ढाई इंच की चमड़े की लचीली ज़ुबान से ब्राह्मणो ठाकुरो वैश्यों और वर्णव्यवस्था को गाली देने में कत्तई मेहनत नहीं लगती, कोई भी दे सकता है। लेकिन मेहनत लगती है 2500 वर्षो के इतिहास का सही अवलोकन करने में जो कोई करना नहीं चाहता।
मैं भली भाँति जनता हूँ की 25-30 से ज्यादा लोग इस लेख को पूरा पढ़ेंगे भी नहीं ,न ही मेरे इस लेख से कोई वैचारिक क्रांति ही आएगी, न ही हिन्दू लड़ना छोड़ेंगे और न ही एक भी "जय भीम"कहने वाला अपनी सोच बदल लेगा। लेकिन जो लोग जानकारी के आभाव में जब कट्टर वर्णव्यवस्था के कारण अपराधबोध से ग्रस्त अपने आपको तर्कहीन महसूस करते हैं, वे इसे अंत तक जरूर पढ़ें। इस लेख को मेरे ब्राह्मण होने से ब्राह्मणों की वकालत न समझ कर,सिर्फ हिन्दुओं की गलतफहमी और आपसी मतभेद दूर करने के नज़रिये से बिना किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर पढ़ें तथा मनन करें की एक पक्षीय और अधूरे इतिहास को पढ़ाने का ही नतीजा है आज हिन्दू समाज में फैली हुई वैमनस्यता तथा मतान्तर।
लेख बहुत लम्बा और बोरिंग न हो जाये इसलिए बहुत संक्षेप में लिखने का प्रयत्न करूँगा ,तथा इतिहास की कुछ पुस्तकों एवं लिंक के नाम भी लेख के बीच में दे रहा हूं , जिन्हे कोई शक शुबा हो वे उन पुस्तकों एवं लिंक का अध्ययन करके अपना मत निर्धारित कर सकते हैं।
पिछले चार दिनों में एक साथ निम्न चार वाक्यों ने मुझे आज लिखने के लिए मजबूर कर दिया ----------
जय भीम -जय मीम , इस नारे के साथ 100 यू पी की सीटों पर चुनाव लड़ेंगे ओवैसी। ( टाइम्स ऑफ़ इंडिया -3 फरवरी)
चलो हिन्दू धर्म और धर्म ग्रंथो को छोड़ कर नास्तिक हो जाएँ। (फेसबुक पर एक पोस्ट)
कल फेसबुक पर मेरे एक कमेंट के जवाब में यह प्रतिउत्तर आना ---"क्या कमाल है वीदेशी लोग बता रहे है ' जय भारत ' पहले आना चाहीये" ।
या जब कभी मैं जाति प्रथा की कट्टरता के लिए मात्र दो पक्षों को कटघरे में खड़ा पता हूँ और फिर हिन्दुओं को आपस में फेसबुक या ज़मीन पर लड़ता हुआ पता हूँ तो मन कराह उठता है ,कि हम लोगों ने 1500 वर्षों की शारीरिक गुलामी ही नहीं की बल्कि इतने कट्टर मानसिक गुलाम हो गए की जहाँ वो अकबर तो महान हो गया जिसके राज में 500000 लोगों को गुलाम बना मुसलमान बना दिया , लेकिन उसने अपनी सत्ता न मनाने वाले चित्तौड़गढ़ के 38000 राजपूतों को कटवा दिया था , उस का महिमामंडन करने के लिए एकतरफा चलचित्र भी बने ,ग्रन्थ भी लिखे गए और सीरियल भी बने लेकिन महाराणा प्रताप,गुरु गोबिंद सिंह जी ,गुरु तेग बहादुर , रानी लक्ष्मी बाई को दो पन्नो में समेट दिया गया और पन्ना धाय को बिलकुल ही विस्मृत कर दिया गया। इसका सबसे ताजातरीन उदाहरण है, कुछ माह पहले रिलीज हुई फिल्म "हैदर" - - 25 साल के सैन्य बलों के कश्मीर में बलिदान को ढ़ाई घंटे की फिल्म में धो कर रख दिया, और कहीं यह नहीं बताया कि सिर्फ 50 सालों में कश्मीर घाटी के 10 लाख हिंदू 3000 के अंदर कैसे सिमट गये, उर्दू राष्ट्रीय सहारा समाचार पत्र के पूर्व मुख्य सम्पादक "अजीज बर्नी" ने कसाब के पकड़े जाने के बाद एक पुस्तक लिखी "RSS का षड्यंत्र" , जिसका विमोचन कांग्रेस के उपाध्यक्ष "दिग्विजय सिंह" ने किया था, उस पुस्तक के अनुसार 26/11 का मुम्बई हमला RSS ने करवाया था। अगर इसी पुस्तक को राज संरक्षण प्राप्त हो जाये और स्कूलों में पढ़ाई जाने लगे तो 50 साल बाद RSS को सफाई देनी मुश्किल पड़ जायेगी। स्कूली किताबों से इस इतिहास को कैसे हटाया गया यह जानने के लिए "NCERT controversy",and keywords like that Google search कर लें।
सबसे अहम बात यह है कि यह इतिहास लिखा किसने ??? भारत के सबसे बुजुर्ग इतिहासकार "राजेन्द्र लाल मित्रा 1822 में पैदा हुए थे। 1880 के दशक तथा 1900 दशक में पहली बार वैज्ञानिक विधि से इतिहास का अवलोकन किया जाये इस पर चर्चा हुई थी। 1899 में रबिन्द्र नाथ टैगोर पहली बार "भारती " नाम की पत्रिका में "अक्षय कुमार मित्रा" नाम के नवोदित इतिहासकार के Oitihashik chitra (Historical Vignettes), नाम की शोध पत्रिका की प्रशंसा करते हुए एक लेख लिखा था " Enthusiasm for History" । 1919 बंगाल यूनिवर्सिटी पहली बार आधुनिक एवं मध्यकालीन इतिहास का परास्नातक पाठयक्रम शुरू किया गया ,1920 से 1930 तक के काल खंड में अन्य विश्वविद्यालयों में इतिहास के विभाग खोले गए तथा स्नातक स्तर पर इतिहास पढने की शुरुआत की गयी। तो फिर प्राचीन भारत में वर्ण व्यवस्था पर आधिकारिक इतिहास किसने लिखा और किस आधार पर लिखा ??????
