इनसब निराशाओं के बीच हम यही सोच कर दिल बहला लेते हैं #जीना_यहाँ_मरना_यहाँ_इसके_सिवा _जाना_कहाँ ---
#Ban_Use_Of_Hindutva ------Times Of India, Issue dt-- Oct 21,2016. ((हिंदुत्व का प्रयोग बंद हो ----PIL filed by तीस्ता सीतलवाड़,शम्सुल इस्लाम ,और दिलीप सी मंडल )
#SC_agrees_to_hear_plea_ seeking_ban_on_Gau_Rakshaks--- ----Times of India ,Issue dt. Oct--22, 2016 (गौरक्षकों पर प्रतिबन्ध लगे --PIL filed by तहसीन पूनावाला )
बहुत विस्तार में नहीं जायेंगे , लेकिन 7000 वर्ष पुरानी सिंधु घाटी की सभ्यता के सिंध प्रान्त ( वर्तमान का कराची, हैदराबाद,सुक्कुर ,लरकाना )में वर्ष 695 AD में कासिम के आक्रमण तक हिन्दू और बौद्ध रहा करते थे। यहाँ के राजा दाहिर की उसके #अरबी सेनापति के विश्वासघात के कारण मोहम्मद कासिम के हाथों हार हुई और वहां के लोगों ने या तो सर कटवा कर अपनी जान दे दी या कुछ और कटवा कर अपनी जान बचा ली। तमाम कत्लेआम के बावज़ूद आज के पाकिस्तान के 95% हिन्दू जो आज पूरी जनसँख्या का 5 % से कम हैं सिंध राज्य में रहते हैं। 1924 में धर्म (मुस्लिम) के आधार पर इसे बम्बई प्रेसीडेंसी से अलग करने की मांग उठी और 1 अप्रैल 1936 में इसे बम्बई से अलग कर दिया गया। यह था धर्म के नाम पर देश का पहला टुकड़ा ।
इस्लाम जो अरब से फैलता हुआ बंगाल तक पहुँच गया था , पहली बार कब खतरे में पड़ा इसका कोई आधिकारिक दस्तावेज़ नहीं है , लेकिन 1901 /1906 में मुस्लिम लीग को राजनैतिक दल बनाने के साथ यह भी घोषणा हो गयी की इस्लाम खतरे में है। 1930 में सिंध के धर्म के आधार पर अलग होते हुए अभियान की सफलता देखते हुए ,मोहम्मद इक़बाल ने " टू नेशन थ्योरी " को जन्म दे दिया। फिर आगे की कहानी बताने की ज़रुरत नहीं है कि खतरे में पड़े इस्लाम को बचाने के लिए धर्म के आधार पर #पकिस्तान पैदा कर दिया गया।
जिनका हर छींक पर इस्लाम खतरे में पड़ जाता है, उनमे से बहुत से पकिस्तान चले गए, लेकिन कुछ चूतियों की वजह से ढेर सारे छिछड़े भारत में रहगये जो आज यह कह कर बदबू फैला रहे हैं कि, #हिन्दू_और_हिंदुत्व शब्द को चुनावों में प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
#तहसीन_पूनावाला के हिसाब से Section 12 of the Gujarat Animal Prevention Act, 1954, Section 13 of maharashtra Animal Prevention Act,1976, and section 15 of Karnataka Prevention of Cow slaughter and cattle preservation Act 1964,जो कि उन व्यक्तियों के बचाव का प्रावधान करते हैं जो अच्छी निष्ठां से इन कानूनों अमल लाने में मदद करते हैं , गैर कानूनी हैं। जब अन्य कानूनों की तरह सरकारें इन कानूनों का पालन करवाने में असफल हो गयीं तो तहसीन पूनावाला ने संविधान के इन प्रावधानों को ही चुनौती दे दी और #गौरक्षकों को प्रतिबंधित करने की मांग कर दी।
ट्रिप्पल तलाक के विषय में जिसे 20 से ज्यादा मुस्लिम देश प्रतिबंधित कर चुके है, मैं कुछ नहीं कहूँगा क्योंकि मैं चाहता ही नहीं इनकी स्थिति में कोई सुधार हो। ये ऐसे ही जाहिल रहें तभी इनकी कायदे से दुर्गति होगी।
लेकिन #हिंदुत्व शब्द का विरोध करने वालों से मैं पूछना चाहता हूँ , कि जब #जय_भीम_जय_मीम के नारे लगते हैं तब ये क्यों वहीँ घुस जाते हैं जहाँ से निकले थे ??? जब पूरे देश से एक ही कौम के लड़के लड़कियाँ ISIS ज्वाइन करने के जुर्म में पकडे जाते हैं तब इनके लोकतान्त्रिक अधिकार कहाँ चले जाते हैं। जब कश्मीर में पकिस्तान जिंदाबाद के नारे और सैन्य बालों पर हमले एक ही कौम के लोग करते हैं तब ये उनके खिलाफ जनहित याचिका क्यों नहीं डालते। जब मुलायम सिंह और लालू यादव खुल्लम खुल्ला #मुस्लिम_यादव समीकरण पर चुनाव लड़ते हैं , तब ये लोग सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते ??? जब मनमोहन सिंह देश के 80% हिंदुओं के मुंह पर यह बोलते हैं कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलामानों का है तब क्यों इनके मुंह में दही जम जाता है ??? जब बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी अपने वित्तीय बजटों में प्रतिवर्ष विशेषरूप से मुसलाम्मानों के लिए सौगातों की झड़ी लगा देते हैं तब इन लोगों की आवाज़ क्यों नहीं निकलती ???? जब तेलंगाना में ईद के मौके पर वहां का मुख्यमंत्री मुसलामानों के लिए झोली खोल देता है तब यह लोग कुछ क्यों नहीं बोलते ??? विदेशों से इस्लाम और ईसाइयत के प्रचार के लिए भरपूर पैसा आता है , वक्फ बोर्ड और चर्च अपनी कमाई का एक रुपया भी देश के राजस्व में नहीं देते , लेकिन मंदिरों का चढ़ावा जब सरकारें वसूल लेती हैं और उसका 80% इनके ऊपर खर्च कर देतीं हैं तब ये लोग हिंदुत्व का विरोध क्यों नहीं करते ????
