शनिवार, 22 अक्टूबर 2016

हिंदुत्व पर प्रश्नचिन्ह

इनसब निराशाओं के बीच हम यही सोच कर दिल बहला लेते हैं #जीना_यहाँ_मरना_यहाँ_इसके_सिवा_जाना_कहाँ  ---
#Ban_Use_Of_Hindutva ------Times Of India,  Issue dt-- Oct 21,2016. ((हिंदुत्व का प्रयोग बंद हो ----PIL filed by तीस्ता सीतलवाड़,शम्सुल इस्लाम ,और दिलीप सी मंडल )
#SC_agrees_to_hear_plea_seeking_ban_on_Gau_Rakshaks-------Times of India ,Issue dt. Oct--22, 2016 (गौरक्षकों पर प्रतिबन्ध लगे --PIL filed by तहसीन पूनावाला )
बहुत विस्तार में नहीं जायेंगे , लेकिन 7000 वर्ष पुरानी  सिंधु घाटी की सभ्यता के सिंध प्रान्त ( वर्तमान का कराची, हैदराबाद,सुक्कुर ,लरकाना )में वर्ष 695 AD में कासिम के आक्रमण तक हिन्दू और बौद्ध रहा करते थे। यहाँ के राजा दाहिर की उसके #अरबी सेनापति के विश्वासघात के कारण मोहम्मद कासिम के हाथों  हार हुई और वहां के लोगों ने या तो सर कटवा कर अपनी जान दे दी या कुछ और कटवा कर अपनी जान बचा ली। तमाम कत्लेआम के बावज़ूद आज के पाकिस्तान  के 95% हिन्दू जो आज पूरी जनसँख्या का 5 % से कम हैं सिंध राज्य में रहते हैं। 1924 में धर्म (मुस्लिम) के आधार पर इसे बम्बई प्रेसीडेंसी से अलग करने की मांग उठी और 1 अप्रैल 1936 में इसे बम्बई से अलग कर दिया गया। यह था धर्म के नाम पर देश का पहला टुकड़ा । 

इस्लाम जो अरब से फैलता हुआ बंगाल तक पहुँच गया था , पहली बार कब खतरे में पड़ा इसका कोई आधिकारिक दस्तावेज़ नहीं है , लेकिन 1901 /1906 में मुस्लिम लीग को राजनैतिक दल बनाने के साथ यह भी घोषणा हो गयी की इस्लाम खतरे में है। 1930 में सिंध के धर्म के आधार पर अलग होते हुए अभियान की सफलता देखते हुए ,मोहम्मद इक़बाल ने " टू नेशन थ्योरी " को जन्म दे दिया। फिर आगे की कहानी बताने की ज़रुरत नहीं है कि खतरे में पड़े इस्लाम को बचाने के लिए धर्म के आधार पर #पकिस्तान पैदा कर दिया गया। 
जिनका हर छींक पर इस्लाम खतरे में पड़ जाता है, उनमे से बहुत से पकिस्तान चले गए, लेकिन कुछ चूतियों की वजह से ढेर सारे छिछड़े भारत में रहगये जो आज यह कह कर बदबू फैला रहे हैं कि, #हिन्दू_और_हिंदुत्व शब्द को चुनावों में प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। 
#तहसीन_पूनावाला के हिसाब से Section 12 of the Gujarat Animal Prevention Act, 1954, Section 13 of maharashtra Animal Prevention Act,1976, and section 15 of Karnataka Prevention of Cow slaughter and cattle preservation Act 1964,जो कि उन व्यक्तियों के बचाव का प्रावधान करते हैं जो अच्छी निष्ठां से इन कानूनों अमल लाने में मदद करते हैं , गैर कानूनी हैं। जब अन्य कानूनों की तरह सरकारें इन कानूनों का पालन करवाने में असफल हो गयीं तो तहसीन पूनावाला ने संविधान के इन प्रावधानों को ही चुनौती दे दी और #गौरक्षकों को प्रतिबंधित करने की मांग कर दी। 
ट्रिप्पल तलाक के विषय में जिसे 20 से ज्यादा मुस्लिम देश प्रतिबंधित कर चुके है, मैं कुछ नहीं कहूँगा क्योंकि मैं चाहता ही नहीं इनकी स्थिति में कोई सुधार हो। ये ऐसे ही जाहिल रहें तभी इनकी कायदे से दुर्गति होगी। 
लेकिन #हिंदुत्व शब्द का विरोध करने वालों से मैं पूछना चाहता हूँ , कि जब #जय_भीम_जय_मीम के नारे लगते हैं तब ये क्यों वहीँ घुस जाते हैं जहाँ से निकले थे ??? जब पूरे देश से एक ही कौम के लड़के लड़कियाँ ISIS ज्वाइन करने के जुर्म में पकडे जाते हैं तब इनके लोकतान्त्रिक अधिकार कहाँ चले जाते हैं। जब कश्मीर में पकिस्तान जिंदाबाद के नारे और सैन्य बालों पर हमले एक ही कौम के लोग करते हैं तब ये उनके खिलाफ जनहित याचिका क्यों नहीं डालते।  जब मुलायम सिंह और लालू यादव खुल्लम खुल्ला #मुस्लिम_यादव समीकरण पर चुनाव लड़ते हैं , तब ये लोग सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते ??? जब मनमोहन सिंह देश के 80% हिंदुओं के मुंह पर यह बोलते हैं कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलामानों का है तब क्यों इनके मुंह में दही जम जाता है ??? जब बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी अपने वित्तीय बजटों में प्रतिवर्ष विशेषरूप से मुसलाम्मानों के लिए सौगातों की झड़ी लगा देते हैं तब इन लोगों की आवाज़ क्यों नहीं निकलती ???? जब तेलंगाना में ईद के मौके पर वहां का मुख्यमंत्री मुसलामानों के लिए झोली खोल देता है तब यह लोग कुछ क्यों नहीं बोलते ??? विदेशों से इस्लाम और ईसाइयत के प्रचार के लिए भरपूर पैसा आता है , वक्फ बोर्ड और चर्च अपनी कमाई का एक रुपया भी देश के राजस्व में नहीं देते , लेकिन मंदिरों का चढ़ावा जब सरकारें वसूल लेती हैं और उसका 80% इनके ऊपर खर्च कर देतीं हैं तब ये लोग हिंदुत्व का विरोध क्यों नहीं करते ????  
कश्मीर से लेकर केरल तक सरकारें अल्पसंख्यक तुष्टिकरण में लगी हुई हैं। कश्मीर में हिन्दू रह नहीं सकते और केरल में  लोकसेवा आयोग केरल द्वारा सरकारी नौकरियों में 12% आरक्षण मुस्लिमों को है। भारत भर में मदरसा शिक्षकों को , मेरे ख्याल से मदरसों में कुरान और इस्लामी शिक्षा के अतिरिक्त कुछ नहीं पढ़ाया जाता उनको भी तमाम राज्य सरकारें वेतन देती हैं , किसके टैक्स से ??? भारत भर में संविधान प्रद्दत न्यायव्यवस्था को अंगूठा दिखाते हुए समानांतर शरीयत अदालतें स्थापित कर दी गयीं है , तब इन्हें कोई संविधान के विरुद्ध क्यों नहीं बताता ????
दुनिया भर में कोई ऐसा देश नहीं है जो हज के लिए बहुसंख्यकों से वसूले गए टैक्स को इन्हें सब्सिडी के रूप में देता हो , तब ये किसी अदालत का दरवाज़ा क्यों नहीं खटखटाते कि सरकार का यह कदम गैरसंवैधानिक और कुरान के खिलाफ है ??? 
जब भारत भर के राजनैतिक दल इफ्तार पार्टियों का आयोजन करते हैं और टोपी पहन कर उन पार्टियों में शामिल होते हैं तब कोई सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा नहीं खटखटाता कि इस्लाम का राजनीतिकरण किया जा रहा है। 
अगर 80% लोगों की भावनाओं को ध्यान में रख कर कोई कदम उठाने की बात होती है तो तथाकथित बुद्धिजीवियों के पिछावड़े में मिर्चें लगने लगती हैं और सुप्रीम कोर्ट भी ऐसी जनहित कही जाने वाली याचिकाओं का संज्ञान लेता है। यह वही सुप्रीम कोर्ट है , जो दही हांड़ी , होली और दिवाली कैसे मनाई जाये इस पर तो दिशा निर्देश दे देता है लेकिन मुहर्रम और ईद कैसे मनाई जाये इसे धार्मिक मामला करार दे कर किनारा कर लेता है और यह वही सुप्रीम कोर्ट है जो यूनिफार्म सिविल कोड के मामले में इस धर्म संबंधी मामला बता कर गेंद को सरकार के पाले में डाल कर तमाशा देखता है और यह वही सुप्रीम कोर्ट है , जिसे न तो कृष्ण जी की छत में लटकी हुई हुई हांड़ी तोड़ते हुए की तस्वीर कभी नज़र नहीं आयी और जिसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक ये टोपी पहनते हुए नेता कभी नज़र आये, जो धर्म के नाम पर बनते हुए देश में रह गए छिछडों की याचिकाओं पर अपना समय बर्बाद कर सकता है , लेकिन कदम कदम पर होते बहुसंख्यकों के दमन के षड्यंत्र का संज्ञान नहीं ले सकता।  