http://publicculture.org/…/ the-public-life-of-history-an- ar…
लेख बहुत लम्बा और बोरिंग न हो जाये इसलिए बहुत संक्षेप में लिखने का प्रयत्न करूँगा ,तथा इतिहास की कुछ पुस्तकों एवं लिंक के नाम भी लेख के बीच में दे रहा हूं , जिन्हे कोई शक शुबा हो वे उन पुस्तकों एवं लिंक का अध्ययन करके अपना मत निर्धारित कर सकते हैं।
पिछले चार दिनों में एक साथ निम्न चार वाक्यों ने मुझे आज लिखने के लिए मजबूर कर दिया ----------
जय भीम -जय मीम , इस नारे के साथ 100 यू पी की सीटों पर चुनाव लड़ेंगे ओवैसी। ( टाइम्स ऑफ़ इंडिया -3 फरवरी)
चलो हिन्दू धर्म और धर्म ग्रंथो को छोड़ कर नास्तिक हो जाएँ। (फेसबुक पर एक पोस्ट)
कल फेसबुक पर मेरे एक कमेंट के जवाब में यह प्रतिउत्तर आना ---"क्या कमाल है वीदेशी लोग बता रहे है ' जय भारत ' पहले आना चाहीये" ।
या जब कभी मैं जाति प्रथा की कट्टरता के लिए मात्र दो पक्षों को कटघरे में खड़ा पता हूँ और फिर हिन्दुओं को आपस में फेसबुक या ज़मीन पर लड़ता हुआ पता हूँ तो मन कराह उठता है ,कि हम लोगों ने 1500 वर्षों की शारीरिक गुलामी ही नहीं की बल्कि इतने कट्टर मानसिक गुलाम हो गए की जहाँ वो अकबर तो महान हो गया जिसके राज में 500000 लोगों को गुलाम बना मुसलमान बना दिया , लेकिन उसने अपनी सत्ता न मनाने वाले चित्तौड़गढ़ के 38000 राजपूतों को कटवा दिया था , उस का महिमामंडन करने के लिए एकतरफा चलचित्र भी बने ,ग्रन्थ भी लिखे गए और सीरियल भी बने लेकिन महाराणा प्रताप,गुरु गोबिंद सिंह जी ,गुरु तेग बहादुर , रानी लक्ष्मी बाई को दो पन्नो में समेट दिया गया और पन्ना धाय को बिलकुल ही विस्मृत कर दिया गया। इसका सबसे ताजातरीन उदाहरण है, कुछ माह पहले रिलीज हुई फिल्म "हैदर" - - 25 साल के सैन्य बलों के कश्मीर में बलिदान को ढ़ाई घंटे की फिल्म में धो कर रख दिया, और कहीं यह नहीं बताया कि सिर्फ 50 सालों में कश्मीर घाटी के 10 लाख हिंदू 3000 के अंदर कैसे सिमट गये, उर्दू राष्ट्रीय सहारा समाचार पत्र के पूर्व मुख्य सम्पादक "अजीज बर्नी" ने कसाब के पकड़े जाने के बाद एक पुस्तक लिखी "RSS का षड्यंत्र" , जिसका विमोचन कांग्रेस के उपाध्यक्ष "दिग्विजय सिंह" ने किया था, उस पुस्तक के अनुसार 26/11 का मुम्बई हमला RSS ने करवाया था। अगर इसी पुस्तक को राज संरक्षण प्राप्त हो जाये और स्कूलों में पढ़ाई जाने लगे तो 50 साल बाद RSS को सफाई देनी मुश्किल पड़ जायेगी। स्कूली किताबों से इस इतिहास को कैसे हटाया गया यह जानने के लिए "NCERT controversy",and keywords like that Google search कर लें।
सबसे अहम बात यह है कि यह इतिहास लिखा किसने ??? भारत के सबसे बुजुर्ग इतिहासकार "राजेन्द्र लाल मित्रा 1822 में पैदा हुए थे। 1880 के दशक तथा 1900 दशक में पहली बार वैज्ञानिक विधि से इतिहास का अवलोकन किया जाये इस पर चर्चा हुई थी। 1899 में रबिन्द्र नाथ टैगोर पहली बार "भारती " नाम की पत्रिका में "अक्षय कुमार मित्रा" नाम के नवोदित इतिहासकार के Oitihashik chitra (Historical Vignettes), नाम की शोध पत्रिका की प्रशंसा करते हुए एक लेख लिखा था " Enthusiasm for History" । 1919 बंगाल यूनिवर्सिटी पहली बार आधुनिक एवं मध्यकालीन इतिहास का परास्नातक पाठयक्रम शुरू किया गया ,1920 से 1930 तक के काल खंड में अन्य विश्वविद्यालयों में इतिहास के विभाग खोले गए तथा स्नातक स्तर पर इतिहास पढने की शुरुआत की गयी। तो फिर प्राचीन भारत में वर्ण व्यवस्था पर आधिकारिक इतिहास किसने लिखा और किस आधार पर लिखा ??????
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अंग्रेजों ने इतिहास और त्थयों को तोड़ा मरोड़ा और एक नया इतिहास रच दिया जिसके चलते आज के अम्बेडकरवादी अन्य लोगों को विदेशी और खुद को भारत का मूल नागरिक बताते हैं।वर्तमान में अम्बेडकर जी के जो अनुयायी, अंग्रेज़ों की फुट डालो और राज करो की राजनीती के तहत विदेशी आर्यों और मूलनिवासियों का मुद्दा उठा रहे हैं , वे अम्बेडकर जी के शोध पर ही प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। "Ambedkar W&S1948, Chapter Six", में रिसले की " Aryan Invasion Theory" का "Nasal Index Data" के आधार पर भंडा फोड़ते हुए अम्बेडकर जी ने साफ़ साफ़ लिखा कि यदि " ब्राह्मण आर्य थे तो शूद्र भी आर्य थे , यदि ब्राह्मण आर्य नहीं थे तो शूद्र भी आर्य नहीं थे, और "The Untouchables, Who were they, and why they became" में डॉ अम्बेडकर ने क्षत्रिय कैसे शूद्र बने या शूद्र राजा कैसे अछूत बने इसके कारणों की विवेचना की है।
अम्बेदकरवादी " Aryans, Jews, Brahmins :Theorising Authority Through Myths Of Identity " By Dorothy M.Figueira, published by Navayana,अवश्य पढ़ लें तथा जो बहुत से अम्बेडकरवादी कमेंट बॉक्स में हिंदी में लिखने की बात करते हैं, उनके लिए यह लिंक पढ़ना मुश्किल होगा, अतः उनसे निवेदन है की किसी से पढ़वा कर अपना भ्रम ज़रूर दूर कर लें अन्यथा , आप के दिल में अन्य जातियों के लिए अंग्रेजों द्वारा भरा गया ज़हर हमेशा भरा रहेगा जो की भविष्य में देश के लिए अहितकर होगा।
http://tribhuvanuvach. blogspot.in/2014/10/parit-3. html
http://epaper.indianexpress. com/…/Indian-Exp…/13-March- 2015…
अम्बेदकरवादी " Aryans, Jews, Brahmins :Theorising Authority Through Myths Of Identity " By Dorothy M.Figueira, published by Navayana,अवश्य पढ़ लें तथा जो बहुत से अम्बेडकरवादी कमेंट बॉक्स में हिंदी में लिखने की बात करते हैं, उनके लिए यह लिंक पढ़ना मुश्किल होगा, अतः उनसे निवेदन है की किसी से पढ़वा कर अपना भ्रम ज़रूर दूर कर लें अन्यथा , आप के दिल में अन्य जातियों के लिए अंग्रेजों द्वारा भरा गया ज़हर हमेशा भरा रहेगा जो की भविष्य में देश के लिए अहितकर होगा।
http://tribhuvanuvach.
http://epaper.indianexpress.
