शनिवार, 23 दिसंबर 2017

हिन्दुओं के खिलाफ वैश्विक षड्यंत्र



माँ दुर्गा को अपशब्द कहे जाते है , महिषासुर मंडन किया जाता है , मूलनिवासी शब्द की परिकल्पना की जाती है , गाय का माँस खाना प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया जाता है। आपको क्या लगता है कि एक सदी में ही सीधे सादे हिन्दुओं के जैविक गुणों में इतना परिवर्तन हो गया कि वे अपने बाप दादाओं की आस्था को ताक पर रख देंगे। हिन्दुओं के धर्म का बलात्कार हो रहा है और कविता कृष्णन ,गौरी लंकेश जैसे धर्मनिरपेक्ष उसे सम्भोग समझ कर अपनी इज़्ज़त लुटवाने में मस्त हैं। फेसबुक पर मेरे कुछ मित्रों को मैकाले ने जो धर्मनिरपेक्षता का चश्मा पहना रखा है उसे मैं एक आध टिप्पणी से नहीं उतार सकता। बहुत मन करता है कि उनसे कहूँ कि इस समय  दुश्मन गौरी , ग़ज़नवी , औरंगज़ेब, रोबर्ट क्लाइव ,या जनरल डायर सामने से नज़र आने वाले नहीं हैं , वैश्विक शक्तियां वामपंथियों , ईसाईयों और इस्लाम के के साथ मिल कर बहुत महीन तरीके से आपको हलाल कर रहीं हैं लेकिन प्रमाण होते हुए भी ये लोग देखना क्यों नहीं चाहते ???
ऐसा नहीं है कि आपने कभी नहीं सुना होगा कि मिशनरी / कान्वेंट स्कूलों में राखी जैसा त्यौहार भी नहीं मनाने देते तो फिर इस बात का प्रतिरोध क्यों किया जा रहा है कि हिन्दू बाहुल्य स्कूलों में क्रिसमस मनाने के लिए बाध्य न किया जाये ???  
क्या कभी सोचा कि क़त्ल तो रोज़ ही होते हैं फिर अख़लाक़, पहलु , जुनैद, अफ़ज़ारूल की हत्या ऐन चुनाव से पहले क्यों होती है और यह राष्ट्रीय मुद्दा बनकर सिर्फ चुनावों तक ही क्यों ज़िंदा रहता है ???? क़त्ल और बलात्कार तो रोज़ होते हैं फिर ख़बरों की सुर्खियां यह ही क्यों बनते हैं ???
मान लिया कश्मीर के समय इंटरनेट और सोशल मीडिया नहीं था, मगर 2011 में हुए आसाम के दंगे, उसके बाद पश्चिम बंगाल में ऐन त्यौहार के दिनों में दंगे, केरल के हिन्दुओं की हत्याएं , कैराना से हिन्दुओं का पलायन ये सब राष्ट्रीय मुद्दा क्यों नहीं बनते, बोडो ईसाईयों ने पिछले दस सालों में बीस हज़ार से ज्यादा हिन्दुओं को मार दिया , कहीं किसी ने  मोमबत्ती जलाई ???
सुकमा में 70 CRPF के जवानों के मरने पर जश्न और अफ़ज़ल / याकूब मेमन के मरने पर मातम कौन मनाता है  ??? देशद्रोहियों को नायक कौन बनता है ???

बहुत हो हल्ला किया था कुछ खास वर्ग  लोगों और NGOs ने जब 25 NGO का राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के कारण और 11319 NGOs  का लाइसेंस उनकी संशयात्मक गतिविधियों के कारण  2015-16 में निरस्त किया गया। कितना पैसा आता है विदेशों से ???
गृह मंत्रालय के हवाले से 2002-03 में 5046 करोड़ रूपए, 2005-06 में 7500 करोड़ , 2011-12 में 10334 करोड़ , 2012-13 में 9423 करोड़, 2013 -14  में 13092 करोड़ 2014-15 में 14525 करोड़ , 2015-16  में 17208 करोड़। गौर करें जब से मोदी आये है तबसे भारत के ऊपर विदेशों से चंदा देने वालों की कृपा में इज़ाफ़ा होता जा रहा है। क्यों ???? जवाब आप खुद ढूंढिए। 

 
 द हिन्दू में प्रकाशित एक और  रिपोर्ट के अनुसार इस पैसे का 80% पैसा --दिल्ली, तमिलनाडु , केरल महाराष्ट्र , आंध्र प्रदेश, नार्थ ईस्ट स्टेट्स , कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के राज्यों को जाता है। जबकि इस 80 %  का 33 % लगभग 4500 करोड़ केवल दिल्ली और तमिलनाडु में बैठी NGO को आता है।क्यों ??? भाई क्या गरीब यू पी और बिहार में नहीं रहते ??? फिर उपरोक्त राज्यों पर इतनी इनायत क्यों ??? यहाँ भी जवाब आप खुद सोचिये। 

वर्तमान पोप ने 1997 में एक वेटिकन दस्तावेज़ प्रस्तुत किया था ___#डोमिनस_जीसस जिसमे हिन्दू और बौद्ध धर्म की भरसक आलोचना की थी। इसी श्रृंखला में अमरीका में ईसाई मत के प्रचारक पैट रॉबर्टसन ने एक करोड़ हिन्दुओं को अगले कुछ वर्षों में बंधनों से मुक्त करवाने की घोषणा की थी। 
फरवरी 2004 के #तहलका अखबार के एक अंक में वी के शशिकुमार ने एक लेख लिखा था -- "Bush's Conversion Agenda for India " जिसमे #प्रोजेक्ट_जोशुआ (I) और (II)के विषय में बताया गया था।  इस प्रोजेक्ट के अनुसार भारत में धर्मप्रचारकों को 152786 पोस्ट ऑफिस चिन्हित करने थे।  इस प्रोजेक्ट के ऊपर चर्चा के लिए सितम्बर 2005 में Dallas और Texas में सम्मलेन हुआ कि भारत में 2020 तक 10 करोड़ ईसाई बनाने हैं। 

चूँकि चूतियों की आँखों पर धर्मनिरपेक्षता का चश्मा चढ़ा हुआ है इस लिए इन्हे न तो तमिलनाडु में पिछले 20  वर्षों में बने हुए 17500 चर्चों , 9700 मस्जिदों  और 370 मंदिरों के बनने की संख्या में कोई असमानता नज़र आती है न इन्हे धर्म  आधार पर तमाम राज्यों की जनसँख्या में होते  बदलाव  नज़र आ हैं न इन्हे तमाम मीडिया चैनलों , पोर्टलों और अखबारों के हिन्दू विरोधी प्रचार और मानसिकता का पता चलता है। आंकड़े बता रहे हैं कि 70 के दशक में अरुणाचल प्रदेश में 1710 ईसाई थे आज 12 लाख से ऊपर हैं। 780 चर्च हैं। त्रिपुरा में आज़ादी के समय ईसाई थे ही नहीं आज सवा लाख से ऊपर हैं और ये सवा लाख भी 1990 के बाद हुई 100% बढ़ौतरी के बाद हुए हैं। एक मित्र ने दो दिन पहले ही पश्चिमी चम्पारन के नरकटियागंज से सन्देश भेजा कि इनके घर के पास एक चर्च है जिसमे 100-150 लोगों का हर महीने धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। इन मित्र के अनुसार 10 साल पहले यहाँ 50 ईसाई भी नहीं थे आज हजारों की संख्या में है। इस साल जब बिहार में बाद आयी तो मिशनरियों ने यहाँ खूब सामन बांटा लेकिन पता पूछ पूछ कर। आज उन्हीं पतों पर जाकर धर्मान्तरण कर रहे है। तमिलनाडु में 2004 आयी सुनामी के बाद ऐसे ही मदद बांटी, मदद के नाम पर बाइबिल भी बांटी  और नागापट्टिनम जिले का एक पूरा का पूरा गाँव धर्मांतरित कर दिया। 2014 की नेपाल की भूकंप त्रासदी में दुनिया जहान खाने पीने का सामन और कपडे भेज रही थी , मगर ईसाईयों ने पूरा का पूरा हवाईजहाज भर के बाइबल भेजी थी। दैविक आपदाओं से घिरे हुए लोगों की खरीदना कोई इनसे सीखे।  केरल के आंकड़ों में ईसाईयों की जनसँख्या तो 14% से 18.8% ही पहुंची है लेकिन जमीन और कृषि सम्बन्धी गतिविधियों में इनकी हिस्सेदारी 40%  और अन्य व्यवसायों में 31.5% के ऊपर है। हिन्दुओं की निष्क्रियता और निक्कमेपन की वजह मान सकते हैं कृषि और रोज़गारों में हिस्सेदारी घटने का लेकिन केरल में ईसाईयों के गॉड और भगवान् की कार्यशैली का फर्क समझिये। 
केरल में तटीय किनारों पर चर्चों में #मिरेकल_बॉक्सेस (चमत्कार डिब्बे) लगे हुए हैं।  इन डिब्बों में गरीब तबका अपनी जरूरत या इच्छाएं जैसे नाव खरीदने/ मकान खरीदने /लड़की की शादी के लिए पैसे चाहिए तो इसके अंदर लिख कर डाल  देते हैं।  और लीजिये कुछ दिनों में उनकी इच्छा पूरी हो जाती है। मगर हिन्दुओं के भगवान् ये सब नहीं कर पाते इसीलिए गॉड से मदद के अभिभूत  व्यक्ति पूरे परिवार के साथ ईसाई बन जाता है और अपने आस पड़ोस के लोगों को भी ईसाई बनने के लिए प्रेरित करता है। 

  इन सारी गतिविधियों के लिए भारत भर में 4000 से ज्यादा मिशनरी संस्थाएं , लाखों लोगों को इस रोज़गार लगाकर  पूरी मेहनत से यीशु भेड़ों को बटोरने मेंलगे हुए हैं। झुण्ड में से भेड़ें कम हो रहीं हैं सिर्फ यही कष्ट होता तो भी बर्दाश्त कर लिया जाता। लेकिन जो मुसलमान और ईसाई दुनिया भर में आपस में लड़ रहे हैं वो भारत में वामपंथियों के साथ मिल कर हर स्तर पर चाहें शारीरिक हो या बौद्धिक, चाहें धार्मिक हो या राष्ट्रीय, हिन्दुओं और भारत को नुक्सान पहुंचाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। नुक्सान पहुंचाने के लिए ये किसी भी छोटी से छोटी घटना जिसमे किसी नूं का ब्लातकार हो या चर्च के शीशे टूटना --पूरी  संसद हिला देते हैं और पूरे विश्व में हिन्दुओं  खिलाफ भरपूर दुष्प्रचार करते हैं। अंत में निकलता क्या है की ये घटनाएं शांतिप्रिय मज़हब के लोगों की दें थी लेकिन तब तक ये विश्वभर में हर स्तर पर हिन्दुओं को बदनाम कर चुके होते हैं। अलग राज्यों की मांग, हड़ताल, बंद, जेल भरो , रेल रोको, बांध न बनाओ, न्यूक्लिअर प्लांट न लगाओ, कोई फैक्ट्री न लगाओ  जैसी मुहिम इसी पैसे के दम पर चलतीं हैं। 
ज़ाकिर नायक का चंदा जग जाहिर हो गया है , लेकिन कभी सोचा हज के लिए सब्सिडी मांगने वाली कौम की मस्जिदें ीतिनि आलीशान किस पैसे से बन रहीं है ?? कभी सोचा जिन्हे ईसाईयों में हम मिशनरी कहते है इस्लाम में उसी काम को करने वालों को तब्लीगी बोलते हैं इन तब्लीगी गतिविधियों में संलिप्त ;आँखों लोगों का खर्च कहाँ से चलता है ???? 
हिन्दुओं के ऊपर तो रिलीजियस एंडोमेंट एक्ट भी थोप रखा है जिससे मंदिरों में चढ़ने वाला चढ़ावा भी सरकारें ले लेती है। चर्चों मस्जिदों और मजारों से क्या लिया जाता है ??? 
120 करोड़ लोगों के देश में आज 74% हिन्दू बचे हैं जो आज़ादी के समय 83 % होते थे। मुसलमान 8 % से बढ़कर 20 % हो गए। कोई बात नहीं। इन 120 करोड़ लोगों में सिर्फ 3.5% लोग इनकम टैक्स भरते है। अगर सिर्फ जनसँख्या को आधार मानलें तो भी सिर्फ 70 लाख मुसलमान ही टैक्स देते हैं और इन्हे हक़ भी चाहिए पूरे। क्यों न चाहे जब देश का पूर्व प्रधानमंत्री ही यह कहता है कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलामानों का है। मंदिरों का चंदा लुटवाने और सब तरीके के टैक्स देने के बाद , कश्मीर से केरल तक में मार खाने के बाद -------