आने वाले दिनों में #सुप्रीम कोर्ट हिन्दुत्व शब्द पर बहस सुनेगा और गौरक्षकों पर प्रतिबन्ध लगाएगा और JNU में होने वाली देश विरोधी गतिविधियों और बंगाल में होते हुए दंगों पर आँखें मूंदे रहेगा। 
इनसब निराशाओं के बीच हम यही सोच कर दिल बहला लेते हैं #जीना_यहाँ_मरना_यहाँ_इसके_सिवा_जाना_कहाँ 

हिंदुत्व पर प्रश्नचिन्ह

इनसब निराशाओं के बीच हम यही सोच कर दिल बहला लेते हैं #जीना_यहाँ_मरना_यहाँ_इसके_सिवा_जाना_कहाँ  ---
#Ban_Use_Of_Hindutva ------Times Of India,  Issue dt-- Oct 21,2016. ((हिंदुत्व का प्रयोग बंद हो ----PIL filed by तीस्ता सीतलवाड़,शम्सुल इस्लाम ,और दिलीप सी मंडल )
#SC_agrees_to_hear_plea_seeking_ban_on_Gau_Rakshaks-------Times of India ,Issue dt. Oct--22, 2016 (गौरक्षकों पर प्रतिबन्ध लगे --PIL filed by तहसीन पूनावाला )
बहुत विस्तार में नहीं जायेंगे , लेकिन 7000 वर्ष पुरानी  सिंधु घाटी की सभ्यता के सिंध प्रान्त ( वर्तमान का कराची, हैदराबाद,सुक्कुर ,लरकाना )में वर्ष 695 AD में कासिम के आक्रमण तक हिन्दू और बौद्ध रहा करते थे। यहाँ के राजा दाहिर की उसके #अरबी सेनापति के विश्वासघात के कारण मोहम्मद कासिम के हाथों  हार हुई और वहां के लोगों ने या तो सर कटवा कर अपनी जान दे दी या कुछ और कटवा कर अपनी जान बचा ली। तमाम कत्लेआम के बावज़ूद आज के पाकिस्तान  के 95% हिन्दू जो आज पूरी जनसँख्या का 5 % से कम हैं सिंध राज्य में रहते हैं। 1924 में धर्म (मुस्लिम) के आधार पर इसे बम्बई प्रेसीडेंसी से अलग करने की मांग उठी और 1 अप्रैल 1936 में इसे बम्बई से अलग कर दिया गया। यह था धर्म के नाम पर देश का पहला टुकड़ा । 

