शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

ऐसे नेता ही पूजे जाते हैं भारत में

खुलते गए मेरे सामने दरवाजों में लगे आईने 
देखा कि  उस मकान में हर अक्स बदहाल था 
आँखों में जिनके बस गयी दुनिया भर की रौनकें 
वो शख्स बेवफाई का एक ज़िंदा मिसाल था। 
इस पोस्ट को चाहें आप,ट्रिप्पल तलाक मामले में पैदा हुए विवाद से जोड़कर देख लें, चाहें सर्जिकल स्ट्राइक पर भारत की भद्द पिटवाने वालों से जोड़ कर देखें, चाहें JNU में भारत विरोधी नारे लगाने वालों से या फिर इस पोस्ट की अंतिम पंक्ति तक पढ़ कर तय कीजिये भारत की ज़मीन किस तरह के नेताओं को पूजती है। ( इस पोस्ट में जो तीन तिथियां दी गयीं हैं , उन्हें दिमाग में रखियेगा )
#नवम्बर_1949 , संविधान सभा में संविधान पूरा होने पर धन्यवाद प्रस्ताव दिए जा रहे थे, तो अम्बेडकर जी ने भी भाषण दिया जो कि संक्षेप में इस प्रकार से है -----
जैसे कि सदन के सदस्यों एवं ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों द्वारा मेरी प्रशंसा के पुल बांधे जा रहे हैं उससे मैं इतना अभिभूत हो गया हूँ कि मेरे पास उनका आभार प्रकट करने के लिए शब्द नहीं हैं। मैं तो संविधान सभा में अनुसूचित जातियों के हितों की रक्षा के अतिरिक्त कोई महत्वकांक्षा ले कर नहीं आया था। मुझे दूर तक अंदाजा नहीं था कि मुझे उससे ज्यादा ज़िम्मेदारी सौंपी जाएगी। इसलिए मैं चकित रह गया जब संविधान सभा ने ड्राफ्टिंग कमेटी के लिए मेरा चयन किया। उससे भी ज्यादा मुझे आश्चर्य तब हुआ जब मुझे ड्राफ्टिंग कमेटी ने चेयरमैन चुना। ड्राफ्टिंग कमेटी में मुझसे बड़े , बेहतर और योग्य लोग थे ,जैसे कि मेरे मित्र सर अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर। मैं संविधान सभा का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे देश सेवा का यह अवसर प्रदान करने के लिए मुझ पर भरोसा जताया। 
जो श्रेय मुझे दिया जा रहा है वो मेरा नहीं बल्कि कुछ हद तक सर बी. एन राउ तथा ड्राफ्टिंग कमेटी के अन्य सदस्यों को जाता है। इसका अधिक श्रेय मैं श्री एस एन मुखर्जी , जो कि इसके मुख्य लेखक हैं उनको देता हूँ। ----------------------------------------------------------------------------------  
( Consitituent Assembly Debates , Vol.X,pp.973-74)

