शनिवार, 23 मई 2015

स्वतंत्र भारत में भ्रष्टाचार की शरुआत कैसे हुई


"कभी पतझड़ में फूल खिल जाते हैं,
कभी बसंत में फूल खिर जाते हैं,
कुछ लाशों को कफ़न भी नसीब नहीं होता,
पर, कुछ पर ताजमहल खड़े हो जाते हैं। 

जयललिता ने फिर से मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाल है। 
लखनऊ हाई कोर्ट ने उस  PIL को दो दिन में ख़ारिज कर दिया था, जिसमे सरकार से यह जानने की कोशिश की गयी थी कि क्या 2 जून 2001 को, राहुल गांधी को उनकी गर्लफ्रेंड कोलंबिया निवासी जुनिता उर्फ़ वेरोनिका के साथ  अमरीका के बोस्टन हवाई अड्डे पर $1,60,000 के साथ गिरफ्तार किया गया था।  


मेरे जेहन में अक्सर यह सवाल आता था कि स्वतंत्र भारत में भ्रष्टाचार की शरुआत कैसे हुई और किसके प्रश्रय से आज यह भ्रष्टाचार कहानी दर दर की हो गया है। आगे पढ़ने से पहले एक बात याद रखियेगा कि देश बेशक 15 अगस्त 1947  आज़ाद हुआ लेकिन 2 सितम्बर 1946 को नेहरू के नेतृत्व में बनी सरकार ने रंग ढंग पहले वर्ष में ही दिखने शुरू कर दिए थे।  


वर्ष 1948 …… अपनी हत्या से कुछ दिन पूर्व राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने आंध्र-प्रदेश के एक खिन्न नागरिक के द्वारा लिखे गए पत्र को सार्वजनिक किया था, जिसका हिन्दी अनुवाद इस कुछ प्रकार है…… "राजनीतिक शक्ति ने उनके दिमाग ख़राब कर दिए हैं, बहुत से राजनेता लोभी हो गए हैं और अपनी रोटियां सेंकने में लगे हैं. वह नाजायज़ रूप से पैसा कमाने में इतने मशगूल हो गए हैं कि न्यायिक प्रक्रिया; जो कि मेजिस्ट्रेट द्वारा संचालित होती है, उसमें भी बाधाएं उत्त्पन्न कर रहे हैं। ………………ऐसी स्थिति में एक कर्मठ एवं ईमानदार व्यक्ति अपने आपको काम करने में असमर्थ पा रहा है। (as Quoted by Umesh Anand in 'The Times Of India" , मार्च 7,1996)……  ………गौरतलब है कि, राष्ट्रपिता के इस प्रकार के गम्भीर मुद्दे को उठाने के बाद भी तत्कालीन सरकार ने संज्ञान नहीं लिया और भ्रष्टाचार रूपी दानव उनकी मृत्यु के उपरान्त अमरबेल की भाँति कांग्रेस से लिपट गया.।
साभार ,"The Great Indian Middle Class" by "Pavan K. Varma", page no. 86

स्वतन्त्र भारत का पहला वित्तीय घोटाला…… वर्ष 1948 
'' इंग्लॅण्ड से भारतीय सेना के लिए 155 जीपें खरीदी गयीं , जिसमें 80 लाख रुपये का घोटाला किया गया. इस घोटाले के मुख्य सूत्रधार ''श्री वी. के. कृष्णामेनन'' थे। वर्ष1955 में ''श्री जवाहरलाल नेहरू जी'' ने इस घोटाले के पारितोषक के रूप में उन्हें अपने मंत्रिमण्डल में शामिल कर लिया और घोटाले की चल रही जांच को हमेशा के लिए बंद कर दिया। ……। काश! उसी वक्त भ्रष्टाचार के उस प्रथम अंकुर को कुचल दिया गया होता और कांग्रेस ने उसे और ना सींचा होता, तो आज एक भ्रष्टाचार (कोयला घोटाला) की कीमत 3 लाख 25 हज़ार करोड़ रूपये ना पहुँचती। आखिर यही तो है हर हाथ (कांग्रेस) शक्ति, हर हाथ (कांग्रेस) तरक्क़ी।