कभी सोचियेगा क्या हिन्दू और हिन्दू धर्म इतना निकृष्ट हैं कि , हिन्दू नाम रखे हुए  साहित्यकारों , इतिहासकारों, नेताओं और नामचीन हस्तियों का क्या फायदा होता जब वे इन्हे असहिष्णु कहते हैं या तमाम तरीके की खामियां निकलते हैं ??? कभी सोचा कि कांचा इल्लैया,सुनील सरदार ,जॉन दयाल, ज़ाकिर नायक जैसे सैंकड़ों भारत में बैठे हुए आस्तीन के सांप हैं  जिन्हे विदेशो से यही सब करने के लिए पैसा आता है। पैसा आने का रास्ता साफ़ करतीं हैं कांग्रेस , वामपंथी और द्रमुक जैसी पार्टियां और इनके वो गुर्गे जो ऊँचे पदों पर बैठे हैं। 
ये जाल कितना फैला हुआ है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब मोदी सरकार ने इन विदेशी फंडिंग पर प्रतिबन्ध लगे तो दर्द इन सिर्फ NGOs  ईसाई मिशनरी  और ग्रीनपीस जैसी संस्थाओं को ही नहीं हुआ यूनाइटेड नेशन्स तक के पेट में मरोड़ उठ गयी थी। क्यों ???? समझ पा रहे हैं न आप, भारत के खिलाफ कौन कौन काम कर रहा है ???? 
क्यों न हो हिन्दू असहिष्णु ???
कुछ भी लिख पढ़ ले हम मगर कल बहुत से लोग यही कहेंगे " मेरी क्रिसमस" यह कहना का दम ही नहीं है "तेरी क्रिसमस"

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

इस बिमारी कानाम है #मैकॉलिस्म

यह पोस्ट उन हिन्दुओं के लिए है जिन्हे अख़लाक़, जुनैद, पहलू और गौरी लंकेश की मौत पर प्रीमैच्योर डिलीवरी होगयी थी। जिन्हे अफ़ज़ारूल की हत्या और हिन्दू बाहुल्य स्कूलों में क्रिसमस के विरोध पर परेशानी और बेचैनी होने लगी थी  और भविष्य में बहुत बार होगी। उस बिमारी का नाम क्या है यह मैं पोस्ट के अंत में बताऊंगा ,लेकिन पहले इस बिमारी के 5 लक्षणऔर कारण गौर से और विस्तार से पढ़ लीजिये। 
1 ) इनका शुरुआती लक्षण है कि ये इस बात से इंकार करते हैं कि हिन्दू समाज और संस्कृति को किसी प्रकार का संकट है, आप इनके सामने कितने भी अकाट्य तर्क प्रस्तुत कर दीजिये अफगानिस्तान दिखा दीजिये , पकिस्तान दिखा दीजिये , कश्मीर दिखा दीजिये , केरल या बंगाल दिखा दीजिये पर तथ्यों को मानने की जगह ये आपको डर फैलाने वाला,साम्प्रदायिक,फासिस्ट और तरह तरह के नामों से सम्बोधित करने लगेंगे। ये हर शख्स को इन नामों से सम्बोधित करंगे जो हिन्दुओं के आत्मरक्षा के पक्ष में  बोलेगा। और इन सबके ऊपर तुर्रा ये कि दूसरे धर्मो की आक्रमकता को ये हिन्दुओं द्वारा किये जा रहे अत्याचारों का प्रतिउत्तर बताते हैं। 
2) दूसरे धर्मो के अतातायियों की आक्रमकता को ये बहुत ही दयनीय तरीके से वंचित और पददलित अल्पसंख्यक द्वारा हालातों के कारण  के रूप में पेश करते हैं ( गरीबी , भटके हुए नौजवान, बेरोज़गारी) जिन्हे हिन्दू समानता का हक़ नहीं देते जो संविधान ने उन्हें दे रखा है। 
3) इसके बाद वे पाखंड का आवरण ओढ़ कर सारी नैतिक ज़िम्मेदारी हिन्दुओं के सर पर डाल देते है , कि हिन्दू जिन्होंने इन्हे विशेषाधिकारों से वंचित किया है उनके उत्थान के लिए कुछ नहीं करते। हिन्दुओं का क्या खो जायेगा यदि हिन्दू अपने इन छोटे भाइयों के प्रति ज़रा सा उदार रवैय्या अख्तियार कर लेंगे। बेशक छोटे भाइयों से गलतियां हो जातीं है तो उनको माफ़ करने से हिन्दुओं का क्या चला जायेगा।
4) इतने में भी अगर हिन्दू न माना तो ये उग्र भाषण देना शुरू कर देते हैं कि हिन्दुओं के लिए यदि वाकई कोई डरने वाली बात है तो वो बाहरी आक्रमणों ( अन्य सम्प्रदायों) से नहीं बल्कि उनसे है जिन्हे हिन्दू की  व्यवस्था ने सदियों से प्रताड़ित किया था जिनके ऊपर सदियों से अत्याचार किये थे।  इन कारणों से हिन्दुओं का वंचित वर्ग दूसरे धर्मों और सम्प्रदायों की तरफ आकर्षित जहाँ उन्हें सम्मान और समानता मिलती है। यहाँ पर भी आप यदि सदियों से हुए अत्याचारों को , और इस्लाम और ईसाईयत में तथाकथित तमाम समानताओं को अकाट्य तर्कों से ख़ारिज कर दें तो वे अगले ब्रह्मास्त्र का  इस्तेमाल करते है। 
5) इनका ब्रह्मास्त्र यह है कि ये एकदम से आध्यात्म का चोला ओढ़ लेते हैं और फिर भाषण  शुरू होता है हिन्दुओं के  चिरकालीन संस्कारों और धार्मिक सहिष्णुता के परम्परा की दुहाई का। ( गौर करें यहाँ पर जितना उन्होंने इससे पहले हिन्दुओं को आततायी और अमानवीय करार दिया था , वो सब कुछ भूल जाते हैं) आपसे पूछा जाता है कि बुद्ध और गाँधी के देश के लोग कैसे इस्लाम और ईसाइयत के स्तर पर उतर सकते हैं ??? हिन्दू , हिन्दू नहीं रह जायेंगे यदि वे भी अन्य धर्मो के स्तर पर उतर जायेंगे। वो कभी ईसाईयों और इस्लाम के मानने वालों को यही या ऐसी कोई हिदायत देने दम नहीं रखते क्योंकि उन्हें मालूम है कि उन्हें नसीहत देने का मतलब वैसे ही गलियां खाना है जैसे हिन्दुओं को या ईसाईयों / इस्लाम का विरोध करने वालों को दी जाती हैं। ऐसा करके वो अपनी धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील छवि को बट्टा नहीं लगाना चाहते जिसका आवरण वे हिन्दुओं को अपशब्दों से नवाज़ कर ओढ़े घूम रहे हैं। 

किन लोगों में पाए जाते हैं उपरोक्त लक्षण ---- जो लोग मिशनरी / अंग्रेजी स्कूलों से पढ़ कर निकले हैं और अच्छे प्रतिष्ठानों में ठीक ठाक तनख्वाह पा रहे हैं या अपने व्यवसायों में लिप्त, अपने देश और धर्म से बिलकुल निर्लिप्त भारतीय इतिहास और संस्कारों से बिलकुल अनभिज्ञ हैं। इन्हें इससे कोई मतलब नहीं है कि गौमूत्र के अमरीका ने चार पेटेंट करवा लिए हैं लेकिन इनके लिए गौमांस पर प्रतिबन्ध इनकी खाने की स्वतन्त्रता और निजता पर हमला है। 
 इस बिमारी कानाम है #मैकॉलिस्म और यह सिर्फ #भारत_के_हिन्दुओं_में_ही_पायी_जाती_है।


 भारत में कांग्रेस और ईसाईयों का गठजोड़ समझने के लिए यदि मन करे तो नीचे वाला लिंक भी खोल कर पढ़ें। 



क्रमशः --- भारत में आपकी नाक के नीचे क्या हो रहा है ?????

शनिवार, 18 नवंबर 2017

पद्मावती का इतिहास


डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया में नेहरू ने खिलजी को महान बताया है और उसकी प्रशंसा की है कि उसने हिन्दू रानियों से शादी की थी।  हाँ नेहरू ने यह नहीं बताया कि खिलजी ने हिन्दू रानियों से शादियां कैसे उनके पतियों का क़त्ल करके कीं थीं। 

