-"छलनी बोली सुई से तेरे पेट में छेद" -----
जी राहुल जी आज कल बहुत किसानों के हित की बात कर रहे हैं , सरकार द्वारा किसानों के दोहन की बात कर रहे हैं, भूमि अधिग्रहण फिर उस पर औद्योगीकरण के खिलाफ झंडा बुलंद किये हैं। मुझे यह तो नहीं पता वे सही कर रहे हैं या नहीं लेकिन मुझे इतना ज़रूर पता है कि जब इन सब प्रथाओं की नींव रखी जा रही थी तो उसके एक शेयर होल्डर ये खुद भी थे।
जी वैसे तो इन प्रथाओं का चलन कांग्रेस में कब से है, इसक ज़िक्र फिर कभी करेंगे लेकिन राहुल गांधी के सन्दर्भ में पहले पांच तिथियों का संज्ञान लेना बहुत आवश्यक है। 1) राहुल गांधी का जन्म 19 जून 1970 ,2) इनके चाचा , स्वर्गीय संजय गांधी द्वारा " मारुती टेक्निकल सर्विसेज " नाम की प्राइवेट कंपनी नवम्बर 1970 में बनाना। इस कंपनी के 99% शेयर संजय, सोनिया ,प्रियंका और राहुल के नाम थे 3) "मारुती मोटर्स लि. की घोषणा 04 जून 1971 4) मार्च 06,1978 पँजाब और हरयाणा हाई कोर्ट ने मारुती मोटर्स को दिवालिया घोषित कर दिया और इसकी Liquidation के आदेश पारित कर दिए। 5) जिस मारुती में आप चलते हैं, उसे अरुण नेहरू ने सुजुकी मोटर्स के साथ मिल कर दिसम्बर 1983 में निकाला था।
जी वैसे तो इन प्रथाओं का चलन कांग्रेस में कब से है, इसक ज़िक्र फिर कभी करेंगे लेकिन राहुल गांधी के सन्दर्भ में पहले पांच तिथियों का संज्ञान लेना बहुत आवश्यक है। 1) राहुल गांधी का जन्म 19 जून 1970 ,2) इनके चाचा , स्वर्गीय संजय गांधी द्वारा " मारुती टेक्निकल सर्विसेज " नाम की प्राइवेट कंपनी नवम्बर 1970 में बनाना। इस कंपनी के 99% शेयर संजय, सोनिया ,प्रियंका और राहुल के नाम थे 3) "मारुती मोटर्स लि. की घोषणा 04 जून 1971 4) मार्च 06,1978 पँजाब और हरयाणा हाई कोर्ट ने मारुती मोटर्स को दिवालिया घोषित कर दिया और इसकी Liquidation के आदेश पारित कर दिए। 5) जिस मारुती में आप चलते हैं, उसे अरुण नेहरू ने सुजुकी मोटर्स के साथ मिल कर दिसम्बर 1983 में निकाला था।
पहली बात तो आप यह समझ ले जिस मारुती में आप चलते हैं यह वो मारुती नहीं है जिसका खून पी पी कर संजय गांधी और सोनिया गांधी ने उसे मार डाला। बहुत ज्यादा विस्तार में नहीं लिखूंगा, बस इतना जान लीजिये -------
1) संजीव गांधी, इंग्लॅण्ड Rolls Royce कम्पनी में प्रशिक्षु बन कर गए। तीव्र गति से ( कभी कभी चुरा कर ) कार चलाने के शौकीन " संजीव गाँधी " अपनी दून स्कूल की पढाई अधूरी छोड़ कर लंदन की मशहूर कार कंपनी " रॉल्स रॉयस" में apprenticeship के लिए गए। दिसंबर 1966 में बिना लाइसेंस के तीव्र गति से कार चलाने के कारण उन्हें हिरासत में ले लिया गया तथा उनका पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया गया। इंग्लॅण्ड में तत्कालीन राजदूत कृष्णा मेनन ने " संजय गांघी" के नाम से दूसरा पासपोर्ट बनवाया तथा 1967 की शुरुआत में अपनी apprenticeship अधूरी छोड़ कर जो शख्स भारत वापिस आया उसका नाम था "संजय गांधी"।