वर्ष 1951 ---साइकिल घोटाला ---तत्कालीन सचिव ( वाणिज्य एवं प्रद्योगिकी ) श्री एस ए वेंकटरमन को एक विदेशी कम्पनी को विदेश से साइकिल आयात करने तथा भारत में बेचने के लिए लाइसेंस देने के सम्बन्ध में रिश्वत लेने के अपराध में जेल हुई।
वर्ष 1956 ---- बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय --- स्वतंत्र भारत के इतिहास में किसी शैक्षणिक संस्थान में पकडे गए इस 50 लाख रूपए के घोटाले का नाम सबसे ऊपर आता है। इस घोटाले में विश्वविद्यालय के कर्मचारी एवं अधिकारी शामिल थे।
आइये चलें लाखों से करोड़ों के ओर ------
वर्ष 1958 ---- मूंदड़ा घोटाला ------ वर्ष 1956 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज ने हरिदास मूंदड़ा जो की कलकत्ता के एक बड़े उद्योगपति थे, को शेयर मार्किट में गैर कानूनी ढंग से कारोबार के कारन आरोपित किया था। इसी समय आयकर विभाग ने हरिदास मूंदड़ा को पुराने बकाये के सम्बन्ध में भेजे गए नोटिस संदिग्ध परिस्थितियों में वापिस ले लिए थे। इसके बावज़ूद भी केंद्र सरकार के दबाव में आ कर भारतीय जीवन बीमा निगम ने अपनी निवेश कमेटी को विश्वास में न लेते हुए हरिदास मूंदरा की डूबती हुई कम्पनियों , 1) Richardson Cruddas, 2) Jessops & company 3)Smithslanistreet 4) Osler Lamps 5) Angelo Brothers and 6) British India Corporation के 1 करोड़ 20 लाख के शेयर बाज़ार से अधिक दाम पर खरीदे। यह रकम जीवन बीमा निगम कभी वापिस न पा पाया।
बॉम्बे हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज श्री एम सी छागला ने पारदर्शिता के साथ इस जांच को मात्र 24 दिनों में निपटाया तथा इसके लिए उन्होंने तत्कालीन वित्तमंत्री श्री टी टी कृष्णामचारी को ज़िम्मेदार ठहराया। इस प्रकरण पर श्री फ़िरोज़ गांधी के नेतृत्व में लोकसभा में ज़बरदस्त बहस हुई जिसके उपरांत श्री कृष्णामचारी को त्यागपत्र देना पड़ा। परन्तु बाद में नेहरू जी ने उन्हें क्लीन चिट दे दी तथा पुनः अपने मंत्री मंडल में शामिल कर लिया।
यदि जस्टिस छागला के संस्तुतियों को अक्षरशः लागू किया गया होता तो शायद 4000 करोड़ का हर्षद मेहता कांड , 1100 करोड़ का रूप भंसाली कांड ,10000 करोड़ का केतन पारेख कांड,5040 करोड़ का सत्यम कांड और 4000 करोड़ का शारदा कांड न होते।

आइये अब करोड़ की इकाई से दहाई के घोटालो की चर्चा करें-------कीमत 22 करोड़ रूपए।
वर्ष 1960 ----आंध्र-प्रदेश के निवासी ''डॉ. धर्मजयन्ती तेजा'' अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी के साथ एक NRI के रूप में दिल्ली आये. यहाँ आकर उन्होंने भव्य पार्टियो का आयोजन शुरू किया, जिसका हिस्सा बनकर राजनेता और नौकरशाह अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते थे। इन पार्टियों की भव्यता देखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री ''श्री जवाहरलाल नेहरू ''जी भी उनके मुरीद हुए बिना नहीं रह पाये। दिल्ली सरकार को अपने प्रभाव में लेने के पश्चात डॉ तेजा ने जयंती शिपिंग कंपनी बनाने की घोषणा की, तथा इसके लिए सरकार से आर्थिक मदद माँगी। नौवहन निदेशालय (directorate of shipping ) की कड़ी आपत्ति के बाद इनका प्रस्ताव केन्द्रीय मंत्रिमंडल को दे दिया गया, जिस पर पहले से ही तेजा की भव्यता से प्रभावित नेहरूजी ने कहा, "थोडा कुछ दे दो". … इस थोडा कुछ को अधिकारियों ने करोड़ों में मान लिया। इस पैसे से डॉ तेजा ने जापान से लिए जहाजों की सप्लाई करने वाली कंपनी को पहली किश्त अदा की। इसके बाद इन्हीं जहाजों के एवज में डॉ तेजा ने भारत के अन्य बैंकों से कर्ज उठा लिया। 1965 में जब जापान और अन्य बैंकों ने महसूस किया किया कि डॉ तेजा उनके पैसे वापस नहीं कर रहे है तथा कर्मचारियों को पैसे नहीं दे रहे हैं तो उनके खिलाफ धारा 409, 467,420, 477 A तथा 120 B के तहत मुकदमा दायर किया गया। डॉ तेजा अपनी धर्मपत्नी के साथ कोस्टा रिका भाग गए। बाद में Oct .19 , 1972 को स्कॉटलैंड यार्ड ने लंदन से तेजा को गिरफ्तार करके भारत के हवाले कर दिया। उन्हें 19 वर्ष की सजा हुयी परन्तु उन 22 करोड़ रुपये का कोई हिसाब ना मिला।
इसी प्रकरण के दौरान जब '' श्रीमती इंदिरा गांधी ''जी से इस विकराल भ्रष्टाचार के बारे में पत्रकारों ने बात की तो उनका जवाब था कि, "यह (भ्रष्टाचार ) तो वैश्विक तथ्य है" …।
काश! उस समय नेहरूजी ने तेजा से अपने व्यक्तिगत सम्बन्धों को आर्थिक सम्बन्धों में ना तब्दील किया होता और इंदिराजी ने उस वैश्विक समस्या को सिर्फ अपने देश की समस्या मानकर उसका कोई हल निकाला होता तो आज देश को विकराल आर्थिक असमानता और भ्रष्टाचार का दौर ना देखना पड़ता ......