शांतिप्रिय मज़हब के अनुयायी और धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़े हुए हम विज्ञान और कॉमर्स के छात्रों को एक वाक्य में उड़ा कर चले जाते हैं कि रानी पद्मावती तो महज़ जायसी की कल्पना थीं उनका कहीं किसी इतिहास में कोई ज़िक्र नहीं है।
मेरे जैसे करोड़ों फेसबुक चलाने वाले जिनके ज्ञान का स्रोत फेसबुक या व्हाट्सएप है , बिना किसी प्रतिवाद के हाँ में हाँ मिला कर सन्नाटा खींच लेते हैं। 
इतिहास तो कुरान में बताये गए 6 दिन में दुनिया बनने का भी नहीं है। आदम और हव्वा ने सेब खाया था उसका भी नहीं है और चाँद के दो टुकड़े किये गए थे उसका भी नहीं। लेकिन रानी पद्मावती का इतिहास है , आपको पढ़ाया नहीं गया या आपने पढ़ा नहीं तो इसका मतलब यह नहीं है जलालुद्दीन अलाउद्दीन का चाचा और ससुर नहीं था। 
हो सकता है कि आपने इतिहास के पन्नो में यह ज़रूर पढ़ा हो अलाउद्दीन ने बेहद प्यार करने वाले अपने चाचा और ससुर को धोखे से मरवा कर अपने को 19 जुलाई 1296 को  सुलतान घोषित कर दिया था।
अपनी किताब #तारिख_ए_फ़िरोज़शाही में ज़िआउद्दीन बरनी ( 1285 -1357) अलाउद्दीन के बारे में लिखता है कि -----उसने अपने जीवन में दो उद्देश्य बनाये थे ;यथा ---वह एक नए धर्म को प्रचलित करना चाहता था तथा सिकंदर महान के समान विश्व विजय करना चाहता था। 
अपने प्रथम उद्देश्य में वह कहा करता था -----" ईश्वर ने अपने प्रवर्तक को चार मित्र प्रदान किये थे , जिनकी सहायता के आधार पर वह एक नए धर्म को चलाने में तथा उसका विस्तार करने में सफल हुआ था। ईश्वर ने मुझे भी चार मित्र उलूग खां , नुसरत खां,ज़फर खां और अलप खां प्रदान किये हैं। यदि मैं चाहूँ तो मैं भी उनके द्वारा एक नया धर्म चला सकता हूँ और अपनी तलवार द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को उस धर्म को मानने के लिए मजबूर कर सकता हूँ।"
दूसरे उद्देश्य के विषय में वह कहा करता था ---"मेरे पास अतुल धन-संपत्ति है एक सुसंगठित सेना है , जिसके द्वारा मैं विश्वविजय कर सकता हूँ। मैं अपनी अनुपस्थि में भारत साम्राज्य के लिए अपना प्रतिनिधि छोड़कर विश्व-विजय के लिए प्रस्थान करूँगा। 
इतिहासकारों के अनुसार  वर्ष 1300 में खिलजी ने उलूग खां और नुसरत खान को रणथम्बोर पर आक्रमण करने का आदेश दिया।  अनेक इतिहासकारों और अमीर खुसरो की #तारीखे_अलाइ या #ख़ज़ैन_उल_फुतुह के अनुसार भीषण युद्ध में नुसरत खान मारा गया और उलूग खान ने भाग कर #झाई के दुर्ग में जान बचाई। इसके बाद अलाउद्दीन भारी सेना को लेकर खुद रणथम्बौर पहुंचा और एक वर्ष तक निरन्तर युद्ध चले के पश्चात् जीत की कोई उम्मीद न देख कर उसने राजा हम्मीर देव के साथ छल कपट कर के दुर्ग के फाटक खुलवा लिए।  युद्ध करने लायक पुरुषों ने युद्द किया नारियों ने जौहर कर लिया। राजा हम्मीर देव लड़ते हुए मारे गए और किले को जीत कर उस का नाम दारुल इस्लाम रख दिया गया। 
वर्ष 1303 चित्तौड़ का युद्ध ----चित्तौड़ मेवाड़ की राजधानी था और चित्तौड़ का दुर्ग सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था।  यहाँ का राजा रत्न सिंह था।  अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण क्यों किया , यह प्रश्न इतिहास का एक विवादस्पद विषय है। 
रानी पद्मिनी की कथा -- कुछ इतिहासकार कहते हैं कि रानी पद्मिनी लंका के राजा गन्धर्व सेन की अत्यंत सुन्दर पुत्री थीं। राजा रतनसिंघ ने अपने हीरामन नमक तोते से उसकी प्रशंसा सुनी और उससे विवाह करके ले आये। एक दिन राघव चेतन नाम का साधु शाही महल में भिक्षा मांगने गया और वहीँ उसने रानी के आलोकिक सौंदर्य को देखा। उसी साधु से अलाउद्दीन को रानी पद्मिनी के अप्रितम सौंदर्य का ज्ञान प्राप्त हुआ और उसके दिल में उन्हें प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न हो गयी। अपनी कुचेष्टा के चलते उसने धोखे से राणा रत्न सिंह को बंदी बना लिया। सुलतान ने रानी को यह सन्देश भेजा कि यदि वे सुलतान की मलिका बनना स्वीकार कर लेंगी तो राजा रत्न सिंह को रिहा कर दिया जायेगा। रानी ने सुलतान के प्रस्ताव को स्वीकार करके एक चाल चली। उन्होंने पहले राजा से मिलने की अनुमति मांगी।  खिलजी तैयार हो गया।  800 सैनिकों को पालकियों में छिपा  कर यूँ जाहिर किया गया जैसे रानी मिलने आयीं हैं। अलाउद्दीन बहुत आतुरता से रानी के मिलने का इंतज़ार क्र रहा था, किन्तु पालकियों में छुपे राजपूतों ने अलाउद्दीन के करीब पहुंचते ही अचानक हमला बोल दिय और रजा रत्न सिंह को छुड़ा लाये। इसके बाद क्रोधित होकर सुलतान ने दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। सुलतान के विजयी होने से पहले ही रानी ने अपनी दासियों के साथ जौहर कर लिया। 
इस कहानी की पुष्टि #श्रीनेत्र पाण्डेय, #अमीर_खुसरो और #जायसी, #जेम्स_टॉड करते हैं। परन्तु आधुनिक इतिहासकार इस कहानी का विशवास नहीं करते। 
इसके विपरीत #डॉ_आशीर्वादी_लाल_श्रीवास्तव का मत है कि --"आधुनिक इतिहासकारों का यह कथन कि यह जैसी की मनगढंत कहानी थी , गलत है। सत्य तो यह है कि जैसी ने प्रेमकाव्य की रचना की और उसका कथानक आमिर खुसरो के #खजान_उल_फुतुह से लिया है। पद्मावत में वर्णित प्रेम कहानी के विवरण की अनेक घटनाएं कल्पित हैं , किंतु काव्य का मुख्य कथानक सत्य प्रतीत होता है। अलाउद्दीन पद्मिनी कोप्राप्त करने का इच्छुक था , कामुक सुलतान को रानी का प्रतिबिम्ब दिखाया गया था और उसने धोखे से उसके पति को बंदी बना लिया था , ये घटनाएं सम्भवतः ऐतिहासिक सत्य पर आधारित हैं। "
परन्तु यह निर्विवाद है कि अलाउद्दीन को चित्तौर के घेरे में राजपूतों के साथ कड़ा संघर्ष करना पड़ा था और अंत में उसे विजय मिली थी।  रानी ने जौहर कर लिया और सुलतान के बेटे खिज्र खां को चित्तौड़ का शासक नियुक्त किया गया और तत्पश्चात चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद रख दिया गया। 
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ऊपर एक पंक्ति में लिखा है कि जायसी की पद्मावत , #खुसरो की #खजान_उल_फुतुह से प्रेरित है । तो #खजान_उल_फुतुह में खुसरो ने क्या लिखा है ????
आमिर खुसरो 1273 में इल्तुतमिश का सिपाही बना उसके बाद , उसके बाद गयासुद्दीन बलबन के भतीजे छज्जू मलिक का , फिर बलबन के बेटे बुर्ग़ा खान का , फिर जलादुद्दीन खिलजी का और फिर अलाउद्दीन खिलजी का।  यह युद्ध में जाता था और अपने मालिकों के युद्ध का चापलूसीयुक्त वर्णन वर्णन प्रतीकों से करता था। बिलकुल वैसे ही जैसे पहले ज़माने के चारण , भाट और राजदरबारी किया करते थे।  जैसे इल्तुतमिश ने एक बार गंदे पानी का हौज़ साफ़ करवाया तो उसको इसने सांकेतिक भाषा में बाइबल और कुरान में वर्णित मूसा द्वारा समुद्र के दो फाड़ कर देने से तुलना की। 
देवगढ़ जीतने के बाद खुसरो प्रतीकात्मक भाषा में कहता है की सुलतान तो ईसा मसीह की तरह क्षमाशील हैं सबको माफ़ कर देते हैं। इसी तरह से चित्तौड़ युद्ध को यह तोराह, बाइबिल, कुरान में वर्णित  राजा सोलोमन के रानी शेबा के ऊपर  आक्रमण से तुलना करता है। जिसमे राजा सोलोमन ने हुदहुद चिड़िया के मुंह से रानी शेबा के विषय में सुन कर उसे अपने यहाँ आने का न्यौता दिया था।यदि वो न आती तो फौज तैयार कर ली थी फिर भी , अनेक गुणों की खान रानी उसका न्योता स्वीकार कर लेती है और राजा सोलोमन से शादी कर के बिलकीस बानो बन जाती है ( कुरान सूरा 27- आयत 20 से 40  तक)।  सोलोमन =खिलजी , हिरामन तोता = हुदहुद चिड़िया , रानी शेबा = पद्मावती। 
सबकुछ वैसा ही ही है, बस यहाँ रानी ने खिलजी को चुनने की जगह जौहर चुन लिया और जायसी को पद्मावत रचने की कथा वस्तु मिल गयी। इसी तथ्य को कुछ इतिहासकार मान रहे हैं और कुछ नकार रहे हैं।  
   
वैसे मेरा मानना है कि बिना आग के धुआं नहीं होता। 


और जो कुछ फसबुकिया सूतिये कमेंट या पोस्ट डाल रहे हैं कि जौहर करने से अच्छा था कि तलवार ले कर लड़ लीं होती उनके लिए दो बाते कहूँगा कि जब आप इतिहास पढ़ेंगे तो पाएंगे कि हिन्दू राजाओं ने एक एक साल तक अनवरत युद्ध किया था और हारे थे तो अधिकाँश में चल कपट से और मुसलमान और मुग़ल सैनिक मृत महिलाओं के शरीर से बलात्कार करने से भी बाज नहीं आते थे तो जौहर ही ऐसा रास्ता बचता था जिससे भारतीय महिलाएं अपना मृत शरीर भी गन्दा होने नहीं देतीं थीं। 

शनिवार, 11 नवंबर 2017

गुलाम मानसिकता के पहरे दार (2)

10  नवम्बर को कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमन्त्री सिद्धाराम्मैया ने टीपू सुल्तान की जयंती मनाई।  कांग्रेस टीपू की जयंती 2015 से मना रही है लेकिन मैसूर प्रान्त के सेक्युलरिस्ट और भारत के मुसलामान इसे दशकों से राष्ट्रवीर बना रहे हैं। उसे राष्ट्रनायक बनाने के किये लेख लिखे जा रहे हैं नाटकों का मंचन किया जा रहा है जिन्हे सरकारें प्रायोजित करतीं हैं। 

एक ने टीपू सुलतान पर सीरियल बनाया और आग में जल गया।  दूसरे ने तलवार खरीदी और बर्बाद हो गया। टीपू की जयंती मनाने वाली कांग्रेस का क्या होगा शायद साफ़ नज़र आ रहा है। 


भारतीय इतिहास की सच्चाई को रौंद डालने और झूठ को ही सच्चाई की शकल में दिखने के कई उदाहरणों में से एक टीपू सुलतान का भी है। 
एक समय था जब नैसुर के हाटों और बाज़ारों में , उत्सवों और महोत्सवों में भाट लोग देवी देवताओं की प्रशंसा के गीत गाने वाले, भाट बंदियों में तब्दील होकर टीपू के गीत गाने लग गए। उन्हें न इतिहास से मतलब था न टीपू के दुष्कृत्यों से।  उन्हें इस काम के लिए मुसलमान व्यापारी पैसा दिया करते थे। वक़्त बदला तो टीपू का महिमामंडन करने वाले नाटकों का मंचन शुरू हो गया। जब वो अंग्रेजों से लड़ रहा था तो तत्कालीन लेखकों ने ऐसे नाटक और लेख लिखे जैसे उससे बड़ा और कोई देश भक्त था ही नहीं। देखने वालों ने इसे ही सही इतिहास मान लिया। आजादी मिलने के बाद मार्क्सवादी लेखकों ने, वोट बैंक का धंदा करने वालों ने ,मुस्लिम कलाकारों तथा नाटककारों ने , फिल्मे बनाने वालों ने , टीपू सुलतान का राष्ट्रिय नायक के रूप में खूब महिमामंडन किया। असली इतिहास को मार कर दफना दिया गया। 
उसने अपने दो बच्चों को अंग्रेजों के यहाँ बंधक रखा था इसलिए वो नायक हो गया और अंग्रेज सबसे निकृष्ट कौम हो गए।  ऐसा लिखते वक़्त लेखक ये छुपा गए की बच्चो और परिजनों को युद्धबंदी बना कर रखने की प्रथा मुसलामानों ने ही शुरू की थी।  
अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने को लेकर यदि टीपू को राष्ट्रनायक बनाया जाता है तो उन्ही अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले मराठों को ये इतिहासकार महानायक क्यों नहीं बनाते ??? ज़माने से मैसूर में चली आने वाली राजभाषा कन्नड़ को बदल कर फ़ारसी को राजभाषा बना दिया। ( हिंदी का विरोध करने वाले आज भी राजस्व विभाग में फ़ारसी के बहुत से शब्दों का प्रयोग करते हैं, और राजस्व विभाग के दस्तावेजों में आज भी बाप और बेटे के बीच #बिन शब्द का प्रयोग होता है , जैसे राहुल गाँधी बिन राजीव गाँधी )। 
गाँवों और शेरोन के नाम बदल दिए जैसे - ब्रह्मपुरी को सुल्तानपेट ,चित्रदुर्ग को फार्रुखयब , कोडगु को जफराबाद ,देवनहल्ली को युसूफाबाद ,डिंडिगल को खलीलाबाद , गुत्ती को हिस्सार , कृष्णगिरि को फलक इल अज़म , मैसूर को नज़रबाद , पेनुगोंडा को फक्राबाद, सँकरीदुर्ग को मुजफ्फराबाद , सिरा को रुस्तमाबाद , सकलेशपुर को मंजराबाद। ये सब टीपू की राष्ट्रीयता और धर्म सहिषुणता की अप्रितम मिसालें हैं।

कर्नाटक केरल और तमिलनाडु के हजारों टूटे हुए मंदिरों को देखने के बाद इतिहासकार और साहित्यकार तमाम शैव और वैष्णव युद्धों का नकली जामा पहना कर झूठ को सच साबित करने में व्यस्त हैं लेकिन वो इन पत्रों और लेखों का क्या करेंगे जो टीपू सुलतान ने खुद लिखे थे और आज भी लन्दन के " इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी में मजूद है ????

(i) अब्दुल खादर को लिखित पत्र 22 मार्च 1788 
“बारह हजार से अधिक, हिन्दुओं को इ्रस्लाम से सम्मानित किया गया (धर्मान्तरित किया गया)। इनमें अनेकों नम्बूदिरी थे। इस उपलब्धि का हिन्दुओं के मध्य व्यापक प्रचार किया जाए। स्थानीय हिन्दुओं को आपके पास लाया जाए, और उन्हें इस्लाम में धर्मान्तरित किया जाए। किसी भी नम्बूदिरी को छोड़ा न जाए।”(भाषा पोशनी-मलयालम जर्नल, अगस्त 1923 )