13 नवम्बर 1968 को तत्कालीन Minister of state, for Industrial Development, ललित नारायण मिश्रा ने लोक सभा को बताया कि 22 वर्ष का एक नौजवान जनता की कार बनाना चाहता है जिसकी कीमत होगी रुपये 6000 /- तथा यह कार एक लीटर में 85 कि.मी प्रति घंटे की रफ़्तार से 90 कि.मी चलेगी। Mazda, Toyota, Ford ,Nissan, Renault, Citreon , Morris सरीखी 14 कंपनियों ने इस कार को बनाने के लिए आवेदन दिए परन्तु नवम्बर 1970 की मंत्रिमण्डल की बैठक की अध्यक्षता कर रही तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को संजय गांधी का प्रस्ताव सबसे उपयुक्त लगा, और उन्होंने तत्कालीन सचिवों ( I.A.S) एवं विपक्ष के विरोध के बावज़ूद संजय गांधी के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी, जबकि; संजय गाँधी के पास प्रबंधन या कार बनाने की कोई तकनीकी जानकारी नहीं थी।
1) संजीव गांधी, इंग्लॅण्ड Rolls Royce कम्पनी में प्रशिक्षु बन कर गए। तीव्र गति से ( कभी कभी चुरा कर ) कार चलाने के शौकीन " संजीव गाँधी " अपनी दून स्कूल की पढाई अधूरी छोड़ कर लंदन की मशहूर कार कंपनी " रॉल्स रॉयस" में apprenticeship के लिए गए। दिसंबर 1966 में बिना लाइसेंस के तीव्र गति से कार चलाने के कारण उन्हें हिरासत में ले लिया गया तथा उनका पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया गया। इंग्लॅण्ड में तत्कालीन राजदूत कृष्णा मेनन ने " संजय गांघी" के नाम से दूसरा पासपोर्ट बनवाया तथा 1967 की शुरुआत में अपनी apprenticeship अधूरी छोड़ कर जो शख्स भारत वापिस आया उसका नाम था "संजय गांधी"।
13 नवम्बर 1968 को तत्कालीन Minister of state, for Industrial Development, ललित नारायण मिश्रा ने लोक सभा को बताया कि 22 वर्ष का एक नौजवान जनता की कार बनाना चाहता है जिसकी कीमत होगी रुपये 6000 /- तथा यह कार एक लीटर में 85 कि.मी प्रति घंटे की रफ़्तार से 90 कि.मी चलेगी। Mazda, Toyota, Ford ,Nissan, Renault, Citreon , Morris सरीखी 14 कंपनियों ने इस कार को बनाने के लिए आवेदन दिए परन्तु नवम्बर 1970 की मंत्रिमण्डल की बैठक की अध्यक्षता कर रही तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को संजय गांधी का प्रस्ताव सबसे उपयुक्त लगा, और उन्होंने तत्कालीन सचिवों ( I.A.S) एवं विपक्ष के विरोध के बावज़ूद संजय गांधी के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी, जबकि; संजय गाँधी के पास प्रबंधन या कार बनाने की कोई तकनीकी जानकारी नहीं थी।
नवम्बर 1970 में किस तरह से पक्षपातपूर्ण रवैये से "संजय गांधी" को मारुती कार बनाने का लाइसेंस मिला। चूँकि संजय गांधी को पूर्ण विश्वास था कि लाइसेंस उन्हें ही मिलेगा तो उन्होंने पहले से ही 16 नवम्बर 1970 को मारुती टेक्निकल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड ( MTSPL) नाम की एक निजी कम्पनी का गठन किया जिसकी Paid Up Capital थी रुपये 2. 15 लाख , जिसमे रुपये 1.25 लाख संजय गांधी ने लगाये थे। इसके अन्य शेयर होल्डर थे " सोनिया गांधी ", "राहुल ", "प्रियंका गांधी " एवं " श्रॉफ। कुल मिला कर परिवार की इस कम्पनी में 99% की भागीदारी थी।
