रविवार, 15 मार्च 2015

धर्मनिरपेक्षता का भूत



भारतवर्ष के तमाम "SICK U LAR" नागरिकों, नेताओं और मीडिया को मेरा सादर प्रणाम !!!!!!!!!!!!!" बादशाह राम" और "बेगम सीता" ये धर्मनिरपेक्ष विचार गांधी के थे, और उनके अंधभक्तों ने उनके इन विचारों का पुरज़ोर समर्थन किया। 

गांधी के जितने भी प्रयोग थे वे हिन्दुओं और हिन्दू धर्म पर ही होते थे, वे कभी जिन्नाह को श्री जिन्नाह नहीं कह पाये और मौलाना आज़ाद को कभी पंडित आज़ाद नहीं कह पाये । ( Page 71, why I assasinated Mahatama, Nathuram godse) । जैनमुनि श्री ललितप्रभ के अनुसार " हर विचार से शब्द बनते हैं ,हरशब्द से प्रवृति बनती है और प्रवृति से संस्कार बनते हैं"। यही विचार औरशब्द फिर इनसे पैदा हुए संस्कार,सभ्यताओं को कहाँ से कहाँ पंहुचा देते हैं उसकी कुछ बानगियाँ देख लीजिये,और दुनिया में हो रही घटनाओं से उनको जोड़ कर देखिएगा। कुरान सूरा 2 आयात 223 --- तुम्हारी बीवियाँ तुम्हारे (लिए बतौर )खेत (के ) हैं। सो अपने खेत में जिस तरफ से होकर चाहो जाओ। और आइन्दा के लिए ( भी) अपने लिए कुछ करते रहो, और अल्लाह तआला से डरते रहो और यह यकीं रखो की बेशक तुम अल्लाह तआला के सामने पेश होने वाले हो, और ( ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व् सल्लम) ऐसे ईमानदारों को ख़ुशी की खबर सुना दीजिये।
सूरा 14:आयत 33 ---- और तुम्हारे नफे के वास्ते सूरज और चाँद को ( अपनी कुदरत का ) ताबे बनाया जो हमेशा चलने में ही रहते हैं, और तुम्हरे नफे के वास्ते रात और दिन (अपनी कुदरत का) ताबे बनाया।
सूरा 9 :आयत 29---- अहले किताब जो कि न,खुदा पर(पूरा-पूरा ) ईमान रखते हैं और न क़ियामत के दिन पर,और न उन चीज़ों को हराम समझते है जिनको खुद तआला ने और उसके रसूल ने हराम बतलाया है ,और न सच्चे दीन (इस्लाम) को कबूल करते हैं, उनसे यहाँ तक लड़ो की वे मातहत होकर और रैय्यत बनकर जिजया "यानि इस्लामी हुकूमत में रहने का टैक्स" देना मंजूर कर दें।
सूरा 61:आयत 6 ---और ( इसी तरह वह वक़्त भी ज़िक्र करने के काबिल है ) जबकि ईसा इब्ने मरियम ने फ़रमाया कि ऐ बनी इस्राइल ! मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुआ आया हूँ कि मुझसे पहले जो "तौरात" (आ चुकी) है में उसकी तस्दीक करने आया हूँ ,और मेरे बाद जो एक रसूल आने वाले हैं जिनका (मुबारक) नाम "अहमद" होगा,मैं उनकी खुशखबरी देने वाला हूँ। फिर वह जब उन लोगों के पास खुली दलीलें लाये तो वे लोग ( उन दलीलों यानि मोज़िज़ों के बारे में) कहने लगे, यह खुला जादू है।


मेरा सवाल उन बिना रीढ़ की हड्डी वाले वृहद मानसिकता वाले धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं से है, जिन्हे सारे दोष हिन्दू धर्म और हिन्दू धर्म ग्रंथो में नज़र आते हैं , क्या उन्होंने कभी किसी मुस्लिम महिला संगठन को इस बात के खिलाफ आवाज़ उठाए हुए सुना या देखा की उनकी तुलना खेत से की जा रही है ??? या जहाँ चाहो वहाँ से घुसो पर किसी महिला को आपत्ति उठाते हुए सुना???? क्या इन बदज़ात धर्मनिरपेक्षों ने किसी मुस्लिम वैज्ञानिक को यह कहते हुए सुना की क़ुरान में गलत लिखा है ,सूरज चल रहा है और यह गलत लिखा है ???? क्या उन्होंने किसी कानून के ज्ञाता को यह कहते हुए सुना कि वर्तमान समाज में यह ज़बरदस्ती मार काट,धर्म परिवर्तन और जजिया गलत है, तथा इन आयतों का धर्मनिरपेक्ष संविधान के तहत चलने वाले देश में होना खतरनाक है ???? क्या उन्होंने किसी मुस्लिम अग्निवेश को यह सवाल उठाते हुए सुना कि ईसा के बाद तो "अहमद" ने पैगम्बर होना था यह "मोहम्मद साहिब" पैगम्बर कैसे हो गए ????
