शनिवार, 26 नवंबर 2016

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षतिः।

अशरफ (सैय्यद मीर),अजलफ (शेख, पठान ), अरजाल (जुलाहा , हज्जाम), अजलाम और पसमांदा (भंगी, मेहतर ,चमार)  ---- मुस्लिम समाज में ये वर्ण बने अपनी पैदाइश , धर्मान्तरण और अपनी दिनचर्या के आधार पर। अपने हक़ों के लिए पसमांदा, अरजाल अजलाफ और अजलाम सभी लड़ रहे हैं लेकिन अपने धर्म और धर्मशास्त्रों की धज्जियाँ उड़ा कर या उन्हें जला कर नहीं। अपने धर्म और धर्म शास्त्रों का अपमान कैसे करना है , यह कोई सीखे तो उन हिंदुओं से जो विदेशी चंदे पर पल रहे है। धर्म का अपमान करना एक मानसिकता हो सकती है लेकिन धर्म का अपमान सहने वाले हिंदुओं को क्या कहा जाये जो मूकदर्शक बने हुए हैं। महर्षि मनु ने उनके लिए भी मेरे संज्ञान में दो कथन कहे हैं ----- 
यत्र धर्मो ह्यधर्मेण सत्यं यत्रानृतेन च ।हन्यते  प्रक्षेमानानां  हतास्तत्र सभासदः ।। अध्याय 8 श्लोक 14
अर्थात जिस सभा में अधर्म से धर्म, असत्य से सत्य, सब सभासदों के देखते हुए मारा जाता है, उस सभा में सब मृतक के समान हैं।

आज महर्षि मनु और मनुस्मृति पर स्त्रीविरोधी और दलित विरोधी होने का आक्षेप लगाने वालों ने न तो कभी मनुस्मृति पढ़ी और न ही अम्बेडकर को पढ़ा जिन्होंने मनु का घोर विरोध किया था। 
गौर करें अम्बेडकर ने भी चतुर्वर्ण के विषय में "Annihilation Of Castes "  --- में लिखा है कि chaturvarn is based on worth. और दूसरे उन्होंने भी मनुस्मृति के श्लोकों का अपने हिसाब से व्याख्या  जैसे --- यह कैसे हो सकता है कि ब्राह्मण ही पढ़ेगा और पढ़ायेगा , क्षत्रिय ही शस्त्र धारण करेगा और वैश्य ही व्यापर करेगा।  यदि उन्होंने इसे मनुस्मृति के अंग्रेज़ी अनुवाद न पढ़ कर संस्कृत के श्लोकों की व्याख्या इस प्रआर की होती कि जो पढ़ेगा और पढ़ायेगा वो ब्राह्मण है , जो शस्त्र धारण करेगा और प्रजा की रक्षा करेगा वो क्षत्रिय है और जो व्यापार करेगा वो वैश्य है तो शायद उन्हें मनु से इतनी नफरत न होती और आज समाज में इतनी वैमनस्यता भी नहीं फैलती। अम्बेडकर ने प्रक्षेपित श्लोकों का तो संज्ञान लिया कि जो शूद्र वेद पढ़ेगा या सुनेगा उसकी जिह्वा काट दी जाएगी और कान में पिघला  हुआ सीसा डाला जायेगा लेकिन उन्होंने एक बार भी मनु द्वारा रचित निम्न श्लोकों का संज्ञा बिलकुल नहीं लिया कि एक ही व्यक्ति दो विरोधाभासी बातें कैसे लिख सकता है ????
( पोस्ट को छोटा रखने के उद्देश्य से सिर्फ श्लोकों की संख्या के साथ  श्लोकों  का भावार्थ ही लिख रहा हूँ )
अध्याय 4 श्लोक 35 -----कम अंगों वालों या अपंगों, या विद्याविहीन ,आयु में बड़े   और रूप और धन से रहित और अपने से निम्न वर्ण वर्ण वालों पर कभी आक्षेप /व्यंग्य न करें। 
अध्याय 4 श्लोक 51 --- पुत्र और शिष्य से भिन्न अन्य किसी व्यक्ति पर दण्ड न उठायें और क्रोधित हो कर भी न मारें , न वध करें। पुत्र और शिष्य को भी केवल शिक्षा देने के लिए ताड़ना करें। 
अध्याय 4 श्लोक 24 ----सिखाये हुए सुन्दर लक्षणों से युक्त सुन्दर रंगरूप से शीघ्रगामी पशुओं से चाबुक की मार से बहुत पीड़ा न देता हुआ सवारी करे। 
अध्याय 3 श्लोक 44 --- चूल्हा चक्की झाड़ू ओखली पानी का घड़ा , गृहस्थों के लिए ये पांच हिंसा के स्थान हैं, इनका प्रयोग करते समय गृहस्थ जाने अनजाने हिंसा जनित पापों में बंध जाता है। 
 --- और भी बहुत से श्लोक हैं जो किसी भी प्रकार की हिंसा और प्रताड़ना को पाप की श्रेणी में रखते हैं, तो मनुस्मृति का अंध विरोध करने वाले कभी दिमाग लगाकर यह क्यों नहीं सोच पाते कि जो व्यक्ति जानवर को कोड़ा तक मारने को हिंसा की श्रेणी में रखता है वो किसी की जुबान काटने या कान में सीसा डालने जैसी हिंसा की विरोधीभासी बातें कैसे लिख सकता है ????
मनु की वर्णव्यवस्था में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शुद्र कैसे बनते थे ?????

अध्याय 2 , श्लोक 12 -13 ---मनु के अनुसार जो पाने बच्चों को ब्राह्मण बनाना चाहे वो उनका उपनयन पांचवें वर्ष तक क्षत्रिय छठे वर्ष और वैश्य का आठवें वर्ष में करवा दें। यदि इन वर्षों में उपनयन न करवा पाएं उनमे ब्राह्मणों का उपनयन सोलहवें वर्ष ,क्षत्रिय वर्ण के इच्छुक बाईस वर्ष और वैश्य वर्ण के इच्छुक चौबीस वर्ष तक करवा लें। जिनका उपनयन इस आयु सीमा में नहीं हो पाता था वे शूद्रों की श्रेणी में आ जाते थे। यह उपनयन भी बच्चो के aptitude पर निर्भर करता था। 
ऐसा भी नहीं था कि यदि कोई एक वर्ण में चला गया तो उसका वही वर्ण रहता था---
अघ्याय 2 श्लोक 62 -- जो मनुष्य नित्य प्रातः और सांय सन्ध्योपासना नहीं करता उसको शुद्र के समान समझकर द्विजकुल से से अलग करके शूद्रकुल में रख देना चाहिए। 
जो शरीर से बलिष्ठ होता था परन्तु जिसकी पढ़ने लिखने में रूचि नहीं होती थी और जो पढ़लिख नहीं पाता था वो शुद्र बन कर दूसरों की सेवा करके अपना जीवनयापन करता था। जब सेवा करता था तो कोई संशय नहीं कि अन्यवरणो के संपर्क में भी आता ही होगा ,तो यह कहना अनुचित है कि शूद्रों को अछूत समझ जाता था। शूद्रों को क्या सम्मान दिया जाता था उसके लिए एक दो श्लोक लिख रहा हूँ। 
अध्याय 3 श्लोक 80 -- विद्वान् अतिथियों द्वारा भोजन क्र लेने पर और अपने सेवकों आदि के खा लेने पर शेष बचे हुए भोजन को पति पत्नी खायें। 
अध्याय --3 श्लोक, 66 67 एवं  81 -- दिव्यगुण सम्पन्न विद्वानों ,विद्या के प्रत्यक्षकर्ता ऋषियों को , माता पिता आदि पालक व्यक्तियों को , गृहस्थ द्वारा भरण पोषण की अपेक्षा रखने वाले असहाय, अनाथ कुष्ठ रोगी, सेवक आदि को भजन दान द्वारा सत्कृत करके उसके बाद इनसे शेष बचे भोजन को खाने वाला हो अर्थात उस शेष भोजन को खाया करे। 
बात जहाँ से शुरू हुई थी वहीँ पर ख़त्म करता हूँ फ़ेसबुकिया कागज़ी शेरोन के लिए मनु महाराज ने एक बात और कही थी  ----
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षतिः। 
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोवधीत। ---अध्याय 8 श्लोक 15 
भावार्थ ----- जो पुरुष धर्म का नाश करता है , उसी का नाश धर्म कर देता है। और जो धर्म की रक्षा करता है उसकी धर्म भी रक्षा करता है। मारा हुआ धर्म हमको कभी न मार डाले, इसलिए धर्म का हनन या त्याग कभी नहीं करना चाहिए।
पूर्वज पढ़े नहीं और खुद कुछ पढ़ना नहीं चाहते और दोष देते हैं #मनु को कि उन्होंने शूद्र बना दिया। जो प्रमाणपत्र लेकर खुद को शूद्र कहते हैं उन्हें सुझाव है कि पढ़ें लिखें अपनी मानसिकता सुधारें और अपना वर्ण बदलें ( जिसकी आज के समय में कोई अहमियत नहीं बची है। ) बाकि मूक दर्शकों से निवेदन है कि यदि ज़मीन पर कच नहीं कर सकते तो आभासी दुनिया में ही इस पोस्ट को शेयर करके भ्रांतियों को दूर करें एवं अपने जीवित होने का प्रमाण दें।
जिसके दिल में भी 6 दिसंबर 2016  को जयपुर में मनुस्मृति जलने के अरमान हैं, वो पूरा दम लगा कर कोशिश कर ले ,----------

सोमवार, 21 नवंबर 2016

मनुस्मृति का विरोध क्यों ?????

मनुस्मृति को स्त्रीविरोधी बतानेवाले कूढ़मगजों ने पता नहीं कौन सी मनुस्मृति पढ़ी है , पढ़ी भी है या नहीं। या अंग्रेजों द्वारा बिना समझे अनुवादित मनुस्मृति में चिन्ता को को चिता पढ़ कर आज तक छाती कूट रहे हैं। बाजार से मात्र अनुवादित मनुस्मृति खरीद कर पढ़ने वालों की जानकारी में ज़रा सा इज़ाफ़ा कर दूँ कि आज जो बाज़ार में मनुस्मृति उपलब्ध है उसमे 2685 श्लोक हैं, और शोध के उपरान्त पाया गया है कि मूल मनुस्मृति में 1214 ही श्लोक हैं बाकि के 1471 श्लोकों में से अधिकांश  इसमें वर्ष 1000 AD  के बाद स्वार्थवश मिलाये गए हैं।
अगर मनु स्त्रीविरोधी होते तो वे निम्न श्लोक प्रश्नकर्ताओं को न #कहते ------
1) पितृभिभ्रार्तृभिश्चैताः पतिभिर्देवरैस्तथा ।
पूज्या भूषयितव्याश्च बहुकल्याणमीप्सुभिः - अध्याय 3 श्लोक 55 
अर्थात --- पिता, भ्राता ,पति और देवर को योग्य है कि अपनी कन्या, बहन स्त्री और भौजाई आदि स्त्रियों की सदा पूजा करें अर्थात यथायोग्य मधुर भाषण ,भोजन, वस्त्र आभूषण आदि से प्रसन्न रखें। जिनको कल्याण की इच्छा हो वे स्त्रियों को कभी क्लेश न दें. 

2) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैस्तास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः -----अध्याय 3 श्लोक 56 
 अर्थात जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात सत्कार होता है उस कुल में देवता ( दिव्यगुण --दिव्यभोग और उत्तम संतान ) होते हैं। और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा/सत्कार नहीं होता वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है।   
3) शोचयन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।। अध्याय 3 श्लोक 57 
जिस कुल में स्त्रियाँ अपने अपने पुरुषों के वेश्यागमन, अत्याचार व व्यभिचार आदि दोषों से शोकातुर रहती हैं वह कुल शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है। और जिस कुल में स्त्रीजन पुरुषों के उत्तम आचरणों से प्रसन्न रहतीं हैं वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है। 
4) जामयो यानि गेहानि शपन्स्यप्रतिपूजिताः।
तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः ।। अध्याय 3 श्लोक 58 
जिन कुलों और घरों में सत्कार को प्राप्त करके स्त्रीलोग जिन गृहस्थों को श्राप देती हैं वे कुल तथा गृहस्थ जैसे विष देकर बहुतों को एक बार नाश कर देवें वैसे चारों और से नष्ट भ्रष्ट हो जाते हैं। 
5) तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशनैः।
भूतिकामैर्नरैनित्यं सत्कारेषूत्सवेषु च।। अध्याय 3 श्लोक 59 
इस कारण ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले पुरुषों को योग्य है कि इन स्त्रियों को सत्कार के अवसरों और उत्सवों में भूषण,वस्त्र ,खानपान आदि से सदा सत्कारयुक्त प्रसन्न रखें। 
6 ) सन्तुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ।। अध्याय 3 श्लोक 60 
हे गृहस्थों ! जिस कुल में भार्या से प्रसन्न पति तथा पति से भार्या सदा प्रसन्न रहती है उसी कुल में निश्चित कल्याण और दोनों परस्पर अप्रसन्न रहें तो उस कुल में नित्य कलह वास करती है। 

वैसे प्रेमियों के साथ मिलकर पतियों और बच्चों को मारने वाली या सेक्स के लिए कपड़ों की तरह पुरुषों को बदलने वाली स्त्रियों के लिए भी महर्षि मनु ने दो चार श्लोक #कहे हैं यदि उन श्लोकों की वजह से यदि मनुस्मृति स्त्रीविरोधी है तो इसे जलाने वाले अपने में और सड़क के जानवरों में कोई फर्क न समझें।
( आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित #विशुद्ध_मनुस्मृति के आधार पर ) 

शनिवार, 22 अक्टूबर 2016

हिंदुत्व पर प्रश्नचिन्ह

इनसब निराशाओं के बीच हम यही सोच कर दिल बहला लेते हैं #जीना_यहाँ_मरना_यहाँ_इसके_सिवा_जाना_कहाँ  ---
#Ban_Use_Of_Hindutva ------Times Of India,  Issue dt-- Oct 21,2016. ((हिंदुत्व का प्रयोग बंद हो ----PIL filed by तीस्ता सीतलवाड़,शम्सुल इस्लाम ,और दिलीप सी मंडल )
#SC_agrees_to_hear_plea_seeking_ban_on_Gau_Rakshaks-------Times of India ,Issue dt. Oct--22, 2016 (गौरक्षकों पर प्रतिबन्ध लगे --PIL filed by तहसीन पूनावाला )
बहुत विस्तार में नहीं जायेंगे , लेकिन 7000 वर्ष पुरानी  सिंधु घाटी की सभ्यता के सिंध प्रान्त ( वर्तमान का कराची, हैदराबाद,सुक्कुर ,लरकाना )में वर्ष 695 AD में कासिम के आक्रमण तक हिन्दू और बौद्ध रहा करते थे। यहाँ के राजा दाहिर की उसके #अरबी सेनापति के विश्वासघात के कारण मोहम्मद कासिम के हाथों  हार हुई और वहां के लोगों ने या तो सर कटवा कर अपनी जान दे दी या कुछ और कटवा कर अपनी जान बचा ली। तमाम कत्लेआम के बावज़ूद आज के पाकिस्तान  के 95% हिन्दू जो आज पूरी जनसँख्या का 5 % से कम हैं सिंध राज्य में रहते हैं। 1924 में धर्म (मुस्लिम) के आधार पर इसे बम्बई प्रेसीडेंसी से अलग करने की मांग उठी और 1 अप्रैल 1936 में इसे बम्बई से अलग कर दिया गया। यह था धर्म के नाम पर देश का पहला टुकड़ा । 

इस्लाम जो अरब से फैलता हुआ बंगाल तक पहुँच गया था , पहली बार कब खतरे में पड़ा इसका कोई आधिकारिक दस्तावेज़ नहीं है , लेकिन 1901 /1906 में मुस्लिम लीग को राजनैतिक दल बनाने के साथ यह भी घोषणा हो गयी की इस्लाम खतरे में है। 1930 में सिंध के धर्म के आधार पर अलग होते हुए अभियान की सफलता देखते हुए ,मोहम्मद इक़बाल ने " टू नेशन थ्योरी " को जन्म दे दिया। फिर आगे की कहानी बताने की ज़रुरत नहीं है कि खतरे में पड़े इस्लाम को बचाने के लिए धर्म के आधार पर #पकिस्तान पैदा कर दिया गया। 
जिनका हर छींक पर इस्लाम खतरे में पड़ जाता है, उनमे से बहुत से पकिस्तान चले गए, लेकिन कुछ चूतियों की वजह से ढेर सारे छिछड़े भारत में रहगये जो आज यह कह कर बदबू फैला रहे हैं कि, #हिन्दू_और_हिंदुत्व शब्द को चुनावों में प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। 
#तहसीन_पूनावाला के हिसाब से Section 12 of the Gujarat Animal Prevention Act, 1954, Section 13 of maharashtra Animal Prevention Act,1976, and section 15 of Karnataka Prevention of Cow slaughter and cattle preservation Act 1964,जो कि उन व्यक्तियों के बचाव का प्रावधान करते हैं जो अच्छी निष्ठां से इन कानूनों अमल लाने में मदद करते हैं , गैर कानूनी हैं। जब अन्य कानूनों की तरह सरकारें इन कानूनों का पालन करवाने में असफल हो गयीं तो तहसीन पूनावाला ने संविधान के इन प्रावधानों को ही चुनौती दे दी और #गौरक्षकों को प्रतिबंधित करने की मांग कर दी। 
ट्रिप्पल तलाक के विषय में जिसे 20 से ज्यादा मुस्लिम देश प्रतिबंधित कर चुके है, मैं कुछ नहीं कहूँगा क्योंकि मैं चाहता ही नहीं इनकी स्थिति में कोई सुधार हो। ये ऐसे ही जाहिल रहें तभी इनकी कायदे से दुर्गति होगी। 
लेकिन #हिंदुत्व शब्द का विरोध करने वालों से मैं पूछना चाहता हूँ , कि जब #जय_भीम_जय_मीम के नारे लगते हैं तब ये क्यों वहीँ घुस जाते हैं जहाँ से निकले थे ??? जब पूरे देश से एक ही कौम के लड़के लड़कियाँ ISIS ज्वाइन करने के जुर्म में पकडे जाते हैं तब इनके लोकतान्त्रिक अधिकार कहाँ चले जाते हैं। जब कश्मीर में पकिस्तान जिंदाबाद के नारे और सैन्य बालों पर हमले एक ही कौम के लोग करते हैं तब ये उनके खिलाफ जनहित याचिका क्यों नहीं डालते।  जब मुलायम सिंह और लालू यादव खुल्लम खुल्ला #मुस्लिम_यादव समीकरण पर चुनाव लड़ते हैं , तब ये लोग सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते ??? जब मनमोहन सिंह देश के 80% हिंदुओं के मुंह पर यह बोलते हैं कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलामानों का है तब क्यों इनके मुंह में दही जम जाता है ??? जब बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी अपने वित्तीय बजटों में प्रतिवर्ष विशेषरूप से मुसलाम्मानों के लिए सौगातों की झड़ी लगा देते हैं तब इन लोगों की आवाज़ क्यों नहीं निकलती ???? जब तेलंगाना में ईद के मौके पर वहां का मुख्यमंत्री मुसलामानों के लिए झोली खोल देता है तब यह लोग कुछ क्यों नहीं बोलते ??? विदेशों से इस्लाम और ईसाइयत के प्रचार के लिए भरपूर पैसा आता है , वक्फ बोर्ड और चर्च अपनी कमाई का एक रुपया भी देश के राजस्व में नहीं देते , लेकिन मंदिरों का चढ़ावा जब सरकारें वसूल लेती हैं और उसका 80% इनके ऊपर खर्च कर देतीं हैं तब ये लोग हिंदुत्व का विरोध क्यों नहीं करते ????  
कश्मीर से लेकर केरल तक सरकारें अल्पसंख्यक तुष्टिकरण में लगी हुई हैं। कश्मीर में हिन्दू रह नहीं सकते और केरल में  लोकसेवा आयोग केरल द्वारा सरकारी नौकरियों में 12% आरक्षण मुस्लिमों को है। भारत भर में मदरसा शिक्षकों को , मेरे ख्याल से मदरसों में कुरान और इस्लामी शिक्षा के अतिरिक्त कुछ नहीं पढ़ाया जाता उनको भी तमाम राज्य सरकारें वेतन देती हैं , किसके टैक्स से ??? भारत भर में संविधान प्रद्दत न्यायव्यवस्था को अंगूठा दिखाते हुए समानांतर शरीयत अदालतें स्थापित कर दी गयीं है , तब इन्हें कोई संविधान के विरुद्ध क्यों नहीं बताता ????
दुनिया भर में कोई ऐसा देश नहीं है जो हज के लिए बहुसंख्यकों से वसूले गए टैक्स को इन्हें सब्सिडी के रूप में देता हो , तब ये किसी अदालत का दरवाज़ा क्यों नहीं खटखटाते कि सरकार का यह कदम गैरसंवैधानिक और कुरान के खिलाफ है ??? 
जब भारत भर के राजनैतिक दल इफ्तार पार्टियों का आयोजन करते हैं और टोपी पहन कर उन पार्टियों में शामिल होते हैं तब कोई सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा नहीं खटखटाता कि इस्लाम का राजनीतिकरण किया जा रहा है। 
अगर 80% लोगों की भावनाओं को ध्यान में रख कर कोई कदम उठाने की बात होती है तो तथाकथित बुद्धिजीवियों के पिछावड़े में मिर्चें लगने लगती हैं और सुप्रीम कोर्ट भी ऐसी जनहित कही जाने वाली याचिकाओं का संज्ञान लेता है। यह वही सुप्रीम कोर्ट है , जो दही हांड़ी , होली और दिवाली कैसे मनाई जाये इस पर तो दिशा निर्देश दे देता है लेकिन मुहर्रम और ईद कैसे मनाई जाये इसे धार्मिक मामला करार दे कर किनारा कर लेता है और यह वही सुप्रीम कोर्ट है जो यूनिफार्म सिविल कोड के मामले में इस धर्म संबंधी मामला बता कर गेंद को सरकार के पाले में डाल कर तमाशा देखता है और यह वही सुप्रीम कोर्ट है , जिसे न तो कृष्ण जी की छत में लटकी हुई हुई हांड़ी तोड़ते हुए की तस्वीर कभी नज़र नहीं आयी और जिसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक ये टोपी पहनते हुए नेता कभी नज़र आये, जो धर्म के नाम पर बनते हुए देश में रह गए छिछडों की याचिकाओं पर अपना समय बर्बाद कर सकता है , लेकिन कदम कदम पर होते बहुसंख्यकों के दमन के षड्यंत्र का संज्ञान नहीं ले सकता।  

आने वाले दिनों में #सुप्रीम कोर्ट हिन्दुत्व शब्द पर बहस सुनेगा और गौरक्षकों पर प्रतिबन्ध लगाएगा और JNU में होने वाली देश विरोधी गतिविधियों और बंगाल में होते हुए दंगों पर आँखें मूंदे रहेगा। 
इनसब निराशाओं के बीच हम यही सोच कर दिल बहला लेते हैं #जीना_यहाँ_मरना_यहाँ_इसके_सिवा_जाना_कहाँ 

हिंदुत्व पर प्रश्नचिन्ह

इनसब निराशाओं के बीच हम यही सोच कर दिल बहला लेते हैं #जीना_यहाँ_मरना_यहाँ_इसके_सिवा_जाना_कहाँ  ---
#Ban_Use_Of_Hindutva ------Times Of India,  Issue dt-- Oct 21,2016. ((हिंदुत्व का प्रयोग बंद हो ----PIL filed by तीस्ता सीतलवाड़,शम्सुल इस्लाम ,और दिलीप सी मंडल )
#SC_agrees_to_hear_plea_seeking_ban_on_Gau_Rakshaks-------Times of India ,Issue dt. Oct--22, 2016 (गौरक्षकों पर प्रतिबन्ध लगे --PIL filed by तहसीन पूनावाला )
बहुत विस्तार में नहीं जायेंगे , लेकिन 7000 वर्ष पुरानी  सिंधु घाटी की सभ्यता के सिंध प्रान्त ( वर्तमान का कराची, हैदराबाद,सुक्कुर ,लरकाना )में वर्ष 695 AD में कासिम के आक्रमण तक हिन्दू और बौद्ध रहा करते थे। यहाँ के राजा दाहिर की उसके #अरबी सेनापति के विश्वासघात के कारण मोहम्मद कासिम के हाथों  हार हुई और वहां के लोगों ने या तो सर कटवा कर अपनी जान दे दी या कुछ और कटवा कर अपनी जान बचा ली। तमाम कत्लेआम के बावज़ूद आज के पाकिस्तान  के 95% हिन्दू जो आज पूरी जनसँख्या का 5 % से कम हैं सिंध राज्य में रहते हैं। 1924 में धर्म (मुस्लिम) के आधार पर इसे बम्बई प्रेसीडेंसी से अलग करने की मांग उठी और 1 अप्रैल 1936 में इसे बम्बई से अलग कर दिया गया। यह था धर्म के नाम पर देश का पहला टुकड़ा । 

