"कभी पतझड़ में फूल खिल जाते हैं,
कभी बसंत में फूल खिर जाते हैं,
कुछ लाशों को कफ़न भी नसीब नहीं होता,पर, कुछ पर ताजमहल खड़े हो जाते हैं।
कभी बसंत में फूल खिर जाते हैं,
कुछ लाशों को कफ़न भी नसीब नहीं होता,पर, कुछ पर ताजमहल खड़े हो जाते हैं।
जयललिता ने फिर से मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाल है।
लखनऊ हाई कोर्ट ने उस PIL को दो दिन में ख़ारिज कर दिया था, जिसमे सरकार से यह जानने की कोशिश की गयी थी कि क्या 2 जून 2001 को, राहुल गांधी को उनकी गर्लफ्रेंड कोलंबिया निवासी जुनिता उर्फ़ वेरोनिका के साथ अमरीका के बोस्टन हवाई अड्डे पर $1,60,000 के साथ गिरफ्तार किया गया था।
मेरे जेहन में अक्सर यह सवाल आता था कि स्वतंत्र भारत में भ्रष्टाचार की शरुआत कैसे हुई और किसके प्रश्रय से आज यह भ्रष्टाचार कहानी दर दर की हो गया है। आगे पढ़ने से पहले एक बात याद रखियेगा कि देश बेशक 15 अगस्त 1947 आज़ाद हुआ लेकिन 2 सितम्बर 1946 को नेहरू के नेतृत्व में बनी सरकार ने रंग ढंग पहले वर्ष में ही दिखने शुरू कर दिए थे।
वर्ष 1948 …… अपनी हत्या से कुछ दिन पूर्व राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने आंध्र-प्रदेश के एक खिन्न नागरिक के द्वारा लिखे गए पत्र को सार्वजनिक किया था, जिसका हिन्दी अनुवाद इस कुछ प्रकार है…… "राजनीतिक शक्ति ने उनके दिमाग ख़राब कर दिए हैं, बहुत से राजनेता लोभी हो गए हैं और अपनी रोटियां सेंकने में लगे हैं. वह नाजायज़ रूप से पैसा कमाने में इतने मशगूल हो गए हैं कि न्यायिक प्रक्रिया; जो कि मेजिस्ट्रेट द्वारा संचालित होती है, उसमें भी बाधाएं उत्त्पन्न कर रहे हैं। ………………ऐसी स्थिति में एक कर्मठ एवं ईमानदार व्यक्ति अपने आपको काम करने में असमर्थ पा रहा है। (as Quoted by Umesh Anand in 'The Times Of India" , मार्च 7,1996)…… ………गौरतलब है कि, राष्ट्रपिता के इस प्रकार के गम्भीर मुद्दे को उठाने के बाद भी तत्कालीन सरकार ने संज्ञान नहीं लिया और भ्रष्टाचार रूपी दानव उनकी मृत्यु के उपरान्त अमरबेल की भाँति कांग्रेस से लिपट गया.।
साभार ,"The Great Indian Middle Class" by "Pavan K. Varma", page no. 86
स्वतन्त्र भारत का पहला वित्तीय घोटाला…… वर्ष 1948
'' इंग्लॅण्ड से भारतीय सेना के लिए 155 जीपें खरीदी गयीं , जिसमें 80 लाख रुपये का घोटाला किया गया. इस घोटाले के मुख्य सूत्रधार ''श्री वी. के. कृष्णामेनन'' थे। वर्ष1955 में ''श्री जवाहरलाल नेहरू जी'' ने इस घोटाले के पारितोषक के रूप में उन्हें अपने मंत्रिमण्डल में शामिल कर लिया और घोटाले की चल रही जांच को हमेशा के लिए बंद कर दिया। ……। काश! उसी वक्त भ्रष्टाचार के उस प्रथम अंकुर को कुचल दिया गया होता और कांग्रेस ने उसे और ना सींचा होता, तो आज एक भ्रष्टाचार (कोयला घोटाला) की कीमत 3 लाख 25 हज़ार करोड़ रूपये ना पहुँचती। आखिर यही तो है हर हाथ (कांग्रेस) शक्ति, हर हाथ (कांग्रेस) तरक्क़ी।