संजय गाँधी पर सवाल उठे कि इतनी बड़ी रकम आयी कहाँ से? प्रश्न दीग़र इसलिए था क्यूंकि उनकी माँ और तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कुछ ही दिन पूर्व देश के प्रति अपने त्याग की मिसाल देते हुए कहा था कि; ''मेरे पास कोई जमीन जायदाद और सम्पत्ति नहीं है.....…।"
लेकिन MTSPL को बनाने की मंशा तब और खुलकर सामने आ गयी जब जून 1971 में बनी मारुती लिमिटेड ने एक करार के तहत MTSPL की मैनेजिंग डायरेक्टर श्रीमती सोनिया गाँधी (जो कि दसवीं पास हैं ) को तकनीकी जानकारी देने के लिए प्रतिमाह 2500 रु वेतन, कुल लाभांश पर 1% कमीशन, बोनस, ग्रेच्युटी, प्रोविडेंड फण्ड, चिकित्सीय खर्च, मुफ्त यात्रा, house allowance, टेलीफोन तथा मय पेट्रोल और ड्राइवर कार मारुती लिमिटेड द्वारा दी गयी.।
इसी के साथ MTSPL और मारुती लिमिटेड के साथ एक और करार हुआ जिसका सार यह था कि मारुती लिमिटेड, MTSPL को डिज़ाइन, मैन्युफैक्चरिंग और assembling of cars की expertise प्रदान करने के लिए बिकी हुयी कारों की कुल कीमत का 2% देगा। इस अनुबंध को सम्मानित करने के लिए मारुती लिमिटेड ने 5 लाख रु की पहली किश्त भी दे दी. इस प्रकार MTSPL के शेयर होल्डरों ने मात्र तीन महीने में ना सिर्फ अपनी पूरी लागत निकाल ली बल्कि अगले ढाई साल में 3. 06 लाख अतिरिक्त कमा लिए जो की मूल निवेश रु 2.15 लाख रुपये का 150% होता है।
इसके साथ ही शुरू हो चुका था मारुती लि., बैंको तथा वित्तीय संस्थानों का दोहन जिसका सिलसिलेवार ज़िक्र मै अपनी अगली पोस्ट में करुँगा । सनद रहे कि अभी हम ज़िक्र कर रहे हैं वर्ष 1971 का जबकि जिस मारुती से आप वाकिफ हैं वो "मारुती 800" मई 1983 में सुजुकी कम्पनी के सहयोग से बनी मारुती उद्योग लि. नाम की नवगठित कम्पनी से बाहर आयी थी न की जून 1971 में गठित मारुती ली. से ।
संजय गाँधी पर सवाल उठे कि इतनी बड़ी रकम आयी कहाँ से? प्रश्न दीग़र इसलिए था क्यूंकि उनकी माँ और तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कुछ ही दिन पूर्व देश के प्रति अपने त्याग की मिसाल देते हुए कहा था कि; ''मेरे पास कोई जमीन जायदाद और सम्पत्ति नहीं है.....…।"
लेकिन MTSPL को बनाने की मंशा तब और खुलकर सामने आ गयी जब जून 1971 में बनी मारुती लिमिटेड ने एक करार के तहत MTSPL की मैनेजिंग डायरेक्टर श्रीमती सोनिया गाँधी (जो कि दसवीं पास हैं ) को तकनीकी जानकारी देने के लिए प्रतिमाह 2500 रु वेतन, कुल लाभांश पर 1% कमीशन, बोनस, ग्रेच्युटी, प्रोविडेंड फण्ड, चिकित्सीय खर्च, मुफ्त यात्रा, house allowance, टेलीफोन तथा मय पेट्रोल और ड्राइवर कार मारुती लिमिटेड द्वारा दी गयी.।
इसी के साथ MTSPL और मारुती लिमिटेड के साथ एक और करार हुआ जिसका सार यह था कि मारुती लिमिटेड, MTSPL को डिज़ाइन, मैन्युफैक्चरिंग और assembling of cars की expertise प्रदान करने के लिए बिकी हुयी कारों की कुल कीमत का 2% देगा। इस अनुबंध को सम्मानित करने के लिए मारुती लिमिटेड ने 5 लाख रु की पहली किश्त भी दे दी. इस प्रकार MTSPL के शेयर होल्डरों ने मात्र तीन महीने में ना सिर्फ अपनी पूरी लागत निकाल ली बल्कि अगले ढाई साल में 3. 06 लाख अतिरिक्त कमा लिए जो की मूल निवेश रु 2.15 लाख रुपये का 150% होता है।