(ii) कालीकट के अपने सेना नायकको लिखित पत्र दिनांक 14  दिसम्बर 1788 
”मैं तुम्हारे पास मीर हुसैन अली के साथ अपने दो अनुयायी भेज रहा हूँ। उनके साथ तुम सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लेना और वध कर देना…”। मेरे आदेश हैं कि बीस वर्ष से कम उम्र वालों को काराग्रह में रख लेना और शेष में से पाँच हजार का पेड़ पर लटकाकार वध कर देना।”
(iii) बदरुज़ समाँ खान को लिखित पत्र (दिनांक 19 जनवरी 1790)
”क्या तुम्हें ज्ञात नहीं है निकट समय में मैंने मलाबार में एक बड़ी विजय प्राप्त की है चार लाख से अधिक हिन्दुओं को मूसलमान बना लिया गया था। मेरा अब अति शीघ्र ही उस पानी रमन नायर की ओर अग्रसर होने का निश्चय हैं यह विचार कर कि कालान्तर में वह और उसकी प्रजा इस्लाम में धर्मान्तरित कर लिए जाएँगे, मैंने श्री रंगापटनम वापस जाने का विचार त्याग दिया है।”
(उसी पुस्तक में)
टीपू ने हिन्दुओं के प्रति यातनाआं के लिए मलाबार के विभिन्न क्षेत्रों के अपने सेना नायकों को अनेकों पत्र लिखे थे।
”जिले के प्रत्येक हिन्दू का इस्लाम में आदर (धर्मान्तरण) किया जाना चाहिए; उन्हें उनके छिपने के स्थान में खोजा जाना चाहिए; उनके इस्लाममें सर्वव्यापी धर्मान्तरण के लिए सभी मार्ग व युक्तियाँ- सत्य और असत्य, कपट और बल-सभी का प्रयोग किया जाना चाहिए।”
(हिस्टौरीकल स्कैचैज ऑफ दी साउथ ऑफ इण्डिया इन एन अटेम्पट टूट्रेस दी हिस्ट्री ऑफ मैसूर- मार्क विल्क्स, खण्ड 2  पृष्ठ 120)
 इतिहासकार कहते हैं कि टीपू बहुत धर्म सहिषुण और राष्ट्रीयता से ओतप्रोत था ------ मैसूर के तृतीय युद्ध (1792 ) के पूर्व से लेकर निरन्तर 1798 तक अफगानिस्तान के शासक, अहमदशाह अब्दाली के प्रपौत्र, जमनशाह, के साथ टीपू ने पत्र व्यवहार स्थापित कर लिया था। कबीर कौसर द्वारा लिखित, ‘हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान’ (पृ’ 141-147) में इस पत्र व्यवहार का अनुवाद हुआ है जिसमे उसने अफगानिस्तान के शासक और तुर्किस्तान के शासक से भारत पर हमला कर ईसाईयों को भगाने और काफिरों को खत्म करके इसे दारुल इस्लाम बनाने का प्रस्ताव भेजा था। 
विकिपीडिया पढ़ेंगे तो टीपू को बहुत दानवीर बताया गया है लेकिन हक़ीक़त यह है कि जिस वर्ष टीपू सुलतान मारा गया था उस वर्ष सिर्फ दो मंदिरों ( श्रीरंगपत्तनम और श्रृंगेरी के मठ ) को ही राजकीय सहायता मिलती थी , श्रीरंगपत्तनम को इसलिए कि वो वहां राज करता था और श्रृंगेरी को इसलिए क्योंकि उस मठ पर हमला करने के बाद ही टीपू की हार हुई थी। और अगर टीपू इतना ही बड़ा धर्म सहिषुण व्यक्ति था तो पुरातत्व के संकलनकर्ता रवि वर्मा के हिसाब से उसने 8000 मंदिरों को न तोड़ा होता। 
टीपू कितना बड़ा धर्म सहिषुणता का पालक था वो उसकी तलवार पर लिखी हुई निम्न नज़ीर से ही पता चलता है ---  टीपू की बहुचर्चित तलवार’ पर फारसी भाषा में निम्नांकित शब्द लिखे थे- ”मेरी चमकती तलवार अविश्वासियों के विनाश के लिए आकाश की कड़कड़ाती बिजली है। तू हमारा मालिक है, हमारी मदद कर उन लोगों के विरुद्ध जो अविश्वासी हैं। हे मालिक ! जो मुहम्मद के मत को विकसित करता है उसे विजयी बना। जो मुहम्मद के मत को नहीं मानता उसकी बुद्धि को भृष्ट कर; और जो ऐसी मनोवृत्ति रखते हैं, हमें उनसे दूर रख। अल्लाह मालिक बड़ी विजय में तेरी मदद करे, हे मुहम्मद!”
इस अकाट्य तथ्य के बावजूद पिछले 70 सालों से कांग्रेस सरकार टीपू का महिमामण्डन हर संभव तरीके से कर कर रही है। अफ़सोस जिन्हे गुलामी में रहने की आदत पड़ गयी है वो दूसरों की मानसिकता भी गुलाम ही बनाये रखना कहते हैं। 
एक ने टीपू सुलतान पर सीरियल बनाया और आग में जल गया।  दूसरे ने तलवार खरीदी और बर्बाद हो गया। टीपू की जयंती मनाने वाली कांग्रेस का क्या होगा शायद साफ़ नज़र आ रहा है। 

गुलाम लोगों की गुलाम मानसिकता (1)



#तेलंगाना_में_मुस्लिमों_को_नौकरियों_में_12%_आरक्षण ( 10  नवम्बर के समाचारपत्रों में छपी मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की घोषणा )
#टीपू_सुलतान_की_जयन्ती_ समारोह ( 11 नवम्बर के समाचार पत्रों में सिद्धरमैया द्वारा महिमागान) और #पद्मावती_जी_के_ऊपर_विवादित_चलचित्र।  
 तेलंगाना में आरक्षण की खबर कुछ यूँ है कि मुख्यमंत्री ने पिछड़े हुए मुसलामानों का आरक्षण का कोटा 6 से 12 प्रतिशत तथा मुस्लिम जनजातियों के 4% से 10 प्रतिशत करने का बिल इस शीतकालीन विधानसभा सत्र में करने की घोषणा की है और कुल आरक्षण फिलहाल 62 % तक ले जाने की बात कही है जिसे तमिनाडु की तर्ज़ पर 69% तक ले जाने की चाहत जतायी है। मुसलामानों पर इतनी इनायत क्यों ????

दो पंक्तियों में इस्लाम की मानसिकता को समझने के बाद जब मुस्लिम बादशाह भारत पर राज्य कर रहे थे उस समय के हिन्दुओं और मुसलामानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर एक नज़र डालते है। 
कुरान के अनुसार इस पूरी दुनिया को अल्लाह ने बनाया है और वही इसका सही मायने में राजा है। धरती पर हुकूमत चलाने वाला राजा ही अल्लाह नाम के उस राजा का सही प्रतिनिधि है; अल्लाह के मज़हब का प्रचार और प्रसार करना ही हुकूमत का अहम् लक्ष्य होता है। अल्लाह के प्रतिस्पर्धी किसी और खुदा के प्रति विश्वास रखता है या ऐसे प्रतिस्पर्धी खुदा के अस्तित्व का प्रचार और प्रसार करता है तो वह राजद्रोह करता है , उससे बढ़कर कोई पाप नहीं होता और उसके लिए मौत ही सही दंड है : अल्लाह के इस मार्ग पर चलना ही #जिहाद कहलाता है। लड़ाई में जीत जाने के बाद इस्लाम में विश्वास नहीं रखने वाले सभी लोग , जीतने वालों के गुलाम बन जाते हैं। और फिर भी जो धर्म परिवर्तन नहीं करता उसे मार दिया जाए ऐसा क़ुरान की सूरा 9 आयत 5-6 और सूरा 8 आयत 38 कहती है कि यदि वे इस्लाम कबूल कर लेते हैं तो उनके पिछले सारे गुनाह माफ़। काफिरों के न मानने पर उन्हें जान से मार देने वाली दसियों आयतें कुरान में दी गयीं हैं। ये थी कुरान मानने वालों की मानसिकता और इसके परिणाम जो हिन्दुओं ने झेले उसका साराँश इतिहास की पुस्तकों में कुछ यूँ दिया हुआ है। 

जो मुसलमान नहीं होता, उसके लिए कोई राजनितिक अधिकार भी नहीं होता।  मुसलमानी सल्तनत में उसे जीने का हक़ भी नहीं होता। उसे जीने दिया जाता है तो वह भी तत्काल के लिए ही। तब भी उसकी हालत गुलामों की हालत से थोड़ी सी बेहतर होतीथी।  तब उसको "जिम्मी" कहा जाता था क्योंकि तब वह एक करारनामे के तहत जीता था। इसके इलावा मुसलमानी सल्तनत के तहत जीने दिए जाने के एवज़ में उसे एक खास टैक्स भरना पड़ता था। उसका नाम था जजिया ( जज़िया का प्रावधान कुरान के सूरा 9 आयत 29 में है)। मुसलामानों को जिस भूमिकर से छूट मिली होती थी उसे जजिया के साथ वो कर "खरज" भी भरना पड़ता था। लड़ाई के लिए पाले जाने वाले सैनिकों के लिए उसे एक और टैक्स देना होता था।  मुसलामानों को ही सिपाही बनने का अवसर मिलता था और जो गैर मुसलमान होता था उसे सिर्फ निचले दर्जे का नौकर बनने दिया जाता था , वह कभी सिपहसालार या घुड़सवार नहीं बन सकता था। वह कभी घोड़े पर सवार नहीं हो सकता था था अच्छे कपडे नहीं पहन सकता था, हथियार नहीं रख सकता था। मुसलमान जाति के सभी सभी व्यक्तियों के सामने उसे विनीत रहना होता था । अदालत में उसके सबूत के लिए वह मान्यता नहीं होती थी जो एक मुसलमान के सबूत को मिलती थी। वह मेलों, पर्वो तथा त्योहारों में भाग नहीं ले सकते थे। नए मंदिरों का निर्माण नहीं कर सकता था : पुराने मंदिरों को दुरुस्त नहीं करवा सकता था। कमर झुका कर , खुद आ कर खड़े होकर उसे जजिया चुकाना होता था। ये प्रथा कुरआन की सूरा 9 आयत 29  के आधार पर बनायीं गयी थी ( जब तक काफिर जजिया नहीं भरते उनके साथ लड़ते रहो) , जजिया स्वीकार करने वाले मुसलमान को ऊँचे स्थान पर बैठना होता था। 
कभी कोई मुसलमान खंखार के थूकता था तो जिम्मी को भय और भक्ति के साथ , मुंह खोलकर उसको स्वीकार कर लेना चाहिए। परहेज़ की भावना व्यक्त न करते हुए , इसे निगल लेना चाहिए। यदि कोई मुसलमान गैर मुसलमान का  क़त्ल कर देता था तो यह गुनाह नहीं होता था। ये सब जिम्मियों पर इसलिए थोपा जाता था ताकि बेइज़्ज़ती, गरीबी और करों के बोझ से बचने के लिए ये जिम्मी धर्मांतरण करके मुसलमान बन जाएँ। 
मुसलमान व्यापारियों पर ढाई प्रतिशत टैक्स लगता था तो हिन्दू व्यापारियों पर पांच प्रतिशत।  एक समय ऐसा भी आया जब मुसलमान व्यापारियों का टैक्स तो पूरी तरह माफ़ कर दिया गया लेकिन हिन्दू व्यापारियों का यथावत रखा गया। बात यहीं ख़त्म नहीं हुई हिन्दुओं को इन सब करों के अतिरिक्त जब कभी तीर्थयात्रा ( प्रयाग में कुम्भ,काशी , मथुरा वगैरह ) करनी होती थी तो उसके लिए अलग से कर देना होता था। 
नीतिविहीन युद्ध करके जीतना और जीत कर काफिर आदमियों को मार डालना , गुलाम बना लेना और कंधार से लेकर ईरान तक के बाजार में बेचना ,औरतों को अपने जनानखाने में लौंडिया  बना कर रखना और 15 साल से काम उम्र के लड़कों को हिजड़ा बनाने को ये दारुल इस्लाम की तरफ एक कदम मानते थे। 
किसानों के ऊपर लगान का इतना बोझ लाद दिया था कि लगान न चुका पाने की स्थिति में किसान को अपने चार चार साल के  बच्चों को हिजड़ा बना कर गुलामों के बाज़ार में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता था। और वक़्त के साथ ये मजबूरी एक प्रथा बन गयी जिसके विषय में अकबर के बेटे जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा "तुजुक ए जहाँगीरी " में लिखा है कि -- "हिन्दुस्तान में , खासकर बंगाल की मातहत में रहने वाले सिलहट प्रांत के लोगों में अपने बच्चों को हिजड़ा बना कर , लगान के बदले सुबहदारों को सौंप देने की प्रथा जारी थी। अन्य प्रांत के लोग भी इस प्रथा को धीरे धीरे अपनाने लगे हैं। इस वजह से बच्चे अपनी सृजन शक्ति से वंचित हो रहे हैं। " यह प्रथा बंगाल के बाहर भी प्रचलित थी यानि सारी मुग़ल सल्तनत में फैली हुई थी। स्थिति यहाँ तक पहुँच चुकी थी की हिजड़ों की तादाद के आधार पर राज्य के लगान का हिसाब किताब होता था। .जहांगीर ने ही लिखा है कि उसके दरबारी सैय्यद खान छुगताय के पास ही हज़ार दो सौ हिजड़े थे। इसके अलावा हिजड़ों का व्यवसाय बहुत फायदे का बना हुआ था। एक हिजड़े की कीमत आम गुलाम के मुकाबले तीन गुना हुआ करती थी। भारत के हिजड़ों की मांग इस्पहान , समरकंद और विदेशों में बहुत अधिक थी। औरंगज़ेब ने बेशक मज़हबी कारणों से अण्डकोष फोड़ने की प्रक्रिया का निषेद किया था,फिर भी इस प्रथा को बंद नहीं करवा पाया।  उसकी हुकूमत के दौरान गोलकुण्डा (हैदराबाद) शहर में 1659 में ही बाईस हज़ार मर्दों के अंडकोष फोड़े गए थे। ऐसे हिजड़ों की बजाय लगान के रूप में बच्चों को को ही लेकर उनका धर्मांतरण कर देने से मुसलामानों की तादाद बढ़ेगी , यह जहांगीर का विचार था।" 

यह सिर्फ सारांश है , अत्याचारों की पराकाष्ठा की कल्पना भी आज की पीढ़ी नहीं कर सकती और नामपंथी इतिहासकार पूरी शिद्दत से उन ज़ख़्मों को छुपाने में व्यस्त हैं। मुझे गर्व है और आपको भी होना चाहिए अपने पूर्वजों पर जो अत्याचारों को सहते हुए प्रलोभनों को नकारते हुए मुगलों के सामने नहीं झुके।  पर आज के हिजड़ों का क्या किया जाये ?????