इस्लाम जो अरब से फैलता हुआ बंगाल तक पहुँच गया था , पहली बार कब खतरे में पड़ा इसका कोई आधिकारिक दस्तावेज़ नहीं है , लेकिन 1901 /1906 में मुस्लिम लीग को राजनैतिक दल बनाने के साथ यह भी घोषणा हो गयी की इस्लाम खतरे में है। 1930 में सिंध के धर्म के आधार पर अलग होते हुए अभियान की सफलता देखते हुए ,मोहम्मद इक़बाल ने " टू नेशन थ्योरी " को जन्म दे दिया। फिर आगे की कहानी बताने की ज़रुरत नहीं है कि खतरे में पड़े इस्लाम को बचाने के लिए धर्म के आधार पर #पकिस्तान पैदा कर दिया गया। 
जिनका हर छींक पर इस्लाम खतरे में पड़ जाता है, उनमे से बहुत से पकिस्तान चले गए, लेकिन कुछ चूतियों की वजह से ढेर सारे छिछड़े भारत में रहगये जो आज यह कह कर बदबू फैला रहे हैं कि, #हिन्दू_और_हिंदुत्व शब्द को चुनावों में प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। 
#तहसीन_पूनावाला के हिसाब से Section 12 of the Gujarat Animal Prevention Act, 1954, Section 13 of maharashtra Animal Prevention Act,1976, and section 15 of Karnataka Prevention of Cow slaughter and cattle preservation Act 1964,जो कि उन व्यक्तियों के बचाव का प्रावधान करते हैं जो अच्छी निष्ठां से इन कानूनों अमल लाने में मदद करते हैं , गैर कानूनी हैं। जब अन्य कानूनों की तरह सरकारें इन कानूनों का पालन करवाने में असफल हो गयीं तो तहसीन पूनावाला ने संविधान के इन प्रावधानों को ही चुनौती दे दी और #गौरक्षकों को प्रतिबंधित करने की मांग कर दी। 
ट्रिप्पल तलाक के विषय में जिसे 20 से ज्यादा मुस्लिम देश प्रतिबंधित कर चुके है, मैं कुछ नहीं कहूँगा क्योंकि मैं चाहता ही नहीं इनकी स्थिति में कोई सुधार हो। ये ऐसे ही जाहिल रहें तभी इनकी कायदे से दुर्गति होगी। 
लेकिन #हिंदुत्व शब्द का विरोध करने वालों से मैं पूछना चाहता हूँ , कि जब #जय_भीम_जय_मीम के नारे लगते हैं तब ये क्यों वहीँ घुस जाते हैं जहाँ से निकले थे ??? जब पूरे देश से एक ही कौम के लड़के लड़कियाँ ISIS ज्वाइन करने के जुर्म में पकडे जाते हैं तब इनके लोकतान्त्रिक अधिकार कहाँ चले जाते हैं। जब कश्मीर में पकिस्तान जिंदाबाद के नारे और सैन्य बालों पर हमले एक ही कौम के लोग करते हैं तब ये उनके खिलाफ जनहित याचिका क्यों नहीं डालते।  जब मुलायम सिंह और लालू यादव खुल्लम खुल्ला #मुस्लिम_यादव समीकरण पर चुनाव लड़ते हैं , तब ये लोग सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते ??? जब मनमोहन सिंह देश के 80% हिंदुओं के मुंह पर यह बोलते हैं कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलामानों का है तब क्यों इनके मुंह में दही जम जाता है ??? जब बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी अपने वित्तीय बजटों में प्रतिवर्ष विशेषरूप से मुसलाम्मानों के लिए सौगातों की झड़ी लगा देते हैं तब इन लोगों की आवाज़ क्यों नहीं निकलती ???? जब तेलंगाना में ईद के मौके पर वहां का मुख्यमंत्री मुसलामानों के लिए झोली खोल देता है तब यह लोग कुछ क्यों नहीं बोलते ??? विदेशों से इस्लाम और ईसाइयत के प्रचार के लिए भरपूर पैसा आता है , वक्फ बोर्ड और चर्च अपनी कमाई का एक रुपया भी देश के राजस्व में नहीं देते , लेकिन मंदिरों का चढ़ावा जब सरकारें वसूल लेती हैं और उसका 80% इनके ऊपर खर्च कर देतीं हैं तब ये लोग हिंदुत्व का विरोध क्यों नहीं करते ????  
कश्मीर से लेकर केरल तक सरकारें अल्पसंख्यक तुष्टिकरण में लगी हुई हैं। कश्मीर में हिन्दू रह नहीं सकते और केरल में  लोकसेवा आयोग केरल द्वारा सरकारी नौकरियों में 12% आरक्षण मुस्लिमों को है। भारत भर में मदरसा शिक्षकों को , मेरे ख्याल से मदरसों में कुरान और इस्लामी शिक्षा के अतिरिक्त कुछ नहीं पढ़ाया जाता उनको भी तमाम राज्य सरकारें वेतन देती हैं , किसके टैक्स से ??? भारत भर में संविधान प्रद्दत न्यायव्यवस्था को अंगूठा दिखाते हुए समानांतर शरीयत अदालतें स्थापित कर दी गयीं है , तब इन्हें कोई संविधान के विरुद्ध क्यों नहीं बताता ????
दुनिया भर में कोई ऐसा देश नहीं है जो हज के लिए बहुसंख्यकों से वसूले गए टैक्स को इन्हें सब्सिडी के रूप में देता हो , तब ये किसी अदालत का दरवाज़ा क्यों नहीं खटखटाते कि सरकार का यह कदम गैरसंवैधानिक और कुरान के खिलाफ है ??? 
जब भारत भर के राजनैतिक दल इफ्तार पार्टियों का आयोजन करते हैं और टोपी पहन कर उन पार्टियों में शामिल होते हैं तब कोई सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा नहीं खटखटाता कि इस्लाम का राजनीतिकरण किया जा रहा है। 
अगर 80% लोगों की भावनाओं को ध्यान में रख कर कोई कदम उठाने की बात होती है तो तथाकथित बुद्धिजीवियों के पिछावड़े में मिर्चें लगने लगती हैं और सुप्रीम कोर्ट भी ऐसी जनहित कही जाने वाली याचिकाओं का संज्ञान लेता है। यह वही सुप्रीम कोर्ट है , जो दही हांड़ी , होली और दिवाली कैसे मनाई जाये इस पर तो दिशा निर्देश दे देता है लेकिन मुहर्रम और ईद कैसे मनाई जाये इसे धार्मिक मामला करार दे कर किनारा कर लेता है और यह वही सुप्रीम कोर्ट है जो यूनिफार्म सिविल कोड के मामले में इस धर्म संबंधी मामला बता कर गेंद को सरकार के पाले में डाल कर तमाशा देखता है और यह वही सुप्रीम कोर्ट है , जिसे न तो कृष्ण जी की छत में लटकी हुई हुई हांड़ी तोड़ते हुए की तस्वीर कभी नज़र नहीं आयी और जिसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक ये टोपी पहनते हुए नेता कभी नज़र आये, जो धर्म के नाम पर बनते हुए देश में रह गए छिछडों की याचिकाओं पर अपना समय बर्बाद कर सकता है , लेकिन कदम कदम पर होते बहुसंख्यकों के दमन के षड्यंत्र का संज्ञान नहीं ले सकता।  

आने वाले दिनों में #सुप्रीम कोर्ट हिन्दुत्व शब्द पर बहस सुनेगा और गौरक्षकों पर प्रतिबन्ध लगाएगा और JNU में होने वाली देश विरोधी गतिविधियों और बंगाल में होते हुए दंगों पर आँखें मूंदे रहेगा। 
इनसब निराशाओं के बीच हम यही सोच कर दिल बहला लेते हैं #जीना_यहाँ_मरना_यहाँ_इसके_सिवा_जाना_कहाँ 

शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

ऐसे नेता ही पूजे जाते हैं भारत में

खुलते गए मेरे सामने दरवाजों में लगे आईने 
देखा कि  उस मकान में हर अक्स बदहाल था 
आँखों में जिनके बस गयी दुनिया भर की रौनकें 
वो शख्स बेवफाई का एक ज़िंदा मिसाल था। 
इस पोस्ट को चाहें आप,ट्रिप्पल तलाक मामले में पैदा हुए विवाद से जोड़कर देख लें, चाहें सर्जिकल स्ट्राइक पर भारत की भद्द पिटवाने वालों से जोड़ कर देखें, चाहें JNU में भारत विरोधी नारे लगाने वालों से या फिर इस पोस्ट की अंतिम पंक्ति तक पढ़ कर तय कीजिये भारत की ज़मीन किस तरह के नेताओं को पूजती है। ( इस पोस्ट में जो तीन तिथियां दी गयीं हैं , उन्हें दिमाग में रखियेगा )
#नवम्बर_1949 , संविधान सभा में संविधान पूरा होने पर धन्यवाद प्रस्ताव दिए जा रहे थे, तो अम्बेडकर जी ने भी भाषण दिया जो कि संक्षेप में इस प्रकार से है -----
जैसे कि सदन के सदस्यों एवं ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों द्वारा मेरी प्रशंसा के पुल बांधे जा रहे हैं उससे मैं इतना अभिभूत हो गया हूँ कि मेरे पास उनका आभार प्रकट करने के लिए शब्द नहीं हैं। मैं तो संविधान सभा में अनुसूचित जातियों के हितों की रक्षा के अतिरिक्त कोई महत्वकांक्षा ले कर नहीं आया था। मुझे दूर तक अंदाजा नहीं था कि मुझे उससे ज्यादा ज़िम्मेदारी सौंपी जाएगी। इसलिए मैं चकित रह गया जब संविधान सभा ने ड्राफ्टिंग कमेटी के लिए मेरा चयन किया। उससे भी ज्यादा मुझे आश्चर्य तब हुआ जब मुझे ड्राफ्टिंग कमेटी ने चेयरमैन चुना। ड्राफ्टिंग कमेटी में मुझसे बड़े , बेहतर और योग्य लोग थे ,जैसे कि मेरे मित्र सर अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर। मैं संविधान सभा का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे देश सेवा का यह अवसर प्रदान करने के लिए मुझ पर भरोसा जताया। 
जो श्रेय मुझे दिया जा रहा है वो मेरा नहीं बल्कि कुछ हद तक सर बी. एन राउ तथा ड्राफ्टिंग कमेटी के अन्य सदस्यों को जाता है। इसका अधिक श्रेय मैं श्री एस एन मुखर्जी , जो कि इसके मुख्य लेखक हैं उनको देता हूँ। ----------------------------------------------------------------------------------  
( Consitituent Assembly Debates , Vol.X,pp.973-74)