मेरा मंतव्य मात्र आपको भ्रष्टाचार नाम के दानव की उत्पति से अवगत कराना नहीं था वरन 60 के दशक तक पहुंचते पहुंचते स्थिति कितनी भयावह हो चुकी थी उसकी भूमिका बांधना था।
उस समय के परिप्रेक्ष्य , नीति निर्धारकों, कानून के निर्माताओं तथा सरकार के लचर रवैये के सन्दर्भ में यदि देखा जाये तो Prevention of corruption Act 1947, इतना कमज़ोर तथा दंतविहीन बनाया गया था जिससे अपराधी के प्रति कोई निर्णयात्मक कार्यवाही की ही नहीं जा सकती थी। एक तरफ कमज़ोर कानून था तो दूसरी तरफ तत्कालीन सरकार ने भी भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कोई कठोर कदम उठाना तो दूर बल्कि 'कृष्णामेनन' तथा 'कृष्णामचारी' सरीखों को Public Accounts committee की प्रतिकूल टिप्प्णियों के बावज़ूद मंत्री पदों से नवाज़ कर समाज के समक्ष गलत उदाहरण प्रस्तुत करके एक तरह से भ्रष्टाचार को प्रश्रय ही दिया।
उपरोक्त घटनाओं का सामान्य जनमानस पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि सतर्कता विभाग ( Vigilance Department ) ने गृह मंत्रालय को 1956 से 1964 तक 80,000 से अधिक केस कार्यवाही के लिए प्रेषित किये। 1964 में Prevention of Corruption के लिए गठित Santhanam Committee की रिपोर्ट के सम्बन्ध में भारत की सरकार ने खुद माना कि --( हिंदी में अनुवादित ) " हमारे समक्ष जो भी प्रस्तुत किया गया, उससे तो यह लगता है कि भ्रष्टाचार इतना फ़ैल गया है कि नागरिकों की प्रशासनिक व्यवस्था में आस्था ख़तम हो रही है। हमें हर तरफ से यही सुनाई पड़ रहा है कि वर्त्तमान वर्षों में यह भ्रष्टाचार उन जगहों पर भी व्याप्त हो गया है जहाँ कुछ समय पहले तक इसके विषय में सोचना भी नामुमकिन था। आम धारणा;कि ईमानदारी ख़तम हो चुकी है; उतनी ही घातक है; जितनी की व्यवस्था की असफलता घातक है। " (GOI, ministry of Home Affairs, report of the committee on prevention of corruption (New Delhi 1964) pp 12, 13, 101)
मित्रों! यह तो आप सभी जानते हैं कि अभी तक (1964 -65 ) देश में एकछत्र कांग्रेस का ही शासन ही चल रहा था, फिर जनहित में इन घोटालों और भ्रष्टाचार को रोकने का दायित्व भी उसी कांग्रेस का ही था जो आज अपने आपको सबसे पुरानी और देश-निर्मात्री पार्टी होने का दम भर रही है.…।
मित्रों! घोटाले तो आप गूगल पर भी पढ़ सकते हैं , लेकिन भारतीय राजनेताओं ने सत्ता की लोलुपता में कुछ ऐसी गलतियां की हैं, जिनसे पूरे देश में एक ऐसा सन्देश गया; जिससे जनता भी; " यथा राजा, तथा प्रजा" की तर्ज पर दौड़ने लगी और उसके प्रतिकूल परिणाम आज अपनी पराकाष्ठा पर है एवं पूरा देश भ्रष्टाचार से त्राहि-माम कर रहा है। 

इसी सन्दर्भ में एक अत्यन्त रोचक घटना घटी सन 1969 में। -------- तत्कालीन वित्तमंत्री "श्री मोरारजी देसाई" ने खुलासा किया कि ; केंद्र -सरकार में मंत्री "बाबू जगजीवनराम " ने पिछले 10 वर्षों से अपना Income-Tax Return नहीं भरा है। काफी हंगामा मचा लेकिन जगजीवनराम जी से इस्तीफ़ा मांगने या इस प्रकरण पर स्पष्टीकरण मांगने के बजाये तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी" जी ने पूरी घटना को बहुत हलके में लेते हुए इसे एक अत्यंत व्यस्त व्यक्ति की भूलवश हुई गलती कहकर हवा में उड़ा दिया; क्यूंकि "बाबू जगजीवनराम जी" श्रीमती गाँधी के ख़ास सिपहसालार थे। क्या ये वाकई बाबू जगजीवनराम की एक मानवीय भूल थी? या फिर भ्रष्टाचार द्वारा अर्जित आय को छुपाने का उपाय?