इसके साथ ही शुरू हो चुका था मारुती लि., बैंको तथा वित्तीय संस्थानों का दोहन जिसका सिलसिलेवार ज़िक्र मै अपनी अगली पोस्ट में करुँगा । सनद रहे कि अभी हम ज़िक्र कर रहे हैं वर्ष 1971 का जबकि जिस मारुती से आप वाकिफ हैं वो "मारुती 800" मई 1983 में सुजुकी कम्पनी के सहयोग से बनी मारुती उद्योग लि. नाम की नवगठित कम्पनी से बाहर आयी थी न की जून 1971 में गठित मारुती ली. से ।
प्रधानमंत्री की स्वीकृति के बाद तत्कालीन Cabinet Minister for Industries 'श्री दिनेश सिंह' (श्रीमती गाँधी के अत्यंत करीबी ) ने संजय गांधी को 50,000 कारें प्रतिवर्ष निर्मित करने का लाइसेंस 1970 में ही जारी कर दिया।
अतिउत्साह या राजनीतिक दबाव के कारण Industrial Finance Corporation ने बिना किसी जमानत के 1971 में उस वर्ष का सबसे बड़ा loan, 17 करोड़ रूपए; मात्र एक हफ्ते के रिकॉर्ड समय में दे दिया। कागजी कम्पनी को मूर्त रूप देने के लिए ज़रुरत थी जमीन की, जिसका इंतज़ाम किया हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री 'बंसीलाल' ने..... क्यूंकि ये गांधी परिवार के और नज़दीक आना चाहते थे। 1500 छोटे बड़े किसानों से बाज़ार भाव से 1/5वें दाम पर 300 एकड़ वर्जित ज़मीन खरीदी गयी। वर्जित इसलिए क्यूंकि गुड़गांव में जहाँ ये जमीन खरीदी गयी वहाँ से मात्र 1000 मीटर की दूरी पर वायुसेना का सैन्य प्रतिष्ठान था तथा सुरक्षा की दृष्टि से वहाँ कोई भी औधोगिक इकाई नहीं लगायी जा सकती थी..... लेकिन देश की सुरक्षा को ताक पर रखकर, सब कायदे कानूनों का उल्लंघन कर किसानों किसानों की मर्ज़ी के खिलाफ कम कीमतों पर जबरन ज़मीने ले ली गयीं ( इसी तरह के सौदों के लिए वर्ष 2011-12 में राहुल गाँधी ने भट्टा परसौल के किसानों के साथ पूर्ण सहानुभूति दिखाई थी परन्तु शायद वह ये नहीं जानते थे कि ये रिवाज तो कांग्रेस का ही शुरू किया हुआ है ) और इस काम का पारितोषक श्रीमती इंदिरा गांधी ने बंसीलाल को Defence Minister बनाकर दे दिया। फैक्टरी लगाने के लिए और पैसा चाहिए था तो 1971 में देश भर के 75 Auto Dealers से बांह मरोड़कर 5-5 लाख रुपये यह कहकर वसूले गए, कि; 1972 में उन्हें कार उपलब्ध करा दी जायेगी। इस सारे घटनाक्रम में संजय गांधी का साथ दिया ललित नारायण मिश्रा ने..... (शायद इन्हीं बिहारी बाबू जी की वसूली अभियान की नींव पर लालू प्रसाद यादव ने अपनी बेटी मीसा भारती की शादी में 1999 में 24 छोटी-बड़ी गाड़ियां जबरन auto showroom से उठवा ली थी, जिसकी FIR टाटा ने मुम्बई में की थी)
अब सफ़र शुरू हुआ वसूले गए इन पैसों को खर्चने का..... संजय गाँधी, जिन्होंने कार बनाने का पूरा प्रोजेक्ट मंत्रिमंडल में स्वीकृति के लिए दे दिया था, अब वह ये जानना चाहते थे; कि विदेशों में कारें कैसे बनायी जाती हैं? इसलिए वह अपनी टीम के साथ जर्मनी, इटली, इंग्लॅण्ड, तथा चेकोस्लोवाकिया यात्रा पर चले गए और ये पूरा टूर प्रायोजित किया मारुती लिमिटेड के चेयरमैन ने। हद तो तब हो गयी जब इतने सारे देश; इतनी बड़ी टीम के साथ घूमने के बाद लौटकर उन्होंने कहा कि, '' मेरी ऑब्जरवेशन में इन विदेशी कम्पनियों से हमारे सीखने लायक कुछ भी नहीं था"…।