इसके आगे अम्बेडकर कहते हैं -----
मैं यहाँ पर समाप्त कर सकता था परंतु मेरा दिमाग भारत के भविष्य को लेकर विचारों से भरा हुआ है उनको मैं यहाँ व्यक्त करना चाहूँगा। 26 जनवरी 1950 को भारत एक स्वतंत्र देश होगा। उसकी आज़ादी का क्या होगा ??? क्या यह देश अपनी आज़ादी बरकरार रख पायेगा या फिर से इसे खो देगा ????यह पहला ख्याल मेरे दिमाग में आ रहा है। इअसा नहीं है कि भारत पहले कभी एक स्वतंत्र देश नहीं रहा है। लेकिन विचारणीय यह है कि इसने अपनी आज़ादी एक बार पहले खोई है। क्या यह दुबारा अपनी आज़ादी खोएगा ??? ये ख्याल मुझे भविष्य के लिए चिन्तातुर कर रहा है। जिस तथ्य की वजह से यह चिंता है वो यह नहीं है कि इस देश ने अपनी स्वतंत्रता खोई थी बल्कि वो स्वतन्त्रता अपने ही लोगों के भितरघात और विश्वासघात के कारण खोई थी। सिंध पर मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के दौरान राजा दाहिर के सेनापतियों ने कासिम से रिश्वत खा कर कासिम के खिलाफ लड़ाई करने से इनकार कर दिया था। जयचंद ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वी राज चौहान के खिलाफ आक्रमण करने का न्यौता दिया था जिसमे उसने अन्य सोलंकी राजाओं द्वारा सहायता का वायदा किया था। जब शिवाजी हिंदुओं की आज़ादी के लिए लड़ रहे थे उस समय बहुत से मराठा सरदार मुगलों की तरफ से उनके खिलाफ लड़ रहे थे। जा अँगरेज़ सिख राजाओं को ख़त्म करने का प्रयास कर रहे थे तो सिखों का मुख्य सेनापति गुलाब सिंह चुपचाप बैठा रहा और उसने सिख साम्राज्य बचाने की कोई कोशिश नहीं की। 1857 में जब पूरा देश अंग्रेजों की सत्ता उखाड़ कर फेंक देने के लिए लड़ रहा था उस समय सिख ख़ामोशी से तमाशा देख रहे थे। 
क्या इतिहास अपने को दोहराएगा ??? ये जो ख्याल है ये आज मेरी चिंता का विषय है। मेरी चिंता और बढ़ जाती है जब मैं सोचता हूँ कि जातियों और मज़हबों के पुराने दुश्मनों के साथ भविष्य में हमारे यहाँ भांति भांति के अनेक विरोधी पंथों वाले राजनीतिक दल होंगे। क्या भारतीय अपने देश को अपने पंथों /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब से ऊपर रखेंगे या अपने पंथों /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब को देश से ऊपर रखेंगे ???? मुझे नहीं मालूम। पर यह निश्चित है की यदि ये राजनैतिक दल अपने पंथों /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब को देश से ऊपर रखेंगे तो ये भारत की स्वतंत्रता को दुबारा खतरे में डाल देंगे और इस बार स्वतंत्रता हमेशा के लिए खो जायेगी। इस संभावित घटना के प्रति हमें सचेत रहना होगा। 

( Consitituent Assembly Debates , Vol.X,pp.977 -78) 

ये उन अम्बेडकर के ख्यालात हैं जिन्होंने मात्र तीन साल पहले ---
#14_मई_1946 में वाइसराय लार्ड वेवेल और ब्रिटिश कैबिनेट मिशन के सदस्य ए वी एलेग्जेंडर को यह लिख कर याद दिलाया था और भारत को आज़ादी देने और भारत छोड़कर न जाने के लिए कहा था कि -----" भारत में ब्रिटिश राज्य के लिए अंग्रेजों को अछूतों की मदद का एहसानमंद होना चाहिए। बहुत से अँगरेज़ सोचते हैं कि भारत को क्लाइव , हैस्टिंग्स, कूट्स और अन्य अंग्रेजों ने जीता था। इससे बड़ी भूल और कोई हो ही नहीं सकती। भारत को भारत की सेना ने जीत था और उस सेना में सिर्फ अछूत थे। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य असम्भव था यदि अछूतों ने उनकी सहायता न की होती। चाहें प्लासी के युद्ध की घटना को ले लें जिससे बारिश साम्राज्य की भारत में नींव पड़ी थी चाहें किर्की के युद्ध की घटना को ले लें जिससे बभरत में ब्रिटिश साम्राज्य पूरा हुआ था। इन दोनों लड़ाईयों में जो सैनिक अंग्रेजों के लिए लड़े थे वे अछूत थे। 

( Dr.Ambedkar, Writings and Speeches, Vol X, pp 492-99)

और ये वो अम्बेडकर थे जिन्होंने 1953 में संसद में यह भी कह दिया था कि मेरा बस चले तो इस संविधान को आग लगा दूँ। 
 देश को पंथ  /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब से ऊपर रखने की नसीहत देने वाला पंथ  /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब को देश के आगे रख कर #14_अक्टूबर_1956 को हिन्दू समाज का एक औए टुकड़ा कर गया ।
दिक्कत बौद्धों से नहीं है ,
फ़ेसबुकिया बौद्धों से है। दिक्कत मुसलमानों से नहीं है उन मुसलामानों से है सो अपने आपको पहले मुसलमान फिर भारतीय बोल कर अपने क़ानून को संविधान और सुप्रीम कोर्ट से ऊपर समझते हैं।  दिक्कत सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाने वालों से नहीं है उनसे है जो ऐसा करते करते पकिस्तान के पाले में खड़े होजाते हैं। दिक्कत JNU में मोदी किआ पुतला जलाने से नहीं है बल्कि "भारत तेरे टुकड़े होंगे -इंशा अल्लाह ,इंशा अल्लाह " जैसे नारों से है। 
भारत दुबारा गुलाम तो नहीं होगा ,पर भितरघाती बहुत पैदा हो गए हैं इस स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति की आड़ में। 

सोमवार, 3 अक्टूबर 2016

कैसे पहचानें चीन निर्मित उत्पादों को

देश हित में जागरूकता फैलाने के लिए उत्पादों पर छपे बार कोड की पहली तीन डिजिट्स ---- 690,691,692,693,694,695,696,697,698,699 को याद रखें यह तीन डिजिट्स चीन की कम्पनियों के होते हैं और इस पोस्ट को एक बार शेयर करके अपने दायित्व के निर्वाहन में पहला कदम अविलम्ब उठायें। 