इस्लाम जो अरब से फैलता हुआ बंगाल तक पहुँच गया था , पहली बार कब खतरे में पड़ा इसका कोई आधिकारिक दस्तावेज़ नहीं है , लेकिन 1901 /1906 में मुस्लिम लीग को राजनैतिक दल बनाने के साथ यह भी घोषणा हो गयी की इस्लाम खतरे में है। 1930 में सिंध के धर्म के आधार पर अलग होते हुए अभियान की सफलता देखते हुए ,मोहम्मद इक़बाल ने " टू नेशन थ्योरी " को जन्म दे दिया। फिर आगे की कहानी बताने की ज़रुरत नहीं है कि खतरे में पड़े इस्लाम को बचाने के लिए धर्म के आधार पर #पकिस्तान पैदा कर दिया गया। 
जिनका हर छींक पर इस्लाम खतरे में पड़ जाता है, उनमे से बहुत से पकिस्तान चले गए, लेकिन कुछ चूतियों की वजह से ढेर सारे छिछड़े भारत में रहगये जो आज यह कह कर बदबू फैला रहे हैं कि, #हिन्दू_और_हिंदुत्व शब्द को चुनावों में प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। 
#तहसीन_पूनावाला के हिसाब से Section 12 of the Gujarat Animal Prevention Act, 1954, Section 13 of maharashtra Animal Prevention Act,1976, and section 15 of Karnataka Prevention of Cow slaughter and cattle preservation Act 1964,जो कि उन व्यक्तियों के बचाव का प्रावधान करते हैं जो अच्छी निष्ठां से इन कानूनों अमल लाने में मदद करते हैं , गैर कानूनी हैं। जब अन्य कानूनों की तरह सरकारें इन कानूनों का पालन करवाने में असफल हो गयीं तो तहसीन पूनावाला ने संविधान के इन प्रावधानों को ही चुनौती दे दी और #गौरक्षकों को प्रतिबंधित करने की मांग कर दी। 
ट्रिप्पल तलाक के विषय में जिसे 20 से ज्यादा मुस्लिम देश प्रतिबंधित कर चुके है, मैं कुछ नहीं कहूँगा क्योंकि मैं चाहता ही नहीं इनकी स्थिति में कोई सुधार हो। ये ऐसे ही जाहिल रहें तभी इनकी कायदे से दुर्गति होगी। 
लेकिन #हिंदुत्व शब्द का विरोध करने वालों से मैं पूछना चाहता हूँ , कि जब #जय_भीम_जय_मीम के नारे लगते हैं तब ये क्यों वहीँ घुस जाते हैं जहाँ से निकले थे ??? जब पूरे देश से एक ही कौम के लड़के लड़कियाँ ISIS ज्वाइन करने के जुर्म में पकडे जाते हैं तब इनके लोकतान्त्रिक अधिकार कहाँ चले जाते हैं। जब कश्मीर में पकिस्तान जिंदाबाद के नारे और सैन्य बालों पर हमले एक ही कौम के लोग करते हैं तब ये उनके खिलाफ जनहित याचिका क्यों नहीं डालते।  जब मुलायम सिंह और लालू यादव खुल्लम खुल्ला #मुस्लिम_यादव समीकरण पर चुनाव लड़ते हैं , तब ये लोग सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते ??? जब मनमोहन सिंह देश के 80% हिंदुओं के मुंह पर यह बोलते हैं कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलामानों का है तब क्यों इनके मुंह में दही जम जाता है ??? जब बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी अपने वित्तीय बजटों में प्रतिवर्ष विशेषरूप से मुसलाम्मानों के लिए सौगातों की झड़ी लगा देते हैं तब इन लोगों की आवाज़ क्यों नहीं निकलती ???? जब तेलंगाना में ईद के मौके पर वहां का मुख्यमंत्री मुसलामानों के लिए झोली खोल देता है तब यह लोग कुछ क्यों नहीं बोलते ??? विदेशों से इस्लाम और ईसाइयत के प्रचार के लिए भरपूर पैसा आता है , वक्फ बोर्ड और चर्च अपनी कमाई का एक रुपया भी देश के राजस्व में नहीं देते , लेकिन मंदिरों का चढ़ावा जब सरकारें वसूल लेती हैं और उसका 80% इनके ऊपर खर्च कर देतीं हैं तब ये लोग हिंदुत्व का विरोध क्यों नहीं करते ????  
कश्मीर से लेकर केरल तक सरकारें अल्पसंख्यक तुष्टिकरण में लगी हुई हैं। कश्मीर में हिन्दू रह नहीं सकते और केरल में  लोकसेवा आयोग केरल द्वारा सरकारी नौकरियों में 12% आरक्षण मुस्लिमों को है। भारत भर में मदरसा शिक्षकों को , मेरे ख्याल से मदरसों में कुरान और इस्लामी शिक्षा के अतिरिक्त कुछ नहीं पढ़ाया जाता उनको भी तमाम राज्य सरकारें वेतन देती हैं , किसके टैक्स से ??? भारत भर में संविधान प्रद्दत न्यायव्यवस्था को अंगूठा दिखाते हुए समानांतर शरीयत अदालतें स्थापित कर दी गयीं है , तब इन्हें कोई संविधान के विरुद्ध क्यों नहीं बताता ????
दुनिया भर में कोई ऐसा देश नहीं है जो हज के लिए बहुसंख्यकों से वसूले गए टैक्स को इन्हें सब्सिडी के रूप में देता हो , तब ये किसी अदालत का दरवाज़ा क्यों नहीं खटखटाते कि सरकार का यह कदम गैरसंवैधानिक और कुरान के खिलाफ है ??? 
जब भारत भर के राजनैतिक दल इफ्तार पार्टियों का आयोजन करते हैं और टोपी पहन कर उन पार्टियों में शामिल होते हैं तब कोई सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा नहीं खटखटाता कि इस्लाम का राजनीतिकरण किया जा रहा है। 
अगर 80% लोगों की भावनाओं को ध्यान में रख कर कोई कदम उठाने की बात होती है तो तथाकथित बुद्धिजीवियों के पिछावड़े में मिर्चें लगने लगती हैं और सुप्रीम कोर्ट भी ऐसी जनहित कही जाने वाली याचिकाओं का संज्ञान लेता है। यह वही सुप्रीम कोर्ट है , जो दही हांड़ी , होली और दिवाली कैसे मनाई जाये इस पर तो दिशा निर्देश दे देता है लेकिन मुहर्रम और ईद कैसे मनाई जाये इसे धार्मिक मामला करार दे कर किनारा कर लेता है और यह वही सुप्रीम कोर्ट है जो यूनिफार्म सिविल कोड के मामले में इस धर्म संबंधी मामला बता कर गेंद को सरकार के पाले में डाल कर तमाशा देखता है और यह वही सुप्रीम कोर्ट है , जिसे न तो कृष्ण जी की छत में लटकी हुई हुई हांड़ी तोड़ते हुए की तस्वीर कभी नज़र नहीं आयी और जिसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक ये टोपी पहनते हुए नेता कभी नज़र आये, जो धर्म के नाम पर बनते हुए देश में रह गए छिछडों की याचिकाओं पर अपना समय बर्बाद कर सकता है , लेकिन कदम कदम पर होते बहुसंख्यकों के दमन के षड्यंत्र का संज्ञान नहीं ले सकता।  

आने वाले दिनों में #सुप्रीम कोर्ट हिन्दुत्व शब्द पर बहस सुनेगा और गौरक्षकों पर प्रतिबन्ध लगाएगा और JNU में होने वाली देश विरोधी गतिविधियों और बंगाल में होते हुए दंगों पर आँखें मूंदे रहेगा। 
इनसब निराशाओं के बीच हम यही सोच कर दिल बहला लेते हैं #जीना_यहाँ_मरना_यहाँ_इसके_सिवा_जाना_कहाँ 

शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

ऐसे नेता ही पूजे जाते हैं भारत में

खुलते गए मेरे सामने दरवाजों में लगे आईने 
देखा कि  उस मकान में हर अक्स बदहाल था 
आँखों में जिनके बस गयी दुनिया भर की रौनकें 
वो शख्स बेवफाई का एक ज़िंदा मिसाल था। 
इस पोस्ट को चाहें आप,ट्रिप्पल तलाक मामले में पैदा हुए विवाद से जोड़कर देख लें, चाहें सर्जिकल स्ट्राइक पर भारत की भद्द पिटवाने वालों से जोड़ कर देखें, चाहें JNU में भारत विरोधी नारे लगाने वालों से या फिर इस पोस्ट की अंतिम पंक्ति तक पढ़ कर तय कीजिये भारत की ज़मीन किस तरह के नेताओं को पूजती है। ( इस पोस्ट में जो तीन तिथियां दी गयीं हैं , उन्हें दिमाग में रखियेगा )
#नवम्बर_1949 , संविधान सभा में संविधान पूरा होने पर धन्यवाद प्रस्ताव दिए जा रहे थे, तो अम्बेडकर जी ने भी भाषण दिया जो कि संक्षेप में इस प्रकार से है -----
जैसे कि सदन के सदस्यों एवं ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों द्वारा मेरी प्रशंसा के पुल बांधे जा रहे हैं उससे मैं इतना अभिभूत हो गया हूँ कि मेरे पास उनका आभार प्रकट करने के लिए शब्द नहीं हैं। मैं तो संविधान सभा में अनुसूचित जातियों के हितों की रक्षा के अतिरिक्त कोई महत्वकांक्षा ले कर नहीं आया था। मुझे दूर तक अंदाजा नहीं था कि मुझे उससे ज्यादा ज़िम्मेदारी सौंपी जाएगी। इसलिए मैं चकित रह गया जब संविधान सभा ने ड्राफ्टिंग कमेटी के लिए मेरा चयन किया। उससे भी ज्यादा मुझे आश्चर्य तब हुआ जब मुझे ड्राफ्टिंग कमेटी ने चेयरमैन चुना। ड्राफ्टिंग कमेटी में मुझसे बड़े , बेहतर और योग्य लोग थे ,जैसे कि मेरे मित्र सर अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर। मैं संविधान सभा का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे देश सेवा का यह अवसर प्रदान करने के लिए मुझ पर भरोसा जताया। 
जो श्रेय मुझे दिया जा रहा है वो मेरा नहीं बल्कि कुछ हद तक सर बी. एन राउ तथा ड्राफ्टिंग कमेटी के अन्य सदस्यों को जाता है। इसका अधिक श्रेय मैं श्री एस एन मुखर्जी , जो कि इसके मुख्य लेखक हैं उनको देता हूँ। ----------------------------------------------------------------------------------  
( Consitituent Assembly Debates , Vol.X,pp.973-74)