इतिहास में हिन्दुओं द्वारा झेले गए ये असहनीय अत्याचारों का संक्षेप लिखने के बाद चन्द्रशेखर राव  मैं ये पूछना चाहता हूँ कि जब मुग़ल सल्तनत थी तब भी मुसलामानों ने सत्ता का सुख भोगा, जो कष्ट नहीं झेल पाए वो सुख भोगने के लिए मुसलमान बन गए। क्या उन्ही कष्टों को भोगने का सिला आज तुम हिन्दुओं को दे रहे हो , बिना अंडकोष फुड़वाये हुए हिजड़े बनकर ??????

क्रमशः ----#टीपू_सुलतान_की_जयन्ती_ समारोह ( 11 नवम्बर के समाचार पत्रों में सिद्धरमैया द्वारा महिमागान) और #पद्मावती_जी_के_ऊपर_विवादित_चलचित्र।  

शनिवार, 9 सितंबर 2017

पहले मुस्लिम फिर भारतीय

ये पहले मुसलमान हैं उसके बाद भारतीय ----डॉ अम्बेडकर (1940)
भारत के उत्तर पश्चिम म्यंमार से 3433.2 किमी दूर अमृतसर की खैरुद्दीन मस्जिद से लोगो ने रोहिंग्या मुसलामानों के समर्थन में शुक्रवार (08/09/17)को जुमे की नमाज़ के बाद जलूस निकाला। भारत के सुदूर दक्षिण में म्यंमार से 4293.4 किमी दूर केरल में समस्त केरल जमियतुल उलेमा ने जुमे की नमाज (08/09/17) में रोहिंग्या मुसलामानों के समर्थन में नमाज अदा की और 11 सितम्बर को दिल्ली में म्यंमार के दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन करने की घोषणा की है।
इस्लाम को शांति और भाईचारे का मज़हब बताने वाले दुनिया भर के मुसलामानों और बुद्धिजीवियों को आज इंसानियत याद रही है। आज के ये बुद्धिजीवी मोपला और नोआखली में लाखों हिन्दुओं के कत्ले आम के जवाब नहीं दे पाएंगे। पर आज इन रोहिंग्या मुसलमानों को सहानुभूति दिखाने वालों को 1990 में न कश्मीर के शरणार्थियों से कोई सहानुभूति हुई और न 2014 में इराक के कुर्द और यज़ीदियों से कोई सहानुभूति हुई। आदमी मारे गए, बच्चे और औरतें जानवरों की तरह बाजार में बेचीं गयीं , मगर एक भी बुद्धिजीवी नहीं बोला।
कुछ दिन पहले एक टीवी चैनल पर बहस के दौरान वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ने डंके की चोट पर कहा था की भारत में वामपंथी पत्रकार अमरीका से मोटा पैसा पा कर उसका एजेंडा चला रहे हैं। ये तो चरित्र हुआ वामपंथी पत्रकारों का। अब भारत के मुसलामानों को इन्सानियत का पाठ याद आने लगा , इनके इस चरित्र को डॉ आंबेडकर 1940 में #थॉट्स_ऑन_पकिस्तान और बाद में 1945 में ही इसी पुस्तक के संशोधित संस्करण #पाकिस्तान _और_द_पार्टीशन_ऑफ़_इंडिया में बखूबी ब्यान कर दिया था।
इस पुस्तक के 12 वे अध्याय में अंग्रेज़ों से आज़ादी की लड़ाई के मुद्दे पर कांग्रेस गाँधी से मुसलामानों के मतान्तरों के लम्बे चित्रण के बाद पृष्ट 320 पर आंबेडकर लिखते हैं ----
" तमाम सिद्धातों को मद्देनज़र रखते हुए इस्लाम के इस सिद्धांत पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इस सिद्धांत के अनुसार , एक देश में जिसमे मुस्लिम शासक नहीं हैं, जब कभी मुस्लिम कानून और उस देश के कानून में विरोधाभास होगा , वहां पर ये लोग उस देश के कानून के ऊपर मुस्लिम कानून ही प्रभावी मानेंगे और देश के कानून को चुनौती देना ये न्यायसांगत मानेंगे।
8 जुलाई 1921 को कराची में हुई "आल इंडिया खिलाफत कॉन्फ्रेंस " में अध्यक्षता करते हुए मोहम्मद अली ने एक संकल्प पारित किया कि " उलेमाओं की यह ज़िम्मेदारी है कि धार्मिक रूप से वे यह सुनिश्चित करें कि कोई भी मुसलमान अंग्रेजी हुकूमत और सेना में ऐसा कोई आदेश नहीं मानेगा जो इस्लाम के खिलाफ हो। " उनकी इस तहरीर के लिए उनके ऊपर मुकद्दमा दायर किया गया जिसकी सफाई में उन्होंने बहुत लम्बे तर्क दिए जिसका सार यह है कि मुस्लिम सिर्फ खुदा के बताये हुए कुरान द्वारा दिए गए आदेशों के इलावा किसी और के न तो आदेश को मानेगा और न किसी का प्रभुत्व स्वीकार करेगा।"
मोहम्मद अली के उपरोक्त जवाब का संज्ञान लेते हुए आंबेडकर लिखते है कि " इससे जो भी एक स्थिर सरकार की कल्पना करता है उसके लिए चिंतित होना स्वाभाविक है। आगे आंबेडकर लिखते हैं कि " मुस्लिम धार्मिक कानों के हिसाब से दुनिया दो हिस्सों में विभाजित है-- दारुल इस्लाम ( इस्लाम का घर) और दारुल हर्ब ( लड़ाई का घर)। दारुल हर्ब वो देश हैं जहाँ मुसलमान सिर्फ रहते हैं मगर शासक नहीं हैं। जब मुसलामानों का यह धार्मिक क़ानून है तो भारत कभी भी संयुक्त रूप से हिन्दुओं और मुसलामानों की मातृभूमि नहीं हो सकता। यह मुसलमानों की ज़मीन हो सकता है पर यह संभव नहीं की हिन्दू और मुसलमान बराबरी के साथ रह सकें। , हाँ ,यह मुसलमानों की ज़मीन हो सकता है जब इसकी सत्ता मुसलामानों के हाथों में हो। जिस क्षण देश की सत्ता गैर मुस्लिमों के हाथों में चली जाती है , यह मुसलमानों की धरती नहीं रहती और दारुल इस्लाम की जगह दारुल हर्ब बन जाती है।
इसी विषय को आगे बढ़ाते हुए अम्बेडकर इनकी जिहादी मानसिकता की विवेचना करते हैं और 1919 में अफगानिस्तान के आमीर से भारत के ऊपर आक्रमण करने की घटना का ब्यौरा देते हुए पृष्ट 324 पर लिखते हैं --- न सिर्फ ये जिहाद की घोषणा कर सकते हैं बल्कि जिहाद को सफल बनाने के लिए किसी भी विदेशी मुस्लिम ताकत का सहारा ले सकते हैं। ( पृष्ट 325-26) मुसलामानों का तीसरा धार्मिक सिद्धांत यह है कि ये क्षेत्र / अथवा राष्ट्र की सीमाओं में नहीं बंधते , इनके बन्धन सामाजिक और धार्मिक होते हैं, जो कि क्षेत्र की सीमाओं से बाहर होते हैं। यही इनके सम्पूर्ण इस्लामीकरण का आधार होता है। यही कारण है जो भारत का हर मुसलमान कहता है कि वो पहले मुसलमान है फिर भारतीय है। इनका यह मनोभाव स्पष्ट करता है ,क्यों भारतीय मुसलमान भारत की प्रगति में बहुत कम हिस्सेदारी निभाते हैं और मुस्लिम देशों की समस्या के लिए अपने आपको पूरी तरह से थका देते हैं, और क्यों मुस्लिम देश इनके ख्यालों में पहले आते हैं और भारत बाद में आता है। ( यहाँ 1912 में बाल्कन के युद्ध. तथा 1922 में तुर्की और अरब देशो की यूरोप के देशों से युद्ध का उदहारण दिया गया है)
इन लोगों की निगाह में गाँधी जी ( काफिर )का क्या दर्जा था इस सन्दर्भ में मोहम्मद अली के 1924 में अलीगढ और अजमेर में दिए गए वक्तव्य इस प्रकार है ----( पृष्ट 332) गाँधी का चरित्र कितना भी शुद्ध क्यों न हो परन्तु मेरे धार्मिक नज़रिये से वो बिना चरित्र के मुसलमान से भी घटिया है। इसी वर्ष लखनऊ के अमीनाबाद पार्क की एक सभा में जब मोहम्मद अली से दुबारा पुछा गया कि क्या गाँधी जी के विषय में दिए गए वक्तव्य पर वे कायम हैं तो मोहम्मद अली ने दोहराया --" हाँ, मेरे धर्म और धर्म मत के हिसाब से मैं एक दुश्चरित्र और गिरे हुए मुसलमान को गाँधी से बेहतर समझाता हूँ।"
वो 1924 था आज 2017 है। कुछ बदला क्या ??? ( तीन तलाक़ पर इन्होने अंत समय तक संविधान को चुनौती दी और जद्दो जहद की, और यदि मुस्लिम महिलाएं सामने न आतीं तो जो अल्पमत से ये जो केस हारे हैं वो भी न हारते )। हमारी सरकारें सच्चाई से मुंह मोड़ कर कश्मीर समस्या पाकिस्तान प्रायोजित बतातीं हैं, जबकि हकीकत यह है कि वहाँ के बहुसंख्यक मुसलामानों को यह कबूल नहीं है कि उनके ऊपर काफिरों का शासन हो , इसीलिए पाकिस्तान के हालात जानते हुए भी वो पकिस्तान की सत्ता के अधीन आने या अपनी खुद की सत्ता की मांग कर रहे हैं। इन्हे दारुल इस्लाम चाहिए।
बाकि इनको कश्मीरी हिन्दुओं के मरने और रिफ्यूजी होने का कष्ट नहीं है , आतंकवादियों के मरने पर पूरा मातम होता है। 2014 से मारे जा रहे कुर्दों और यज़ीदियों का अफ़सोस नहीं है , पर रोहंगिया मुसलामानों के भारत में शरण देने पर पूरी सहानुभूति है।
कारण आप समझ ही गए होंगे। वही हैं जो अम्बेडकर जी ने आज से 80 साल पहले लिखे थे। इनके लिए देश से पहले धर्म है। आएंगे शरणार्थी बन कर , दारुल इस्लाम बना पाएं या नहीं पर कश्मीर , कैराना , पश्चिमी बंगाल और केरल बना कर हर कदम पर सुविधाएँ मांगेंगे और ये कह कर संविधान को हर कदम पर चुनौती देंगे कि हमारे लिए कुरआन का कानून ही अंतिम कानून है।
जिस कौम को #भारत_माता_की_जय कहने में गुरेज़ होता है , उम्मीद करता हूँ आप उसके#जय_भीम_जय_मीम के पीछे छुपे इरादों को समझ गए होंगे। भारत के लोग समँझे या न समझें म्यांमार के लोग समझ गए हैं।


शनिवार, 12 अगस्त 2017

भारत को आज़ादी किसने दिलवाई

आज़ादी भारत ने ली थी या भारत को दी गयी थी ??? अगर आज़ादी भारतियों ने लड़ कर ली थी तो इसका असली श्रेय किसे मिलना चाहिए ??? सवाल अटपटा सा है न। 