न मुझे दिक्कत इन आयतों से है और न ही उन मुसलमानों से जो आँख बंद करके इन्हे मानते हैं। उनकी धार्मिक किताब में लिखा है तो उन्हें मानना भी चाहिए और अगर कहीं दिल में इन बातों से नाइत्तेफकी रखते भी हैं तो तुम भोंडी मानसिकता वाले हिन्दुओं की तरह गले में ढोल डाल कर अपने ही मज़हब का जनाजा नहीं निकालते। वे कभी क़ुरान के विशेषज्ञों से ये नहीं पूछते की इजराइल क्षेत्रफल ( ( 20770 sq km ) में दिल्लीं एनसीआर ( 45887 sq km ) का आधा है उसका तो ज़िक्र,क़ुरान की आसमान से बैठ कर डिक्टेशन देने वाले ने क़ुरान में 49 बार किया है, तो क्यों डिक्टेशन देने वाले को भारत, ग्रीस, रोम,चीन उस समय के बड़े बड़े धार्मिक देश नज़र नहीं आये ????
बस कहीं से मनु स्मिृति के बारे में सुन लिया की उसमे वर्णव्यवस्था बताई गयी है, मनुस्मृति पढ़ी कभी नहीं और लगे मनु को गालियाँ देने। कहीं से सुन लिया की "रामचरित मानस " में लिखा हुआ है --"ढोल गवांर शूद्र पशु नारि. यह सब ताड़न के अधिकारी"---- न इसका सन्दर्भ जानेंगे , न यह जानेंगे कि तुलसीदास जी ने यह पंक्तिया किसकी Quote की हैं, बस पेल देंगे अपना अधकचरा ज्ञान। प्राणायाम और सूर्य नमस्कार कभी किया नहीं , बस चूँकि उसे हिन्दू ऋषियों ने बनाया है इसलिए स्कूलों में नहीं करना चाहिए इससे दूसरे धर्म आहत होते हैं। विदेशी भाषाओँ के मोह में मरे जा रहे हैं, जबकि नासा कह चुका है की संस्कृत सबसे ज्यादा वैज्ञानिक भाषा है, संस्कृत पढने से किसका धर्म खतरे में आ रहा है जो जर्मन भाषा पढने से नहीं आ रहा ??? क्या मुसलमान द्रविड़ों की देव भाषा तमिल नहीं बोलते सीखते या पढ़ते? या जिस देश में वे रहते हैं वहां की भाषा नहीं सीखते ??? आरएसएस के बारे लफ्ज़ एक नहीं जानते और लग जाते हैं संघी शब्द का गाली की तरह उपयोग करने, लेकिन उस मुस्लिम लीग बारे में इनके मुंह से एक लज़्फ़ नहीं फूटता (जिसके जवाब में हिन्दू हितों की रक्षा के लिए आरएसएस बनी थी) जो मुस्लिम हितों के लिए पाकिस्तान बनाने के लिए बनी थी और आज भी भारत में चुनाव लड़ती है। बस उसका सम्बन्ध हिन्दुओं से नहीं होना चाहिए।