इसके आगे अम्बेडकर कहते हैं -----
मैं यहाँ पर समाप्त कर सकता था परंतु मेरा दिमाग भारत के भविष्य को लेकर विचारों से भरा हुआ है उनको मैं यहाँ व्यक्त करना चाहूँगा। 26 जनवरी 1950 को भारत एक स्वतंत्र देश होगा। उसकी आज़ादी का क्या होगा ??? क्या यह देश अपनी आज़ादी बरकरार रख पायेगा या फिर से इसे खो देगा ????यह पहला ख्याल मेरे दिमाग में आ रहा है। इअसा नहीं है कि भारत पहले कभी एक स्वतंत्र देश नहीं रहा है। लेकिन विचारणीय यह है कि इसने अपनी आज़ादी एक बार पहले खोई है। क्या यह दुबारा अपनी आज़ादी खोएगा ??? ये ख्याल मुझे भविष्य के लिए चिन्तातुर कर रहा है। जिस तथ्य की वजह से यह चिंता है वो यह नहीं है कि इस देश ने अपनी स्वतंत्रता खोई थी बल्कि वो स्वतन्त्रता अपने ही लोगों के भितरघात और विश्वासघात के कारण खोई थी। सिंध पर मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के दौरान राजा दाहिर के सेनापतियों ने कासिम से रिश्वत खा कर कासिम के खिलाफ लड़ाई करने से इनकार कर दिया था। जयचंद ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वी राज चौहान के खिलाफ आक्रमण करने का न्यौता दिया था जिसमे उसने अन्य सोलंकी राजाओं द्वारा सहायता का वायदा किया था। जब शिवाजी हिंदुओं की आज़ादी के लिए लड़ रहे थे उस समय बहुत से मराठा सरदार मुगलों की तरफ से उनके खिलाफ लड़ रहे थे। जा अँगरेज़ सिख राजाओं को ख़त्म करने का प्रयास कर रहे थे तो सिखों का मुख्य सेनापति गुलाब सिंह चुपचाप बैठा रहा और उसने सिख साम्राज्य बचाने की कोई कोशिश नहीं की। 1857 में जब पूरा देश अंग्रेजों की सत्ता उखाड़ कर फेंक देने के लिए लड़ रहा था उस समय सिख ख़ामोशी से तमाशा देख रहे थे। 
क्या इतिहास अपने को दोहराएगा ??? ये जो ख्याल है ये आज मेरी चिंता का विषय है। मेरी चिंता और बढ़ जाती है जब मैं सोचता हूँ कि जातियों और मज़हबों के पुराने दुश्मनों के साथ भविष्य में हमारे यहाँ भांति भांति के अनेक विरोधी पंथों वाले राजनीतिक दल होंगे। क्या भारतीय अपने देश को अपने पंथों /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब से ऊपर रखेंगे या अपने पंथों /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब को देश से ऊपर रखेंगे ???? मुझे नहीं मालूम। पर यह निश्चित है की यदि ये राजनैतिक दल अपने पंथों /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब को देश से ऊपर रखेंगे तो ये भारत की स्वतंत्रता को दुबारा खतरे में डाल देंगे और इस बार स्वतंत्रता हमेशा के लिए खो जायेगी। इस संभावित घटना के प्रति हमें सचेत रहना होगा। 

( Consitituent Assembly Debates , Vol.X,pp.977 -78) 

ये उन अम्बेडकर के ख्यालात हैं जिन्होंने मात्र तीन साल पहले ---
#14_मई_1946 में वाइसराय लार्ड वेवेल और ब्रिटिश कैबिनेट मिशन के सदस्य ए वी एलेग्जेंडर को यह लिख कर याद दिलाया था और भारत को आज़ादी देने और भारत छोड़कर न जाने के लिए कहा था कि -----" भारत में ब्रिटिश राज्य के लिए अंग्रेजों को अछूतों की मदद का एहसानमंद होना चाहिए। बहुत से अँगरेज़ सोचते हैं कि भारत को क्लाइव , हैस्टिंग्स, कूट्स और अन्य अंग्रेजों ने जीता था। इससे बड़ी भूल और कोई हो ही नहीं सकती। भारत को भारत की सेना ने जीत था और उस सेना में सिर्फ अछूत थे। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य असम्भव था यदि अछूतों ने उनकी सहायता न की होती। चाहें प्लासी के युद्ध की घटना को ले लें जिससे बारिश साम्राज्य की भारत में नींव पड़ी थी चाहें किर्की के युद्ध की घटना को ले लें जिससे बभरत में ब्रिटिश साम्राज्य पूरा हुआ था। इन दोनों लड़ाईयों में जो सैनिक अंग्रेजों के लिए लड़े थे वे अछूत थे। 

( Dr.Ambedkar, Writings and Speeches, Vol X, pp 492-99)

और ये वो अम्बेडकर थे जिन्होंने 1953 में संसद में यह भी कह दिया था कि मेरा बस चले तो इस संविधान को आग लगा दूँ। 
 देश को पंथ  /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब से ऊपर रखने की नसीहत देने वाला पंथ  /मत /सम्प्रदाय/सिद्धांत/मज़हब को देश के आगे रख कर #14_अक्टूबर_1956 को हिन्दू समाज का एक औए टुकड़ा कर गया ।
दिक्कत बौद्धों से नहीं है ,
फ़ेसबुकिया बौद्धों से है। दिक्कत मुसलमानों से नहीं है उन मुसलामानों से है सो अपने आपको पहले मुसलमान फिर भारतीय बोल कर अपने क़ानून को संविधान और सुप्रीम कोर्ट से ऊपर समझते हैं।  दिक्कत सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाने वालों से नहीं है उनसे है जो ऐसा करते करते पकिस्तान के पाले में खड़े होजाते हैं। दिक्कत JNU में मोदी किआ पुतला जलाने से नहीं है बल्कि "भारत तेरे टुकड़े होंगे -इंशा अल्लाह ,इंशा अल्लाह " जैसे नारों से है। 
भारत दुबारा गुलाम तो नहीं होगा ,पर भितरघाती बहुत पैदा हो गए हैं इस स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति की आड़ में। 

सोमवार, 3 अक्टूबर 2016

कैसे पहचानें चीन निर्मित उत्पादों को

देश हित में जागरूकता फैलाने के लिए उत्पादों पर छपे बार कोड की पहली तीन डिजिट्स ---- 690,691,692,693,694,695,696,697,698,699 को याद रखें यह तीन डिजिट्स चीन की कम्पनियों के होते हैं और इस पोस्ट को एक बार शेयर करके अपने दायित्व के निर्वाहन में पहला कदम अविलम्ब उठायें। 


देश भक्ति का हिलोरा इस वक़्त सभी भारतवासियों के दिल में पूरे जोर से उफान मार रहा है। पकिस्तान से बदला लेना है और चीन को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए सबक सिखाना है। 
पूरे देश में चीन में निर्मित वस्तुओं के बहिष्कार की एक भावनात्मक लहर चल रही है। आपको यह जान कर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि चीन में निर्मित उत्पादों का आज हम खुल कर बहिष्कार करने का आह्वान कर रहे हैं तो पश्चिम के देशों में जिनमे अमरीका भी शामिल है, चीन के उत्पादों के बहिष्कार का चुपचाप से समाज में प्रवाह हो रहा है। बस अफ़सोस यह है कि हम आज जाग रहे हैं और पश्चिमी देश आज से दस साल पहले जाग गए थे। 
क्या आपको मालूम है कि पश्चिमी देशों के इस बहिष्कार का चीन ने सामना कैसे किया ???? चीन के उत्पादकों ने अपने  उत्पादों पर #Made_In_China लिखना ही बंद कर दिया। 
GATT के नियमों के तहत सरकार आयात के नियमों को कठोर बना सकती है लेकिन वो अपने नागरिकों से यह अपील नहीं कर सकती कि इस विशेष  देश की वस्तुओं का बहिष्कार करो। यह पूर्णतः जागरूक नागरिकों पर निर्भर करता है कि वे अपना दायित्व कैसे निभाते हैं। 
शातिर चीन के नीति निर्धारकों को भारत में उसके प्रति फैलते हुए असंतोष का पूरा एहसास होगा और बहुत संभव है कि चीन के उत्पादक भारत में भेजने वाले उत्पादों पर भी #Made_In_China लिखना बंद कर दें। ऐसी स्थिति में आपको उत्पाद पर छपे बार कोड के पहले तीन डिजिट्स पर ध्यान देना होगा।  यदि यह तीन डिजिट 690,691,692,693,694,695, में से कोई एक हैं तो वो उत्पाद चीन की कम्पनी द्वारा बनाया गया है। गौर करें इन तीन डिजिट्स का बार कोड की शुरुआत में होने का अभिप्राय यह नहीं है कि यह उत्पाद चीन में निर्मित है , इसका अभिप्राय यह है कि यह कम्पनी चीन की है या चीन में रजिस्टर्ड है। 
हमारा मकसद न सिर्फ चीन में निर्मित उत्पादों का बहिष्कार है बल्कि चीन की कंपनियों का बहिष्कार भी है। जिस तरह से मार्किट में चीन के उत्पाद छाये हुए हैं , फिलहाल में भारत के उपभोक्ताओं को सस्ते स्वदेशी विकल्प ढूंढने में परेशानी जरूर होगी लेकिन विकल्प हर सेगमेंट में मौजूद हैं बस ज़रुरत है दृण इच्छाशक्ति की। 
देश के लिए आप बहुत कुछ नहीं कर सकते तो इस बार आने वाली दीपावली में चीनी बिजली की लड़ियों और मौसमी सामान को तिलांजलि दे कर अपने अपने घरों को दीपों से रोशन कीजिये।  दिए बनाने वके गरीबों  के घर उनसे दिए खरीद कर रोशन करें। भारतीय पटाखे खरीद कर सिवाकासी (तमिलनाडू ) के डूबते हुए उद्योग को उबारें। 
और देश हित में जागरूकता फैलाने के लिए उत्पादों पर छपे बार कोड की पहली तीन डिजिट्स ---- 690,691,692,693,694,695,696,697,698,699 को याद रखें यह तीन डिजिट्स चीन की कम्पनियों के होते हैं और इस पोस्ट को एक बार शेयर करके अपने दायित्व के निर्वाहन में पहला कदम अविलम्ब उठायें। 

आपकी अतिरिक्त जानकारी के लिये भारतीय उत्पादों का बार कोड 890 से शुरू होता है। अन्य कुछ खास देशों के बार कोड यदि आप जानना चाहते हैं तो निम्न लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं। 

https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_GS1_country_codes


जय हिन्द ------

कैसे पहचानें चीन निर्मित उत्पादों को

देश हित में जागरूकता फैलाने के लिए उत्पादों पर छपे बार कोड की पहली तीन डिजिट्स ---- 690,691,692,693,694,695,696,697,698,699 को याद रखें यह तीन डिजिट्स चीन की कम्पनियों के होते हैं और इस पोस्ट को एक बार शेयर करके अपने दायित्व के निर्वाहन में पहला कदम अविलम्ब उठायें। 


देश भक्ति का हिलोरा इस वक़्त सभी भारतवासियों के दिल में पूरे जोर से उफान मार रहा है। पकिस्तान से बदला लेना है और चीन को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए सबक सिखाना है। 
पूरे देश में चीन में निर्मित वस्तुओं के बहिष्कार की एक भावनात्मक लहर चल रही है। आपको यह जान कर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि चीन में निर्मित उत्पादों का आज हम खुल कर बहिष्कार करने का आह्वान कर रहे हैं तो पश्चिम के देशों में जिनमे अमरीका भी शामिल है, चीन के उत्पादों के बहिष्कार का चुपचाप से समाज में प्रवाह हो रहा है। बस अफ़सोस यह है कि हम आज जाग रहे हैं और पश्चिमी देश आज से दस साल पहले जाग गए थे। 
क्या आपको मालूम है कि पश्चिमी देशों के इस बहिष्कार का चीन ने सामना कैसे किया ???? चीन के उत्पादकों ने अपने  उत्पादों पर #Made_In_China लिखना ही बंद कर दिया। 
GATT के नियमों के तहत सरकार आयात के नियमों को कठोर बना सकती है लेकिन वो अपने नागरिकों से यह अपील नहीं कर सकती कि इस विशेष  देश की वस्तुओं का बहिष्कार करो। यह पूर्णतः जागरूक नागरिकों पर निर्भर करता है कि वे अपना दायित्व कैसे निभाते हैं। 
शातिर चीन के नीति निर्धारकों को भारत में उसके प्रति फैलते हुए असंतोष का पूरा एहसास होगा और बहुत संभव है कि चीन के उत्पादक भारत में भेजने वाले उत्पादों पर भी #Made_In_China लिखना बंद कर दें। ऐसी स्थिति में आपको उत्पाद पर छपे बार कोड के पहले तीन डिजिट्स पर ध्यान देना होगा।  यदि यह तीन डिजिट 690,691,692,693,694,695, में से कोई एक हैं तो वो उत्पाद चीन की कम्पनी द्वारा बनाया गया है। गौर करें इन तीन डिजिट्स का बार कोड की शुरुआत में होने का अभिप्राय यह नहीं है कि यह उत्पाद चीन में निर्मित है , इसका अभिप्राय यह है कि यह कम्पनी चीन की है या चीन में रजिस्टर्ड है। 
हमारा मकसद न सिर्फ चीन में निर्मित उत्पादों का बहिष्कार है बल्कि चीन की कंपनियों का बहिष्कार भी है। जिस तरह से मार्किट में चीन के उत्पाद छाये हुए हैं , फिलहाल में भारत के उपभोक्ताओं को सस्ते स्वदेशी विकल्प ढूंढने में परेशानी जरूर होगी लेकिन विकल्प हर सेगमेंट में मौजूद हैं बस ज़रुरत है दृण इच्छाशक्ति की। 
देश के लिए आप बहुत कुछ नहीं कर सकते तो इस बार आने वाली दीपावली में चीनी बिजली की लड़ियों और मौसमी सामान को तिलांजलि दे कर अपने अपने घरों को दीपों से रोशन कीजिये।  दिए बनाने वके गरीबों  के घर उनसे दिए खरीद कर रोशन करें। भारतीय पटाखे खरीद कर सिवाकासी (तमिलनाडू ) के डूबते हुए उद्योग को उबारें। 
और देश हित में जागरूकता फैलाने के लिए उत्पादों पर छपे बार कोड की पहली तीन डिजिट्स ---- 690,691,692,693,694,695,696,697,698,699 को याद रखें यह तीन डिजिट्स चीन की कम्पनियों के होते हैं और इस पोस्ट को एक बार शेयर करके अपने दायित्व के निर्वाहन में पहला कदम अविलम्ब उठायें। 