बात शुरू करता हूँ , उन अतिज्ञानियों के ज्ञान से जिन्होंने शायद ही कभी "मनु समृति"का अध्ययन किया होगा लेकिन जयपुर हाई कोर्ट परिसर में महर्षि मनु की 28 जून 1989 को मूर्ती लगने पर विरोध प्रगट किया और 28 जुलाई 1989 को हाई कोर्ट की फुल बेंच ने अपने पूरे ज्ञान का परिचय देते हुए 48 घंटे में मूर्ती हटाने का आदेश पारित कर दिया।लेकिन दूसरी तरफ से भी अपना पक्ष रखा गया और तीन दिन के लगातार बहस के दौरान मनु के आलोचक पक्ष के वकील मनु को गलत साबित नहीं कर पाये और एक अंतरिम आदेश के साथ अपना पूर्व में मूर्ती हटाने का आदेशहाई कोर्ट को स्थगित करना पड़ा । मूर्ती आज भी वहीँ है। इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी नीचे दिए गए लिंक में पढ़ी जा सकती है।
https://www.google.co.in/url…
अब इससे पीछे चलते हैं वर्तमान के दलित मसीहा, रामविलास पासवान पर --- क्या उन्होंने अपनी पहली पत्नी को तलाक दे कर उन पर अत्याचार नहीं किया??? या यहाँ पर भी नीना शर्मा (एक पंजाबी ब्राह्मण),उनकी दूसरी पत्नी जिसने एक दलित से शादी की ने ब्राह्मणत्व की धारणा को तोड़ कर एक दलित से शादी नहीं की।
इससे और पीछे चलते हैं, भीम राव अम्बेडकर पर -- "जय भीम" तो बहुत बोला जाता है ,क्या डा. सविता , आंबेडकर जी की पत्नी जो की पुणे के कट्टर ब्राह्मण परिवार से थीं ,उन्होंने क्या जाती पाती के बंधनों की परवाह की थी। और अम्बेडकरवादियों ने बहुत कुशलता से आंबेडकर द्वारा रचित The Buddha And His Dharma जो की उनकी मृत्यु के पश्चात प्रकाशित हुई की मूल प्रस्तावना जो की उन्होंने 15 मार्च 1956 लिखी थी ,को छुपा दिया जिसमे उन्होंने अपनी ब्राह्मण पत्नी और उन ब्राह्मण अध्यापकों ( महादेव आंबेडकर, पेंडसे, कृष्णा जी अर्जुन कुलेसकर ,बापूराव जोशी ) की हृदयस्पर्शी चर्चा की थी। बहुत आसान है महादेव आंबेडकर का भीमराव को अपने घर में खाना खिलाना भूलना ,बहुत आसान है ब्राह्मण सविता देवी का जीवन भुलाना और बहुत आसान है कृष्णा जी अर्जुन कुलेसकर नामक उस ब्राह्मण को भुलाना जिसने भीमराव को "महात्मा बुद्ध " पर पढ़ने को पुस्तक दी और भीमराव बौधि हो गए।
http://www.thoughtnaction.co. in/dr-ambedkar-and-brahmins/
अब इससे पीछे चलते हैं वर्तमान के दलित मसीहा, रामविलास पासवान पर --- क्या उन्होंने अपनी पहली पत्नी को तलाक दे कर उन पर अत्याचार नहीं किया??? या यहाँ पर भी नीना शर्मा (एक पंजाबी ब्राह्मण),उनकी दूसरी पत्नी जिसने एक दलित से शादी की ने ब्राह्मणत्व की धारणा को तोड़ कर एक दलित से शादी नहीं की।
इससे और पीछे चलते हैं, भीम राव अम्बेडकर पर -- "जय भीम" तो बहुत बोला जाता है ,क्या डा. सविता , आंबेडकर जी की पत्नी जो की पुणे के कट्टर ब्राह्मण परिवार से थीं ,उन्होंने क्या जाती पाती के बंधनों की परवाह की थी। और अम्बेडकरवादियों ने बहुत कुशलता से आंबेडकर द्वारा रचित The Buddha And His Dharma जो की उनकी मृत्यु के पश्चात प्रकाशित हुई की मूल प्रस्तावना जो की उन्होंने 15 मार्च 1956 लिखी थी ,को छुपा दिया जिसमे उन्होंने अपनी ब्राह्मण पत्नी और उन ब्राह्मण अध्यापकों ( महादेव आंबेडकर, पेंडसे, कृष्णा जी अर्जुन कुलेसकर ,बापूराव जोशी ) की हृदयस्पर्शी चर्चा की थी। बहुत आसान है महादेव आंबेडकर का भीमराव को अपने घर में खाना खिलाना भूलना ,बहुत आसान है ब्राह्मण सविता देवी का जीवन भुलाना और बहुत आसान है कृष्णा जी अर्जुन कुलेसकर नामक उस ब्राह्मण को भुलाना जिसने भीमराव को "महात्मा बुद्ध " पर पढ़ने को पुस्तक दी और भीमराव बौधि हो गए।
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उपरोक्त उदाहरणों से मैं यह सिद्ध करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ ,की इस समय में वर्णव्यवस्था का कट्टरपन अपने चरमोत्कर्ष पर नहीं था। बहुत विद्रूप थी इस समय और इससे पहले वर्णव्यवस्था। लेकिन वर्णव्यवस्था में विद्रूपता और कट्टरपन क्यों कब और कैसे आया ,क्या कभी किसी ने वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास के इतर कुछ पढ़ने की कोशिश की ???? जो और जितना पढ़ाया गया उसी को समग्र मान कर चल पढ़े भेड़चाल और लगे धर्मग्रंथों और उच्च जातियों को गलियां देने।
मनु स्मृति और अन्य धर्मशास्त्रों में वर्णव्यवस्था "कर्म आधारित" थी और कर्म के आधार पर कोई भी अपना वर्ण बदलने के लिए स्वतंत्र था। आज का समाज जाति बंधन तो छोड़िये किसी भी बंधन को न स्वीकारने के दसियों तर्क कुतर्क दे सकता है। लेकिन वर्णव्यस्था पर उंगली उठाने वालों के लिए " vedictruth: वेद और शूद्र " vedictruth.blogspot.com में एक सारगर्भित लेख है।इसके बाद भी कोई अगर कुतर्क दे तो उसे मानव मन का अति कल्पनाशील होना ही मानूंगा।
मनु स्मृति और अन्य धर्मशास्त्रों में वर्णव्यवस्था "कर्म आधारित" थी और कर्म के आधार पर कोई भी अपना वर्ण बदलने के लिए स्वतंत्र था। आज का समाज जाति बंधन तो छोड़िये किसी भी बंधन को न स्वीकारने के दसियों तर्क कुतर्क दे सकता है। लेकिन वर्णव्यस्था पर उंगली उठाने वालों के लिए " vedictruth: वेद और शूद्र " vedictruth.blogspot.com में एक सारगर्भित लेख है।इसके बाद भी कोई अगर कुतर्क दे तो उसे मानव मन का अति कल्पनाशील होना ही मानूंगा।
इतिहास में बहुत पीछे न जाते हुए, चन्द्रगुप्त मौर्य (340 BC -298 BC) से शरुआत करते हुए बताना चाहूंगा, कि चन्द्रगुप्त के प्रारंभिक जीवन के बारे में तो इतिहासकारों को बहुत कुछ नहीं मालूम है परन्तु ,"मुद्राराक्षस" में उसे कुलविहीन बताया गया है। जो की बाद में चल कर यदि उस समय वर्णव्यवस्था थी तो उसे तोड़ते हुए अपने समय का एक शक्तिशाली राजा बना। इसी समय "सेल्यूकस" के दूत "मैगस्थनीज़" के यात्रा वृतांत के अनुसार उस समय इसी चतुर्वर्ण में ही कई जातियाँ 1) दार्शनिक 2) कृषि 3)सैनिक 4) निरीक्षक /पर्यवेक्षक 5) पार्षद 6) कर निर्धारक 7) चरवाहे 8) सफाई कर्मचारी और 9 ) कारीगर हुआ करते थे। लेकिन चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री "कौटिल्य" के अर्थशास्त्र एवं नीतिसार अनुसार, किसी के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार की कठोर सज़ा थी। यहाँ तक की वैसे तो उस समय दास प्रथा नहीं थी लेकिन चाणक्य के अनुसार यदि किसी को मजबूरी में खुद दास बनना पड़े तो भी उससे कोई नीच अथवा अधर्म का कार्य नहीं करवाया जा सकता था।ऐसा करने की स्थिति में दास दासता के बन्धन से स्वमुक्त हो जाता था।सब अपना व्यवसाय चयन करने के लिए स्वतंत्र थे तथा उनसे यह अपेक्षा की जाती थी वे धर्मानुसार उनका निष्पादन करेंगे । मौर्य वंश के इतिहास में कहीं भी शूद्रों के साथ अमानवीय या भेदभावपूर्ण व्यवहार का लेखन पढ़ने में नहीं आया। जब दासों के प्रति इतनी न्यायोचित व्यवस्था थी , तो आम जन तो नीतिशास्त्रों से शासित किये ही जाते थे। एक बात का और उल्लेख यहाँ करना चाहूंगा,इस समय तक वैदिक भागवत धर्म का अधिकांश लोग पालन करते थे लेकिन बौद्ध तथा जैन धर्मों में अपने प्रवर्तकों की सुन्दर सुन्दर मूर्तियों की पूजा की देखा देखि इसी समय पर वैदिक धर्म में मूर्ती पूजा का पर्दुभाव हुआ। इसी समय पर भगवानों के सुन्दर सुन्दर रूपों की कल्पना कर के उन्हें मंदिरों में प्रतिष्ठित किया जाने लगा।