राष्ट्रपति महोदय ने गाँधीजी  का नाम नहीं लिया तो कांग्रेस ने एक मुद्दा बना दिया। फिर भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ पर सोनिया जी कहती हैं कि बहुत से संगठनों ने "भारत छोड़ो आन्दोलन" का विरोध  था। मीडिया ने सुर्ख़ियों में इसे आर एस एस पर निशाना साधना बताया।  हो सकता है सोनिया गाँधी की मंशा भी यही रही हो। पर जिसने भी इतिहास का गहन अध्ययन होगा या कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन महासचिव पी सी जोशी के ब्रिटिश सरकार को  पत्र पढ़े होंगे  वे जानते होंगे कि बाबा के साथ भारत छोड़ो आन्दोलन का मुखर विरोध और उस समय अंग्रेज़ों का साथ वामपंथियों ने दिया था। 
खैर जब इतिहास लिखा जाता है तो लिखने वाला अपने नज़रिये से घटनाओं को लिखता है। कांग्रेस कोई मौका नहीं चूकती दुनिया को ये बताने में कि आज़ादी उन्होंने दिलाई। क्लास एक से बारह तक "आज़ादी की लड़ाई " नाम के अध्याय में गाँधी नेहरू टैगोर सरोजिनी नायडू और दो चार नामों के इलावा कौन सा नाम पढ़ाया जा रहा है आज कल ??? लाल बाल पाल की तिकड़ी, भगत सिंह , सुख देव और राजगुरु के इलावा खुदीराम बोस, चंद्र शेखर आज़ाद, बदल गुप्ता ,दिनेश गुप्ता और बिनोय बासु की तिकड़ी किसे याद है ,---- मातंगिनी हाज़रा ,सेनापति बापत, पोट्टी श्रीराममुलु , तारा रानी श्रीवास्तव , कन्हैया लाल मानेक लाल मुंशी ,कमला देवी चट्टोपाताध्याय, तिरुपुर कुमारन, राजकुमारी गुप्ता ,बिरसा मुंडा ,अल्लुरी सीताराम राजू -- हजारों लोगों ने अपनी जान दी थी जो गुमनामी के अँधेरे में खो गए। कैसे खो गए ??? 
जैसे कांग्रेस ने पाठ्यक्रम में भगत सिंह को आतंकवादी बता दिया था , जैसे बंगाल सरकार ने 18 साल की उम्र में फांसी के फंदे को चूमने वाले खुदी राम बोस का नाम पाठ्यक्रम से हटवा दिया उसी तरह जब अंग्रेज़ अपना इतिहास लिखते हैं या बच्चों को पढ़ाते है तो वो बताते हैं की उन्होंने भारत को आज़ादी --ब्रिटिश पार्लियामेंट में  " Indian Independence Act "  5 जुलाई 1947 को पास करके दी थी। 
यह बात ठीक है कि अंग्रेज़ भारत छोड़ने का मन बना चुके थे और उसपर अपने देश के क़ानून के हिसाब से इंग्लैंड के हाऊस ऑफ़ कॉमन्स में एक्ट के रूप में पारित करके किया लेकिन उनका भारत से मोहभंग क्या गाँधी उनके भारत छोड़ो आन्दोलन और कांग्रेस के कारण हुआ था ??? नहीं। 

कितने लोगों ने इतिहास के पन्नों में यह पढ़ा है कि 1946 में भारतीय जल सेना और थल सेना ने अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह किया था। आगे जो लिखने जा रहा हूँ उसे बेहतर समझने के लिए नीचे दो लिंक्स  दे रहा हूँ चाहें तो पढ़ सकते हैं अन्यथा इतना तो समझ ही लीजिये कि भारतीय सैनिकों में अंग्रेज़ों के प्रति वफादारी ख़त्म हो चुकी थी। 



पी बी चक्रवर्ती जो कि 1956 में कलकत्ता हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और बंगाल के कार्यकारी राज्यपाल भी थे ने प्रसिद्द इतिहासकार आर सी मजूमदार की पुस्तक A History Of Bengal के प्रकाशक को एक पत्र द्वारा बताया -- (ब्रिटिश पार्लियामेंट में इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट पेश और पास करवाने वाले इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ) क्लेमेंट एटली  (1945-1951) 1956 में भारत आये। वे कोलकाता के राजभवन में दो दिन ठहरे थे। उनके इन दो दिनों के प्रवास में मेरी उनसे उन असली तथ्यों पर लम्बी चर्चा हुई जिनके कारण अंग्रेज़ों को भारत छोड़ना पड़ा। चक्रवर्ती आगे लिखते हैं कि मेरा उनसे सीधा सवाल था कि जब गाँधी जी के #भारत_छोड़ो आन्दोलन को बिखरे हुए बहुत समय हो गया और 1947 में ऐसे कोई बाध्य कारण नहीं थे जिनसे अंग्रेज़ों का जल्दबाजी में भारत छोड़ना अपरिहार्य हो जाये, तो उन्होंने भारत क्यों छोड़ा ???? 

अपने जवाब में एटली ने बहुत से कारणों में से नेताजी की सैन्य गतिविधियों के कारण थल सेना और जल सेना में ब्रिटिश राजशाही के प्रति वफादारी बहुत तेजी से ख़त्म होने को मुख्य माना। 

चक्रवर्ती आगे लिखते हैं कि बात यहाँ ख़त्म नहीं होती। अपनी चर्चा के अंत में मैंने एटली से पूछा कि अंग्रेज़ों के  भारत छोड़ने के निर्णय में गाँधी का कितना प्रभाव था। यह सवाल सुनकर एटली के होंठ व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ मुड़े और उन्होंने चबाते हुए एक शब्द कहा m-i-n-i-m-a-l ( अति सूक्षम )
उपरोक्त पोस्ट या निम्न लिंक पढ़ने के बाद आप तय करिये आज़ादी लेने का श्रेय किसे मिलना चाहिए था।      

शनिवार, 29 जुलाई 2017

दरगाहों को पूजेंगे पर धरती को नहीं

#हर_विचार_से_शब्द_बनते_हैं_शब्दों_से_प्रवृति_बनती_है_प्रवृति_से_कृत्य_बनते_हैं। 

पिछले हफ्ते  (27/07/17) टीवी पर मद्रास हाई कोर्ट के वन्देमातरम गाए जाने को अनिवार्य बनाने पर बहस देख रहा था। उसमे सभी मुसलमान वक्ताओं में एक हाजी अली दरगाह के सलाहकार भी थे। इन सलाहकार महोदय समेत सभी मुसलामानों का बस एक ही तर्क था कि हम उस खुदा के इलावा जिसने धरती और आसमान बनाये है किसी और को न तो नमन करेंगे और न ही वन्देमातरम गायेंगे। 
A से अहमदाबाद में बड़ी बड़ी 12 हैं तो B से बैंगलोर में 42 हैं। इसी तरह से अंग्रेजी के अल्फाबेट से शहरों के नाम लिखते जाइये और Z तक से शुरू होने वाले शहरों में मौजूद नामचीन दरगाहों की गिनती कीजिये।  इण्डियन सुन्नी नाम की संस्था ने  एक वेब साइट औलिआ ए हिन्द बनायीं है जिसमें भारत वर्ष के 257 शहरों में मौजूद दरगाहों के विषय में संक्षेप में बताया हुआ है।और यहाँ होने वाले चमत्कारों का भी वर्णन किया है। इनमे उत्तर भारत में  श्रीनगर की दरगाह हज़रतबल भी है तो दक्षिण भारत में तिरुवनंतपुरम की हज़रत कडुवाईल थंगल शरीफ भी है। इनमे पश्चिम भारत में मुंबई की हाजी अली भी है तो पूर्व में गौहाटी की हज़रत ज़ाहिर औलिया ख्वाजागन दरगाह भी है।औसतन अगर हर शहर में छोटी बड़ी पांच दरगाहें ले ली जाएँ तो भारत में 2500 से ज्यादा दरगाहें मौजूद हैं। 
http://aulia-e-hind.com/Cities.htm
दरगाहें दुनिया भर में मिलती हैं बस फर्क सिर्फ पुकारे जाने वाले नाम का होता है जैसे अफ्रीका में इन्हे करामात के नाम से जानते हैं और चीन में इन्हे गोंगबै के नाम से जाना जाता है।
इन दरगाहों की मैनेजमेंट कमेटी में ज़ाहिर सी बात है मूसालमान ही होते हैं। अब दरगाहें हैं तो सिर्फ हिन्दू (चूतिये) तो वहां जाते नहीं हैं। मान लेते हैं 50% दर्शनार्थी वहां माथा टेकने वाले मुसलमान होते हैं। जैसे मुंबई की हाजी अली दरगाह के आँकड़े बताते हैं कि यहाँ रोज़ लगभग दस हज़ार लोग आते हैं और अजमेर शरीफ में डेढ़ लाख लोग रोज़ आते हैं। हर दरगाह के अलग अलग आंकड़े हैं। इन दस हज़ार या डेढ़ लाख में से हिन्दू तो साधारण सी बात है सर झुका कर वंदना ही करते होंगे। लेकिन मुसलमान सर झुका कर मत्था रगड़ कर क्या करते हैं ???
ऐसा मैंने पढ़ा है कि मुसलमान लोग वहां ज़ियारत यानि की पूजा करने जाते हैं। अबे तुम्हारे नुमाइंदे और तो और हाजी अली दरगाह के सलाहकार तो कह रहे थे कि वो अल्लाह तआला के इलावा किसी और को पूजेंगे नहीं तो फिर ये दरगाहों पर मुसलमान क्या करते हैं ???
इस्लाम में मूर्ती पूजा शिर्क है तो कब्रों की पूजा क्या है ??? मंदिरों में फूल माला और प्रसाद चढ़ाया जाता है तो दरगाहों पर भी तो फूल माला और चादर चढ़ाई जाती है। मंदिरों में भजन कीर्तन होते हैं तो इस्लाम में जब संगीत हराम है फिर हर रोज़ वहां कव्वालियों की नुमाइश कैसे हलाल हो गयी ??? मनीरों में परिक्रमा की जाती है तो दरगाहों में तो परिक्रमा की जाती है। क्या ये सब कृत्य पूजा की श्रेणी में नहीं आते ???
बहुत से मुसलमान अभी कहेंगे कि हम दरगाहों को नहीं मानते। अच्छी बात है मत मानो पर जितने मुसलमान दरगाहों पर जाते हैं क्या वो सभी सूफी सम्प्रदाय के मानने वाले होते हैं ??? नहीं, क्योंकि जिन 2500 दरगाहों का ज़िक्र ऊपर किया है वो सब अलग अलग शाखाओं के मुसलामानों की हैं।  उनमे सूफी भी हैं शिया भी हैं सुन्नी भी हैं बरेलवी भी हैं। तो क्या इनको पूजने वाले तुमसे कमतर मुसलमान हैं ??? आसिफ अली ज़रदारी , शाहरुख़ खान , कैटरीना कैफ ,ज़हीर खान इमरान हाशमी ये सब अजमेर शरीफ में फूलों और चादर का टोकरा अपने सर पर उठा कर ले कर गए थे , क्या किया था उसका ??? हिंदी भाषा में कहें तो सब पूजा करके आये थे। तब कहाँ गया था एक और एक अल्लाह तआला जिसने पूरी कायनात को बनाया ??? फिर जब वो अल्लाह के साथ दरगाहों को पूज सकते हैं हाजी अली दरगाह के सलाहकार महोदय वंदेमातरम गाने में आपके पेट में मरोड़ क्यों उठाने लगी ???? महोदय , जब #पिया_हाजी_अली_गाया_और_फिलमाया_जा_रहा_था तब भारत भर के मुसलमान कहाँ थे कि एक अल्लाह की शान के इलावा दूसरे की शान में आप संगीत गा बजा कर गैर इस्लामिक काम कर रहे हैं। 
छोड़ो दरगाह की बातों को। 
अगर तुम्हारा सर्वशक्तिमान निराकार  अल्लाह सर्वव्यापी है तो फिर अरब जा हज का ढोंग क्यों ?? #संगे_अस्वद को चूमने चाटने छूने और उसकी परिक्रमा करने मक्का तक जाने की ज़ेहमत क्यों ?? 