आपकी अतिरिक्त जानकारी के लिये भारतीय उत्पादों का बार कोड 890 से शुरू होता है। अन्य कुछ खास देशों के बार कोड यदि आप जानना चाहते हैं तो निम्न लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं। 

https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_GS1_country_codes


जय हिन्द ------

रविवार, 2 अक्टूबर 2016

33 साल पहले की मेरी सोच

1980 के दशक में दूरदर्शन पर दो सीरियल आते थे, जो आज की पीढ़ी को मालूम नहीं होंगे  --- 1) मानो या न मानो और 2) ऐसा भी होता है। 

उसी का सीक्वल आज मैं आपके सामने रख रहा हूँ, मानो या न मानो ------
बात आज से 33 साल पहले 1983  की है जब मैं 11वीं का छात्र हुआ करता था। बहुत ख्वाब देखता था और जब मुफ्त के ख्वाब खाता तो प्रधानमंत्री बनने से नीचे के नहीं खाता। देश को कैसे सुधारा जाये उसके लिए बहुत योजनाएं बनाया करता था। 
कुछ महीने पहले घर की साफ़ सफाई में बचपन की वो डायरी मिल गयी जिसमें मैं अपनी योजनाएं लिखा करता था। संकोच और आत्म प्रशंसा न कहलाये इसलिए उसे फिर से ठन्डे बास्ते में डाल दिया। लेकिन देश के वर्तमान हालात को देख कर लगता है कि देश में आज सब कुछ वही हो रहा है या होना चाहिए जो मैंने 36 साल पहले सोचा था। आइये आपको अपनी बचपन की सोच से वाकिफ करवाऊं। पन्नेवार  एक एक पृष्ट का तर्जुमा आपके सामने लिख रहा हूँ ---

1) नेत्रदान अनिवार्य कर देना चाहिए। 
2) सभी सांसदों और विधायकों को यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन द्वारा आयोजित परीक्षा पास करनी अनिवार्य हो तथा नामांकन से पूर्व वे अपनी चल और अचल संपत्ति की घोषणा करें। 
3 ) सभी प्रकार की हड़तालों और बंधों पर प्रतिबन्ध लग्न चाहिए। 
4) 4-5 सार्वजानिक अवकाश कम किये जाने चाहिए। 
5 ) अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की better Spot Purchase होनी चाहिए। 
6) NRI के लिए व्यावहारिक औद्योगिक नीतियां होनी चाहियें। 



पृष्ट -2 
7) सभी आतंकवादी संगठनों पर पूर्ण प्रतिबन्ध होना चाहिये। दंगों और आगजनी में लिप्त दोषियों को तुरंत मौत की सजा होनी चाहिए। ( उस समय पंजाब में आतंकवाद चरम पर था)
8) भ्रष्ट एवं लापरवाह अधिकारियों को 20 सालों के जेल में डाल देना चाहिए। 
9 ) इजराइल और विएतनाम से मित्रता करनी चाहिए। 
10 ) सर्कस वालों की मदद की जानी चाहिए। 
11 ) आरक्षण का आधार अनुसूचित जातियाँ और जनजाति न हो कर आर्थिक रूप से पिछड़े तथा विकलांगों के लिए होना चाहिए। 
पृष्ट -3 
12) हर उद्योग को अपने उत्पादों में हर छह माह में कुछ सुधार दिखाना होगा। ( आज हम चीनी उत्पादों से प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में नहीं हैं) . 
13 ) सारे स्विस एकाउंट्स या तो भारत में ट्रांसफर कर दिए जाएँ या उन्हें जब्त कर लिया जाये। 
14) नदियाँ को स्वच्छ किया जाये। 
15 ) जिसके पास भी मादक पदार्थ पाए जाएँ उसे तुरंत फांसी दे दी जाये। 
16) दुल्हनों को जलाने वालों जो भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिम्मेदार हों , यदि सरकारी नौकरी में हों तो उनकी नौकरी ख़त्म कर देनी चाहिए यदि व्यवसाय हो तो उसे जब्त कर लेना चाहिए और कम से कम 7 वर्षों के लिए जेल की सज़ा होनी चाहिए। 
17) महिलाओं को देह व्यापार में धकेलने वालों को सजाये मौत मिलनी चाहिए। 












पृष्ट --4 
18) व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त लोगों को देश से बाहर जा कर नौकरी करने की इज़ाज़त न हो। 
19) व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण ( IIT, C.A ,M.B.B.S ) को सिविल सर्विसेज में जाने की इज़ाज़त न हो। 
20) अपने क्षेत्रों में पेड़ लगाने की ज़िम्मेदारी ग्राम पंचायतों की तय की जाये। 
21) प्री नर्सरी और पांचवी तक और उसके पश्चात् हिंदी अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाये। 
22) प्राथमिकता के आधार पर जहाँ भी संभव हो जलविद्युत परियोजनाएं बनायीं जाएँ। ( आज चीन ब्रह्मपुत्र पर कर रहा है और हमें सिंधु पर बांध बनाने की ज़रुरत महसूस हो रही है )
23) हर वैज्ञानिक खोज को भव्य तरीके से पुरुस्कृत किया जाये। 
24) हर गांव में स्कूल और अस्पताल हो। 

#मानो_या_न_मानो ये मेरे बचपन की तब की सोच है जब मैं न तो शरीयत/इस्लाम  के विषय में जानता था न मूलनिवासी के कांसेप्ट से वाकिफ था। निवेदन है इसे मेरी आत्मप्रशंसा न समझ कर बस बचपन की यादें समझ कर इन पर हँसियेगा नहीँ। 

शनिवार, 1 अक्टूबर 2016

जापान की एप्पल डिप्लोमेसी

1 अक्टूबर 1949 को "पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना" बने चीन ने कल भारत के खिलाफ दुबारा से अपने इरादे साफ़ कर दिए। एक ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का पानी रोक कर और दूसरे संयुक्त राष्ट्र द्वारा अज़हर मसूद को आतंकवादी घोषित करने की प्रक्रिया में अपने वीटो का पुनः इस्तेमाल करके। चीन अपने हितों को देखते हुए कुछ भी गलत नहीं कर रहा है। चीन को पकिस्तान का साथ चाहिए क्योंकि उसे इस क्षेत्र में एक रणनीतिक साझेदार / सामरिक हितों को साधने वाला चाहिए। उसे समुद्र का लम्बा छोड़कर ग्वादर बंदरगाह तक पहुँचाने के लिए एक चोट रास्ता चाहिए जो POK से ही निकल सकता है। उसे अपनी सस्ते माल औद्योगिक इकाइयों को जिन्दा रखने के सस्ता खनिज चाहिए जो चीन पकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर के 3000 हज़ार किलोमीटर में भरा पड़ा है।इस सबके के लिए वो इस कॉरिडोर पर $46 बिलियन खर्च कर रहा है। इस 46 बिलियन में से 35 बिलियन बिजली उत्पादन पर खर्च करेगा जिसकी पकिस्तान को बहुत सख्त जरूरत है। नए रोज़गार पैदा करेगा जिसकी पकिस्तान को सख्त ज़रुरत है। पकिस्तान को एक ऐसे दोस्त की ज़रुरत है जो भारत के खिलाफ वक्त बेवक़्त हर गलत और सही में उसके साथ खड़ा हो। 

दिल्ली पर मुग़ल सल्तनत और इस्लाम का झण्डा फहराने का ख्वाब पलने वाले पकिस्तान को चीन में इस्लाम का क्या हाल है उसकी पूरी खबर है---- दाढ़ी, बुर्के, नमाज़ और रोज़ों पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है। चीन में कोई भी देशविरोधी या आतंकवादी गतिविधि के लिए सिर्फ एक सज़ा है सजाये मौत। 
लेकिन फिर भी चीन पकिस्तान को खुश करने के लिए अज़हर मसूद कोअंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी घोषित नहीं होने दे रहा और पकिस्तान चीन को भारत की गर्दन तक पहुँचाने के लिए बैसाखियाँ दे रहा है। दोनों देशों की सोच के दूरगामी परिणाम होंगे। चीन जो किसी अंतरराष्ट्रीय कानून को नहीं मंटा इस क्षेत्र का माफिया होगा और पाकिस्तान अपना घर लुटवाने वाला गुर्गा। 
आने वाले दिनों में जो होगा देखा जायेगा , कह कर हम इस समस्या की अनदेखी करने की बेवकूफी नहीं कर सकते। गौर करें चीन ने भारत पकिस्तान और इजराइल सिंगापुर के बाद एक देश का रूप लिया था और आज चीन, इजराइल सिंगापुर कहाँ हैं और भारत और पकिस्तान कहाँ हैं। इन देशों ने यह देश के हितों को सर्वोपरि रखते हुए पंचवर्षीय को जगह पचास वर्षीय योजना बनायीं। देशवासियों को औकात में रखने के लिए न सिर्फ कड़े कायदे क़ानून बनाये बल्कि उनका कड़ाई से पालन भी किया और आज ये सब देश अपनी शर्तों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बात करते है। 