जी इस त्तथ्य पर दुबारा गौर करें, इस समय तक हिन्दू वैदिक धर्म का पालन करते हुए हवन यज्ञो द्वारा निर्गुण तथा निराकार परमेश्वर की पूजा किया करते थे। और मनुस्मृति को पानी पी पी कर कोसने वालों को मालूम होना चाहिए कि मनु स्मृति इस काल से बहुत पहले तब लिखी गयी थी जब निराकार ईश्वर को पूजा जाता था। मुख से ब्राह्मण पैदा हुए थे मनु का सांकेतिक तात्पर्य था कि सुवचन और सुबुद्धि के गुणों के द्वारा ब्राह्मणो का जन्म हुआ। यह एक सांकेतिक तात्पर्य था कि भुजाओं के बल के द्योतक क्षत्रिय बने। और यही सांकेतिक तात्पर्य था कि जीविकोपार्जन के कर्मो से वैश्यों का जन्म हुआ और श्रम का काम करने वाले चरणो से शूद्रों का जन्म हुआ। या जिनमे ये गुण जैसे हैं वे उन वर्णों में गुणों और कर्मों के आधार पर विभाजित किये जाएँ।
यहीं यदि मनु श्रम को भुजाओं से जोड़ कर लिख देते कि भुजाओं से शूद्रो का जन्म हुआ तो क्या चरणों से युद्ध में भाग लेने वाले क्षत्रिय नीच वर्ण के हो जाते ????? दोष निकलने वाले उसमे भी दोष निकल लेते क्योंकि उन्हें न अपनी अकर्मण्यता में कोई दोष नज़र आता है और न वे इतिहास और तदोपरांत के घटनाक्रम में अपनी अज्ञानता के चलते कोई दोष ढूंढ पाते हैं।
यहीं यदि मनु श्रम को भुजाओं से जोड़ कर लिख देते कि भुजाओं से शूद्रो का जन्म हुआ तो क्या चरणों से युद्ध में भाग लेने वाले क्षत्रिय नीच वर्ण के हो जाते ????? दोष निकलने वाले उसमे भी दोष निकल लेते क्योंकि उन्हें न अपनी अकर्मण्यता में कोई दोष नज़र आता है और न वे इतिहास और तदोपरांत के घटनाक्रम में अपनी अज्ञानता के चलते कोई दोष ढूंढ पाते हैं।
चन्द्रगुप्त मौर्य के लगभग 800 वर्ष पश्चात चीनी तीर्थयात्री "फा हियान" चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय भारत आया उसके अनुसार वर्णव्यवस्था बहुत कठोर नहीं थी,ब्राह्मण व्यापर ,वास्तुकला तथा अन्य प्रकार की सेवाएं दिया करते थे ,क्षत्रिय वणिजियक एवं औद्योगिक कार्य किया करते थे ,वैश्य राजा ही थे ,शूद्र तथा वैश्य व्यापर तथा खेती बड़ी करते थे। कसाई, शिकारी ,मच्छली पकड़ने वाले,माँसाहार करने वाले अछूत समझे जाते थे तथा "वे" नगर के बाहर रहते थे। गंभीर अपराध न के बराबर थे ,अधिकांश लोग शाकाहारी थे। इसीलिए इसे भारतवर्ष का स्वर्ण काल भी कहा जाता है।
यही बातें "हुएंन- त्सांग "ने वर्ष 631-644 AD तक अपने भारत भ्रमण के दौरान लिखीं।उस समय विधवा विवाह पर प्रतिबन्ध नहीं था, सती प्रथा नहीं थी, पर्दा प्रथा नहीं थी , दास प्रथा नहीं थी , हिजड़े नहीं बनाये जाते थे , जौहर प्रथा नहीं थी ,ठगी गिरोह नहीं हुआ करते थे, क़त्ल नहीं हुआ करते थे ,बलात्कार नहीं हुआ करते थे, सभी वर्ण आपस में बहुत सौहाद्रपूर्ण तरीके से रहते थे और ..........…… वर्ण व्यवस्था इतनी कट्टर नहीं हुआ करती थी।यह भारत का स्वर्णकाल कहलाता है। फिर ये सारी कुरीतियां वैदिक धर्म में कहाँ से आ गयीं।
यही बातें "हुएंन- त्सांग "ने वर्ष 631-644 AD तक अपने भारत भ्रमण के दौरान लिखीं।उस समय विधवा विवाह पर प्रतिबन्ध नहीं था, सती प्रथा नहीं थी, पर्दा प्रथा नहीं थी , दास प्रथा नहीं थी , हिजड़े नहीं बनाये जाते थे , जौहर प्रथा नहीं थी ,ठगी गिरोह नहीं हुआ करते थे, क़त्ल नहीं हुआ करते थे ,बलात्कार नहीं हुआ करते थे, सभी वर्ण आपस में बहुत सौहाद्रपूर्ण तरीके से रहते थे और ..........…… वर्ण व्यवस्था इतनी कट्टर नहीं हुआ करती थी।यह भारत का स्वर्णकाल कहलाता है। फिर ये सारी कुरीतियां वैदिक धर्म में कहाँ से आ गयीं।
इसी स्वर्णकाल के समय लगभग वर्ष 500 AD में जो तीन विशेष कारण जिनकी वजह से वैदिक धर्म का लचीलापन खत्म होना शुरू हुआ, मेरी समझ से वे थे, मध्य एशिया से जाहिल हूणों के आक्रमण तथा उनका भारतीय समाज में घुलना मिलना, बौद्ध धर्म में "वज्रायन" सम्प्रदाय जिसके भिक्षु एवं भिक्षुणियों ने अश्लीलता की सीमाएं तोड़ दी थी, तथा बौद्धों द्वारा वेद शिक्षा बिल्कुल नकार दी गई थी एवं "चर्वाक" सिद्धांत पंच मकार - - मांस,मछली, मद्य, मुद्रा और मैथुन ही जीवन का सार थे का जनसाधारण में लोकप्रिय होना।
3000 साल पुराना ,शूद्रों पर अत्याचारों का राग अलाप कर #मनुस्मृति_जलाने वालों के लिए तत्कालीन हिन्दू समाज के विषय में इस मुस्लिम इतिहासकार ने क्या देखा उसे पढ़ना नितांत आवश्यक है। वर्ष 1030 में महमूद ग़ज़नवी के समय में #अल_बरूनी ( 5 सितम्बर 973 -13 दिसम्बर 1048) महमूद ग़ज़नवी के साथ भारत आया और #1030 तक "किताब तारीख अल हिन्द " पूरी कर ली।) क्या लिखता है कि --- पारम्परिक हिन्दू समाज चार वर्णो और अंत्यज ( जो किसी जाति में नहीं आते थे) में विभाजित हुआ करता था , लेकिन उसने उच्च जातियों द्वारा नीच जातियों पर अत्याचारों का कोई ज़िक्र नहीं किया। बावजूद इसके कि चारों वर्ण एक दूसरे से भिन्न थे लेकिन वे शहरों और गांवों में एक साथ रहते थे और एक दूसरे के घरों में घुला मिला करते थे।
http://www.columbia.edu/…/p…/ ldpd_5949073_001_00000157. html…
http://www.columbia.edu/…/p…/
इस सन्दर्भ में नेहरू और वामपंथियों पर भारतीय मूल के ब्रिटेन में रहने वाले प्रख्यात लेखक --V.S Naipaul ने कटाक्ष करते हुए "The Pioneer" समाचार पत्र में एक लेख लिखा ---- " आप अपने इतिहास को नज़रअंदाज़ कैसे कर सकते हैं ?? लेकिन स्वराज और आज़ादी की लड़ाई ने इसे नज़रअंदाज़ किया है। आप जवाहर लाल नेहरू की Glimpses of World History पढ़ें , ये भारतीय पौराणिक कथाओं के बारे में बताते बताते आक्रान्ताओं के आक्रमण पर पहुँच जाता है। फिर चीन से आये हुए तीर्थयात्री बिहार नालंदा और अनेकों जगह पहुँच जाते हैं। पर आप यह नहीं बताते की फिर क्या हुआ ,क्यों आज अनेकों जगह, जहाँ का गौरवपूर्ण इतिहास था खंडहर क्यों हैं ??? आप यह नहीं बताते की भुबनेश्वर, काशी और मथुरा को कैसे अपवित्र किया गया। "
http://www.dailypioneer.com/ secon3.asp?cat=\story8&d= FRONT_PAGE)
वर्णव्यवस्था के लचीलेपन के ख़त्म होने के एक से बढ़ कर एक कारण हैं, जो मेरी नज़र में सबसे अहम कारण है उसे सबसे अंत में लिखूंगा।