दर असल भारत के मुसलामानों को चाहिए तुर्की के अता तुर्क जैसा शासक जिसने 1925 में सभी #मदरसों_और_दरगाहों को जमींदोज़ कर दिया था। या इनको चाहिए चीन जैसी लठमार सरकार जिसने 1958 से 1966 के बीच सभी दरगाहों और मस्जिदों के नमो निशान मिटा दिए थे। छोड़ो तुर्की और चीन की बात जब सऊदी अरब सरकार ने मक्का और मदीना में मोहम्मद और उनके परिवार से जुडी सभी मस्जिदें और कब्रगाहें मिट्टी में मिला दी उनका नामो निशाँ तक नहीं छोड़ा 
कर्बला को उन्होंने 1802 में ही नेस्तनाबूद कर दिया था।
https://en.wikipedia.org/wiki/Wahhabi_sack_of_Karbala  तो क्या है तुममें दम कि  भारत की ज़मीन पर गैरकानूनी रूप से  गारे मिट्टी की एक मस्जिद भी तुड़वा दो ??? नहीं , क्योंकि भारत और पकिस्तान में तो कोई मस्जिद में पाद देता है तो इस्लाम खतरे में पड़ जाता है फिर मुसलामानों में हिम्मत कहाँ कि मुंह से उस धरती माँ की प्रशंसा के दो लफ्ज़ बोल दें जिसकी छाती पर पैदा हुए अनाज को खा कर जिसकी मिट्टी में खेल कर पालते बढ़ते हो।   

#हर_विचार_से_शब्द_बनते_हैं_शब्दों_से_प्रवृति_बनती_है_प्रवृति_से_कृत्य_बनते_हैं।-----समझ में आया इस ऋषि वाक्य का मतलब ????? चूँकि तुम्हारे विचारों में तमाम जीव जंतुओं को पलने वाली प्रकृति वन्दनीय नहीं है इसलिए पूरी दुनिया में इसे उजाड़ते घूम रहे हो। चूँकि तुम्हारे विचारों में स्त्री वंदनीय नहीं है इस लिए दुनिया भर में बलात्कार करते घुमते हो।   चूँकि तुम्हारे विचार में ही धरती माँ वन्दनीय नहीं है इसीलिए भारत समेत पूरी दुनिया में बम फोड़ते घूम रहे हो। 
चूँकि तुम भ्रमित हो इसलिए उन दरगाहों और मज़ारों को तो पूजते हो जो अल्लाह टाला से इतर हैं मगर उस धरती को पूजने से इंकार करते हो जिसने इन्हे सदियों से अपनी छाती पर सुला रखा है। 
बहुत छोटी मानसिकता का है तुम्हारा खुदा जो अपने इलावा किसी की प्रशंसा सुनने का कलेजा नहीं रखता।
इस्लाम के अनुयायियों , बात सिर्फ भावनाओं की है। कैसा लगेगा आपकी माँ या बहन को अगर आपका भाई बीवी की तरह इस्तेमाल करने लगे। करते ही है , क्योंकि बात सिर्फ विचारों और भावनाओं की है।

शनिवार, 22 जुलाई 2017

भाड़ में गयी हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएँ और वैज्ञानिक शोध।


गज़ब बेवकूफों का देश है भारत। लिंचिंग के ऊपर संसद में बहस कर रहे हैं लेकिन यह कहने का दम किसी में नहीं है कि अगर बहुसंख्यकों की धार्मिक  भावनाओं को आहत करोगे तो नतीजा कुछ ऐसा ही निकलेगा। 
भाड़ में गयीं बहुसंख्यकों की धार्मिक भावनाएं। किसी के पीट पीट कर मारे जाने पर ही इंसानियत शर्मसार होती है क्या ???? फेसबुक और संसद में लिंचिंग की अलग अलग गिनती सामने आ रही है। कोई दस कह रहा है , कोई तेईस कह रहा है।  इन 23 मौतों से संसद हिली जा रही है, क्यों  ???? आप भारत के अलग अलग हिस्सों में रहते होंगे। अखबार भी पढ़ते होंगे। आपके क्षेत्र के अखबार में रोज़ दो या तीन घटनाएं बलात्कार के बाद हत्या की छपती हैं। यदि सिर्फ बलात्कार की बात करें तो यही दो-तीन आपके क्षेत्र की मिल कर भारत में 2015 में 34600 हो गयीं थीं।  लेकिन संसद विधानसभा का हिलना तो छोड़िये हम भी पढ़ कर अगली खबर पढ़ने लगते हैं , क्यों ???? संसद  छह महीनों में 23 हत्याओं से इसलिए हिलती है क्योंकि मरने वाला मुसलमान होता है। और बलात्कार फिर उसके बाद हत्या झेलने वाली बच्ची , लड़की , महिला या वृद्धा इनकी न तो अस्मिता  की कोई इज़्ज़त है और न जान की कोई कीमत , तो फिर संसद  में कोई क्यों मुद्दा उठाने लगा इन दसियों नहीं सैकड़ों नहीं हज़ारों बलात्कारों का , और उन मासूमों का जिनकी हत्या हो गयी। 
2006 का निठारी काण्ड याद है , 15 नरमुंड मिले पुंडीर और कोली के पास। अगर 20 वर्षीय पिंकी सरकार को इन लोगों ने न मारा होता तो इनका वीभत्स खेल यूँ ही चलता रहता। क्यों ????? पहले 14 बच्चे जब इनके शिकार हुए तो कानून व्यवस्था क्या कर रही थी ???दिल्ली की ज्योति पर रोने वाले लोग थे , रोहतक में बलात्कार फिर हत्या के ऊपर रोने वाले थे, शिमला में बलात्कार फिर हत्या उस बच्ची के लिए रोने वाले हैं। लेकिन जैसे निठारी के 14  बच्चों और अनगिनत बलात्कार और हत्यायें जो लोगों के संज्ञान में नहीं आतीं उनके ऊपर कोई रोने वाला नहीं है कोई अवार्ड वापसी वाला नहीं है उसी तरह से #हलाल करके मारी गयी गायों के ऊपर भी कुछ ही रोने वाले हैं। 

भारतीय सुप्रीम कोर्ट में इतना दम तो है नहीं कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 का या अपने ही 2006 के आदेश का पालन करवा ले हाँ, होली, दिवाली दही हांड़ी कैसे मनाई जाये या गौरक्षकों को न बचाया जाये इसके लिए आदेश पारित करने में एक दिन का समय नहीं लगाती वहीँ मुसलमानो की धार्मिक भावनाएं आहत न हों उसके लिए तीन तलाक जैसे मुद्दों को धार्मिक रंग चढ़ा कर फैंसला सुरक्षित कर देती है। 
खैर भाड़ में गयीं हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं। गाय काटो और खाओ संसद में तुम्हारे इस हक़ लिए चिल्लाने वाले बहुत मौजूद हैं।  अजी गाय की बात छोड़ो मुसलामानों को खुश करने के लिए तो संसद में तथाकथित हिन्दू नेताओं को व्हिस्की में विष्णु और रम में राम नज़र आ सकते हैं लेकिन रमज़ान में रम और पैगम्बर में पैग नज़र नहीं आ सकता। 
भाड़ में गयीं हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं। लेकिन इन्ही धार्मिक भावनाओं को यदि वैज्ञानिक जामा  पहना दिया जाता तो आज तक जो 881 नोबल प्राइज बंटे हैं उनमे से एक उस ऋषि को मिलता जिसने गाय को पूजनीय बनाया। वैसे क्या आपको मालूम है कि अब तक 881 में सेपूरी दुनिया में सिर्फ 12 नोबल पुरूस्कार मुसलमानों को मिले हैं उसमे से भी 3 को ही विज्ञान के लिए मिले है। गाय, विज्ञान के लिए नोबल पुरूस्कार और मुसलमानो को मैंने क्यों जोड़ा ???? इसलिए क्योंकि विज्ञान के इनके शोधार्थी आज भी सूरज को ही पृथवी का चक्कर काटते हुए बताते है और  औरत को इन्सान न मान कर सिर्फ स्तनधारी प्राणी की श्रेणी में ही रखते है और गाय काटने का काम भी यही करते हैं तो फिर इनसे गाय की वैज्ञानिक उपयोगिता की बात करना निरी मूर्खता है क्योंकि इनकी कुरआन में तो खून, रेंगने वाले जानवर , बिना खुर वाले जानवर और सूअर के इलावा सब कुछ खाना जायज़ बताया गया है। 
गाय के उत्पादों के विदेशी वैज्ञानिकों द्वारा बताये गए औषधीय गुणों  के ऊपर एक लेख 4 जून के पहले ही लिख चूका हूँ जिसमे गठिया मधुमेह मोटापा  और कैंसर जैसी बिमारियों के इलाज की दवाइयाँ गाय के दूध और गौमूत्र से बनायीं जा रही हैं , जिसका लिंक नीचे दे रहा हूँ। 


लेकिन हाल ही में #स्क्रिप्स_इंस्टिट्यूट_और_ए_एंड_एम_विश्वविद्यालय_टेक्सास में किये गए एक शोध के अनुसार गाय से एच आई वी (एड्स) की दवाई बनायीं जा सकती है। (पूरी जानकारी के लिए निम्न लिंक क्लिक करें )


दो दिनों से एक पोस्ट चल रही है जिसमे बीफ 1 , बीफ 2 और बीफ 3 तरह की किस्में बता कर यह साबित किया गया है कि बीफ -3 गाय का मांस होता है और भारत में इसका उत्पादन और उपभोग नगण्य है। चलिए मान ली आपकी बात , पर इतना ध्यान रखियेगा कि बीफ 3 को वील भी कहते हैं। नीचे लिंक दे रहा हूँ जिसमें अमरीका के कृषि विभाग ने भारत के पशुओं के सन्दर्भ में डाटा दिया है , आँखें खोल कर देख लेना क्या सिर्फ भैंस काटे जा रही है भारत में ???? क्या सिर्फ भैंस के मांस के निर्यात के बल पर भारत विश्व में बीफ का सबसे बड़ा निर्यातक देश है ???? नहीं। बीफ के साथ साथ उसमे वील ( Veal) भी लिखा है। और एक सांख्यिकी यह भी दी है कि 2007 के मुकाबले 2012 में 19वीं पशु गणना के अनुसार भारत में पशुओं की संख्या सिर्फ 4.1% गिरी है। 


अभी ये बातें न अवैज्ञानिक मुसलामानों को नज़र आयेंगी ( क्योंकि वो तो शारीरिक व्यायाम योग को भी अपने मज़हब के खिलाफ मानते है ) न मुसलामानों के वोटों के भूखे सांसदों को नज़र आएँगी न फट्टू सुप्रीम कोर्ट को नज़र आएँगी। जब गाय की उपयोगिता नज़र और समझ आएगी तब तक गायों की हालत सफ़ेद गैंडे , बाघ , काले हिरण गिर के शेर जैसे लुप्तप्राय जानवरों जैसी हो जाएगी। 


भाड़ में गयी हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएँ और वैज्ञानिक शोध।  मुसलामानों को तो गाय का ही मीट खाना है उसके लिए चाहे जान देनी ही क्यों न पड़ जाये बाकि तो सुप्रीम कोर्ट और तमाम अवार्ड वापसी गैंग के सदस्य  है ही इनकी तरफदारी करने के लिए। 
बलात्कार और फिर हत्या , लगता है सबने सऊदी अरब के वैज्ञानिक के शोध को सहमति दे दी है कि  औरत सिर्फ  एक स्तनधारी प्राणी है साल में अगर 35-36000 बलात्कार और क़त्ल हो गए तो क्या फ़र्क़ पड़ता है। फ़र्क़ तो सिर्फ मुसलामानों की मौत से पड़ता है। 

शनिवार, 1 जुलाई 2017

जोशुआ प्रोजेक्ट्स

कृपया जातिवाद, क्षेत्रवाद  से ऊपर उठ कर धर्म पर मंडराते हुए इस सुनियोजित खतरे पर मनन करे। जाल आपके ऊपर फेंका जा चुका है , अलग अलग दिशा में उड़ने की ज़िद में सब जाल में फंसे रह जाओगे।

हम मूलनिवासी और विदेशियों पर बहस करते हैं। हम जातियों और भाषाओँ पर बहस करते हैं। हम आपस में अपनी मान्यताओं की खिल्ली उड़ाते हैं एक दुसरे को जातिसूचक शब्दों से सम्बोधित करते हैं। हम आरक्षण के समर्थन में लड़ते है और आरक्षण के विरोध में लड़ते हैं।  हम जातियों के आधार पर राजनितिक पार्टियों में बंटे हुए हैं। पर हम कौन हैं हम कितने हैं यह हमें तो क्या शायद सूक्ष्म रूप से भारत सरकार को भी नहीं पता होगा। 

लेकिन विश्व में एक संस्था है जिसे आपके किसी भावनात्मक मुद्दे से कोई मतलब नहीं है फिर भी उसे भारत में रहने वाले हर वर्ग और जाति ---बनिआ, भील, ब्राह्मण ,चमार , धोबी,गोंड ,जाट (हिन्दू), जाट (सिख),कापु, कोली, कुम्हार, कुंबी, मराठा, नाइ, राजपूत, तेली, वन्नियां, यादव, जाटव  . . . . . . . . . . . . . . . की गिनती हजार तक (राउंड ऑफ करने के बाद ) मालूम है। फिर एक जाति कितने वर्गों में बंटी हुई है इस संस्था ने त्रुटिहीन  तरीके से उनका भी विवरण संकलित किया हुआ है। जैसे कि ब्राह्मणों में ---चितपावन , औदिच्च , देशस्था , वारेन्द्र , गौड़ , सारस्वत , कनौजिया ,जोशी, कश्मीरी पण्डित , जोशी , वगैरह वगैरह। आप लोग अपने आप को सवर्ण और दलितों में बांटते होंगे मगर उस संस्था के लिए आप सिर्फ हिन्दू हैं और आपको आपकी मान्यताओं के हिसाब से उसने आपका सूक्ष्तम विवरण एकत्रित किया हुआ है।  
इस संस्था का नाम है #जोशुआ_प्रोजेक्ट्स। अमरीका में स्थापित इस संस्था का सिर्फ एक उद्देश्य है पूरे विश्व को ईसाई बनाना।  इसको धन से वैसे तो विश्व भर के ईसाई पोषित करते हैं लेकिन अमरीकी सरकार भी इसे पोषित करती है। 

इनकी कार्यशैली पर बहुत लम्बी पोस्ट न लिखते हुए बस इतना ही बताना चाहता  हूँ कि इसने भारत को 2507 ग्रुप्स  में बाँट रखा है जिसमे इनके अनुसार अभी तक यह संस्था  अभी 2250 ग्रुप्स तक नहीं पहुँच पायी है जो कि इसका लक्ष्य है।
निम्न लिंक का अवलोकन कर सकते हैं। इसी लिंक से आगे बढ़ते बढ़ते आप इनकी वृहद् कार्यशैली के पैमाने को नाप सकते हैं।  

ऊपर मैंने लिखा है कि ये आपको सिर्फ हिन्दू समझते हैं और जैसे विश्व भर में ये सफल हैं वैसे भारत में सफल नहीं हो प् रहे । भारत में सफल क्यों नहीं हो पा रहे उसका कारण इन्होने निम्न लिंक में दिया है , जिसके आखिरी दो बिंदुओं को अंग्रेजी में कॉपी पेस्ट करने के साथ उसका  हिंदी तर्जुमा मैं यहाँ लिख रहा हूँ।


Prayer Points
* Brahmins are a key community in India who uphold Hinduism. Please pray that the light of the gospel breaks through the veil that blinds this community.
* Pray that the true God will reveal Himself to this community and use Brahmins to preach and teach about Jesus Christ.