जापान को भी आप इन्ही देशो की श्रेणी में रख सकते हैं क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बर्बाद जापान ने भी 1947  में ही राजा को सर्वोपरि मानते हुए प्रजातन्त्र बहाल करने वाले संविधान को अपनाया था। और जब देशहित की बात आती है तो न सिर्फ जापानी सरकार की नीतियां स्पष्ट हैं बल्कि देश की जनता भी देश के लिए एक साथ कड़ी होती है। 
बात शुरू हुई थी --#एप्पल_डिप्लोमेसी से। जी आज की तरह एक समय था जब अमरीका अपने व्यापार को बढ़ने के लिए हर किस्म की दादागिरी करता था। जापान में कृषि के लिए ज़मीन कम होने के कारण वहां कृषि उत्पादों की कीमत अधिक होती है। अंतरराष्ट्रीय नियमो के तहत जापान को निर्यात के साथ आयत करना भी ज़रूरी था। 
इन्ही कृषि उत्पादों में सेब भी आता है। जितना सेब वाशिंगटन स्टेट के 35% हिस्से में होता है उतना सेब पूरे जापान में होता है।  साधारण से बात थी कि यदि अमरीका का सेब जापान में आया तो बहुत कम दाम पर मिलेगा और जापान के सेब उत्पादकों का भारी नुकसान होता। जापान की सरकार की सरकार ने बहुत कड़े नियम बनाये लेकिन अमरीका के सेबों की दो किसमे उन्हें पास कर गयीं। 
अमरीका उत्साह से भर गया कि जापान के बाज़ारों में 60 -100 मिलियन डॉलर प्रति वर्ष के सेब बेचे जा सकते हैं। पहले वर्ष सिर्फ पंद्रह मिलियन डॉलर के सेब बिके। दूसरे वर्ष डेढ़ मिलियन डॉलर के सेब बिके। तीसरे वर्ष से अमरीका के व्यापारियों ने जापान में सेब भेजने खुद बंद कर दिए। ऐसा नहीं है कि जापान में अन्य देश सेब नहीं भेजते और वे सेब बिकते नहीं हैं। बिकते हैं लेकिन बहुत कम बिकते हैं। अमरीकी सेबों की असफलता के बहुत से कारण ढूंढें और बताये गए जिनमे सेबों के छिलकों का पतला होना उनके स्वाद का अलग होना वगैरह वगैरह होना। लेकिन जो कारण जानते हुए भी नहीं बोले वो था देश की जनता का अपने सेब उत्पादकों के साथ खड़े होना और अमरीका के मामले में यह न भूलना कि इसने कभी हमारे देश पर परमाणु बम गिराए थे। 
देश और सरकार कैसे चलानी है दिन भर फेसबुक पर ऐसी नसीहतें देने वाले ब्रह्मज्ञानियों पहले यह तो देख लो तुम देश के लिए क्या कर सकते हो। बहुत ज्यादा मेहनत और पैसा नहीं लगेगा चीनी माल का बहिष्कार करने में। 
कल तक जो सूरमा पकिस्तान से तुरंत बदला लेने के लिए आक्रमण आक्रमण चिल्ला रहे थे ,वो अपनी नाक से आगे दो इंच देख कर चीनी माल का बहिष्कार भी नहीं कर पाएंगे। 
अरे कुछ नहीं नहीं कर सकते तो यह पोस्ट ही अपनी अपनी वाल पर कॉपी पेस्ट कर देना हो सकता है, हो सकता है चार लोग और इस मुहीम से जुड़ जाएँ। अगर आज यह नहीं किया तो 10 साल बाद कुछ नहीं कर पाओगे।जरूरी नहीं है की हर लड़ाई सरहद पर ही लड़ी जाये। यह भी जरूरी नहीं है कि आप सरहद पर जा कर गोलियाँ चलाएं तभी आपको युद्ध में शामिल माना जायेगा। देशभक्ति निभाने के बहुत से तरीकों में विदेशी माल का बहिष्कार भी एक तरीका है और इस समय आपको पकिस्तान से ज्यादा खतरा चीन से है।  जय हिन्द।      

जापान की एप्पल डिप्लोमेसी

1 अक्टूबर 1949 को "पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना" बने चीन ने कल भारत के खिलाफ दुबारा से अपने इरादे साफ़ कर दिए। एक ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का पानी रोक कर और दूसरे संयुक्त राष्ट्र द्वारा अज़हर मसूद को आतंकवादी घोषित करने की प्रक्रिया में अपने वीटो का पुनः इस्तेमाल करके। चीन अपने हितों को देखते हुए कुछ भी गलत नहीं कर रहा है। चीन को पकिस्तान का साथ चाहिए क्योंकि उसे इस क्षेत्र में एक रणनीतिक साझेदार / सामरिक हितों को साधने वाला चाहिए। उसे समुद्र का लम्बा छोड़कर ग्वादर बंदरगाह तक पहुँचाने के लिए एक चोट रास्ता चाहिए जो POK से ही निकल सकता है। उसे अपनी सस्ते माल औद्योगिक इकाइयों को जिन्दा रखने के सस्ता खनिज चाहिए जो चीन पकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर के 3000 हज़ार किलोमीटर में भरा पड़ा है।इस सबके के लिए वो इस कॉरिडोर पर $46 बिलियन खर्च कर रहा है। इस 46 बिलियन में से 35 बिलियन बिजली उत्पादन पर खर्च करेगा जिसकी पकिस्तान को बहुत सख्त जरूरत है। नए रोज़गार पैदा करेगा जिसकी पकिस्तान को सख्त ज़रुरत है। पकिस्तान को एक ऐसे दोस्त की ज़रुरत है जो भारत के खिलाफ वक्त बेवक़्त हर गलत और सही में उसके साथ खड़ा हो। 

दिल्ली पर मुग़ल सल्तनत और इस्लाम का झण्डा फहराने का ख्वाब पलने वाले पकिस्तान को चीन में इस्लाम का क्या हाल है उसकी पूरी खबर है---- दाढ़ी, बुर्के, नमाज़ और रोज़ों पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है। चीन में कोई भी देशविरोधी या आतंकवादी गतिविधि के लिए सिर्फ एक सज़ा है सजाये मौत। 
लेकिन फिर भी चीन पकिस्तान को खुश करने के लिए अज़हर मसूद कोअंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी घोषित नहीं होने दे रहा और पकिस्तान चीन को भारत की गर्दन तक पहुँचाने के लिए बैसाखियाँ दे रहा है। दोनों देशों की सोच के दूरगामी परिणाम होंगे। चीन जो किसी अंतरराष्ट्रीय कानून को नहीं मंटा इस क्षेत्र का माफिया होगा और पाकिस्तान अपना घर लुटवाने वाला गुर्गा। 
आने वाले दिनों में जो होगा देखा जायेगा , कह कर हम इस समस्या की अनदेखी करने की बेवकूफी नहीं कर सकते। गौर करें चीन ने भारत पकिस्तान और इजराइल सिंगापुर के बाद एक देश का रूप लिया था और आज चीन, इजराइल सिंगापुर कहाँ हैं और भारत और पकिस्तान कहाँ हैं। इन देशों ने यह देश के हितों को सर्वोपरि रखते हुए पंचवर्षीय को जगह पचास वर्षीय योजना बनायीं। देशवासियों को औकात में रखने के लिए न सिर्फ कड़े कायदे क़ानून बनाये बल्कि उनका कड़ाई से पालन भी किया और आज ये सब देश अपनी शर्तों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बात करते है। 

जापान को भी आप इन्ही देशो की श्रेणी में रख सकते हैं क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बर्बाद जापान ने भी 1947  में ही राजा को सर्वोपरि मानते हुए प्रजातन्त्र बहाल करने वाले संविधान को अपनाया था। और जब देशहित की बात आती है तो न सिर्फ जापानी सरकार की नीतियां स्पष्ट हैं बल्कि देश की जनता भी देश के लिए एक साथ कड़ी होती है। 
बात शुरू हुई थी --#एप्पल_डिप्लोमेसी से। जी आज की तरह एक समय था जब अमरीका अपने व्यापार को बढ़ने के लिए हर किस्म की दादागिरी करता था। जापान में कृषि के लिए ज़मीन कम होने के कारण वहां कृषि उत्पादों की कीमत अधिक होती है। अंतरराष्ट्रीय नियमो के तहत जापान को निर्यात के साथ आयत करना भी ज़रूरी था। 
इन्ही कृषि उत्पादों में सेब भी आता है। जितना सेब वाशिंगटन स्टेट के 35% हिस्से में होता है उतना सेब पूरे जापान में होता है।  साधारण से बात थी कि यदि अमरीका का सेब जापान में आया तो बहुत कम दाम पर मिलेगा और जापान के सेब उत्पादकों का भारी नुकसान होता। जापान की सरकार की सरकार ने बहुत कड़े नियम बनाये लेकिन अमरीका के सेबों की दो किसमे उन्हें पास कर गयीं। 
अमरीका उत्साह से भर गया कि जापान के बाज़ारों में 60 -100 मिलियन डॉलर प्रति वर्ष के सेब बेचे जा सकते हैं। पहले वर्ष सिर्फ पंद्रह मिलियन डॉलर के सेब बिके। दूसरे वर्ष डेढ़ मिलियन डॉलर के सेब बिके। तीसरे वर्ष से अमरीका के व्यापारियों ने जापान में सेब भेजने खुद बंद कर दिए। ऐसा नहीं है कि जापान में अन्य देश सेब नहीं भेजते और वे सेब बिकते नहीं हैं। बिकते हैं लेकिन बहुत कम बिकते हैं। अमरीकी सेबों की असफलता के बहुत से कारण ढूंढें और बताये गए जिनमे सेबों के छिलकों का पतला होना उनके स्वाद का अलग होना वगैरह वगैरह होना। लेकिन जो कारण जानते हुए भी नहीं बोले वो था देश की जनता का अपने सेब उत्पादकों के साथ खड़े होना और अमरीका के मामले में यह न भूलना कि इसने कभी हमारे देश पर परमाणु बम गिराए थे। 
देश और सरकार कैसे चलानी है दिन भर फेसबुक पर ऐसी नसीहतें देने वाले ब्रह्मज्ञानियों पहले यह तो देख लो तुम देश के लिए क्या कर सकते हो। बहुत ज्यादा मेहनत और पैसा नहीं लगेगा चीनी माल का बहिष्कार करने में। 
कल तक जो सूरमा पकिस्तान से तुरंत बदला लेने के लिए आक्रमण आक्रमण चिल्ला रहे थे ,वो अपनी नाक से आगे दो इंच देख कर चीनी माल का बहिष्कार भी नहीं कर पाएंगे। 
अरे कुछ नहीं नहीं कर सकते तो यह पोस्ट ही अपनी अपनी वाल पर कॉपी पेस्ट कर देना हो सकता है, हो सकता है चार लोग और इस मुहीम से जुड़ जाएँ। अगर आज यह नहीं किया तो 10 साल बाद कुछ नहीं कर पाओगे।जरूरी नहीं है की हर लड़ाई सरहद पर ही लड़ी जाये। यह भी जरूरी नहीं है कि आप सरहद पर जा कर गोलियाँ चलाएं तभी आपको युद्ध में शामिल माना जायेगा। देशभक्ति निभाने के बहुत से तरीकों में विदेशी माल का बहिष्कार भी एक तरीका है और इस समय आपको पकिस्तान से ज्यादा खतरा चीन से है।  जय हिन्द।      