अतिउत्साह या राजनीतिक दबाव के कारण Industrial Finance Corporation ने बिना किसी जमानत के 1971 में उस वर्ष का सबसे बड़ा loan, 17 करोड़ रूपए; मात्र एक हफ्ते के रिकॉर्ड समय में दे दिया। कागजी कम्पनी को मूर्त रूप देने के लिए ज़रुरत थी जमीन की, जिसका इंतज़ाम किया हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री 'बंसीलाल' ने..... क्यूंकि ये गांधी परिवार के और नज़दीक आना चाहते थे। 1500 छोटे बड़े किसानों से बाज़ार भाव से 1/5वें दाम पर 300 एकड़ वर्जित ज़मीन खरीदी गयी। वर्जित इसलिए क्यूंकि गुड़गांव में जहाँ ये जमीन खरीदी गयी वहाँ से मात्र 1000 मीटर की दूरी पर वायुसेना का सैन्य प्रतिष्ठान था तथा सुरक्षा की दृष्टि से वहाँ कोई भी औधोगिक इकाई नहीं लगायी जा सकती थी..... लेकिन देश की सुरक्षा को ताक पर रखकर, सब कायदे कानूनों का उल्लंघन कर किसानों किसानों की मर्ज़ी के खिलाफ कम कीमतों पर जबरन ज़मीने ले ली गयीं ( इसी तरह के सौदों के लिए वर्ष 2011-12 में राहुल गाँधी ने भट्टा परसौल के किसानों के साथ पूर्ण सहानुभूति दिखाई थी परन्तु शायद वह ये नहीं जानते थे कि ये रिवाज तो कांग्रेस का ही शुरू किया हुआ है ) और इस काम का पारितोषक श्रीमती इंदिरा गांधी ने बंसीलाल को Defence Minister बनाकर दे दिया। फैक्टरी लगाने के लिए और पैसा चाहिए था तो 1971 में देश भर के 75 Auto Dealers से बांह मरोड़कर 5-5 लाख रुपये यह कहकर वसूले गए, कि; 1972 में उन्हें कार उपलब्ध करा दी जायेगी। इस सारे घटनाक्रम में संजय गांधी का साथ दिया ललित नारायण मिश्रा ने..... (शायद इन्हीं बिहारी बाबू जी की वसूली अभियान की नींव पर लालू प्रसाद यादव ने अपनी बेटी मीसा भारती की शादी में 1999 में 24 छोटी-बड़ी गाड़ियां जबरन auto showroom से उठवा ली थी, जिसकी FIR टाटा ने मुम्बई में की थी)
अब सफ़र शुरू हुआ वसूले गए इन पैसों को खर्चने का..... संजय गाँधी, जिन्होंने कार बनाने का पूरा प्रोजेक्ट मंत्रिमंडल में स्वीकृति के लिए दे दिया था, अब वह ये जानना चाहते थे; कि विदेशों में कारें कैसे बनायी जाती हैं? इसलिए वह अपनी टीम के साथ जर्मनी, इटली, इंग्लॅण्ड, तथा चेकोस्लोवाकिया यात्रा पर चले गए और ये पूरा टूर प्रायोजित किया मारुती लिमिटेड के चेयरमैन ने। हद तो तब हो गयी जब इतने सारे देश; इतनी बड़ी टीम के साथ घूमने के बाद लौटकर उन्होंने कहा कि, '' मेरी ऑब्जरवेशन में इन विदेशी कम्पनियों से हमारे सीखने लायक कुछ भी नहीं था"…।
मारुति कारखाना लगाने के लिए चाहिए थे 60 करोड़ लेकिन अब तक जमा हो पाये थे 6 करोड़ ही तो "संजय गांधी" ने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए पंजाब नेशनल बैंक तथा सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया से बिना जमानत के कम बयाज दर पर 75 -75 लाख रूपये का क़र्ज़ ले लिया। लेकिन बैंकों ने जब हवा में बनते प्रोजेक्ट पर और पैसा देने पर एतराज जताया तथा रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर ने भी मारुति लि. को और क़र्ज़ देने पर रोक लगा दी तो, आपातकाल लगते ही रिज़र्व बैंक के गवर्नर एस. जगन्नाथन , डिप्टी गवर्नर आर. के हज़ारी, सेंट्रल बैंक के चेयरमैन तनेजा को बेआबरू कर के बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। यहाँ से शुरू हुई भ्रष्टता में साथ न देने पर बलि लेने की प्रथा।
