आज मैं उन्हें नमन नहीं करूँगा जिन्होंने व्यक्तिगत अनुभूतियों की वजह से देश को संतरे की फांकों में बाँट दिया है। आज मेरा नमन है उनको जिन्होंने देश के लिए जान दी और गुमनामी के अंधेरों में खो गए। क्या ये शहीदों की श्रेणी में नहीं आते ????
वर्ष 1966 में होमी जहांगीर भाभा, बहरत के पहले आणविक वैज्ञानिक ने घोषणा की कि भारत कुछ समय में आणविक बम्ब बना लेगा। उनकी इस घोषणा के बाद ऐसा बतया जाता है की उनका विमान Swiss Alps near Mt.Blanc के पास दुर्घटना ग्रस्त हो गया,परन्तु उस विमान का मलबा आज तक नहीं मिला।
7 अक्टूबर 2013 को पेंडुरुथि , विशाखापत्तनम के रे नज़दीक रेलवे की पटरियों पर K. K Josh और Abhish Shivam के शव बरामद हुए। मारने वाले ने इन्हे जहर दे कर पटरियों पर डाल दिया था की जब कोई गाड़ी इनके ऊपर से निकल जाएगी तो यह आत्महत्या का मामला नज़र आएगा। परन्तु किसी ने गाड़ी निकलने से पहले ही शव देख लिए और शव गाड़ी के आने से पहले ही पटरियों से हटा दिए गए।
क्या आप जानते हैं हैं ,कौन थे यह दोनों ???? ये दोनों भारत की Nuclear Powered पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत के इंजीनियर थे।
23 फरवरी 2010 को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में कार्यरत वैज्ञानिक अपने फ्लैट में मृत पाये गए , बहुत हील हुज्जत के बाद मुंबई पुलिस ने आत्महत्या की जगह हत्या का केस दर्ज किया। परन्तु जैसा की होता है आज तक हत्यारों का पता नहीं चला।
http://www.vice.com/read/why-are-indian-authorities-ignoring-the-deaths-of-nuclear-scientists
जून 2009 में आणविक वैज्ञानिक लोकनाथन महालिंगम का बिना किसी सुसाइड नोट के मृत शरीर मिलता है , मीडिया ने आश्चर्यजनक तरीके से इस खबर को छापा और यह भी छापा की कैसे भारतीय सुरक्षा एजेंसी ने इसे आत्महत्या का मामला बता कर इससे पल्ला झड़ लिया।
इस घटना से पांच वर्ष पहले उन्ही जंगलों से जहाँ पर महालिंगम का शव बरामद हुआ , Nuclear Power Corporation के एक वैज्ञानिक का अपहरण करने की शसस्त्र कोशिश की गयी थी लेकिन वो बच निकला। लेकिन इसी Nuclear Power Corporation के दूसरे वैज्ञानिक रवि मूल इतने भाग्यशाली नहीं थे , जिनकी कुछ सप्ताह बाद हत्या गयी।
इस घटना के के कुछ ही वर्षों पश्च्चात Uma Rao की संदेहास्पद मृत्यु होती है जिसे आत्महत्या का नाम दे कर पल्लू झड़ लिया जाता है।
30 दिसंबर 2009 को Bhabha atomic Research Centre की प्रयोगशाला में दो नौजवान वैज्ञानिक उमंग सिंह एवं प्रथा प्रीतम बाग आग से झुलसने के कारण मारे गए जब की बाद की जांच में पाया गया कि जिस प्रयोगशाला में वे कार्य कर रहे थे वहां कोई ज्वलनशील पदार्थ था ही नहीं। आज तक किसी को आग के इन कारणों का पता नहीं चला।
2008 के आस पास जब अमरीका के बिल क्लिंटन ने भारत को राकेट लांच करने वाली क्रायोजेनिक तकनीक देने से मना कर दिया तो रूस ने गोपनीय तरीके से यह तकनीक भारतीय वैज्ञानिकों को दी, लेकिन CIA को पता चल गया और इस तकनीक की जानकारी से सम्बंधित वैज्ञानिक को केरल पुलिस ने दो मालदीव की महिलाओं से सम्बन्ध रखने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया, और जेल भेज दिया। जांच हुई परन्तु आरोप निराधार निकले ,लेकिन इस बात पर कोई मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं है कि उसी वैज्ञानिक को गिरफ्तार करने के लिए आदेश कहाँ से आया था। किसे फायदा होता उसकी गिरफ्तारी से ???
अगस्त 2013 में आईएनएस सिंधुरक्षक , में विस्फोट होता है और यह पनडुब्बी कुछ इंजीनिरियों के साथ डूब जाती है , बस बताया जाता है कि इंजन रूम में विस्फोट हुआ था। कैसे और क्यों ??? जांच चल ही रही होगी।
2009 से 2013 Department of Atomic Energy के दसियों वैज्ञानिकों की रहस्य्मय परिस्थितियों में मौत होती है ,लेकिन किसी की जांच विशेषज्ञ जांच एजेंसी को नहीं दी जाती।
क्यों होतीं हैं इन वैज्ञानिकों की मौतें / हत्याएँ ??? किसी लाभ होगा इससे , अमरीका को ??? चीन को ??? या पाकिस्तान को ??? किसी को भी हो, लेकिन इन वैज्ञानिकों की रक्षा न कर पाने वालीं सरकारें , इन मौतों की विशेषज्ञ जांच एंजेंसियों द्वारा न करवा कर पिछली सरकारों ने तो प्रत्यक्ष रूप से किसी का भी लाभ किया लेकिन इस देश का वो नुक्सान किया है जिसकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं है।
इसी प्रकार की दो हत्याएं ईरान के आणविक वैज्ञानिकों की हुईं , तो वहां की सरकार ने आणविक वैज्ञानिकों की सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किये और उन मौतों पर पूरे विश्व का मीडिया चिल्लाया। भारत में विगत सरकारों ने क्या किया ???
http://www.sunday-guardian.com/news/pmo-unconcerned-about-scientist-deaths
और PRESSTITUTES ................. . इनके बारे में तो जितना कहा जाये कम ही है।
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