लेकिन जो इतिहास हमें पढ़ाया गया है ,उसमे सोमनाथ के मंदिर को लूटना तो बताया गया है परन्तु महमूद ग़ज़नवी ने कंधार के रास्ते आते और जाते हुए मृत्यु का क्या तांडव खेला कभी नहीं बताया जाता। उसमे 1206 के मोहम्मद गौरी से लेकर 1857 तक के बहादुर शाह ज़फर का अधूरा चित्रण ही आपके सामने किया गया है, पूरा सच शायद बताने से मुस्लिम वर्ग नाराज़ हो जाता। और वैसे भी जैसा की वीर सावरकर ने 1946 लिख दिया था, कि लम्बे समय तक सत्ता में बने रहने के लिए तत्कालीन कांग्रेस के नेताओं ने यही रणनीति बनायीं थी की ,हिन्दुओं में फूट डाली जाये और मुस्लिमों का तुष्टिकरण किया जाये। इसी का आज यह दुष्परिणाम है की न तो मुस्लिम आक्रान्ताओं का पूरा इतिहास ही पढ़ाया गया और आज हिन्दू पूरी जानकारी के आभाव में वर्णव्यवस्था के नाम पर चाहे सड़क हो चाहे फेसबुक कहीं पर भी भिड़ जाते हैं।
लेकिन जो इतिहास हमें पढ़ाया गया है ,उसमे सोमनाथ के मंदिर को लूटना तो बताया गया है परन्तु महमूद ग़ज़नवी ने कंधार के रास्ते आते और जाते हुए मृत्यु का क्या तांडव खेला कभी नहीं बताया जाता। उसमे 1206 के मोहम्मद गौरी से लेकर 1857 तक के बहादुर शाह ज़फर का अधूरा चित्रण ही आपके सामने किया गया है, पूरा सच शायद बताने से मुस्लिम वर्ग नाराज़ हो जाता। और वैसे भी जैसा की वीर सावरकर ने 1946 लिख दिया था, कि लम्बे समय तक सत्ता में बने रहने के लिए तत्कालीन कांग्रेस के नेताओं ने यही रणनीति बनायीं थी की ,हिन्दुओं में फूट डाली जाये और मुस्लिमों का तुष्टिकरण किया जाये। इसी का आज यह दुष्परिणाम है की न तो मुस्लिम आक्रान्ताओं का पूरा इतिहास ही पढ़ाया गया और आज हिन्दू पूरी जानकारी के आभाव में वर्णव्यवस्था के नाम पर चाहे सड़क हो चाहे फेसबुक कहीं पर भी भिड़ जाते हैं।
जी हाँ हमारा इतिहास यह नहीं बताता की वर्ष 1000 AD की भारत की जनसँख्या 15 करोड़ से घट कर वर्ष 1500 AD में 10 करोड़ क्यों रह गयी थी ??? नीचे जो लिख रहा हूँ उसमे जबरन धर्म परिवर्तन, बलात्कार ,कत्ले आम, कम उम्र के लड़कों का हिजड़ा बनाया जाना आप खुद जोड़ते जाईयेगा।
( नीचे दिए हुए तथ्य ,1)Islam's India slave Part-1,by M.A Khan, 2)"The Legacy of Jihad: Islamic Holy war and the fate of non non -Muslims By A.G Bostom.and 3)Slave trading During Mulim rule, by K.S Lal 4),‘The sword of the prophet.’ By Trifkovic, S. - - Regina Orthodox Press, Inc. 2002.
से लिए गए हैं )
http://islammonitor.org/index. php…
http://www.islam-watch.org/…/ islamic-jihad-legacy-of- forced… ( two must read links, to understand the summary)
( नीचे दिए हुए तथ्य ,1)Islam's India slave Part-1,by M.A Khan, 2)"The Legacy of Jihad: Islamic Holy war and the fate of non non -Muslims By A.G Bostom.and 3)Slave trading During Mulim rule, by K.S Lal 4),‘The sword of the prophet.’ By Trifkovic, S. - - Regina Orthodox Press, Inc. 2002.
से लिए गए हैं )
http://islammonitor.org/index.
http://www.islam-watch.org/…/
उपरोक्त पुस्तक जो की कई अन्य पुस्तकों का निचोड़ हैं , का सारांश नीचे लिख रहा हूँ ---------
1 )महमूद ग़ज़नवी ---वर्ष 997 से 1030 तक 2000000 , बीस लाख सिर्फ बीस लाख लोगों को महमूद ग़ज़नवी ने तो क़त्ल किया था और 750000 सात लाख पचास हज़ार लोगों को गुलाम बना कर भारत से ले गया था 17 बार के आक्रमण के दौरान (997 -1030). ---- जिन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया , वे शूद्र बना कर इस्लाम में शामिल कर लिए गए। इनमे ब्राह्मण भी थे क्षत्रिय भी वैश्य भी और शूद्र तो थे ही।
1 )महमूद ग़ज़नवी ---वर्ष 997 से 1030 तक 2000000 , बीस लाख सिर्फ बीस लाख लोगों को महमूद ग़ज़नवी ने तो क़त्ल किया था और 750000 सात लाख पचास हज़ार लोगों को गुलाम बना कर भारत से ले गया था 17 बार के आक्रमण के दौरान (997 -1030). ---- जिन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया , वे शूद्र बना कर इस्लाम में शामिल कर लिए गए। इनमे ब्राह्मण भी थे क्षत्रिय भी वैश्य भी और शूद्र तो थे ही।
2 ) दिल्ली सल्तनत --1206 से 1210 ---- कुतुबुद्दीन ऐबक --- सिर्फ 20000 गुलाम राजा भीम से लिए थे और 50000 गुलाम कालिंजर के राजा से लिए थे। जो नहीं माना उनकी बस्तियों की बस्तियां उजाड़ दीं। गुलामों की उस समय यह हालत हो गयी कि गरीब से गरीब मुसलमान के पास भी सैंकड़ों हिन्दू गुलाम हुआ करते थे ।
3) इल्ल्तुत्मिश ---1236-- जो भी मिलता उसे गुलाम बना कर, उस पर इस्लाम थोप देता था।
4) बलबन ----1250-60 --- ने एक राजाज्ञा निकल दी थी , 8 वर्ष से ऊपर का कोई भी आदमी मिले उसे मौत के घाट उत्तर दो। महिलाओं और लड़कियों वो गुलाम बना लिया करता था। उसने भी शहर के शहर खाली कर दिए।
5) अलाउद्दीन ख़िलजी ---- 1296 -1316 -- अपने सोमनाथ की लूट के दौरान उसने कम उम्र की 20000 हज़ार लड़कियों को दासी बनाया, और अपने शासन में इतने लड़के और लड़कियों को गुलाम बनाया कि गिनती कलम से लिखी नहीं जा सकती। उसने हज़ारों क़त्ल करे थे और उसके गुलमखाने में 50000 लड़के थे और 70000 गुलाम लगातार उसके लिए इमारतें बनाने का काम करते थे। इस समय का ज़िक्र आमिर खुसरो के लफ़्ज़ों में इस प्रकार है " तुर्क जहाँ चाहे से हिंदुओं को उठा लेते थे और जहाँ चाहे बेच देते थे।
6) मोहम्मद तुगलक ---1325 -1351 ---इसके समय पर इतने कैदी हो गए थे की हज़ारों की संख्या में रोज़ कौड़ियों के दाम पर बेचे जाते थे।
7) फ़िरोज़ शाह तुगलक -- 1351 -1388 -- इसके पास 180000 गुलाम थे जिसमे से 40000 इसके महल की सुरक्षा में लगे हुए थे। इसी समय "इब्न बतूता " लिखते हैं की क़त्ल करने और गुलाम बनाने की वज़ह से गांव के गांव खाली हो गए थे। गुलाम खरीदने और बेचने के लिए खुरासान ,गज़नी,कंधार,काबुल और समरकंद मुख्य मंडियां हुआ करती थीं। वहां पर इस्तांबुल,इराक और चीन से से भी गुलाम ल कर बेचे जाते थे।
8) तैमूर लंग --1398/99 --- As per "Malfuzat-i-Taimuri" इसने दिल्ली पर हमले के दौरान 100000 गुलामों को मौत के घाट उतरने के पश्चात ,2 से ढ़ाई लाख कारीगर गुलाम बना कर समरकंद और मध्य एशिया ले गया।
9) सैय्यद वंश --1400-1451 -- हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं बदला, इसने कटिहार ,मालवा और अलवर को लूटा और जो पकड़ में आया उसे या तो मार दिया या गुलाम बना लिया।
10) लोधी वंश-1451--1525 ---- इसके सुल्तान बहलूल ने नीमसार से हिन्दुओं का पूरी तरह से वंशनाश कर दिया और उसके बेटे सिकंदर लोधी ने यही हाल रीवां और ग्वालियर का किया।