'' इंग्लॅण्ड से भारतीय सेना के लिए 155 जीपें खरीदी गयीं , जिसमें 80 लाख रुपये का घोटाला किया गया. इस घोटाले के मुख्य सूत्रधार ''श्री वी. के. कृष्णामेनन'' थे। वर्ष1955 में ''श्री जवाहरलाल नेहरू जी'' ने इस घोटाले के पारितोषक के रूप में उन्हें अपने मंत्रिमण्डल में शामिल कर लिया और घोटाले की चल रही जांच को हमेशा के लिए बंद कर दिया। ……। काश! उसी वक्त भ्रष्टाचार के उस प्रथम अंकुर को कुचल दिया गया होता और कांग्रेस ने उसे और ना सींचा होता, तो आज एक भ्रष्टाचार (कोयला घोटाला) की कीमत 3 लाख 25 हज़ार करोड़ रूपये ना पहुँचती। आखिर यही तो है हर हाथ (कांग्रेस) शक्ति, हर हाथ (कांग्रेस) तरक्क़ी।
वर्ष 1951 ---साइकिल घोटाला ---तत्कालीन सचिव ( वाणिज्य एवं प्रद्योगिकी ) श्री एस ए वेंकटरमन को एक विदेशी कम्पनी को विदेश से साइकिल आयात करने तथा भारत में बेचने के लिए लाइसेंस देने के सम्बन्ध में रिश्वत लेने के अपराध में जेल हुई।
वर्ष 1956 ---- बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय --- स्वतंत्र भारत के इतिहास में किसी शैक्षणिक संस्थान में पकडे गए इस 50 लाख रूपए के घोटाले का नाम सबसे ऊपर आता है। इस घोटाले में विश्वविद्यालय के कर्मचारी एवं अधिकारी शामिल थे।
आइये चलें लाखों से करोड़ों के ओर ------
वर्ष 1958 ---- मूंदड़ा घोटाला ------ वर्ष 1956 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज ने हरिदास मूंदड़ा जो की कलकत्ता के एक बड़े उद्योगपति थे, को शेयर मार्किट में गैर कानूनी ढंग से कारोबार के कारन आरोपित किया था। इसी समय आयकर विभाग ने हरिदास मूंदड़ा को पुराने बकाये के सम्बन्ध में भेजे गए नोटिस संदिग्ध परिस्थितियों में वापिस ले लिए थे। इसके बावज़ूद भी केंद्र सरकार के दबाव में आ कर भारतीय जीवन बीमा निगम ने अपनी निवेश कमेटी को विश्वास में न लेते हुए हरिदास मूंदरा की डूबती हुई कम्पनियों , 1) Richardson Cruddas, 2) Jessops & company 3)Smithslanistreet 4) Osler Lamps 5) Angelo Brothers and 6) British India Corporation के 1 करोड़ 20 लाख के शेयर बाज़ार से अधिक दाम पर खरीदे। यह रकम जीवन बीमा निगम कभी वापिस न पा पाया।
बॉम्बे हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज श्री एम सी छागला ने पारदर्शिता के साथ इस जांच को मात्र 24 दिनों में निपटाया तथा इसके लिए उन्होंने तत्कालीन वित्तमंत्री श्री टी टी कृष्णामचारी को ज़िम्मेदार ठहराया। इस प्रकरण पर श्री फ़िरोज़ गांधी के नेतृत्व में लोकसभा में ज़बरदस्त बहस हुई जिसके उपरांत श्री कृष्णामचारी को त्यागपत्र देना पड़ा। परन्तु बाद में नेहरू जी ने उन्हें क्लीन चिट दे दी तथा पुनः अपने मंत्री मंडल में शामिल कर लिया।
यदि जस्टिस छागला के संस्तुतियों को अक्षरशः लागू किया गया होता तो शायद 4000 करोड़ का हर्षद मेहता कांड , 1100 करोड़ का रूप भंसाली कांड ,10000 करोड़ का केतन पारेख कांड,5040 करोड़ का सत्यम कांड और 4000 करोड़ का शारदा कांड न होते।
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