मक्का में वो मस्जिद तोड़ दी गयी ,जिसमे मोहम्मद साहिब ने पहली नमाज़ अदा की थी , '''मस्जिद अबू बकर' ''-'मस्जिद सलमान अल फ़ारसी'''-मस्जिद उमर इब्न अल खत्ताब'''-मस्जिद सईदा फातिमा बिन्त रसूलुल्लाह'''-और मस्जिद अली इब्न अबू तालिब'''' इन सभी को तोड़ कर गिरा दिया गया है.l लेकिन जब रामजन्म भूमि ,काशी और मथुरा की बात चलती है तो पहले पशुवृत हिन्दू ही हिन्दुओं का यह कह कर विरोध करते हैं, की इन मुद्दों को उठा कर हिन्दू साम्प्रदायिकता फैला रहे हैं ??? क्या कभी मुसलामानों से पुछा की जब पैगम्बर साहिब से जुडी हुई मस्जिदें तोड़ दी गयीं हैं तो इनका औरंगज़ेब द्वारा तोड़े गए मंदिरों से इतना मोह क्यों???
सितम्बर-13 के मुज़्ज़फरनगर दंगो की बात तो छेड़ देते हो उसका कारण और अगस्त -13 किश्तवाड़ के जबरदस्ती के दंगे क्यों भूल जाते हो ???
जैसा कि सबसे ऊपर लिखा है , गाँधी की भी दगती थी और तुम्हारी भी दगती है। तुम्हारी धर्मनिरपेक्षता का प्रेरणास्त्रोत गांधी मंदिरों में तो कुरान का पाठ करवा लेता था, लेकिन एक उदाहरण दे दो जब उसने किसी मस्जिद में रामधुन या गीता का पाठ करवा कर मुसलामानों की धर्मनिरपेक्षता साबित की हो। गांधी के भी सारे प्रयोग और नसीहतें हिन्दुओं के लिए होती थीं और तुम्हारी भी हैं। इसलिए नहीं की हिन्दू निरे बेवकूफ और मुसलमान पूरे अक्लमंद हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि हिन्दू सुन लेता है, और मुसलमान जैसे गांधी और नेहरू की नहीं सुनता था तो तुम्हारी तो खाक सुनेगा। और समृद्ध हिन्दू संस्कृति को जितना मुग़ल आक्रान्ताओं ने मिटटी मिलाया उससे ज्यादा गांधी, नेहरू और इनके चापलूसों ज़िम्मेदार हैं, हिन्दुओं और हिन्दू धर्म रीढ़ ही हड्डी तोड़ कर पुनर्जीवित न करने के लिए। और जो सम्पदा को बचाना चाहते है उसे साम्प्रदायिक और संघी घोषित कर दिया जाता है।
जो इतिहास भारत का है पूरा अक्षरश वही इतिहास इजराइल का भी है, भारत 1000 वर्ष तक गुलाम रहा , तो इजराइल भी रहा। यहाँ हिन्दू मारे गए गुलाम बनाये गए वहां यहूदी मारे गए और गुलाम बनाये गए। 1947 में भारत आजाद हुआ 1948 में इजराइल आज़ाद हुआ। इजराइल का कुल क्षेत्रफल 20770 sqkm है जो की दिल्ली और एनसीआर के 45887 sqkm के आधे से भी कम है। 21 मुस्लिम देशों से घिरा होने के बावजूद, जब बात अपने धर्म और स्वाभिमान की आती है तो पूरी दुनिया को जूते की नोक पर रखता है। भारत और इजराइल के नेताओं की सोच में बस इतना सा फर्क है की उसे अपने धर्म और संस्कृति पर गर्व है ,और सिर्फ यहूदी ही नहीं ,हिन्दू कमीनस्तों ( कम्युनिस्ट्स) को छोड़ कर हर धर्मपरायण व्यक्ति अपने धर्मऔर संस्कृति पर गर्व करता है। क्योंकि उनमे वो स्वाभिमान है जो हिन्दुओं में मार दिया गया है। तुम लोगों की धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा अब तुम्हारी वृहद मानसिकता का परिचायक नहीं बल्कि अल्पसंख्यंकों के तुष्टिकरण के कटघरे में खड़ी है, क्योंकि तुम वो जाहिल हो जो इतिहास से सबक न लेकर उसे कहीं अधिक कीमत चुका कर दोहराने में यकीं रखते हो। जिस वृहद मानसिकता का परिचय कश्मीरी हिन्दुओं और यज़ीदियों ने दिया और उसकी कीमत चुका रहे है उसी लीक पर न सिर्फ तुम लोग चल रहे हो बल्कि पूरे समाज को वध के रस्ते पर धकेल रहे हो।
बहुत सुलग रही होगी मेरा यह लेख पढ़कर ,और उंगलियां कांप रहे होंगी मुझे गलियां लिखने के लिए , लेकिन उससे पहले कि कुछ लिखो मेरी एक नसीहत मान लेना , जिस भी विषय पर तर्क देना कायदे से अध्ययन कर लेना, अगर पढ़ लिख लोगे तो मेरी बात से असहमत नहीं होगे, और यह भी सिद्ध कर लोगे की हिन्दू धर्म श्रेष्ट है , बिना ज्ञान के तो कभी यह भी यह भी सिद्ध नहीं कर पाओगे की जिस आदमी को तुम अपनी माँ के कहने पर अपना बाप कहते हो, जिस बच्चे को अपनी पत्नी के कहने पर अपनी औलाद समझते हो ,वो वाकई तुम्हारे बाप और औलाद हैं। मुझे यह भी मालुम है की कि कुत्तों की दुम फेसबुक के एक लेख से सीधी होने से रही, आएंगे कमेंट बॉक्स में भौकने के लिए ,ज़रूर आईये,कम से कम अपना परिचय तो दीजिये, हम भी जाने कि की हमारे धर्म में फेसबुक चलने वाले कितने कुत्ते मौजूद है। मेरे जवाब की उम्मीद मत करना ,क्योंकि अब मुझे ……… को जवाब देने में कोई रूचि नहीं रह गयी है।
उपरोक्त लेख पढ़ कर मेरे बारे में नपुंसक धर्मनिरपेक्ष कोई भी धारणा बनाने से पहले यह भी पढ़ लें कि ---मैं सनातन धर्म की मान्यताओं "वसुधैव कुटुम्बकम" में पूरा विश्वास रखता हूँ , मैं "सर्वे भवन्तु सुखिना:" में पूरा यकीं रखता हूँ , पर "अहिंसा परमोधर्म" को वहीँ तक मानता हूँ जहाँ से "धर्मं हिंसा तथैव च" शुरू नहीं होता।
श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेय:परधर्मो भयावह : ।। ( गीता ,अध्याय -3 ,श्लोक 35)
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मेरा अपने धर्मनिष्ट भाइयों से यही निवेदन है की आप घर बार त्याग कर दुनिया नहीं बदल सकते, शुरुआत अपने घर की दुनिया से करिये। अपने बच्चों को हिन्दुधर्म प्रद्दत मानवता का पाठ पढ़ाते हुए यह ज़रूर समझाइये की अन्याय करना अधर्म है और अन्याय के विरुद्ध न लड़ना उससे भी बड़ा अधर्म है।
वन्दे मातरम !!!!!!!!!
1. 3 . 2015 
विवेक मिश्र 






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