इसके आगे अम्बेडकर कहते हैं -----
मैं यहाँ पर समाप्त कर सकता था परंतु मेरा दिमाग भारत के भविष्य को लेकर विचारों से भरा हुआ है उनको मैं यहाँ व्यक्त करना चाहूँगा। 26 जनवरी 1950 को भारत एक स्वतंत्र देश होगा। उसकी आज़ादी का क्या होगा ??? क्या यह देश अपनी आज़ादी बरकरार रख पायेगा या फिर से इसे खो देगा ????यह पहला ख्याल मेरे दिमाग में आ रहा है। इअसा नहीं है कि भारत पहले कभी एक स्वतंत्र देश नहीं रहा है। लेकिन विचारणीय यह है कि इसने अपनी आज़ादी एक बार पहले खोई है। क्या यह दुबारा अपनी आज़ादी खोएगा ??? ये ख्याल मुझे भविष्य के लिए चिन्तातुर कर रहा है। जिस तथ्य की वजह से यह चिंता है वो यह नहीं है कि इस देश ने अपनी स्वतंत्रता खोई थी बल्कि वो स्वतन्त्रता अपने ही लोगों के भितरघात और विश्वासघात के कारण खोई थी। सिंध पर मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के दौरान राजा दाहिर के सेनापतियों ने कासिम से रिश्वत खा कर कासिम के खिलाफ लड़ाई करने से इनकार कर दिया था। जयचंद ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वी राज चौहान के खिलाफ आक्रमण करने का न्यौता दिया था जिसमे उसने अन्य सोलंकी राजाओं द्वारा सहायता का वायदा किया था। जब शिवाजी हिंदुओं की आज़ादी के लिए लड़ रहे थे उस समय बहुत से मराठा सरदार मुगलों की तरफ से उनके खिलाफ लड़ रहे थे। जा अँगरेज़ सिख राजाओं को ख़त्म करने का प्रयास कर रहे थे तो सिखों का मुख्य सेनापति गुलाब सिंह चुपचाप बैठा रहा और उसने सिख साम्राज्य बचाने की कोई कोशिश नहीं की। 1857 में जब पूरा देश अंग्रेजों की सत्ता उखाड़ कर फेंक देने के लिए लड़ रहा था उस समय सिख ख़ामोशी से तमाशा देख रहे थे। 
क्या इतिहास अपने को दोहराएगा ??? ये जो ख्याल है ये आज मेरी चिंता का विषय है। मेरी चिंता और बढ़ जाती है जब मैं सोचता हूँ कि जातियों और मज़हबों के पुराने दुश्मनों के साथ भविष्य में हमारे यहाँ भांति भांति के अनेक विरोधी पंथों वाले राजनीतिक दल होंगे। क्या भारतीय अपने देश को अपने पंथों /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब से ऊपर रखेंगे या अपने पंथों /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब को देश से ऊपर रखेंगे ???? मुझे नहीं मालूम। पर यह निश्चित है की यदि ये राजनैतिक दल अपने पंथों /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब को देश से ऊपर रखेंगे तो ये भारत की स्वतंत्रता को दुबारा खतरे में डाल देंगे और इस बार स्वतंत्रता हमेशा के लिए खो जायेगी। इस संभावित घटना के प्रति हमें सचेत रहना होगा। 

( Consitituent Assembly Debates , Vol.X,pp.977 -78) 

ये उन अम्बेडकर के ख्यालात हैं जिन्होंने मात्र तीन साल पहले ---
#14_मई_1946 में वाइसराय लार्ड वेवेल और ब्रिटिश कैबिनेट मिशन के सदस्य ए वी एलेग्जेंडर को यह लिख कर याद दिलाया था और भारत को आज़ादी देने और भारत छोड़कर न जाने के लिए कहा था कि -----" भारत में ब्रिटिश राज्य के लिए अंग्रेजों को अछूतों की मदद का एहसानमंद होना चाहिए। बहुत से अँगरेज़ सोचते हैं कि भारत को क्लाइव , हैस्टिंग्स, कूट्स और अन्य अंग्रेजों ने जीता था। इससे बड़ी भूल और कोई हो ही नहीं सकती। भारत को भारत की सेना ने जीत था और उस सेना में सिर्फ अछूत थे। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य असम्भव था यदि अछूतों ने उनकी सहायता न की होती। चाहें प्लासी के युद्ध की घटना को ले लें जिससे बारिश साम्राज्य की भारत में नींव पड़ी थी चाहें किर्की के युद्ध की घटना को ले लें जिससे बभरत में ब्रिटिश साम्राज्य पूरा हुआ था। इन दोनों लड़ाईयों में जो सैनिक अंग्रेजों के लिए लड़े थे वे अछूत थे। 

( Dr.Ambedkar, Writings and Speeches, Vol X, pp 492-99)

और ये वो अम्बेडकर थे जिन्होंने 1953 में संसद में यह भी कह दिया था कि मेरा बस चले तो इस संविधान को आग लगा दूँ। 
 देश को पंथ  /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब से ऊपर रखने की नसीहत देने वाला पंथ  /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब को देश के आगे रख कर #14_अक्टूबर_1956 को हिन्दू समाज का एक औए टुकड़ा कर गया ।
दिक्कत बौद्धों से नहीं है ,
फ़ेसबुकिया बौद्धों से है। दिक्कत मुसलमानों से नहीं है उन मुसलामानों से है सो अपने आपको पहले मुसलमान फिर भारतीय बोल कर अपने क़ानून को संविधान और सुप्रीम कोर्ट से ऊपर समझते हैं।  दिक्कत सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाने वालों से नहीं है उनसे है जो ऐसा करते करते पकिस्तान के पाले में खड़े होजाते हैं। दिक्कत JNU में मोदी किआ पुतला जलाने से नहीं है बल्कि "भारत तेरे टुकड़े होंगे -इंशा अल्लाह ,इंशा अल्लाह " जैसे नारों से है। 
भारत दुबारा गुलाम तो नहीं होगा ,पर भितरघाती बहुत पैदा हो गए हैं इस स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति की आड़ में। 

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