शनिवार, 24 सितंबर 2016

नेहरू शेख अब्दुल्ला ---कश्मीर समस्या के माँ बाप

रालिव ,चालिव गालिव ------ धर्मपरिवर्तन कर लो, छोड़कर चले जाओ या मौत का अंगिकार कर लो ( शेख अब्दुल्लाह ,कश्मीर के वज़ीरे आज़म, तत्पश्चात मुख्यमंत्री ने लिखा अपनी आत्मकथा " आतिशे चिनार" में हिंदुओं के लिए) और उनका पोता उमर अब्दुल्लाह कह रहा है कि " मैं अपनी गर्दन कटवा दूंगा लेकिन "सिंधु नदी का समझौता रद्द नहीं होने दूँगा। 
भारत कश्मीर में चाहें सोने की सड़कें बनवा दे लेकिन कश्मीर अपना हक़ लेकर रहेगा ---- गिलानी।
क्या सोच कर अकल और आँख के अन्धे कश्मीरियत ,जम्हूरियत और इन्सानियत की बात करते हैं। इन तीन लफ़्ज़ों के आगे बुरहान वाणी वाली जिहादियत को जोड़ना क्यों भूल जाते हैं।
जम्हूरियत और इंसानियत तो जैसी पूरे भारत में है वही कश्मीर में भी है लेकिन जब कश्मीरियत की बात आती है तो जम्मू और कश्मीर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हरी ओम जो कि इंडियन काउंसिल ऑफ़ हिस्टॉरिकल रिसर्च के सदस्य भी है --ने वर्ष 2000 में एक समाचार पत्र में लिखा ---
1) कश्मीरी जनसँख्या राज्य की मात्र 22 प्रतिशत है लेकिन अब्दुल्ला ने राज्य के निर्वाचन क्षेत्रों का विभाजन इतनी शातिरता से करवाया कि 1951 में नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी को आधी से अधिक लोकसभा और विधानसभा की सीट पर विजय मिली। अब्दुल्ला का पैंतरा था कि उसने कश्मीर में 46 और जम्मू और लद्दाख में 41 निर्वाचन क्षेत्र बनवाये जबकि जम्मू और लद्दाख की जनसँख्या कश्मीर के मुकाबले बहुत अधिक थी। 
2) घाटी के सरकारी और अर्धसरकारी संस्थानों में कार्यरत दो लाख चालीस हज़ार कर्मचारियों में से दो लाख तीस हज़ार कश्मीरी हैं। 
3) जम्मू और कश्मीर के जितने भी व्यावसायिक और तकनीकी संस्थान, सीमेंट , टेलीफोन या अन्य सार्वजानिक क्षेत्र के संसथान हैं उनमे कश्मीरियों का एकाधिकार है। 
4) एक भी कश्मीरी ऐसा नहीं है जिसके पास अपना घर न हो और भारत के अन्य राज्यों की तरह आज तक कश्मीर में एक भी मौत ठण्ड या भुखमरी से नहीं हुई। 
5) कश्मीरी एक भी रुपया राज्य के राजस्व में नहीं देते और राज्य का 90% राजस्व जम्मू और लद्दाख से आता है जबकि इसका अधिकांश हिस्सा कश्मीर में खर्च किया जाता है न कि जम्मू और लद्दाख के अति पिछड़े इलाकों के विकास के लिए। 
इन सब तथ्यों के मद्देनज़र सिर्फ कश्मीर और कश्मीर ही नज़र आता है बाकी राज्य का तो जैसे आस्तित्व ही नहीं है। इसी तर्ज़ पर जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट के सेवानिवृत न्यायधीश जे एन भट ने मई 2000 के "वॉइस ऑफ़ जम्मू कश्मीर " नाम की पत्रिका में लिखा कि --
1) सरकार ने जम्मू के बाहरी हिस्सों में हज़ारों प्लाट काटे और कश्मीरियों को दिए ,लेकिन लाभान्वित लोग एक ख़ास वर्ग से संभंधित हैं। 
2) जम्मू के कुछ इलाकों में पानी की सप्लाई तीन चार दिन के उपरान्त की जाती है जो कि प्यास भुझाने के लिए भी कम है। यानि कि विकास के लिए आये हुए पैसे का दुरूपयोग किया गया है। 
3) जम्मू क्षेत्र के डोडा और पुंछ इलाकों में हिन्दू अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जाता है ,जिसकी वजह से चैन से जीने के लिए लोगों को धर्मान्तरण ही एक उपाय नज़र आता है जबकि बहुत से लोग धर्मान्तरण की बजाये मरना पसंद करते हैं। 
क्या इसी कश्मीरियत की बात कर रही हैं सरकारें, अलगाववादी और कश्मीर के बाशिंदे ???? 
आज की तारीख में कश्मीर घाटी में कोई सेकुलरिज्म की बात नहीं करता क्योंकि घाटी में 1 प्रतिशत भी अन्यधर्मों के लोग नहीं बचे हैं जबकि देश आज़ाद होने के बाद से कश्मीर में हमेशा मुसलामानों के हितों का राग अलाप कर इसे भारत में विलय से शेख अब्दुल्ला ने ने रोका था। 
शेख अब्दुल्ला और कांग्रेस जनित कश्मीर समस्या पर विस्तृत लेख फिर कभी लिखेंगे लेकिन सारांश यह है कि पकिस्तान से मिलकर भारत विरोधी गतिविधियों और देश द्रोह जैसे संगीन अपराधों के चलते शेख अब्दुल्ला को दो बार गिरफ्तार किया गया लेकिन दोनों बार अदालत की कार्यवाही पूरी हुए बिना नेहरू ने उसे क्यों छोड़ दिया यह कोई नहीं जानता। 
हाँ 1949 में गुप्तचर विभागों द्वारा शेख अब्दुल्ला की नियत के खिलाफ रिपोर्ट प्रधानमंत्री को दी गयी तो नेहरू ने कहा कि "शेख अब्दुल्लाह कि भारत के प्रति प्रतिबद्धता पर शक नहीं किया जा सकता। और जब यही रिपोर्ट तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल के पास भेजी गयी तो उनकी प्रतिक्रिया थी ---------
ये शेख अब्दुल्ला एक दिन भारत को नीचा जरूर दिखायेगा ----- और उड़ी घटना के बाद संयुक्त राष्ट्र सभामें तथाकथित शरीफ ने कह ही दिया " कि उड़ी की घटना भारतीय सेना द्वारा कश्मीर में दमनकारी नीतियों की प्रतिक्रिया है और बुरहान वानी एक आतकंवादी नहीं शहीद है।     
भारत के टुकड़े हुए दो , लेकिन आत्मायें थीं तीन जो वज़ीरे आज़म बनने का ख्वाब पाले हुए थीं। नेहरू,जिन्ना और शेख अब्दुल्ला। नेहरू और अब्दुल्ला के वंशजों ने 70 में से लगभग 55 साल राज किया, आज जब सत्ता से बाहर हैं तो देश इनके द्वारा कदम कदम पर खोदे हुए गड्ढों में गिर रहा है और चोट खा रहा है।
उससे बड़ी गलती कर रहे हैं इनको प्यार से समझने वाले। न तो कुत्तों को घी हजम होता है और न कुत्तों की दुम सीढ़ी होती है। 

शनिवार, 10 सितंबर 2016

धर्मो में विरोधाभास की पराकाष्ठा



सितंबर का दूसरा सप्ताह चल रहा है और भारत के दो मुख्य त्यौहार इस सप्ताह मनाये जा रहे हैं। जैन लोग पर्युषण (संवत्सरी) मना रहे हैं और मुसलमान लोग तैयारी कर रहे है ईद उल ज़ुहा की ।त्यौहार दोनों ही त्याग आधारित हैं लेकिन दोनों में विरोधाभास की पराकष्ठा है। 
एक नज़र डालते हैं जैन धर्म के पर्युषण पर्व पर। जैनियों में सबसे अधिक महत्ता रखने वाला पर्व यही है। श्वेतांबर जैन इसे आठ दिन और दिगम्बर जैन इसे दस दिन मनाते हैं। दस दिनों के इस पर्व का मुख्य विषय आत्मा की शुद्धि होता है , जिसे शारीरिक और मानसिक उपवास रख कर अपनी आत्मा पर अधिक से अधिक ध्यान लगा कर शुद्ध करने का प्रयास किया जाता है। इस पर्व में निम्न दो मन्त्रों का विशेष रूप से जाप किया जाता है --
1) #मिच्छामि_दुक्कड़म
अर्थात ----यदि मैंने आपको जाने अनजाने में मनसा , वाचा, कर्मणा कोई कष्ट दिया है तो उसके लिए मैं आपसे क्षमा प्रार्थना करता हूँ।

,
2 ) खमेमी सव् वे जीवा, सववे जीवा खमंतु मे, मित् ती मे सव् वे भूएसु, वेरं मज् झ न केणइऐ। (#Note--- Please ignore the spelling mistakes done by me while writting this mantra)
Meaning: I forgive all the living beings of the universe, and may all the living-beings forgive me for my faults. I do not have any animosity towards anybody, and I have friendship for all living beings. अर्थात मैंने इस ब्रह्माण्ड में सभी जीवित प्राणियों को माफ़ कर दिया और सभी जीवित प्राणी मुझे माफ़ कर दें। मेरे दिल में किसी के प्रति कोई बैर भाव नहीं है और मेरी सभी जीवित प्राणियों से मित्रता है।
----- न सिर्फ इस मन्त्र का जप किया जाता है बल्कि अपने सभी मित्रों और सम्बन्धियों से पिछली कर्मो और वचनों द्वारा की गयी गलतियों के लिए माफ़ी मांगी जाती है। उन प्राणियों से भी माफ़ी मांगी जाती है जो जाने अनजाने में इनसे आहात हो गए हों। वैसे तो जैन धर्म है ही अहिंसा का प्रतीक फिर भी इस समय अनजाने में किसी भी प्राणी के प्रति हुई हिंसा के लिए क्षमा मांगी जाती है।
अब आ जाइये ईद पर---- मैं इस हफ्ते पड़ने वाली ईद ---ईद उल ज़ुहा--बकरीद की बात कर रहा हूँ। अल्लाह के नाम पर बलि चढाने का ये सिलसिला तो वैसे यहूदियों के पैगम्बर मूसा से भी बहुत पहले इब्राहिम ने ऊपर वाले के कहने पर अपने सबसे प्रिय बेटे इसहाक की बलि चढ़ाने की मांग से शुरू किया था। लेकिन बाइबिल में लिखा है कि जैसे ही इब्राहिम,इसहाक का गला रेतने वाले थे खुदा के दूत ने उन्हें रोक दिया और तभी इब्राहिम ने देखा कि झाड़ियों में एक मेढा फंसा हुआ है ,तो इब्राहिम ने उसे पकड़ कर उसकी बलि चढ़ा दी। ( बाइबिल --जेनेसिस -22: 1-14 )
कुछ ऐसी ही कहानी कुरान के सूरा 37 आयत 100 -110 में है, कि इब्राहिम को को ख्वाब आता था कि खुदा उससे उसके सबसे प्रिय बेटे की बलि मांग रहा है। जब इब्राहिमअपने बेटे की बलि चढ़ाने लगे तो खुदा ने उनके रोक कर शाबाशी दी और बलि चढाने के लिए बेटे की जगह एक जानवर दे दिया। 

त्याग दोनों पर्वों में हैं , एक में खुद को पीड़ा दे कर और दूसरे में दो दिन पहले खरीदे हुए बेजुबानों की जान लेकर अपने पैसे का त्याग। खैर यह तो अब ऊपर वाला तय करे कि कौन सा त्याग उसे स्वीकार है।
एक धर्म है सभी के सुख की कामना करता है और अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करता है और एक मज़हब है जो अपनी प्राथना के बाद उपरवाले से कहता है कि हमें काफिरों को मारने और उनपर राज करने की ताकत दे। सिर्फ अपनी प्रार्थना में ही नहीं कहते बल्कि अपने पवित्रतम धर्मस्थल मक्का से उनके धर्मगुरु प्रार्थना सभा के दौरान सभी काफिरों को मारने का एलान भी करते हैं। यकीं न हो तो नीचे दिया गया लिंक खोल लीजिये।
https://sputniknews.com/…/saudi-imam-calls-death-shia-jews-…
वैसे ऊपर वाले के ऊपर एक मजेदार बात यह है कि आज की तारिख में कोई उसके ऊपर रिस्क लेकर अपने सबसे प्रिय बेटे को ज़िब्ह के लिए छुरी के नीचे नहीं रखता अलबत्ता जिहाद में मरवा कर पता नहीं कौन सी जन्नत का वीसा दिलवाते है।

धर्मो में विरोधाभास की पराकाष्ठा



सितंबर का दूसरा सप्ताह चल रहा है और भारत के दो मुख्य त्यौहार इस सप्ताह मनाये जा रहे हैं। जैन लोग पर्युषण (संवत्सरी) मना रहे हैं और मुसलमान लोग तैयारी कर रहे है ईद उल ज़ुहा की ।त्यौहार दोनों ही त्याग आधारित हैं लेकिन दोनों में विरोधाभास की पराकष्ठा है। 
एक नज़र डालते हैं जैन धर्म के पर्युषण पर्व पर। जैनियों में सबसे अधिक महत्ता रखने वाला पर्व यही है। श्वेतांबर जैन इसे आठ दिन और दिगम्बर जैन इसे दस दिन मनाते हैं। दस दिनों के इस पर्व का मुख्य विषय आत्मा की शुद्धि होता है , जिसे शारीरिक और मानसिक उपवास रख कर अपनी आत्मा पर अधिक से अधिक ध्यान लगा कर शुद्ध करने का प्रयास किया जाता है। इस पर्व में निम्न दो मन्त्रों का विशेष रूप से जाप किया जाता है --
1) #मिच्छामि_दुक्कड़म
अर्थात ----यदि मैंने आपको जाने अनजाने में मनसा , वाचा, कर्मणा कोई कष्ट दिया है तो उसके लिए मैं आपसे क्षमा प्रार्थना करता हूँ।

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2 ) खमेमी सव् वे जीवा, सववे जीवा खमंतु मे, मित् ती मे सव् वे भूएसु, वेरं मज् झ न केणइऐ। (#Note--- Please ignore the spelling mistakes done by me while writting this mantra)
Meaning: I forgive all the living beings of the universe, and may all the living-beings forgive me for my faults. I do not have any animosity towards anybody, and I have friendship for all living beings. अर्थात मैंने इस ब्रह्माण्ड में सभी जीवित प्राणियों को माफ़ कर दिया और सभी जीवित प्राणी मुझे माफ़ कर दें। मेरे दिल में किसी के प्रति कोई बैर भाव नहीं है और मेरी सभी जीवित प्राणियों से मित्रता है।
----- न सिर्फ इस मन्त्र का जप किया जाता है बल्कि अपने सभी मित्रों और सम्बन्धियों से पिछली कर्मो और वचनों द्वारा की गयी गलतियों के लिए माफ़ी मांगी जाती है। उन प्राणियों से भी माफ़ी मांगी जाती है जो जाने अनजाने में इनसे आहात हो गए हों। वैसे तो जैन धर्म है ही अहिंसा का प्रतीक फिर भी इस समय अनजाने में किसी भी प्राणी के प्रति हुई हिंसा के लिए क्षमा मांगी जाती है।
अब आ जाइये ईद पर---- मैं इस हफ्ते पड़ने वाली ईद ---ईद उल ज़ुहा--बकरीद की बात कर रहा हूँ। अल्लाह के नाम पर बलि चढाने का ये सिलसिला तो वैसे यहूदियों के पैगम्बर मूसा से भी बहुत पहले इब्राहिम ने ऊपर वाले के कहने पर अपने सबसे प्रिय बेटे इसहाक की बलि चढ़ाने की मांग से शुरू किया था। लेकिन बाइबिल में लिखा है कि जैसे ही इब्राहिम,इसहाक का गला रेतने वाले थे खुदा के दूत ने उन्हें रोक दिया और तभी इब्राहिम ने देखा कि झाड़ियों में एक मेढा फंसा हुआ है ,तो इब्राहिम ने उसे पकड़ कर उसकी बलि चढ़ा दी। ( बाइबिल --जेनेसिस -22: 1-14 )
कुछ ऐसी ही कहानी कुरान के सूरा 37 आयत 100 -110 में है, कि इब्राहिम को को ख्वाब आता था कि खुदा उससे उसके सबसे प्रिय बेटे की बलि मांग रहा है। जब इब्राहिमअपने बेटे की बलि चढ़ाने लगे तो खुदा ने उनके रोक कर शाबाशी दी और बलि चढाने के लिए बेटे की जगह एक जानवर दे दिया। 

त्याग दोनों पर्वों में हैं , एक में खुद को पीड़ा दे कर और दूसरे में दो दिन पहले खरीदे हुए बेजुबानों की जान लेकर अपने पैसे का त्याग। खैर यह तो अब ऊपर वाला तय करे कि कौन सा त्याग उसे स्वीकार है।
एक धर्म है सभी के सुख की कामना करता है और अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करता है और एक मज़हब है जो अपनी प्राथना के बाद उपरवाले से कहता है कि हमें काफिरों को मारने और उनपर राज करने की ताकत दे। सिर्फ अपनी प्रार्थना में ही नहीं कहते बल्कि अपने पवित्रतम धर्मस्थल मक्का से उनके धर्मगुरु प्रार्थना सभा के दौरान सभी काफिरों को मारने का एलान भी करते हैं। यकीं न हो तो नीचे दिया गया लिंक खोल लीजिये।
https://sputniknews.com/…/saudi-imam-calls-death-shia-jews-…
वैसे ऊपर वाले के ऊपर एक मजेदार बात यह है कि आज की तारिख में कोई उसके ऊपर रिस्क लेकर अपने सबसे प्रिय बेटे को ज़िब्ह के लिए छुरी के नीचे नहीं रखता अलबत्ता जिहाद में मरवा कर पता नहीं कौन सी जन्नत का वीसा दिलवाते है।

शनिवार, 3 सितंबर 2016

शरीयत का कानून



पहली तस्वीर उस बच्चे की है जिसने एक ब्रेड चोरी करने की गलती की थी। दूसरी तस्वीर उस लड़की की है जिसकी खता यह थी कि उसका बलात्कार हुआ था और उसने अदालत की यह कह कर बेइज़्ज़ती कर दी थी कि ट्रायल उसका नहीं बलात्कारी का होना चाहिए। तीसरी तस्वीर में भी औरत को पत्थर मार मार कर मार दिया जायेगा , उसका गुनाह मुझे मालूम नहीं। 
ये कुछ उदाहरण हैं शरियत क़ानून में दी जाने वाली सज़ाओं के। 
भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड क्या ट्रिप्पल तलाक़ के अलावा चोरी, क़त्ल और व्यभिचार के लिए शरीयत में बताई गयी सज़ाओं के लिए वकालत करता है ???? 
शरीयत क़ानून वो हैं जिन्हें कुरान में तथाकथित खुदा ने बताया या जैसे मोहम्मद अपनी ज़िन्दगी जीता था उसको नज़ीर मान कर हदीसों में क़ानून बना दिया गया। सूरा 
मुझे नहीं पता कि सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक़ के ऊपर क्या दलीलें पेश कर रहा है , लेकिन कुरान में भी तीन बार तलाक़ कहने की मियाद तीन महीने दी गयी है। यानि कि अगर किसी ने तलाक़ देने का मन बना ही लिया है तो वो औरत को उसकी माहवारी से पहले एक बार तलाक कहेगा , इसके बाद भी वे पति पत्नी के सम्बन्ध बना सकते हैं। फिर दूसरी माहवारी के बाद दूसरी बार तलाक़ कहेगा। इसके बाद भी वे पति पत्नी की तरह रह सकते हैं। और यदि सुलह की कोई गुंजाइश हो तो उसे मौका दिया जा सकता है ,लेकिन तीसरी माहवारी के बाद भी यदि तलाक कह दिया जाता है तो तलाक हो जाता है। ये तीन महीने की मोहलत देने की दो वजह थीं। पहली कि, इस समय के दौरान सुलह की कोशिश की जानी चाहिए। दोनों पक्षों के दो दो समझदार लोगों या निकाह के समय के चश्मदीद गवाह सुलह सफाई करवाने में मदद करें। यदि वे असफल हो जाते हैं तो पति पत्नी अलग हो सकते हैं। दूसरी वजह यह थी कि यदि तलाक देने के समय औरत गर्भवती हो जाती है तो बच्चा पैदा होने के तीन महीने बाद या इद्दत के समय तक मर्द उस औरत को घर से नहीं निकल सकता और उसे उस औरत और बच्चे का पूरा खर्च उठाना पड़ेगा। इद्दत का समय तीन महीने यानि की 90 दिन होती है। इसके बाद औरत अपने बच्चों की गठरी लाद कर भाड़ में जाये न पति को इससे कोई मतलब है , न समाज को और मुझे तो बिलकुल नहीं है।
मुझे क्यों दिक्कत नहीं है , इसकी भी दो वजहें हैं। पहली कि मैंने बहुत सी मुसलमान औरतों की हिन्दू धर्म की मान्यताओं की धज्जियाँ उड़ाती हुई पोस्ट पढ़ीं हैं , इसलिए मेरी दिली ख्वाइश है कि इस्लाम उन्हें इस तरह से ही रखे। और दूसरी वजह है कि जब कुरान ने ही उन्हें मर्द के मुकाबले में कमतर बताया है तो फिर हम क्यों बेगानी शादी में दीवाने हों। आइये12 उदाहरण देखें कुरान में औरतों का क्या दर्ज है -- 
12) सूरा 2 आयत 223 ---- औरतें तुम्हारे खेत हैं इनमे चाहें जहाँ मर्जी से घुसो। 
11 ) सूरा 2 आयत 228 ---- मर्दों का औरतों के मुकाबले दर्जा बढ़ा हुआ है। 
10 )सूरा 4 आयत 11 -12 ---- लड़के का जायदाद में हिस्सा लड़की से दुगना होगा , और माँ और बीवी का 1/3 , 1/4 ,1/6वाँ हिस्सा ( अलग अलग परिस्थितियों में)
9 ) सूरा 2 आयत 282 ---- दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर 
8 ) सूरा 2 आयत 230 ---- एक तलाकशुदा औरत को अपने पहले पति से निकाह करने से पहले किसी दूसरे मर्द से निकाह करके शरीरिक सम्बन्ध बनाने होंगे। जब दूसरा मर्द तलाक दे देगा तभी पहले पति से निकाह कर सकती है। 
7) सूरा 4 आयत 3 , 23:5-6 , 33:50 ,70 :30 ----बांदियों / गुलाम औरतों के साथ सेक्स की इज़ाज़त। 
6 ) सूरा 4 आयत 3 --- अगर तुम्हे अंदेशा हो कि यतीम लड़कियों के साथ इन्साफ नहीं कर सकोगे तो दो तीन चार निकाह कर सकते हो पर अगर अंदेशा हो कि सबके साथ बराबर का व्यवहार नहीं कर सकते तो सिर्फ एक ही निकाह करो। 
5 )सूरा 4 आयत 129 ---- ये आयत 4:3 की बिलकुल विरोधाभासी है --तुमसे ये कभी न हो सकेगा कि सब बीबियों में बराबरी बनाये रखो। इसी के आगे आयत 130 में आयत 129 के सन्दर्भ में कहती है कि ऐसे हालात में मियां बीवी जुदा हो जाएँ। 
4) सूरा 4 आयत 34 --- मर्द हाकिम है औरतों पर। अगर औरत से बददिमागी का अंदेशा हो तो पहले उसे जुबानी नसीहत दो, और उसके बाद उसे मारो। 
3 ) सूरा 65 आयत 4 ---- जिन औरतों को उम्र की वजह से माहवारी आनी बंद हो गयी है या जिनको काम उम्र की वजह से माहवारी शुरू नहीं हुई है , उनके लिए तलाक़ के बाद इद्दत का का समय 90 दिन है। #गौर_करें ----#इसी_आयत_से_मतलब_निकाला_गया_है_कि_9_साल_की_बच्ची_से_भी_निकाह_किया_जा_सकता_है। 
2) सूरा 33 आयत 37 -- ससुर अपनी बहु ( गोद लिए हुए बेटे की बीवी ) से निकाह कर सकता है। ( ये आयत तब नाज़िल हुई जब पैगम्बर का दिल अपने गॉड लिए हुए बेटे ज़ैद की बीवी जैनब पर आ गया था। )
और मेरे हिसाब से पहले पायदान पर आती है निम्न आयत,जो कि सिर्फ पैगम्बर पर अप्लाई होती है और ईमान वालों के लिए प्रतिबंधित है ---
1) सूरा 33 आयत 50 --- ऐ नबी ! हमने आपके लिए आपकी ये बीवियां जिनको आप मेहर दे चुके है, हलाल की हैं और वे औरतें भी तो तुम्हारी मम्लूक (गुलाम) हैं,जो अल्लाह तआला की गनीमत से आपको दिलवा दीं हैं और आपके चचा की बेटियां ,और आपके फूफियों की बेटियां और आपके मामूं की बेटियां और आपकी ख़ालाओं की बेटियां भी जिन्होंने आपके साथ हिज़रत की हो और उस मुसलमान औरत को भी जो बिना बदले के अपने को पैगम्बर को दे दे बशर्ते कि पैगम्बर उनको निकाह में लाना चाहें। ये सब आपके लिए मख़सूस किये गए हैं न कि और मोमिनों के लिए। 
वैसे शरीयत में ब्लात्कारी को बचाने का पूरा प्रावधान किया गया है । अगर कोई महिला किसी पुरुष पर बलात्कार करने का आरोप लगाती है और वो आदमी अगर अपना गुनाह कबूल नहीं करता तो 4 गवाह ला कर आरोप सिद्ध ने की ज़िम्मेदारी स औरत की है । अगर वो सिद्ध नहीं कर पाती तो उसे 80 कोड़ों की सज़ा है । और 4 गवाह भी ऐसे होने चाहिए जिन्होने जननांगों को एक दूसरे के ............... । 
खैर इतना पढ़ने के बाद आपके लिए यह समझना बहुत ज़रूरी है कि #निकाह एक अरबी शब्द है जिसका हिंदी में मतलब होता है कानूनी अनुबंध ---और अंग्रेजी में LEGAL CONTRACT
और मुझे शरीयत से नफरत के बहुत से कारण हैं , जिसमें तीन अहम् कारन हैं -----
3) शरीयत मुसलामानों को इज़ाज़त देती है कि वे काफिरों पर हमला करके उन्हें या तो जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाएं या इस्लाम न कबूल करने की स्थिति में धीम्मी बना कर उनसे जज़िया वसूलें और दोनों स्थितियां संभव न होने पर काफिरों के पोर पोर काट कर उन्हें मार दें। 
2 ) काफिरों के खिलाफ जिहाद कआरके उनकी औरतों को गुलाम बना सकते हैं और उनके साथ बीलटकर को जायज़ ठहराती है। 
1) शरीयत के हिसाब से यहूदी और ईसाई की जान की कीमत मुसलमान के मुकाबले में आधी है और बौद्ध,जैन, हिन्दू और यज़ीदियों की जान की कीमत 1/16 है। 
#तो_अब_कौन_चादरमोड़_कहता_है_कि_ये_बराबरी_का_मज़हब_है