1972 में दिल्ली में लगे ट्रेड फेयर में जिस टिन की बनी हुई मारुती को प्रदर्शित किया गया उसका इंजन कुछ किलोमीटर चलने पर गर्म हो जाता था, 4000 कि. मी चलने पर लीक होने लगता था, उसके दरवाज़े हॉर्न से जयादा आवाज़ करते थे, तथा सस्पेंशन स्पाट सडकों पर भी काम नहीं करता था। कार विशेषज्ञों, पत्रकारों तथा राजनीतिज्ञों ने जब इस मॉडल की तीखी आलोचना की तो इस कार को ट्रक पर लाद कर Vehicle research and development establishment ( VRDE) अहमदनगर भेजा गया। 6 हफ़्तों के feasibility test इस मॉडल ने बहुत आसानी से पास कर लिया तथा 30 मार्च 1974 को आशा के अनुरूप इसे clearance certificate भी मिल गया। अब लोगों को कार के साथ साथ VRDE की कार्यशैली पर भी शक होने लगा था।
1972 में सबको यह बताया गया था कि 1973 के पूर्वार्द्ध में कार बिकने के लिए बाजार में आ जाएगी। न आने का कारण इंजन में विसंगतियां बताया गया। 1974 में बताया गया कि कार बस बनने की कगार पर है। 1975 में बताया गया कि कार्य प्रगति पर है। 1976 में मारुति के अधिकारियों के अनुसार कर बननी शुरू हो गयी है लेकिन वैश्विक मंदी के चलते Board of Directors ने फैसला लिया है की इसका उत्पादन घटा दिया जाये। शायद उपरोक्त बयानों से जनता बहल रही थी लेकिन जनता और विपक्ष के सब्र का बाँध तब टूट गया जब अप्रैल 1977 की Foreign Press Journalist Association के साथ एक प्रेस वार्ता में संजय गाँधी से जब मारुति के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि हम कर बनाने के औज़ारों पर काफी प्रगति कर चुके हैं।
घाटे में डूबी हुई मारुती को जनता सरकार ने 1977 में उबारने से मना कर दिया और 06 मार्च 1978 पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने दिवालिया घोषित कर के बंद करने के आदेश दे दिए।
23 जून 1980 को संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। अपने पुत्र के सपने को दुबारा जीवित करने का काम इंदिरा गांधी नेहरू को सौंपा और ग्लोबल टेंडर के बाद सुजुकी के साथ कोलबोरशन के बाद दिसम्बर 1983 को पहली मारुती कार की चाबी श्री हरपल सिंह जी को इंदिरा गांधी ने सौंपी।
घाटे में डूबी हुई मारुती को जनता सरकार ने 1977 में उबारने से मना कर दिया और 06 मार्च 1978 पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने दिवालिया घोषित कर के बंद करने के आदेश दे दिए।
23 जून 1980 को संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। अपने पुत्र के सपने को दुबारा जीवित करने का काम इंदिरा गांधी नेहरू को सौंपा और ग्लोबल टेंडर के बाद सुजुकी के साथ कोलबोरशन के बाद दिसम्बर 1983 को पहली मारुती कार की चाबी श्री हरपल सिंह जी को इंदिरा गांधी ने सौंपी।
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