दैविकता श्रद्धा का विषय है और ऐतिहासिकता आस्तित्व का। लगभग 1000 हजार वर्ष तक दासता की बेड़ियों को गले में डाले डाले, दरबारबारियों और वामपंथियों द्वारा रचित पक्षपातपूर्ण इतिहास पढ़ कर हमने अपनी हीनभावना की ग्रंथियों को इतना विकसित कर दिया है की अपने धर्म, देवी देवताओं , ग्रंथों और संस्कारों का मान मर्दन करने में ही अपनी बुद्धिमत्ता समझते हैं। ऋषि मुनियों के द्वारा उद्धृत तथ्य आज की संस्कारहीन पीढ़ी को हास्यास्पद लगते थे लेकिन वही तथ्य जब पाश्चात्य वैज्ञानिक सामने रखते हैं तो भी हठधर्मिता की पराकाष्ठा ये हैं की उसे नकारने के कुतर्क ढूंढें जाते हैं।
बात कर रहा हूँ प्रेम के प्रतीक तेजो महालय (वर्तमान का ताज महल) बनाम राम सेतु की।
17 जून 1631 को अपने 14वें बच्चे को जन्म देते समय "आरज़ूमन्द बानो" वीरगति को प्राप्त हुई। मैं इसे वीरगति ही कहूँगा क्योंकि इतिहासकारों के मुताबिक वैवाहिक जीवन के 19 साल में, यदि बायोलॉजिकल कारण बाधा न बनते तो यह मशीन हर वर्ष एक मॉडल बना रही थी और ओवरप्रोडक्शन कहिये या ओवरलोड फैक्ट्री आगरा से 600 कि.मी दूर बुरहानपुर नाम के शहर में ढह गयी। प्रेम के रूप में कितना सुन्दर चित्रण करते हैं हमारे इतिहासकार शाहजहाँ की इस वासना का, जिसके हरम में 5000 से ज़्यादा अय्याशी के सामान थे। वैसे तो " Tajmahal The True Story authored by Shri P.N. Oak" ने लगभग 110 ऐतिहासिक और वैज्ञानिक तर्क दिए हैं की ताजमहल पहले एक शिव मंदिर था जिसे जयपुर के राजा से शाहजहाँ ने धोखेवश हथियाया था और बाद में हलकी फुलकी फेर बदल करके तथा उसपर आयतें खुदवा कर उसे ताज महल बनवा दिया। ( Purushottam nagesh Oak, के facebook page से विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं )। वर्तमान इतिहासकारों के अनुसार दिसंबर 1631 में बुरहानपुर से "आरज़ूमन्द " की कब्र खोद कर लाश आगरा लायी गयी और फिर उसके ऊपर 1632 से 1655 में ताज महल बनाया गया।जिसमे 3 करोड़ 32 लाख के करीब रूपए, 1000 हाथी और 20000 मज़दूरों ने २० वर्ष तक मेहनत की थी और इसके बाद उस प्रेम पुजारी ने शिल्पीकारों के हाथ इस लिए काट दिए थे की वे दुबारा कोई ऐसी कलाकृति न बना पाएं।
बात कर रहा हूँ प्रेम के प्रतीक तेजो महालय (वर्तमान का ताज महल) बनाम राम सेतु की।
17 जून 1631 को अपने 14वें बच्चे को जन्म देते समय "आरज़ूमन्द बानो" वीरगति को प्राप्त हुई। मैं इसे वीरगति ही कहूँगा क्योंकि इतिहासकारों के मुताबिक वैवाहिक जीवन के 19 साल में, यदि बायोलॉजिकल कारण बाधा न बनते तो यह मशीन हर वर्ष एक मॉडल बना रही थी और ओवरप्रोडक्शन कहिये या ओवरलोड फैक्ट्री आगरा से 600 कि.मी दूर बुरहानपुर नाम के शहर में ढह गयी। प्रेम के रूप में कितना सुन्दर चित्रण करते हैं हमारे इतिहासकार शाहजहाँ की इस वासना का, जिसके हरम में 5000 से ज़्यादा अय्याशी के सामान थे। वैसे तो " Tajmahal The True Story authored by Shri P.N. Oak" ने लगभग 110 ऐतिहासिक और वैज्ञानिक तर्क दिए हैं की ताजमहल पहले एक शिव मंदिर था जिसे जयपुर के राजा से शाहजहाँ ने धोखेवश हथियाया था और बाद में हलकी फुलकी फेर बदल करके तथा उसपर आयतें खुदवा कर उसे ताज महल बनवा दिया। ( Purushottam nagesh Oak, के facebook page से विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं )। वर्तमान इतिहासकारों के अनुसार दिसंबर 1631 में बुरहानपुर से "आरज़ूमन्द " की कब्र खोद कर लाश आगरा लायी गयी और फिर उसके ऊपर 1632 से 1655 में ताज महल बनाया गया।जिसमे 3 करोड़ 32 लाख के करीब रूपए, 1000 हाथी और 20000 मज़दूरों ने २० वर्ष तक मेहनत की थी और इसके बाद उस प्रेम पुजारी ने शिल्पीकारों के हाथ इस लिए काट दिए थे की वे दुबारा कोई ऐसी कलाकृति न बना पाएं।

अफ़सोस हैं की नई पीढ़ियों और दरबारी इतिहासकारों को एक लुटेरे और निर्मम शख्स की वासना और जल्लादियत का नमूना प्रेम का प्रतीक ताज महल तो नज़र आता है परन्तु अपने अराध्य का प्रेम और त्याग राम सेतु तब तक कोरी कल्पना लगा जब तक NASA ने उसे अधिकृत रूप से सेतु घोषित नहीं कर दिया।
श्री राम के प्रेम में दैविकता भी है और ऐतिहासिकता भी। अब तय आप को करना है की ताज महल (तेजो महालय ) असली प्रेम का प्रतीक है या राम सेतु।
विवेक मिश्र
4 .11 .2014
https://www.facebook.com/profile.php?id=100001457628054
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें