शनिवार, 28 मार्च 2015

क्या कभी मानसिकता को गुलाम बनाने वाली मैकाले की बेड़ियों को तोड़ पायेगा भारत ?????

जब कभी हिन्दू हित की बात कीजिये, तो एक टिप्पणी जरूर आती है कि हिन्दू कभी एक नहीं हो सकते। अधिकतर मैं इस टिप्पणी से सहमत होता हूँ, क्योंकि फेसबुक पर आपको अक्सर बहुत ही सुन्दर हिन्दू धर्म और संस्कृति से ओत प्रोत नाम से ऐसी पोस्ट लगभग हर रोज़ मिल जाएगी जिस की शुरुआत वे करते हैं," वैसे तो हम नास्तिक है" उसके बाद उनका धर्म होता है "हिन्दुओं की आस्था पर कठोरतम शब्दों में कुठाराघात करना। अपने लेखों में ज्ञान की ऐसी विवेचना करते हैं जैसे वेद,पुराण और हिन्दू धर्म के असली ज्ञाता और पूर्ण मर्मज्ञ वही हैं। बहुत लोग दार्शनिकों की भाषा का प्रयोग करते हुए लिखते हैं की मतभेद है मनभेद नहीं ---------
क्या आपने सोचा क्यों करते हैं वे ऐसा ???? और  हिन्दुओं में धर्म और मान्यताओं को लेकर मतभेद क्यों है ???? विश्लेषण किया जाये ????  


पृष्ठ 464 ,"The Life & letters of Macaulay" में Otto Trevlyn ने मेकॉले के एक पत्र का ज़िक्र किया जिसका हिंदी रूपांतरण इस प्रकार है ----" कोई हिन्दू जिसने अंग्रेजी शिक्षा ग्रहण की है, कभी भी सत्य ह्रदय से हिन्दू ग्रन्थ से सम्बद्ध नहीं रह सकता। कुछ मौखिक रूप से अपने को हिन्दू कहते हैं, केवल नीति के विचार से ईसाई हो जाते हैं। यह मेरा पक्का विश्वास है कि यदि हमारी शिक्षा की विधि चलती रही तो हिन्दू प्रतिष्ठित बंगाली परिवारों में तीस वर्षों में कोई भी मूर्तिपूजक हिन्दू नहीं रहेगा। "
कितनी सटीक सोच थी मैकाले की , कि 1815 में हिन्दू धर्मग्रंथों के आधार पर "राजा राम मोहन राय" हिन्दू धर्म में आई कुरीतियों को दूर करने के लिए जिस "ब्रह्मसमाज "की स्थापना की थी 1870-71 में वही ब्रह्मसमाज और राजा राम मोहन राय के उत्तराधिकारी केशवचन्द्र सेन "बाइबिल" को अपना धर्मग्रन्थ मानने लग गए थे। 
 
अगली पंक्तियाँ पढ़ने से पहले यह तो सबको ज्ञात ही होगा कि अंग्रेजों  द्वारा प्रस्तावित English Education Act, 1835 लागु कर दिया गया था जिसे कि 1820 में उस समय के एक लाख रुपये प्रतिवर्ष खर्च के हिसाब से योजना की गयी थी । यह भी सभी के संज्ञान में है कि  भारतीय संस्कृति की रीढ़ की हड्डी तोड़ने तथा लम्बे समय तक भारत पर राज करने के लिए 1835 में ब्रिटिश संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त करने के लिए मैकाले ने  क्या रणनीति सुझायी थी तथा उसी के तहत IIndian Education Act- 1858 लागु कर दिया गया। इस पृष्ट्भूमि के परिपेक्ष्य में कई लोगों में से दो का ज़िक्र कर रहा हूँ, की कमज़ोर बुद्धि वालों का अंग्रेजी शिक्षा लेने के बाद दिमाग कैसे फिरता है। 1869 में पैदा हुए और 1888 में इंग्लैंड पढने गए,  एक थे "मोहनदास करम चंद गांधी" से उनकी शिक्षा समाप्ति के अंत में एक अंग्रेज़ ने यह पूछा की वे इंग्लैंड में किस कारण आये थे ??? तो गांधी का जवाब यह था ---
" मैंने मन में विचार किया कि यदि मैं इंग्लैंड जाऊंगा तो मैं न केवल बैरिस्टर बन जाऊंगा वरन मैं इंग्लैंड, मीमांसकों और कवियों के देश को देखूंगा जो सभ्यता के केंद्र स्थान हैं " Quoted by Pyare Lal in "Mahatma Gandhi"Phase 1 Page no 224 
और दूसरे साहब थे " सैयद अहमद" अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक। इन साहब ने जो ज्ञान वहां प्राप्त किया तो उसकी रौशनी साइंटिफिक सोसाइटी को अपने पात्र में लिखते हैं कि --"हिन्दुस्तान के रहने वाले, धनी निर्धन ,पढ़े-लिखे ,अनपढ़ की जब अंग्रेज़ों से शिक्षा में , व्यवहार में ,स्वाभाव में तुलना की जाती है तो ऐसे लगते हैं जैसे एक योग्य सुन्दर मनुष्य के सामने एक गन्दा जानवर हो। " Quoted by Pyare lal in Mahatma Gandhi, The early Phase Page no-16 
उपरोक्त कथनों से आप समझ ही गए होंगे कि 1890 के दशक तक अंग्रेजी शिक्षा ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था और तत्कालीन भविष्य के कर्णधारों को अपने देश और संस्कृति हीं और निकृष्ट नज़र आने लग गए थे। इसी वक़्त 1885 में अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की नींव एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज के रूप में सैयद अहमद ने रखी और उधर "ऐलन ओक्टेविअन ह्यूम" ने 1885 में ही "इंडियन नेशनल कांग्रेस" की नींव रखी जिसको तीन दिन बाद " Three Times Three Cheers for Her Majesty the Queen Empress " से सम्पन्न किया गया। इस कांग्रेस के विषय में बस इतना ही लिखूंगा कि ह्यूम ने इसमें अंग्रेजी पढ़े हुए स्नातकों को इसमें वरीयता दी और इसके अधिवेशनों में अंग्रेजी पढ़े लिखे ही डेलिगेट बन सकते थे और सबसे अहम बात यह कि 1917-18 तक इस कांग्रेस के अधिवेशनों का आरम्भ अंग्रेजी कौमी गीत " God Save The King " से होता था और अंत " Three Cheers For the King of England & Emperor Of India" से होता था। 
आंग्ल शिक्षा पद्धति और ह्यूम वो शिक्षा भारतियों को देना चाहते थे जिससे की स्कूल और कॉलेज के पढ़े लिखे बच्चन के मस्तिष्क में यह बिठा दिया जाये कि ---
1) हिन्दू आर्यों की संतान हैं और वे इस हिंदुस्तान के रहने वाले नहीं हैं। वे कहीं बहार से आये हैं और यहाँ के आदिवासियों को मार मार कर तथा उनको जंगलों में भगाकर उनके नगरों और सुन्दर हरे-भरे मैदानों में स्वयं रहते हैं। 
2) हिन्दुओं के देवी देवता पत्थर की मूर्तियां हैं। ये बुतपरस्त हिन्दू महामूर्ख और अनपढ़ हैं। 
3) हिन्दुओं का कोई इतिहास नहीं है और यह इतिहास अशोक के काल से आरम्भ होता है। 
4) राम, कृष्ण आदि की बातें झूठे किस्से कहानियां हैं। 
5) वेद, जो हिन्दुओं की सर्व मान्य पूज्य पुस्तकें हैं ,गड़रियों के गीतों से भरी पड़ी हैं। 
6) हिन्दू सदा से दास रहे हैं --कभी शकों के, कभी हूणों के, कभी कुषाणों के और कभी पठानों तुर्कों और मुगलों के। 
7) रामायण तथा महाभारत काल्पनिक किस्से कहानियां हैं। 
कांग्रेस आज कुछ भी कहे, लेकिन 1902 के अहमदाबाद के इसके अधिवेशन के प्रधान के पद से  "सुरेन्द्र नाथ बनर्जी " ने कहा था "  We plead for the permanance of British rule in India" ( हम हिदुस्तान में अंग्रेजी राज्य सदा के लिए चाहते हैं)। 
संक्षेप में,अंग्रेज़ों ने भारत में अपना शासन सुदृण करने के लिए त्रिमुहि रणनीति तैयार की थी --- 
1) मैकाले की शिक्षा नीति का अक्षरश लागू करना  
2) सर ह्यूम की कांग्रेस को स्थापित करना 
3) मुसलमानों को अंग्रेजी शासन का सहायक बनाना
 ( Excerpts from "Hindutav ki Yatra " By Gurudutt) 

15 अगस्त 1947, को आज़ादी मिली, क्या बदला ????? रंगमंच से सिर्फ अंग्रेज़ बदले बाकि सब तो वही चला। अंग्रेज़ गए तो सत्ता उन्ही की मानसिकता को पोषित करने वाली कांग्रेस और नेहरू के हाथ में आ गयी। नेहरू के कृत्यों पर तो किताबें लिखी जा चुकी हैं पर सार यही है की वो धर्मनिरपेक्ष कम और मुस्लिम हितैषी ज्यादा था। न मैकाले की शिक्षा नीति बदली और न ही शिक्षा प्रणाली। शिक्षा प्रणाली जस की तस चल रही है और इसका श्रेय स्वतंत्र भारत के प्रथम और दस वर्षों (1947-58) तक रहे शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलम आज़ाद को दे ही देना चाहिए बाकि जो कसर बची थी वो नेहरू की बिटिया मेमुना बेगम ने तो आपातकाल में विद्यालयों में पढ़ाया जाने वाला इतिहास भी बदल कर पूरी कर दी ।  
जिस आज़ादी के समय भारत की 18.73% जनता साक्षर थी उस भारत के प्रधानमंत्री ने अपना पहला भाषण "tryst With Destiny" अंग्रेजी में दिया था  और उसका पड़पोता  राहुल गांधी  विद्यालयों में संस्कृत पढ़ाये जाने के विरोध में 2014 में भी यही मानता है कि  यदि अंग्रेजी न होती तो भारत इतनी तरक्की  नहीं कर पाता। और हम यह सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि पता नहीं जर्मनी, जापान,चीन इजराइल  ने अपनी मातृभाषाओं में इतनी तरक्की कैसे कर ली। 
क्या हमारी शिक्षा में आज यह पढ़ाया जा रहा है ----
अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम। 
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीड़नम्। ------ अर्थात , वेदव्यास के 18 पुराणों में दो वचन (श्रेष्ट) हैं, परोपकार करना एक पुण्य है और दूसरों को पीड़ा देना पाप है। 
यदि 67 वर्षों में आरक्षण देने के साथ ही वेद भी पढ़ा दिए गए होते तो जाती के आधार पर वैमनस्यता के जहर की खेती काटने वालों के हंसिए की धार कुंद की जा सकती थी ---


शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्। क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्या द्वैश्यात्तथैव च।---- अर्थात श्रेष्ठ -अश्रेष्ठ कर्मो के अनुसार शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र हो जाता है। जो ब्राह्मण ,क्षत्रिय वैश्य और शूद्र के गुणों वाला हो वह उसी वर्ण का हो जाता है।

यदि वेद पढ़ाये गए होते तो समाज में प्रतिदिन स्त्रियों का मान मर्दन नहीं होता -
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रेता तु न पूज्यन्ते सर्वाः तत्राफलाः क्रियाः । ------अर्थात जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात सत्कार होता है उस कुल में (देवता) दिव्यगुण होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है। 
पूरे वेदो का यहाँ उद्धरण संभव नहीं है, लेकिन वेदों के अनुसार धर्म क्या है ??? जो भी ज्ञानी व्यक्ति अतिउत्साह में वेदो और हिन्दू धर्म की आलोचना करके मूर्खों और अज्ञानियों के बीच अपने आप को बुद्धिमान सिद्ध करने का प्रयास कर रहे है, उन्हें पहले वेद निहित धर्म की परिभाषा को भली प्रकार समझ लेना चाहिए ---
 
धृति:क्षमा दमो $स्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्ष्णम्। -------- अर्थात (धृति) सदा धैर्य रखना, (क्षमा) जो कि निन्दा स्तुति मान-अपमान, हानि -लाभ आदि दुखों में भी सहन शील रहना, (दम) मन को सदा धर्म में प्रवृत कर अधर्म से रोक देना ,(अस्तेय)चोरी त्याग अर्थात बिना आज्ञा व छल कपट,विश्वासघात व् किसी व्यवहार तथा वेद विरुद्ध उपदेश से पर पदार्थ का ग्रहण करना चोरी और इस छोड़ देना सहकारी कहलाता है ,पांचवां (शौच) राग द्वेष ,पक्षपात भीतर और जल मृतिका,मार्जन आदि से बहार की पवित्रता रखनी,छठा -(इन्द्रिय निग्रह) अधर्माचरणो को रोक कर इन्द्रियों को धर्म में ही सदा चलाना,सातवां --( धीः ) मादकद्रव्य बुद्धिनाशक अन्य पदार्थ, दुष्टों का संग,आलस्य ,प्रमाद आदि को छोड़ कर श्रेष्ठ पदार्थों का सेवन ,सत्पुरषों का संग,योगाभ्यास से बुद्धि बढ़ाना ; आठवां --( विद्या) पृथ्वी से लेकर परमेश्वर पर्यन्त यथार्थ ज्ञान और उनसे यथायोग्य उपकार लेना ;सत्य जैसा आत्मा में वैसा मन में ,जैसा वाणी में वैसा कर्म में बरतना ,इससे विपरीत अविद्या है ,नवमां -- (सत्य ) जो पदार्थ जैसा हो उसको वैसा ही समझना ,वैसा ही बोलना ,वैसा ही करना भी ; तथा दशवाँ --(अक्रोध) क्रोधादि दोषों को छोड़ कर शान्त्यादि गुणों को ग्रहण करना (धर्मलक्षणम् ) धर्म का लक्षण है।
यदि वेद पढ़ाये गए होते तो समाज आज भ्रस्टाचार और व्यभिचार में इतना लिप्त न होता , और हिन्दू धर्म पर उंगली उठाने वालों को निम्न श्लोक भी याद होते।

श्रूयतां धर्मं सर्वस्वं श्रुत्वा चैवाव धार्यताम्। 
आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत।  अर्थात ---- जो जो गुण कर्म स्वाभाव आचरण व व्यवहार आपको अपने लिए अच्छा नहीं लगता, जिसे आप अपने साथ कराने के लिए तैयार नहीं हैं, वैसा प्रतिकूल आचरण व्यवहार आपको भी दूसरों के साथ कदापि नहीं करना चाहिए। यही धर्म है।
"आहारं निद्रा भयमैथुनं च समानमेतत् पशुभिर्नराणाम्। 
धर्मोहि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीना:पशुभिः समाना:। अर्थात ----भोजन करना,सोना ,डरना व संतति उत्पन्न करना आदि गुण कर्म स्वाभाव पशुओं और मनुष्यों में सामान रूप से है। मनुष्यों में एकमात्र धर्म ही है जो विशेष रूप से अधिक है, जो किसी भी प्राणी को मनुष्य बनाता है। अन्यथा धर्म से हीन मनुष्य तो पशु सामान ही है।
प्रिय हिन्दू धर्म के आलोचकों, पाश्चत्य शिक्षा और सभ्यता के पीछे उतना ही भागिए जितने से आप अपने संस्कारवान माँ बाप को मात्र गोरी चमड़ी के सामने उपहास न उड़ने लगें। जब इतना पाश्चत्य शिक्षा का आपके ऊपर असर है तो Newton's Third Law भी याद रखा करिये,Which says ,Every action has an equal and Opposit reaction, 
हम तो यूँ भी धर्म को बहुत मानते हैं,  कहीं ऐसा न हो हम "आहिंसा परमोधर्म:", के आगे का भाग आपको बताने के लिए मजबूर हो जाएँ ---"धर्मं हिंसा थतैव च " 

राम से बड़ा राम का नाम - - - -

आपदामपहर्तारम् दातारं सर्व सम्पदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामम् भूयो भूयो नमाम्यहम।
राम से बड़ा राम का नाम - - - - बात तब की है जब रामसेतु बनाया जा रहा था। भगवान राम ने देखा कि सब लोग सेतु निर्माण में प्रयोग होने वाले पत्थरों पर उनका नाम "राम" लिख कर फेंक रहे हैं और पत्थर पानी पर तैर जाते हैं। भगवान राम ने सोचा कि मुझे भी इस निर्माण कार्य में सहयोग करना चाहिए। सो उन्होंने पत्थर उठा कर पानी में फेंकने शुरू किये, परंतु उनके आश्चर्य की सीमा न रही कि सब पत्थर पानी में डूब जा रहे थे। उन्होंने अपने प्रिय हनुमान जी को बुलाया और पूछा कि हे पवनपुत्र! जो पत्थर आप लोग मेरा नाम लिख कर फेंक रहे हैं वो पानी पर तैर जाते हैं और जिन पत्थरों को मैं फेंकता हूँ वो डूब रहे हैं, ऐसा क्यों हो रहा है।
पवनपुत्र ने बहुत साधारण सा उत्तर दिया, प्रभु जिसे आप ही अपने हाथों से फेंक देंगे उसे कौन इस भवसागर में तैरा सकता है। इसीलिए कहा गया है कि राम से बड़ा राम का नाम।
राम नवमी के शुभ अवसर पर आपको एवं आपके परिवार, मित्रगण एवं सभी सखा सम्बन्धियों को हमारी हार्दिक शुभ कामनाएं।
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28 March 2015
Vivek Mishra

रविवार, 22 मार्च 2015

गरीब की बीवी गांव भर की भाभी होती है और अमीर की बीवी गांव भर की बहन।

गरीब की बीवी गांव भर की भाभी होती है और अमीर की बीवी गांव भर की बहन।
एक ही देश भारत , एक ही शहर कोलकाता , एक ही जुर्म बलात्कार, 13 मार्च को किया गया बेलूर मठ की साध्वी का और 14 मार्च को किया गया नाडिया जिले की एक ईसाई नन का। ऐसा क्या है हम भारतियों में, तमाम अन्य धर्मो के अनुयायियों में मीडिया की मानसिकता में कि एक के बलात्कार पर पूरा मीडिया और देश और ईसाई उस बलात्कार के दर्द से कराह उठता है और दूसरे बलात्कार में उसके मुंह से उफ्फ भी नहीं निकलता। 
एक देश भारत, दो राज्य, एक ही वर्ष के दो सटे हुए महीने,दो साम्प्रदायिक दंगे। जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ में अगस्त 2013 में सत्ताधारी विधायक और गृहमंत्री सज्जाद अहमद किचलू के नेतृत्व में पूर्वनियोजित दंगे जिसमे 1000 से ज्यादा हिन्दुओं की दुकानें जला दी गयीं ने अखबारों के बड़े से मुहं में छोटी से जुबान पायी और वहीँ ,सितम्बर 13 के मुज़्ज़फरनगर दंगे जो की हिन्दू लड़की के बलात्कार के बाद उसके भाईयों के टुकड़े किये जाने आर पुलिस की निष्क्रियता की दें थे महीनों तक मीडिया, संसद और विधानसभा की सुर्खिया बटोरते रहे। 
जहाँ गोधरा जनित गुजरात दंगे तो 12 साल तक सुर्खियां बटोरते हैं वहीँ बंग्लादेशियों द्वारा जनित असम दंगे, दंगों के साथ ही अपनी मौत मर जाते हैं।
आरएसएस द्वारा घर वापसी पर पूरा देश सूखे पत्ते की तरह कांपने लगता है, केरल और पूर्वोत्त्तर राज्यों में धर्मांतरण की चल रही बयार से एक तिनका भी नहीं हिलता । जबकि केरल सरकार ने  बीस लाख हिन्दुओं के ईसाइयत/ इस्लाम  में धर्मांतरण की बात स्वीकारते हुए, अपने बजट में धर्मान्तरित लोगों की स्थिति का जायज़ा लेने के लिए पांच करोड़ का प्रावधान किया है। वहीँ मध्यप्रदेश में 2000 हिन्दुओं की घर वापसी अखबारों की मुख्य खबर बन गयी। ईसाई स्कूलों में फ्री में बाइबिल बांटने की खबर नहीं बनती, मदरसों में हदीस पढने की खबर नहीं बनती लेकिन स्कूलों में गीता पढने के ज़िक्र भर से बहस छिड़ जाती है। 


 नवम्बर-14 में साक्षी महाराज के चार बच्चे पैदा करने का बयान ( वैसे व्यक्तिगत रूप से मैं भी उससे सहमत नहीं हूँ ) बहुत विवाद पैदा कर देता है लेकिन दक्षिण भारत में सायरो मालाबार चर्च ईसाईयों द्वारा हर पांचवें बच्चे के पैदा होने दस हजार रुपये देने की घोषणा कोई सुर्खियां नहीं बटोरती। 

   

असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा यदि एक प्रतिकार की आवाज़ बनते हैं हैं तो उग्रवादियों की तरह जेलों में प्रताड़ित किये जाते हैं लेकिन बंगाल के बर्दवान जिले में मौत का सामन बनाने वाले और कश्मीर के मसर्रत आलम खुले घूम रहे रहे हैं। 

वृन्दावन के एक मंदिर में तोड़फोड़ कर 150 वर्ष पुरानी अष्टधातु की मूर्तियाँ चोरी हो जाती हैं ,पद्मनभमन्दिर से 266 किलो सोना चोरी हो जाता है ,तिरुपति मंदिर से 12000 करोड़ के गहने चोरी हो जाते हैं, बालटाल में लंगरों में तोड़फोड़होती है ,श्रीनगर के शंकराचार्य मंदिर का नाम तख्ते सुलैमान हो जाता है गोवा के मंदिरों में तोड़फोड़ होती है कश्मीर में ही प्राचीन शीतला माता का मंदिर तोड़ कर वहां नमाज़ अदा की जाती है ,कोई खबर नहीं बनती लेकिन दिल्ली के एक चर्च टूटने से पूरी संसद हिल जाती है। 
सऊदी अरब में इस्लाम की और पैगमबर से सम्बंधित सबसे पहली , सबसे पुरानी और ऐतिहासिक मस्जिदे वहां की सरकार खुद तोड़ देती है, न भारत का मीडिया चिल्लाता है और न ही भारत के मुसलामानों का मज़हब खतरे में पड़ता है ,http://www.independent.co.uk/news/world/middle-east/medina-saudis-take-a-bulldozer-to-islams-history-8228795.html

लेकिन, लुटेरे मीर बाकी और औरंगज़ेब के हम कभी गुलाम थे शायद यही याद दिलाने के बाबरी मस्जिद का टूटना तो अज़ीमे गुनाह हो गया और हवा इतनी उलटी चला दी की काशी  और मथुरा का नाम लेना भी गुनाह हो गया है।
BBC और विदेशी मीडिया ने  निर्भया के बलात्कार का सहारा लेकर भारत को तो बलात्कारियों का देश बता दिया लेकिन यह बटन भूल गया कि इंग्लॅण्ड में हर 6 मिनट में और अमरीका में हर 25 सेकंड में एक बलात्कार होता है। 
क्यों कर रहा है भारतीय मीडिया और विदेशी मीडिया ऐसे और कैसे कर रहा है ????? नीचे एक लिंक दे रहा हूँ , यदि वो सही है तो आप लोग खुद समझ जायेंगे कि  ईसाई चर्च कैसे पैसा झोंक रहे हैं भारत में और इस मीडिया को ईसाईयों की चोट भर से भी दर्द क्यों होता है और हिन्दुओं की मौत पर अफ़सोस भी क्यों नहीं होता है। इस लिंक में CNN IBN के परिपेक्षय में दी गयी जानकारी को थोड़ा सा बदल लें, क्यूंकि पिछले वर्ष मई -14 मुकेश अम्बानी ने इस ग्रुप को खरीद लिया है और राजदीप सरदेसाई ने इंडिया टुडे ग्रुप ज्वाइन कर लिया है।    
और जो हिन्दू ही अतिअहं में हिन्दुओं को चुनौती देते हैं की तुम क्या कर रहे हो ??? उनके लिए भी नीचे लिंक दे रहा हूँ , कि जब सऊदी अरब दो लाख बैरल तेल के बराबर रुपये प्रतिदिन इस्लाम के विस्तार के लिए खर्च कर रहा है उनके सामने क्या हम दो लाख पैसे यानि कि बीस हज़ार रुपये प्रतिदिन भी अपने धर्म की रक्षा के लिए खर्च कर पाने की स्थिति में हैं ??? 

सही है गरीब की बीवी गांव भर की भाभी होती है और अमीर की बीवी गांव भर की बहन। 
आज का भारत पैसे से नहीं नैतिक मूल्यों से दिवालिया/गरीब  होता नज़र आ रहा है,जहाँ लोग दो स्त्रियों की अस्मिता की अलग अलग कीमत लगा रहे है, यकीन मानिये वे थाईलैंड के यौन बाजार से अपनी मानसिकता विकृत करके आये है ,जहाँ अलग अलग देशों की महिलाओं की अलग अलग कीमत लगायी जाती है वर्ना सामूहिक बलात्कार तो साध्वी का भी हुआ है और चीख किसी की सुनाई नहीं दी। 

विवेक मिश्र 
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मंगलवार, 17 मार्च 2015

आरक्षण समाधान नहीं समस्या है

कल NDTV ने एक छद्म मुसलमान से यह प्रश्न करवाया कि हिन्दुस्तान में मुसलामानों को नौकरी क्यों नहीं दी जाती है। कुछ दिन पहले केरल विधानसभा के बजट सत्र में दो बातें सामने आयीं,एक कि  ईसाईयों की सामाजिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए बजट में करोड़ों रुपयों का प्रावधान किया है और पिछले वर्षों में केरल में 20 लाख हिन्दुओं ने धर्मांतरण किया है। उत्तर प्रदेश के बजट में अल्संख्यंकों को लुभाने के लिए करोड़ों रुपयों का प्रावधान किया गया है। इसी के साथ कर्णाटक के एक मंत्री का बयां आया की अल्संख्यंकों को विदेश में पढ़ने के लिए 20 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी। तीन वर्ष पहले कर्णाटक के ही एक मंत्री का बयां आया था की अल्पसंख्यंकों के कर्जे ब्याज मुक्त कर दिए जाएँ। ये बात तो हुई विभिन्न सरकारों के अल्पसंख्यंकों की स्थिति को लेकर चिंतातुर होने की। 




क्या आपने कभी सोचा कि जिस आरक्षण व्यवस्था का प्रावधान 1950 में भारत सरकार ने किया था , उस वर्ष यदि किसी 18 वर्ष के व्यक्ति ने यदि आरक्षण का लाभ लिया होगा तो 2017 में उसकी पांचवीं पीढ़ी आरक्षण का लाभ लेने जा रही है। क्या आपको लगता है कि बाबू जगजीवन राम जो कि इंदिरागांधी के काल में केंद्रीय मंत्री रहे उनके परिवार की मीरा कुमार या किसी अन्य को आरक्षण दिया जाना चाहिए ??? पी एल पूनिया जो कि उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव रह चुके हैं उनके परिवार के किसी सदस्य को आरक्षण की दरकार है ???? और अब बहुत दूर नहीं जाते, एक डॉक्टर दम्पत्ति मेरे व्यक्तिगत मित्र हैं। उनकी बच्ची को जब इस वर्ष मेडिकल में दाखिला मिला तो हमने अपने बेटे को बहुत भला बुरा कहा कि देख लो फलां को प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला है और एक तुम नालायक हो कि मुहाने पर आ कर अटक गए। हाँ उस दिन मुझे कष्ट हुआ जब मेरे बेटे ने कहा की अगर वो अशोक अंकल के घर में पैदा होता तो उसे भी दाखिला मिलता। इस घटना के बाद मुझे पता चला कि मेरे मित्र अनुसूचित जाति के हैं। और शायद ये भी आरक्षण व्यवस्था का लाभ ले कर यहाँ तक पहुंचे हैं। क्या उनकी बच्ची को आरक्षण की ज़रुरत थी ???

वर्ष 1902 में शाहू जी महाराज ने अपनी रियासत में पहला आरक्षण का प्रावधान किया था। 1908 एवं 1909 में अंग्रेजी हुकूमत ने "मिंटो मार्ले " कानून बना कर भारत में आरक्षण की व्यवस्था लागु की थी। लेकिन वर्ष 2015  में यानि की 106 साल बाद भी अगर समस्या का निदान नहीं हो पाया है तो ज़रूर सिस्टम में कोई कमी है।
1950 से ही पब्लिक रिप्रजेंटेशन एक्ट के द्वारा हर पांच साल में आरक्षित वर्ग से लगभग 131 सांसद लोकसभा में पहुंचते है, क्या आपको लगता है कि वर्तमान चुनाव प्रणाली में कोई लखपति चुनाव लड़ सकता है ???? बसपा जो की आरक्षण का पुरज़ोर समर्थन करती है एक एक विधायक से टिकट आवंटन के लिए करोड़ों रुपये लेती है,क्या इन लोगों को वाकई आरक्षण की ज़रुरत है ???? जो आरक्षण विरोधी यह चाहते हैं कि आर्थिक आधार पर आरक्षण होना चाहिए उनसे भी में सहमत नहीं हूँ ??? भ्रष्ट भारतीय तंत्र में BPL कार्ड बनवाना कोई बहुत कठिन कार्य  नहीं है।  सरकारें निशुल्क किताबें बाँट रहीं हैं , सरकारी विद्यालयों में फीस न के बराबर है, इंजिनीरिंग तक की पढाई में वजीफे बांटे जा रहे हैं और इन सबके बाद आरक्षण और फिर पदोनन्ति के लिए आरक्षण पर आरक्षण। हर कदम पर सरकारें समाज में विद्वेष पैदा करके इसे विभक्त किये जा रही हैं। जितना पैसा सरकारें इन साधनों पर खर्च कर रही हैं , उसमे यदि सरकारी विद्यालयों में शिक्षा पूर्णताः निशुल्क करके अनिवार्य कर दें, जो वर्तमान में आरक्षित वर्ग है और जिसके परिवार ने अभी तक आरक्षण का लाभ नहीं लिया है उनके लिए उत्कृष्ट किस्म की कोचिंग खोल दें या वर्तमान कोचिंग चलाने वालों को ऐसे विद्यार्थियों को पढने के लिए सब्सिडी दे दे। निःशुल्क पढाई और कोचिंग आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के अभ्यर्थियों को उनकी आयु के 28 वर्ष तक दी जाये। तत्पश्चात विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर निशुल्क कर दें और अंत में योग्यता के आधार पर चयन करें तो कहीं से बहुत बोझ नहीं बढ़ेगा सरकारी बजट पर परन्तु समाज में फैलता हुआ यह विद्वेष का ज़हर कहीं तो रुकेगा।  
यदि पूरे विश्व में यही शोषण का रोना रोया जाये तो रूस के ज़ारों ने , चीन और फ्रांस के राजाओं ने शोषण की हदें पार की थीं लेकिन आज वहां का समाज किसी जाति व्यवस्था के लिए इसे दोषी नहीं ठहराता, 2000 सालों तक यहूदियों का पूरे विश्व में बुरी तरह से शोषण हुआ क्या आज किसी यहूदी को किसी के आगे हाथ फैलाते देखा है क्या ??? और भूख से मरते हुए सोमालिया का समाज अपनी भुखमरी और पिछड़ेपन के लिए किसी ऐतिहासिक मिथ्या का सहारा नहीं लेता। आरक्षण से आप Engineering और Medical संस्थानों एडमिशन करा सकते हैं,500 में से 11 नंबर पाने अध्यापकों को नौकरी दे कर देश का अहित ही कर रहे हैं। 

जिस भी वर्ष में इस व्यवस्था को कड़ाई से लागु किया जायेगा उसके 20 वर्ष पश्चात भारत के पास बौद्धिक योग्यता और क्षमता वाली पीढ़ी होगी।जब वाकई राष्ट्रहित या गुणवत्ता की बात आती है तो भारत में Homi Bhabha National Institute, तथा इसकी दस अन्य इकाइयों में , तथा अंतरिक्ष अनुसन्धान प्रोगशालाओं  जैसे 8 संस्थानों में  एवं सैन्य बलों आरक्षण की व्यवस्था नहीं है। क्यों ? 

सोमवार, 16 मार्च 2015

'जब हिन्दू बटा, तब हिन्दू कटा'

ढाई इंच की चमड़े की लचीली ज़ुबान से ब्राह्मणो ठाकुरो वैश्यों और वर्णव्यवस्था को गाली देने में कत्तई मेहनत नहीं लगती, कोई भी दे सकता है। लेकिन मेहनत लगती है 2500 वर्षो के इतिहास का सही अवलोकन करने में जो कोई करना नहीं चाहता।
मैं भली भाँति जनता हूँ की 25-30 से ज्यादा लोग इस लेख को पूरा पढ़ेंगे भी नहीं ,न ही मेरे इस लेख से कोई वैचारिक क्रांति ही आएगी, न ही हिन्दू लड़ना छोड़ेंगे और न ही एक भी "जय भीम"कहने वाला अपनी सोच बदल लेगा। लेकिन जो लोग जानकारी के आभाव में जब कट्टर वर्णव्यवस्था के कारण अपराधबोध से ग्रस्त अपने आपको तर्कहीन महसूस करते हैं, वे इसे अंत तक जरूर पढ़ें। इस लेख को मेरे ब्राह्मण होने से ब्राह्मणों की वकालत न समझ कर,सिर्फ हिन्दुओं की गलतफहमी और आपसी मतभेद दूर करने के नज़रिये से बिना किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर पढ़ें तथा मनन करें की एक पक्षीय और अधूरे इतिहास को पढ़ाने का ही नतीजा है आज हिन्दू समाज में फैली हुई वैमनस्यता तथा मतान्तर।
लेख बहुत लम्बा और बोरिंग न हो जाये इसलिए बहुत संक्षेप में लिखने का प्रयत्न करूँगा ,तथा इतिहास की कुछ पुस्तकों एवं लिंक के नाम भी लेख के बीच में दे रहा हूं , जिन्हे कोई शक शुबा हो वे उन पुस्तकों एवं लिंक का अध्ययन करके अपना मत निर्धारित कर सकते हैं।
पिछले चार दिनों में एक साथ निम्न चार वाक्यों ने मुझे आज लिखने के लिए मजबूर कर दिया ----------
जय भीम -जय मीम , इस नारे के साथ 100 यू पी की सीटों पर चुनाव लड़ेंगे ओवैसी। ( टाइम्स ऑफ़ इंडिया -3 फरवरी)
चलो हिन्दू धर्म और धर्म ग्रंथो को छोड़ कर नास्तिक हो जाएँ। (फेसबुक पर एक पोस्ट)
कल फेसबुक पर मेरे एक कमेंट के जवाब में यह प्रतिउत्तर आना ---"क्या कमाल है वीदेशी लोग बता रहे है ' जय भारत ' पहले आना चाहीये" ।
या जब कभी मैं जाति प्रथा की कट्टरता के लिए मात्र दो पक्षों को कटघरे में खड़ा पता हूँ और फिर हिन्दुओं को आपस में फेसबुक या ज़मीन पर लड़ता हुआ पता हूँ तो मन कराह उठता है ,कि हम लोगों ने 1500 वर्षों की शारीरिक गुलामी ही नहीं की बल्कि इतने कट्टर मानसिक गुलाम हो गए की जहाँ वो अकबर तो महान हो गया जिसके राज में 500000 लोगों को गुलाम बना मुसलमान बना दिया , लेकिन उसने अपनी सत्ता न मनाने वाले चित्तौड़गढ़ के 38000 राजपूतों को कटवा दिया था , उस का महिमामंडन करने के लिए एकतरफा चलचित्र भी बने ,ग्रन्थ भी लिखे गए और सीरियल भी बने लेकिन महाराणा प्रताप,गुरु गोबिंद सिंह जी ,गुरु तेग बहादुर , रानी लक्ष्मी बाई को दो पन्नो में समेट दिया गया और पन्ना धाय को बिलकुल ही विस्मृत कर दिया गया। इसका सबसे ताजातरीन उदाहरण है, कुछ माह पहले रिलीज हुई फिल्म "हैदर" - - 25 साल के सैन्य बलों के कश्मीर में बलिदान को ढ़ाई घंटे की फिल्म में धो कर रख दिया, और कहीं यह नहीं बताया कि सिर्फ 50 सालों में कश्मीर घाटी के 10 लाख हिंदू 3000 के अंदर कैसे सिमट गये, उर्दू राष्ट्रीय सहारा समाचार पत्र के पूर्व मुख्य सम्पादक "अजीज बर्नी" ने कसाब के पकड़े जाने के बाद एक पुस्तक लिखी "RSS का षड्यंत्र" , जिसका विमोचन कांग्रेस के उपाध्यक्ष "दिग्विजय सिंह" ने किया था, उस पुस्तक के अनुसार 26/11 का मुम्बई हमला RSS ने करवाया था। अगर इसी पुस्तक को राज संरक्षण प्राप्त हो जाये और स्कूलों में पढ़ाई जाने लगे तो 50 साल बाद RSS को सफाई देनी मुश्किल पड़ जायेगी। स्कूली किताबों से इस इतिहास को कैसे हटाया गया यह जानने के लिए "NCERT controversy",and keywords like that Google search कर लें।
सबसे अहम बात यह है कि यह इतिहास लिखा किसने ??? भारत के सबसे बुजुर्ग इतिहासकार "राजेन्द्र लाल मित्रा 1822 में पैदा हुए थे। 1880 के दशक तथा 1900 दशक में पहली बार वैज्ञानिक विधि से इतिहास का अवलोकन किया जाये इस पर चर्चा हुई थी। 1899 में रबिन्द्र नाथ टैगोर पहली बार "भारती " नाम की पत्रिका में "अक्षय कुमार मित्रा" नाम के नवोदित इतिहासकार के Oitihashik chitra (Historical Vignettes), नाम की शोध पत्रिका की प्रशंसा करते हुए एक लेख लिखा था " Enthusiasm for History" । 1919 बंगाल यूनिवर्सिटी पहली बार आधुनिक एवं मध्यकालीन इतिहास का परास्नातक पाठयक्रम शुरू किया गया ,1920 से 1930 तक के काल खंड में अन्य विश्वविद्यालयों में इतिहास के विभाग खोले गए तथा स्नातक स्तर पर इतिहास पढने की शुरुआत की गयी। तो फिर प्राचीन भारत में वर्ण व्यवस्था पर आधिकारिक इतिहास किसने लिखा और किस आधार पर लिखा ??????
http://publicculture.org/…/the-public-life-of-history-an-ar…
अंग्रेजों ने इतिहास और त्थयों को तोड़ा मरोड़ा और एक नया इतिहास रच दिया जिसके चलते आज के अम्बेडकरवादी अन्य लोगों को विदेशी और खुद को भारत का मूल नागरिक बताते हैं।वर्तमान में अम्बेडकर जी के जो अनुयायी, अंग्रेज़ों की फुट डालो और राज करो की राजनीती के तहत विदेशी आर्यों और मूलनिवासियों का मुद्दा उठा रहे हैं , वे अम्बेडकर जी के शोध पर ही प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। "Ambedkar W&S1948, Chapter Six", में रिसले की " Aryan Invasion Theory" का "Nasal Index Data" के आधार पर भंडा फोड़ते हुए अम्बेडकर जी ने साफ़ साफ़ लिखा कि यदि " ब्राह्मण आर्य थे तो शूद्र भी आर्य थे , यदि ब्राह्मण आर्य नहीं थे तो शूद्र भी आर्य नहीं थे, और "The Untouchables, Who were they, and why they became" में डॉ अम्बेडकर ने क्षत्रिय कैसे शूद्र बने या शूद्र राजा कैसे अछूत बने इसके कारणों की विवेचना की है।
अम्बेदकरवादी " Aryans, Jews, Brahmins :Theorising Authority Through Myths Of Identity " By Dorothy M.Figueira, published by Navayana,अवश्य पढ़ लें तथा जो बहुत से अम्बेडकरवादी कमेंट बॉक्स में हिंदी में लिखने की बात करते हैं, उनके लिए यह लिंक पढ़ना मुश्किल होगा, अतः उनसे निवेदन है की किसी से पढ़वा कर अपना भ्रम ज़रूर दूर कर लें अन्यथा , आप के दिल में अन्य जातियों के लिए अंग्रेजों द्वारा भरा गया ज़हर हमेशा भरा रहेगा जो की भविष्य में देश के लिए अहितकर होगा।
http://tribhuvanuvach.blogspot.in/2014/10/parit-3.html
http://epaper.indianexpress.com/…/Indian-Exp…/13-March-2015…
बात शुरू करता हूँ , उन अतिज्ञानियों के ज्ञान से जिन्होंने शायद ही कभी "मनु समृति"का अध्ययन किया होगा लेकिन जयपुर हाई कोर्ट परिसर में महर्षि मनु की 28 जून 1989 को मूर्ती लगने पर विरोध प्रगट किया और 28 जुलाई 1989 को हाई कोर्ट की फुल बेंच ने अपने पूरे ज्ञान का परिचय देते हुए 48 घंटे में मूर्ती हटाने का आदेश पारित कर दिया।लेकिन दूसरी तरफ से भी अपना पक्ष रखा गया और तीन दिन के लगातार बहस के दौरान मनु के आलोचक पक्ष के वकील मनु को गलत साबित नहीं कर पाये और एक अंतरिम आदेश के साथ अपना पूर्व में मूर्ती हटाने का आदेशहाई कोर्ट को स्थगित करना पड़ा । मूर्ती आज भी वहीँ है। इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी नीचे दिए गए लिंक में पढ़ी जा सकती है।
https://www.google.co.in/url…
अब इससे पीछे चलते हैं वर्तमान के दलित मसीहा, रामविलास पासवान पर --- क्या उन्होंने अपनी पहली पत्नी को तलाक दे कर उन पर अत्याचार नहीं किया??? या यहाँ पर भी नीना शर्मा (एक पंजाबी ब्राह्मण),उनकी दूसरी पत्नी जिसने एक दलित से शादी की ने ब्राह्मणत्व की धारणा को तोड़ कर एक दलित से शादी नहीं की।
इससे और पीछे चलते हैं, भीम राव अम्बेडकर पर -- "जय भीम" तो बहुत बोला जाता है ,क्या डा. सविता , आंबेडकर जी की पत्नी जो की पुणे के कट्टर ब्राह्मण परिवार से थीं ,उन्होंने क्या जाती पाती के बंधनों की परवाह की थी। और अम्बेडकरवादियों ने बहुत कुशलता से आंबेडकर द्वारा रचित The Buddha And His Dharma जो की उनकी मृत्यु के पश्चात प्रकाशित हुई की मूल प्रस्तावना जो की उन्होंने 15 मार्च 1956 लिखी थी ,को छुपा दिया जिसमे उन्होंने अपनी ब्राह्मण पत्नी और उन ब्राह्मण अध्यापकों ( महादेव आंबेडकर, पेंडसे, कृष्णा जी अर्जुन कुलेसकर ,बापूराव जोशी ) की हृदयस्पर्शी चर्चा की थी। बहुत आसान है महादेव आंबेडकर का भीमराव को अपने घर में खाना खिलाना भूलना ,बहुत आसान है ब्राह्मण सविता देवी का जीवन भुलाना और बहुत आसान है कृष्णा जी अर्जुन कुलेसकर नामक उस ब्राह्मण को भुलाना जिसने भीमराव को "महात्मा बुद्ध " पर पढ़ने को पुस्तक दी और भीमराव बौधि हो गए।
http://www.thoughtnaction.co.in/dr-ambedkar-and-brahmins/
उपरोक्त उदाहरणों से मैं यह सिद्ध करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ ,की इस समय में वर्णव्यवस्था का कट्टरपन अपने चरमोत्कर्ष पर नहीं था। बहुत विद्रूप थी इस समय और इससे पहले वर्णव्यवस्था। लेकिन वर्णव्यवस्था में विद्रूपता और कट्टरपन क्यों कब और कैसे आया ,क्या कभी किसी ने वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास के इतर कुछ पढ़ने की कोशिश की ???? जो और जितना पढ़ाया गया उसी को समग्र मान कर चल पढ़े भेड़चाल और लगे धर्मग्रंथों और उच्च जातियों को गलियां देने।
मनु स्मृति और अन्य धर्मशास्त्रों में वर्णव्यवस्था "कर्म आधारित" थी और कर्म के आधार पर कोई भी अपना वर्ण बदलने के लिए स्वतंत्र था। आज का समाज जाति बंधन तो छोड़िये किसी भी बंधन को न स्वीकारने के दसियों तर्क कुतर्क दे सकता है। लेकिन वर्णव्यस्था पर उंगली उठाने वालों के लिए " vedictruth: वेद और शूद्र " vedictruth.blogspot.com में एक सारगर्भित लेख है।इसके बाद भी कोई अगर कुतर्क दे तो उसे मानव मन का अति कल्पनाशील होना ही मानूंगा।
इतिहास में बहुत पीछे न जाते हुए, चन्द्रगुप्त मौर्य (340 BC -298 BC) से शरुआत करते हुए बताना चाहूंगा, कि चन्द्रगुप्त के प्रारंभिक जीवन के बारे में तो इतिहासकारों को बहुत कुछ नहीं मालूम है परन्तु ,"मुद्राराक्षस" में उसे कुलविहीन बताया गया है। जो की बाद में चल कर यदि उस समय वर्णव्यवस्था थी तो उसे तोड़ते हुए अपने समय का एक शक्तिशाली राजा बना। इसी समय "सेल्यूकस" के दूत "मैगस्थनीज़" के यात्रा वृतांत के अनुसार उस समय इसी चतुर्वर्ण में ही कई जातियाँ 1) दार्शनिक 2) कृषि 3)सैनिक 4) निरीक्षक /पर्यवेक्षक 5) पार्षद 6) कर निर्धारक 7) चरवाहे 8) सफाई कर्मचारी और 9 ) कारीगर हुआ करते थे। लेकिन चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री "कौटिल्य" के अर्थशास्त्र एवं नीतिसार अनुसार, किसी के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार की कठोर सज़ा थी। यहाँ तक की वैसे तो उस समय दास प्रथा नहीं थी लेकिन चाणक्य के अनुसार यदि किसी को मजबूरी में खुद दास बनना पड़े तो भी उससे कोई नीच अथवा अधर्म का कार्य नहीं करवाया जा सकता था।ऐसा करने की स्थिति में दास दासता के बन्धन से स्वमुक्त हो जाता था।सब अपना व्यवसाय चयन करने के लिए स्वतंत्र थे तथा उनसे यह अपेक्षा की जाती थी वे धर्मानुसार उनका निष्पादन करेंगे । मौर्य वंश के इतिहास में कहीं भी शूद्रों के साथ अमानवीय या भेदभावपूर्ण व्यवहार का लेखन पढ़ने में नहीं आया। जब दासों के प्रति इतनी न्यायोचित व्यवस्था थी , तो आम जन तो नीतिशास्त्रों से शासित किये ही जाते थे। एक बात का और उल्लेख यहाँ करना चाहूंगा,इस समय तक वैदिक भागवत धर्म का अधिकांश लोग पालन करते थे लेकिन बौद्ध तथा जैन धर्मों में अपने प्रवर्तकों की सुन्दर सुन्दर मूर्तियों की पूजा की देखा देखि इसी समय पर वैदिक धर्म में मूर्ती पूजा का पर्दुभाव हुआ। इसी समय पर भगवानों के सुन्दर सुन्दर रूपों की कल्पना कर के उन्हें मंदिरों में प्रतिष्ठित किया जाने लगा।
जी इस त्तथ्य पर दुबारा गौर करें, इस समय तक हिन्दू वैदिक धर्म का पालन करते हुए हवन यज्ञो द्वारा निर्गुण तथा निराकार परमेश्वर की पूजा किया करते थे। और मनुस्मृति को पानी पी पी कर कोसने वालों को मालूम होना चाहिए कि मनु स्मृति इस काल से बहुत पहले तब लिखी गयी थी जब निराकार ईश्वर को पूजा जाता था। मुख से ब्राह्मण पैदा हुए थे मनु का सांकेतिक तात्पर्य था कि सुवचन और सुबुद्धि के गुणों के द्वारा ब्राह्मणो का जन्म हुआ। यह एक सांकेतिक तात्पर्य था कि भुजाओं के बल के द्योतक क्षत्रिय बने। और यही सांकेतिक तात्पर्य था कि जीविकोपार्जन के कर्मो से वैश्यों का जन्म हुआ और श्रम का काम करने वाले चरणो से शूद्रों का जन्म हुआ। या जिनमे ये गुण जैसे हैं वे उन वर्णों में गुणों और कर्मों के आधार पर विभाजित किये जाएँ।
यहीं यदि मनु श्रम को भुजाओं से जोड़ कर लिख देते कि भुजाओं से शूद्रो का जन्म हुआ तो क्या चरणों से युद्ध में भाग लेने वाले क्षत्रिय नीच वर्ण के हो जाते ????? दोष निकलने वाले उसमे भी दोष निकल लेते क्योंकि उन्हें न अपनी अकर्मण्यता में कोई दोष नज़र आता है और न वे इतिहास और तदोपरांत के घटनाक्रम में अपनी अज्ञानता के चलते कोई दोष ढूंढ पाते हैं।
चन्द्रगुप्त मौर्य के लगभग 800 वर्ष पश्चात चीनी तीर्थयात्री "फा हियान" चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय भारत आया उसके अनुसार वर्णव्यवस्था बहुत कठोर नहीं थी,ब्राह्मण व्यापर ,वास्तुकला तथा अन्य प्रकार की सेवाएं दिया करते थे ,क्षत्रिय वणिजियक एवं औद्योगिक कार्य किया करते थे ,वैश्य राजा ही थे ,शूद्र तथा वैश्य व्यापर तथा खेती बड़ी करते थे। कसाई, शिकारी ,मच्छली पकड़ने वाले,माँसाहार करने वाले अछूत समझे जाते थे तथा "वे" नगर के बाहर रहते थे। गंभीर अपराध न के बराबर थे ,अधिकांश लोग शाकाहारी थे। इसीलिए इसे भारतवर्ष का स्वर्ण काल भी कहा जाता है।
यही बातें "हुएंन- त्सांग "ने वर्ष 631-644 AD तक अपने भारत भ्रमण के दौरान लिखीं।उस समय विधवा विवाह पर प्रतिबन्ध नहीं था, सती प्रथा नहीं थी, पर्दा प्रथा नहीं थी , दास प्रथा नहीं थी , हिजड़े नहीं बनाये जाते थे , जौहर प्रथा नहीं थी ,ठगी गिरोह नहीं हुआ करते थे, क़त्ल नहीं हुआ करते थे ,बलात्कार नहीं हुआ करते थे, सभी वर्ण आपस में बहुत सौहाद्रपूर्ण तरीके से रहते थे और ..........…… वर्ण व्यवस्था इतनी कट्टर नहीं हुआ करती थी।यह भारत का स्वर्णकाल कहलाता है। फिर ये सारी कुरीतियां वैदिक धर्म में कहाँ से आ गयीं।
इसी स्वर्णकाल के समय लगभग वर्ष 500 AD में जो तीन विशेष कारण जिनकी वजह से वैदिक धर्म का लचीलापन खत्म होना शुरू हुआ, मेरी समझ से वे थे, मध्य एशिया से जाहिल हूणों के आक्रमण तथा उनका भारतीय समाज में घुलना मिलना, बौद्ध धर्म में "वज्रायन" सम्प्रदाय जिसके भिक्षु एवं भिक्षुणियों ने अश्लीलता की सीमाएं तोड़ दी थी, तथा बौद्धों द्वारा वेद शिक्षा बिल्कुल नकार दी गई थी एवं "चर्वाक" सिद्धांत पंच मकार - - मांस,मछली, मद्य, मुद्रा और मैथुन ही जीवन का सार थे का जनसाधारण में लोकप्रिय होना।
3000 साल पुराना ,शूद्रों पर अत्याचारों का राग अलाप कर #मनुस्मृति_जलाने वालों के लिए तत्कालीन हिन्दू समाज के विषय में इस मुस्लिम इतिहासकार ने क्या देखा उसे पढ़ना नितांत आवश्यक है। वर्ष 1030 में महमूद ग़ज़नवी के समय में #अल_बरूनी ( 5 सितम्बर 973 -13 दिसम्बर 1048) महमूद ग़ज़नवी के साथ भारत आया और #1030 तक "किताब तारीख अल हिन्द " पूरी कर ली।) क्या लिखता है कि --- पारम्परिक हिन्दू समाज चार वर्णो और अंत्यज ( जो किसी जाति में नहीं आते थे) में विभाजित हुआ करता था , लेकिन उसने उच्च जातियों द्वारा नीच जातियों पर अत्याचारों का कोई ज़िक्र नहीं किया। बावजूद इसके कि चारों वर्ण एक दूसरे से भिन्न थे लेकिन वे शहरों और गांवों में एक साथ रहते थे और एक दूसरे के घरों में घुला मिला करते थे।
http://www.columbia.edu/…/p…/ldpd_5949073_001_00000157.html…

इस सन्दर्भ में नेहरू और वामपंथियों पर भारतीय मूल के ब्रिटेन में रहने वाले प्रख्यात लेखक --V.S Naipaul ने कटाक्ष करते हुए "The Pioneer" समाचार पत्र में एक लेख लिखा ---- " आप अपने इतिहास को नज़रअंदाज़ कैसे कर सकते हैं ?? लेकिन स्वराज और आज़ादी की लड़ाई ने इसे नज़रअंदाज़ किया है। आप जवाहर लाल नेहरू की Glimpses of World History पढ़ें , ये भारतीय पौराणिक कथाओं के बारे में बताते बताते आक्रान्ताओं के आक्रमण पर पहुँच जाता है। फिर चीन से आये हुए तीर्थयात्री बिहार नालंदा और अनेकों जगह पहुँच जाते हैं। पर आप यह नहीं बताते की फिर क्या हुआ ,क्यों आज अनेकों जगह, जहाँ का गौरवपूर्ण इतिहास था खंडहर क्यों हैं ??? आप यह नहीं बताते की भुबनेश्वर, काशी और मथुरा को कैसे अपवित्र किया गया। "
वर्णव्यवस्था के लचीलेपन के ख़त्म होने के एक से बढ़ कर एक कारण हैं, जो मेरी नज़र में सबसे अहम कारण है उसे सबसे अंत में लिखूंगा।
लेकिन जो इतिहास हमें पढ़ाया गया है ,उसमे सोमनाथ के मंदिर को लूटना तो बताया गया है परन्तु महमूद ग़ज़नवी ने कंधार के रास्ते आते और जाते हुए मृत्यु का क्या तांडव खेला कभी नहीं बताया जाता। उसमे 1206 के मोहम्मद गौरी से लेकर 1857 तक के बहादुर शाह ज़फर का अधूरा चित्रण ही आपके सामने किया गया है, पूरा सच शायद बताने से मुस्लिम वर्ग नाराज़ हो जाता। और वैसे भी जैसा की वीर सावरकर ने 1946 लिख दिया था, कि लम्बे समय तक सत्ता में बने रहने के लिए तत्कालीन कांग्रेस के नेताओं ने यही रणनीति बनायीं थी की ,हिन्दुओं में फूट डाली जाये और मुस्लिमों का तुष्टिकरण किया जाये। इसी का आज यह दुष्परिणाम है की न तो मुस्लिम आक्रान्ताओं का पूरा इतिहास ही पढ़ाया गया और आज हिन्दू पूरी जानकारी के आभाव में वर्णव्यवस्था के नाम पर चाहे सड़क हो चाहे फेसबुक कहीं पर भी भिड़ जाते हैं।
जी हाँ हमारा इतिहास यह नहीं बताता की वर्ष 1000 AD की भारत की जनसँख्या 15 करोड़ से घट कर वर्ष 1500 AD में 10 करोड़ क्यों रह गयी थी ??? नीचे जो लिख रहा हूँ उसमे जबरन धर्म परिवर्तन, बलात्कार ,कत्ले आम, कम उम्र के लड़कों का हिजड़ा बनाया जाना आप खुद जोड़ते जाईयेगा।
( नीचे दिए हुए तथ्य ,1)Islam's India slave Part-1,by M.A Khan, 2)"The Legacy of Jihad: Islamic Holy war and the fate of non non -Muslims By A.G Bostom.and 3)Slave trading During Mulim rule, by K.S Lal 4),‘The sword of the prophet.’ By Trifkovic, S. - - Regina Orthodox Press, Inc. 2002.
से लिए गए हैं )
http://islammonitor.org/index.php…
http://www.islam-watch.org/…/islamic-jihad-legacy-of-forced… ( two must read links, to understand the summary)
उपरोक्त पुस्तक जो की कई अन्य पुस्तकों का निचोड़ हैं , का सारांश नीचे लिख रहा हूँ ---------
1 )महमूद ग़ज़नवी ---वर्ष 997 से 1030 तक 2000000 , बीस लाख सिर्फ बीस लाख लोगों को महमूद ग़ज़नवी ने तो क़त्ल किया था और 750000 सात लाख पचास हज़ार लोगों को गुलाम बना कर भारत से ले गया था 17 बार के आक्रमण के दौरान (997 -1030). ---- जिन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया , वे शूद्र बना कर इस्लाम में शामिल कर लिए गए। इनमे ब्राह्मण भी थे क्षत्रिय भी वैश्य भी और शूद्र तो थे ही।
2 ) दिल्ली सल्तनत --1206 से 1210 ---- कुतुबुद्दीन ऐबक --- सिर्फ 20000 गुलाम राजा भीम से लिए थे और 50000 गुलाम कालिंजर के राजा से लिए थे। जो नहीं माना उनकी बस्तियों की बस्तियां उजाड़ दीं। गुलामों की उस समय यह हालत हो गयी कि गरीब से गरीब मुसलमान के पास भी सैंकड़ों हिन्दू गुलाम हुआ करते थे ।
3) इल्ल्तुत्मिश ---1236-- जो भी मिलता उसे गुलाम बना कर, उस पर इस्लाम थोप देता था।
4) बलबन ----1250-60 --- ने एक राजाज्ञा निकल दी थी , 8 वर्ष से ऊपर का कोई भी आदमी मिले उसे मौत के घाट उत्तर दो। महिलाओं और लड़कियों वो गुलाम बना लिया करता था। उसने भी शहर के शहर खाली कर दिए।
5) अलाउद्दीन ख़िलजी ---- 1296 -1316 -- अपने सोमनाथ की लूट के दौरान उसने कम उम्र की 20000 हज़ार लड़कियों को दासी बनाया, और अपने शासन में इतने लड़के और लड़कियों को गुलाम बनाया कि गिनती कलम से लिखी नहीं जा सकती। उसने हज़ारों क़त्ल करे थे और उसके गुलमखाने में 50000 लड़के थे और 70000 गुलाम लगातार उसके लिए इमारतें बनाने का काम करते थे। इस समय का ज़िक्र आमिर खुसरो के लफ़्ज़ों में इस प्रकार है " तुर्क जहाँ चाहे से हिंदुओं को उठा लेते थे और जहाँ चाहे बेच देते थे।
6) मोहम्मद तुगलक ---1325 -1351 ---इसके समय पर इतने कैदी हो गए थे की हज़ारों की संख्या में रोज़ कौड़ियों के दाम पर बेचे जाते थे।
7) फ़िरोज़ शाह तुगलक -- 1351 -1388 -- इसके पास 180000 गुलाम थे जिसमे से 40000 इसके महल की सुरक्षा में लगे हुए थे। इसी समय "इब्न बतूता " लिखते हैं की क़त्ल करने और गुलाम बनाने की वज़ह से गांव के गांव खाली हो गए थे। गुलाम खरीदने और बेचने के लिए खुरासान ,गज़नी,कंधार,काबुल और समरकंद मुख्य मंडियां हुआ करती थीं। वहां पर इस्तांबुल,इराक और चीन से से भी गुलाम ल कर बेचे जाते थे।
8) तैमूर लंग --1398/99 --- As per "Malfuzat-i-Taimuri" इसने दिल्ली पर हमले के दौरान 100000 गुलामों को मौत के घाट उतरने के पश्चात ,2 से ढ़ाई लाख कारीगर गुलाम बना कर समरकंद और मध्य एशिया ले गया।
9) सैय्यद वंश --1400-1451 -- हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं बदला, इसने कटिहार ,मालवा और अलवर को लूटा और जो पकड़ में आया उसे या तो मार दिया या गुलाम बना लिया।
10) लोधी वंश-1451--1525 ---- इसके सुल्तान बहलूल ने नीमसार से हिन्दुओं का पूरी तरह से वंशनाश कर दिया और उसके बेटे सिकंदर लोधी ने यही हाल रीवां और ग्वालियर का किया।
11 ) मुग़ल राज्य --1525 -1707 --- बाबर -- इतिहास में ,क़ुरान की कंठस्थ आयतों ,कत्लेआम और गुलाम बनाने के लिए ही जाना जाता है।
12 ) अकबर ---1556 -1605 ---- बहुत महान थे यह अकबर महाशय , चित्तोड़ ने जब इनकी सत्ता मानाने से इंकार कर दिया तो इन्होने 24 फरवरी 1568 को एक दिन में 30000 चित्तौड़ में पकडे हुए हिन्दुओं का क़त्ल किया था। और इसी दिन 8000 चित्तौड़ की महिलाओं ने , मुगलों के हाथ पड़ कर बेइज़्ज़त न होने के कारण एक साथ जौहर किया था। । कहते हैं की इन्होने गुलाम प्रथा रोकने की बहुत कोशिश की फिर भी इसके हरम में 5000 महिलाएं थीं। इनके समय में ज्यादातर लड़कों को खासतौर पर बंगाल की तरफ अपहरण किया जाता था और उन्हें हिजड़ा बना दिया जाता था। इनके मुख्य सेनापति अब्दुल्लाह खान उज़्बेग, की अगर मानी जाये तो उसने 500000 पुरुष और गुलाम बना कर मुसलमान बनाया था और उसके हिसाब से क़यामत के दिन तक वह लोग एक करोड़ हो जायेंगे।
13 ) जहांगीर 1605 --1627 --- इन साहब के हिसाब से इनके और इनके बाप के शासन काल में 5 से 600000 मूर्तिपूजकों का कत्ल किया गया था औरसिर्फ 1619-20 में ही इसने 200000 हिन्दू गुलामों को ईरान में बेचा था।
14) शाहजहाँ 1628 --1658 ----इसके राज में इस्लाम बस ही कानून था, या तो मुसलमान बन जाओ या मौत के घाट उत्तर जाओ। आगरा में एक दिन इसने 4000 हिन्दुओं को मौत के घाट उतरा था। जवान लड़कियां इसके हरम भेज दी जाती थीं। इसके हरम में सिर्फ 8000 औरतें थी।
15) औरंगज़ेब--1658-1707 -- इसके बारे में तो बस इतना ही कहा जा सकता है की ,जब तक सवा मन जनेऊ नहीं तुलवा लेता था पानी नहीं पीता था। बाकि काशी मथुरा और अयोध्या इसी की देन हैं। मथुरा के मंदिर 200 सालों में बने थे इसने अपने 50 साल के शासन में मिट्टी में मिला दिए। गोलकुंडा में 1659 सिर्फ 22000 लड़कों को हिजड़ा बनाया था।
16)फर्रुख्सियार -- 1713 -1719 ,यही शख्स है जो नेहरू परिवार को कश्मीर से दिल्ली ले कर आया था, और गुरदासपुर में हजारों सिखों को मार और गुलाम बनाया था।
17) नादिर शाह --1738 भारत आया सिर्फ 200000 लोगों को मौत के घाट उत्तर कर हज़ारों सुन्दर लड़कियों को और बेशुमार दौलत ले कर चला गया।
18) अहमद शाह अब्दाली --- 1757-1760 -1761 ----पानीपत की लड़ाई में मराठों युद्ध के दौरान हज़ारों लोग मरे ,और एक बार में यह 22000 लोगों को गुलाम बना कर ले गया था।
19) टीपू सुल्तान ---1750 - 1799 ----त्रावणकोर के युद्ध में इसने 10000 हिन्दू और ईसाईयों को मारा था एक मुस्लिम किताब के हिसाब से कुर्ग में रहने वाले 70000 हिन्दुओं को इसने मुसलमान बनाया था।
ऐसा नहीं कि हिंदुओं ने डटकर मुकाबला नहीं किया था, बहुत किया था, उसके बाद ही इस संख्या का निर्धारण इतिहासकारों ने किया जो कि उपरोक्त दी गई पुस्तकों एवं लिंक में दिया गया है ।
गुलाम हिन्दू चाहे मुसलमान बने या नहीं ,उन्हें नीचा दिखाने के लिए इनसे अस्तबलों का , हाथियों को रखने का, सिपाहियों के सेवक होने का और बेइज़्ज़त करने के लिए साफ सफाई करने के काम दिए जाते थे। जो गुलाम नहीं भी बने उच्च वर्ण के लोग वैसे ही सब कुछ लूटा कर, अपना धर्म न छोड़ने के फेर में जजिया और तमाम तरीके के कर चुकाते चुकाते समाज में वैसे ही नीचे की पायदान शूद्रता पर पहुँच गए। जो आतताइयों से जान बचा कर जंगलों में भाग गए जिन्दा रहने के उन्होंने मांसाहार खाना शुरू कर दिया और जैसी की प्रथा थी ,और अछूत घोषित हो गए।
Now come to the valid reason for Rigidity in Indian Caste System--------
वर्ष 497 AD से 1197 AD तक भारत में एक से बढ़ कर एक विश्व विद्यालय हुआ करते थे, जैसे तक्षिला, नालंदा, जगदाला, ओदन्तपुर। नालंदा विश्वविद्यालय में ही 10000 छात्र ,2000 शिक्षक तथा नौ मंज़िल का पुस्तकालय हुआ करता था, जहाँ विश्व के विभिन्न भागों से पड़ने के लिए विद्यार्थी आते थे। ये सारे के सारे मुग़ल आक्रमण कारियों ने ध्वस्त करके जला दिए। न सिर्फ इन विद्या और ज्ञान के मंदिरों को जलाया गया बल्कि पूजा पाठ पर सार्वजानिक और निजी रूप से भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इतना तो सबने पढ़ा है ,लेकिन उसके बाद यह नहीं सोचा कि अपने धर्म को ज़िंदा रखने के लिए ज्ञान, धर्मशास्त्रों और संस्कारों को मुंह जुबानी पीढ़ी दर पीढ़ी कैसे आगे बढ़ाया गया । सबसे पहला खतरा जो धर्म पर मंडराया था ,वो था मलेच्छों का हिन्दू धर्म में अतिक्रमण / प्रवेश रोकना। और जिसका जैसा वर्ण था वो उसी को बचाने लग गया। लड़कियां मुगलों के हरम में न जाएँ ,इसलिए लड़की का जन्म अभिशाप लगा ,छोटी उम्र में उनकी शादी इसलिए कर दी जाती थी की अब इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी इसका पति संभाले, मुसलमानों की गन्दी निगाह से बचने के लिए पर्दा प्रथा शुरू हो गयी। विवाहित महिलाएं पति के युद्ध में जाते ही दुशमनों के हाथों अपमानित होने से बचने के लिए जौहर करने लगीं ,विधवा स्त्रियों को मालूम था की पति के मरने के बाद उनकी इज़्ज़त बचाने कोई नहीं आएगा इसलिए सती होने लगीं, जिन हिन्दुओं को घर से बेघर कर दिया गया उन्हें भी पेट पालने के लिए ठगी लूटमार का पेशा अख्तिया करना पड़ा। कौन सी विकृति है जो मुसलमानों के अतिक्रमण से पहले इस देश में थी और उनके आने के बाद किसी देश में नहीं है। हिन्दू धर्म में शूद्र कृत्यों वाले बहरूपिये आवरण ओढ़ कर इसे कुरूप न कर दें इसीलिए वर्णव्यवस्था कट्टर हुई , इसलिए कोई अतिशियोक्ति नहीं कि इस पूरी प्रक्रिया में धर्म रूढ़िवादी हो गया या वर्तमान परिभाषा के हिसाब से उसमे विकृतियाँ आ गयी। मजबूरी थी वर्णों का कछुए की तरह खोल में सिकुड़ना।
जैसा कि जवाहर लाल नेहरू जो की मुस्लिमों के पक्षधर थे ने भी अपनी पुस्तक "डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया "में हिन्दू वर्णव्यवस्था के सम्बन्ध में लिखा है ---- 1)There is truth in that and its origin was probably a device to keep the foreign conquerors apart from and above the conqured people.Undoubtdly in its growth it has acted in that way, though originally there may have been a good deal of FLEXIBILITY about it. Yet that is only a part of the truth and it does not explain its power and cohesiveness and the way it has lasted down to the present day.It survived not only the powerful impact of Buddhism and Mughal rule and the spread of Islam, ------------ page 264- .
यहीं से वर्ण व्यवस्था का लचीलापन जो की धर्मसम्मत था ख़त्म हो गया। इसके लिए आज अपने को शूद्र कहने वाले ब्राह्मणो या क्षत्रियों को दोष देकर अपने नए मित्रों को ज़िम्मेदार कभी नहीं ठहराते हैं । वैसे जब आप लोग डा. सविता माई(आंबेडकर जी की ब्राह्मण पत्नी) के संस्कारों को ज़बरदस्ती छुपा सकते हैं,
http://www.thoughtnaction.co.in/dr-ambedkar-and-brahmins/
जब आप लोग अपने पूर्वजो के बलिदान को याद नहीं रख सकते हैं जिनकी वजह से आप आज भी हिन्दू हैं तो आप आज उन्मुक्त कण्ठ से ब्राह्मणो और क्षत्रिओं को गाली भी दे सकते हैं,जिनके पूर्वजों ने न जाने इस धर्म को ज़िंदा रखने के लिए क्या क्या कष्ट सहे। पूरे के पूरे मज़हब ख़त्म हो कर दिए गए दुनिया के नक़्शे से, लेकिन आप वो नहीं देखना चाहते। कहाँ चला गया पारसी मज़हब अपनी जन्म भूमि ईरान से ??? क्या क्या ज़ुल्म नहीं सहे यहूदियों और यज़ीदियों ने अपने आप को ज़िंदा रखने के लिए। कहाँ चला गया बौद्ध धर्म का वो वटवृक्ष जिसकी शाखाएँ बिहार से लेकर अफगानिस्तान मंगोल चीन इंडोनेशिया तक में फैली हुईं थीं ??? कौन सा मज़हब बचा मोरक्को से लेकर मलेशिया तक ???? सिर्फ और सिर्फ बचे तो सनातन वैदिक धर्म को मानने वाले। शर्म आनी चाहिए उन लोगों को जो अपने पूर्वजों के बलिदानों को भूल कर, इस बात पर गर्व नहीं करते कि आज उनका धर्म ज़िंदा है मगर वो रो रहे हैं कि वर्णव्यवस्था ज़िंदा क्यों है। नीचे दिए गए लिंक में पढ़ लीजिये, कि जो कुछ ऊपर लिखा है वो अन्य देशों में भी हुआ वहां के मज़हब मिट गए और आपका धर्म ज़िंदा है।
और आज जिस वर्णव्यवस्था में हम विभाजित हैं उसका श्रेय 1881 एवं 1902 की अंग्रेजों द्वारा कराई गयी जनगणना है जिसमें उन्होंने demographic segmentation को सरल बनाने के लिए हिंदु समाज को इन चार वर्णों में चिपका दिया।
http://www.tamilnet.com/img/publish/2011/08/16430.pdf
वैसे भील, गोंड, सन्थाल और सभी आदिवासियों के पिछड़ेपन के लिए क्या वर्णव्यवस्था जिम्मेदार है?????
कौन ज़िम्मेदार है इस पूरे प्रकरण के लिए अनजाने या भूलवश धर्म में विकृतियाँ लाने वाले पंडित ??? या उन्हें मजबूर करने वाले मुसलमान आक्रांता ??? या आपसे सच्चाई छुपाने वाले इतिहास के लेखक ???? कोई भी ज़िम्मेदार हो पर हिन्दू भाइयो अब तो आपस में लड़ना छोड़ कर भविष्य की तरफ एक सकारात्मक कदम उठाओ। अगर पिछड़ी जाति के मोदी देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं, तो उतने ही पथ तुम्हारे लिए भी खुले हैं ,मान लिया कल तक तुम पर समाज के बहुत बंधन थे पर आज तो नहीं हैं ।
अगर आज हिन्दू एक होते तो आज कश्मीर घाटी में गिनती के 2984 हिन्दू न बचते और 4.50 लाख कश्मीरी हिंदू 25 साल से अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह न रह रहे होते और 16 दिसंबर के निर्भया काण्ड ,मेरठ काण्ड ,हापुड़ काण्ड …………गिनती बेशुमार है, इस देश में न होते।
वैसे सबसे मजे की बात यह है कि जिनके पूर्वजों ने ये सब अत्याचार किए, 800 साल तक राज किया, वो तो पाक साफ हो कर अल्पसंख्यकों के नाम पर आरक्षण भी पा गये और कटघरे में खड़े हैं, कौन????? जवाब आपके पास है
http://shivashaurya.blogspot.in/2015/03/blog-post_16.html........
विवेक मिश्र 
8 फ़रवरी 2015 
https://www.facebook.com/profile.php?id=100001457628054
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रविवार, 15 मार्च 2015

अन्ना हज़ारे का दिमागी दिवालियापन

अन्ना , आप की जन्म तिथि है 14 जून 1937 , और धीरूभाई अम्बानी की जन्मतिथि है 28 दिसम्बर 1932 . आप कक्षा आठ पास और वो कक्षा 10 पास। आपने देश सेवा सोची और 1960 में सेना में वाहन चालक हो गए, और अम्बानी साहब ने अपनी सोची और यमन में 1950 में पेट्रोल पम्प पर जा कर वाहनो में पेट्रोल भरना शुरू कर दिया। दोनों ने ही अपनी उम्र के लगभग 18वें वर्ष में अपना कैरियर शुरू किया। 1965 में आपने सीमा पर पाकिस्तान से जंग में भाग लिया और 1966 में धीरूभाई ने "रिलायंस इंडस्ट्री " की नींव रखी।
अब आप से 98 वर्ष पहले 3 मार्च 1839 में, एक पारसी पुजारी के घर में पैदा हुए जमशेद जी टाटा का उदाहरण ले लें, जिन्होंने अपनी उम्र के 20वें वर्ष में नाम मात्र पूंजी के साथ कारोबार की दुनिया में कदम रखा ,या उदाहरण ले लें घनश्याम जी दास बिड़ला की जिन्होंने बहुत थोड़ी सी पूंजी के साथ कारोबार शुरू किया या सबसे ताज़ातरीन उदहारण "इनफ़ोसिस" के नारायण मूर्ती का ले लें जिन्होंने मात्र दस हज़ार रुपये से 1981 में कारोबार शुरू किया और उपरोक्त घरानों की तरह आज मल्टिनैशनल कंपनी है। ये मैंने कुछ चुनिंदा उदहारण दिए है, जिन्होंने बहुत सीमित संसाधनो लेकिन स्पष्ट सोच से अपना कारोबार शुरू किया था।
मैं आपके धरनों से यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि आपकी लड़ाई सरकार से है या इन घरानों की तरक्की से है??? आपने 1975 में सेवानिवृत्ति के बाद अपने आप को रालेगाओं सिद्धि में समेट दिया और ये घराने फर्श से लेकर अर्श तक पहुँच गए। यदि आपका विरोध इन घरानों के प्रति है तो में यही कहूँगा की ,फर्क सिर्फ सोच का है। आपने एक गांव को तब्दील करना चाहा और इन्होने पूरे भारत को तब्दील किया है। भारत का कौन सा गांव ऐसा है जहाँ टाटा का नमक ,रिलायंस और बिड़ला का कपडा बेचने से किसी एक को रोज़गार नहीं मिलता। कौन सा ऐसा शहर है जहाँ इन घरानों ने कम से कम 100 परिवारों को नौकरी नहीं दी है।
आप जैसे लोगों के धरनो से ही वेदांता इंडस्ट्रीज , 11000 करोड़ की रिफायनरी ,नियमगिरि उड़ीसा में खर्च करने के बाद भी वापिस चली गयी , जिससे वहां के हज़ारों लोगों को रोज़गार मिला था और सैकड़ों को मिलना था। और तो और उस रिफाइनरी के लगने से पूरी दुनिया में अल्मुनियम के दाम आधे रह जाते और भारत का विदेशी मुद्रा कोष भर जाता। आप जैसे ही लोगों की वजह से टाटा को सिंगूर से अपना नैनो कार का कारखाना हटाना पड़ा , तो क्या दूसरे राज्य में लगा नहीं ??? हाँ, आपकी बहिन ममता के राज्य के पिछड़े हुए लोग बेरोज़गार ही रह गए। आप पूना के पास के है , वहीँ का उदाहरण देता हूँ, शहर के चारों तरफ प्राइवेट यूनिवर्सिटीज का मकड़ जाल बिछा है, शॉपिंग मॉल बने हैं, क्या किसानों ने वो ज़मीन बेचीं नहीं ??? हर शहर के आसपास ऐसा हो रहा है तो आपको यह समस्या अभी ही क्यों नज़र आई ??? 1894 का जो भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में कांग्रेस बदल गयी है , उसमे 13 ऐसे Clause हैं, 70-80% किसानों की सहमति को मिला कर जिनसे न सिर्फ प्रोजेक्ट शुरू करने में बहुत विलम्ब होगा और यह भी ज़रूरी नहीं की प्रोजेक्ट शुरू ही हो पाये। आज की तारीख में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में आप चीन से वैसे ही 25 साल पीछे हैं, और यह भी चाहते हैं की भारत विदेशी ताकतों से स्पर्धा करे।
आपको यदि सरकार के खिलाफ ही धरना देना है तो, 25 सालों से अपने ही देश में शरणार्थियों की ज़िन्दगी बिता रहे 4.50 lakh कश्मीरी पंडित आपको क्यों नज़र नहीं आते ??? क्यों आपको बांग्लादेशी अतिक्रमणकारी असम और बंगाल में नज़र नहीं आ रहे ??? आपको पाकिस्तानियों द्वारा भारतीय सेना के सिपाहियों का सर काटने जैसी घटनाएँ और उस पर कड़ी कार्यवाही ,धरना देने का जायज़ कारण क्यों नहीं लगतीं ????? संविधान में सामान नागरिकता का अनुचछेद है फिर आरक्षषण के नाम पर समाज बंटता हुआ कैसे देख रहे आप ??? खुल्लम खुल्ला मुस्लिम तुष्टिकरण हो रहा है वो आपके चश्मे से नज़र क्यों नहीं आ रहा ???आप हिन्दू हैं, भारत में गायें काट रही हैं, और उनको काटने के कारखाने लगाये जा रहे है , क्या वे आपके धरने के लिए कारण नहीं बनती ??? 1998 से सैंकड़ों चिट फण्ड कम्पनियां ( शारदा मिला कर) गरीबों की मेहनत की कमाई मिटटी में मिला चुकी हैं , क्या उन गरीबों का पैसा दिलवाना आपके धरने का पर्याप्त कारण नहीं बनता ??? नदियां सड़ रही हैं , उनकी सफाई और अविरल बहना आपके धरने का कारण क्यों नहीं बनता ???4.50 करोड़ मुकदमे अदालतों में लम्बित पड़े हैं, बेगुनाह को न्याय चाहिए और गुनाहगार छुट्टे घूम रहे हैं,घटिया कानूनों की वजह से "निर्भया" के कातिल आज भी जिन्दा हैं और लचर कानून रोज असहाय निर्भया समाज में पैदा कर रहे हैं, क्या ये जायज कारण नहीं है धरना दे कर न्यायपालिका को सुधारने का????? बहुत से कारण हैं अन्ना जी सरकार का विरोध करने के क्यों नहीं नज़र आते आपको वे मुद्दे ???
अज्ञानी जनता के बीच भ्रान्तिया फैलानी हैं तो अगले चुनाव के दौरान हम फिर दुबारा उन्हें एक सूट पहना देंगे उसे आप लोग 10 करोड़ का बताना , देश को 100 करोड़ मिलेगा और 2004 की तरह सरकार बदल दीजियेगा , नया भूमि अधिग्रहण कानून ले आईयेगा, लेकिन भगवान के लिए कांग्रेस के लटकाये हुए कांटे में अपनी हलक न फसायिये जिसे यह मालूम था की अगली सरकार अगर इस कानून में बदलाव नहीं करेगी तो वो एक कदम नहीं चल पाएगी।(http://economictimes.indiatimes.com/…/articles…/46376133.cms) इसी कांग्रेस ने 10 साल तक रेलभाड़ा न बढ़ा कर इस सरकार को मजबूर कर दिया भाड़ा बढ़ाने और गालियां खाने के लिए।
आप सरकारी पेंशन पा कर व्यक्तिगत रूप से मोहमाया त्याग सकते हैं, लेकिन भारत के लाखों नौजवानों के आगे मुंह और पेट भी है।
वैसे यदि आप निष्पक्ष होते तो स्वच्छता अभियान में कभी तो नजर आए होते, क्या वो भी देश हित में नहीं है????
बड़ी सोच रखिये और बड़ी सोच का जादू देखिये।
सोच बदलेंगे, देश बदलेगा

विवेक मिश्र
26 फरवरी 2015  
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