11 ) मुग़ल राज्य --1525 -1707 --- बाबर -- इतिहास में ,क़ुरान की कंठस्थ आयतों ,कत्लेआम और गुलाम बनाने के लिए ही जाना जाता है।
12 ) अकबर ---1556 -1605 ---- बहुत महान थे यह अकबर महाशय , चित्तोड़ ने जब इनकी सत्ता मानाने से इंकार कर दिया तो इन्होने 24 फरवरी 1568 को एक दिन में 30000 चित्तौड़ में पकडे हुए हिन्दुओं का क़त्ल किया था। और इसी दिन 8000 चित्तौड़ की महिलाओं ने , मुगलों के हाथ पड़ कर बेइज़्ज़त न होने के कारण एक साथ जौहर किया था। । कहते हैं की इन्होने गुलाम प्रथा रोकने की बहुत कोशिश की फिर भी इसके हरम में 5000 महिलाएं थीं। इनके समय में ज्यादातर लड़कों को खासतौर पर बंगाल की तरफ अपहरण किया जाता था और उन्हें हिजड़ा बना दिया जाता था। इनके मुख्य सेनापति अब्दुल्लाह खान उज़्बेग, की अगर मानी जाये तो उसने 500000 पुरुष और गुलाम बना कर मुसलमान बनाया था और उसके हिसाब से क़यामत के दिन तक वह लोग एक करोड़ हो जायेंगे।
13 ) जहांगीर 1605 --1627 --- इन साहब के हिसाब से इनके और इनके बाप के शासन काल में 5 से 600000 मूर्तिपूजकों का कत्ल किया गया था औरसिर्फ 1619-20 में ही इसने 200000 हिन्दू गुलामों को ईरान में बेचा था।
14) शाहजहाँ 1628 --1658 ----इसके राज में इस्लाम बस ही कानून था, या तो मुसलमान बन जाओ या मौत के घाट उत्तर जाओ। आगरा में एक दिन इसने 4000 हिन्दुओं को मौत के घाट उतरा था। जवान लड़कियां इसके हरम भेज दी जाती थीं। इसके हरम में सिर्फ 8000 औरतें थी।
15) औरंगज़ेब--1658-1707 -- इसके बारे में तो बस इतना ही कहा जा सकता है की ,जब तक सवा मन जनेऊ नहीं तुलवा लेता था पानी नहीं पीता था। बाकि काशी मथुरा और अयोध्या इसी की देन हैं। मथुरा के मंदिर 200 सालों में बने थे इसने अपने 50 साल के शासन में मिट्टी में मिला दिए। गोलकुंडा में 1659 सिर्फ 22000 लड़कों को हिजड़ा बनाया था।
16)फर्रुख्सियार -- 1713 -1719 ,यही शख्स है जो नेहरू परिवार को कश्मीर से दिल्ली ले कर आया था, और गुरदासपुर में हजारों सिखों को मार और गुलाम बनाया था।
17) नादिर शाह --1738 भारत आया सिर्फ 200000 लोगों को मौत के घाट उत्तर कर हज़ारों सुन्दर लड़कियों को और बेशुमार दौलत ले कर चला गया।
18) अहमद शाह अब्दाली --- 1757-1760 -1761 ----पानीपत की लड़ाई में मराठों युद्ध के दौरान हज़ारों लोग मरे ,और एक बार में यह 22000 लोगों को गुलाम बना कर ले गया था।
19) टीपू सुल्तान ---1750 - 1799 ----त्रावणकोर के युद्ध में इसने 10000 हिन्दू और ईसाईयों को मारा था एक मुस्लिम किताब के हिसाब से कुर्ग में रहने वाले 70000 हिन्दुओं को इसने मुसलमान बनाया था।
ऐसा नहीं कि हिंदुओं ने डटकर मुकाबला नहीं किया था, बहुत किया था, उसके बाद ही इस संख्या का निर्धारण इतिहासकारों ने किया जो कि उपरोक्त दी गई पुस्तकों एवं लिंक में दिया गया है ।
3) इल्ल्तुत्मिश ---1236-- जो भी मिलता उसे गुलाम बना कर, उस पर इस्लाम थोप देता था।
4) बलबन ----1250-60 --- ने एक राजाज्ञा निकल दी थी , 8 वर्ष से ऊपर का कोई भी आदमी मिले उसे मौत के घाट उत्तर दो। महिलाओं और लड़कियों वो गुलाम बना लिया करता था। उसने भी शहर के शहर खाली कर दिए।
5) अलाउद्दीन ख़िलजी ---- 1296 -1316 -- अपने सोमनाथ की लूट के दौरान उसने कम उम्र की 20000 हज़ार लड़कियों को दासी बनाया, और अपने शासन में इतने लड़के और लड़कियों को गुलाम बनाया कि गिनती कलम से लिखी नहीं जा सकती। उसने हज़ारों क़त्ल करे थे और उसके गुलमखाने में 50000 लड़के थे और 70000 गुलाम लगातार उसके लिए इमारतें बनाने का काम करते थे। इस समय का ज़िक्र आमिर खुसरो के लफ़्ज़ों में इस प्रकार है " तुर्क जहाँ चाहे से हिंदुओं को उठा लेते थे और जहाँ चाहे बेच देते थे।
6) मोहम्मद तुगलक ---1325 -1351 ---इसके समय पर इतने कैदी हो गए थे की हज़ारों की संख्या में रोज़ कौड़ियों के दाम पर बेचे जाते थे।
7) फ़िरोज़ शाह तुगलक -- 1351 -1388 -- इसके पास 180000 गुलाम थे जिसमे से 40000 इसके महल की सुरक्षा में लगे हुए थे। इसी समय "इब्न बतूता " लिखते हैं की क़त्ल करने और गुलाम बनाने की वज़ह से गांव के गांव खाली हो गए थे। गुलाम खरीदने और बेचने के लिए खुरासान ,गज़नी,कंधार,काबुल और समरकंद मुख्य मंडियां हुआ करती थीं। वहां पर इस्तांबुल,इराक और चीन से से भी गुलाम ल कर बेचे जाते थे।
8) तैमूर लंग --1398/99 --- As per "Malfuzat-i-Taimuri" इसने दिल्ली पर हमले के दौरान 100000 गुलामों को मौत के घाट उतरने के पश्चात ,2 से ढ़ाई लाख कारीगर गुलाम बना कर समरकंद और मध्य एशिया ले गया।
9) सैय्यद वंश --1400-1451 -- हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं बदला, इसने कटिहार ,मालवा और अलवर को लूटा और जो पकड़ में आया उसे या तो मार दिया या गुलाम बना लिया।
10) लोधी वंश-1451--1525 ---- इसके सुल्तान बहलूल ने नीमसार से हिन्दुओं का पूरी तरह से वंशनाश कर दिया और उसके बेटे सिकंदर लोधी ने यही हाल रीवां और ग्वालियर का किया।
11 ) मुग़ल राज्य --1525 -1707 --- बाबर -- इतिहास में ,क़ुरान की कंठस्थ आयतों ,कत्लेआम और गुलाम बनाने के लिए ही जाना जाता है।
12 ) अकबर ---1556 -1605 ---- बहुत महान थे यह अकबर महाशय , चित्तोड़ ने जब इनकी सत्ता मानाने से इंकार कर दिया तो इन्होने 24 फरवरी 1568 को एक दिन में 30000 चित्तौड़ में पकडे हुए हिन्दुओं का क़त्ल किया था। और इसी दिन 8000 चित्तौड़ की महिलाओं ने , मुगलों के हाथ पड़ कर बेइज़्ज़त न होने के कारण एक साथ जौहर किया था। । कहते हैं की इन्होने गुलाम प्रथा रोकने की बहुत कोशिश की फिर भी इसके हरम में 5000 महिलाएं थीं। इनके समय में ज्यादातर लड़कों को खासतौर पर बंगाल की तरफ अपहरण किया जाता था और उन्हें हिजड़ा बना दिया जाता था। इनके मुख्य सेनापति अब्दुल्लाह खान उज़्बेग, की अगर मानी जाये तो उसने 500000 पुरुष और गुलाम बना कर मुसलमान बनाया था और उसके हिसाब से क़यामत के दिन तक वह लोग एक करोड़ हो जायेंगे।
13 ) जहांगीर 1605 --1627 --- इन साहब के हिसाब से इनके और इनके बाप के शासन काल में 5 से 600000 मूर्तिपूजकों का कत्ल किया गया था औरसिर्फ 1619-20 में ही इसने 200000 हिन्दू गुलामों को ईरान में बेचा था।
14) शाहजहाँ 1628 --1658 ----इसके राज में इस्लाम बस ही कानून था, या तो मुसलमान बन जाओ या मौत के घाट उत्तर जाओ। आगरा में एक दिन इसने 4000 हिन्दुओं को मौत के घाट उतरा था। जवान लड़कियां इसके हरम भेज दी जाती थीं। इसके हरम में सिर्फ 8000 औरतें थी।