देश भक्ति का हिलोरा इस वक़्त सभी भारतवासियों के दिल में पूरे जोर से उफान मार रहा है। पकिस्तान से बदला लेना है और चीन को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए सबक सिखाना है। 
पूरे देश में चीन में निर्मित वस्तुओं के बहिष्कार की एक भावनात्मक लहर चल रही है। आपको यह जान कर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि चीन में निर्मित उत्पादों का आज हम खुल कर बहिष्कार करने का आह्वान कर रहे हैं तो पश्चिम के देशों में जिनमे अमरीका भी शामिल है, चीन के उत्पादों के बहिष्कार का चुपचाप से समाज में प्रवाह हो रहा है। बस अफ़सोस यह है कि हम आज जाग रहे हैं और पश्चिमी देश आज से दस साल पहले जाग गए थे। 
क्या आपको मालूम है कि पश्चिमी देशों के इस बहिष्कार का चीन ने सामना कैसे किया ???? चीन के उत्पादकों ने अपने  उत्पादों पर #Made_In_China लिखना ही बंद कर दिया। 
GATT के नियमों के तहत सरकार आयात के नियमों को कठोर बना सकती है लेकिन वो अपने नागरिकों से यह अपील नहीं कर सकती कि इस विशेष  देश की वस्तुओं का बहिष्कार करो। यह पूर्णतः जागरूक नागरिकों पर निर्भर करता है कि वे अपना दायित्व कैसे निभाते हैं। 
शातिर चीन के नीति निर्धारकों को भारत में उसके प्रति फैलते हुए असंतोष का पूरा एहसास होगा और बहुत संभव है कि चीन के उत्पादक भारत में भेजने वाले उत्पादों पर भी #Made_In_China लिखना बंद कर दें। ऐसी स्थिति में आपको उत्पाद पर छपे बार कोड के पहले तीन डिजिट्स पर ध्यान देना होगा।  यदि यह तीन डिजिट 690,691,692,693,694,695, में से कोई एक हैं तो वो उत्पाद चीन की कम्पनी द्वारा बनाया गया है। गौर करें इन तीन डिजिट्स का बार कोड की शुरुआत में होने का अभिप्राय यह नहीं है कि यह उत्पाद चीन में निर्मित है , इसका अभिप्राय यह है कि यह कम्पनी चीन की है या चीन में रजिस्टर्ड है। 
हमारा मकसद न सिर्फ चीन में निर्मित उत्पादों का बहिष्कार है बल्कि चीन की कंपनियों का बहिष्कार भी है। जिस तरह से मार्किट में चीन के उत्पाद छाये हुए हैं , फिलहाल में भारत के उपभोक्ताओं को सस्ते स्वदेशी विकल्प ढूंढने में परेशानी जरूर होगी लेकिन विकल्प हर सेगमेंट में मौजूद हैं बस ज़रुरत है दृण इच्छाशक्ति की। 
देश के लिए आप बहुत कुछ नहीं कर सकते तो इस बार आने वाली दीपावली में चीनी बिजली की लड़ियों और मौसमी सामान को तिलांजलि दे कर अपने अपने घरों को दीपों से रोशन कीजिये।  दिए बनाने वके गरीबों  के घर उनसे दिए खरीद कर रोशन करें। भारतीय पटाखे खरीद कर सिवाकासी (तमिलनाडू ) के डूबते हुए उद्योग को उबारें। 
और देश हित में जागरूकता फैलाने के लिए उत्पादों पर छपे बार कोड की पहली तीन डिजिट्स ---- 690,691,692,693,694,695,696,697,698,699 को याद रखें यह तीन डिजिट्स चीन की कम्पनियों के होते हैं और इस पोस्ट को एक बार शेयर करके अपने दायित्व के निर्वाहन में पहला कदम अविलम्ब उठायें। 

आपकी अतिरिक्त जानकारी के लिये भारतीय उत्पादों का बार कोड 890 से शुरू होता है। अन्य कुछ खास देशों के बार कोड यदि आप जानना चाहते हैं तो निम्न लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं। 

https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_GS1_country_codes


जय हिन्द ------

कैसे पहचानें चीन निर्मित उत्पादों को

देश हित में जागरूकता फैलाने के लिए उत्पादों पर छपे बार कोड की पहली तीन डिजिट्स ---- 690,691,692,693,694,695,696,697,698,699 को याद रखें यह तीन डिजिट्स चीन की कम्पनियों के होते हैं और इस पोस्ट को एक बार शेयर करके अपने दायित्व के निर्वाहन में पहला कदम अविलम्ब उठायें। 


देश भक्ति का हिलोरा इस वक़्त सभी भारतवासियों के दिल में पूरे जोर से उफान मार रहा है। पकिस्तान से बदला लेना है और चीन को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए सबक सिखाना है। 
पूरे देश में चीन में निर्मित वस्तुओं के बहिष्कार की एक भावनात्मक लहर चल रही है। आपको यह जान कर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि चीन में निर्मित उत्पादों का आज हम खुल कर बहिष्कार करने का आह्वान कर रहे हैं तो पश्चिम के देशों में जिनमे अमरीका भी शामिल है, चीन के उत्पादों के बहिष्कार का चुपचाप से समाज में प्रवाह हो रहा है। बस अफ़सोस यह है कि हम आज जाग रहे हैं और पश्चिमी देश आज से दस साल पहले जाग गए थे। 
क्या आपको मालूम है कि पश्चिमी देशों के इस बहिष्कार का चीन ने सामना कैसे किया ???? चीन के उत्पादकों ने अपने  उत्पादों पर #Made_In_China लिखना ही बंद कर दिया। 
GATT के नियमों के तहत सरकार आयात के नियमों को कठोर बना सकती है लेकिन वो अपने नागरिकों से यह अपील नहीं कर सकती कि इस विशेष  देश की वस्तुओं का बहिष्कार करो। यह पूर्णतः जागरूक नागरिकों पर निर्भर करता है कि वे अपना दायित्व कैसे निभाते हैं। 
शातिर चीन के नीति निर्धारकों को भारत में उसके प्रति फैलते हुए असंतोष का पूरा एहसास होगा और बहुत संभव है कि चीन के उत्पादक भारत में भेजने वाले उत्पादों पर भी #Made_In_China लिखना बंद कर दें। ऐसी स्थिति में आपको उत्पाद पर छपे बार कोड के पहले तीन डिजिट्स पर ध्यान देना होगा।  यदि यह तीन डिजिट 690,691,692,693,694,695, में से कोई एक हैं तो वो उत्पाद चीन की कम्पनी द्वारा बनाया गया है। गौर करें इन तीन डिजिट्स का बार कोड की शुरुआत में होने का अभिप्राय यह नहीं है कि यह उत्पाद चीन में निर्मित है , इसका अभिप्राय यह है कि यह कम्पनी चीन की है या चीन में रजिस्टर्ड है। 
हमारा मकसद न सिर्फ चीन में निर्मित उत्पादों का बहिष्कार है बल्कि चीन की कंपनियों का बहिष्कार भी है। जिस तरह से मार्किट में चीन के उत्पाद छाये हुए हैं , फिलहाल में भारत के उपभोक्ताओं को सस्ते स्वदेशी विकल्प ढूंढने में परेशानी जरूर होगी लेकिन विकल्प हर सेगमेंट में मौजूद हैं बस ज़रुरत है दृण इच्छाशक्ति की। 
देश के लिए आप बहुत कुछ नहीं कर सकते तो इस बार आने वाली दीपावली में चीनी बिजली की लड़ियों और मौसमी सामान को तिलांजलि दे कर अपने अपने घरों को दीपों से रोशन कीजिये।  दिए बनाने वके गरीबों  के घर उनसे दिए खरीद कर रोशन करें। भारतीय पटाखे खरीद कर सिवाकासी (तमिलनाडू ) के डूबते हुए उद्योग को उबारें। 
और देश हित में जागरूकता फैलाने के लिए उत्पादों पर छपे बार कोड की पहली तीन डिजिट्स ---- 690,691,692,693,694,695,696,697,698,699 को याद रखें यह तीन डिजिट्स चीन की कम्पनियों के होते हैं और इस पोस्ट को एक बार शेयर करके अपने दायित्व के निर्वाहन में पहला कदम अविलम्ब उठायें। 