कश्मीर से लेकर केरल तक सरकारें अल्पसंख्यक तुष्टिकरण में लगी हुई हैं। कश्मीर में हिन्दू रह नहीं सकते और केरल में लोकसेवा आयोग केरल द्वारा सरकारी नौकरियों में 12% आरक्षण मुस्लिमों को है। भारत भर में मदरसा शिक्षकों को , मेरे ख्याल से मदरसों में कुरान और इस्लामी शिक्षा के अतिरिक्त कुछ नहीं पढ़ाया जाता उनको भी तमाम राज्य सरकारें वेतन देती हैं , किसके टैक्स से ??? भारत भर में संविधान प्रद्दत न्यायव्यवस्था को अंगूठा दिखाते हुए समानांतर शरीयत अदालतें स्थापित कर दी गयीं है , तब इन्हें कोई संविधान के विरुद्ध क्यों नहीं बताता ????
दुनिया भर में कोई ऐसा देश नहीं है जो हज के लिए बहुसंख्यकों से वसूले गए टैक्स को इन्हें सब्सिडी के रूप में देता हो , तब ये किसी अदालत का दरवाज़ा क्यों नहीं खटखटाते कि सरकार का यह कदम गैरसंवैधानिक और कुरान के खिलाफ है ???
जब भारत भर के राजनैतिक दल इफ्तार पार्टियों का आयोजन करते हैं और टोपी पहन कर उन पार्टियों में शामिल होते हैं तब कोई सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा नहीं खटखटाता कि इस्लाम का राजनीतिकरण किया जा रहा है।
अगर 80% लोगों की भावनाओं को ध्यान में रख कर कोई कदम उठाने की बात होती है तो तथाकथित बुद्धिजीवियों के पिछावड़े में मिर्चें लगने लगती हैं और सुप्रीम कोर्ट भी ऐसी जनहित कही जाने वाली याचिकाओं का संज्ञान लेता है। यह वही सुप्रीम कोर्ट है , जो दही हांड़ी , होली और दिवाली कैसे मनाई जाये इस पर तो दिशा निर्देश दे देता है लेकिन मुहर्रम और ईद कैसे मनाई जाये इसे धार्मिक मामला करार दे कर किनारा कर लेता है और यह वही सुप्रीम कोर्ट है जो यूनिफार्म सिविल कोड के मामले में इस धर्म संबंधी मामला बता कर गेंद को सरकार के पाले में डाल कर तमाशा देखता है और यह वही सुप्रीम कोर्ट है , जिसे न तो कृष्ण जी की छत में लटकी हुई हुई हांड़ी तोड़ते हुए की तस्वीर कभी नज़र नहीं आयी और जिसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक ये टोपी पहनते हुए नेता कभी नज़र आये, जो धर्म के नाम पर बनते हुए देश में रह गए छिछडों की याचिकाओं पर अपना समय बर्बाद कर सकता है , लेकिन कदम कदम पर होते बहुसंख्यकों के दमन के षड्यंत्र का संज्ञान नहीं ले सकता।
आने वाले दिनों में #सुप्रीम कोर्ट हिन्दुत्व शब्द पर बहस सुनेगा और गौरक्षकों पर प्रतिबन्ध लगाएगा और JNU में होने वाली देश विरोधी गतिविधियों और बंगाल में होते हुए दंगों पर आँखें मूंदे रहेगा।
इनसब निराशाओं के बीच हम यही सोच कर दिल बहला लेते हैं #जीना_यहाँ_मरना_यहाँ_इसके_सिवा _जाना_कहाँ