15) औरंगज़ेब--1658-1707 -- इसके बारे में तो बस इतना ही कहा जा सकता है की ,जब तक सवा मन जनेऊ नहीं तुलवा लेता था पानी नहीं पीता था। बाकि काशी मथुरा और अयोध्या इसी की देन हैं। मथुरा के मंदिर 200 सालों में बने थे इसने अपने 50 साल के शासन में मिट्टी में मिला दिए। गोलकुंडा में 1659 सिर्फ 22000 लड़कों को हिजड़ा बनाया था।
16)फर्रुख्सियार -- 1713 -1719 ,यही शख्स है जो नेहरू परिवार को कश्मीर से दिल्ली ले कर आया था, और गुरदासपुर में हजारों सिखों को मार और गुलाम बनाया था।
17) नादिर शाह --1738 भारत आया सिर्फ 200000 लोगों को मौत के घाट उत्तर कर हज़ारों सुन्दर लड़कियों को और बेशुमार दौलत ले कर चला गया।
18) अहमद शाह अब्दाली --- 1757-1760 -1761 ----पानीपत की लड़ाई में मराठों युद्ध के दौरान हज़ारों लोग मरे ,और एक बार में यह 22000 लोगों को गुलाम बना कर ले गया था।
19) टीपू सुल्तान ---1750 - 1799 ----त्रावणकोर के युद्ध में इसने 10000 हिन्दू और ईसाईयों को मारा था एक मुस्लिम किताब के हिसाब से कुर्ग में रहने वाले 70000 हिन्दुओं को इसने मुसलमान बनाया था।
ऐसा नहीं कि हिंदुओं ने डटकर मुकाबला नहीं किया था, बहुत किया था, उसके बाद ही इस संख्या का निर्धारण इतिहासकारों ने किया जो कि उपरोक्त दी गई पुस्तकों एवं लिंक में दिया गया है ।
गुलाम हिन्दू चाहे मुसलमान बने या नहीं ,उन्हें नीचा दिखाने के लिए इनसे अस्तबलों का , हाथियों को रखने का, सिपाहियों के सेवक होने का और बेइज़्ज़त करने के लिए साफ सफाई करने के काम दिए जाते थे। जो गुलाम नहीं भी बने उच्च वर्ण के लोग वैसे ही सब कुछ लूटा कर, अपना धर्म न छोड़ने के फेर में जजिया और तमाम तरीके के कर चुकाते चुकाते समाज में वैसे ही नीचे की पायदान शूद्रता पर पहुँच गए। जो आतताइयों से जान बचा कर जंगलों में भाग गए जिन्दा रहने के उन्होंने मांसाहार खाना शुरू कर दिया और जैसी की प्रथा थी ,और अछूत घोषित हो गए।
Now come to the valid reason for Rigidity in Indian Caste System--------
Now come to the valid reason for Rigidity in Indian Caste System--------
वर्ष 497 AD से 1197 AD तक भारत में एक से बढ़ कर एक विश्व विद्यालय हुआ करते थे, जैसे तक्षिला, नालंदा, जगदाला, ओदन्तपुर। नालंदा विश्वविद्यालय में ही 10000 छात्र ,2000 शिक्षक तथा नौ मंज़िल का पुस्तकालय हुआ करता था, जहाँ विश्व के विभिन्न भागों से पड़ने के लिए विद्यार्थी आते थे। ये सारे के सारे मुग़ल आक्रमण कारियों ने ध्वस्त करके जला दिए। न सिर्फ इन विद्या और ज्ञान के मंदिरों को जलाया गया बल्कि पूजा पाठ पर सार्वजानिक और निजी रूप से भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इतना तो सबने पढ़ा है ,लेकिन उसके बाद यह नहीं सोचा कि अपने धर्म को ज़िंदा रखने के लिए ज्ञान, धर्मशास्त्रों और संस्कारों को मुंह जुबानी पीढ़ी दर पीढ़ी कैसे आगे बढ़ाया गया । सबसे पहला खतरा जो धर्म पर मंडराया था ,वो था मलेच्छों का हिन्दू धर्म में अतिक्रमण / प्रवेश रोकना। और जिसका जैसा वर्ण था वो उसी को बचाने लग गया। लड़कियां मुगलों के हरम में न जाएँ ,इसलिए लड़की का जन्म अभिशाप लगा ,छोटी उम्र में उनकी शादी इसलिए कर दी जाती थी की अब इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी इसका पति संभाले, मुसलमानों की गन्दी निगाह से बचने के लिए पर्दा प्रथा शुरू हो गयी। विवाहित महिलाएं पति के युद्ध में जाते ही दुशमनों के हाथों अपमानित होने से बचने के लिए जौहर करने लगीं ,विधवा स्त्रियों को मालूम था की पति के मरने के बाद उनकी इज़्ज़त बचाने कोई नहीं आएगा इसलिए सती होने लगीं, जिन हिन्दुओं को घर से बेघर कर दिया गया उन्हें भी पेट पालने के लिए ठगी लूटमार का पेशा अख्तिया करना पड़ा। कौन सी विकृति है जो मुसलमानों के अतिक्रमण से पहले इस देश में थी और उनके आने के बाद किसी देश में नहीं है। हिन्दू धर्म में शूद्र कृत्यों वाले बहरूपिये आवरण ओढ़ कर इसे कुरूप न कर दें इसीलिए वर्णव्यवस्था कट्टर हुई , इसलिए कोई अतिशियोक्ति नहीं कि इस पूरी प्रक्रिया में धर्म रूढ़िवादी हो गया या वर्तमान परिभाषा के हिसाब से उसमे विकृतियाँ आ गयी। मजबूरी थी वर्णों का कछुए की तरह खोल में सिकुड़ना।
जैसा कि जवाहर लाल नेहरू जो की मुस्लिमों के पक्षधर थे ने भी अपनी पुस्तक "डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया "में हिन्दू वर्णव्यवस्था के सम्बन्ध में लिखा है ---- 1)There is truth in that and its origin was probably a device to keep the foreign conquerors apart from and above the conqured people.Undoubtdly in its growth it has acted in that way, though originally there may have been a good deal of FLEXIBILITY about it. Yet that is only a part of the truth and it does not explain its power and cohesiveness and the way it has lasted down to the present day.It survived not only the powerful impact of Buddhism and Mughal rule and the spread of Islam, ------------ page 264- .
यहीं से वर्ण व्यवस्था का लचीलापन जो की धर्मसम्मत था ख़त्म हो गया। इसके लिए आज अपने को शूद्र कहने वाले ब्राह्मणो या क्षत्रियों को दोष देकर अपने नए मित्रों को ज़िम्मेदार कभी नहीं ठहराते हैं । वैसे जब आप लोग डा. सविता माई(आंबेडकर जी की ब्राह्मण पत्नी) के संस्कारों को ज़बरदस्ती छुपा सकते हैं,
http://www.thoughtnaction.co. in/dr-ambedkar-and-brahmins/
जब आप लोग अपने पूर्वजो के बलिदान को याद नहीं रख सकते हैं जिनकी वजह से आप आज भी हिन्दू हैं तो आप आज उन्मुक्त कण्ठ से ब्राह्मणो और क्षत्रिओं को गाली भी दे सकते हैं,जिनके पूर्वजों ने न जाने इस धर्म को ज़िंदा रखने के लिए क्या क्या कष्ट सहे। पूरे के पूरे मज़हब ख़त्म हो कर दिए गए दुनिया के नक़्शे से, लेकिन आप वो नहीं देखना चाहते। कहाँ चला गया पारसी मज़हब अपनी जन्म भूमि ईरान से ??? क्या क्या ज़ुल्म नहीं सहे यहूदियों और यज़ीदियों ने अपने आप को ज़िंदा रखने के लिए। कहाँ चला गया बौद्ध धर्म का वो वटवृक्ष जिसकी शाखाएँ बिहार से लेकर अफगानिस्तान मंगोल चीन इंडोनेशिया तक में फैली हुईं थीं ??? कौन सा मज़हब बचा मोरक्को से लेकर मलेशिया तक ???? सिर्फ और सिर्फ बचे तो सनातन वैदिक धर्म को मानने वाले। शर्म आनी चाहिए उन लोगों को जो अपने पूर्वजों के बलिदानों को भूल कर, इस बात पर गर्व नहीं करते कि आज उनका धर्म ज़िंदा है मगर वो रो रहे हैं कि वर्णव्यवस्था ज़िंदा क्यों है। नीचे दिए गए लिंक में पढ़ लीजिये, कि जो कुछ ऊपर लिखा है वो अन्य देशों में भी हुआ वहां के मज़हब मिट गए और आपका धर्म ज़िंदा है।
http://www.thoughtnaction.co.