आपकी अतिरिक्त जानकारी के लिये भारतीय उत्पादों का बार कोड 890 से शुरू होता है। अन्य कुछ खास देशों के बार कोड यदि आप जानना चाहते हैं तो निम्न लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं। 

https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_GS1_country_codes


जय हिन्द ------

रविवार, 2 अक्टूबर 2016

33 साल पहले की मेरी सोच

1980 के दशक में दूरदर्शन पर दो सीरियल आते थे, जो आज की पीढ़ी को मालूम नहीं होंगे  --- 1) मानो या न मानो और 2) ऐसा भी होता है। 

उसी का सीक्वल आज मैं आपके सामने रख रहा हूँ, मानो या न मानो ------
बात आज से 33 साल पहले 1983  की है जब मैं 11वीं का छात्र हुआ करता था। बहुत ख्वाब देखता था और जब मुफ्त के ख्वाब खाता तो प्रधानमंत्री बनने से नीचे के नहीं खाता। देश को कैसे सुधारा जाये उसके लिए बहुत योजनाएं बनाया करता था। 
कुछ महीने पहले घर की साफ़ सफाई में बचपन की वो डायरी मिल गयी जिसमें मैं अपनी योजनाएं लिखा करता था। संकोच और आत्म प्रशंसा न कहलाये इसलिए उसे फिर से ठन्डे बास्ते में डाल दिया। लेकिन देश के वर्तमान हालात को देख कर लगता है कि देश में आज सब कुछ वही हो रहा है या होना चाहिए जो मैंने 36 साल पहले सोचा था। आइये आपको अपनी बचपन की सोच से वाकिफ करवाऊं। पन्नेवार  एक एक पृष्ट का तर्जुमा आपके सामने लिख रहा हूँ ---

1) नेत्रदान अनिवार्य कर देना चाहिए। 
2) सभी सांसदों और विधायकों को यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन द्वारा आयोजित परीक्षा पास करनी अनिवार्य हो तथा नामांकन से पूर्व वे अपनी चल और अचल संपत्ति की घोषणा करें। 
3 ) सभी प्रकार की हड़तालों और बंधों पर प्रतिबन्ध लग्न चाहिए। 
4) 4-5 सार्वजानिक अवकाश कम किये जाने चाहिए। 
5 ) अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की better Spot Purchase होनी चाहिए। 
6) NRI के लिए व्यावहारिक औद्योगिक नीतियां होनी चाहियें। 



पृष्ट -2 
7) सभी आतंकवादी संगठनों पर पूर्ण प्रतिबन्ध होना चाहिये। दंगों और आगजनी में लिप्त दोषियों को तुरंत मौत की सजा होनी चाहिए। ( उस समय पंजाब में आतंकवाद चरम पर था)
8) भ्रष्ट एवं लापरवाह अधिकारियों को 20 सालों के जेल में डाल देना चाहिए। 
9 ) इजराइल और विएतनाम से मित्रता करनी चाहिए। 
10 ) सर्कस वालों की मदद की जानी चाहिए। 
11 ) आरक्षण का आधार अनुसूचित जातियाँ और जनजाति न हो कर आर्थिक रूप से पिछड़े तथा विकलांगों के लिए होना चाहिए। 
पृष्ट -3 
12) हर उद्योग को अपने उत्पादों में हर छह माह में कुछ सुधार दिखाना होगा। ( आज हम चीनी उत्पादों से प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में नहीं हैं) . 
13 ) सारे स्विस एकाउंट्स या तो भारत में ट्रांसफर कर दिए जाएँ या उन्हें जब्त कर लिया जाये। 
14) नदियाँ को स्वच्छ किया जाये। 
15 ) जिसके पास भी मादक पदार्थ पाए जाएँ उसे तुरंत फांसी दे दी जाये। 
16) दुल्हनों को जलाने वालों जो भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिम्मेदार हों , यदि सरकारी नौकरी में हों तो उनकी नौकरी ख़त्म कर देनी चाहिए यदि व्यवसाय हो तो उसे जब्त कर लेना चाहिए और कम से कम 7 वर्षों के लिए जेल की सज़ा होनी चाहिए। 
17) महिलाओं को देह व्यापार में धकेलने वालों को सजाये मौत मिलनी चाहिए। 












पृष्ट --4 
18) व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त लोगों को देश से बाहर जा कर नौकरी करने की इज़ाज़त न हो। 
19) व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण ( IIT, C.A ,M.B.B.S ) को सिविल सर्विसेज में जाने की इज़ाज़त न हो। 
20) अपने क्षेत्रों में पेड़ लगाने की ज़िम्मेदारी ग्राम पंचायतों की तय की जाये। 
21) प्री नर्सरी और पांचवी तक और उसके पश्चात् हिंदी अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाये। 
22) प्राथमिकता के आधार पर जहाँ भी संभव हो जलविद्युत परियोजनाएं बनायीं जाएँ। ( आज चीन ब्रह्मपुत्र पर कर रहा है और हमें सिंधु पर बांध बनाने की ज़रुरत महसूस हो रही है )
23) हर वैज्ञानिक खोज को भव्य तरीके से पुरुस्कृत किया जाये। 
24) हर गांव में स्कूल और अस्पताल हो। 

#मानो_या_न_मानो ये मेरे बचपन की तब की सोच है जब मैं न तो शरीयत/इस्लाम  के विषय में जानता था न मूलनिवासी के कांसेप्ट से वाकिफ था। निवेदन है इसे मेरी आत्मप्रशंसा न समझ कर बस बचपन की यादें समझ कर इन पर हँसियेगा नहीँ। 