तो मेरा मानना है कि इस प्रकार श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने अपने पिता द्वारा उगाई गयी भ्रष्टाचार की खेती को विरासत में पाया और उसे सींचकर अपना पुत्री धर्म निभाया। आज फिर एक शेर याद आ रहा है ----

"कभी पतझड़ में फूल खिल जाते हैं,
कभी बसंत में फूल खिर जाते हैं,
कुछ लाशों को कफ़न भी नसीब नहीं होता,
पर, कुछ पर ताजमहल खड़े हो जाते हैं। 

और कांग्रेस की यह बुलंद इमारत आज ईमानदारी और नैतिक सिद्दांतों की इसी लाश पर खड़ी है।
बोफोर्स तोप घोटाला -राजीव गांधी 960 करोड़।
 1992हर्षद मेहता (शेयर घोटाला) 5,000 करोड़।
1994चीनी घोटाला 650 करोड़। 
1995 वीरेंदर गौतम (कस्टम टैक्स) घोटाला 43 करोड़। 
1995कॉबलर घोटाला 1,000 करोड़
1995दीनार घोटाला (हवाला) 400करोड़
1995 प्रेफ्रेंशल अलॉटमेंट घोटाला 5,000 करोड़
1995मेघालय वन घोटाला300करोड़
1996चारा घोटाला 950करोड़
1996यूरिया घोटाला 133 करोड
1996 उर्वरक आयत घोटाला 1,300 करोड़
1997 म्यूच्यूअल फण्ड घोटाला 1,200 करोड़
1997SNC पॉवेर प्रोजेक्ट घोटाला 374 करोड़1997 सुखराम टेलिकॉम घोटाला 1,500 करोड़
1997 बिहार भूमि घोटाला 400 करोड़
1998 उदय गोयल कृषि उपज घोटाला 210 करोड़
1998 टीक पौध घोटाला 8,000 करोड़
2001 डालमिया शेयर घोटाला 595 करोड़
2001UTI घोटाला 32 करोड़
2001केतन पारिख प्रतिभूति घोटाला 1,000 करोड़
2002कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज घोटाला 120 करोड़
2002 संजय अग्रवाल गृह निवेश घोटाला 600 करोड़
2003 स्टाम्प घोटाला 20,000 करोड़
2005 सौरपियन पनडुब्बी घोटाला 18,978 करोड़
2005 बिहार बाढ़ आपदा घोटाला 17 करोड़
2005 आई पि ओ कॉरिडोर घोटाला1,000 करोड़
2006ताज कॉरिडोर घोटाला 175 करोड़
2006पंजाब सिटी सेंटर घोटाला 1,500 करोड़
2008 सत्यम घोटाला 8,000 करोड
2008 सैन्य राशन घोटाला5,000 करोड़
2008 स्टेट बैंक ऑफ़ सौराष्ट्र 95 करोड़
2008 काला धन 2,10,000 करोड
2008हसन् अली हवाला घोटाला 39,120 करोड़
2009 झारखण्ड मेडिकल उपकरण घोटाला 130 करोड़
2009 झारखण्ड खदान घोटाला 4,000 करोड़
2009 उड़ीसा खदान घोटाला7,000 करोड़
2009 चावल निर्यात घोटाला 2,500 करोड़
2010  खाद्यान घोटाला 35,000 करोड़
2010 (ii) बैंड स्पेक्ट्रम घोटाला 2,00,000 करोड़
2010 आदर्श घर घोटाला 900 करोड़
2011 कॉमन वेल्थ घोटाला 70,000 करोड़
2011 -2जी स्पेक्ट्रम घोटाला 1,76,000 करोड़
2012 -ब्लॉक आवंटन घोटाला 2004 -09----- 1,86,000 करोड़ 





Ref --- 
----- The Great Indian Middle Class --- by Pavan K. verma
----The Sanjay Story---- By Vinod Mehta
---- Old World Empires :Cultures of Power and Governance In Eurasia ----By Ilhan Niaz
----- India since Independence: Making sense of Indian Politics ---- By Kirusna Anant, Vi
and GOOGLE Baba

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