1) भारत में ब्राह्मण एक बुनियादी / महत्वपूर्ण समुदाय हैं जिन्होंने हिन्दू धर्म को थाम रखा है। कृपया प्रार्थना कीजिये कि सत्य की रोशनी ( Gospal) इनके उस परदे को काट दे जिससे ये अंधे हैं। 
2) प्रार्थना कीजिये कि असली भगवान् इस समुदाय के समक्ष खुद को प्रस्तुत करे और जीसस क्राइस्ट के विषय में प्रचार करने और पढ़ाने के लिए ब्राह्मणों का उपयोग करे। 

#क्या_अभी_भी_समझ_नहीं_आया_कि_आपको_ईसाई_बनाने_के_लिए_कैसे_एक_एक_वर्ग_को_तोड़कर_कमज़ोर_किया_जा_रहा_है_????? #क्या_अभी_भी_समझ_नहीं_आया_क्यों_इतिहास_के_हर_अनदेखे_पन्ने_से_लेकर_आजतक_हर_घटना_के_लिए_ब्राह्मणों_को_कटघरे_में_खड़ा_किया_जाता_है ???
#क्या_अब_भी_समझ_नहीं_आया_कि_सहारनपुर_की_घटना_से_बंदूकों_का_मुंह_ठाकुरों_की_तरफ_क्यों_मोड़_दिया_गया_है ????
#क्या_अब_भी_समझ_नहीं_आया_कि_हर_मुद्दे_को_सवर्ण_और_दलित_रंग_क्यों_दिया_जाता_है ?????

शनिवार, 24 जून 2017

जिहाद ---दि_क़ुरानिक_कॉन्सेप्ट_ऑफ़_वॉर

#दि_क़ुरानिक_कॉन्सेप्ट_ऑफ़_वॉर ----------

#अगर_आप_आदमखोरों_के_साथ_खाना_खाने_जा_रहे_है_तो_देरसवेर_आप_भी_उनका_भोजन_बनेंगे ------ भारत के तमाम छोटे बड़े तथाकथित  सेक्युलर आदमखोरों और ईद के उपलक्ष्य में कुरान को समर्पित है आज की यह पोस्ट। 
ईरान इराक सीरिया इंग्लैंड ब्रुसेल्स अफगानिस्तान कश्मीर रोज़ दुनिया का कोई न कोई कोना आतंकवादी घटना का शिकार होता। और फिर रेत के टीले में सिर घुसेड़े धर्मनिरपेक्ष शतुरमुर्ग बयां देते हैं कि आतंकवादियों का कोई मज़हब नहीं होता।

आतंकवादियों की बात छोड़ दें , कश्मीर में अब फ़ौज या पुलिस में भर्ती कश्मीरी भी मारे जाने लगे हैं ???? या पकिस्तान भारत के रोज़ रोज़ ऊँगली करता रहता है, मालूम है क्यों ???? 

कल ईद है।  जैसा सबको बताया गया है वही मैं भी जनता हूँ कि इस महीने में कुरान नाज़िल होनी शुरू हुई थी। कुरान ने पैदा होते ही दुनिया को दो हिस्सों में बाँट दिया दारुल इस्लाम ( जहाँ सिर्फ इस्लाम है ) और दारुल हर्ब (जहाँ काफिर हैं) मुसलामानों के लिए क़ुरान ने कर्तव्य निर्धारित किया वे गैर मुसलामानों को इस्लाम में शामिल करें। जो उनकी बात मान कर मुसलमान बन गए वो तो दीनी भाई हो गए। और जो नहीं मानें उनके लिए क़ुरान हिदायत देती है उनसे लड़ो और तब तक लड़ो जब तक वो इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर न हो जायें। इसी लड़ाई को #जिहाद कहते हैं। 
 कुरान --सूरा 2, आयत 193  मुसलामानों को आदेश देती है कि " तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फितना ( कुफ्र का उपद्रव) शेष न रह जाए और दीन अल्लाह का ही हो जाये . . . . . . . ". कुरान का सम्पूर्ण दर्शन ही जिहाद है। 
अगर आपको कुरान का जिहादी दर्शन समझना है तो आपको पाकिस्तानी फौज में राष्ट्रपति जिया उल हक़ के कार्यकाल में उनके एक ब्रिगेडियर एस के मलिक ने एक किताब लिखी थी " दि क़ुरानिक कांसेप्ट ऑफ़ वॉर

http://www.discoverthenetworks.org/Articles/Quranic%20Concept%20of%20War.pdf

इस किताब की प्रस्तावना खुद ज़िआ उल हक़ ने लिखी थी और इसकी भूमिका भारत में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके "अल्लाह बक्श ब्रोही ने लिखी थी।  इसकी भूमिका में ब्रोही लिखते हैं " ----

इस्लामी शब्दकोष में #जिहाद सर्वाधिक गौरवशाली शब्द है , जिसका अंग्रेजी में अनुवाद संभव नहीं , लेकिन जिसका प्रयोग उद्यमशील, संघर्षशील  और अल्लाह के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में प्रयासरत रहने के अर्थ में अधिकता से किया जाता है। इसके आगे अपनी लम्बी चौड़ी प्रस्तावना में ब्रोही लिखता है कि -पश्चिमी चिंतक अक्सर क़ुरान की आयतों पर उंगली उठाते हैं कि इनकी वजह से इस्लाम के अनुयायी गैर इस्लामियों के साथ हमेशा संघर्षरत रहते है। उनके लिए यह जवाब काफी है कि ---खुदा के गुलाम द्वारा खुदा के हुक्म को न मानना उसे इस्लामिक क़ानून की दृष्टि  में गुनहगार मानती है और उसका इलाज वैसे ही किया जाना चाहिए जैसे कैंसर युक्त अंग को शरीर से काट कर अलग कर दिया जाता है जिससे कि बाकि की इंसानियत को बचाया जा सके। 
ब्रिगेडियर मलिक ने अपनी इस पुस्तक में कुरान से बहुतेरे से उद्धरण देकर कहा है कि ----"#जिहाद_अनवरत_चलने_वाली_लड़ाई_है जिसे काफिरों के खिलाफ लड़ा जाता है। ब्रिग मलिक ने लिखा है , " जिहाद कुफ्र के विरुद्ध राजनितिक, आर्थिक ,सामाजिक,मानसिक,नैतिक,आध्यात्मिक ,गृह और अंतरराष्ट्रीय मोर्चों पर लड़ी जाने वाली सदा चलते रहने वाली लड़ाई है।  सशस्त्र युद्ध तो उसके अनेक तरीकों में से एक है। जिहाद हर मुसलमान का निजी और सामूहिक फ़र्ज़ है।
मलिक आगे लिखते हैं "जिहाद में हमारा लक्ष्य दुश्मन का दिल और दिमाग होता है। दुश्मन के दिलों में पैदा किया हुआ खौफ या आतंक हमारा साधन नहीं बल्कि लक्ष्य होता है। यदि एक बार दुश्मनों के दिलों में खौफ पैदा कर दिया फिर कुछ और करने के लिए बाकि नहीं बचता। आतंक दुश्मन पर निर्णय लादने का साधन नहीं है बल्कि लादा हुआ निर्णय होना चाहिए। सिर्फ वही रणनीति सीधा परिणाम पैदा कर सकती है , जो तैयारी की अवस्था से ही शत्रुओं के दिलों में आतंक उत्पन्न करने के लक्ष्य की ओर केंद्रित हो" ( पृष्ट 59 ) 
अपने इस कथन को साबित करने के लिए मलिक सूरा 8 आयत 12 को उद्घृत करता है जिसका हिंदी तर्जुमा इस तरह है --- जबकि आपका रब फरिश्तों को हुक्म देता था कि मैं तुम्हारा साथी हूँ, सो तुम ईमान वालों की हिम्मत बढ़ाओ , मैं अभी काफिरों के दिलों में रौब डाले देता हूँ , सो तुम काफिरों की गर्दनों पर मारो और और उनके पोर पोर मारो। 

ब्रिग मलिक आगे लिखता है कि " उनके दिलों में दर तभी भरा जा सकता है यदि आप उनकी आस्था को ध्वस्त कर दें।  अंतिम विश्लेषण का निष्कर्ष यही निकलता है कि काफिरों के दिलों में दर भरने के लिए उसकी आस्था की नींव हिला दी जाये।  (पृष्ट 60)
उपरोक्त कथन को सूरा 9 आयत 5 के परिपेक्ष में देखिये --- " फिर जब हुरमत के महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ कत्ल करो और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर जगह घात  लगा कर उनकी ताक  में बैठो।  फिर अगर वे तौबा कर लें , नमाज़ कायम करें, ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो। 
ब्रिग मलिक ने तो #दि_क़ुरानिक_कांसेप्ट_ऑफ़_वॉर , कुरान के आधार पर 164 पन्नों की लिख दी जिसका अंश आपके लिए मैंने यहाँ लिखा है।
 पूरी कुरान में काफिरों को  मुसलमान बनाने की ज़द्दोज़हद में जिहाद के ऊपर 164 आयते लिखी गयीं हैं। इन आयतों का सारांश यह है कि कुरान या खुदा की बात मनवाने के दौरान अगर कोई मर भी जाता है तो उसे जन्नत नसीब होगी और यही खुदा की इबादत का दूसरा सबसे बेहतरीन तरीका है।  

कभी कभी भटके हुए नौजवान क़ुरान और हदीस के संदेशों के ऊपर अपना ज्ञान झड़ने और इस्लाम को सहिष्णु दिखने के लिए और ऊपर लिखी सूरा 9 की आयत 5 के सन्दर्भ समझने लगते हैं। उन सबकी जानकारी के लिए बता दूँ कि क़ुरान में कुल 114 सूरा ( चैप्टर) हैं और सूरा 9,  113वें नम्बर पर सुनाया गया था यानि कि यह चैप्टर पहले के सब चैप्टर्स पर ग़ालिब माना जाये। और इस सूरा में साहब ने कह ही दिया था कि जो मुसलमान न बने उसे निपटा दो।  
 

अब समझ में आया आपको कि फ्रांस में क्यों गला कटा जाता है , इंग्लैंड में क्यों जनता के ऊपर ट्रक चढ़ाया जाता है, ब्रुसेल्स में क्यों धमाका होता है , इंदौर पटना ट्रेन क्यों  हादसे का शिकार होती है , भोपाल उज्जैन ट्रैन में धमाका क्यों होता है , या पाकिस्तान सैनिकों के शव क्षत विक्षत क्यों करता है ????? #पिछले_30_दिनों में (रमज़ान के महीने में )दुनिया भर 29 देशों में  164 इस्लामिक हमले हुए जिनमे 1540 लोग मारे गए 1629 लोग घायल हुए।  लिस्ट निम्न लिंक में दी गयी है। 


मकसद सिर्फ दिलों में खौफ पैदा करके ईमान कबुलवाना। मकसद पूरी दुनिया को इस्लामिक राष्ट्र बनाना है।  मकसद आपकी आस्था की नीवें हिलाना है।  और इसी मकसद से #दि_कुरानिक_कांसेप्ट_ऑफ़_वॉर, जो कि मुझे कुरान का संशोधित संस्करण नज़र आती है ,लिखी गयी है। 

मेरी मित्रता सूची में जो सेक्युलर इसे पढ़ चुके हैं , वे सब कुछ भूल कर कल ईद मिलन की तैयारी शुरू कर दें। क्योंकि भुगतना आपने नहीं आपकी आने वाली पीढ़ियों ने है। Please Go ahead and enjoy the BEEF PARTY.