नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के हवाई जहाज का कुछ पता नहीं चला , लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु आज भी अपने ऊपर से प्रश्न चिन्ह नहीं हटा पायी , परमाणु वैज्ञानिक डा. होमी जहाँगीर भाभा के हवाई जहाज के तो अवशेष ही नहीं मिले। ये तो नामी हस्तियां थीं, लेकिन और कितने लालच के काल के ग्रास में समाये उनका तो हमें पता ही नहीं है। वैसे इसी श्रृंखला में एक कांड ने अपने समय में बहुत सुर्खियां बटोरीं थीं ,
1971 का बहुचर्चित "नागरवाला काण्ड" के कुछ अनुत्तरित प्रश्न , ( मित्रों! बहुत लोगों को तोइस काण्ड के बारे में जानकारी भी ना होगी, लेकिन यह जानकार दुःख अवश्य होगा कि कैसे किसी काण्ड के रहस्य को शव के कफ़न के साथ लपेटकर दफ़न कर दिया जाता है )
"रुस्तम सोहराब नागरवाला" थल सेना के एक सेवा निवृत्त अधिकारी थे; जिन्होंने कुछ समय के लिए गुप्तचर विभाग में भी कार्य किया था। दिनाँक 24 मई 1971, 'स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया' की 'कनॉट प्लेस' शाखा के हेड कैशियर "श्री इन्दर मल्होत्रा " ने "रुस्तम सोहराब नागरवाला" को 60 लाख रुपये नगद दिए। "इन्दर मल्होत्रा" के अनुसार ऐसा उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री "श्रीमती इंदिरा गांधी" के द्वारा स्वयं फोन पर दिए गए निर्देशों के अनुपालन में किया। जब श्री इन्दर मल्होत्रा इस लेन-देन की औपचारिकतायें पूरी करने प्रधानमन्त्री आवास पहुंचे तो उन्हें एहसास हुआ कि वह ठग लिए गए हैं। नागरवाला की गिरफ्तारी हुई और उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार भी कर लिया।
-----------------------अब तक तो आपने यह किसी फ़िल्मी स्टोरी की तरह पढ़ लिया परन्तु इस पूरे प्रकरण में संदेह को एक ख़ास तरफ इंगित करनेवाले प्रश्न आज भी अनुत्तरित हैं ;------"रुस्तम सोहराब नागरवाला" थल सेना के एक सेवा निवृत्त अधिकारी थे; जिन्होंने कुछ समय के लिए गुप्तचर विभाग में भी कार्य किया था। दिनाँक 24 मई 1971, 'स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया' की 'कनॉट प्लेस' शाखा के हेड कैशियर "श्री इन्दर मल्होत्रा " ने "रुस्तम सोहराब नागरवाला" को 60 लाख रुपये नगद दिए। "इन्दर मल्होत्रा" के अनुसार ऐसा उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री "श्रीमती इंदिरा गांधी" के द्वारा स्वयं फोन पर दिए गए निर्देशों के अनुपालन में किया। जब श्री इन्दर मल्होत्रा इस लेन-देन की औपचारिकतायें पूरी करने प्रधानमन्त्री आवास पहुंचे तो उन्हें एहसास हुआ कि वह ठग लिए गए हैं। नागरवाला की गिरफ्तारी हुई और उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार भी कर लिया।
(1) क्या प्रधानमन्त्री पहले भी इन्दर मल्होत्रा को फोन करतीं थीं ? यदि नहीं तो फिर इन्दर मल्होत्रा ने फोन पर प्रधानमन्त्री की आवाज़ को पहचाना कैसे ?
(2) क्या उससे पहले भी कभी इतनी बड़ी रकम (उस समय 60 लाख रुपये), फोनकाल पर बैंक के खजाने से निकालने के प्रसंग थे? जिनके आधार पर उस दिन भी बैंक से इतनी बड़ी रकम निकालकर दे दी गयी।
(3) सबसे अहम् सवाल ; ये पैसा किसका था? किस खाते से इतनी बड़ी रकम निकाली गयी?
उपरोक्त प्रश्नों को तब और भी संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा जब भारत के इतिहास में पहली बार मात्र "तीन दिन" की कानूनी नूरा-कुश्ती के बाद नागरवाला को चार वर्ष की सश्रम कारावास की सजा सुना दी गयी। मार्च 1972 में जेल से नागरवाला ने अपना इकबालिया बयान वापस लेने तथा अपना मुकदमा दुबारा लड़ने की अर्जी दी। संदेह तब और भी अधिक गहरा हो गया, जब इस अर्जी पर पुनर्विचार से पहले ही नागरवाला की जेल में संदेहास्पद मृत्यु हो गयी।
सितम्बर 1972 में संदेह की सुई ये अनुत्तरित प्रश्न अपने पीछे छोड़कर हमेशा के लिए ठहर गयी; जब इस पूरे प्रकरण की जाँच कर रहे पुलिस अधिकारी की कार और ट्रक की भिड़न्त में मृत्यु हो गयी .…। इस घटना की जाँच की रफ़्तार तो वहीँ रुक गयी परन्तु पूर्व प्रधानमन्त्री "श्री लाल बहादुर शास्त्री जी" की रहस्यमय मृत्यु से खुली राजनैतिक षड्यंत्रों की इस किताब में एक और काला अध्याय जुड़ गया। इस घटना की जांच को किस प्रकार रोका गया या वक्त की परतों में कहाँ दब गयी कुछ नहीं पता चला ------------बस याद रह गया तो सिर्फ अकबर इलाहबादी का एक अशरार ------
"हर इक से सुना नया फ़साना हमने
देखा दुनिया में इक ज़माना हमने
अव्वल ये था कि वाकफियत पे था नाज़
आखिर ये खुला कि कुछ न जाना हमने "
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