मैं चिंतित था , मेरे मित्र चिंतित हैं कि गाय क्यों कटी जा रही हैं ????
कातिल, बलात्कारी और भ्रष्टाचारी कैसे अदालतों से छोड़ दिए जा रहे हैं ????
वेदों और सद्ग्रन्थों को कैसे तोड़मरोड़ कर बदनाम किया जा रहा है ????
माँ बाप को कैसे आज की सन्ताने वृद्धाश्रम में दाल रही हैं ???
गंगा और तीर्थ कैसे मलिन हो रहे हैं ????
अनैतिकता कैसे बढ़ते जा रही है ???
शायद रामचरितमानस से उद्धृत ये चौपाइयां और श्लोक --- जो की काकभुशुण्डि जी एवं हरि के वाहन गरुड़ जी के बीच का संवाद है जिसमे कलियुग के लक्षण बताये गए हैं, आपकी कुछ शंकाओं का समाधान कर सके ---------
भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म।
सुनु हरिजान ग्यान निदई कहउँ कछुक कलिधर्म।।
अर्थात ---सभी लोग मोह के वश हो गए, शुभ कर्मों को लोभ ने हड़प लिया। हे ज्ञान के भण्डार ! हे श्रीहरि के वाहन !सुनिए, अब मैं कलि के कुछ धर्म कहता हूँ।
दंभिन निज मति कल्पि करी प्रगट किए बहु पंथ।।
अर्थात ---कलियुग के पापों ने सब धर्मों को ग्रास लिया, सद्ग्रन्थ लुप्त हो गए, दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना कर कर के बाहर से पंथ प्रकट कर दिए।
बरन धर्म नहिं आश्रम चारी। श्रुति बिरोध रत सब नर नारी।।
द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन। कोउ नहिं मान निगम अनुसासन।।
अर्थात -- कलियुग में न वर्णधर्म रहता है, न चारों आश्रम रहते हैं। सब पुरुष स्त्री वेद के विरोध में लगे रहते हैं। ब्राह्मण वेदों के बेचने वाले और राजा प्रजा को खा डालने वाले होते हैं। वेद की आज्ञा कोई नहीं मानता।
मारग सोई जा कहुँ जोई भावा। पंडित सोई जो गाल बजावा।।
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहइ सब कोई।।
अर्थात ----जिसको जो अच्छा लग जाय,वही मार्ग है। जो डींग मारता है, वही पंडित है। जो मिथ्या आरम्भ करता (आडम्बर रचता ) है और जो दम्भ में रत है उसी को सब कोई संत कहते हैं।
सोई सयान जो परधन हारी। जो कर दम्भ सो बड़ आचारी।।
जो कह झूँठ मसखरी जाना। कलियुग सोई गुनवंत बखाना।।
अर्थात ---जो दूसरे का धन हरण कर ले, वही बुद्धिमान है। जो दम्भ करता है वही बड़ा आचारी है। जो झूठ बोलता है और हंसी दिल्लगी करना जानता है ,वही कलियुग में गुणवान कहा जाता है।
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सोई ग्यानी सो बैरागी।।
जेक नख अरु जाता बिसाला। सोई तापस प्रसिद्ध कलिकाला।।
अर्थात ---जो आचरणहीन है और वेद मार्ग छोड़े हुए है, कलियुग में वही ग्यानी और वही वैराग्यवान है। जिसके बड़े बड़े नख और लम्बी लम्बी जटायें हैं, वही कलियुग में प्रसिद्द तपस्वी है।
दोहा --- असुभ बेश भूषन धरें भच्छाभच्छ जे खाहीं।
तेइ जोगी तेइ सिद्ध नर पूज्य ते कलिजुग मांहि।।
अर्थात ----जो अमंगल वेश और अमंगल भूषण धारण करते है और भक्ष्य -अभक्ष्य सब कुछ खा लेते है, वे ही योगी हैं,वे ही सिद्ध हैं और वे ही मनुष्य कलियुग में पूज्य हैं।
जे अपकारी चार तिन्ह कर गौरव मान्य तेइ।
मन क्रम बचन लबार तेइ बकता कलिकाल महुँ।।
अर्थात--- जिनके आचरण दूसरों के अहित करने वाले हैं,उन्हीं का बड़ा गौरव होता है और वे ही सम्मान के योग्य होते हैं। जो मन,वचन और कर्म से झूठ बोलने वाले हैं वे ही कलियुग में वक्ता माने गए हैं।
बादहिं सूद्र द्विजन सन हम तुम्ह ते कछु घाटि।
जानइ ब्रह्म सो बिप्रबर आँखीं देखावहिं डाटि।।
शूद्र ब्राह्मणों से विवाद करते हैं (और कहते हैं ) कि हम क्या तुमसे कुछ कम हैं? जो ब्रह्म को जानता है वही श्रेष्ट ब्राह्मण है। (ऐसा कह कर) वे उन्हें डाँट कर आँखें दिखलाते हैं।
भये बरन संकर कलि भिन्नसेतु सब लोग।
करहिं पाप पावहिं दुख भय रुज सोक बियोग।।
अर्थात -- कलियुग में सब लोग वर्ण संकर और मर्यादा से च्युत हो कर पाप करते हैं और ( उनके फलस्वरूप )दुःख भय ,रोग शोक और ( प्रिय वस्तु का वियोग ) पाते हैं।
नारी बिबस नर सकल गोसाईं। नाचहिं नर मार्केर्ट की नाईं।।
सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं ग्याना। मिली जनेऊ लेहिं कूदना।।
हे गोसाईं ! सभी मनुष्य स्त्रियों के विशेष वष में हैं और बाजीगर के बन्दर की तरह (उनके नचाये) नाचते हैं। ब्राह्मणों को शूद्र ज्ञानोपदेश करते हैं और गले में जनेऊ डालकर कुत्सित दान लेते हैं।
कुलवंती निकरहिं नारी सती। गृह आनहि चेरी निबेरी गति।।
सूत मानहिं मातु पिता तब लौं। अबलानन दीख नहीं जब लौं।।
अर्थात-- कुलवती और सटी स्त्री को पति घर से निकल देते हैं और अछि चल को छोड़ कर घर में दासी को ल रखते हैं। पुत्र अपने माता पिता को तभी तक मानते हैं जब तक स्त्री का मुंह दिखाई नहीं पड़ा।
सब नर काम लोभ रत क्रोधी। देव बिप्र श्रुति संत बिरोधी।।
गुण मंदिर सुन्दर पति त्यागी। भजहिं नारी पर पुरुष अभागी।।
अर्थात --- सभी पुरुष काम और लोभ में तत्पर और क्रोधी होते हैं। देवता, ब्राह्मण,वेद और संतों के विरोधी होते हैं। अभागिनी स्त्रियां गुणों के धाम सुन्दर पति को छोड़कर परपुरुष का सेवन करतीं हैं।
नारी बिबस नर सकल गोसाईं। नाचहिं नर मार्केर्ट की नाईं।।
सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं ग्याना। मिली जनेऊ लेहिं कूदना।।
हे गोसाईं ! सभी मनुष्य स्त्रियों के विशेष वष में हैं और बाजीगर के बन्दर की तरह (उनके नचाये) नाचते हैं। ब्राह्मणों को शूद्र ज्ञानोपदेश करते हैं और गले में जनेऊ डालकर कुत्सित दान लेते हैं।
बहु दाम सँवारहिं धाम जती। बिषया हरि लीन्हि न रही बिरती।।
तपसी धनवंत दरिद्र गृही। कलि कौतुक तात न जाट कही।।
अर्थात ---सन्यासी बहुत धन लगा कर घर सजाते हैं। उनमे वैराग्य नहीं रहा, उसे विषयों ने हर लिया है। तपस्वी धनवान हो गए और गृहस्थ दरिद्र। हे तात। कलियुग की लीला कुछ कही नहीं जाती।
सुनु खगेस कलि कपट हठ दंभ द्वेष पाखंड।
मान मोह मारादि मद ब्यापी रहे ब्रह्माण्ड।।
अर्थात--- हे पक्षिराज गरुड़ जी ! सुनिए कलियुग में कपट,हाथ (दुराग्रह ) दम्भ, द्वेष, पाखंड, मान,मूह और काम ( अर्थात काम क्रोध और लोभ) और मद ब्रह्माण्ड भर में व्याप्त हो जाते हैं।
श्रुति संमत हरी भक्ति पथ संजुत बिरति बिबेक।
तेहिं न चलहिं नर मोह बस कल्पहिं पंथ अनेक।।
अर्थात -- वेदसम्मत तथा वैराग्य और ज्ञान से युक्त जो हरिभक्ति का मार्ग है ,मोहवश मनुष्य उसपर नहीं चलते और अनेकों नए नए पंथों की कल्पना करते हैं।
बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथिन्ह गवा।।
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा।।
बड़े भाग्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है (कठिनता से मिलता है)। यह साधन का धाम और मोक्ष् का दरवाज़ा है। इसे पा कर भी जिसने परलोक न बना लिया,
सो परत्र दुःख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताई।
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोस लगाई।।
वह परलोक में दुःख पता है,सर पीट पीट कर पछताता है तथा (अपना दोष न समझ कर ) काल पर कर्मपर और ईश्वर पर दोष लगाता है।
Good
जवाब देंहटाएंथोडा बहुत लिखते समय त्रुटी हुयी है
मेरे मन में भी कुछ आपके जैसे विचार आ रहे थे तब मैंने गूगल पर सर्च किया तभी आपका ब्लॉग मिला पढ क्र कुछ शांति मिली
मृत्युलोक के सबसे अनुभवी आदरणीय गुसाईं जी को नमन
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