जब आप लोग अपने पूर्वजो के बलिदान को याद नहीं रख सकते हैं जिनकी वजह से आप आज भी हिन्दू हैं तो आप आज उन्मुक्त कण्ठ से ब्राह्मणो और क्षत्रिओं को गाली भी दे सकते हैं,जिनके पूर्वजों ने न जाने इस धर्म को ज़िंदा रखने के लिए क्या क्या कष्ट सहे। पूरे के पूरे मज़हब ख़त्म हो कर दिए गए दुनिया के नक़्शे से, लेकिन आप वो नहीं देखना चाहते। कहाँ चला गया पारसी मज़हब अपनी जन्म भूमि ईरान से ??? क्या क्या ज़ुल्म नहीं सहे यहूदियों और यज़ीदियों ने अपने आप को ज़िंदा रखने के लिए। कहाँ चला गया बौद्ध धर्म का वो वटवृक्ष जिसकी शाखाएँ बिहार से लेकर अफगानिस्तान मंगोल चीन इंडोनेशिया तक में फैली हुईं थीं ??? कौन सा मज़हब बचा मोरक्को से लेकर मलेशिया तक ???? सिर्फ और सिर्फ बचे तो सनातन वैदिक धर्म को मानने वाले। शर्म आनी चाहिए उन लोगों को जो अपने पूर्वजों के बलिदानों को भूल कर, इस बात पर गर्व नहीं करते कि आज उनका धर्म ज़िंदा है मगर वो रो रहे हैं कि वर्णव्यवस्था ज़िंदा क्यों है। नीचे दिए गए लिंक में पढ़ लीजिये, कि जो कुछ ऊपर लिखा है वो अन्य देशों में भी हुआ वहां के मज़हब मिट गए और आपका धर्म ज़िंदा है।
और आज जिस वर्णव्यवस्था में हम विभाजित हैं उसका श्रेय 1881 एवं 1902 की अंग्रेजों द्वारा कराई गयी जनगणना है जिसमें उन्होंने demographic segmentation को सरल बनाने के लिए हिंदु समाज को इन चार वर्णों में चिपका दिया।
http://www.tamilnet.com/img/ publish/2011/08/16430.pdf
http://www.tamilnet.com/img/
वैसे भील, गोंड, सन्थाल और सभी आदिवासियों के पिछड़ेपन के लिए क्या वर्णव्यवस्था जिम्मेदार है?????
कौन ज़िम्मेदार है इस पूरे प्रकरण के लिए अनजाने या भूलवश धर्म में विकृतियाँ लाने वाले पंडित ??? या उन्हें मजबूर करने वाले मुसलमान आक्रांता ??? या आपसे सच्चाई छुपाने वाले इतिहास के लेखक ???? कोई भी ज़िम्मेदार हो पर हिन्दू भाइयो अब तो आपस में लड़ना छोड़ कर भविष्य की तरफ एक सकारात्मक कदम उठाओ। अगर पिछड़ी जाति के मोदी देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं, तो उतने ही पथ तुम्हारे लिए भी खुले हैं ,मान लिया कल तक तुम पर समाज के बहुत बंधन थे पर आज तो नहीं हैं ।
अगर आज हिन्दू एक होते तो आज कश्मीर घाटी में गिनती के 2984 हिन्दू न बचते और 4.50 लाख कश्मीरी हिंदू 25 साल से अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह न रह रहे होते और 16 दिसंबर के निर्भया काण्ड ,मेरठ काण्ड ,हापुड़ काण्ड …………गिनती बेशुमार है, इस देश में न होते।
वैसे सबसे मजे की बात यह है कि जिनके पूर्वजों ने ये सब अत्याचार किए, 800 साल तक राज किया, वो तो पाक साफ हो कर अल्पसंख्यकों के नाम पर आरक्षण भी पा गये और कटघरे में खड़े हैं, कौन????? जवाब आपके पास है
http://shivashaurya.blogspot.अगर आज हिन्दू एक होते तो आज कश्मीर घाटी में गिनती के 2984 हिन्दू न बचते और 4.50 लाख कश्मीरी हिंदू 25 साल से अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह न रह रहे होते और 16 दिसंबर के निर्भया काण्ड ,मेरठ काण्ड ,हापुड़ काण्ड …………गिनती बेशुमार है, इस देश में न होते।
वैसे सबसे मजे की बात यह है कि जिनके पूर्वजों ने ये सब अत्याचार किए, 800 साल तक राज किया, वो तो पाक साफ हो कर अल्पसंख्यकों के नाम पर आरक्षण भी पा गये और कटघरे में खड़े हैं, कौन????? जवाब आपके पास है
विवेक मिश्र
8 फ़रवरी 2015
https://www.facebook.com/profile.php?id=100001457628054
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विवेक जी, वाकई बहुत बड़ा लेख है और पूरा पढने के लिए काफी ध्यान और वक़्त लगता है. आपकी हर बात सही है लेकिन सबसे बड़ी सचाई भी यही है की जाति व्यवस्था को मजबूत सवर्णों ने ही किया. उन्होंने शूद्रों के साथ अमानवी व्यवहार किया और उनका शोषण किया. अपने आपको उच्च दिखाने के लिए शूद्रों को जन्म से दलित बनाया गया और उन्हें दबाकर रखने के लिए हर संभव प्रयत्न किये गए.
जवाब देंहटाएंगलती किसी की रही हो...पर अभी गलती और अपराध सिर्फ और सिर्फ सवर्णों का है. यदि वे इस देश की एकता चाहते तो सबसे पहले वे खुद छद्म जाती श्रेष्ठता को उतार फैंकते और सबको बराबर मानकर चलते, दलितों को गांवों के बाहर नहीं रखा जाता, उन्हें मंदिरों में प्रवेश से नहीं रोका जाता, उनपर नित अत्याचार नहीं किये जाते. लेकिन यह सब हुआ और अब भी हो रहा है तो पूरा दोष सिर्फ और सिर्फ ब्रह्मणों को ही जाएगा.
अब भी अगर सब-कुछ सुधारना है तो सबसे पहले ब्रह्मणों को ही पहल करनी होगी और जातिवाद को पहले खुद ख़त्म करना होगा.
जय भीम.....
विवेक भाई इससे बढ़िया , इस विषय पर लेख और जानकारी मैंने कभी नहीं पढ़ी .
जवाब देंहटाएंसाधुवाद आपको .
This must be shown to all Hindu students of India, so they can know the history of India.
जवाब देंहटाएंBhai maine aaj apka ye lekh pda hai
जवाब देंहटाएंPura thoda time jarur laga par
Eiski jankari pure desh ko honi chahiye
Maine phale bhi kaha tha aur aj ye sabit ho gaya ki islman hi hinduo ko jativad karvaya hai usne bato aur raj karo kiya hai
Aur uska sath ye angrezo ne itihas to tod marod diya
Me apki bat pure desh me jaha pahucha saktabhunga jarur pahuchane ki puri koshish karunga
Thankyou so much ShivaShaurya bhai
Jai shree ram ����
सही तथ्य के लिए धन्यवाद। इतिहास ही ऐसी विषय है जिसमें हम अपने भूतकालीन तथ्य देख पाते हैं लेकिन इतिहास ही गलत हो तो तर्कहीनता होना लाज़मी हैं। सबसे बड़ी बातें यह है कि गलत को सही करने के लिए हमलोगों ने किया?
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लेख मिश्रा जी, अति उत्तम
जवाब देंहटाएंAbsolutely deep rooted analysis . Thank you an eye opening article !🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹❤️🙏
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