शनिवार, 1 अक्टूबर 2016

जापान की एप्पल डिप्लोमेसी

1 अक्टूबर 1949 को "पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना" बने चीन ने कल भारत के खिलाफ दुबारा से अपने इरादे साफ़ कर दिए। एक ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का पानी रोक कर और दूसरे संयुक्त राष्ट्र द्वारा अज़हर मसूद को आतंकवादी घोषित करने की प्रक्रिया में अपने वीटो का पुनः इस्तेमाल करके। चीन अपने हितों को देखते हुए कुछ भी गलत नहीं कर रहा है। चीन को पकिस्तान का साथ चाहिए क्योंकि उसे इस क्षेत्र में एक रणनीतिक साझेदार / सामरिक हितों को साधने वाला चाहिए। उसे समुद्र का लम्बा छोड़कर ग्वादर बंदरगाह तक पहुँचाने के लिए एक चोट रास्ता चाहिए जो POK से ही निकल सकता है। उसे अपनी सस्ते माल औद्योगिक इकाइयों को जिन्दा रखने के सस्ता खनिज चाहिए जो चीन पकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर के 3000 हज़ार किलोमीटर में भरा पड़ा है।इस सबके के लिए वो इस कॉरिडोर पर $46 बिलियन खर्च कर रहा है। इस 46 बिलियन में से 35 बिलियन बिजली उत्पादन पर खर्च करेगा जिसकी पकिस्तान को बहुत सख्त जरूरत है। नए रोज़गार पैदा करेगा जिसकी पकिस्तान को सख्त ज़रुरत है। पकिस्तान को एक ऐसे दोस्त की ज़रुरत है जो भारत के खिलाफ वक्त बेवक़्त हर गलत और सही में उसके साथ खड़ा हो। 

दिल्ली पर मुग़ल सल्तनत और इस्लाम का झण्डा फहराने का ख्वाब पलने वाले पकिस्तान को चीन में इस्लाम का क्या हाल है उसकी पूरी खबर है---- दाढ़ी, बुर्के, नमाज़ और रोज़ों पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है। चीन में कोई भी देशविरोधी या आतंकवादी गतिविधि के लिए सिर्फ एक सज़ा है सजाये मौत। 
लेकिन फिर भी चीन पकिस्तान को खुश करने के लिए अज़हर मसूद कोअंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी घोषित नहीं होने दे रहा और पकिस्तान चीन को भारत की गर्दन तक पहुँचाने के लिए बैसाखियाँ दे रहा है। दोनों देशों की सोच के दूरगामी परिणाम होंगे। चीन जो किसी अंतरराष्ट्रीय कानून को नहीं मंटा इस क्षेत्र का माफिया होगा और पाकिस्तान अपना घर लुटवाने वाला गुर्गा। 
आने वाले दिनों में जो होगा देखा जायेगा , कह कर हम इस समस्या की अनदेखी करने की बेवकूफी नहीं कर सकते। गौर करें चीन ने भारत पकिस्तान और इजराइल सिंगापुर के बाद एक देश का रूप लिया था और आज चीन, इजराइल सिंगापुर कहाँ हैं और भारत और पकिस्तान कहाँ हैं। इन देशों ने यह देश के हितों को सर्वोपरि रखते हुए पंचवर्षीय को जगह पचास वर्षीय योजना बनायीं। देशवासियों को औकात में रखने के लिए न सिर्फ कड़े कायदे क़ानून बनाये बल्कि उनका कड़ाई से पालन भी किया और आज ये सब देश अपनी शर्तों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बात करते है। 

जापान को भी आप इन्ही देशो की श्रेणी में रख सकते हैं क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बर्बाद जापान ने भी 1947  में ही राजा को सर्वोपरि मानते हुए प्रजातन्त्र बहाल करने वाले संविधान को अपनाया था। और जब देशहित की बात आती है तो न सिर्फ जापानी सरकार की नीतियां स्पष्ट हैं बल्कि देश की जनता भी देश के लिए एक साथ कड़ी होती है। 
बात शुरू हुई थी --#एप्पल_डिप्लोमेसी से। जी आज की तरह एक समय था जब अमरीका अपने व्यापार को बढ़ने के लिए हर किस्म की दादागिरी करता था। जापान में कृषि के लिए ज़मीन कम होने के कारण वहां कृषि उत्पादों की कीमत अधिक होती है। अंतरराष्ट्रीय नियमो के तहत जापान को निर्यात के साथ आयत करना भी ज़रूरी था। 
इन्ही कृषि उत्पादों में सेब भी आता है। जितना सेब वाशिंगटन स्टेट के 35% हिस्से में होता है उतना सेब पूरे जापान में होता है।  साधारण से बात थी कि यदि अमरीका का सेब जापान में आया तो बहुत कम दाम पर मिलेगा और जापान के सेब उत्पादकों का भारी नुकसान होता। जापान की सरकार की सरकार ने बहुत कड़े नियम बनाये लेकिन अमरीका के सेबों की दो किसमे उन्हें पास कर गयीं। 
अमरीका उत्साह से भर गया कि जापान के बाज़ारों में 60 -100 मिलियन डॉलर प्रति वर्ष के सेब बेचे जा सकते हैं। पहले वर्ष सिर्फ पंद्रह मिलियन डॉलर के सेब बिके। दूसरे वर्ष डेढ़ मिलियन डॉलर के सेब बिके। तीसरे वर्ष से अमरीका के व्यापारियों ने जापान में सेब भेजने खुद बंद कर दिए। ऐसा नहीं है कि जापान में अन्य देश सेब नहीं भेजते और वे सेब बिकते नहीं हैं। बिकते हैं लेकिन बहुत कम बिकते हैं। अमरीकी सेबों की असफलता के बहुत से कारण ढूंढें और बताये गए जिनमे सेबों के छिलकों का पतला होना उनके स्वाद का अलग होना वगैरह वगैरह होना। लेकिन जो कारण जानते हुए भी नहीं बोले वो था देश की जनता का अपने सेब उत्पादकों के साथ खड़े होना और अमरीका के मामले में यह न भूलना कि इसने कभी हमारे देश पर परमाणु बम गिराए थे। 
देश और सरकार कैसे चलानी है दिन भर फेसबुक पर ऐसी नसीहतें देने वाले ब्रह्मज्ञानियों पहले यह तो देख लो तुम देश के लिए क्या कर सकते हो। बहुत ज्यादा मेहनत और पैसा नहीं लगेगा चीनी माल का बहिष्कार करने में। 
कल तक जो सूरमा पकिस्तान से तुरंत बदला लेने के लिए आक्रमण आक्रमण चिल्ला रहे थे ,वो अपनी नाक से आगे दो इंच देख कर चीनी माल का बहिष्कार भी नहीं कर पाएंगे। 
अरे कुछ नहीं नहीं कर सकते तो यह पोस्ट ही अपनी अपनी वाल पर कॉपी पेस्ट कर देना हो सकता है, हो सकता है चार लोग और इस मुहीम से जुड़ जाएँ। अगर आज यह नहीं किया तो 10 साल बाद कुछ नहीं कर पाओगे।जरूरी नहीं है की हर लड़ाई सरहद पर ही लड़ी जाये। यह भी जरूरी नहीं है कि आप सरहद पर जा कर गोलियाँ चलाएं तभी आपको युद्ध में शामिल माना जायेगा। देशभक्ति निभाने के बहुत से तरीकों में विदेशी माल का बहिष्कार भी एक तरीका है और इस समय आपको पकिस्तान से ज्यादा खतरा चीन से है।  जय हिन्द।      

जापान की एप्पल डिप्लोमेसी

1 अक्टूबर 1949 को "पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना" बने चीन ने कल भारत के खिलाफ दुबारा से अपने इरादे साफ़ कर दिए। एक ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का पानी रोक कर और दूसरे संयुक्त राष्ट्र द्वारा अज़हर मसूद को आतंकवादी घोषित करने की प्रक्रिया में अपने वीटो का पुनः इस्तेमाल करके। चीन अपने हितों को देखते हुए कुछ भी गलत नहीं कर रहा है। चीन को पकिस्तान का साथ चाहिए क्योंकि उसे इस क्षेत्र में एक रणनीतिक साझेदार / सामरिक हितों को साधने वाला चाहिए। उसे समुद्र का लम्बा छोड़कर ग्वादर बंदरगाह तक पहुँचाने के लिए एक चोट रास्ता चाहिए जो POK से ही निकल सकता है। उसे अपनी सस्ते माल औद्योगिक इकाइयों को जिन्दा रखने के सस्ता खनिज चाहिए जो चीन पकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर के 3000 हज़ार किलोमीटर में भरा पड़ा है।इस सबके के लिए वो इस कॉरिडोर पर $46 बिलियन खर्च कर रहा है। इस 46 बिलियन में से 35 बिलियन बिजली उत्पादन पर खर्च करेगा जिसकी पकिस्तान को बहुत सख्त जरूरत है। नए रोज़गार पैदा करेगा जिसकी पकिस्तान को सख्त ज़रुरत है। पकिस्तान को एक ऐसे दोस्त की ज़रुरत है जो भारत के खिलाफ वक्त बेवक़्त हर गलत और सही में उसके साथ खड़ा हो। 

दिल्ली पर मुग़ल सल्तनत और इस्लाम का झण्डा फहराने का ख्वाब पलने वाले पकिस्तान को चीन में इस्लाम का क्या हाल है उसकी पूरी खबर है---- दाढ़ी, बुर्के, नमाज़ और रोज़ों पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है। चीन में कोई भी देशविरोधी या आतंकवादी गतिविधि के लिए सिर्फ एक सज़ा है सजाये मौत। 
लेकिन फिर भी चीन पकिस्तान को खुश करने के लिए अज़हर मसूद कोअंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी घोषित नहीं होने दे रहा और पकिस्तान चीन को भारत की गर्दन तक पहुँचाने के लिए बैसाखियाँ दे रहा है। दोनों देशों की सोच के दूरगामी परिणाम होंगे। चीन जो किसी अंतरराष्ट्रीय कानून को नहीं मंटा इस क्षेत्र का माफिया होगा और पाकिस्तान अपना घर लुटवाने वाला गुर्गा। 
आने वाले दिनों में जो होगा देखा जायेगा , कह कर हम इस समस्या की अनदेखी करने की बेवकूफी नहीं कर सकते। गौर करें चीन ने भारत पकिस्तान और इजराइल सिंगापुर के बाद एक देश का रूप लिया था और आज चीन, इजराइल सिंगापुर कहाँ हैं और भारत और पकिस्तान कहाँ हैं। इन देशों ने यह देश के हितों को सर्वोपरि रखते हुए पंचवर्षीय को जगह पचास वर्षीय योजना बनायीं। देशवासियों को औकात में रखने के लिए न सिर्फ कड़े कायदे क़ानून बनाये बल्कि उनका कड़ाई से पालन भी किया और आज ये सब देश अपनी शर्तों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बात करते है। 

जापान को भी आप इन्ही देशो की श्रेणी में रख सकते हैं क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बर्बाद जापान ने भी 1947  में ही राजा को सर्वोपरि मानते हुए प्रजातन्त्र बहाल करने वाले संविधान को अपनाया था। और जब देशहित की बात आती है तो न सिर्फ जापानी सरकार की नीतियां स्पष्ट हैं बल्कि देश की जनता भी देश के लिए एक साथ कड़ी होती है। 
बात शुरू हुई थी --#एप्पल_डिप्लोमेसी से। जी आज की तरह एक समय था जब अमरीका अपने व्यापार को बढ़ने के लिए हर किस्म की दादागिरी करता था। जापान में कृषि के लिए ज़मीन कम होने के कारण वहां कृषि उत्पादों की कीमत अधिक होती है। अंतरराष्ट्रीय नियमो के तहत जापान को निर्यात के साथ आयत करना भी ज़रूरी था। 
इन्ही कृषि उत्पादों में सेब भी आता है। जितना सेब वाशिंगटन स्टेट के 35% हिस्से में होता है उतना सेब पूरे जापान में होता है।  साधारण से बात थी कि यदि अमरीका का सेब जापान में आया तो बहुत कम दाम पर मिलेगा और जापान के सेब उत्पादकों का भारी नुकसान होता। जापान की सरकार की सरकार ने बहुत कड़े नियम बनाये लेकिन अमरीका के सेबों की दो किसमे उन्हें पास कर गयीं। 
अमरीका उत्साह से भर गया कि जापान के बाज़ारों में 60 -100 मिलियन डॉलर प्रति वर्ष के सेब बेचे जा सकते हैं। पहले वर्ष सिर्फ पंद्रह मिलियन डॉलर के सेब बिके। दूसरे वर्ष डेढ़ मिलियन डॉलर के सेब बिके। तीसरे वर्ष से अमरीका के व्यापारियों ने जापान में सेब भेजने खुद बंद कर दिए। ऐसा नहीं है कि जापान में अन्य देश सेब नहीं भेजते और वे सेब बिकते नहीं हैं। बिकते हैं लेकिन बहुत कम बिकते हैं। अमरीकी सेबों की असफलता के बहुत से कारण ढूंढें और बताये गए जिनमे सेबों के छिलकों का पतला होना उनके स्वाद का अलग होना वगैरह वगैरह होना। लेकिन जो कारण जानते हुए भी नहीं बोले वो था देश की जनता का अपने सेब उत्पादकों के साथ खड़े होना और अमरीका के मामले में यह न भूलना कि इसने कभी हमारे देश पर परमाणु बम गिराए थे। 
देश और सरकार कैसे चलानी है दिन भर फेसबुक पर ऐसी नसीहतें देने वाले ब्रह्मज्ञानियों पहले यह तो देख लो तुम देश के लिए क्या कर सकते हो। बहुत ज्यादा मेहनत और पैसा नहीं लगेगा चीनी माल का बहिष्कार करने में। 
कल तक जो सूरमा पकिस्तान से तुरंत बदला लेने के लिए आक्रमण आक्रमण चिल्ला रहे थे ,वो अपनी नाक से आगे दो इंच देख कर चीनी माल का बहिष्कार भी नहीं कर पाएंगे। 
अरे कुछ नहीं नहीं कर सकते तो यह पोस्ट ही अपनी अपनी वाल पर कॉपी पेस्ट कर देना हो सकता है, हो सकता है चार लोग और इस मुहीम से जुड़ जाएँ। अगर आज यह नहीं किया तो 10 साल बाद कुछ नहीं कर पाओगे।जरूरी नहीं है की हर लड़ाई सरहद पर ही लड़ी जाये। यह भी जरूरी नहीं है कि आप सरहद पर जा कर गोलियाँ चलाएं तभी आपको युद्ध में शामिल माना जायेगा। देशभक्ति निभाने के बहुत से तरीकों में विदेशी माल का बहिष्कार भी एक तरीका है और इस समय आपको पकिस्तान से ज्यादा खतरा चीन से है।  जय हिन्द।