स्नातक स्तर पर इतिहास पढने की शुरुआत की गयी। तो फिर प्राचीन भारत में वर्ण व्यवस्था पर आधिकारिक इतिहास किसने लिखा और किस आधार पर लिखा ??????
http://publicculture.org/…/the-public-life-of-history-an-ar…

कवि ,साहित्यकार एवं लेखक अपने समय  के समाज का आइना होते हैं।  प्राचीन भारत के इतिहासकारों को कालिदास ,बाणभट ,भावभूति, भाष्य,शूद्रक,अश्वघोष ,शशांक की रचनाओं में उस समय के सामाजिक स्थिति को चित्रण करने वाला यदि कुछ नहीं मिला तो भी वे कल्हड़ की " राजतरंगनी" को कैसे अनदेखा कर सकते हैं जिसमें महाभारत से लेकर 1009 तक का कालक्रमबद्ध इतिहास लिखा है।
इस देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि जिस "कौटिल्य" के अर्थशास्त्र का आज के तमाम IIM ,मैनेजमेंट गुरु, और विदेशों में सन्दर्भ लिया लिया जाता है, जो की प्रबन्धन एवं प्रशासन की दृष्टि से एक अद्वित्य निबंध है और पूरी दुनिया के लिए एक नज़ीर है, यहाँ के "मूल निवासी" ही उसकी प्रमाणिकता पर प्रश्नचिन्ह लगा कर मानने से इंकार करते है।     

वर्तमान में पढ़ाया जाने वाला इतिहास लिखा अंग्रेज़ों ने और वामपंथियों ने, और इसी इतिहास को पढ़ कर ज्योतिबा फुले और अम्बेडकर ने भावावेश में इतिहास और त्थयों को कैसे तोड़ा मरोड़ा और एक नया इतिहास रच दिया जिसके चलते आज के अम्बेडकरवादी अन्य लोगों को विदेशी और खुद को भारत का मूल नागरिक बताते हैं।यदि अंग्रेज़ों द्वारा लिखित इतिहास पढ़ना है तो अम्बेदकरवादी " Aryans, Jews, Brahmins :Theorising Authority Through Myths Of Identity " By Dorothy M.Figueira, published by Navayana,अवश्य पढ़ लें तथा जो बहुत से अम्बेडकरवादी कमेंट बॉक्स में हिंदी में लिखने की बात करते हैं, उनके लिए यह लिंक पढ़ना मुश्किल होगा, अतः उनसे निवेदन है की किसी से पढ़वा कर अपना भ्रम ज़रूर दूर कर लें अन्यथा , आप के दिल में अन्य जातियों के लिए अम्बेडकर जी द्वारा भरा गया ज़हर हमेशा भरा रहेगा जो की भविष्य में देश के लिए अहितकर होगा या मात्र वोट बैंक की राजनीती के द्वारा सत्तासीन रहने के लिए हिन्दुओं को इसी तरह से विभाजित रखा जायेगा ????? 
http://epaper.indianexpress.com/…/Indian-Exp…/13-March-2015…


ब्राह्मणों ने आंबेडकर जी के जीवन को संवारने में क्या योगदान दिया उसे तो कूड़े के ढेर में डाल दीजिये,
लेकिन हिन्दू धर्म और वर्णव्यवस्था को गलियां देने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए की महाराजा बड़ौदा ने ही उन्हें पढ़ने के लिए विदेश भेजा था और तीन साल का उनके विदेश में खर्च को वहन किया था। 
हम मानते हैं कि अम्बेडकर जी के समय में समाज में जाति व्यवस्था कुरूपतम स्थिति में थी ,लेकिन जो नवबौद्ध इसके लिए पूरे हिन्दू  धर्म को ही निकृष्ट घोषित कर देते हैं, वे आज उस वज्रयान के अनुयायी हैं जिसने एक समय में अश्लीलता की सारी सीमायें तोड़ दी थीं जबकि वे उसका मूल सिद्धांत "व्यवहारिक बुद्धि एवं वास्तविकता से सामंजस्य तथा प्रबुद्धता" को प्राप्त करना है,को भूल जाते हैं। हाँ भारत की वर्णव्यवस्था में कुरूपता आई थी और उसकी जड़ें बहुत गहरी हो गयीं थीं। कारण अन्य पोस्ट में बताये जा चुके हैं। लेकिन जब हम गलत इतिहास पढ़ाएंगे और जब तक उसे तमाम सरकारी योजनाओं से सिंचित करते रहेंगे तब तक यह समाज में यह जहर की बेल फलती फूलती रहेगी। 

दूसरा प्रश्न था "भारत का राष्ट्रगान किसने लिखा " ????? सब अपने अपने जवाब देख लें सभी ने "बहुत कुछ लिखने के बाद रबीन्द्रनाथ "टैगोर" लिखा है। इस उत्तर से में आपको सिर्फ इतना बताना चाह रहा हूँ की जैसा अंग्रेज़ों ने बोला और लिखा वैसा आपने सुना और याद किया। जब हमें अपने राष्ट्र गान के रचियता का नाम ( जन्म 7 मई 1861 -मृत्यु 7 अगस्त 1941 ) भारत के प्रथम नोबल पुरस्कार के जीतने वाले का सही नाम भी नहीं याद रख सकते तो 1500 वर्ष पुराने इतिहास का क्या खाक विश्लेषण करेंगे। 

उपरोक्त प्रश्न का सबने वही उत्तर दिया जो अंग्रेज़ लिख गए थे ,कह गए थे, बार बार दोहरा कर आपके दिलोदिमाग में बिठा गए और जो आज आपको पढ़ाया जा रहा है। मात्र एक मित्र "आर्य प्रशांत "ने इस प्रश्न का सही उत्तर दिया " रबीन्द्रनाथ ठाकुर "

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